पति पर दोबारा कैसे भरोसा करुं?

सवाल-

मैं 23 वर्षीय युवती हूं. मैं ने प्रेम विवाह किया था. मेरे 2 बच्चे हैं. विवाहपूर्व मेरे पति के एक शादीशुदा महिला से संबंध थे. कुछ महीने पहले पता चला है कि पति अब भी उस औरत से तो संबंध बनाए हुए ही है, सुना है एक दूसरी औरत से भी उन की दोस्ती है. जब से मुझे पति के व्यभिचार का पता चला है मैं तनावग्रस्त हूं. मैं ने जहर खा कर जान देने की भी कोशिश की पर बचा ली गई. पति वादा करते हैं कि आइंदा किसी से कोई संबंध नहीं रखेंगे. पर मुझे अब उन पर रत्ती भर भी भरोसा नहीं है. कुछ समझ में नहीं आ रहा कि क्या करूं. जिस व्यक्ति के लिए मैं ने अपना सबकुछ छोड़ दिया उसी ने मेरा भरोसा तोड़ा. बताएं, क्या करूं?

जवाब-

लगता है पति चुनने में आप से भूल हुई है. लेकिन अब पति जैसे भी हैं उन्हें संभालने, राह पर लाने की जिम्मेदारी आप ही की है. उन्हें समझाएं कि वे अब 2-2 बच्चों के पिता हैं, इसलिए अपना आचरण सुधारें वरना इस का प्रभाव बच्चों पर भी पड़ेगा. आप भी उन पर कड़ी नजर रखें. तनावग्रस्त रहना या फिर आत्महत्या जैसा कायराना कदम उठाना सही नहीं है. पति पर घर की और बच्चों की जिम्मेदारी डालें ताकि वे उस में व्यस्त रहें और उन्हें भटकाने के लिए समय ही न मिले.

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‘‘कोई घर अपनी शानदार सजावट खराब होने से नहीं, बल्कि अपने गिनेचुने सदस्यों के दूर चले जाने से खाली होता है,’’ मां उस को फोन करती रहीं और अहसास दिलाती रहीं, ‘‘वह घर से निकला है तो घर खालीखाली सा हो गया है.’’

‘मां, अब मैं 20 साल का हूं, आप ने कहा कि 10 दिन की छुट्टी है तो दुनिया को समझो. अब वही तो कर रहा हूं. कोई भी जीवन यों ही तो खास नहीं होता, उस को संवारना पड़ता है.’

‘‘ठीक है बेबी, तुम अपने दिल की  करो, मगर मां को मत भूल जाना.’’ ‘मां, मैं पिछले 20 साल से सिर्फ आप की ही बात मानता आया हूं. आप जो कहती हो, वही करता हूं न मां.’

‘‘मैं ने कब कहा कि हमेशा अच्छी बातें करो, पर हां मन ही मन यह मनोकामना जरूर की,’’ मां ने ढेर सारा प्यार उडे़लते हुए कहा. वह अब मां को खूब भावुक करता रहा और तब तक जब तक कि मां की किटी पार्टी का समय नहीं हो गया.

पूरी कहानी पढ़ने के लिए- मुरझाया मन: उसे प्यार में क्यों मिला धोखा

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शिशु की मालिश कैसे करें

बच्चे के शरीर की मसाज यानी मालिश उस के लिए बेहद फायदेमंद होती है. मसाज जहां एक ओर बच्चे के विकास में मदद करती है, वहीं दूसरी ओर मां और बच्चे को भावनात्मक रूप से भी जोड़ती है.

अध्ययनों से पता चला है कि मसाज करने से बच्चा सहज हो जाता है, उस का रोना कम हो जाता है और वह चैन की नींद सोता है. इतना ही नहीं कब्ज और पेट दर्द की शिकायत भी मसाज से दूर हो जाती है. इस से बच्चे में बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी पैदा होती है.

कब शुरू करें बेबी मसाज

1 महीने की उम्र से बच्चे की मालिश शुरू की जा सकती है. इस समय तक अंबिलिकल कौर्ड गिर जाती है, नाभि सूख चुकी होती है. जन्म की तुलना में त्वचा भी कुछ संवेदनशील हो जाती है. त्वचा में कसावट आने लगती है. इस उम्र में बच्चा स्पर्श के लिए बेहतर प्रतिक्रिया देता है.

बौडी मसाज के फायदे

मसाज के कई प्राकृतिक फायदे हैं:

– बच्चे का मानसिक और शारीरिक विकास होता है.

– बच्चे की पेशियों को आराम मिलता है.

– बच्चा अच्छी और गहरी नींद सोता है.

– उस का नर्वस सिस्टम विकसित होता है.

– अगर बच्चा कमजोर है तो उस के जीवन की गुणवत्ता में सुधार होता है.

– सर्कुलेटरी सिस्टम का बेहतर विकास होता है.

कैसे करें मसाज

मसाज करते समय ध्यान रखें कि कमरे में गरमाहट हो, बच्चा शांत हो और आप भी रिलैक्स रहें. ऐसा मसाज औयल चुनें जो खासतौर पर बच्चों की मसाज के लिए बनाया गया हो.  बिना खुशबू वाले प्राकृतिक तेल का इस्तेमाल बेहतर होगा. जब बच्चा सो कर उठे या फिर नहाने के बाद उस की मसाज की जाए तो बेहतर होगा. 10 से 30 मिनट तक उस की मसाज कर सकती हैं.

सिर्फ मसाज करना ही काफी नहीं होता, बच्चे को मसाज तभी अच्छी लगेगी, जब इस का तरीका सही हो. जानिए, मसाज के तरीके को:

पहला चरण

अनुमति लेना: अनुमति लेने का अर्थ है कि आप को बच्चे की मसाज तब नहीं करनी चाहिए जब वह न चाहे. जब उसे मसाज करवाना अच्छा लगे, तभी उस की मालिश करें. हथेली में थोड़ा तेल ले कर इसे बच्चे के पेट पर और कानों के पीछे रगड़ें. इस के बाद बच्चे का व्यवहार देखें. अगर वह रोता है या परेशान होता है, तो समझ जाएं कि यह मसाज करने का सही समय नहीं है. यदि आप महसूस कर रही हैं कि उसे मसाज अच्छी लग रही है, तो आप मसाज कर सकती ं हैं. शुरुआत में बच्चा मसाज से असहज महसूस करता है, लेकिन धीरेधीरे उसे मसाज में मजा आने लगता है.

दूसरा चरण

टांगों की मालिश करें: मसाज की शुरुआत बच्चे की टांगों से करें. हथेली पर तेल की कुछ बूंदें ले कर बच्चे के तलवों से शुरुआत करें. अपने अंगूठे की मदद से उस की एड़ी से उंगलियों की तरफ बढ़ें. धीरेधीरे अंगूठे को गोलगोल घुमाते हुए दोनों तलवों पर मसाज करें. पैरों की उंगलियों को न खींचें जैसे वयस्कों की मसाज में आमतौर पर किया जाता है. इस के बजाय हलके हाथों से मसाज करें.

अब एक टांग को उठाएं और हलके हाथ से टखने से कूल्हे की ओर मालिश करें. अगर बच्चा रिलैक्स और शांत है तो दोनों टांगों की मसाज एकसाथ करें. इस के बाद दोनों हाथों से कूल्हों को हलकेहलके दबाएं जैसे आप टौवेल निचोड़ती हैं.

तीसरा चरण

हाथों और बाजुओं की मालिश: टांगों के बाद बाजुओं की मालिश उसी तरह करनी चाहिए जैसे आप ने टांगों की मसाज की. बच्चे के हाथ पकड़ें और हथेलियों पर गोलगोल घुमाते हुए मसाज करें. उंगलियों की भी भीतर से बाहर की ओर मसाज करें. इस के बाद कलाइयों को ऐसे रगड़ें जैसे चूडि़यां पहनाई जाती हैं.

इस के बाद हलके हाथ से बाजुओं के निचले हिस्से और फिर ऊपरी हिस्से पर मालिश करें. पूरी बाजू की मसाज उसी तरह करें जैसे आप टौवेल निचोड़ती हैं.

चौथा चरण

छाती और कंधों की मसाज: बाएं और दाएं कंधे से छाती की ओर हाथ चलाते हुए मालिश करें. आप हाथों को पीछे से कंधे की ओर भी ले जा सकती हैं. इस के बाद दोनों हाथों को छाती के बीच में रखें और बाहर की तरफ मसाज करें.

अब स्टर्नम के निचले हिस्से, छाती की हड्डी से बाहर की ओर मसाज करें. इस दौरान आप के स्ट्रोक ऐसे हों जैसे आप हार्ट की शेप बना रही हैं.

5वां चरण

पेट की मालिश: छाती के बाद पेट की मालिश करनी चाहिए. ध्यान रखें कि बच्चे के शरीर का यह हिस्सा बहुत नाजुक होता है, इसलिए आप को दबाव बहुत कम रखना चाहिए. पेट के ऊपरी हिस्से से शुरुआत करें. अपनी हथेली को छाती की हड्डी के नीचे रखें और

पेट पर नाभि के चारों ओर गोलगोल घुमाते हुए मसाज करें. इस दौरान हाथों का दबाव बहुत हलका होना चाहिए.

घड़ी की सुई की दिशा में हाथों को गोलगोल घुमाएं (नाभि के चारों ओर) छोटे बच्चों की नाभि बहुत संवेदनशील होती है, क्योंकि हाल ही में उन की अंबिलिकल कौर्ड गिरी होती है, इसलिए इस हिस्से पर मालिश करते समय बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

छठा चरण

चेहरे और सिर की मालिश: छोटे बच्चों के चेहरे और सिर की मालिश करना बहुत मुश्किल होता है, क्योंकि बच्चे बहुत ज्यादा हिलते हैं. अपनी उंगली को बच्चे के माथे के बीच में रखें और बाहर की ओर मालिश करें. इसी तरह ठुड्डी से ऊपर तथा बाहर की ओर उंगलियों को गोलगोल घुमाते हुए मालिश करें. इन स्ट्रोक्स को कई बार दोहराएं.

चेहरे के बाद सिर की मालिश ठीक उसी तरह करें जैसे शैंपू करते समय उंगलियों को घुमाती हैं. उंगलियों के छोरों से हलका दबाव डालें. बच्चे की खोपड़ी बहुत नाजुक होती है, इसलिए दबाव बहुत ज्यादा न हो.

7वां चरण

पीठ की मालिश: सब से अंत में पीठ की मालिश करें. बच्चे को पेट के बल लिटा दें. इस दौरान उस के हाथ आप की तरफ हों.

पीठ के ऊपरी हिस्से पर उंगलियां रखें और घड़ी की सुई की दिशा में हलके हाथों से घुमाते हुए नितंबों तक आएं. यह प्रक्रिया कम से कम 8 से 10 बार दोहराएं.

अपनी पहली 2 उंगलियों को रीढ़ की तरफ रख कर नितंबों तक आएं. इन स्ट्रोक्स को कई बार दोहराएं. उंगलियों को रीढ़ की हड्डी पर न रखें. इस के बजाय साइड में रख कर नीचे की तरफ मसाज करें.

कंधे की मसाज करने के लिए हाथों को कंधों पर गोलगोल घुमाएं. हलके हाथों से पीठ के निचले हिस्से और नितंबों की मालिश भी करें. इसी स्ट्रोक के साथ मसाज खत्म करें.

मसाज के बाद टिशू पेपर से बच्चे के शरीर से अतिरिक्त तेल पोंछ लें. मसाज के लिए एक समय रखें. इस से बच्चे की दिनचर्या बन जाएगी और वह मालिश के दौरान ज्यादा सहज रहेगा.

– डा. आशु साहनी, जेपी हौस्पिटल, नोएडा  

Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं केसरी पनीर टिक्का

स्नैक्स में अगर आप टेस्टी और हेल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो केसरी पनीर टिक्का की ये रेसिपी बनाना ना भूलें.

सामग्री

500 ग्राम पनीर

2 केसर के धागे

200 ग्राम दही गाढ़ा

10 ग्राम पीलीमिर्च पाउडर

10 ग्राम हलदी पाउडर

50 एमएल ताजा क्रीम

50 ग्राम आम चटनी

30 ग्राम पुदीना चटनी

5 ग्राम जावित्री पेस्ट

10 ग्राम इलायची पेस्ट

200 ग्राम चीज

नमक स्वादानुसार

विधि

पनीर को चौकोर टुकड़ों में काटें. फिर यलो चिली और नमक मिलाएं. पनीर में आम और पुदीना चटनी डालें. अब दही, हलदी, क्रीम, जावित्री, इलायची, चीज पेस्ट और केसर डाल कर मैरीनेड करें. मैरीनेटेड पनीर को सीख में लगा कर तंदूर में पकाएं और फिर गरमगरम सर्व करें.

सच के फूल: क्या हुआ था सुधा के साथ

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Top 10 Winter Health And Beauty Tips In Hindi: सर्दियों के लिए टॉप 10 बेस्ट हेल्थ और ब्यूटी टिप्स हिंदी में

Winter Health And Beauty Tips in Hindi: इस आर्टिकल में हम आपके लिए लेकर आए हैं गृहशोभा की 10 Winter Health And Beauty Tips in Hindi 2022. सर्दियों में हेल्थ और ब्यूटी से जुड़ी कई प्रौब्लम्स का सामना करना पड़ता है, जिसके लिए डौक्टर और पार्लर के चक्कर काटने पड़ते हैं. इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं Winter Health And Beauty Tips in Hindi, जिससे आपकी हेल्थ और स्किन अच्छी बनी रहेगी. तो आइए आपको बताते हैं घर बैठे अपना प्रौफेशनल और होममेड टिप्स से हेल्थ और ब्यूटी का ख्याल कैसे करें. अगर आपको भी है Winter में अपनी हेल्थ और ब्यूटी को खूबसूरत बनाए रखना है तो पढ़ें गृहशोभा की ये Winter Beauty Tips in Hindi.

1. Winter Special: बचे ऊन से बनाएं कुछ नया

winter

आप ने स्वैटर के लिए ऊन खरीदा तो थोड़ा ज्यादा ही लिया, क्योंकि आप यह जानती हैं कि बाद में ऊन खरीदने पर अकसर रंग में फर्क आ जाता है. ऐसा कई बार होने से ऊन के बहुत सारे छोटेबड़े गोले आप के पास इकट्ठा हो जाते हैं, जिन्हें संभालना एक मुसीबत है, क्योंकि गोले आपस में बुरी तरह उलझ भी जाते हैं. ऐसा न हो, इस से बचने के लिए क्यों न बचे ऊन का सुंदर प्रयोग कर इस सीजन में कुछ नया बना लिया जाए. आइए जानिए कि आप क्याक्या बना सकती हैं:

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2. Winter Special: सर्दी में पानी भी है जरूरी

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सर्दी शुरू होते ही खानपान की खपत भले ही बढ़ जाती हो पर पानी की खपत काफी कम हो जाती है. सर्दी में त्रिशला अकसर बीमार हो जाती है. उसे कब्ज, गैस व ऐसी ही अन्य समस्याओं से दोचार होना पड़ता है. उसे ताज्जुब है कि कोई समस्या ऐसी नहीं है जो खासतौर पर सर्दी में होने वाली अथवा सर्दी में हावी हो जाने वाली हो. फिर यह सब उसे क्यों हो रहा है?

एक कौर्पोरेट कंपनी में काम करने वाले सुशील कुमार कहते हैं कि उन का खानापीना, घूमना ठंड में ज्यादा होता है. वे सर्दी को मन से पसंद करते हैं. पता नहीं क्या बात है कि सर्दी में वे बुखार, संक्रमण आदि की चपेट में ज्यादा ही आते हैं. कई बार तरहतरह की डाक्टरी जांच करवाई. तब जा कर पता चला कि पानी की कमी से वे तरहतरह के संकट से घिरते व जूझते हैं.

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3. Winter Special: सर्दी में भी रहे दिल का रखें खास ख्याल

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सर्दी के मौसम में तापमान गिरते रहने से रक्त का गाढ़ापन बढ़ने लगता है और रक्त प्रवाह कम होने लगता है, जिस से दिल का दौरा पड़ने और कोरोनरी आर्टरी संबंधी बीमारियों के मामले भी बढ़ने लगते हैं. दिल का दौरा पड़ने के कारणों की जानकारी न होना और सर्दी के मौसम में सावधानियों की अनदेखी इन बीमारियों की बड़ी वजहें हैं.

कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों से पीडि़त व्यक्तियों को सर्दी के मौसम में विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए ताकि उन का दिल सुरक्षित रह सके.

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4. इस सर्दी रखें अपनी स्किन का खास खयाल

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सर्दियों का मौसम फिर से दस्तक दे रहा है और इस मौसम में जरूरी है हम अपनी त्वचा की देखभाल अच्छी तरह से करें. सर्दियों में त्वचा को चमकदार बनाए रखने के लिए विशेष देखभाल की जरूरत होती है. हम आप को कुछ ऐसे उपाय बता रहे हैं, जो आप की त्वचा के लिए बेहद फायदेमंद हो सकते हैं:

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5. Winter Special: सर्दियों में रखें बालों का खास खयाल

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आप की त्वचा की तरह आप के बाल भी मौसम की मार झेलते हैं. चिलचिलाती गरमी बालों को बेहद रूखा बना देती है तो मौनसून की नमी उन की सतह पर फंगल इन्फैक्शन के खतरे को बढ़ा देती है. इस के बाद ठंड आने पर बाल काफी कमजोर और डल से हो जाते हैं.

ऐसे में आप अगर सर्दी के मौसम में अपने बालों की केयर के लिए निम्न खास तरीके अपनाएंगी तो आप अपने बालों को स्वस्थ और खूबसूरत रख सकती हैं.

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6. Winter Special: सर्दियां आते ही ड्राय स्किन और फटे होठ की प्रौब्लम को करें दूर

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सर्दियां आते ही ज्यादातर लोगों की त्वचा रूखी होने लग जाती है. त्वचा की नमी कहीं खो सी जाती है और त्वचा रूखी-बेजान नजर आने लगती है. त्वचा के साथ ही हमारे होंठ भी फटने शुरू हो जाते हैं. कई बार ये समस्या इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि होंठों से खून भी आना शुरू हो जाता है. ऐसे में बहुत जरूरी है कि हम अपनी त्वचा को लेकर फिक्रमंद रहें ताकि वो हमेशा खूबसूरत और जवां बनी रहे.

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7. Winter Special: सर्दियों में ऐसे करें नवजात की देखभाल

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नवजात शिशु परिवार के सभी सदस्यों के लिए खुशियां और आशा की नई किरण ले कर आता है. परिवार के सभी सदस्य उस के पालनपोषण का दायित्व खुशीखुशी लेते हैं और डाक्टर मां को सही राय देते हैं ताकि उस का शिशु स्वस्थ रहे.

गरमियों की तपिश के बाद जब सर्दी शुरू होती है तो लोग राहत महसूस करते हैं. पर सर्दी भी अपने साथ लाती है खुश्क हवाएं, खांसी और जुकाम जैसी कुछ तकलीफें, जिन से नवजात शिशु को खासतौर से बचाना चाहिए और उस की देखभाल में बहुत सावधानी बरतनी चाहिए.

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8. Winter Special: होंठों को दें नाजुक सी देखभाल

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चेहरे के सौंदर्य में खूबसूरत होंठों की बड़ी भूमिका होती है, मगर इस मौसम में चलने वाली सर्द हवाएं जहां शरीर के हर अंग की त्वचा को रूखा बना देती हैं, वहीं होंठों की नमी भी छीन लेती हैं. ऐसे में होंठों की त्वचा में दरारें पड़ने लगती हैं और कभी कभी खून भी निकलने लगता है, जिस से होंठों की कोमलता मुरझाने लगती है. यदि होंठों की सही देखभाल की जाए तो सर्दियों में भी इन्हें फटने से बचाया जा सकता है.

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9. Winter Special: सर्द मौसम में ऐसे करें अपने दिल की हिफाजत

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सर्दियों का मौसम और इस मौसम की सर्द हवाएं अपने साथ साथ आलस लेकर आती हैं. आलस की वजह से लोग अपने शरीर खासतौर से अपने दिल को तंदुरुस्त रखने पर ध्यान नहीं देते. जिसकी वजह से सबसे ज्‍यादा परेशानी उन लोगों को होती है जो दिल और फेफड़ों के मरीज हैं.

डाक्टरों का कहना है कि ठंडे मौसम की वजह से दिल की धमनियां सिकुड़ जाती हैं, जिससे दिल में रक्त और आक्सीजन का संचार कम होने लगता है. इससे हाइपरटेंशन और दिल के ब्लड प्रेशर के बढ़ने सम्बन्धी समस्या सामने आती है. ठंडे मौसम में ब्लड प्लेट्लेट्स ज्यादा सक्रिय और चिपचिपे होते हैं, इसलिए रक्त के थक्के जमने की आशंका भी बढ़ जाती है.

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10. Winter Special: बुनाई करते समय ध्यान रखें ये 7 टिप्स

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मौसम की फिज़ा में अब ठंडक घुलने लगी है कुछ समय पूर्व तक इस मौसम में महिलाओं के हाथ में ऊन और सलाइयां ही दिखतीं थीं. आजकल भले ही हाथ से बने स्वेटरों की अपेक्षा रेडीमेड स्वेटर का चलन अधिक है परन्तु स्वेटर बुनने की शौकीन महिलाओं के हाथ आज भी खुद को बुनाई करने से रोक नहीं पाते. रेडीमेड की अपेक्षा हाथ से बने स्वेटर अधिक गर्म और सुंदर होते हैं साथ ही इनमें जो अपनत्व और प्यार का भाव होता है वह रेडीमेड स्वेटर में कदापि नहीं मिलता परन्तु कई बार स्वेटर बनाने के बाद ढीला पड़ जाता है अथवा फिट नहीं हो पाता या फिर धुलने के बाद रोएं छोड़ देता है.

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मैंने ज़रा देर में जाना – भाग 2

“क्यों?”“पंडितजी ने कहा था कि दान देने से न सिर्फ़ इस जीवन में बल्कि अगले जन्म में भी कष्ट पास नहीं फटकते.”देखो एकता, तुम अपने पर कितना भी खर्च करो, मुझे एतराज नहीं. एतराज़ तो छोड़ो बल्कि मैं तो चाहता हूं कि तुम मौजमस्ती करो और खूब खुश रहो. लेकिन तुम्हारा यों पंडितजी की बातों में आ कर व्यर्थ ही पैसलुटा देना सही नहीं लग रहा मुझे तो.”“ग्रुप में फ्रैंड्स को क्या जवाब दूंगी?” मुंह बनाते हुए एकता ने पूछा. “मेरे विचार से तुम्हें उन लोगों को भी सही दिशा दिखानी चाहिए.” प्रतीक की इस बात को सुन एकता निरुत्तर हो गई.

ग्रुप की महिलाएं रुपएपैसे के अतिरिक्त फल, अनाज व मिठाइयां भी पंडितजी को दिया करती थीं लेकिन एकता मन मसोस कर रह जाती. एकता के बारबार कहने पर भी प्रतीक का दान देने की बात पर नानुकुर करना उसे रास नहीं आ रहा था. आर्थिक स्तर पर अपने से निम्न संबंधियों से प्रतीक का मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखना, मेड को पुराने कपड़े, खाना व कम्बल आदि देने को कहना तथा ड्राइवर के बेटे की पुस्तकें खरीदना एकता को असमंजस में डाल रहा था. दूसरों की मदद को सदैव तत्पर प्रतीक दानपुण्य के नाम से क्यों बिफर उठता है, इस प्रश्न का उत्तर उसे नहीं मिल पा रहा था.

शंभूनाथजी ने व्हाट्सऐप ग्रुप बना लिया था. उस पर वे विभिन्न अवसरों, तीजत्योहारों आदि पर दान देने के मैसेज डालने लगे थे. प्रत्येक मैसेज के साथ दान की महत्ता बताई जाती. सुख, शांति व पापों से मुक्ति इन सभी के लिए दानदक्षिणा को अपनी दिनचर्या में सम्मिलित करना बताया जाता. ग्रुप की सभी महिलाओं के बीच होड़ सी लग जाती कि कौन शंभूनाथजी को अधिक से अधिक दान दे कर न केवल स्वयं को, बल्कि परिवार को भी पापों से मुक्ति दिलवाने का महान प्रयास कर रहा है. एकता भी इस से अछूती न रही. प्रतीक से किसी न किसी बहाने पैसे मांग कर वह पंडितजी को दे देती थी. मन ही मन इस के लिए वह अपने को दोषी भी नहीं मानती थी, क्योंकि उस का विचार था कि इस से प्रतीक पर भी कष्ट नहीं आएंगे. सत्संग में विभिन्न कथाएं सुन कर वह भयभीत हो जाती कि विपरीत भाग्य होने पर किसी व्यक्ति को कैसेकैसे कष्ट झेलने पड़ते हैं. मन ही मन वह उन सखियों का धन्यवाद करती जिन के कारण वह पंडितजी के संपर्क में आई थी, वरना नरक में जाने से कौन रोकता उसे.

 

उस दिन प्रतीक औफ़िस से लौटा तो चेहरे की आभा देखते ही एकता समझ गई कि कोई प्रसन्नता का समाचार सुनने को मिलेगा. यह सच भी था. प्रतीक को कंपनी की ओर से प्रमोशन मिला था. शाम की चाय पी कर प्रतीक एकता को घर से दूर कुछ दिनों पहले बने एक फ़ाइवस्टार होटल में ले गया. कैंडल लाइट डिनर में एकदूसरे की उपस्थिति को आत्मसात करते हुए दोनों भविष्य के नए सपने बुन रहे थे. प्रतीक ने बताया कि अब वह एक आलीशान फ़्लैट खरीदने का मन बना चुका है. ख़ुशी से एकता का अंगअंग मुसकराने लगा. खाने के बाद प्रतीक डिज़र्ट मंगवाने के लिए मैन्यू देखने लगा तो एकता ने मोबाइल पर मैसेजेस पढ़ने शुरू कर दिए. सत्संग ग्रुप में आज शंभूनाथजी ने जिस विषय पर पोस्ट डाली थी वह था कि किस प्रकार खुशियों को कभीकभी बुरी नज़र लग जाती है और काम बनतेबनते बिगड़ने लगते हैं. ऐसे में कुछ रुपए या सामान द्वारा नज़र उतार कर दान कर देना चाहिए. इस से नज़र का बुरा असर उस वस्तु के साथ दानपात्र के पास चला जाता है. ग्रुप में कई महिलाओं ने अपने अनुभव बांटे थे कि कैसे जीवन में कुछ अच्छा होते ही अचानक उन के साथ अप्रिय घटना घट गई थी.

 

“ओहो, कब से आ रहा है बुखार? टैस्ट की रिपोर्ट्स कब तक मिलेंगी?” प्रतीक की आवाज़ कानों में पड़ी तो एकता ने अपना मोबाइल पर्स में रख दिया. प्रतीक के मोबाइल पर बड़ी बहन प्रियंका ने कौल किया था, उससे ही बात हो रही थी प्रतीक की. प्रियंका आर्थिक रूप से बहुत संपन्न नहीं थी, लेकिन वह या उस का पति मुकेश अपनी स्थिति सुधारने के लिए कोई प्रयास भी करते तो वह केवल परिचितों से पैसे मांगने तक ही सीमित था. पेशे से इलैक्ट्रिक इंजीनियर मुकेश की कुछ वर्षों पहले नौकरी चली गई थी. मुकेश उस समय बिजली का सामान बेचने का व्यवसाय शुरू करना चाहता था, जिस में प्रतीक ने आर्थिक रूप से मदद कर व्यवसाय शुरू करवा दिया था. कुछ समय तक सब ठीक रहा लेकिन मुकेश बाद में कहने लगा कि इस बिज़नैस में ख़ास कमाई नहीं हो रही और अब एक अंतराल के बाद नौकरी लगना भी मुश्किल है. ऐसे में प्रियंका बारबार अपने को दयनीय स्थिति में बता कर पैसों की मांग करने लगती थी. प्रतीक के बड़े भाई की आमदनी अधिक नहीं थी और छोटे की तुलना में भी प्रतीक की सैलरी ही अधिक थी तो सारी आशाएं प्रतीक पर आ कर टिक जाती थीं. प्रतीक यथासंभव मदद भी करता रहता था. आज प्रियंका का फ़ोन आया तो एकता की सांस ठहर गई. वह समझ गई थी कि कोई नई मांग की होगी प्रियंका दीदी ने. उसे पंडितजी का मैसेज याद आ रहा था कि खुशियों को कभीकभी बुरी नज़र लग जाती है. कुछ देर पहले वह फ़्लैट लेने की योजना बनाते हुए कितनी खुश थी. अब प्रियंका की आर्थिक मदद करनी पड़ेगी तो पता नहीं प्रतीक फ़्लैट लेने की बात कब तक के लिए टाल देगा. उस ने घर पहुंच कर नज़र उतार कुछ रुपए शंभूनाथजी को देने का मन बना लिया क्योंकि भोगविलास से दूर भक्ति में लीन साधारण जीवन जीने वाला उन जैसा व्यक्ति ही ऐसे दान का पात्र हो सकता है. शंभूनाथजी दान का पैसा कल्याण में ही लगा रहे होंगे, इस बात पर पूरा भरोसा था उसे.

प्रतीक को प्रियंका से बात करते देख एकता ने प्रतीक की पसंदीदा पानफ्लेवर की आइसक्रीम मंगवा ली.

“दीदी ने किया था कौल?” आइसक्रीम की स्पून मुंह में रखते हुए एकता ने पूछा.

“हां, घर चल कर बात करेंगे.” प्रतीक जैसे किसी निर्णय पर पहुंचने का प्रयास कर रहा था.

आइसक्रीम के स्वाद और विचारों में डूबे हुए अचानक एकता का ध्यान सामने वाली टेबल पर चला गया. उसे अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि वहां शंभूनाथजी विभिन्न व्यंजनों का आनंद ले रहे थे. सत्संग के दौरान दिखने वाले रूप से विपरीत वे धोतीकुरते के स्थान पर जींस और टीशर्ट पहने थे, चेहरे पर प्रवचन देते समय खिली हुई मंदमंद मुसकान ज़ोरदार ठहाकों में बदली हुई थी. अपने को संन्यासी संत बताने वाले शंभूनाथजी के पास वाली कुरसी पर एक महिला उन से सट कर बैठी थी. तभी वेटर ने महिला के सामने प्लेट में सजा केक रख दिया. शंभूनाथजी ने महिला का हाथ पकड़ कर केक कटवाया और हौले से ‘हैप्पी बर्थडे’ जैसा कुछ कहा. जब अपने हाथ से केक का टुकड़ा उठा कर शंभूनाथजी ने महिला के मुंह में डाला तो एकता की आंखें फटी की फटी रह गईं. उत्साह और अनुराग शंभूनाथ व महिला पर तारी था. ‘तो यह है कल्याणकारी काम जिस पर शंभूनाथजी दान का रुपयापैसा खर्च करते हैं,’ यह सोच कर एकता सकते में आ गई.

घर लौटने पर प्रतीक ने फ़ोन के बारे में बताया. एकता का संदेह सच निकला. प्रियंका ने इस बार बताया था कि मुकेश की अस्वस्थता के कारण वे मकान का किराया नहीं दे सके. मकान मालिक परेशान कर रहा है, माह का सारा वेतन दवाइयों में खर्च हो गया.

“तो कितने पैसे भेजने पड़ेंगे उन लोगों को?” एकता रोंआसी थी.

“बहुत हुआ, बस. अब नहीं,” प्रतीक छूटते ही बोला.

 

“मतलब, इस बार आप कुछ पैसे नहीं…”

“हां, बहुत मदद की है मैं ने दीदी, जीजाजी की. ये लोग स्वयं पर बेचारे का ठप्पा लगवा कर उस का फ़ायदा उठा रहे हैं.” एकता की बात पूरी होने से पहले ही प्रतीक बोल उठा था, “बुरे वक़्त में किसी से मदद मांगना अलग बात है लेकिन दूसरों की कमाई पर नज़र रख अपने को असहाय दिखाते हुए दूसरों से पैसे ऐंठना और बात. पता है तुम्हें, पिछले साल जब मैं औफ़िशियल टूर पर अहमदाबाद गया तो था प्रियंका के घर रुका था एक दिन के लिए.”

“हां, याद है,” छोटा सा उत्तर दे कर एकता आगे की बात जानने के लिए टकटकी लगाए प्रतीक को देख रही थी.

नींद: मनोज का रति से क्या था रिश्ता- भाग 2

मनोज को कुछ उत्सुकता सी होने लगी कि आखिर यह कौन है और उस से चाहती क्या है?

कुछ देर बाद चाय, नाश्ता हो गया. फोटो, खबर और सूचना ले कर एकएक कर के सभी प्रैस रिपोर्टर विदा ले कर चले भी गए. पर रति तो अब भी वहीं पर थी. अब मनोज को अकेला पा कर वह उस के पास आई और बेबाक हो कर बोली, ‘‘आप से बस 2 मिनट बात करनी है.”

‘‘हां… हां, जरूर कहिए,‘‘ कह कर मनोज ने पूरी सहमति दी.

‘‘जी, मेरा नाम रति है और मुझे आप की फैक्टरी में काम चाहिए.‘‘

‘‘काम चाहिए, पर अभी तो यहां स्टाफ एकदम पूरा है,‘‘ मनोज ने जवाब दिया.

‘‘जी, किसी तरह 4-5 घंटे का काम दे दीजिए. आप अगर चाहें तो मैं एक आइडिया दूं.‘‘

‘‘हां… हां, जरूर,‘‘ मनोज ने उत्सुकता से कहा, तो वह झट से बोली थी, ‘‘आप अपनी फैक्टरी और इस गोदाम की छत पर सब्जियांफूल उगाने का काम दे दीजिए.‘‘

‘‘अरे… अरे, ओह्ह,‘‘ कह कर मनोज हंसने लगा. वह रति की देह को बड़े ही गौर से देख कर यह प्रतिक्रिया दे बैठा, क्योंकि उस का मन यह मानने को तैयार नहीं था कि रति यह सब कर सकती है.

‘‘हां… हां, क्यों नहीं,” मनोज ने कहा.

“आप इतने मनमोहक पौधों का पौधारोपण करा रहे हो. प्रकृति से तो आप को खूब प्यार होगा. मेरा मन तो यही कहता है,‘‘ ऐसा बोलते समय रति ने भांप लिया था कि मनोज खुश हो गया है.

अब उस के इसी खुश मूड को ताड़ कर वह बोली, ‘‘जी, आप मेरा भरोसा कीजिए. मैं बाजार में बिकवा कर इन की लागत भी दिलवा सकती हूं. और तो और यह तो पक्का है कि आप को मुनाफा ही होगा.‘‘

रति ने कुछ ऐसी कशिश के साथ यह बात कही कि मनोज मान गया.

मनोज को इतना भी पैसे का लालच नहीं था, पर रति का आत्मविश्वास और उस की मनमोहक अदा ने मनोज को उसी समय उस का मुरीद बना दिया था.

उस ने अगले दिन रति को फिर बुलाया और कुछ नियमशर्तों के साथ काम दे दिया. 3 सहायक उस के साथ लगा दिए गए.

बस वह दिन और आज का दिन, रति कभी बैगन, कभी लाल टमाटर, हरी मिर्च, पालक, धनिया वगैरह ला कर दिखाती रहती.

मनोज भी खुश था कि जरा सी लागत में खूब अच्छी सब्जी और फूल खिल रहे थे.

पिछले दिनों रति के इसी कारनामे के कारण मनोज को पर्यावरण मित्र पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका था. पूरे शहर में आज बस उस की ही फैक्टरी थी, जो हरियाली से लबालब थी. आएदिन कोई न कोई फोटोग्राफी की वर्कशौप भी वहीं छत पर होने लगी थी.

रति तो उस के लिए बहुत काम की साबित हो रही थी. यही बात उस ने रति की पीठ पर इत्र की बोतल उडे़लते हुए एक दिन उस से कह दी थी. उस पल अपने अनावृत बदन को उस के सीने में छिपाते हुए रति ने आंखें बंद कर के कहा था, ‘‘बस ये मान लो मनोज कि जिंदगी को जुआ समझ कर खेल रही हूं.

‘‘यह जो मन है ना मनोज, इस के सपने खंडित होना नहीं चाहते. खंडित सपने की नींव पर नया सपना अंकुरित हो जाता है. मैं करूं भी तो क्या. तुम हो तो तुम्हारे दामन में निश्चिंत हूं, आने वाले पल में कब क्या होगा, मैं खुद भी नहीं जानती.’’

उस दिन रति ने उस के सामने अपनी देह के साथ जीवन के भी राज खोल दिए थे. सूखे कुएं की मुंडेर पर अपने मटके लिए वो 7 साल से किसी अभिशाप को ढो रही थी.

पहलेपहले तो पति बाहर कहीं भी जाते थे, तो रति को ताला लगा कर बंद कर के जाते थे. फिर उस ने उन को उन के तरीके से जीतना शुरू किया. वह उन के इस दो कौड़ी के दर्शन को बारबार सराहने लगी. उन को उकसाने लगी कि आप को सारी दुनिया में अपनी बातें फैलानी चाहिए.

दार्शनिक और सनकी पति को सुधारने में समय तो जरूर लगा, पर रति का काम बन गया. इसलिए अब वही हो रहा है जो रति चाहती है. पति बाहर ही रहते हैं और रति को आजादी वापस मिल गई है. कितनी प्यारी है ये आजादी. जितनी सांसें हैं अपने तरीके से जीने की आजादी.

रति को एक हमदर्द चाहिए था. एक अपना जो रोते समय उस की गरदन को कंधा दे सके.

दिन बीतते रहे. हौलेहौले वह जान गया था कि रति को नौकरी नहीं बस मनोज चाहिए था. एक पागल और जिद्दी पति और उस के चिंतन से आजिज आ चुकी रति ने एक बार एक चैनल के साक्षात्कार में मनोज को देखा तो बस उस को हासिल करने की ठान ही ली थी.

पति के दर्शन और ज्ञानभरी बातों से वह दिनभर ऊब जाती थी. नौकरी तो बहाना था. उस को अब इस जीवन में कुछ घंटे हर दिन मनोज का साथ चाहिए था.

मनोज को वह दिन रहरह याद आ रहा था, जब पहली बार रति उस को अपने घर ले गई थी. उस दिन रति के पति नहीं थे, पर वहां नौकरचाकर थे. सबकुछ था. कितनी सुखसुविधाओं से लवरेज था उस का आलीशान बंगला. मगर, उस के घर पर अजीब सी खामोशी थी. पर, मनोज को इस से कुछ खास फर्क नहीं पड़ता था. रति उसे बिंदास अपने घर पर भी उतना ही हक दे रही थी, जितना वह मनोज को अपनी नशीली, मादक देह पर कुछ दिन पहले दे चुकी थी.

उस दिन जब वह रति से उस के घर पर मिल कर लौट रहा था, तब यही सोच रहा था कि उस की भी तो कोई चाहत है, कोई रंग उस को भी तो चाहिए ही. अब वह और रमा हमउम्र हैं, ठीक है. रमा को जीवन में आराम चाहिए, करे. पूरी तरह आराम कर. पर उस को तो रंगीन और जवान जिंदगी चाहिए. इधर रति खुद एक लता सी किसी शाख का सहारा चाहती थी ना. बस हो गया. एक तरह से वह रति पर अहसान कर रहा था और उस का काम भी चल रहा था.

यही सोचतसोचता वह घर पहुंच गया था. वह जैसे ही भीतर आया, किसी पेनकिलर मलहम की तेज महक उस की नाक में घुसी और उस के कदम की आहट सुन कर रमा की आवाज आई, ‘‘मनोज आ गए तुम. खाना रखा है. प्लीज, खा लो. मैं तो बस जरा लेटी हूं. अब इस दर्द में बिलकुल उठा नहीं जा रहा.‘‘

‘‘हां… हां रमा, ठीक है. तुम आराम करो, सो जाओ,‘‘ कह कर वह बाथरूम में घुस गया.

मनोज बखूबी जानता है कि रमा की नींद रूई से भी हलकी है. कभी लगता है कि उस की नींद में भाप भरी होती है. रमा कभी बेसुध नहीं रहती, कभी चैन की नींद नहीं सोती. ज्यों ही खटका होता है, उस के होने के पहले ही जाग उठती है.
रमा भी अजीब है. इस की यह चेतना सदैव चौकन्नी रहती है. उस को याद है, जब बेटा स्कूल में पढ़ रहा था. परीक्षा के लिए रमा ही उस के साथ रातबिरात जागती थी. तब भी वह बेखबर सोया रहता. पर, रमा उस की एक आहट से जाग जाती और उस को चायकौफी बना कर दे देती थी. तब भी वो कमसिन रमा को झट से जागते, काम करते केवल चुपके से देखता था, दूर से उस को एकटक निहारता था. पर बिस्तर से जाग कर खुद काम नहीं करता था. कभी नहीं.

अब बेटा विदेश में पढ़ रहा है, नौकरी कर के वहीं बस जाएगा, ऐसा उस का फैसला है.

पारिवारिक सुगंध – भाग 2 : परिवार का महत्व

आज इस करोड़पति इनसान का इकलौता बेटा 2 कमरों के एक साधारण से किराए वाले फ्लैट में अपनी पत्नी शिखा के साथ रह रहा था. नर्सिंग होम से सीधे घर न जा कर मैं उसी के फ्लैट पर पहुंचा.

नवीन और शिखा दोनों मेरी बहुत इज्जत करते थे. इन दोनों ने प्रेम विवाह किया था. साधारण से घर की बेटी को चोपड़ा ने अपनी बहू बनाने से साफ मना कर दिया, तो इन्होंने कोर्ट मैरिज कर ली थी.

चोपड़ा की नाराजगी को नजरअंदाज करते हुए मैं ने इन दोनों का साथ दिया था. इसी कारण ये दोनों मुझे भरपूर सम्मान देते थे.

चोपड़ा को दिल का दौरा पड़ने की चर्चा शुरू हुई, तो नवीन उत्तेजित लहजे में बोला, ‘‘चाचाजी, यह तो होना ही था.’’ रोजरोज की शराब और दौलत कमाने के जनून के चलते उन्हें दिल का दौरा कैसे न पड़ता?

‘‘और इस बीमार हालत में भी उन का घमंडी व्यवहार जरा भी नहीं बदला है. शिखा उन से मिलने पहुंची तो उसे डांट कर कमरे से बाहर निकाल दिया. उन के जैसा खुंदकी और अकड़ू इनसान शायद ही दूसरा हो.’’

‘‘बेटे, बड़ों की बातों का बुरा नहीं मानते और ऐसे कठिन समय में तो उन्हें अकेलापन मत महसूस होने दो. वह दिल का बुरा नहीं है,’’ मैं उन्हें देर तक ऐसी बातें समझाने के बाद जब वहां से उठा तो मन बड़ा भारी सा हो रहा था.

चोपड़ा ने यों तो नवीन को पूरी स्वतंत्रता से ऐश करने की छूट हमेशा दी, पर जब दोनों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई तो बाप ने बेटे को दबा कर अपनी चलानी चाही थी.

जिस घटना ने नवीन के जीवन की दिशा को बदला, वह लगभग 3 साल पहले घटी थी.

उस दिन मेरे बेटे विवेक का जन्मदिन था. नवीन उसे नए मोबाइल फोन का उपहार देने के लिए अपने साथ बाजार ले गया.

वहां दौलत की अकड़ से बिगडे़ नवीन की 1 फोन पर नीयत खराब हो गई. विवेक के लिए फोन खरीदने के बाद जब दोनों बाहर निकलने के लिए आए तो शोरूम के सुरक्षा अधिकारी ने उसे रंगेहाथों पकड़ जेब से चोरी का मोबाइल बरामद कर लिया.

‘गलती से फोन जेब में रह गया है. मैं ऐसे 10 फोन खरीद सकता हूं. मुझे चोर कहने की तुम सब हिम्मत कैसे कर रहे हो,’ गुस्से से भरे नवीन ने ऐसा आक्रामक रुख अपनाया, पर वे लोग डरे नहीं.

मामला तब ज्यादा गंभीर हो गया जब नवीन ने सुरक्षा अधिकारी पर तैश में आ कर हाथ छोड़ दिया.

उन लोगों ने पहले जम कर नवीन की पिटाई की और फिर पुलिस बुला ली. बीचबचाव करने का प्रयास कर रहे विवेक की कमीज भी इस हाथापाई में फट गई थी.

पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहीं पर चोपड़ा और मैं भी पहुंचे. मैं सारा मामला रफादफा करना चाहता था क्योंकि विवेक ने सारी सचाई मुझ से अकेले में बता दी थी, लेकिन चोपड़ा गुस्से से पागल हो रहा था. उस के मुंह से निकल रही गालियों व धमकियों के चलते मामला बिगड़ता जा रहा था.

उस शोरूम का मालिक भी रुतबेदार आदमी था. वह चोपड़ा की अमीरी से प्रभावित हुए बिना पुलिस केस बनाने पर तुल गया.

एक अच्छी बात यह थी कि थाने का इंचार्ज मुझे जानता था. उस के परिवार के लोग मेरे दवाखाने पर छोटीबड़ी बीमारियों का इलाज कराने आते थे.

उस की आंखों में मेरे लिए शर्मलिहाज के भाव न होते तो उस दिन बात बिगड़ती ही चली जाती. वह चोपड़ा जैसे घमंडी और बदतमीज इनसान को सही सबक सिखाने के लिए शोरूम के मालिक का साथ जरूर देता, पर मेरे कारण उस ने दोनों पक्षों को समझौता करने के लिए मजबूर कर दिया.

हां, इतना उस ने जरूर किया कि उस के इशारे पर 2 सिपाहियों ने अकेले में नवीन की पिटाई जरूर की.

‘बाप की दौलत का तुझे ऐसा घमंड है कि पुलिस का खौफ भी तेरे मन से उठ गया है. आज चोरी की है, कल रेप और मर्डर करेगा. कम से कम इतना तो पुलिस की आवभगत का स्वाद इस बार चख जा कि कल को ज्यादा बड़ा अपराध करने से पहले तू दो बार जरूर सोचे.’

मेरे बेटे की मौजूदगी में उन 2 पुलिस वालों ने नवीन के मन में पुलिस का डर पैदा करने के लिए उस की अच्छीखासी धुनाई की थी.

उस घटना के बाद नवीन एकाएक उदास और सुस्त सा हो गया था. हम सब उसे खूब समझाते, पर वह अपने पुराने रूप में नहीं लौट पाया था.

फिर एक दिन उस ने घोषणा की, ‘मैं एम.बी.ए. करने जा रहा हूं. मुझे प्रापर्टी डीलर नहीं बनना है.’

यह सुन कर चोपड़ा आगबबूला हो उठा और बोला, ‘क्या करेगा एम.बी.ए. कर के? 10-20 हजार की नौकरी?’

‘इज्जत से कमाए गए इतने रुपए भी जिंदगी चलाने को बहुत होते हैं.’

‘क्या मतलब है तेरा? क्या मैं डाका डालता हूं? धोखाधड़ी कर के दौलत कमा रहा हूं?’

‘मुझे आप के साथ काम नहीं करना है,’ यों जिद पकड़ कर नवीन ने अपने पिता की कोई दलील नहीं सुनी थी.

बाद में मुझ से अकेले में उस ने अपने दिल के भावों को बताया था, ‘चाचाजी, उस दिन थाने में पुलिस वालों के हाथों बेइज्जत होने से मुझे मेरे पिताजी की दौलत नहीं बचा पाई थी. एक प्रापर्टी डीलर का बेटा होने के कारण उलटे वे मुझे बदमाश ही मान बैठे थे और मुझ पर हाथ उठाने में उन्हें जरा भी हिचक नहीं हो रही थी.

‘दूसरी तरफ आप के बेटे विवेक के साथ उन्होंने न गालीगलौज की, न मारपीट. क्यों उस के साथ भिन्न व्यवहार किया गया? सिर्फ आप के अच्छे नाम और इज्जत ने उस की रक्षा की थी.

‘मैं जब भी उस दिन अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को याद करता हूं, तो मन शर्म व आत्मग्लानि से भर जाता है. मैं आगे इज्जत से जीना चाहता हूं…बिलकुल आप की तरह, चाचाजी.’

अब मैं उस से क्या कहता? उस के मन को बदलने की मैं ने कोशिश नहीं की. चोपड़ा ने उसे काफी डराया- धमकाया, पर नवीन ने एम.बी.ए. में प्रवेश ले ही लिया.

इन बापबेटे के बीच टकराव की स्थिति आगे भी बनी रही. नवीन बिलकुल बदल गया था. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलने में उसे बिलकुल रुचि नहीं रही थी. किसी भी तरह से बस, दौलत कमाना उस के जीवन का लक्ष्य नहीं रहा था.

फिर उसे अपने साथ पढ़ने वाली शिखा से प्यार हो गया. वह शिखा से शादी करना चाहता है, यह बात सुन कर चोपड़ा बेहद नाराज हुआ था.

‘अगर इस लड़के ने मेरी इच्छा के खिलाफ जा कर शादी की तो मैं इस से कोई संबंध नहीं रखूंगा. फूटी कौड़ी नहीं मिलेगी इसे मेरी दौलत की,’ ऐसी धमकियां सुन कर मैं काफी चिंतित हो उठा था.

दूसरी तरफ नवीन शिखा का ही जीवनसाथी बनना चाहता था. उस ने प्रेमविवाह करने का फैसला किया और पिता की दौलत को ठुकरा दिया.

नवीन और शिखा ने कोर्ट मैरिज की तो मेरी पत्नी और मैं उन की शादी के गवाह बने थे. इस बात से चोपड़ा हम दोनों से नाराज हो गया पर मैं क्या करता? जिस नवीन को मैं ने गोद में खिलाया था, उसे कठिन समय में बिलकुल अकेला छोड़ देने को मेरा दिल राजी नहीं हुआ था.

नवीन और शिखा दोनों नौकरी कर रहे थे. शिखा एक सुघड़ गृहिणी निकली. अपनी गृहस्थी वह बड़े सुचारु ढंग से चलाने लगी. चोपड़ा ने अपनी नाराजगी छोड़ कर उसे अपना लिया होता तो यह लड़की उस की कोठी में हंसीखुशी की बहार निश्चित ले आती.

चोपड़ा ने मेरे घर आना बंद कर दिया. कभी किसी समारोह में हमारा आमनासामना हो जाता तो वह बड़ा खिंचाखिंचा सा हो जाता. मैं संबंधों को सामान्य व सहज बनाने का प्रयास शुरू करता, तो वह कोई भी बहाना बना कर मेरे पास से हट जाता.

वकीलनी-भाग3 : अमीरों को जाल में फंसाती श्यामा

वह घबरा सी गई, ‘‘वकील साहब ही उस समय बुलाते हैं.’’ मैं ने कहा, ‘‘पर यह समय तो अदालत का होता है. वह यहां कैसे रहते हैं?’’मैडम जिस दिन साहब के केस नहीं होते. उसी दिन बुलाते हैं.’’

‘‘यानी वे तुम्हें फोन करते हैं. आमतौर पर क्लाइंट ही फोन करते हैं वकीलों को,’’ मैं ने कड़क आवाज में पूछा. ये आवाज मैं ने अपने ससुर से सीख ली थी.

‘‘जीजी वे मु?ो अच्छे लगते हैं, इसलिए मैं उन की डायरी देखती रहती थी और उस दिन आती थी जिस दिन उन का अदालत में केस न हो,’’ वह सफाई देती बोली.

‘‘अभी तो तुम कह रही थी कि सुयश तुम्हें फोन कर के बुलाते हैं. अब उलटा कह रही हो. यह ?ाठ क्यों बोल रही हो,’’ मैं ने अपनी आवाज कड़क बनाए रखते हुए पूछा.

‘‘जीजी, कभी मैं फोन करती थी तो वे इस समय बुला लेते थे.’’

‘‘ये बुला लेते थे या तुम धमक जाती थी? सच बोलो?’’

‘‘नहीं मैडम मैं सच कह रही हूं. मैं तो वैसे ही रेप की मारी हूं. समाज में मेरी कोई इज्जत नहीं है. मैं भला किस खेत की मूली हूं,’’ वह रोआंसे शक्ल में बोली.

‘‘अच्छा अपना मोबाइल दो,’’ मैं ने उस का मोबाइल देते हुए कहा.

अब वह चौकन्नी हो गई. उसे पता लग गया कि मैं ने कुछ पकड़ा है. क्या, यह मु?ो नहीं मालूम. वह मु?ा से मोबाइल छीनने बढ़ी ही थी कि मैं ने डपट कर कहा, ‘‘चुप बैठ जाओ. साहब की असिस्टैंट और स्टाफ यहीं है. मेरे बुलाते ही आ जाएंगे.’’

अब वह अचानक रोने लगी, ‘‘मैडम साहब से हमें बचा लो. साहब हमें छेड़ते हैं कि हम उन के साथ सोएं वरना केस खराब कर देंगे… मोबाइल में देख लो. उन की रिकौर्डिंग की है.’’

अब मु?ो सम?ा आ गया कि सुयश इन दिनों क्यों परेशान दिखते हैं. यह औरत बहुत चालू है. इस ने रतन सिंह को फंसा दिया और अब सुसश से मुक्त में काम कराना चाहती है. उन्हें ब्लैकमेल कर रही है.

मैं ने श्यामा के फोन को देखा. उस पर पासवर्ड नहीं था. मैं ने देखा कि लास्ट कौल ‘वकील

जानू’ के नाम से दर्ज थी. मैं ने बटन दबा दिया और स्पीकर चालू कर दिया.

‘‘श्यामा यह क्या मखौल कर रही हो. जानती हो, तुम मु?ो ब्लैकमेल कर रही हो. वकील से उल?ाना ठीक नहीं. मैं ने तुम्हें ढील दी, बेचारी सम?ा कर, अब तुम मु?ा पर औडियो के नाम पर तोहमत लगा रही हो. मेरे पत्नी मीनाक्षी को पता चल गया तो बहुत बुरा होगा.’’

सुयश सोच रहे थे कि श्यामा ने बाहर जा कर उसे फोन करा है. मैं ने जोर से कहा, ‘‘सुयश, मैं मीनाक्षी. तुरंत बैडरूम में आओ. आशा और महिमा को भी ले आओ.’’

‘‘तुम्हारे पास श्यामा का फोन वैसे?’’ सुयश चकरा गए. फिर 1 मिनट में तीनों बैडरूम में थे.

मैं जानती थी कि अब मु?ो श्यामा को एक क्षण भी सफाई नहीं देने देनी है. मैं ने डपट कर कहा, ‘‘श्यामा खैरीयत इसी में है कि तुम सबकुछ उगल दो वरना तुम्हारी लाश भी घर से बाहर नहीं जाएगी. जानती हो न सुयश के डैड एसपी रह चुके हैं. उन के  हाथ बहुत लंबे हैं. तुम मेरी आड़ में सुयश के भोलेपन का फायदा उठा रही थी. मैं ही उस से कहती थी कि हमारे देश में रेप विक्टिम को कोई हैल्प नहीं करता. उन्हें समाज भी सपोट नहीं करता, फैमिली भी नहीं. कानून तो करे न्याय उन के साथ. तुम ?ाठे मुकदमे दायर करने में सुयश को पार्टनर बनाना चाहती थी या नहीं?’’

आखिरी बात मेरी अपनी थी, बिना किसी आधार के. पर लगा कि यह तीर सही जगह पर लगा. श्यामा गिर कर रोने लगी, ‘‘हां, मैडम मेरा ही दोष है. मैं ही वकील साहब को इस्तेमाल करने की कोशिश कर रही थी. मैं तो वीडियो बना रही थी जब इन्होंने रोक लिया और मु?ो कमरे से भगा दिया जब आप ने मु?ो देखा था… मु?ो माफ  कर दो.’’

सुयश मुंह खोले सारा तमाशा देख रहे थे. श्यामा और बहुत कुछ बक रही थी. आशा और महिमा ने भी कई बातें बताईं.

मैं ने उस का सारा बयान उसी के मोबाइल पर रिकौर्ड कर लिया और अपनी 2 सहेलियों को भेज दिया जिन से अकसर फील्ड इंटरव्यू शेयर किया करती थी. श्यामा सम?ा गई थी. दहाड़ें मारमार कर रो रही थी.

‘सुयश तुम इस की फाइल वापस करो. यह लड़की किसी सिंपैथी की हकदार नहीं है.’’

अब पासा पलट चुका था. सुयश के चेहरे पर रौनक वापस आने लगी थी.

अगली रात जब श्यामा का किस्सा निबट गया तो सुयश बोले, ‘‘मीनाक्षी तुम

स्कूल छोड़ दो. मु?ो भरोसा है कि अब डैड की इनकम पर नहीं हम दोनों अपनी इनकम पर जी सकते हैं.’’

मैं अंचभे में सुयश का मुंह देखने लगी,‘‘हां हमारा बोर्ड होगा- ‘सुयश ऐंड मीनाक्षी कंपनी’ सुयश एलएलवी, एडवोकेट ऐंड मीनाक्षी सोशियोलौजिस्ट एडवाइजर स्पैशलिस्ट इन वूमन… हमारा मुकाबला कोई नहीं कर पाएगा. तुम सीनियर एडवाइजर, मैं जूनियर वकील.’’

मैं कुछ कहती, इस से पहले सुयश बोले ‘आईएम सौरी फौर विहेविंग नैस्टिली अर्लियर. यू आर ए जैम.’ तुम्हारे बगैर अधूरे हैं हम दो.

मैं ने कहा, ‘‘हां हम 2 नहीं 3.’’ और फिर पेट पर हौले से हाथ फेरा. सुयश खुशी से चिल्लाए, ‘‘आहवाह, क्या अच्छी खबर है, एक और वकील घर में.’’

‘‘कभी नहीं. मैं उसे कभी वकील नहीं बनने दूंगी. न जाने कौन श्यामा या रतन सिंह पल्ले पड़ जाए,’’ वह रात हमारी असली हनीमून की थी.

वकीलनी-भाग2 : अमीरों को जाल में फंसाती श्यामा

‘‘हां, श्यामा तो जिस समय रतन सिंह तुम्हारे खेत पर आया, तब तुम क्या रही थी?’’

मुवक्किला चुप थी. मैं ने थोड़ा सा परदा उठा कर उस स्त्री को देखा जिस को बलात्कार के मुकदमे में मेरे पति अदालत में दिया जाने वाला बयान सिखला रहे थे.

‘‘हां, बोलो, क्या कहोगी?’’

‘‘साहब, उस समय मैं खेत पर नहीं थी.’‘‘नहीं, श्यामा, यह बयान नहीं चलेगा. मुकदमा हारना है क्या? पुलिस में लिखे बयान को भूल जाओ. तुम्हें तो यह कहना है कि उस समय मैं खेत पर थी और तभी रतन सिंह…

‘‘ठीक है, साहब.’’

रात को मैं ने सुयश पति से पूछा, ‘‘क्यों, तुम्हारा यह सुबह वाला बलात्कार का मुकदमा सच्चा है या ?ाठा? किसी को फंसा तो नहीं रहे हो?’’

ये चौंक कर बोले, ‘‘लगता है तुम्हारी इस मुकदमे में काफी रुचि पैदा हो गई है.’’

‘‘नहींनहीं, भला मैं इस में क्यों रुचि लेने लगी? मैं तो यों ही जिज्ञासा शांत कर रही हूं.’’

ये सुन कर यह हंसने लगे. फिर कुछ देर बाद बोले, ‘‘मुकदमा तो एकदम सच्चा है, पर इन

लोगों ने आरंभ में पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराते समय अपने बयान बिगाड़ दिए हैं. उन्हें सुधारना तो पड़ेगा ही.’’

‘‘जब इतनी बड़ी गलती हुई है तो तुम कैसे मुकदमा जीतोगे?’’

‘‘अरे, तुम तो वकील और न्यायाधीश की भी बाप हो गईं. यह धंधा तो ऐसा है कि जहां बूंद भर पानी न हो, वहां समुद्र साबित करना पड़ता है.’’

उस समय मेरी सलाह को इन्होंने हवा में उड़ा दिया था.

एक बार मैं ने पूछा था, ‘‘जिंदगीभर ससुरजी के बूते पर जीने का इरादा है? भला इस में हमारी कौन सी शान है? धोती लाना हो तो बाबूजी रुपए देगे. पिक्चर जाना हो तो बाबूजी की इजाजत लो. मैं तो आप की तनख्वाह में जीना चाहती हूं.’’

‘‘लो, तुम तो आते ही घर फोड़ने की बात करने लगीं,’’ इन्होंने बात का पैंतरा बदलत हुए कहा.

‘‘छि:छि:… कितना गलत सोचते हैं आप,’’ मैं रोआंसे स्वर में अपना अगला सु?ाव भी कह गई.

अच्छा जाने दो, पर क्या आप किन्हीं विशिष्ट मामलों के नामी वकील बन कर नहीं कमा सकते? बताइए, आप किन मामलों के विशेषज्ञ बनना पसंद करेंगे.’’

इन्होंने क्रोधित होते मेरे प्रस्ताव की धज्जियां उड़ा दीं, ‘‘बाप रे, वकील मु?ो नहीं तुम्हें होना चाहिए था. देखो, बाकायदा डिगरी मैं ने ली है, तुम ने नहीं. फालतू बहस मत करो. और हां, आगे भी ऐसी ऊलजलूल बातों से दिमाग मत खराब करना.’’

ये सब सुन कर मु?ो चोट तो लगी और सुयश ने मु?ो किसी मुवक्किल को डांटने वाले अंदाज

में फटकार कर मेरा जो अपमान किया, उसे मैं काफी दिन तक नहीं भुला सकी.

मैं ने उसी दिन कान पकड़ कर प्रण कर लिया था कि अब चाहे जो हो इन से कभी जबान नहीं लड़ाऊंगी. पर हां, मेरी जो औलाद होगी उसे वकील कभी नहीं बनाऊंगी.

2- महीनों वर्षों में इन आंखों ने बहुत देखा है. नकली व्यस्तता का भाव जता कर इन का मु?ा से कन्नी काटना, वकालत न चलने पर भी ?ाठा रोब और वकील होने की शेखी बघारना.

मैं तो पते की बात कहती हूं कि यदि बाबूजी न होते तो क्या होगा? ससुरजी के दम पर ही यह गुलछर्रे उड़ा रहे हैं. इन की चेहरे की चमक का राज दरअसल इन के पिता ही हैं.

कुछ दिन बाद मैं ने देखा कि श्यामा फिर आने लगी है. मु?ो लगा कि उस केस की तारीखें पड़ती होंगी, इसलिए आ रही है.

‘यह श्यामा कितनी फीस देनी वाली है?’’ मैं ने एक दिन उत्सुकता से पूछा.

‘‘यही कोई 50 हजार. 20 हजार पेशगी दे गईर् है. तुम क्यों पूछ रही हो?’’

‘‘यों ही, उस के लटकों?ाटकों से लग रहा था कि वह खेलीखाई है और उस का रेप शायद नहीं हुआ होगा,’’ मैं बोली.

सुयश कुछ चौंके, फिर बोले, ‘‘हां मामला रजामंदी का है. इस श्यामा ने रतन सिंह को खुद ही बुलाया था. ये दोनों कई बार मिले और कई बार दोनों में संबंध हुआ होगा, ऐसा मु?ो लगता है. श्यामा ने रतन सिंह के खेत पर आते हुए अपने मोबाइल पर खींचे फोटो दिखाए थे तो उन में यह रेपिस्ट के मूड में नहीं लग रहा था.’’

फिर कुछ रुक कर सुयश ने कहा, ‘‘श्यामा एक कौंस्टेबल की बेटी है जो कि डैडी के साथ कार्य कर चुका है. इसलिए मैं ने उस का केस लिया है. वैसे ही दिखने में पटाका लगती है. मु?ो नहीं लगता कि इस ने कभी खेतों में काम किया होगा. कुछ तो छिपा रही है.’’

कुछ ही महीनों में श्यामा फिर आई. इस बार वह जींसटौप में थी. मु?ो बाहर मिली जब मैं स्कूल जा रही थी. गहरी लिपस्टिक, उन्नत वक्ष, तना बदन. रोमरोम उस का अटै्रक्ट कर रहा था. मु?ो कुछ

संदेह हुआ कि यह सुबहसुबह क्यों आई. पर मैं जल्दी में थी, इसलिए चली गई.

अगले दिन से देखा सुयश कुछ परेशान नजर आ रहे थे. मैं ने कई बार कुरेदा तो बोले, ‘‘नहीं कोई बात नहीं.’’

उन की असिस्टैंटों को टटोला तो पता चला कि साहब श्यामा के साथ 2-2 घंटे बैठे केस की तैयारी करते रहे थे. कई बार उन्हें भी आने नहीं देते थे. श्यामा अकसर कमरा बंद कर देती थी.

‘‘हमें श्यामा ने कहा कि इस मामले में रतन सिंह ने कई जासूस छोड़ रखे हैं. न जाने कौन क्लाइंट की शक्ल में आ कर हमारी बात सुन ले. मैडम, आप जानती हैं न कि नौकर के बाहर के कमरे में ही क्लाइंट बैठते हैं और हमें भी पता नहीं होता कि कौन कहां से क्यों आया जब तक उन की फाइल तैयार न हो.’’

मुझे कुछ खटका लगा. कहीं कुछ चक्कर है. 2 दिन बाद श्यामा तब दिखाई दी जब वह बाहर जा रही थी और मैं स्कूल से आ रही थी. आज उस ने गांव की लड़कियों वाले कपड़े पहने हुए थे. चुन्नी सिर पर थी. बाल बिखरे हुए. मैं ने उसे रोक कर पूछा, ‘‘तुम श्यामा हो न? तुम्हारा रेप का केस है न?’’

वह कुछ सकपकाई, फिर पूछने लगी, ‘‘आप कौन?’’

‘‘मैं मिसेज सुयश की पत्नी वकीलनी. आओ तुम से बात करनी है. कमरे में चलो.’’

‘‘नहीं मैडम फिर किसी दिन आऊंगी. आज जल्दी में हूं’’

मैं ने जोर दिखाते हुए कहा, ‘‘नहीं आज ही. जो काम करना या जहां जाना है वह छोड़ दो. फोन कर दो कि तुम नहीं आ सकती.’’

मेरे तेवर देख कर शायद वह डर गई. मैं उस जैसा गांव की औरतों के बारे में बहुत कुछ

 

पढ़ चुकी थी और जानती थी कि ये किस व्यवहार से काबू में रहती हैं. वह चुपचाप मेरे पीछे चली आई.

इधरउधर, उस के घरगांव की बातों के बाद में मुद्दे पर आई, ‘‘तुम वकील साहब के यहां कई बार आई हो न?’’ ‘हां,’’ उस ने कहा.

‘‘तुम तभी क्यों आती हो जब मेरा स्कूल का समय होता है?’’ मैं ने तमक कर पूछा.

 

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