इबोला : जरूरी है सावधानी

पश्चिमी अफ्रीका के 3 देशों लाइबेरिया, सियरालियौन और नाइजीरिया में इन दिनों इबोला वायरस का संक्रमण काफी तेजी से फैला हुआ है. इन देशों में करीब 1 हजार से अधिक लोगों की मृत्यु इबोला की वजह से हो चुकी है.

इस वायरस ने पूरी दुनिया में चिंता की लहर दौड़ा दी है. इसलिए कहीं भी अगर कोई व्यक्ति उन देशों से आता है, तो उस की पूरी जांच की जाती है. इस के बारे में हील फाउंडेशन के तहत नैशनल हैल्थ राइटर्स ऐंड एडीटर्स कनवैंशन के सेमिनार में आए

डा. सौमित्र रावत का कहना था कि इबोला जानलेवा है पर यह हवा में नहीं फैलता. यह ब्लड ट्रांसमीटेड डिजीज है. यह एचआईवी की तरह ही है. इस में वायरल फीवर होने की वजह से सभी बड़ेबड़े बौडी और्गन जल्दी फेल होने लगते हैं और मरीज को बचाना असंभव हो जाता है. इसलिए जो भी व्यक्ति उन देशों में जाता है उसे सावधानी बरतनी जरूरी है. यह संक्रमण हवा के जरीए नहीं फैलता.

इबोला के लक्षण

इस बीमारी के लक्षण अन्य कई वायरल फीवर की तरह ही होते हैं और इस की अवधि 2 से 21 दिनों तक की होती है. लक्षणों की शुरुआत के बाद लगभग 5वें दिन के आसपास त्वचा पर लाललाल चकते होेने लगते हैं.

कुछ अन्य लक्षण निम्न हैं:

– तेज बुखार.

– जी मचलना.

– उलटी होना.

– गले में खराश.

– सीने में दर्द.

– पेट दर्द और दस्त का होना.

इस के लक्षण तेजी से बढ़ते जाते हैं जिस से पीलिया, तेजी से वजन का घटना, मल्टी और्गन फैल्योर आदि हो जाना प्रमुख हैं. इबोला से अधिकतर ब्रेन हैमरेज होता है. इस बारे में मुंबई फोर्टिस हौस्पिटल के संक्रमित बीमारी का इलाज करने वाले डाक्टर प्रदीप शाह बताते हैं कि इबोला के मरीज अभी तक भारत में पाए नहीं गए. जो भी केस संदेहजनक था उसे इबोला नहीं था. अफ्रीका के पिछड़े देशों में यह अधिक हो रहा है, क्योंकि वहां सैक्स कौमन है और साफसफाई अच्छी नहीं है.

परीक्षण

इबोला के इलाज के लिए निम्न परीक्षण आवश्यक है:

 – ऐंटीबौडी कैप्चर ऐंजाइम लिंक्ड इम्युनोसोरबेंट ऐसे (इलिसा).

 – ऐंटी डिटैक्शन टैस्ट.

 – सीरम न्यूट्रोलाइजेशन टैस्ट.

 – रिवर्स ट्रांस्किप्टस पोली मर्से चेन रिऐक्शन ऐसे.

 – इलैक्ट्रोन माइक्रोस्कोपी.

 – वायरस आईसोलेशन बाई सेल कल्चर.

एक बार इस वायरस का संक्रमण हो जाने पर मरीज के बचने की उम्मीद कम रह जाती है क्योंकि मरीज का तेज बुखार उस के दिमाग पर प्रभावित करता है. 90% मरीज बच नहीं पाते, लेकिन जिस की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है, वह व्यक्ति बच सकता है.

 – यह आम फ्लू या टीबी की तरह हवा में नहीं फैलता. इस से बचने के उपाय निम्न हैं:

 – मरीज के रक्त, पसीना या उलटी के जरीए निकले पदार्थ से दूर रहें.

 – इबोला संक्रमित व्यक्ति के कै और दस्त से भी दूर रहें.

डा. प्रदीप आगे बताते हैं कि इस के वैक्सीन पर काम चल रहा है और उम्मीद है कि कुछ दिनों में इस के वैक्सीन मिलने लगेगा. प्रायोगिक वैक्सीन वानरों पर प्रयोग किए जा रहे हैं जिस के परिणाम अच्छे मिल रहे हैं.

मैंगो संदेश

सामग्री

1 किलोग्राम ताजा छेना, 250 ग्राम चीनी, 1 बड़ा चम्मच घी, 100 ग्राम मैंगो पल्प, 100 ग्राम मैंगो क्रश, 50 ग्राम स्कवैश, 50 ग्राम हरा पिस्ता.

विधि

छेना और चीनी को मिला कर कड़ाही में चढ़ाएं. फिर लगातार चलाते हुए इस का पूरा पानी सुखा लें. मिश्रण को चलाते हुए पूरी तरह महीन मैश कर लें. इसे एक ट्रे या थाली में निकाल लें और ठंडा होने दें.

मैंगो संदेश बनाने के लिए इस में आम का पल्प, क्रश और स्क्वैश डाल कर अच्छी तरह गूंधते हुए मिला लें. एक चौकोर ट्रे में घी लगा कर मिश्रण को जमा दें. मैंगो संदेश में पिस्ते का चूरा फैला दें और हलके हाथों से जमा दें. फिर चौकोर आकार में काट लें.

हौसलों की उड़ान से छू लिया आसमान

कोलकाता की रहने वाली 17 साल की मारवाड़ी परिवार की चंदा झावेरी 1984 में घर से इसलिए भाग गईं, क्योंकि उन के मांबाप जबरदस्ती उन की शादी करा रहे थे. जबकि जिंदगी को ले कर उन के सपने कुछ और ही थे. वे नोबल प्राइज जीतना चाहती थीं.

3 दशक बाद जब चंदा वापस लौटीं तो अमेरिका की मिलेनियर ऐंटरप्रन्योर बन कर और यह मुमकिन हुआ उन की कठिन मेहनत, लगन व हौसलों की वजह से.

घर छोड़ते वक्त चंदा के पास केवल 1 जोड़ी हीरे के इयररिंग्स थे, जिस से उन्होंने ब्रिटिश एअरवेज का टिकट खरीदा और बोस्टन पहुंचीं.

वहां पहुंच कर चंदा ने कठिन मेहनत की. अमेरिकी बुजुर्गों के लिए मेड तक का काम किया. साथ में ऊंची पढ़ाई भी की और अंतत: एक दिन उन्होंने अपनी ऐक्टिजन कंपनी की स्थापना कर अपना सपना पूरा किया. आज इस कंपनी का टर्नओवर करोड़ों का है. जो पड़ोसी और रिश्तेदार उन की वजह से उन के परिवार का मजाक उड़ाते थे, उन्हीं लोगों की नजरों में आज चंदा का कद काफी ऊंचा उठ चुका है.

जाहिर है, हौसलों की उड़ान ऊंची हो तो बुलंदियों तक पहुंचना मुश्किल नहीं. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह स्त्री है या पुरुष या फिर उस की उम्र क्या है और वह किस देश का वासी है.

परिश्रम व लगन

कल्पना सरोज की कहानी भी कम प्रेरक नहीं. इन्हें आप स्लमडौग मिलेनियर भी कह सकते हैं. पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित सरोज वर्तमान समय में कमानी ट्यूब्स कंपनी की अध्यक्षा हैं. खास बात यह है कि वर्ण व्यवस्था के सब से निचले स्तर पर आने के बाद भी उन्होंने अपने लिए जगह बनाई.

कल्पना की शादी सिर्फ 12 साल की उम्र में कर दी गई थी और उस वक्त वे मुंबई में अपने पति के साथ एक स्लम एरिया में रहती थीं. ससुराल वालों द्वारा प्रताडि़त किए जाने पर उन के पिता उन्हें घर ले आए.

16 साल की उम्र में वे फिर से मुंबई आ गईं जहां उन्होंने सिलाई का काम किया. बाद में सिलाई मशीन ले ली और फिर बैंक से ऋण ले कर फर्नीचर की दुकान चलाने लगीं. 1997 में उन्होंने मुंबई में जमीन खरीदी और फिर उस पर एक इमारत खड़ी की.

2006 में उन्होंने ट्यूब बनाने वाली कंपनी कमानी ट्यूब की कमान संभाली, जिस पर मोटा कर्ज था. एक तरह से वह दिवालिया होने के कगार पर थी. पर कल्पना सरोज के प्रयास व मेहनत की बदौलत अब वही कंपनी अच्छा मुनाफा कमा रही है.

कुछ अलग सोचने का जज्बा

सफलता के लिए जरूरी है, अलग सोच. कहते हैं न कि सफल व्यक्ति कोई अलग काम नहीं करते, बल्कि किसी भी काम को अलग ढंग से करते हैं.

महिमा बख्शी का ही उदाहरण लीजिए. महिमा बीते एक दशक से कागज बनाने के उद्योग से जुड़ी हैं लेकिन वह कागज पेड़ों को काट कर नहीं, बल्कि हाथी के गोबर से तैयार किया जाता है. महिमा जयपुर की हैं. वहां हाथी आमतौर पर नजर आते हैं. एक दिन उन के एक साथी की नजर हाथी के गोबर पर पड़ी, तो उस ने कहा कि इस में फाइबर होता है. क्या इस का कुछ इस्तेमाल नहीं हो सकता?

महिमा उस वक्त तो इस बात पर कुछ बोल नहीं सकीं, लेकिन बाद में इंटरनैट सर्च करने पर उन्हें पता चला कि कुछ देशों में इस से कागज बनाए जाते हैं. बस फिर क्या था, महिमा ने इसे कारोबार के रूप में अपना लिया और आज इस से ग्रीटिंग कार्ड से ले कर दूसरे कई उत्पाद बना रही हैं.

उम्र कम हौसला बड़ा

सफलता के लिए कभी भी उम्र कोई माने नहीं रखती. बस जरूरी होता है सपना देखना और उसे पूरा करने का हौसला रखना.

अमेरिका की डेन टेक्स सैंट्रल इंक कंपनी की सी.ई.ओ. और प्रैसिडैंट, डौन लाफ्रीडा आज अमेरिका में 6 राज्यों के 76 स्थानों पर डेनीज रैस्टोरैंट खोलने वाली, सिस्टम की पहली सिंगल ओनर फ्रैंचाइजी हैं.

उन की इस सफलता की नींव उन की मात्र 13 साल की उम्र में पड़ गई थी, जब उन्होंने अमीर बनने की ख्वाहिश की. 16 साल की उम्र में उन की इच्छा एक कार खरीदने की हुई. उन की मां सिंगल मदर थीं और उन पर 3 बच्चों की जिम्मेदारी थी. बच्चों की खातिर वे एक डेनी रैस्टोरैंट में काम करती थीं. लाफ्रीडा की ख्वाहिश जान कर मां ने उन्हें भी रैस्टोरैंट में काम करने को प्रोत्साहित किया. बस फिर क्या था, लाफ्रीडा ने कैलिफोर्निया के एक स्थानीय डेनी रैस्टोरैंट में होस्टेस का काम शुरू कर दिया और बहुत जल्द अपनी मेहनत से वेट्रैस बनने की राह पर आगे बढ़ गईं.

पढ़ाई के साथसाथ उन्होंने नौकरी जारी रखी और 1984 में सिर्फ 23 साल की उम्र में उन्हें एक छोटे शहर, एरिजोना में डेनीज का एक रैस्टोरैंट खरीदने का औफर मिला, जिसे उन्होंने तुरंत स्वीकार कर लिया और पूरे जोश से इस नए बिजनैस की शुरुआत की. 18 माह बाद ही लाफ्रीडा के काम से संतुष्ट डेनीज ने उसे पश्चिम टेक्सौस में 4 रैस्टोरैंट और दे दिए. समय के साथ उन्हें जैन ऐंटोनिया जैसे बड़े शहर का स्टोर भी मिल गया और फिर बड़ी तेजी से उन्होंने अपना साम्राज्य बढ़ाया. आज वे सिस्टम की पहली सब से बड़ी सिंगल ओनर फ्रैंचाइजी बन गई हैं.

बकौल लाफ्रीडा, ‘‘इस बात का विश्वास मुझे हमेशा से था कि मैं जल्दी ही आत्मनिर्भर बन जाऊंगी. पर महज 23 साल में रेस्तरां संभालने का अलग ही अनुभव होता है. इस उम्र में आप वैसे नहीं सोचते जैसा कि बड़े होने पर सोचते हैं. आप बहुत बेखौफ होते हैं और सोचते हैं कि आप सब कुछ कर सकते हैं. इन सब बातों ने मुझे मजबूत बनाया.’’

फेमिला फैशंस की सी.ई.ओ. केतकी अरोड़ा सिर्फ 23 साल की हैं. वे कहती हैं, ‘‘दुनिया का कोई भी देश हो, यदि आप यंग ऐंटरप्रन्योर हैं तो आप को मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. लोग आप को सीरियसली नहीं लेते. तब जरूरत होती है, मजबूती के साथ इन चुनौतियों का सामना करने की.’’

भारत में भी ऐसी महिलाओं की कमी नहीं जिन्होंने कम उम्र में अपना बिजनैस शुरू किया और ऊंचे मुकाम हासिल किए. उदाहरण के लिए 29 साल की शाहमा कबानी, मार्केटिंग जेन ग्रुप (वेब मार्केटिंग एजेंसी) की फाउंडर हैं, जो इंपैक्ट के यंग ऐंटरप्रन्योर द्वारा आरंभ 100 टौप कंपनियों की लिस्ट में शुमार है.

इसी तरह 22 साल की उम्र में अपनी पहली कंपनी शुरू करने वाली ओशमा अमेरिका में यंग इंडियन ऐंटरप्रन्योर हैं और वर्तमान समय में ग्लोबल कंपनी की सी.ई.ओ. हैं. यंग ऐंटरप्रन्योर, अमीषा सिंह, माईडाला.कौम की सी.ई.ओ. हैं. इस कंपनी का टर्नओवर करोड़ों में है.

इन के अलावा शुची मुखर्जी, सुभद्रा चड्ढा, उपासना टाकु, अर्चना प्रसाद जैसे बहुत से नाम हैं, जिन की उपलब्धियां अच्छीखासी हैं. बौर्नरिच. और्ग. की सी.ई.ओ., यंग नंदिनी राठी कहती हैं, ‘‘मैं धनी पैदा नहीं हुई थी मगर बौर्नरिच.और्ग. ने मुझे धनी बना दिया.’’

आसान नहीं है राह

विश्व में औसतन देखा जाए तो टौप सी.ई.ओ. की पोजिशन पर केवल 3% महिलाएं हैं जबकि कुल वर्कफोर्स में 50% तक हैं. इंटरनैशनल ऐग्जिक्यूटिव रिसर्च फर्म, ई.एम.ए. पार्टनर्स इंटरनैशनल द्वारा हाल में किए गए इस अध्ययन में भारत की स्थिति तुलनात्मक रूप से थोड़ी बेहतर पाई गई. 11% भारतीय कंपनियों की सी.ई.ओ. महिलाएं हैं जबकि कुल वर्कफोर्स में उन की मौजूदगी 40% पाई गई.

सवाल यह उठता है कि महिलाएं बेहतर काम करने के बावजूद टौप लैवल तक कम संख्या में क्यों पहुंचती हैं? यह भी पाया जाता है कि बहुत सी महिलाएं घरेलू जिम्मेदारियों की वजह से नौकरी छोड़ देती हैं.

सैंटर फौर सोशल रिसर्च नामक एन.जी.ओ. ने विमन मैनेजर्स पर अध्ययन किया और पाया कि इन में से 70% महिलाएं ऐसी हैं, जो टौप मैनेजमैंट लैवल तक पहुंचना चाहती हैं, मगर परिवार की जिम्मेदारियों व औफिस कल्चर में कई तरह की परेशानियों की वजह से आगे नहीं बढ़ पातीं. बात ग्लास सीलिंग की हो या पारिवारिक जिम्मेदारियों की, महिलाओं के लिए तालमेल बैठाना आसान नहीं होता.

अभी हाल ही में पैप्सिको की भारतीय मूल की सी.ई.ओ. इंदिरा नूयी, जो दुनिया की सब से शक्तिशाली महिलाओं में शुमार हैं, ने यह बात स्वीकार की कि आम भारतीय कामकाजी महिलाओं की तरह उन के मन में भी यह कसक उभरती है कि वे अपनी बेटियों को पूरा वक्त नहीं दे पातीं और उन की स्कूल ऐक्टिविटीज में हिस्सा नहीं ले पातीं, क्योंकि उन के लिए अचानक छुट्टी लेना बेहद कठिन होता है. औफिस में कामकाज बनाए रखना आसान नहीं होता. कुछ लोग यह भी सोचते हैं कि महिलाएं दिल से कमजोर होती हैं. वे सही प्रबंधकीय निर्णय नहीं ले सकतीं.

केतकी अरोड़ा कहती हैं, ‘‘लोग यह बात मानते हैं कि महिलाएं बिजनैस शुरू नहीं कर सकतीं. मगर मैं कहती हूं कि औरतें ही ऐसा कर सकती हैं. समाज में इस बात को ले कर काफी विवाद रहता है कि औरतों की जगह क्या है, वर्कप्लेस या फिर घर? लोगों में शायद यह गलत भावना है कि महिलाएं एक से ज्यादा जिम्मेदारियां नहीं उठा सकतीं. वास्तव में लोग जो बात भूल रहे हैं वह यह कि हमारा डीएनए ही कहता है कि हम एकसाथ कई काम कर सकती हैं और कई काम व जिम्मेदारियों के बोझ से दबे होने के बावजूद टौप पर पहुंचती हैं. इसलिए मैं फीमेल ऐंटरपे्रन्योर्स को यही टिप देना चाहूंगी कि वे लोगों को ‘क्या कर पाओगी’ कह कर स्वयं को नीचा न दिखाने दें.

लुक बियौंड की डायरैक्टर, सीमा आनंद कहती हैं, ‘‘यह सच है कि महिलाएं बहुत ज्यादा इमोशनल होती हैं और यही वजह है कि वे औफिस में भी प्रैक्टिकल रवैया नहीं रख पातीं. इसी वजह से पुरुष उन्हें सीरियसली नहीं लेते.

‘‘पर सच कहा जाए तो यही उन की सब से बड़ी ताकत भी है. वे कोई भी काम दिल से करती हैं. औफिस में भी रिश्ते बना लेती हैं, जिन्हें उम्र भर कायम भी रखा करती हैं.’’

सफलता के अचूक मंत्र

जरूरी है सही तालमेल बैठाना: औफिस और घर को सही ढंग से संभालते हुए कामयाबी पाने के लिए जरूरी है, सही तालमेल बना कर रखना.

टपरवेयर, इंडिया की मैनेजिंग डायरैक्टर आशा गुप्ता कहती हैं, ‘‘यह सच है कि काम के प्रैशर की वजह से मैं अपने बच्चे को पूरा वक्त नहीं दे पाती. मगर मेरी कोशिश यह जरूर रहती है कि उस के साथ जितना भी मुमकिन हो क्वालिटी टाइम बिताऊं.’’

सफलता के लिए जरूरी है पैशन: यदि आप अपने काम से प्रेम नहीं करतीं तो आप कभी भी कुछ बेहतर नहीं कर सकेंगी.

स्काईडाइविंग के क्षेत्र में अग्रणी, काकनी ऐंटरप्राइजेज प्रा. लि. कंपनी की संस्थापिका, डा. आंचल खुराना कहती हैं, ‘‘यदि आप काम से प्रेम करती हैं, तो यह आप की जिंदगी का मकसद बन जाता है. अपनी पसंद का काम करते हुए आप को खुशी मिलती है.’’

स्वयं पर यकीन: यदि आप को अपनी सफलता पर यकीन है तो निस्संदेह आप जीतेंगी. यू.एस.ए. नैटवर्क के फाउंडर के. कोपलोविट्ज के शब्दों में, ‘‘आप को इस बात के लिए कंफर्टेबल रहना होगा कि आप ने जो सोचा है, उसे आप अपनी इच्छानुसार वास्तविकता में ढाल सकती हैं.’’

रिस्क लेने में घबराएं नहीं: जरूरी है कि कभीकभी हम रिस्क भी लें. सफल महिलाएं हड़बड़ी में रिस्क नहीं लेतीं. मगर कैलकुलेटेड रिस्क ले कर आगे बढ़ती हैं.

 असफलता से हताश नहीं होतीं: असफलता, सफलता का उलटा नहीं बल्कि स्टैपिंग स्टोन है. सफल महिलाएं जानती हैं कि वे हमेशा सफल हों यह जरूरी नहीं. कैरियर में कभीकभी नाकामयाबी भी मिलती है. यह जिंदगी का एक अनिवार्य हिस्सा है.

उदाहरण के लिए जे.के. रोलिंग की पहली हैरीपोटर बुक को 12 प्रकाशकों ने अस्वीकृत कर दिया था, मगर इस से रोलिंग ने हताश हो कर अपनी किताबें भेजनी नहीं छोड़ीं.

स्टैच्यू औफ लिबर्टी

पिछले दिनों मुझे न्यूयार्क जाने का मौका मिला. न्यूयार्क हडसन नदी के किनारे बसा एक खूबसूरत शहर है. वहां पहुंचने पर देखा कि स्टैच्यू औफ लिबर्टी, जिस के बारे में अभी तक सिर्फ सुना और पढ़ा था, मेरी आंखों के सामने खड़ी थी. स्टैच्यू औफ लिबर्टी न सिर्फ न्यूयार्क वरन विश्व भर की सब से ऊंची तथा अद्भुत रचना है. अगर आप अमेरिका जा रहे हैं तो इसे देखने की योजना अवश्य बनाइए. इस को देखे बिना आप का अमेरिका का ट्रिप अधूरा रहेगा.

यह कौपर की बनी है. इस की ऊंचाई पृथ्वी से मशाल की टिप तक 305 फुट है और मूर्ति की ऊंचाई 151 फुट है. इस के पेडस्टल की ऊंचाई 154 फुट है. इस की कौपर की स्किन की मोटाई 2 सिक्कों की मोटाई के बराबर है. कौपर स्किन को स्टील की छड़ों, जो आपस में जाली में गुंथी हैं, से सहारा दिया गया है तथा ये छड़ें 4 मुख्य छड़ों से जुड़ी हैं जिस से मूर्ति को मजबूती मिल सके.

इस की नींव तो 1811 में रख दी गई थी जब बैडलोए, जो अब लिबर्टी आइसलैंड के नाम से जाना जाता है, में तारे के आकार का वुड कोर्ट बना. उस के 54 वर्ष बाद 1865 में फ्रांस के कलाकारों के एक ग्रुप, जिस की अगुवाई एडवर्ड डी. लेबोयालेया बारथोल्डी कर रहे थे, के मन में पहली बार लिबर्टी मौन्यूमैंट का विचार आया तथा इसे मूर्त रूप देने के बारे में उस ग्रुप ने आपस में विचारविमर्श किया. वे इसे अमेरिका को लिबर्टी यानी आजादी के प्रतीक के रूप में उपहार में देना चाहते थे, क्योंकि उसी समय वहां सिविल वार समाप्त होने के साथ दासप्रथा की समाप्ति हुई थी. देश आगे बढ़ना चाहता था, स्मारक तथा इमारत बनाने की नई विधियां खोजी जा रही थीं.

1871 में एडवर्ड डी. बारथोल्डी ने अमेरिका का भ्रमण किया तथा न्यूयार्क हारबर में इस के लिए स्थान का चयन किया. 1877 में इस के स्थान के चुनाव के लिए कांग्रेस को अधिकार दिए गए. सरकार के पास धन की कमी थी, जिस के कारण निजी उपायों के द्वारा इस की आधारीय रचना पेडस्टल के निर्माण के लिए अमेरिका में अभियान चलाया गया.

1879 में एलैक्जैंडर गोस्टेव ऐफिल, जिन्होंने ऐफिल टावर का निर्माण किया था, ने इस मूर्ति के अंदरूनी डिजाइन का प्रारूप तैयार किया. 1881 से 1884 तक स्टैच्यू को पेरिस में ऐसैंबल किया गया तथा इसी के साथ बैडलोए आइसलैंड, अब लिबर्टी में इस की नींव का काम प्रारंभ कर दिया गया. 1884 में रिचर्ड मौरिस ने पेडस्टल की पूरी डिजाइन को बना दिया.

आकर्षण का केंद्र

1885 में स्टैच्यू को डिस्मैंटल कर शिप द्वारा न्यूयार्क लाया गया. उसी समय पेडस्टल के निर्माण के लिए पूरे देश में जोसेफ पुल्टीजर द्वारा पैसा इकट्ठा करने के लिए अभियान चलाने के साथ इस को बनाने का काम भी चल रहा था. 1886 में स्टैच्यू को रिएसैंबल कर बैडलोए आइसलैंड में 28 अक्तूबर को स्थापित किया गया.

स्वतंत्रता का संदेश

हालांकि यह विशाल मूर्ति कौपर की बनी है पर निरंतर हवापानी के संपर्क में रहने के कारण हरे रंग की हो गई है. इस हरे रंग ने इस की आभा को क्षीण नहीं वरन द्विगुणित ही किया है. स्टैच्यू औफ लिबर्टी अपने कई चिह्नों द्वारा स्वतंत्रता का संदेश देती प्रतीत होती है. इस के पैरों की टूटी जंजीर दर्शाती है कि अब क्रूर शासन से मुक्ति मिल गई है. इस का मुख्य आकर्षण इस के दाएं हाथ में स्थित मशाल तथा उस की लौ न्याय और सचाई का संदेश देते हुए दूसरे देश से आए लोगों की आशाओं के लिए प्रकाश की किरण है. बाएं हाथ में स्थित कानून की पुस्तक है, जिस में रोमन लिपि में अमेरिका की स्वतंत्रता का दिन 4 जुलाई, 1776 अंकित है. इस के द्वारा शायद देश और समाज को अवगत कराया जा रहा है कि इस स्वतंत्र देश में सब को न्याय और बराबरी का दर्जा मिलेगा. वहीं इस का क्राउन शायद इस बात का संदेश देता है कि यहां एक आम आदमी भी राजा बन सकता है. इस के क्राउन में बनीं 7 किरणें इस विश्व के 7 महाद्वीपों तथा 7 समुद्रों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

मदर औफ एक्जाइल

इस मूर्ति की योजना बनाने तथा इसे साकार करने में लगभग 21 वर्ष लगे. अमेरिका में अधिकतर लोग प्रवासी ही हैं अर्थात दूसरे देश से आ कर बसने वाले हैं. 19वीं शताब्दी के अंत में अत्यधिक देशांतरवास तथा इसी कारण देशांतरवास रोकने के कड़े नियम बनने के कारण आजादी की प्रतीक यह प्रतिमा निर्वासितों के लिए मां के रूप में उन के मनमस्तिष्क में बस गई. शायद इसीलिए इसे ‘मदर औफ एक्जाइल’ यानी निर्वासितों की मां का नाम भी दिया गया. वास्तव में यह प्रतिमा उन लाखों प्रवासियों के लिए आजादी की प्रतीक है, जो दूसरे देशों से आ कर यहां बसे तथा जिन्होंने अपना तनमन इस देश को उन्नत बनाने में लगा दिया. पहले विश्व युद्ध के पश्चात स्टैच्यू औफ लिबर्टी अमेरिका की पहचान बन गई.

लगभग 38 वर्ष बाद यानी 1924 में स्टैच्यू औफ लिबर्टी को राष्ट्रीय धरोहर का सम्मान मिला. 1933 में नैशनल पार्क सर्विस ने वार डिपार्टमैंट से इस के रखरखाव की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. 1956 में बैडलोए आइसलैंड का नामकरण लिबर्टी आइसलैंड के रूप में किया गया. 1986 में स्टैच्यू के शताब्दी समारोह के लिए इस का जीर्णोद्धार कर इसे नई भव्यता प्रदान की गई.

विहंगम दृश्यों का आनंद

2001 में 11 सितंबर के आतंकवादी हमले के कारण यह दर्शनार्थियों के लिए बंद कर दी गई. उसी वर्ष 20 दिसंबर को आइसलैंड खुल गया पर मूर्ति तक जाने की इजाजत नहीं दी गई. 3 अगस्त, 2004 को पूर्ण सुरक्षा के इंतजाम के बाद इस को जनता के देखने के लिए फिर से खोल दिया गया.

इस का मुख्य द्वार, जो इस स्टैच्यू के आधार के पीछे वाले भाग में स्थित है, से प्रवेश कर दर्शनार्थी इलीवेटर के द्वारा पेडस्टल की 10वीं मंजिल तक जा सकते हैं और 24 सीढि़यां चढ़ कर मूर्ति के अंदर वाले भाग को तो देख ही सकते हैं. साथ ही न्यूयार्क हारबर, मैनहटन ब्रुवकीलैन स्टैटन आइसलैंड तथा न्यूजर्सी के विहंगम दृश्यों का आनंद भी प्राप्त कर सकते हैं. इस के नीचे के टहलने के सार्वजनिक भाग के द्वारा दर्शनार्थी ऐतिहासिक स्टार वुड कोर्ट के द्वारा बाहर निकल सकते हैं.

सुरक्षा जांच

अगर आप स्टैच्यू औफ लिबर्टी को देखने जाना चाहते हैं तो 25 दिसंबर के अलावा यहां हर दिन जाया जा सकता है. यहां खानेपीने का कोई भी सामान ले जाना वर्जित है. इस के साथ ही बैग या कोई हथियार ले जाना भी नियम विरुद्ध है. वहां जाने के लिए कैरीशिप में बैठने से पूर्व वहां बने एक बड़े से हौल में यात्रियों तथा उन के सामान की जांच की जाती है. ठीक वैसे ही जैसे यात्रियों की विमान में बैठने से पूर्व सिक्योरिटी चैकिंग होती है.

कैसे जाएं

इस अद्भुत प्रतिमा को देखने जाने के लिए टैक्सी के अतिरिक्त ट्रांसपोर्टेशन के अन्य साधनों द्वारा न्यूयार्क हारबर जाना होता है. न्यूयार्क हारबर 19वीं शताब्दी के मध्य से 20वीं शताब्दी तक लाखों प्रवासियों के लिए न्यूयार्क का आर्टीफिशियल पोट था. स्टैच्यू औफ लिबर्टी समुद्र के बीचोंबीच बने टापू लिबर्टी आइसलैंड पर स्थित है जहां पर शिप यानी पानी के जहाज से ही जाया जा सकता है. शिप की 9:30 से 3:30 तक की रोजाना की सर्विस का राउंड ट्रिप टिकट मिलता है जो स्टैच्यू औफ लिबर्टी के साथ एलिस आइसलैंड भी घुमाता है.

सुंदर दिखना पसंद है : आलिया भट्ट

‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत करने वाली 21 वर्षीय अभिनेत्री आलिया भट्ट ने फिल्म ‘हाइवे’, ‘टू स्टेट्स’ और ‘हंपटी शर्मा की दुलहनिया’ में अलगअलग भूमिकाएं निभा कर अपना नाम शीर्ष अभिनेत्रियों की सूची में शुमार कर लिया है. यही वजह है कि आज कैटरीना और करीना की भारी फीस के चलते फिल्म मेकर आलिया को लेना पसंद कर रहे हैं. आलिया इसे महज इत्तफाक मानती हैं, क्योंकि एक फिल्म मेकर और निर्देशक अपनी कहानी और चरित्र के आधार पर कलाकारों का चयन करता है.

केवल फिल्में ही नहीं इन दिनों आलिया भट्ट विज्ञापनों में भी नजर आ रही हैं. कुछ अरसा पहले गार्नियर फ्रुक्टिस की ब्रैंड ऐंबैसेडर बनीं आलिया भट्ट से की गई बातचीत के अंश इस प्रकार हैं:

किसी बड़े ब्रैंड से जुड़ना आप की कामयाबी को दर्शाता है. इस संबंध में कुछ कहना चाहेंगी?

गार्नियर के साथ जुड़ने पर मुझे बेहद खुशी हुई है. इस से जुड़ने पर लग रहा है कि मैं अभिनय के क्षेत्र में सफल हो रही हूं. एक समय ऐसा भी था जब लोग मेरे अभिनय का मजाक उड़ाते थे. मुझ पर हंसते थे. पर फिल्म ‘हाइवे’ के बाद उन के मुंह बंद हो गए. मैं अपनी आने वाली फिल्मों में और भी अच्छा अभिनय करने की अपनी तरफ से पूरीपूरी कोशिश कर रही हूं. मैं आप को बता दूं कि कामयाबी ही इंसान की सब से बड़ी दुश्मन होती है. कुछ लोग इसी इंतजार में बैठे रहते हैं कि कब आप से कोई गलती हो और वे आप पर उंगली उठाएं.

आप अपनी ब्यूटी को ले कर कितनी सतर्क हैं?

मैं इस के प्रति हमेशा सतर्क रहती हूं. सुंदर दिखना मुझे पसंद है. मगर कई बार आप सुंदर हो कर भी सुंदर नहीं दिखते. इसलिए आप का यह अनुभव करना कि आप सुंदर हैं जरूरी है. मैं कभी अधिक खाना नहीं खाती हूं और जो भी खाती हूं पौष्टिक खाती हूं. नियमित और समय पर वर्कआउट करती हूं. पूरी नींद सोती हूं. इस के अलावा जो भी परिधान पहनती हूं वह मुझ पर सूट कर रहा है या नहीं इस बात का भी ध्यान रखती हूं, क्योंकि उपयुक्त परिधान सौंदर्य में चार चांद लगा देता है.

मैं बालों में हमेशा ब्रैंडेड प्रोडक्ट लगाती हूं. कई बार चरित्र के अनुसार बालों में कलरिंग की जाती है या उन्हें सैट किया जाता है, जिस से वे अस्तव्यस्त हो जाते हैं. ऐसे में सही शैंपू, कंडीशनर व हेयर औयल बालों में इस्तेमाल करती हूं ताकि मेरे बालों की सेहत बनी रहे.

इस के अलावा अलगअलग मौसम का भी बालों पर प्रभाव पड़ता है. तब भी उन की विशेष देखभाल करती हूं. हमेशा ऐसा शैंपू और कंडीशनर बालों में इस्तेमाल करती हूं जो उन्हें पोषण दे.

आप यूथ आइकोन मानी जाती हैं. ऐसे में आप की जिम्मेदारी क्या बनती है?

मेरी जिम्मेदारी यह है कि मैं उन्हें हमेशा सही रास्ता दिखाऊं. इसलिए मैं जो भी करने जा रही हूं वह सही है या नहीं इस की परख अवश्य करती हूं ताकि उस का प्रभाव सही हो. मेरे फैंस में अधिकतर कम उम्र की लड़कियां हैं. उन्हें अपने आसपास देख कर मुझे बड़ी संतुष्टि होती है.

आप की रोल मौडल कौन हैं?

मेरी मां. जब मैं छोटी थी उन के हर हावभाव को रिपीट करती थी. उन जैसा हेयरस्टाइल, बातचीत सब कुछ फौलो करती थी. मैं आज भी उन से स्टाइल के टिप्स लेती हूं.

खुद को फिट रखने के लिए क्या करती हैं?

मैं नियमित ऐक्सरसाइज करती हूं. खूब सारा पानी पीती हूं. ग्रीन टी लेती हूं. इस के अलावा हमेशा खुश रहती हूं. मैं पहले पूरी, पिज्जा आदि खा लेती थी, पर अब नहीं खाती. 8 घंटे की नींद लेने की कोशिश करती हूं.

आप की अधूरी इच्छाएं कौन सी हैं?

मैं वृद्धाश्रम खोलना चाहती हूं, जो चैरिटेबल हो. मैं अपने नानानानी के बहुत क्लोज हूं. बचपन से ही जब वे हमारे घर आते थे, तो मैं उन के सामने परफौर्म करती थी. मेरे अभिनय की ट्रेनिंग यहीं से शुरू हुई थी. मेरी मां ने नानानानी का बहुत खयाल रखा है. पर कई ऐसे बुजुर्ग हैं, जिन का खयाल नहीं रखा जाता. उन का परिवार उन्हें छोड़ देता है. मैं उन्हें शरण देना चाहती हूं.

गोंद के लड्डू

सामग्री

100 ग्राम गोंद, 250 ग्राम गेहूं का आटा, 150 ग्राम बूरा, 1/4 कप बारीक कटे बादाम, 1 बड़ा चम्मच किशमिश, 1 बड़ा चम्मच चिरौंजी, 2 बड़े चम्मच खरबूजे की मींग, 3/4 कप देशी घी, 1 छोटा चम्मच अजवाइन, 1/2 छोटा चम्मच कालीमिर्च पाउडर, 1/2 छोटा चम्मच छोटी इलायची पाउडर.

विधि

एक नौनस्टिक कड़ाही में घी गरम कर के गोंद फ्राई कर के निकाल लें. इसे मिक्सी में मोटामोटा पीस लें. बचे घी में आटा सुनहरा होने तक भूनें. जब आटा भुनने की खुशबू आने लगे तो उस में खरबूजे की मींग. अजवाइन और कालीमिर्च पाउडर डाल कर 1 मिनट और भूनें. आंच बंद कर के आटा उसी में रहने दें ताकि खरबूजे की मींग भुन जाएं. जब मिश्रण अच्छी तरह ठंडा हो जाए तो बची सामग्री इस में मिलाएं व छोटेछोटे लड्डू बना लें. ये लड्डू काफी समय तक खराब नहीं होते.

काजू गुलकंद रोल

सामग्री

100 ग्राम काजू टुकड़ा, 50 ग्राम चीनी, 3 बड़े चम्मच गुलकंद, 1 छोटा चम्मच बारीक कतरा पिस्ता, 1 छोटा चम्मच बादाम बारीक कटे.

विधि

गुलकंद में बादाम व पिस्ता मिला कर रख लें. काजू के टुकड़ों को मिक्सी में पीस कर पाउडर बना लें. एक भारी तले की कड़ाही में चीनी डालें और उस में एकचौथाई कप पानी डाल कर मीडियम आंच पर चीनी घुलने के लिए रखें. जब 1 तार की चाशनी तैयार हो जाए तो उस में काजू पाउडर डालें. आंच बंद कर के मिश्रण को अच्छी तरह घोटती रहें. थोड़ी देर में गोले की तरह बन जाएगा. मिश्रण की 4 लोइयां बनाएं. उन्हें थोड़ा बेलें. बीच में गुलकंद मिश्रण रख कर रोल करें. इस तरह लंबे रोल बनाएं. चाकू से काट कर छोटा करें. बढि़या स्वादिष्ठ मिठाई तैयार है.

शाही ब्रैड राउंड्स

सामग्री

5 ब्रैडस्लाइस, 1/4 लिटर फुलक्रीम मिल्क, 1/2 कप कंडैंस्ड मिल्क, 1/4 छोटा चम्मच छोटी इलायची पाउडर, 2 छोटे चम्मच चिरौंजी, 1 बड़ा चम्मच बादाम बारीक कतरे, ब्रैडस्लाइस तलने के लिए पर्याप्त देशी घी.

विधि

दूध को गाढ़ा होने के लिए उबलने रखें. ब्रैड को गोल आकार में काटें और गरम घी में सुनहरा तल लें. चाशनी के लिए चीनी को 1/2 कप पानी के साथ उबालें. जब चीनी घुल जाए तो सभी तले ब्रैड के टुकड़ों को चाशनी में डिप कर के तुरंत निकाल लें. दूध जब आधा रह जाए तो उस में कंडैंस्ड मिल्क डाल कर धीमी आंच पर 5 मिनट पकाएं. अच्छा गाढ़ा होना चाहिए. ठंडा कर इस में छोटी इलायची पाउडर व चिरौंजी मिला दें. ठंडा होने पर मिश्रण और गाढ़ा हो जाता है. प्रत्येक ब्रैड राउंड पर मिश्रण फैलाएं और बादाम पिस्ता बुरक घर सर्व करें.

पाइनऐप्पल बरफी

सामग्री

100 ग्राम पनीर कद्दूकस किया, 100 ग्राम खोया कद्दूकस किया, 1/2 कप टिंड पाइनऐप्पल चौपर से बारीक कटे, 1/2 कप चीनी का बूरा, 1/2 कप नारियल बुरादा, 10-12 धागे केसर के, 1 छोटा चम्मच पिस्ता बारीक कतरा, 3-4 बूंदें पाइनऐप्पल ऐसेंस.

विधि

खोए को एक नौनस्टिक कड़ाही में थोड़ा भूनें. रंग नहीं बदलना चाहिए. पनीर को भी पानी सूखने तक भूनें. अंत में इस में चौप किया पाइनऐप्पल डालें. दोनों मिश्रण अच्छी तरह ठंडे हो जाएं तो उन में बूरा व नारियल पाउडर, पाइनऐप्पल ऐसेंस व केसर को थोड़ा सा घोट कर मिला दें. एक प्लेट में डालें. ऊपर से पिस्ता बुरक दें. 3 घंटे फ्रिज में रखें. फिर इच्छानुसार टुकड़े काटें व सर्व करें.

केसरी खीर कदंब

सामग्री

10 छोटे सफेद रसगुल्ले, 250 ग्राम खोया, 3 बड़े चम्मच पिसी चीनी, 1/2 छोटा चम्मच केवड़ा ऐसेंस, 2 बड़े चम्मच दूध, 10-12 धागे केसर, 1 बड़ा चम्मच पिस्ते की कतरन.

विधि

खोए को कद्दूकस कर उस में से 3 बड़े चम्मच खोया अलग रख दें. बचे खोए में चीनी व दूध मिला कर अच्छी तरह हाथ से मैश करें. अब प्रत्येक रसगुल्ले से चाशनी अलग करें. नीबू के बराबर खोए वाला मिश्रण लें. बीच में रसगुल्ला रख कर चारों तरफ से कवर करें. केसर को केवड़ा ऐसेंस में भिगो कर घोट लें. बचे खोए को स्टील की छलनी से दबादबा कर निकालें ताकि एकसार बुरादा तैयार हो जाए. प्रत्येक लड्डू को इस पर रोल करें. फिर केसर के घुटे धागों से खीर कदंब के मध्य उंगली से बड़ा सा निशान बनाएं और थोड़ा सा पिस्ता चिपका दे. स्वादिष्ठ खीर कदंब तैयार है.

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