‘जंगल मेरा घर है और पशुपक्षी मेरे दोस्त’

वन्यजीव फोटोग्राफी में आमतौर पर कैरियर बनाने को ले कर महिलाएं हिचकती हैं पर अपर्णा पुरुषोत्तमन ने न सिर्फ वन्यजीव फोटोग्राफी में अपनी अलग पहचान बनाई है, इस क्षेत्र के लिए वे एक जानामाना नाम भी बन गई हैं.

केरल की अपर्णा पुरुषोत्तमन की वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर बनने की कहानी काफी दिलचस्प है. इस प्रोफैशन में कम समय में ही अपर्णा ने एक अलग ही पहचान बना ली है.

अपर्णा का यह पैशन जान कर पति अशोक ने उन्हें खूब प्रोत्साहित किया है. रैड लिस्ट में शामिल संकटग्रस्त वन्यजीव को अपने कैमरे में उतार कर इस वन्य जीव फोटोग्राफर ने बायोलौजिस्ट एवं शोध करने वाले वैज्ञानिकों को सचमुच ही चौंका दिया है. अध्यापक, रिसर्च स्कौलर व ऐक्टीविस्ट अपर्णा के साथ वन की यात्रा करते हैं. उन के कैमरे के फ्रेम में कैद चित्र जंगल के दृश्य से भी ज्यादा खूबसूरत दिखाई पड़ते हैं.

अपर्णा कहती हैं, ‘‘मैं सचमुच प्रकृतिप्रेमी हूं, शायद इसलिए ये तसवीरें भी खूबसूरत दिखती होंगी. मैं इस सोच के साथ वन नहीं जाती कि किन्हीं खास दृश्यों को कैमरे में कैद करना है. पक्षी एवं जानवरों को आमनेसामने देखने का मौका मिलता है, तो उन्हें पहले जिज्ञासा से कुछ देर देखती हूं फिर चुपचाप उन की फोटो खींच लेती हूं. क्योंकि हम उन के घर में जबरदस्ती घुसते हैं, इसलिए मैं उन्हें बिना सताए काम करना अपना फर्ज समझती हूं.’’

कैसे आईं इस क्षेत्र में

वन्यजीव फोटोग्राफी के क्षेत्र में कैसे आईं? इस सवाल के जवाब में अपर्णा बताती हैं कि शादी के बाद ही इसे प्रोफैशन बनाया. कुछ साल पहले विदेश से एक मित्र घर आए तो उन के कैमरे से मैं ने कुछ पंछियों के फोटो खींचे. यह मैं ने कुतूहलतावश किया था. पर उन्होंने इन फोटो की बहुत प्रशंसा की. इतना ही नहीं, उन्होंने वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफी के बारे में बहुत कुछ बताया. उन्होंने प्रमुख वन्यजीव फोटोग्राफर राधिका रामास्वामी का एक लिंक भी मुझे भेज दिया. इस में अधिकतर विभिन्न प्रकार के पक्षियों की तसवीरें थीं. फिर मैं ने इन से संबंधित लेख ढूंढ़ कर पढ़े और फिर नौकरी छोड़ कर वन्यजीव फोटोग्राफर बन गई. बचपन से ही जीवजंतु मुझे बहुत अच्छे लगते हैं. इन्हें घायल देख कर मेरा मन बेहद दुखी होता था. दुर्घटना से घायल जानवरों को मैं अस्पताल तक ले जाने में जरा भी वक्त जाया नहीं करती थी.

पति का सपोर्ट

मुझे कभी भी अपने पति से कुछ मांगने की आदत नहीं रही. एक दिन मेरे पति मुझ से बोले कि तुम कभी भी कुछ नहीं मांगती हो. मैं तुम्हारे लिए क्या लाऊं? तो मैं ने हिचकते हुए उन से कहा कि एक छोटा सा कैमरा मिल जाता तो अच्छा होता.

फिर कुछ दिन बाद शादी की सालगिरह पर उन्होंने मुझे एक कैमरा गिफ्ट में दिया. उस कैमरे से मैं ने जिस पंछी के फोटो खींचे उन्हें देख कर हैरान हो कर उन्होंने कहा, ‘‘कितने खूबसूरत फोटो हैं. तुम ने यह बात पहले मुझ से क्यों नहीं बताई?’’

फिर उन्होंने मुझे खूब प्रोत्साहन दिया. मैं सब से पहले पति के साथ ही शोलयार वन की सैर पर गई थी. पति वहां के एस.इ.बी. में इंजीनियर का काम कर रहे थे. सचमुच वह एक यादगार अनुभव था. वहां की पशु विविधता ने मुझे बेहद प्रभावित किया. वन की पगडंडियों की सैर, पक्षियों का कलरव, प्रकृति का अद्भुत दृश्य सभी अविस्मरणीय थे.

यह पूछने पर कि जंगल में जाते समय महिला फोटोग्राफर होने की वजह से कौनकौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है? अपर्णा कहती हैं, ‘‘जंगल में सुरक्षा एक अहम बात है. जंगल में पशुपक्षियों या वन्यजीवों से नहीं, बल्कि मनुष्य से डरना पड़ता है. लेकिन यात्रा के दौरान मुझे कोई खराब अनुभव अब तक नहीं हुआ. हां 2 से 3 लोगों का छोटा ग्रुप बना कर जंगल जाना ठीक रहता है. मेरा वन्यजीवों के घर को हानि पहुंचाए बिना जंगल जाना होता है. जंगल मेरे घर की तरह है जिस से मुझे प्यार है.’’

कैरियर की यादगार घटना

शोलयार वन के जीवजंतुओं के बारे में जानकारी देने वाला एक व्यक्ति है माणिक्यन. माणिक्यन ने एक जीव नीलगिरि मार्टेन के बारे में जिक्र किया था. उस ने इस जीव को वेंगपुली नाम दिया था. नेचरलिस्टों ने इन की बात नहीं मानी थी.

एक बार वालप्पारा अड़यार डाम से वन यात्रा करते समय मैं ने एक पेड़ पर एक जीव को देखा. उस के गले में लाल रिबन वाली पट्टी बंधी थी. मैं ने उस की कई तसवीरें उतारीं. इस से पहले किसी ने उस जीव की तसवीर उतारी ही नहीं थी. फिर मैं जान गई कि यह रैड लिस्ट में शामिल कोई संकटग्रस्त जीव है. जब मैं ने उस जीव की तसवीरें माणिक्यन को दिखाईं तो माणिक्यन ने कहा कि यह वही जीव है जिस का मैं हमेशा जिक्र किया करता था. उन तसवीरों  को देख कर बहुत से लोगों ने मेरी प्रशंसा की थी और तभी यह घटना मेरी जिंदगी का टर्निंग पौइंट बन गया.

कैरियर की शुरुआत में भी एक घटना घटी थी. बिलकुल शांत दिखने वाले जंगली कुत्तों के ग्रुप ने धीमी चाल में चलते हुए एक सांभर का अचानक पीछा कर के उसे पास के तालाब में धकेल दिया. इसी तरह जमीन पर चलने वाले हिरन को जंगली कुत्तों के ग्रुप ने कच्चा ही चबा डाला. इस दृश्य को देख कर मैं सचमुच ही डर गई थी. लेकिन मैं जानती हूं कि यह एक प्राकृतिक नियम है कि ये एकदूसरे का अन्न हैं. दरअसल, जंगल का भी अपना एक नियम होता है.

फेसबुक में फौलोवर्स

मैं एफबी में तसवीर पोस्ट करने से पहले उस जीव के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त करती हूं. एक बार राधिका रामास्वामी ने मेरी खिंची तसवीरें देख कर मैसेज द्वारा प्रशंसा की थी. यह मेरे लिए बेहद खुशी की बात थी. मेरा पसंदीदा पक्षी उल्लू है, क्योंकि यह साल में एक अंडा ही देता है. यह पक्षी अंधविश्वास के नाम पर बहुत ही सताया जाता है. ऐसा जागरूकता के अभाव की वजह से होता है.

संजीव कपूर

‘खाना खजाना’ से चर्चित हुए सैलिब्रिटी शैफ संजीव कपूर ने लगातार पाक कला को विकसित कर हर घर में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. स्वभाव से नम्र, धैर्यवान संजीव कपूर की हमेशा कुछ नया और अलग करने की चाहत रहती है.

हरियाणा में जन्में संजीव कपूर का बचपन दिल्ली में बीता. होटल मैनेजमैंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने कई बड़े होटलों में काम किया और ऐग्जीक्यूटिव शैफ बने. बेहतरीन भारतीय व्यंजन बनाने में माहिर संजीव कपूर को कई पुरस्कार भी मिले. उन का चैनल ‘फूड फूड’ भी काफी लोकप्रिय है, जिस का सपना उन्होंने सालों देखा था. इन दिनों वे एक शैफ कुकबुक के लेखक और रेस्तरां कंसलटैंट भी हैं. इस के अलावा वे सोनी टीवी के शो ‘संजीव कपूर के किचन के खिलाड़ी’ के जज भी हैं.

यहां पेश हैं मड आईलैंड पर उन से हुई बातचीत के खास अंश:

इस क्षेत्र में कैसे आए?

खाना बनाने का शौक मुझ में बचपन से ही था, लेकिन उस वक्त यह नहीं सोचा था कि मैं शैफ बनूंगा. फिर होटल मैनेजमैंट कोर्स किया तो रुचि बढ़ती गई और मैं इस क्षेत्र में आ गया.

परिवार का कितना सहयोग था?

किसी ने कभी मना नहीं किया. मेरे पिताजी को भी खाना बनाने का शौक था. वे बैंक में काम करते थे पर कभीकभी खाना भी बनाया करते थे. मेरे घर में ऐसा कुछ नहीं था कि पुरुष हैं तो खाना नहीं बना सकते.

रोजमर्रा का खाना जल्दी बनाने के तरीके क्या हैं?

जल्दी खाना बनाने के लिए स्मार्ट कुकिंग करनी पड़ती है. ऐसे में कुछ चीजें पहले से तैयार कर के एकसाथ रखनी पड़ती हैं. खरीदारी हो या मेन्यू प्लानिंग, पहले से कर के रखें. मसाले हमेशा थोक में रखें. खाना बनाते समय अगर आप ये सब तैयारी करेंगे, तो समय व्यर्थ जाएगा. इसलिए ये काम आप तब करें, जब आप के पास समय हो. अधिकतर महिलाएं समय रहते काम नहीं करतीं और बाद में काम को कोसती रहती हैं.

हैल्दी खाना बनाने के तरीके क्या हैं?

हैल्दी खाना बनाने के लिए हैल्दी सिद्धांत रखने पड़ते हैं. परिवार में हर व्यक्ति की अलगअलग स्वास्थ्य समस्या होती है, इसलिए खाने में कभी किसी चीज की अति न करें. तली हुई चीजें, मीठा या सैलेड अधिक कभी भी न खाएं. वजन तभी बढ़ता है जब आप ऐक्स्ट्रा खाते हैं. अपनेआप को कंट्रोल में रखें. दिमाग की अवश्य सुनें. वर्कआउट नियमित करें. इस से आप ने अगर कुछ चीजें अधिक खाई हैं, तो उन का सामंजस्य हो जाता है.

हर घर में मीठा पसंद किया जाता है, लेकिन कई घरों में कुछकुछ बीमारियां होती हैं. ऐसे में खाने में क्या शामिल करें, ताकि एक अच्छी मिठाई परिवार वालों को मिले?

महिलाएं सभी तरह का खाना बनाती हैं पर मिठाई को ले कर वाकई समस्या होती है. ऐसे में डाक्टरी सलाह अवश्य मानें. इस के अलावा तली हुई या मैदे से बनी मिठाई अवौइड करें. मिठाई में फलों का प्रयोग अधिक करें.

मौडर्न कुकिंग में कौनकौन से ऐप्लाएंसिस खरीदने जरूरी हैं, जो किचन में खूबसूरत लगने के अलावा बजट में हों?

आजकल बाजार में कई तरह के ऐप्लाएंसिस उपलब्ध हैं. अगर फैमिली छोटी हो तो ग्राइंडर, मिक्सर, मिनी चौपर लें और एक इंडक्शन कुकर लें, जिस से गैस की बचत होती है और किचन भी साफ रहता है. इस के अलावा बरतन व पतीले अच्छी क्वालिटी के खरीदें, जिन में तेल कम लगता हो.

ग्रीन हाउस के उत्पाद का प्रयोग कहां तक सही होता है?

मेरे हिसाब से सीजन वाली चीजें अधिक खाएं. जो सीजन वाली नहीं हैं उन्हें कम खाएं, क्योंकि एक तो वे महंगी होंगी और टेस्टी भी कम होंगी, जबकि सीजन की फलसब्जियां अच्छी और हैल्दी भी रहेंगी.

प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी ब्रैस्ट कैंसर का निदान

अभी हाल ही में सोशल नैटवर्किंग साइट में हौलीवुड अभिनेत्री एंजेलिना जोली के एक पोस्ट ने उन के चाहने वालों के बीच हलचल मचा दी. अपने पोस्ट में एंजेलिना ने अपने बच्चों के भविष्य को देखते हुए स्वेच्छा से अपने स्तन को निकलवा देने यानी मैस्टेकटोमी करवा लेने का एलान किया.

बहरहाल, सोशल नैटवर्किंग साइट में इस एलान के कुछ दिनों बाद उन्होंने न्यूयार्क टाइम्स में ‘माई मैडिकल चौइस’ शीर्षक से एक लेख में लिखा कि उन्होंने हाल ही में खून में बीआरसीए-1 जिन, जो स्तन कैंसर के लिए जिम्मेदार माना जाता है, की उपस्थिति की जांच करवाई थी. इस जांच से पता चला कि इस जिन की उपस्थिति उन के खून में है. जांच रिपोर्ट में कयास लगाया गया था कि निकट भविष्य में स्तन और बच्चेदानी में कैंसर की आशंका है.

हालांकि जांच में 87% स्तन कैंसर की और 50% बच्चेदानी में कैंसर की आशंका व्यक्त की थी, लेकिन स्तन कैंसर की आशंका 87% थी, इसीलिए उन्होंने सब से पहले प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का रास्ता चुना और इस के तहत उन्होंने अपने दोनों स्तन सर्जरी के माध्यम से कटवा कर निकलवा दिया.

इतना कठिन फैसला लेने के बावजूद एंजेलिना जोली के आत्मविश्वास में जरा भी कमी नहीं आई. उलटे उन्होंने लिखा है कि इस से नारीत्व पर जरा भी असर नहीं पड़ेगा. हालांकि लेख में उन्होंने यह भी लिखा है कि जांच में कैंसर की संभावना ने उन्हें बहुत विचलित कर दिया था, क्योंकि 2007 में स्तन कैंसर ने महज 56 साल की उम्र में उन की मां को छीन लिया था. अपनी मां को उन्होंने तड़पते हुए देखा था. वे खुद उस दौर से गुजरने को कतई तैयार नहीं थीं, इसीलिए उन्होंने मैस्टेकटोमी का फैसला लेना कहीं बेहतर समझा.

और भी हैं इस राह के राही

पर तथ्य बताते हैं कि प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का रास्ता अकेले एंजेलिना जोली ने नहीं अपनाया है, बल्कि अमेरिका में ऐसे बहुत सारे मामले देखने को मिल जाएंगे. खून में बीआरसीए-1 जिन जांच का नतीजा पौजिटिव पाए जाने के बाद अमेरिका में कैंसर पीडि़त होने की संभावना वाली 30% महिलाएं मैस्टेकटोमी का रुख अपनाती हैं.

डाक्टरी परिभाषा में इसे प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का नाम दिया गया है और अमेरिका सहित यूरोप में इस की बहुत सारी मिसालें मिल जाएंगी. जाहिर है इस तरह के फैसले की घोषणा करने वाली अकेली एंजेलिना नहीं हैं.

1974 में अमेरिका की फर्स्ट लेडी बेट्टी फोर्ड ने भी यही किया था. बेट्टी फोर्ड अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जेराल्ड फोर्ड की पत्नी हैं.

2007 में लास एंजिल्स टाइम्स की एक महिला पत्रकार ऐन गरमैन ने भी अपने कौलम ‘फर्स्ट पर्सन अकाउंट’ में अपने मैस्टेकटोमी की खबर को आम किया था.

कैंसर का प्रकोप

आजकल दुनिया भर में स्तन कैंसर का प्रकोप दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है. आंकड़े बताते हैं कि इस समय हमारे देश में स्तन कैंसर पीडि़त महिलाओं की संख्या 4 लाख से भी अधिक है. अकेले प. बंगाल में इस समय लगभग 50 हजार महिलाएं इस की शिकार हैं. चिंता का विषय यह है कि पूरे देश में हर साल कम से कम डेढ़ लाख महिलाएं स्तन कैंसर की शिकार होती हैं.

कोलकाता में विजया मुखर्जी नाम की एक महिला, जो लगभग 30 साल पहले 44 साल की उम्र में स्तन कैंसर की शिकार हो गई थीं, बताती हैं कि कैंसर से पीडि़त होने की बात मेरे लिए पहला झटका थी. सुनते ही मेरे मन में पति और अपने दोनों बच्चों का खयाल आया. दूसरा झटका तब लगा कि जब डाक्टर ने कैंसर की भयावहता के बारे में बताया.

मुझ से कहा गया कि जल्द ही कैंसर शरीर के अन्य हिस्सों को भी प्रभावित करने जा रहा है और इसे रोकने के लिए मैस्टेकटोमी ही एकमात्र रास्ता है. फिर मेरा औपरेशन हुआ. मैं बहुत मायूस थी, लेकिन शारीरिक तौर पर कुछ खास फर्क का पता नहीं चला. लेकिन कुछ दिनों के बाद जब घर लौटने लगी तब लगा सैकड़ों नजरें मुझे भीतर तक बींध रही हैं. मुझे लगा कि लोगों की नजरों से बचने के लिए मैं अपनेआप को कहीं छिपा लूं. मैं ने पूरी दुनिया से अपनेआप को अलग कर लिया.

आज विजया मुखर्जी ‘हितैषणी’ नामक एक एनजीओ चलाती हैं. इस के बारे में वे कहती हैं कि 1995 में स्तन कैंसर से पीडि़त और मैस्टेकटोमी करवाने वाली महिलाओं का एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ था. इस सम्मेलन में वे भी शामिल हुई थीं. सम्मेलन के अनुभव को काम में लगा कर उन्होंने ‘हितैषणी’ संस्था की स्थापना की, जिस का मकसद स्तन कैंसर से पीडि़त महिलाओं को मानसिक तौर पर मजबूती देना है. शुरूशुरू में संस्था के सदस्यों की संख्या महज 5-6 थी, लेकिन आज 57 सदस्य हैं. विजया मुखर्जी की संस्था स्तन कैंसर पीडि़तों का हर तरह से सहयोग करती है.

डाक्टर की राय

आइए जानें कि प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी के मुद्दे पर डाक्टर क्या कहते हैं. कोलकाता के जानेमाने एंकोलौजिस्ट डा. गौतम मुखर्जी का कहना है कि एंजेलिना जोली ने साहस भरा कदम उठाया है, यह कहना ही पड़ेगा. लेकिन एक कैंसर विशेषज्ञ के रूप में मैं एंजेलिना जोली के इस कदम का समर्थन नहीं करता, क्योंकि कैंसर के मरीज के लिए यह सब से आखिरी विकल्प होता है. जबकि एंजेलिना जोली ने इस विकल्प का इस्तेमाल तब किया, जब जांच में सिर्फ ऐसी संभावना जताई गई थी.

वैसे भी विदेश में प्रिवेंटिव मैस्टेकटोमी का केवल चलन ही नहीं है, बल्कि यह चलन मास हिस्टीरिया का रूप ले चुका है. इस से दुनिया के अन्य देशों में भी इस चलन के बढ़ने की आशंका प्रबल होती जाएगी.

एंजेलिना जोली का फौर्मूला मान कर चलें तो गाल ब्लैडर में पथरी की आशंका होते ही गाल ब्लैडर काट कर फेंक दिया जाना चाहिए. इसी तरह एपेंडिसाइटिस की आशंका होते ही एपेंडिक्स निकलवा दिया जाना चाहिए. बीआरएसी-1 और बीआरएसी-2 नामक जांचों का प्रचार इसलिए किया जा रहा है ताकि कैंसर होने की संभावना का पता चल सके. लेकिन इन की रिपोर्ट पौजिटिव आने का अर्थ यह कतई नहीं कि देरसवेर कैंसर का शिकार होना ही है. इन दोनों जिन की उपस्थिति से सिर्फ कैंसर की आशंका की जा सकती है. डाक्टर तो फैमिली हिस्ट्री, लाइफस्टाइल के अलावा अन्य किसी बीमारी से पीडि़त होने जैसे कई फैक्टर्स पर विचार करने के बाद ही खून की बहुत ही महंगी जांच करवाने की सलाह देते हैं.

देह सौंदर्य बनाम जीवन

स्तन कैंसर के प्रति जागरूकता अच्छी बात है. इस आधार पर महिलाओं को खुद अपनी जांच करनी चाहिए या 40 की उम्र के बाद साल में एक बार डाक्टर की सलाह पर मेमोग्राफी, सीटी स्कैन, बायोप्सी जैसी कुछ जांचें नियमित रूप से करवानी चाहिए. अगर कैंसर हो भी गया है तो रेडियोथेरैपी, कीमोथेरैपी, हारमोन थेरैपी के बाद ही मैस्टेकटोमी आखिरी विकल्प है. हालांकि डा. गौतम मुखर्जी का यह भी कहना है कि स्तन कैंसर के 90% मामलों में मैस्टेकटोमी का सहारा लिया जाता है, केवल 10% मामलों में ब्रैस्ट कंजरवेटिव सर्जरी काम आती है. इस के लिए सरकारी अस्पताल में खर्च क्व10 हजार आता है तो निजी अस्पतालों में क्व30-50 हजार और यह सर्जरी कोई भी सर्जन कर सकता है.

पर इस से भी बड़ी बात यह है कि केवल आशंका भर से इतना बड़ा कदम उठाए जाने का समर्थन नहीं किया जा सकता है. डा. गौतम मुखर्जी कहते हैं कि स्तन सर्जरी के बाद हारमोन थेरैपी की जरूरत पड़ती है, ताकि विशेष तरह के हारमोन की कमी का असर शरीर पर न पड़े. साथ ही वे यह भी कहते हैं कि मैस्टेकटोमी के बाद गर्भधारण में कोई समस्या नहीं आती है. पर हां, स्तनपान संभव नहीं है. इसलिए बच्चा स्तनपान से वंचित रहेगा, क्योंकि स्तन के अभाव में दूध नहीं बनेगा.

नारी सौंदर्य का सवाल

पर जहां तक नारी सौंदर्य का सवाल है तो इस के लिए ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन तकनीक यानी कृत्रित स्तन का विकल्प है और यह काम कौस्मैटिक सर्जन बखूबी कर सकता है. इस बारे में जानेमाने कौस्मैटिक सर्जन मनोज खन्ना का कहना है कि जहां तक ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन तकनीक की सफलता का सवाल है, तो यह बहुत कुछ इंप्लांट मैटीरियल पर निर्भर करता है. दरअसल, ब्रैस्ट रिकंस्ट्रक्शन के लिए सिलिकौन इंप्लांट, जैल इंप्लांट और स्लाइन इंप्लांट औल्टरनेटिव कंपोजिशन इंप्लांट तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है. इस का खर्च भी मैटीरियल के आधार पर आता है.

बहरहाल, जहां तक नारी देह के सौंदर्य का सवाल है तो कैंसर पीडि़त स्तन को काट कर अलग कर देना किसी खूबसूरत ढांचे को ढहा देने जैसा हो सकता है. और अगर कैंसर की संभावना के आधार पर मैस्टेकटोमी का रास्ता अपनाया जाए तो भारतीय दर्शन में इसे देह वैराग्य से जोड़ कर देखा जा सकता है.

लेकिन एंजेलिना जोली का मामला तसलीमा नसरीन के नजरिए में नारी का अपने शरीर पर अपना नियंत्रण जैसा है. उन का कहना है कि हरेक महिला को एंजेलिना जोली की तरह खून में कैंसर पैदा करने वाले जिन की जांच करवा कर मैस्टेकटोमी के जरीए अपने शरीर का नियंत्रण अपने हाथों में रखना चाहिए, क्योंकि नारी सौंदर्य की तुलना में जीवन कहीं अधिक बड़ा और महत्त्वपूर्ण है. 

लाठी के हिमायती

भारतीय मूल के लोगों ने विदेशों में, खासतौर पर अमेरिका में खासी जगह बना ली है और उन में बौबी जिंदल भी हैं जो कट्टरवादी धर्मांध रिपब्लिक पार्टी में घुसे हैं. वे दूसरे रिपब्लिकों की तरह हर हाथ में बंदूक देने के हिमायती हैं, चाहे कितने भी निहत्थे निर्दोष मरें. उन्होंने भारत से सीखा है कि हर हाथ में लाठी हो तो बहुत कुछ हो सकता है.

मजा बच्चों और बड़ों दोनों को

ऐनिमेशन फिल्मों में बच्चों और बड़ों दोनों को मजा आता है. ‘लीजैंड औफ ओज’ नाटक की शृंखला काफी लोकप्रिय हो रही है. इस की हीरोइन बेली मैडीसन एक कार्यक्रम में ओज के कपड़े पहने मपट के साथ फिल्म की सफलता पर खुशी जाहिर कर रही है.

बाइयां बन रहीं ताकतवर

नौकरानियों पर अत्याचार केवल हमारे देश में ही नहीं होते, दुनिया भर में हो रहे हैं. दरवियाना सुलीरस्यानिंगसिंह इंडोनेशिया से हौंगकौंग ले जाई गई नौकरानी है, जिसे उस के मालिकों ने मारापीटा. अब वह नौकरानियों के हकों की प्रतीक बन गई है और 1 मई को हौंगकौंग के जुलूसों में उस के मुखौटे खूब पहने गए. अब बाई की चिंता करने का समय आ गया है. वे सच में ताकतवर बन रही हैं.

धर्म का पाखंड ऐसा भी

धर्म की दुकानें यों ही नहीं चलतीं, इस के लिए हर समय कुछ न कुछ करना पड़ता है. ईस्टर के समय सारे ईसाई जगत में धर्मगुरुओं ने ईसा की मृत्यु और पुनर्जीवित होने के दृश्य मंचित कराए ताकि धर्म का पाखंड मन में गहरा बैठा रहे और दानपात्र खनकते रहें.

मैं लड़की हूं या लड़का

हाय, मैं कैसी लग रही हूं प्यारे. प्यारे मैं जानती हूं कि मैं सैक्सी लग रही हूं पर मैं लड़की हूं या लड़का जानू तुम कैसे जानोगे, क्योंकि मैं तो टोक्यो की एलजीबीटी कम्युनिटी की हूं. एलजीबीटी यानी लेस्बियन बाई सैक्सुअल ट्रांसजैंडर. नहीं समझ आया? छोडि़ए, तसवीर देख लीजिए.

क्या होगा कुछ पता नहीं:

इस तरह  के मासूम भोले चेहरे अफगानिस्तान की जेलों में भरे पड़े हैं. वहां कानून की नहीं, पुलिस, सेना और कबीलों की चलती है और भोली, निर्दोष औरतें भी चक्करों में फंस जाती हैं. ईरान शहर की जेल से आईं 27 औरतों को वर्षों और महीनों बाद रहम खा कर छोड़ा गया है. क्या इन औरतों का भविष्य बाहर भी सुरक्षित होगा या समाज के दरिंदे इन्हें दागी मान कर नोच खाएंगे?

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