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आजकल हर किसी की जुबान पर केवल एक ही अभिनेत्री का नाम है और वे हैं परिणीति चोपड़ा. परिणीति की फिल्म ‘दावत ए इश्क’ भी चर्चा का विषय बनी हुई है. यशराज फिल्म्स के बैनर तले बनी यह फिल्म एक कौमेडी फिल्म है. निर्माता ने इस फिल्म की रिलीज डेट 19 सितंबर तक बढ़ा दी है. परिणीति इन दिनों बबली गर्ल कंगना की तारीफ करते थकती नहीं हैं. उन का कहना है कि कंगना का ड्रैस सैंस बहुत ही बढि़या है. वे जो कुछ भी पहनती हैं सब कुछ उन के ऊपर फिट बैठता है. कहीं परिणीति इस तारीफ का कोई और मतलब तो नहीं है.
समय के साथसाथ न केवल फैशन बदलता है बल्कि उस को पेश करने का अंदाज भी बदल जाता है. कुछ साल पहले फैशनपरस्त लोगों की पहली पसंद बुटीक हुआ करता था, लेकिन अब बड़ेबड़े डिजाइनरों ने अपने डिजाइनर स्टूडियो खोल लिए हैं जहां हर कोई अपनी पसंद की ड्रैस डिजाइन कराना चाहता है. यह कोशिश भी रहती है कि उस का डिजाइन, कट्स और कलर कहीं और न मिल सके. ऐसे में बड़े डिजाइनर स्टूडियो अपने ब्रैंड की कीमत वसूल करते हैं, जिस से ड्रैस की कीमत बढ़ जाती है. दिल्ली ’निफ्ट’ से फैशन डिजाइनिंग सीखने के बाद लखनऊ निवासी दीपिका चोपड़ा ने अपना खुद का डिजाइनर स्टूडियो खोलने का सपना देखा.
डिजाइनर स्टूडियो की शुरुआत कोई आसान काम नहीं था. इस के लिए दीपिका ने सब से पहले अपनी डिजाइन की ड्रैसेज की प्रदर्शनी लगाने का फैसला किया. इस के लिए उस ने समर सीजन का चुनाव किया. दीपिका ने समर ड्रैसेज की प्रदर्शनी लखनऊ में लगाई. इस में उस ने फैब्रिक के रूप में कौटन का उपयोग किया और कूल दिखने वाले कलर्स का प्रयोग किया. नैट और शिफौन का जरूरत के हिसाब से प्रयोग कर कुछ नए डिजाइन की ड्रैसेज तैयार कीं. दीपिका ने इस के लिए युवतियों और टीनएज गर्ल्स को सामने रख कर काम किया. उसे यह नहीं पता था कि लोग कैसे उस की प्रदर्शनी से प्रभावित होंगे. इस के बाद भी उसे अपनी ड्रैस डिजाइनिंग पर पूरा भरोसा था. इस प्रदर्शनी को लोगों ने न केवल सराहा बल्कि खूब खरीदारी भी की. इस से दीपिका का हौसला बढ़ा.
दीपिका कहती हैं, ’’प्रदर्शनी लगाने के बाद मुझे पता चल गया कि मेरी बनाई ड्रैसेज लोग पसंद कर रहे हैं और मुझे लगा कि अब अपना डिजाइनर स्टूडियो खोलने का वक्त आ गया है. इस के लिए पूंजी की जरूरत भी थी. सब से मुश्किल काम जगह को तलाश करना भी था. मेरे लिए आसान बात यह थी कि मेरे घर में एक हिस्सा ऐसा था, जहां मैं अपना डिजाइनर स्टूडियो खोल सकती थी. मेरे घर की लोकेशन भी महानगर में थी, जहां तक लोगों को पहुंचना आसान था. मैं ने अपने घर वालों से बात की और मुझे घर में ही डिजाइनर स्टूडियो खोलने की अनुमति मिल गई.’’
दीपिका के लिए मुश्किल काम अपने डिजाइन किए कपड़ों की सिलाई करना था. अगर सिलाई अच्छी न हो तो अच्छे से अच्छा कपड़ा और अच्छे से अच्छा डिजाइन भी कोई खास प्रभाव नहीं डालता. इस के लिए दीपिका ने अच्छी सिलाई करने वाले कारीगरों का चुनाव किया और उन्हें कुछ दिन टिप्स दिए.
दीपिका ने यह पता करना शुरू किया कि किस तरह का कपड़ा किस बाजार में सस्ता और अच्छा मिलता है. दिल्ली, जयपुर, कोलकाता और मुंबई के बाजारों को उस ने देखा व समझा. इस तरह से दीपिका ने अपना डिजाइनर स्टूडियो ‘आल्यूर’ खोलने की पूरी तैयारी कर ली.
दीपिका कहती है, ’’प्रदर्शनी में जिन ड्रैसेज को हम रखते थे, वह इंडियन और वैस्टर्न ड्रैस का फ्यूजन होता था. इस में सलवारकुरते को स्टाइलिश बनाने के लिए जैकेट को जोड़ा, इसे युवाओं ने खूब पसंद किया. साड़ी को डिजाइनर लुक देने के लिए उस में नैट और कढ़ाई का बेहतर प्रयोग किया. डिजाइनर स्टूडियो में मेरा फोकस ब्राइडल ड्रैस पर था. हम ने इसी तरह से इस को तैयार भी किया था. जरदौजी, पुराना रेशम वर्क और मुकैश का सहारा ले कर कुछ नई ड्रैसेज तैयार कीं. ब्राइडल ड्रैस का थोड़ा ग्लैमरस लुक भी दिया. मेरा बनाया अनारकली सूट लोगों को बहुत अच्छा लगा.’’
दीपिका को शादी में केवल दुलहन की ड्रैस ही तैयार करने को नहीं मिली बल्कि लड़की की मां, बहन और उस की सहेलियों की ड्रैस तैयार करने का भी मौका मिला. दीपिका कहती है, ’’आज शादी का समारोह ड्रैस के हिसाब से भी खास होने लगा है. अब लोग दुलहन की ड्रैस के साथ मैच करते कलर और अलग डिजाइन की ड्रैस पहनना चाहते हैं. ऐसे में एक ही जगह ड्रैस तैयार होने से उन की इच्छा पूरी करना संभव हो जाता है. ड्रैस दुलहन से पूरी तरह से मैच भी नहीं करती और एक जैसी भी दिखती रहती है. इसे ’वैडिंग ट्रूजो’ के नाम से जाना जाता है. अब दुलहन के साथ के लोग भी अपनी पसंद की ड्रैस पहनते हैं, जिस से फोटोग्राफी में बेहतर लुक आ सके.’’
दीपिका कहती है,’’देखा जाए तो पहले यह काम मुश्किल था. इस के लिए पैसा भी ज्यादा खर्च करना पड़ता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. बड़े डिजाइनरों के भारी कीमत वाली ड्रैसेज के मुकाबले काफी कम कीमत में ड्रैस मिल जाती है. इसलिए इस को महंगा नहीं कहा जा सकता है. हमारे पास दुबई, यूएसए और यूके के ग्राहक भी हैं. वे अब वहां बस गए हैं. विदेशों में भी जब कोई ऐसा कार्यक्रम होता है, तो यह लोग इंडियन साड़ी और लहंगा जरूर पहनना चाहते हैं. वे लोग हम से ऐसे कपड़े डिजाइन कराते हैं. कई बार तो ऐसा होता है कि लोग बड़े डिजाइनर या फिर किसी फिल्मी स्टार की ड्रैस को दिखा कर कहते हैं कि ऐसी ड्रैस तैयार करवा दो. तब उन्हें समझाना पड़ता है कि जो दूसरों पर अच्छा लग रहा है जरूरी नहीं कि आप पर भी अच्छा लगे.’’
अपने काम से संतुष्टि के लिए दीपिका कहती है, ’’मुझे इस बात की खुशी है कि मैं ने किसी कंपनी में नौकरी करने के बजाय अपना डिजाइनर स्टूडियो खोला. 3 साल में मुझे अच्छा काम मिलने लगा है. जैसेजैसे लोगों की फैशन के प्रति सोच और नजरिया बदल रहा है, इस बिजनैस के अवसर भी बढ़ रहे हैं. आप देखें तो बड़ेबड़े ब्रैंड छोटेछोटे शहरों की ओर भाग रहे हैं. इन के स्टोर में लोगों की जरूरत के हिसाब से बहुतकुछ तैयार नहीं हो पा रहा है. मुझे लगता है, फैशन वही है जिसे हम आरामदायक तरीके से पहन सकें. शायद यही कारण है कि वैस्टर्न डिजाइन तैयार करने वालों को भी अब इंडियन लुक का ध्यान रखना पड़ रहा है.’’
दीपिका का मानना है कि इंडियन साड़ी, सलवारसूट और लहंगे में बहुत सारे बदलाव हो रहे हैं और आगे भी होते रहेंगे. इन इंडियन ड्रैसों को पहनने का क्रेज कम नहीं हो रहा है. बड़ी से बड़ी पार्टी में भी इंडियन साड़ी का अलग लुक चर्चा में रहता है. ड्रैस की कीमत पर दीपिका का कहना है कि ड्रैस की कीमत तय करते समय हम उस के फैब्रिक, स्टिचिंग और डिजाइनिंग का ध्यान रखते हैं. कीमत उतनी होती है, जितनी खरीदते समय ज्यादा न लगे. इस बिजनैस में भी पब्लिसिटी का अपना महत्त्व है. इस के बाद भी जब ग्राहक खुश हो कर जाता है, तो अपने दूसरे कस्टमर को भी लाता है, हां, लेकिन ऐसे काम करने से पहले इस से जुड़ी जानकारी और पढ़ाई करना भी बेहद जरूरी होता है.
झुमके चाहे बरेली के हों या फिर कहीं और के, ये महिलाओं की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. बात जब ज्वैलरी की होती है तो हमारा ध्यान सब से पहले लेटैस्ट टैंड पर जाता है कि इन दिनों क्या नया चल रहा है यानी किस तरह की ज्वैलरी फैशन में है.
औरा ज्वैलर्स के सेल्स होस्ट मनीष भोला और श्री हरि डायजेम्स ज्वैलर्स के विनय बता रहे हैं कि इन दिनों किस तरह की ज्वैलरी मार्केट में उपलब्ध है. आप अपने बजट और पसंद के अनुसार ज्वैलरी चुन कर खुद को डिफरैंट लुक में पेश कर सकती हैं.
ऐंटीक ज्वैलरी का क्रेज
ऐंटीक ज्वैलरी का फैशन कभी पुराना नहीं होता. इन दिनों भी इस के गहने ट्रैंड में हैं. ऐंटीक लुक में गोल्ड के साथ कुंदन, पोलकी और मीना जड़े गहने चलन में हैं. ओल्ड डिजाइनों में माथापट्टी, झूमर, वोरला आदि महिलाओं की पहली पसंद हैं. हैंडीक्राफ्टेड चिताई वर्क ऐंटीक ज्वैलरी सब से खास है. फिनिश्ड वर्क वाली ऐंटीक ज्वैलरी पहन कर आप फैशनेबल लुक पा सकती हैं.
प्लैटिनम की सादगी
प्लैटिनम की सादगी इस की खास पहचान है. इन दिनों प्लैटिनम में फ्लोरल डिजाइनों का चलन है. प्लैटिनम में लव बैंड और कपल बैंड फैशन में हैं. शादी की सालगिरह पर एकदूसरे को गिफ्ट देने के लिए ये बैस्ट औप्शन हैं.
इन रिंग्स की खास बात यह है कि इन में पुरुष और महिला दोनों के लिए एक ही तरह के डिजाइन होते हैं. युवाओं में यलो गोल्ड और प्लैटिनम फ्यूजन रिंग्स का काफी क्रेज है. इन दिनों 18 कैरेट गोल्ड के साथ इंडोवैस्टर्न डिजाइन के प्लैटिनम रिंग्स, प्लैटिनम इयर रिंग्स और प्लैटिनम पैंडेंट फैशन में हैं.
आजकल प्लैटिनम वाचेज भी ट्रैंड में हैं. एक सिंपल प्लैटिनम वाच से आप खुद को ऐलिगैंट लुक दे सकती हैं.
हीरा है सदा के लिए
डायमंड औलटाइम फेवरेट है. डायमंड में सिंपल और सोबर गहने खास हैं. इन दिनों डायमंड में रिंग, पैंडेंट और नथ का फैशन है. लोट्स डिजाइंस के इयररिंग्स और ईगल डिजाइंस के रिंग्स ट्रैंड में हैं.
कस्टमर्स को क्रिसकौस डिजाइन के यूनीक और आकर्षक क्राफ्टेड कड़े काफी लुभा रहे हैं. डायमंड के गहने हर तरह की ड्रैस पर अच्छे लगते हैं. आप इन्हें फौर्मल और कैजुअल दोनों तरह की ड्रैसेज के साथ कैरी कर सकती हैं.
सोने का सुनहरापन
गोल्ड का फैशन कभी पुराना नहीं होता. चाहे इस की कीमत कितनी भी क्यों न बढ़ जाए. आज भी गोल्ड ही दुलहन की पहली पसंद है. गोल्ड में राजकोट डिजाइन, साउथ टैंपल डिजाइन के इयररिंग्स व झुमके ट्रैंड में हैं. गोल्ड में ट्रेडिशनल डिजाइन, कुंदन जडि़त गहने, घुंघरी कड़ा, पोलकी डिजाइन के पैंडेंट व ब्राइडल सैट फैशन में हैं.
चांदी की चमक
अलगअलग वैराइटी के गहने आने के बावजूद चांदी की चमक फीकी नहीं पड़ी है. अभी भी चांदी फैशन में है. चांदी में परसोना डिजाइन फैशन में है. वीट वर्क के ब्रेसलेट से आप अपने हाथों की खूबसूरती को निखार सकती हैं. चांदी में टो रिंग्स और ऐंकलेट (पायल) भी फैशन में हैं. चांदी में बाला और फुलडिजाइन के हैवी इयररिंग्स ट्रैंड में हैं.
फैशन ट्रैंड्स
तो इस बार जब अपने लिए ज्वैलरी खरीदने जाएं तो इन टिप्स को ध्यान में जरूर रखें क्योंकि आप की खूबसूरत ड्रैस के साथ जब तक लेटैस्ट ट्रैंड की मैचिंग ज्वैलरी नहीं होगी तब तक परफैक्ट लुक नहीं मिलेगा.
सीधीसपाट जिंदगी में अचानक कोई पत्थर आ कर तब गिरता है जब कोई लड़का या लड़की किसी को यह कहते हुए कटाक्ष करता है कि अरे उसे देखा है, बिलकुल बहनजी टाइप की दिखती है. यह दर्द वही जान सकता है जिस ने कभी कालेज, औफिस या सोशल इवेंट में इसे झेला हो.
ऐसे कटाक्ष से उस प्रतिभासंपन्न लड़की या महिला के आत्मविश्वास की तो धज्जियां उड़ जाती हैं लेकिन कटाक्ष करने वाले को इस से कोई मतलब नहीं होता. इस चुभन की पीड़ा चाहे जिंदगी भर दूसरे को सालती रहे, फिर चाहे इस का असर उस की योग्यता पर भी पड़े, लेकिन कटाक्ष करने वाले को इस से कोई लेनादेना नहीं होता.
क्या कोई है, जो बहनजी टाइप शब्द की घुटन से आप को बाहर निकाल सके, ताकि आत्मविश्वास से लबरेज हो कर आप भी दुनिया के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें? हां है, जो आप को आप का खोया आत्मविश्वास और खुशियां लौटा सकता है. आप को जान कर ताज्जुब होगा, लेकिन यह हकीकत है कि वह तो आप खुद हैं.
सच को परखें
आज करीब 40% से ज्यादा लोग ऐसे हैं, जो प्रतिभासंपन्न होते हुए भी अपने दब्बूपन और जीरो कौन्फिडैंस लैवल के कारण उस मकाम पर नहीं पहुंच पाते जहां उन्हें सही मानों में होना चाहिए. दरअसल, जिंदगी के किसी मोड़ पर स्पैशली कालेज लाइफ में उन की पर्सनैलिटी कौंप्लैक्शन, डै्रस सैंस और आर्थिक कमी के कारण उन्हें अपने ही साथियों द्वारा किसी न किसी कटाक्ष का सामना करना पड़ता है. लेकिन जरा पीछे मुड़ कर सोचिए कि आज वे लोग, जो आप का मजाक उड़ाते थे अपनीअपनी लाइफ में मस्त हैं. आप के होने या न होने से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता, तो फिर क्यों उन के महज एक टाइमपास को आप ने अपनी जिंदगी का घाव बना लिया? अति तो तब हो जाती है जब इन बेवजह के कटाक्षों से तंग आ कर कोई अपनी जान भी ले लेता है. क्या वाकई जिंदगी इतनी सस्ती और बेमानी है. अब आप सोचिए कि आप क्या चाहती हैं? जिंदगी भर की टीस या अपना खोया हुआ आत्मविश्वास और इंपू्रव्ड पर्सनैलिटी.
बनें फैशन स्टाइलिस्ट
बहनजी टाइप होने का मतलब है कि आप अपनी पर्सनैलिटी और ड्रैस सैंस के कारण भीड़ से पिछड़ी नजर आती हैं. जबकि आप को भीड़ से पिछड़ी नहीं बल्कि अलग नजर आना है. आप अपनी वार्डरोब से चमकीले, सितारे वाले और आउटडेटेड ढीलेढाले चटक रंग के कपड़े बाहर निकाल दें और उन की जगह अपनी फिगर के अनुरूप लेटैस्ट फैशन की ड्रैस का चुनाव करें. गाइड लाइन के लिए मैगजीन, न्यूजपेपर और लोकल शौपिंग सैंटर की मदद लें.
ध्यान रखें कि औफिस टाइम में सिंपल कैजुअल वियर और पार्टी इवेंट में फौर्मल वियर पहनें. कपड़ों का चुनाव अपने स्किनटोन व फिगर को ध्यान में रख कर ही करें ताकि सही डै्रसअप आप को ग्लैमरस लुक दे.
दर्पण झूठ न बोले
आईने के सामने खड़ी हो कर सोचें कि आप अपनी शख्सीयत में क्याक्या चेंज लाना चाहती हैं, ताकि उसी दिशा में सही कदम बढ़ाया जा सके. मसलन, अगर आप हाइट में छोटी हैं तो हाई हील सैंडल व शूज ट्राई करें.
हेयरस्टाइल
परफैक्ट हेयर कट के द्वारा आप अपनी पर्सनैलिटी में आसानी से विजिबल चेंज ला सकती हैं. इसलिए आप जरूरत से ज्यादा तेल लगा कर कस कर बांधी हुई चोटी या बन आदि से छुटकारा पाते हुए अपने फेसकट और प्रोफैशन के अनुरूप हेयर कट करवा कर उस में गे्र हेयर को छुपाने के लिए सिंपल ब्लैक व ब्राउन कलर की जगह रिच कलर हाईलाइटिंग का उपयोग करें. ग्रे हेयर की समस्या नहीं है तो भी हौट व ग्लैमरस लुक के लिए हाईलाइटिंग ट्राई करें.
फिटनैस ऐंड स्पा
अपनी बौडी के मेकओवर के साथ आप को माइंड ऐंड सोल मेकओवर की भी जरूरत है, ताकि आप के पूरे शरीर में नई ऊर्जा व स्फूर्ति का संचार हो सके. इस के लिए योग और बौडी व हेयर स्पा से बेहतरीन कोई इंस्टैंट औप्शन नहीं है. अगर आप को स्पा ट्रीटमैंट जेब पर भारी पड़ता है तो घर पर ही बौडी औयल और स्क्रब का प्रयोग कर के नहाने के पानी में कुछ बूंदें लैवेंडर, ट्रीट्री या संदल औयल की डाल कर सुबह और शाम स्नान करें. फिर देखें त्वचा पर उस का असर.
ब्यूटी ट्रीटमैंट
आजकल सैलून विजिट करना सिर्फ शौक नहीं रहा, आजकल एक जरूरत बन गया है, क्योंकि केवल प्रतिभासंपन्न होना ही काफी नहीं है. औल द टाइम प्रैजैंटेबल और कौन्फिडैंट दिखना और लगना भी बेहद जरूरी है. इस के लिए आप समयसमय पर ब्यूटी सैलून की तरफ रुख जरूर करें.
मेकअप
औफिस टाइम में सलीके से किए हुए लाइट मेकअप में आप और भी ज्यादा सुंदर व फ्रैश नजर आएंगी. इस के लिए डे टाइम में सनस्क्रीन लगाने के बाद टिंटेड मौइश्चराइजर युक्त फाउंडेशन का इस्तेमाल करें. लिपस्टिक शेड नैचुरल रखें और अपरलीड (आई) में नैचुरल शैड लगा कर आईलाइनर और आंखों में काजल लगाएं. अगर औफिस टाइम में साड़ी पहनती हैं तो छोटी सी बिंदी लगा सकती हैं. इस के अलावा परफ्यूम और डियो का इस्तेमाल भी बेहद जरूरी है.
बातचीत का ढंग
100% प्रैजैंटेबल दिखने के लिए ग्लैमरस पर्सनैलिटी के साथ बातचीत का सही ढंग आना बेहद जरूरी है. इस के लिए दूसरों को सुनें और तर्कवितर्क के जरीए अपने मन के भावों को आत्मविश्वास से भरपूर हो कर व्यक्त करने की कोशिश करें. किसी भी विषय में पूरी जानकारी होते हुए भी इसलिए मौन न रहें कि कोई क्या कहेगा. जिसे जो कहना है वह तो कहेगा ही, आप अपने दिल और दिमाग की बात कह कर खुद को शांत तो रख सकती हैं. इस के लिए शीशे के सामने खड़ी हो कर प्रैक्टिस करें जिस से दूसरों के सामने आत्मविश्वास से लबरेज चेहरे और पर्सनैलिटी के कारण आप का ‘बेचारी बहनजी’ तमगा आप से छिन जाए और आप को मिले हौट, ग्लैमरस व गे्रसफुल लुक.
चारों तरफ हल्ला हो रहा है कि हरमन और बिपाशा की गुपचुप सगाई हो गई पर बिल्लो रानी कह रही हैं कि अभी तो हम दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह से समझ रहे हैं. मैं और हरमन बहुत अच्छे दोस्त हैं. लोग हमारे बारे में कई तरह की बातें करते हैं, जो सरासर गलत हैं. सगाई की खबरों को बिपाशा कहीं अपने कैरियर में रुकावट तो नहीं मानतीं, क्योंकि उन का ऐक्टिंग कैरियर कुछ दिनों से डगमगा रहा है.
इसी माह बिपाशा की फिल्म ‘3 डी क्रेचर’ रिलीज हुई है जिस में उन के साथ पाकिस्तानी ऐक्टर इमरान अब्बास मुख्य भूमिका में हैं. अब यह फिल्म क्या जलवा दिखाएगी यह तो बौक्स औफिस कलैक्शन के बाद ही मालूम होगा.
गोलियों, कैप्सूलों, इंजैक्शनों और तंबाकू में मिलाने, सूंघे जाने वाले पदार्थों और सौफ्टड्रिंक में डाल कर पिए जाने वाले पदार्थों से बनी है, नशे की यह दुनिया. इस के तार पंजाब राजस्थान से ले कर सुदूर पूर्वोत्तर में मिजोरम नागालैंड तक जुड़े हुए हैं. असल में जब कोई बड़ी मछली जाल में फंस जाती है, तो खूब चर्चा होती है. फिर मामला शांत हो जाता है. ग्लैमरस सितारे, फिल्मी हस्तियां, नामीगिरामी खिलाड़ी बहुत से ताकतवर लोग इस की गिरफ्त में हैं. ओलिंपियन मुक्केबाज विजेंद्र सिंह और उन के साथी राम सिंह का नाम लगातार चर्चा में है. लेफ्टिनैंट कर्नल अजय चौधरी म्यांमार सीमा पर ड्रग की तस्करी करते रंगेहाथों पकड़े गए. 11 मार्च को 1995 बैच के आईपीएस अधिकारी सजी मोहन को ड्रग्स तस्करी के मामले में 13 साल की सजा भी सुनाई गई. सजी मोहन को 2009 में मुंबई के ओशिवारा इलाके में 12 किलोग्राम हेरोइन के साथ गिरफ्तार किया गया था.
चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन के मुताबिक, देश में नशाखोरी से ग्रस्त करीब 64 % वे लोग हैं, जिन की उम्र 18 वर्ष से कम है. यह आंकड़ा चिंतनीय इसलिए भी है कि कुछ वर्षों में भारत सब से अधिक युवा आबादी वाला देश होगा. युवाओं में अफीम, कोकीन, हेरोइन, शराब, भांग और प्रोफौक्सिफिन का चलन तेजी से बढ़ रहा है. सफेदपोशी में होने वाले जरायम पेशों में ड्रग और नशीली दवाओं की तस्करी सब से कम जोखिम में सर्वाधिक मुनाफा देने वाला संगठित अपराध है. यौन दुराचार, माफिया, मानव तस्करी, हथियार, आतंकवाद और सूदखोरी को एक डोर में पिरोने वाला धागा भी ड्रग ही है, जिस की लत इंसानियत और नैतिकता के सभी मानदंडों को धुएं में उड़ा देती है.
नशाखोरी के आईने में कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत एक नजर आता है. बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में ड्रग की खपत भले ही कम हो लेकिन गांजा, चरस, भांग के उपयोग में ये राज्य ऊपरी पायदान पर हैं. कई अखाड़े गांजे चरस के व्यापार के लिए सुर्खियां बटोरते रहे हैं. उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड का एक अखाड़ा इस के लिए कुख्यात है.
रेव पार्टी में युवाओं का जमावड़ा
2008 में मुंबई बम धमाकों के आरोपी डेविड हेडली के साथ राहुल भट्ट की दोस्ती भी ड्रग तस्करी के कारण ही हुई थी. पुलिस ने राहुल से पूछताछ भी की थी. पिछले वर्ष अक्तूबर में पंजाब पुलिस ने समझौता ऐक्सप्रैस से 101 किलोग्राम हेरोइन और 500 राउंड गोलियां बरामद की थीं. राजनीतिबाजों और ड्रग माफियाओं की यारी का एक मामला दिसंबर 2012 में गोआ से उजागर हुआ. पूर्व गृहमंत्री रवि नाइक के बेटे और पुलिस के गठजोड़ से वहां ड्रग के कारोबार की बात सामने आई. समाज के सभी ऊंचे तबके ड्रग की चपेट में हैं.
पहले इस धंधे से मिला पैसा सिर्फ सिनेमा में लगता था, लेकिन अब प्रौपर्टी, होटल और पर्यटन उद्योग में भी तेजी से लग रहा है. गोआ इस के लिए सब से बदनाम है. गोआ के अंजुना बीच पर 2008 में लंदन की नाबालिग स्कौरलेट कीलिंग से बलात्कार कर उस की हत्या का मामला चर्चित उदाहरण है. स्कौरलेट वैलेंटाइन पार्टी के लिए गोआ आई थीं. गोआ ड्रग्स का पहला जानापहचाना होलसेल सैंटर है, जिसे रूस के एक माफिया द्वारा संचालित किया जाता बताया जाता है.
भारत में ड्रग पहुंचाने का सब से बड़ा स्रोत नाबालिग लड़कियां हैं. दिसंबर में गोआ में एक रेव पार्टी में पकड़े गए तस्कर ने बताया कि कमसिन लड़कियों के इस्तेमाल में पुलिस को सिर्फ 75:25 की ही सफलता मिल पाती है, जबकि वयस्कों के मामले में यह अनुपात 60:40 का है. नाबालिगों पर बाल कानून के तहत 2 साल से अधिक की सजा नहीं होती, जबकि वयस्कों के लिए न्यूनतम सजा 10 साल है. दिल्ली, बैंगलुरु और कुल्लूमनाली में सब से ज्यादा ड्रग्स की खपत होती है.
खपत का एक बड़ा सैंटर नागालैंड और मणिपुर की राजधानियां भी हैं. गोआ में जो ड्रग्स पहुंचता है, उस में 70 % की विदेशों में तस्करी होती है और 30 % की खपत वहां होने वाली रेव पार्टियों और पर्यटकों के बीच होती है. गोआ से ड्रग्स थाईलैंड भेजी जाती है. गोआ में तस्करी के केंद्रों में अंजुना, वागातोर और बागा बीच प्रमुख हैं. यहां होने वाली पार्टियों में प्रचलित ड्रग सीवी-1 के टैबलेट हैं. सीबीआई ने 31 मई को भी 5 एेंटी नारकोटिक्स पुलिस को गिरफ्तार किया था. पुलिस और ड्रग माफिया के बीच गठजोड़ का एक मामला दिल्ली में उजागर हुआ था.
पंजाब की एक संस्था ‘राज्य आपदा प्रबंधन योजना’ ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि 73.5% युवा ड्रग के आदी हैं. बैंगलुरु में ड्रग का चलन समाज में इतने व्यापक स्तर पर असर करने लगा है कि वहां सरकार ने ड्रग तस्करी करने वालों के खिलाफ परगुंडा ऐक्ट के तहत कार्रवाई का प्रावधान रखा है. कर्नाटक में ड्रग्स अफगानिस्तान,पाकिस्तान, नेपाल, कंपूचिया और थाईलैंड से आ रहा है, जिसे मैंगलोर, बैंगलुरु, दिल्ली, मुंबई, गोआ और हैदराबाद में वितरित किया जा रहा है. अफीम बिहार और उत्तर प्रदेश से आ रही है. कर्नाटक में 320 किलोमीटर का समुद्री इलाका होने के कारण तस्करी पर रोक मुमकिन नहीं है. 5 वर्ष में 1,588 तस्कर गिरफ्तार किए गए हैं. बूट पौलिश, पैट्रोल, डीजल, कफसिरप, वाइटनर, नींद की गोलियां और टरपेंटाइन का इस्तेमाल भी नशे की खुराक लेने वाले युवाओं में तेजी से बढ़ रहा है.
सजा का प्रावधान
अमेरिका, चीन औैर अरब देशों में ड्रग्स तस्करी में पकड़े जाने पर मौत की सजा है लेकिन भारत में इस के लिए 10 वर्ष से ले कर आजीवन कारावास तक की सजा है. पिछले साल जून में चीन ने अंतर्राष्ट्रीय ड्रग्स निरोधक दिवस पर 17 तस्करों को मौत की सजा सुनाई. वहां अब तक 117 लोगों को ड्रग्स तस्करी में मौत की सजा हो चुकी है. चीन में ड्रग्स का सेवन तेजी से फैल रहा है. बिहार, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की सीमा से नेपाल के रास्ते भारत में अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बंगलादेश और म्यांमार तक ड्रग्स की तस्करी होती है.
सीमापार नशे के व्यापार की जकड़बंदी इस कदर है कि हर साल करीब 200 टन हेरोइन अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रास्ते तस्करी के जरिए विश्व बाजार में पहुंचती है. 2009 में विश्व स्तर पर करीब 500 टन हेरोइन की तस्करी हुई, जिस में से मात्र 58 टन यानी 11 % की ही जब्ती हो सकी. भारत में नारकोटिक्स ड्रग्स ऐंड साइकोट्रौफिक सब्सटैंसेज ऐक्ट, 1985 (एनडीपीएस) के तहत इन मामलों में कार्रवाई होती है. इस के तहत कोकीन, चरस, अफीम, हेरोइन, गांजा, हशीश समेत कुल 200 से अधिक उत्पाद हैं, जिन के उत्पादन, वितरण और क्रय पर भारत में पूरी तरह प्रतिबंध है. एनडीपीसी ऐक्ट के सैक्शन 50 में गिरफ्तारी के वक्त आरोपी को ले कर कुछ प्रावधान हैं, जिन का पुलिस कभी पालन नहीं करती और आरोपी आसानी से बरी हो जाते हैं.
भारत अवैध अफीम उत्पादन करने वाले देशों के इतना करीब है कि कारोबारियों के लिए यह आकर्षण का मुख्य केंद्र बन चुका है. पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान के पर्वतीय क्षेत्रों से ही एशिया और यूरोप में नशे का साम्राज्य चलता है. इन तीनों मुल्कों में नशे के प्रसार क्षेत्र को ‘गोल्डन क्रिसेंट’ का नाम दिया गया है. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अवैध अफीम का उत्पादन होता है, जबकि ईरान से कारोबार का फैलाव होता है.
म्यांमार, थाईलैंड और लाओस के जिस इलाके से नशे के विभिन्न तत्त्वों का उत्पादन औैर वितरण होता है, उसे ‘गोल्डन ट्राइएंगल’ के नाम से जाना जाता है. भारत सब से बड़ा अफीम उत्पादक देश है. भारत में उत्पादन का उपयोग इलाज और चिकित्सकीय अनुसंधान में होता है. भारत में मादक पदार्थ गोल्डन क्रिसेंट या गोल्डन ट्राइएंगल से आते हैं. तस्करों ने भारत को आव्रजन केंद्र बना लिया है. पहले नेपाल के रास्ते पाकिस्तान और म्यांमार से नशीले पदार्थ भारत लाए जाते हैं. मुंबई नशे के कारोबारियों के लिए प्रमुख वितरण केंद्र बन चुका है. 1950 के दशक की शुरुआत में चीन से अफीम के उत्पादन का काम खिसक कर म्यांमार, थाईलैंड और लाओस चला गया.
1990 तक म्यांमार ही दुनिया में अफीम उत्पादन का सिरमौर बना रहा. फिर अफगानिस्तान ने म्यांमार को मात देते हुए आधिपत्य कायम कर लिया. पूर्वोत्तर भारत तो नशे के सौदागरों का गढ़ कहा जाता है. राज्यों की सीमाएं नेपाल, भूटान, म्यांमार, बंगलादेश आदि से मिलती हैं. ये सीमाएं दुरूह हैं और इन की निगरानी मुश्किल है. तस्कर फायदा उठा कर भारत में प्रवेश कर जाते हैं.
अंधेरा भविष्य
प्रख्यात ब्रैंड ‘प्रोवोग’ के मालिक सलिल चतुर्वेदी, हौलीवुड अभिनेत्री केट मौस, बौलीवुड अभिनेत्री मनीषा कोइराला और परवीन बौबी, अभिनेता गुरुदत्त, फरदीन खान, मौडल शिल्पा अग्निहोत्री, गीतांजलि नागपाल, रेणु राठी, विवेका बाबाजी, शिवानी कपूर, वसीम अकरम कई ऐसे नाम हैं, जो ड्रग्स के कारण बदनाम हुए. मनिंदर सिंह का क्रिकेट कैरियर नशे की वजह से थम गया था.
2007 में दिल्ली के प्रीत विहार के डिफैंस एन्क्लेव स्थित गगन अपार्टमैंट में ड्रग तस्कर सायम सिद्धिकी के साथ उन्हें डेढ़ ग्राम कोकीन के साथ गिरफ्तार किया था. जिस वक्त स्टार पुत्रों के प्रवेश का दौर था, कुमार गौरव और आमिर खान के साथसाथ फिल्म ‘रौकी’ से संजय दत्त की शुरुआत हुई थी. 1982 में ‘विधाता’ रिलीज होने के बाद संजय की सोहबत बिगड़ गई और वे शराब, ड्रग्स और पार्टियों में डूबते चले गए. उन का कैरियर लगातार ढलान की तरफ था. सुनील दत्त ने उन्हें अमेरिका के एक अस्पताल में भरती कराया. वे सालभर बाद लौटे तो उन की ड्रग्स की लत छूट गई थी, लेकिन मुंबई बम धमाकों के बाद हथियार रखने के आरोप में उन का कैरियर फिर से डूब गया. पत्नी ऋचा शर्मा की मौत हो गई.
प्रमोद महाजन के बेटे राहुल महाजन भी ‘नया अनुभव’ लेना चाहते थे. इन सैलेब्रिटीज के जीवन में कोई कमी नहीं थी, लेकिन नशे ने उन्हें बहुत कुछ खोने पर मजबूर कर दिया. पिता की मौत के तुरंत बाद 2006 में उन्हें अस्पताल में भरती कराया गया. नारकोटिक्स विभाग के एक अधिकारी ने बताया, ‘देश में रेव पार्टियां बड़े शहरों में होती हैं. गोआ और मुंबई को इन का गढ़ कहा जा सकता है. छोटे शहरों और कसबों में भी रेव पार्टियां होने लगी हैं.
दिल्ली में निजी स्तर पर 25-30 लोगों के समूह मिल कर अपने आवासों पर ये पार्टियां आयोजित करते हैं, उन के आयोजक सफेदपोश और रसूखदार लोग होते हैं. रेव पार्टी में इक्सटेसी पिल्स के अलावा कोकीन और हेरोइन का ज्यादा इस्तेमाल होता है. उच्चवर्ग के 18 से 19 साल के युवा तरल रूप में मिलने वाले एनेक्सिया और टैबलेट के रूप में मिलने वाली इक्सटेसी पिल्स का इस्तेमाल करते हैं. ‘डेट रेप ड्रग’ नाम से मशहूर पानी जैसा दिखने वाला और स्वाद में थोड़ा नमकीन जीएचबी ड्रग ऐसी पार्टियों में चोरी से मिला कर लड़कियों को पिलाया जाता है.
दुनिया में लगभग 20 करोड़ लोग एक या एक से अधिक ड्रग का सेवन करते हैं. नशे में भी नए प्रयोग होने लगे हैं. कृत्रिम रसायनों और कुछ मादक पदार्थों और दवाओं को मिला कर नए नशीले पदार्थ बनाए जा रहे हैं, जिन्हें डिजाइनर ड्रग, क्लब ड्रग, सिंथैटिक ड्रग, पार्टी ड्रग, डेट रेप ड्रग आदि नामों से जाना जाता है. ये थोड़े सस्ते होते हैं और कई लोग इन्हें खुद भी आसानी से बना लेते हैं. विदेशियों को भारत में उन के देश जैसा माहौल देने के लिए गोआ में इस तरह की पार्टियों का आयोजन शुरू हुआ.
अब छोटे शहरों और कसबों तक में रेव पार्टियां लोकप्रिय हो गई हैं, भले ही वे चोरीछिपे हों. हाईप्रोफाइल लोगों, पेशेवर महिलाओं के आलावा उच्चवर्गीय गृहिणियां तक ऐसी पार्टियों में होती हैं. अभिजात्य वर्ग के बच्चे और युवा कफसीरप, दवा और इंजैक्शनों का इस्तेमाल कर रहे हैं. कोरेक्स, फेनार्गन इंजैक्शन, सर्दीखांसी की दवाएं स्विजकोडिन, टौसेक्स, फेनकफ, बेनाड्रिल, एक्जिप्लौन, कोडिस्टार, टोरेक्स, कांपोज आदि से नशा करने वालों में 8 से 15 वर्ष की आयुवर्ग के बच्चों की संख्या सब से अधिक है.