विदाई- भाग 2: नीरज ने कविता के आखिरी दिनों में क्या किया

उस ने आगे बढ़ कर अपनी पत्नी को बांहों में भर लिया. कविता अचानक हिचकियां ले कर रोने लगी. नीरज की आंखों से भी आंसू बह रहे थे.

कविता के शरीर ने जब कांपना बंद कर दिया तब नीरज ने उसे अपनी बांहों के घेरे से मुक्त किया. अब तक अपनी मजबूत इच्छाशक्ति का सहारा ले कर उस ने खुद को काफी संभाल भी लिया था.

‘‘मेरे सामने यह रोनाधोना नहीं चलेगा, जानेमन,’’ उस ने मुसकरा कर कविता के गाल पर चुटकी भरी, ‘‘इन मुसीबत के क्षणों को भी हम उत्साह, हंसीखुशी और प्रेम के साथ गुजारेंगे. यह वादा इसी वक्त तुम्हें मुझ से करना होगा, कविता.’’

नीरज ने अपना हाथ कविता के सामने कर दिया.

कविता शरमाते हुए पहली बार सहज ढंग से मुसकराई और उस ने हाथ बढ़ा कर नीरज का हाथ पकड़ लिया.

उस रात नीरज अपनी ससुराल में रुका. दोनों ने साथसाथ खाना खाया. फिर देर रात तक हाथों में हाथ ले कर बातें करते रहे.

भविष्य के बारे में कैसी भी योजना बनाने का अवसर तो नियति ने उन से छीन ही लिया था. अतीत की खट्टीमीठी यादों को ही उन दोनों ने खूब याद किया.

सुहागरात, शिमला में बिताया हनीमून, साथ की गई खरीदारी, देखी हुई जगहें, आपसी तकरार, प्यार में बिताए क्षण, प्रशंसा, नाराजगी, रूठनामनाना और अन्य ढेर सारी यादों को उन्होंने उस रात शब्दों के माध्यम से जिआ.

हंसतेमुसकराते, आंसू बहाते वे दोनों देर रात तक जागते रहे. कविता उसे यौन सुख देने की इच्छुक भी थी पर कैंसर ने इतना तेज दर्द पैदा किया कि उन का मिलन संभव न था.

अपनी बेबसी पर कविता की रुलाई फूट पड़ी. नीरज ने बड़े सहज अंदाज में पूरी बात को लिया. वह तब तक कविता के सिर को सहलाता रहा जब तक वह सो नहीं गई.

‘‘मैं तुम्हारी अंतिम सांस तक तुम्हारे पास हूं, कविता. इस दुनिया से तुम्हारी विदाई मायूसी व शिकायत के साथ नहीं बल्कि प्रेम व अपनेपन के एहसास के साथ होगी, यह वादा है मेरा तुम से,’’ नींद में डूबी कविता से यह वादा कर के ही नीरज ने सोने के लिए अपनी आंखें बंद कीं.

अगले दिन सुबह नीरज और कविता 2 कमरों वाले एक फ्लैट में  रहने चले आए. यह खाली पड़ा फ्लैट नीरज के एक पक्के दोस्त रवि का था. रवि ने फ्लैट दिया तो अन्य दोस्तों व आफिस के सहयोगियों ने जरूरत के दूसरे सामान भी फ्लैट में पहुंचा दिए.

नीरज ने आफिस से लंबी छुट्टी ले ली. जहां तक संभव होता अपना हर पल वह कविता के साथ गुजारने की कोशिश करता.

उन से मिलने रोज ही कोई न कोई घर का सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त आ जाते. सभी अपनेअपने ढंग से सहानुभूति जाहिर कर उन दोनों का हौसला बढ़ाने की कोशिश करते.

नीरज की समझ में एक बात जल्दी ही आ गई कि हर सहानुभूतिपूर्ण बातचीत के बाद वह दोनों ही उदासी और निराशा का शिकार हो जाते थे. शब्दों के माध्यम से शरीर या मन की पीड़ा को कम करना संभव नहीं था.

इस समझ ने नीरज को बदल दिया. कविता का ध्यान उस की घातक बीमारी पर से हटा रहे, इस के लिए उस ने ज्यादा सक्रिय उपायों को इस्तेमाल में लाने का निर्णय किया.

उसी शाम वह बाजार से लूडो और कैरमबोर्ड खरीद लाया. कविता को ये दोनों ही खेल पसंद थे. जब भी समय मिलता दोनों के बीच लूडो की बाजी जम जाती.

एक सुबह रसोई में जा कर नीरज ने कविता से कहा, ‘‘मुझे भी खाना बनाना सिखाओ, मैं चाय बनाने के अलावा और कुछ जानता ही नहीं.’’

‘‘अच्छा, खाना बनाना सीखने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी जनाब,’’ कविता उस की आंखों में प्यार से झांकते हुए मुसकराई.

‘‘मैडमजी, मैं पूरी लगन से सीखूंगा.’’

‘‘मेरी डांट भी सुननी पड़ेगी.’’

‘‘मुझे मंजूर है.’’

‘‘तब पहले सब्जी काटना सीखो,’’ कविता ने 4 आलू मजाकमजाक में नीरज को पकड़ा दिए.

नीरज तो सचमुच आलुओं को धो कर उन्हें काटने को तैयार हो गया. कविता ने उसे रोकना भी चाहा, पर वह नहीं माना.

उसे ढंग से चाकू पकड़ना भी कविता को सिखाना पड़ा. नीरज ने आलू के आड़ेतिरछे टुकड़े बड़े ध्यान से काटे. दोनों ने ही इस काम में खूब मजा लिया.

‘‘अब मैं तुम्हें खिलाऊंगा आलू के पकौड़े,’’ नीरज की इस घोषणा को सुन कर कविता ने इतनी तरह की अजीबो- गरीब शक्लें बनाईं कि उस का हंसतेहंसते पेट दुखने लगा.

नीरज ने बेसन खुद घोला. तेल की कड़ाही के सामने खुद ही जमा रहा. कविता की सहायता व सलाह लेना उसे मंजूर था, पर पकौड़े बनाने का काम उसी ने किया.

उस दिन के बाद से नीरज भोजन बनाने के काम में कविता का बराबर हाथ बंटाता. कविता को भी उसे सिखाने में बहुत मजा आता. रसोई में साथसाथ बिताए समय के दौरान वह अपना दुखदर्द पूरी तरह भूल जाती.

‘‘मैं नहीं रहूंगी, तब भी आप कभी भूखे नहीं रहोगे. बहुत कुछ बनाना सीख गए हो अब आप,’’ एक रात सोने के समय कविता ने उसे छेड़ा.

‘‘तुम से मैं ने यह जो खाना बनाना सीखा है, शायद इसी की वजह से ऐसा समय कभी नहीं आएगा, जो तुम मेरे साथ मेरे दिल में कभी न रहो,’’ नीरज ने उस के होंठों को चूम लिया.

नीरज से लिपट कर बहुत देर तक खामोश रहने के बाद कविता ने धीमी आवाज में कहा, ‘‘आप के प्यार के कारण अब मुझे मौत से डर नहीं लगता है.

‘‘जिस से जानपहचान नहीं उस से डरना क्या. जीवन प्रेम से भरा हो तो मौत के बारे में सोचने की फुरसत किसे है,’’ नीरज ने इस बार उस की आंखों को बारीबारी से चूमा.

‘‘आप बहुत अच्छे हो,’’ कविता की आंखें नम होने लगीं.

‘‘थैंक यू. देखो, अगर मैं तुम्हारी तारीफ करने लगा तो सुबह हो जाएगी. कल अस्पताल जाना है. अब तुम आराम करो,’’ अपनी हथेली से नीरज ने कविता की आंखें मूंद दीं.

कुछ ही देर में कविता गहरी नींद के आगोश में पहुंच गई. नीरज देर तक उस के कमजोर पर शांत चेहरे को प्यार से निहारता रहा.

हर दूसरे दिन नीरज अपने किसी दोस्त की कार मांग लाता और कविता को उस की सहेलियों व मनपसंद रिश्तेदारों से मिलाने ले जाता. कभीकभी दोनों अकेले किसी उद्यान में जा कर हरियाली व रंगबिरंगे फूलों के बीच समय गुजारते. एकदूसरे का हाथ थाम कर अपने दिलों की बात कहते हुए समय कब बीत जाता उन्हें पता ही नहीं चलता.

‘पिशाचिनी’ में फैंस का दिल जीत रही हैं नायरा M बनर्जी, जानें उनके करियर की खास बातें

एक्टिंग का शौक था, लेकिन ये प्रोफेशन बनेगा पता नहीं था, क्योंकि परिवार में कोई भी इस फील्ड से नहीं है और यहाँ तक पहुंचना नामुमकिन था, कहती है हंसती हुई चुलबुली, खूबसूरत नायरा M बनर्जी. उन्होंने पहले अपना काम दक्षिण की फिल्मों से शुरू किया और धीरे-धीरे हिंदी टीवी जगत में आ गयी. उन्हें यहाँ तक पहुँचने में काफी संघर्ष करने पड़े, जो आसान नहीं था, कितनी बार रोई, खुद को सांत्वना दी, लेकिन आज सफल है.साउथ में काम करके उन्हें प्रोफेशनलिज्म के बारे में काफी कुछ सीखने को मिला और उन्हें बतौर अभिनेत्री विकसित होने में काफी मदद भी की.

नायरा ने कॉलेज के दिनों से ही मॉडलिंग करना शुरू कर दिया था. उनका असली नाम नायरा बनर्जी है. साउथ के सुपरहिट हीरोज के साथ काम करने के दौरान ही वहां के निर्माताओं को उनका नाम थोड़ा देसी सा लगा और उन्होंने उनका नाम मधुरिमा रख दिया. नायरा उनके लिए थोड़ा एलियन नाम था, लेकिनयह नाम नायरा को कभी जमा नहीं. जैसे ही उन्हें हिंदी इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में काम करने का मौका मिला, उन्होंने फिर से अपना नाम नायरा कर लिया, जिस नाम से उन्हें मुंबई के सारे लोग परिचित है.

कलर्स टीवी की फिक्शन ड्रामा शो पिशाचिनी में मुख्य भूमिका रानी/पिशाचिनी की निभा रही है, उन्होंने अपने जीवन की सभी पहलूओं पर बात की, पेश है कुछ खास अंश.

सवाल- अभिनय में आने की बात सोची थी या एक इत्तफाक था?

जवाब – मेरी कोई प्रेरणा नहीं थी, मेरा कोई गॉडफादर इंडस्ट्री में नहीं है, मैं मुंबई में लॉ की पढाई कर रही थी. बंगाली होने की वजह से मैं कई स्थानों पर परफोर्मेंस करती थी. डांस करना, गीत गाना, परफोर्मेंस करना आदि सब मैं अपने हिसाब से कर रही थी. इन कार्यक्रम में कई सेलेब्स अपने मैनेजर के साथ आते थे, उन्होंने मेरे चेहरे को देखकर अभिनय के लिए बुलाया और मुझे साउथ की फिल्म का ऑफर मिला, मैंने पहले मना कर दिया, क्योंकि इंडस्ट्री की कोई जानकारी मुझे नहीं थी, लेकिन उन्होंने मेरे घर आकर सारी बातें मेरे पेरेंट्स को बताई, सबको काम के बारें में समझाया.तब मेरी माँ मेरे साथ ट्रेवल करती थी और इस तरह से पहली फिल्म की. वही से मेरे पिक्चर्स चारों तरफ फैले और मैं पोपुलर हो गई. इसके बाद काम मिलना शुरू हो गया है. मेरे पिता ट्रान्सफरेबल जॉब में होने की वजह से हमारा मुंबई में आना हुआ, जिससे अभिनय क्षेत्र में जाना संभव हुआ.

 

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सवाल – कितने संघर्ष करने पड़े?

जवाब – कई बार फिल्मों के लिए शॉर्टलिस्ट होने के बाद किसी स्टार किड के चलते मेरा नाम हटा दिया गया, लेकिन, मुझे इससे कोई शिकायत नहीं है. पहले मुझे बुरा लगता था लेकिन अब मुझे अपनी मेहनत और काबिलियत का भरोसा है और जहां दमदार किरदार होते हैं, वहां मुझे मौका अवश्य मिलता है.

सवाल – साउथ की जर्नी से आप कितनी खुश है?

जवाब – मैं 10 साल से इस इंडस्ट्री में हूं, लेकिन तब मेरी पढाई प्रायोरिटी थी. पढाई ख़त्म करने के बाद मैं पूरी तरह से इंडस्ट्री में उतर पाई और नयी-नयी कहानियों को एक्स्प्लोर कर पा रही हूं. मौका भी मिल रहा है. अभी मैं इस शो को मन लगाकर कर अभिनय कर रही हूं, ताकि दर्शक मुझ पिशाचिनी को प्यार और घृणा दोनों ही करने लगे. ये अभिनय बहुत ही चुनौतीपूर्ण है, लेकिन मुझे अपनी अदाओं को सुंदर और आकर्षक बनाने के लिए मेहनत  करनी पड़ती है.

सवाल –इस शो में अभिनय करने की खास वजह क्या है?

जवाब – मैं मुख्य भूमिका निभा रही हूं, लेकिन एक राजपूत परिवार को टारगेट मैं क्यों कर रही हूं, इसके पीछे एक बड़ा कारण क्या है? ऐसे कई मजेदार पहलूओं को लेकर ये शो आगे बढ रही है.

 

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सवाल – इसमें किस तरह की कॉस्टयूम आपको पहननी पड़ी?

जवाब – इसमें कई तरह के कॉस्टयूम है, क्योंकि मैं हज़ारों साल पुरानी हूं. उस समय के कॉस्टयूम और जब मैं आज की नारी बनती हूं, तो आज के पोशाक पहनती हूं. ये एक ड्रामा है और मैं अपनी शक्ति की वजह से कोई भी रूप ले सकती हूं.

सवाल – आप भूत-प्रेत पर विश्वास करती है?

जवाब – मुझे कोई विश्वास नहीं होता, लेकिन कई साल पहले मैं अचानक शांत हो गयी थी, मुझे भूख नहीं लगना, किसी से बात न करना आदि हो गया था, जो धीरे-धीरे कम हुई. मैं मानती हूं कि हमारे आसपास पोजिटिव और निगेटिव शक्तियां होती है, जिसे व्यक्ति खुद महसूस करता है.

सवाल – हिंदी फिल्मों में कब आ रही है?

जवाब – कुछ स्क्रिप्ट पर काम चल रहा है, उम्मीद है आगे कुछ अच्छा होगा.

सवाल – क्या महिलाओं के लिए कोई मेसेज देना चाहती है?

जवाब – महिलाएं खुद को आत्मनिर्भर बनाए, काम की कोई उम्र नहीं होती. ये लाइफ आपकी गिफ्ट है, इसमें जितना सीख सकते है,उतना सीखिए.

सवाल –आज़ादी की 75 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में देश में किस तरह का बदलाव चाहती है?

जवाब – इन्फ्रास्ट्रक्चर में बदलाव की बहुत जरुरत है. कानून की दिशा में कई सुधार करने की जरुरत है.

वनराज को जेल भेजने से रोकेगी बा, Anupama से मांगेगी भीख

सीरियल अनुपमा (Anupama) की कहानी में इन दिनों नए ट्विस्ट आ रहे हैं. खबरें हैं कि जहां शो में नए शख्स की एंट्री होने वाली है तो वहीं अनुज की हालत का जिम्मेदार वनराज जेल जाते हुए दिखने वाला है. हालांकि अभी तक शो से जुड़ी कोई औफिशियल अपडेट या प्रोमो सामने नहीं आया है. लेकिन अपकमिंग एपिसोड का अपडेट आ गया है, जिसमें बा अपने बेटे को जेल न भेजने के लिए अनुपमा के सामने हाथ जोड़ती दिख रही हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Written Update)…

अंकुश को सलाह देता है अधिक

 

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अब तक आपने देखा कि पूरा परिवार वनराज और अनुज के लिए परेशान होता है. वहीं काव्या से सच जानने की अनुपमा कोशिश करती है. लेकिन वह कहती है कि उसने दोनों को पहाड़ी की चोटी पर बात करते हुए देखा था पर गिरते हुए नहीं देखा. दूसरी तरफ अंकुश से अधिक कारोबार संभालने की बात कहता दिखता है.

 

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हादसे को याद करेगा वनराज

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज बेहोशी में हादसे को याद करेगा. जहां पर वह अनुज को गुस्से में गाड़ी पहाड़ी पर ले जाएगा और वहां पर वनराज कहेगा कि अनुज ने उससे परिवार को छीना है. उसकी वजह से वह त्योहार के दिन परिवार के बिना था. हालांकि अनुज उसकी बातों का करारा जवाब देता है. वहीं वह याद करता है कि बातों बातों में वनराज को अनुज पर गुस्सा आता है और वह उसे धक्का दे देता है.

अनुपमा को सच बताएगा वनराज

 

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इसके अलावा आप देखेंगे कि जहां अनुज की ब्रेन सर्जरी होगी तो वहीं वनराज को होश आएगा और वह अनुपमा से मिलकर कबूल करेगा कि उसने अनुज को चट्टान से धक्का दिया था. वहीं ये बात समर सुन लेगा और बा को पता चलेगा, जिसके बाद वह लीला इमोशनल होकर अनुपमा को वनराज को गिरफ्तार न करने के लिए ब्लैकमेल करती दिखेगी.

आजादी पर भारी शादी

‘‘बदलते समय के साथ न केवल लोगों की लाइफस्टाइल में बदलाव आया है, बल्कि उन की सोच और सामाजिक तौरतरीके भी बदले हैं. यह सही है कि आजकल लड़कियां अपने कैरियर और आजादी को प्राथमिकता दे रही हैं, लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि शादी के लिए अब लड़कों की लड़कियों से उम्मीदें भी बढ़ गई हैं. मैट्रो सिटी में रहनसहन के स्तर को संतुलित बनाए रखने के लिए लड़के उच्च शिक्षा प्राप्त लड़कियों को ही प्राथमिकता देते हैं. ऐसे में लड़कियां अपने सुरक्षित भविष्य के लिए शादी करने में समय ले रही हैं. मुझे इस में कोई बुराई नहीं नजर आती. हां, शादी टालने की एक सीमा जरूर होनी चाहिए क्योंकि इस को जरूरत से ज्यादा टालने के विपरीत परिणाम भी हो सकते हैं.’’

सोनल, ऐसोसिएट एचआर

‘‘यह हमेशा याद रखें कि आप का ऐटिट्यूड किसी भी रिश्ते को बनने से पहले ही उसे खोखला करना शुरू कर देता है, जबकि बौंडिंग किसी भी रिश्ते को गहरा व मजबूत बनाती है.’’

28 साल की तान्या न सिर्फ गुड लुकिंग है बल्कि एक अच्छी मल्टीनैशनल कंपनी में सीनियर पोजिशन पर कार्यरत भी है. लेकिन अभी भी तान्या सिंगल है. शादी की बात आते ही तान्या उसे टाल जाती है.

हिना का भी हाल कुछ ऐसा ही है. हिना मौडलिंग करती है, ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़ी है और दिखने में काफी स्टाइलिश है. हिना से शादी करने को न जाने कितने लड़के बेताब हैं, लेकिन हिना अब तक कई प्रपोजल्स रिजैक्ट कर चुकी है. रिजैक्शन के पीछे वजह सिर्फ यही है कि हिना को लगता है कि भले ही उस का पार्टनर उसे शादी के बाद काम करने भी दे, लेकिन उस की आजादी तो कहीं न कहीं उस से छिन ही जाएगी. बस, यही वजह है कि हिना पेरैंट्स के कहने पर लड़कों से मिलती जरूर है, लेकिन बात आगे नहीं बढ़ाती.

यह कहानी सिर्फ तान्या और हिना की ही नहीं, बल्कि आज हमारे समाज की उन ढेर सारी लड़कियों की है, जो अपनी पढ़ाईलिखाई कर सिर्फ अपनी जौब और कैरियर को प्रिफरैंस देती है. इन के लिए शादी प्रिफरैंस लिस्ट में तो दूर की बात, ये तो शादी के नाम से ही कतराती हैं.

बदल गए हैं जिंदगी के माने

अगर हम यह कहें कि अब समाज में लड़कियों की जिंदगी के माने पूरी तरह बदल चुके हैं, तो शायद यह भी गलत नहीं होगा. लड़कियां शादी कर चूल्हाचौका संभालने की सोच से बाहर निकल कर अपने कैरियर और समाज की सोच को एक नई दिशा दे रही हैं. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि बदलते जमाने के साथ कदम से कदम मिला कर चलने वाली ये पीढ़ी वाकई सही है या इस सफलता में छिपा है डिपै्रशन और फ्रस्ट्रेशन भी.

हाल ही में कई बड़े शहरों में एक सर्वे के दौरान एक चौंकाने वाला तथ्य सामने आया. बड़े शहरों की पढ़ीलिखी लड़कियां अच्छी पढ़ाई कर प्रोफैशनली बाजी जरूर मार रही हैं, लेकिन उन की व्यक्तिगत जिंदगी उन्हें इतना परेशान कर रही है कि उस के चलते कई लड़कियां डिप्रैशन की शिकार हैं.

दिल्ली में पढ़ीलिखी गुड लुकिंग 36 साल की प्रीति मल्टी नैशनल कंपनी में सीनियर लीगल ऐडवाइजर है. देखने में खूबसूरत व स्टाइलिश और कैरियर में सैटल होने के बावजूद भी प्रीति अभी भी सिंगल है. शादी के लिए उस के पास ढेर सारे प्रपोजल्स तो हैं मगर साथ ही कन्फ्यूजन भी कि शादी करे तो किस से? जो लड़का प्रीति को पसंद आता है उसे प्रीति को प्रोफाइल मैचिंग नहीं लगता और जिसे प्रीति पसंद आती है उस से प्रीति आगे बात बढ़ाना ही नहीं चाहती.

ऐसा सिर्फ प्रीति के साथ ही नहीं बल्कि न जाने कितनी लड़कियों के साथ होता है, जो कैरियर में सैटल होने के बावजूद भी सही उम्र में शादी नहीं कर पातीं क्योंकि शादी के लिए उन की कुछ शर्तें भी होती हैं. आमतौर पर सभी शर्तों को पूरा करने यानी उन की कसौटी पर खरा उतरने के नाम से ही लड़के कन्नी काटने लगते हैं और अच्छी पढ़ीलिखी बड़े शहरों की लड़कियों के बजाय छोटे कसबे या गांव की कम पढ़ीलिखी लड़कियों को ही चुनना ज्यादा पसंद करते हैं.

ये बात थोड़ी चौंकाने वाली जरूर है लेकिन यही हकीकत है कि कम से कम 50% बड़े शहरों की लड़कियां अपनी आजादी को खोने के डर से अब शादी को तवज्जो नहीं देतीं.

35 वर्षीय दीप्ति एक नैशनल न्यूज चैनल में एक अच्छी पोस्ट पर काम करती हैं और सिंगल हैं. शादी से जुड़े सवाल पर तपाक से कहती हैं, ‘‘अच्छी है न जिंदगी क्योंकि कोई रोकटोक नहीं है. अपने तरीके से अपनी लाइफ ऐंजौय कर रही हूं. अपने पेरैंट्स का खयाल रखती हूं. अपना घर, गाड़ी सब कुछ है, तो ऐसे में शादी कर कई हजार बंदिशों में बंध रिस्क क्यों लिया जाए?’’

असल में ऐसी सोच सिर्फ दीप्ति की ही नहीं बल्कि शहरों में पलीबढ़ी 60% लड़कियों की है. या तो ये शादी करना नहीं चाहतीं या फिर अगर शादी करती भी हैं तो अपनी शर्तों पर. ऐसे में जाहिर सी बात है कि हमारे पितृसत्तात्मक समाज के लड़कों के माथे पर सिकुड़न पड़ना तय है.

कशमकश में उलझी हैं सफल महिलाएं

अजीब सी कशमकश में उलझी ऐसी सफल महिलाएं उम्र के इस पड़ाव पर आने के बावजूद भी शादी करने का फैसला सही उम्र में नहीं ले पातीं. जब तक हो सके अकेले ही रहना चाहती हैं, जिस की एक सीधी सी वजह यह है कि अब लड़कियां शादी जैसे बंधन में बंधने के लिए अपनी जिंदगी में न तो कोई बदलाव लाना चाहती हैं और न ही कोई समझौता करना चाहती हैं. जिस की सब से बड़ी वजह यही है कि अब लड़कियां अपनी आजादी नहीं खोना चाहतीं.

लेकिन इन का यही फैसला कहीं न कहीं इन के लिए एक वक्त के बाद मुश्किलें भी खड़ी कर देता है. एक वक्त के बाद सिंगल रहना अखरने भी लगता है. जिंदगी के सफर में तनहाई काटने को दौड़ती है. उस वक्त जरूरत महसूस होती है एक ऐसे साथी की जो हमसफर बन कर आप के साथ जिंदगी के सुखदुख साथ बांट सके.

अब सोचने वाली बात यह है कि लड़कियों की यह सोच वाकई समाज के माने बदल समाज को एक सही दिशा में जा रही है या फिर इस सोच के कल कई दुष्प्रभाव समाज पर पड़ सकते हैं?

सालता भी है अकेलापन

अगर देखा जाए तो लड़कियों का शादी जैसे मुद्दे पर खुद फैसला लेना सही है, लेकिन अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की चाहत में इस खूबसूरत पड़ाव से कतराना भी समझदारी नहीं, क्योंकि कुछ वक्त के बाद इंसान को अकेलापन सताने लगता है और अकेलेपन से बचना वाकई बड़ा मुश्किल है.

एक जमाने की मशहूर अदाकारा परवीन बौबी को ही ले लीजिए. उन की कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. एक वक्त था जब परवीन के पास ढेरों प्रपोजल्स थे. न जाने कितने नौजवान उन से शादी करने को बेताब थे. मगर उस वक्त सफलता के नशे में चूर परवीन बौबी सारे प्रपोजल्स टालती गईं. शादी की बात को उन्होंने कभी गंभीरता से नहीं लिया. लेकिन बाद में उन का यही फैसला उन के लिए काफी नुकसानदायक साबित हुआ. उन की जिंदगी के अंतिम दिनों में उन का अकेलापन ही उन की मौत का कारण बना.

एक जमाने में लाखोंकरोड़ों दिलों पर राज करने वाली इस खूबसूरत अदाकारा की जिंदगी में एक वक्त ऐसा भी आया, जब इस ने खुद को अपनी तनहाई के साथ घर की चारदीवारी में कैद कर लिया. परवीन पर अकेलापन ऐसा हावी हुआ कि वे न सिर्फ डिप्रैशन में चली गईं बल्कि उन का मानसिक संतुलन तक बिगड़ गया. यहां तक कि उन्होंने लोगों से मिलनाजुलना तक बंद कर दिया और फिर एक दिन वही हुआ, जब करोड़ों दिलों पर राज करने वाली इस अदाकारा ने अंतिम सांस ली, इन के पास कोई नहीं था. यहां तक कि इन की मौत का पता भी कई दिनों के बाद इन के पड़ोसियों को दरवाजे पर लटकी दूध की थैलियों और दरवाजे के पास पड़े अखबार के बंडलों से चला. फिर जांचपड़ताल के बाद घर के अंदर उन की लाश मिली तब जा कर पता चला कि लाखोंकरोड़ों दिलों की चहेती परवीन बौबी इस दुनिया को अलविदा कह चुकी हैं.

ऐसा सिर्फ परवीन बौबी के साथ ही नहीं हुआ. इस के और भी ढेर सारे उदाहरण आप को मिल जाएंगे. हकीकत में यह अकेलापन ऐसी बीमारी है, जो बाद में डिप्रैशन का रूप ले लेती है आगे चल कर जिंदगी के लिए काफी नुकसानदायक साबित हो सकती है. इसलिए बेहतर है कि जिंदगी को गंभीरता से लें.

क्या करें क्या न करें

शादी का बंधन इतना नाजुक नहीं होता कि उसे जब चाहे तोड़ लो और जब मन करे जोड़ लो. निश्चित तौर पर काफी सोचनेसमझने के बाद ही यह फैसला लेना सही होता है. और अगर आप अपने हिसाब से जीवनसाथी चुनना चाहती हैं तो इस में भी हरज कुछ नहीं, लेकिन ध्यान रखें कि आप जरूरत से ज्यादा चूजी भी न हो जाएं क्योंकि यह इकलौती वजह ही ढेरों प्रपोजल रिजैक्ट करने के लिए काफी होती है.

किसी भी रिश्ते को पनपने से पहले ही अपनी शर्तों में न बांध दें. किसी भी रिश्ते की बौंडिंग मजबूत होने में वक्त लगता है, तो आप भी अपने रिश्ते को वक्त दें. सामने वाले इंसान को पहले समझने की कोशिश करें.

परफैक्शन में नहीं हकीकत में विश्वास करें. यह कोई प्रोफैशनल टास्क नहीं है, जिस में आप को या आप के हमसफर को परफैक्शन के मापदंड पर खरा उतरना है. यह फिल्मी दुनिया नहीं बल्कि हकीकत है. हकीकत पर भरोसा करें. चांद सब से खूबसूरत होता है, लेकिन उस में भी दाग है. वही कहानी इंसानों की भी है. इसलिए परफैक्शन में जाने के बजाय प्रैक्टिकल हो कर सोचें.

फैसले का सही वक्त क्या हो

सही उम्र में सही फैसला लेना भी जरूरी होता है. कैरियर के साथसाथ पर्सनल लाइफ पर भी ध्यान दें. यदि आप ने समय से अपनी पढ़ाईलिखाई पूरी कर के मनचाहा मुकाम हासिल कर लिया है तो शादी का फैसला बेवजह टालने में समझदारी नहीं है.

ऐटिट्यूड में नहीं बौंडिंग में यकीन करना सीखें. हमेशा याद रखें कि आप का ऐटिट्यूड किसी भी रिश्ते को बनने से पहले ही उसे खोखला करना शुरू कर देता है जबकि बौंडिंग किसी भी रिश्ते को और गहरा और मजबूत बनाती है.

पहले से किसी इंसान या उस के प्रोफैशन को ले कर उस के प्रति अपने मन में कोई धारणा न बना लें. प्यार और विश्वास से एक नए रिश्ते की शुरुआत करें.

कई बार लड़कियां जब शादी के लिए किसी से मिलती हैं, तो वे उस लड़के की अपने ड्रीम बौय या फिर अपने आदर्श इंसान से तुलना शुरू कर देती हैं जो सही नहीं है, हर इंसान का व्यक्तित्व, व्यवहार और खूबियां अलगअलग होती हैं. इसलिए जब भी आप किसी से मिलें तो बेवजह उस की किसी और से तुलना न शुरू कर दें.

जैसे जीवनसाथी की कल्पना आप ने अपने लिए की है वैसा ही आप को मिले, यह थोड़ा मुश्किल है. ऐसे में बेहतर यही होगा कि समझदारी के साथ जीवनसाथी का चुनाव करें और यह विश्वास रखें कि शादी के बाद भी आपसी समझ से रिश्ते को बेहतर बनाया जा सकता है. अकेला रह कर आप क्षणिक सुख तो पा सकती हैं पर सारी जिंदगी को खूबसूरत बनाने के लिए एक हमकदम का साथ जरूरी होता है.

इस बात पर यकीन करें कि एक खूबसूरत जिंदगी एक अच्छे हमसफर के साथ आप का इंतजार कर रही है. बस जरूरत है तो सिर्फ पहल करने और गंभीरता से सोचने की. तो देर किस बात की, शुरुआत कीजिए और कदम बढ़ाइए इस खूबसूरत जिंदगी की तरफ.

13 Tips: चुटकी भर नमक से चमकाएं घर

‘बिन नमक खाना न होई…’, ऐसी कोई कहावत नहीं है. पर हकीकत में कुछ ऐसा ही है. नमक के बिना खाना असंभव लगता है. पता नहीं कुछ लोग उपवास कैसे रख लेते हैं. खैर, आज यहां धर्म पर शास्त्रार्थ नहीं, पर नमक की उपयोगिता पर बात हो रही है.

नमक के फायदों के बारे में कभी सोचा है ? अब आप कहेंगी, हां नमक के बिना खाना बेस्वाद लगता है. पर खाने का स्वाद बढ़ाने के साथ ही नमक के और भी कई फायदे हैं. नमक से ही प्राचीन मिस्र के लोग ‘ममी’ बनाते थे. हमारे देश में आज भी बहुत से लोग नमक से ही अपने दांत साफ करते हैं. रसोई के अलावा भी नमक घर के कई हिस्सों में काम आ सकता है. आइए जानते हैं, नमक के अलग-अलग उपयोगों के बारे में…

1. आसानी से तोड़ें अखरोट

अखरोट के छिलके तोड़ने में बहुत मशक्कत करनी पड़ती है. बाजार में तो टूटे हुए अखरोट मिलते हैं, पर इनमें मिलावट होने का भी खतरा होता है. दरवाजे से या वॉलनट कटर से अखरोट तोड़ने पर भी चोट लगने का खतरा है. पर नमक से ये काम आसान हो जाता है. अगर आप अखरोटों को नमक के पानी में भिगो के रखेंगी तो इन्हें तोड़ना आसान हो जाएगा और अखरोट भी नहीं टूटेंगे और आपको साबूत अखरोट मिलेंगे.

2. फलों को भूरे होने से बचाए

अगर फलों को ज्यादा देर तक काट कर छोड़ दिया जाए तो फल भूरे होने लगते हैं, खासकर सेब. फलों को काटकर नमक के पानी में भिगोकर रखने से यह भूरे नहीं होंगे. कटे फलों को नमक के पानी में कुछ देर के लिए छोड़ दे. कुछ देर बाद नमक के पानी से निकालकर ताजे पानी से धो लें.

3. चॉपिंग बोर्ड से हटाए बदबू

चॉपिंग बोर्ड पर आप क्या कुछ नहीं काटती. मछली से लेकर चिकन तक. बोर्ड पर क्या कुछ नहीं गुजरता! बदबू का तो कहना ही क्या? चॉपिंग बोर्ड की बदबू भी नमक से आसानी से छुड़ाई जा सकती है. आधे नींबू पर नमक लगाकर चॉपिंग बोर्ड पर रगड़ें. हल्के गर्म पानी से धो लें. चॉपिंग बोर्ड की बदबू चली जाएगी.

4. तांबे के बरतन चमकाएं

तांबे के बरतनों में रखे खाने को खाना या पानी को पीना स्वास्थय के लिए बहुत फायदेमंद होता है. बरतनों पर नमक रगड़ें. साबुन का पानी डालें और एक नर्म सुखे कपड़े से रगडें. इससे बरतनों की खोई चमक लौट आएगी.

5. वाइन के दाग छुड़ाएं

अगर आप भी मह का शौक रखती हैं और आपके घर पर भी अकसर दावतें होती हैं, तो इस समस्या से आपको भी अकसर जूझना पड़ता होगा. अगर किसी दावत में ऐसी घटना घटे, तो आप तुरंत ही वाइन लगे कपड़े को नमक के पानी में कुछ देर के लिए भिगोकर रख दें. साफ पानी से धो लें. अगर दाग न निकले तो इस तरीके को दोबारा दोहराए. नमक आपके महगे कार्पेट से भी वाइन के दाग छुड़ा सकता है.

6. चींटियों को रखे दूर

चींटियां आफत का दूसरा नाम है. बचपन में सुनते थे कि चींटी सिर्फ मीठी चीजें खाती हैं. पर बड़े होते होते हकीकत से सामना हो ही गया. चींटियां कुछ भी नहीं छोड़ती. पर चींटियों को नमक से आसानी से भगाया जा सकता है. 1:4 के रेशियो में एक स्प्रे बोतल में नमक और पानी मिला लें. अब जहां चींटियां दिखें वहां स्प्रे कर दें. चींटियां भाग जाएंगी.

7. घर पर बनाएं बच्चों के लिए रंग

बच्चों को पेंटिंग का कितना ज्यादा शौक होता है. पर बच्चे पेंट को कई बार मुंह में भी लगा लेते हैं. बाजार के पेंट में बहुत सारे हानिकारक केमिकल्स होते हैं. पर आप घर पर ही पेंट बना सकती हैं. एक बाउल में 1 कप आटा और 1 कप नमक मिलाएं. अब इसमें 1 कप पानी मिलाएं और कुछ बूंदें फूड कलर की डालें. आपका होममेड पेंट तैयार है.

8. इस्त्री की सफाई

अगर इस्त्री पुरानी हो गई है, तो उसमें जंग लग ही जाता है. अगर जंग न भी लगे तो जले कपड़े के टुकड़े चिपके रहते हैं. पर नमक से इस्त्री की आसानी से सफाई की जा सकती है. नमक से इस्त्री को रगड़ें. इस्त्री साफ हो जाएगी.

9. माइक्रोवेव अवन

माइक्रोवेव अवन में कैक या पेस्ट्री बनाने में जितना मजा आता है उतना ही खाने में आता है. पर अवन की सफाई उतनी ही मुश्किल लगती है. नमक से आप आसानी से अवन की सफाई कर सकती हैं. अवन को सक्रब करने से पहले उस पर नमक छिड़क दें. नमक से दाग आसानी से निकल आते हैं.

10. इंक के दाग तुरंत छुड़ाए

स्याही के दाग को निकालना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. पर नमक से यह काम आसान हो जाएगा. स्याही के दाग पर नमक और नींबू रगड़ें. स्याही के दाग आसानी छुट जाएंगे.

11. सिंक और ड्रेन पाइप की बदबू को करें दूर

सिंक और ड्रेन पाइप की बदबू हमेशा परेशानी का सबब बनती है. पर जब नमक है तो चिंता की कोई बात नहीं. एक भगोने में पानी और एक कप नमक गर्म करें. इस पानी को सिंक और ड्रेन पाइप में डाल दें, थोड़े देर बाद बदबू दूर हो जाएगी.

12. तेल को कढ़ाई से छिटकने से रोके

मछली या मटन बनाने में कई बार तेल कढ़ाई से छिटक जाती है, खासतौर पर मछली बनाते वक्त. पर नमक से इसे रोका जाता है. कढ़ाई में तेल गर्म होने के बाद उसमें जरा सा नमक डाल दें. इससे जब आप मछली डालेंगे, तब तेल आप पर नहीं पड़ेगा.

13. जूतों की बदबू दूर करें

पसीने से जुतों से बदबू आने लगती है. यह दुर्गंध आपके पसीने और चमड़े से मिलकर बनती है. पर नमक जूतों की बदबू भी आसानी से भगाता है. आप नमक से भरे क्लोथ बैग्स रखकर या जूतों में नमक डालकर जूतों की बदबू दूर कर सकते हैं. अगर आप नमक डाल रहे हैं तो जूतों को झाड़ना न भूलें.

नमक के इन अनोखे प्रयोगों को जरूर आजमाएं और अपनी रोजाना जिन्दगी आसान बनाएं.

15 अगस्त स्पेशल: किस पायदान पर 76 सालों की स्वतंत्रता के बाद कानून

15 अगस्त 1947, पूरे देश द्वारा मनाया जाने वाला एक दिन और एक संघर्ष के अंत का प्रतीक नहीं था, बल्कि पूरे देश की अर्थव्यवस्था, कानून व्यवस्था, गरीबी का उन्मूलन, आदिके पुनर्निर्माण की शुरुआत थी. इस वर्ष एक स्वतंत्र राष्ट्र होने के 75 गौरवशाली वर्षों को पूरा कर रहे हैं.वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता उसके आर्थिक इतिहास का सबसे बड़ा मोड़ था. अंग्रेजों द्वारा किए गए विभिन्न हमलों और डीमोनिटाईजेशन के कारण, देश बुरी तरह से गरीब और आर्थिक रूप से ध्वस्त हो गया था. ऐसे में आजाद देश कई समस्याओं से गुजर रहा था, क्या अभी भी उन समस्याओं से देश के नागरिक निजात पा चुके है? क्या कानून व्यवस्था आज भी सर्वोपरि है? आइये जानें,मुंबई हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस विद्यासागर कनाडे से हुई बातचीत के कुछ खास अंश.

विश्वास बनाए रखना है कानून पर

इस बारें में मुंबई हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस विद्यासागर कनाडे कहते है कि 75 सालों बाद भी ये गनीमत है कि देश की जनता का विश्वास कानून से हटा नहीं है. मसलन अयोध्या का केस कई सालों तक पड़ा रहा. हाई कोर्ट के जजमेंट के समय पूरे देश में कर्फ्यू लगा था, शिक्षा संस्थान बंद थे, लेकिन कुछ नहीं हुआ. न तो सार्वजनिक संपत्ति नष्ट हुई और न ही तोड़-फोड़ हुई. दोनों पार्टियों ने सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही थी. लोगों को इतना विश्वास कानून तंत्र पर था कि कुछ समस्या नहीं आई और एक बीच का रास्ता निकाला गया. आज भी किसी प्रकार के न्याय के परिणाम में देर होती है, तारीख पर तारीख पड़ते रहते है. समय पर न्याय नहीं मिलता, लेकिन मुझे लगता है कि न्याय तंत्र में कुछ सुधार लाना जरुरी है. ताकि जनता का विश्वास जारी रहे. इसमें सबसे पहले अपॉइंटमेंट में देर होती है, जो केंद्र सरकार और गठबंधन साथ में करती है.

जज दोषी नहीं

इसके आगे वे कहते है कि न्याय में देरी की वजह केवल जज को देना उचित नहीं. वकील को किसी केस को तैयार करने में लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, जिसमे तर्क, लोगों की बातें आदि में समय लगता है. आर्गुमेंट को अगर एक से दो घंटे का समय दिया जाय, तो बार काउंसिल धरने पर जाती है. वैसा अमेरिका और इंग्लैंड में नहीं है, कितना भी बड़ा केस हो एक से दो घंटे का समय आर्गुमेंट के लिए दिया जाता है, महीने-महीने बहस चलती है और एक अंतिम निर्णय तक पहुंचा जा सकता है, जो जल्दी भी होती है.

दूसरी अहम बात है कॉस्ट अधिक हो जाता है, क्योंकि पहले लोग PIL का पास करते है. इसमें अगर कोई दावा दाखिल नहीं हुआ फिर भी डिफेन्स करते है, क्योंकि उन्हें अधिक मूल्य नहीं देना पड़ता. ब्रिटेन और अमेरिका में जितना कॉस्ट है पूरा एक साथ देना पड़ता है. उसमे सुधार लाने की जरुरत है, ताकि विशेषाधिकार मुकदमा (प्रिविलेज लिटिगेशन) कम हो जाय. इससे पेंडिंग पड़े फाइल की संख्या कम हो जायेगी, क्योंकि आज भी बिना किसी न्याय के सालों साल फ़ाइलें पड़ी रहती है. जबकि अमेरिका और ब्रिटेन में लोग आपस में सेटल कर लेते है, क्योंकि उन्हें पता होता है कि केस न जीतने पर उनके लिए ये महंगा साबित होगा. इस प्रोसेस को प्री लिटिगेशन सेटलमेंट कहा जाता है. ये होने पर पेंडिंग की समस्या कम हो जाएगी. करीब 60 प्रतिशत लिटिगेशन सरकार की होती है, जिसमे भूमि अधिग्रहण, अवार्ड देने के बाद रेफ़रेंस आदि सुप्रीमकोर्ट तक चलता रहता है. इनकम टैक्स की प्रक्रियां में राज्य सरकार की करीब 70 प्रतिशत लिटिगेशन के केसेज होती है, उन्हें लिटिगेटिंग नेचर को कम करना जरुरी है.

काम है चुनौतीपूर्ण

जज बनने के बाद खास काम के बारें में पूछने पर जस्टिस कनाडे कहते है कि मैं 16 साल जज था, उस दौरान मैंने 34,000 केसेज को अंजाम तक पहुँचाया था. स्पेशल टाटा स्कैम में मैंने 2000 मैटर्स को मैंने बाहर निकला. लोगों को लगता है कि जज अपना काम निष्ठा से नहीं कर रहे है. जबकि कई पोस्ट जजों के खाली पड़े है. 4 जज का काम एक जज अब कर रहा है. यहाँ 8 बजे तक कोर्ट चलते है. जो काम जज करता है, उससे पहले वकील के रूप में वह जितना कमा पाता है, उसके हिसाब से बहुत कम वेतन है. न्याय का यह काम एक तरीके का त्याग है, लेकिन वे इमानदारी से काम करते है. इसके अलावा जज हमेशा सही न्याय करता है, लेकिन भ्रष्टाचार के जो आरोप जज को लगते है, उसे इग्नोर करना पड़ता है, क्योंकि अगर व्यक्ति केस जित जाता है, तो जज का न्याय उसे ठीक लगता है, अगर हार जाता है, तो जज भ्रष्टाचारी कहा जाता है. बिक गया है, ये इमेज वकीलों के समूह तैयार करते है, लेकिन मेरी नजर में काम ईमानदारी से ही होता है.

आम आदमी के लिए कानून

आम जनता में कानून की कम जानकारी के बारें में उनका कहना है कि CPC में दिए गए बातों को कड़ाई से पालन करना चाहिए, ताकि न्याय पाने में देर न हो. महिलाओं को कानून की जानकारी कम होने की वजह उनका किसी विषय पर जागरूक न होना है. आजकल किसी भी जानकारी को इन्टरनेट के जरिये जाना जा सकता है. ये सही है, साधारण इंसान कानून कम जानते है, इसके लिए विदेशों की तरह कानून की सीरीज बननी चाहिए. खासकर शिक्षा में इसे सरल भाषा में किताबों में लिखी गई हो और सरकार की तरफ से सारे कानून को संक्षेप में स्थानीय भाषा में लिखकर किसी कमिटी के द्वारा पब्लिश कर इसे आम इंसान को देने से उसका फायदा उन्हें मिलेगा, क्योंकि ब्रिटिश चले जाने के बाद आज भी सभी काम अंग्रेजी में किया जाता है, जो गलत है. इसके अलावा किसी भी लॉ कमिशन को लाने के बाद लेजिस्लेचर को सलाह देते है. साधारण लोगों के लिए भारत सरकार को लेखकों की एक समूह बनाना जरुरी है, जिसमे एक्सपर्ट वकील भी शामिल हो और जो स्टैंडर्ड टेक्स्ट बना सकें,जिसमे सरल भाषा में इंडियन पीनल कोड,सीआरपीसी,बेल बांड के प्रोविजन आदि को संक्षिप्त में लिखकर देना चाहिए, ताकि आम नागरिक को समझने में आसानी हो. इसे सेक्शन वाइज न देकर चैप्टर वाइज कॉमन इंसान को देना चाहिये.

हुए कई अलग अनुभव

कार्यकाल में अपने अनुभव के बारें में जस्टिस कनाडे कहते है कि एक ग्रैंड मदर जो दूसरी पत्नी थी और उसकी दूसरेपति की भी मृत्यु हो गई, उनके सौतेले पोते-पोती थे, जबकि सौतेले बेटी का इस बूढी महिला के साथ प्रॉपर्टी को लेकर डिस्प्यूट चल रहा था. बेटी ने स्टेप मदर को जेल में और उनके पोती पोते को चाइल्ड होम में डाला. मैंने बच्चों को कोर्ट में लाने की आदेश दिया, दादी भीकोर्ट में लायी गयी और मैंने तुरंत दादी को पोते पोती से मिलवाया. इसके अलावा एक केस में एक विधवा का लड़का स्कूल जाता था, लेकिन उस महिला के पास बच्चे को पढ़ाने का पैसा नहीं था. मैंने इंस्टिट्यूशन को बुलाकार उनकी समस्या जानी और बच्चे को फ्री में शिक्षा देने की बात कही थी, उन्होंने नहीं माना और मैंने खुद उसे पढ़ने की बात सोची थी, पर इंस्टिट्यूशन ने उसकी फीस माफ़ कर दिया. ऐसे निर्णय देने के बाद खुद को संतुष्टि मिलती है.

सम्हाले नागरिक देश को

75वीं देश की आज़ादी को मना रहे देश की नागरिकों के लिए जस्टिस कनाडे का सन्देश है कि देश के लिए ही काम कीजिये, बाकी सब बेकार है. सभी नगरिक को देश को अहमियत देना है, ताकि भारत भी विकसित देशों की लिस्ट में शामिल हो सकें.

दिल के लिए खतरनाक है ज्यादा कैल्शियम

हमारे शरीर में हर तत्व की अपनी एक मात्रा होती है चाहे फिर वह विटामिन की हो या फिर कैल्शियम, फास्फोरस या फिर अन्य रसायनिक तत्वों की. इसी तरह कैल्शियम की अधिक मात्रा लेने से आपको कई बीमारी अपनी चपेट में ले सकती है. एक अध्ययन में के अनुसार अगर धमनियों में प्लेक (धमनियों का जाम होना) का कारण बन सकता है, जिससे हृदय को नुकसान पहुंचने का खतरा है. इस निष्कर्ष का उद्देश्य हालांकि आपको कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ लेने से रोकना नहीं है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह के आहार दिल के लिए फायदेमंद भी हैं.

मैरिलैंड के जान हॉपकिंस विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ मेडिसिन बाल्टीमोर में सहायक प्रोफेसर इरिन मिचोस ने कहा, “हमारा अध्ययन बताता है कि शरीर में पूरक खुराक के रूप में अतिरिक्त कैल्शियम का सेवन दिल और नाड़ी तंत्र को नुकसान पहुंचा सकता है.”

अध्ययन के निष्कर्ष पत्रिका ‘जर्नल ऑफ दी अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन’ में प्रकाशित हुए हैं. यह विश्लेषण अमेरिका में 2,700 लोगों पर 10 सालों तक किए गए अध्ययन के बाद आया है.

अध्ययन के लिए चुने गए प्रतिभागियों की उम्र 45 से 84 साल के बीच थी. इसमें करीब 51 प्रतिशत महिलाएं थीं.

शोधकर्ताओं ने पाया कि जो प्रतिभागी भोजन में कैल्श्यिम की अधिकतम मात्रा प्रतिदिन करीब 1,022 मिलीग्राम लेते थे, उनमें 10 सालों के अध्ययन के दौरान हृदय रोग होने का जोखिम सामने नहीं आया.

लेकिन कैल्शियम को पूरक खुराक के रूप में सेवन करने वाले प्रतिभागियों के कोरोनरी धमनी में इन 10 वर्षो के दौरान 22 फीसदी तक प्लेक जमने का खतरा देखा गया. यह 10 सालों में शून्य से तेजी से बढ़ा. इससे दिल के रोग होने का संकेत मिलता है.

नॉर्थ कैरोलिना विश्वविद्यालय के चेपल हिल्स ग्लिनिंग्स स्कूल के सह लेखक जान एंडरसन ने कहा, “इस अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि भोजन के रूप में लिया गया कैल्शियम तथा पूरक खुराक के तौैर पर लिया गया कैल्शियम किस प्रकार हृदय को प्रभावित करता है.”

15 अगस्त स्पेशल: फैमिली के लिए बनाएं पिंडी चना मसाला

फेस्टिव सीजन में अगर आप मीठा बनाने की बजाय नई रेसिपी बनाना चाहते हैं तो इस स्वतंत्रता दिवस पर पिंडी चना मसाला की ये रेसिपी ट्राय करना ना भूलें.

सामग्री

1 कप काबुली चने उबले हुए,

2 बड़ी इलायची, 2-3 लौंग,

1 छोटा टुकड़ा दालचीनी स्टिक,

2-3 छोटी इलायची,

1 बड़ा चम्मच घी या तेल,

1 बड़ा चम्मच अनारदाना,

1 बड़ा चम्मच जीरा,

2 हरीमिर्चें लंबाई में कटी हुई,

2 छोटे चम्मच धनिया पाउडर,

1 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर,

11/2 छोटे चम्मच लालमिर्च पाउडर,

1/2 छोटा चम्मच गरममसाला,

2 इंच टुकड़ा अदरक का लंबाई में कटा हुआ,

1 प्याज कटा हुआ,

1 टमाटर कटा हुआ,

थोड़े से नीबू के टुकड़े,

थोड़ी सी धनियापत्ती कटी हुई.

विधि

पैन को गरम कर जीरा और अनारदाने को बिना तेल के भूनें. ठंडा होने पर इसे पीस लें. फिर एक गहरे बरतन में तेल या घी गरम कर बड़ी इलायची, छोटी इलायची, दालचीनी व लौंग को भूनें. अब हरीमिर्च डाल कर उबले काबुली चने, धनियापत्ती, गरममसाला, धनिया पाउडर, अमचूर, लालमिर्च व नमक डाल कर अच्छी तरह मिलाएं, काबुली चनों को अच्छी तरह मैश करें. फिर उन में 1/2 कप पानी मिला कर धीमी आंच पर 10-15 मिनट पकाएं. पकने पर अदरक, प्याज व नीबू से सजा कर सर्व करें.

दहशत- भाग 4: क्या सामने आया चोरी का सच

कुछ देर के बाद गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘एक प्रौब्लम हो गई है प्रीतिजी, खाना तो सब तैयार है लेकिन उसे परोसेंगे किस में? आप बुरा न मानें तो खाना यहीं मंगवा लूं मगर मेरे पास भी बरतन नहीं हैं, आप के यहां ही आना पड़ेगा.’’

‘‘तो आइए न डा. राघव और दूसरे मेहमानों से भी मेरी ओर से आने का आग्रह कीजिए.’’ ‘‘दूसरे मेहमान हमारे सीनियर डाक्टर थे, सो उन्हें असलियत बता कर राघव ने माफी मांग ली है. जो डाक्टर राघव के साथ रहते हैं उन दोनों की आज नाइट शिफ्ट है. सो, बस राघव ही आएगा. माफ करिएगा, मेहमान के बजाय आप को मेजबान बना रहा हूं.’’

‘‘माई प्लैजर डाक्टर, डू कम प्लीज.’’ कुछ देर के बाद गौरव और राघव राजू के साथ खाने का सामान उठाए हुए आ गए.

‘‘राजू को रोक लें, खाना गरम कर के सर्व कर देगा?’’

‘‘हां, फिर खुद भी खा लेगा. चलो, राजू तुम्हें बता दूं कि कहां क्या रखा है.’’ राजू को सब समझा कर प्रीति भुने पिस्ते और काजू ले कर आई, ‘‘जब तक राजू सूप गरम कर के लाता है तब तक इस से टाइमपास करते हैं.’’ ‘‘गुड आइडिया,’’ राघव ने पिस्ते उठाते हुए कहा, ‘‘वैसे आप दोनों ने इस कालोनी के लोगों को कई रोज के लिए टाइमपास का जरिया दे दिया.’’ लेकिन हंसने के बजाय प्रीति ने गंभीरता से कहा, ‘‘टाइमपास से ज्यादा बात फिक्र करने की है. आज जो हुआ है उस से तो लग रहा है कि चोर कालोनी में ही रहता है.’’ ‘‘वह तो आप के साथ हुए हादसे से ही पता चल गया था,’’ गौरव ने गौर से उस की ओर देखा. वह सहमी हुई सी लग रही थी.

‘‘आज भी उस ने यह हरकत की और मौका लगते ही फिर कर सकता है,’’ राघव बोला.

‘‘यानी हमें बहुत संभल कर रहना पड़ेगा. शुंभ से कहती हूं कोई फुलटाइम नौकरानी तलाश करे मेरे लिए जो रात में भी मेरे यहां रहे,’’ प्रीति ने चिंतित स्वर में कहा. ‘‘यह ठीक रहेगा, इस से आप का अकेलापन भी दूर होगा,’’ गौरव ने प्रीति के मनोभाव पढ़ने की कोशिश की, ‘‘थकेहारे काम से खाली घर में लौटने पर थकान और बढ़ जाती है.’’

‘‘यू कैन से दैट अगेन,’’ प्रीति ने उसांस ले कर कहा.

‘‘अकेलेपन से परेशानी है तो अकेलापन दूर करने का स्थायी प्रबंध क्यों नहीं करते आप दोनों…’’

‘‘क्यों, आप को अकेलेपन से परेशानी नहीं है?’’ प्रीति ने राघव की बात काटी.

‘‘होनी शुरू हो गई थी तभी तो मधु से उस की पढ़ाई खत्म होने से पहले ही शादी कर ली. वह लखनऊ में एमडी कर रही है, चंद महीनों में पूरी कर के यहां आएगी.’’

‘‘और तब राघव के घर में चलने वाला हमारा मैस बंद हो जाएगा,’’ गौरव ने कहा.

‘‘तो अपने घर में चला लीजिएगा, आप के 2 साथी और भी तो हैं.’’ इस से पहले कि गौरव प्रीति के सुझाव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करता, राजू सूप ले कर आ गया और विषय बदल गया.

‘‘अच्छा लगा आप से मिल कर,’’ राघव ने चलने से पहले कहा, ‘‘मधु की मुलाकात करवाऊंगा आप से.’’

‘‘जरूर, उन की वैलकम पार्टी यहीं रख लेंगे, क्यों गौरव?’’

‘‘दैट्स एन आइडिया,’’ गौरव फड़क कर बोला. प्रीति के मुंह से अपना नाम सुन कर वह अभिभूत हो गया था. किसी भी तरह इस अनौपचारिकता को आगे बढ़ाना होगा. उसे राघव पर भी गुस्सा आया. क्यों उस ने राजू से टेबल और किचन साफ करवा दिया वरना इसी बहाने प्रीति की मदद करने को वह कुछ देर और रुक जाता. अब तो खैर जाना ही पड़ेगा मगर जल्दी ही कोई और मौका ढूंढ़ना होगा. और मौका अगले रोज ही मिल गया. सोसायटी के क्लबहाउस में शाम को इमरजैंसी मीटिंग रखी गई थी जिस में प्रत्येक फ्लैट से एक सदस्य का आना अनिवार्य था. गौरव ने प्रीति को फोन किया. ‘‘जिन हादसों से घबरा कर मीटिंग रखी गई है उन के शिकार तो हम दोनों ही हैं तो हमारा जाना तो जरूरी है. आप चल रही हैं?’’

‘‘जी हां, और आप?’’

‘‘मैं भी चल रहा हूं. इकट्ठे ही चलते हैं.’’ गौरव ने सोचा तो था कि इकट्ठे ही बैठेंगे मगर लिफ्ट में वर्मा दंपती भी मिल गए, प्रीति श्रीमती वर्मा के साथ चलते हुए उन्हीं के साथ ही अन्य महिलाओं के पास बैठ गई. प्रीति से तो किसी ने कुछ नहीं पूछा लेकिन गौरव की स्वयं की लापरवाही मानने पर भूषणजी ने कहा कि ऐसी गलती किसी से भी हो सकती है, सो बेहतर होगा कि पहले माले की सभी बालकनियों में ऊपर तक ग्रिल लगवा दी जाए और हरेक बिल्डिंग के गेट पर सीसीटीवी कैमरा. अधिकांश लोगों ने तो प्रस्ताव का अनुमोदन किया और कुछ ने महंगाई के बहाने अतिरिक्त खर्च का विरोध किया मगर सुरक्षा का कोई दूसरा विकल्प न होने से प्रस्ताव सर्वसम्मति से पास हो गया और मीटिंग खत्म. गौरव ने सुना, कुछ महिलाएं प्रीति से कह रही थीं, ‘‘चोर के बहाने उस रोज आप के यहां बढि़या पकौड़े खाने को मिल गए.’’

‘‘पकौड़ों की दावत तो आप को जब चाहे दे सकती हूं.’’ ‘‘मगर उस से पहले आप को हमारे यहां आना पड़ेगा,’’ किसी ने कहा. ‘‘बुध को मेरे यहां किटी पार्टी है न, उस में प्रीति को बुला लेते हैं,’’ श्रीमती वर्मा बोलीं, ‘‘हमारी खातिर एक रोज छुट्टी कर लेना प्रीति.’’

‘‘आप पार्टी का समय बता दीजिए, मैं आ जाऊंगी और पार्टी खत्म होने पर फिर औफिस चली जाऊंगी,’’ प्रीति हंसी.

‘‘ऐसी बात है तो आप हमारी किटी जौइन कर लीजिए न. महीने में 1 बार कुछ घंटों का बंक मारना तो चलता है.’’ ‘‘देखते हैं,’’ प्रीति ने वर्मा दंपती के साथ चलते हुए कहा. कुछ दूर जा कर वर्मा दंपती एक और बिल्ंिडग में चले गए और गौरव लपक कर प्रीति के साथ आ गया.

‘‘आप डा. राघव के साथ नहीं गए?’’

‘‘उस के साथ जा कर क्या करता? वह तो अभी मधु से चैट करेगा. खाना तो हम लोग 9 बजे के बाद खाते हैं.’’

‘‘अभी घर जा कर क्या करेंगे?’’

‘‘चैनल सर्फिंग, जब तक कुछ दिलचस्प न मिल जाए. आप क्या करेंगी?’’

‘‘वही जो आप करेंगे. उस से पहले आप को कौफी पिला देती हूं.’’

‘‘जरूर,’’ गौरव मुसकराया.

‘‘चोर के बहाने आप की तो कालोनी में जानपहचान हो गई, किटी पार्टी में जाने से और भी हो जाएगी,’’ गौरव ने कौफी पीते हुए प्रीति की ओर देखा, ‘‘खाली समय आसानी से कट जाया करेगा.’’ प्रीति के अप्रतिभ चेहरे से लगा जैसे चोरी करती रगेंहाथों पकड़ी गई हो. ‘‘उन महिलाओं का जो खाली समय होगा तब मुझे फुरसत नहीं होगी और जब मैं खाली हूंगी तो वे अपने घरपरिवार में व्यस्त होंगी,’’ प्रीति ने एक गहरी सांस खींची, ‘‘वैसे जानपहचान तो आप से भी हो गई है.’’ ‘‘और मेरे पास तो शाम को खाली वक्त भी होता है. अस्पताल से 7 बजे छुट्टी मिल जाती है. कई बार घर आ कर 9 बजे तक टाइम गुजारना मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कभी फोन कर सकता हूं?’’ गौरव ने मौका लपका.

‘‘औफिस से जल्दी निकलने पर अकसर मैं मैडिटेशन सैंटर चली जाती हूं. सो, हो सकता है तब आप को मेरा मोबाइल बंद मिले.’’

‘‘अपने घर में सन्नाटा कम है क्या जो शांति की तलाश में मैडिटेशन सैंटर जाती हैं?’’ गौरव हंसा.

‘‘अपने पास जो होता है उस की कद्र कौन करता है?’’ प्रीति भी हंसने लगी.

‘‘यह तो है, पहले बंधन और रिश्तों से बचने के लिए अपनों को नकारते हैं और फिर भीड़ में भी अकेले रह जाते हैं.’’

‘‘सही कहा आप ने, अपनों की भीड़ तो चौराहों से अपनी राह चली जाती और आप तनहा खड़े रह जाते हैं खुद की बनाई बंद गली में.’’ ‘बंद ही नहीं, अंधेरी गली में जिस की घुटन से घबरा कर आप ने खुद सामान को गिरा कर एक काल्पनिक चोर का निर्माण किया था और दहशत का माहौल बना दिया था जिस की सचाई जानने को मैं ने अपनी और राघव की क्रौकरी तोड़ी, पहली मंजिल से कूदने का रिस्क लिया. भले ही इस सब से कालोनी वालों का आजकल के माहौल के किए उपयुक्त सुरक्षा मिल गई और आप को थोड़ी बहुत दोस्ती,’  गौरव ने कहना चाहा मगर यह सोच कर चुप रहा कि अभी यह कहना बहुत जल्दबाजी होगी. कोशिश तो यही रहेगी कि ये सब बगैर बताए ही प्रीति के करीब आ कर उस की और अपनी जिंदगी से अकेलेपन की वीरानगी और दहशत हमेशा के लिए दूर कर दें.

पप्पू अमेरिका से कब आएगा- भाग 3: क्यों उसके इंतजार में थी विभा

‘‘यह सब मैं नहीं पचा पाया. मैं अपने देश में, अपनों के बीच शांति से और सम्मानपूर्वक जीना चाहता था. मेरी पत्नी भी यही चाहती थी. इसलिए हम वापस आ गए. मेरी पढ़ाई और तजरबे के कारण यहां आते ही अच्छी नौकरी मिल गई.

‘‘मेरी समझ में नहीं आता कि हमारे देश में अमेरिका के प्रति इतना मोह क्यों है. हर कोई आंख बंद कर के अमेरिका

जाने को तैयार रहता है. यहां के लोग भोलीभाली लड़कियों को शादी के नाम पर वहां भेज कर अंधे कुएं में ढकेल देते हैं.’’

‘‘ठीक कहा तुम ने. मैं नहीं कहता कि सभी के साथ बुरा ही होता है पर जिस के साथ ऐसा होता है, उस की तो जिंदगी बरबाद हो जाती है न. आजकल हमारे देश में भी अच्छी नौकरियों या दूल्हों की कमी नहीं है,’’ नरेंद्र के जीजाजी बोले.

मनोहर, दीदी और जीजाजी को इतना भा गया कि वे उसे घर का ही सदस्य मानने लगे. वह भी नरेंद्र के साथसाथ शादी के कामों में इस तरह जुट गया जैसे शादी उसी के घर की हो.

शादी में अब केवल 2 दिन बाकी रह गए थे. घर मेहमान और सामान से भरा था. रात के 11 बज रहे थे. कुछ लोगों को छोड़ कर बाकी सब जिसे जहां जगह मिली, वहीं नींद में लुढ़के पडे़ थे. नरेंद्र भी बहुत थक गया था. थोड़ी देर आराम करने के लिए जगह ढूंढ़ रहा था. इतने में अर्चना उस के पास आई. उस के हाथ में एक लिफाफा था.

‘‘नरेंद्र, मैं कुछ ढूंढ़ रही थी तो मुझे दूल्हे की फोटो मिल गई. तुम इसे अपने पास रख लो. परसों लड़के वालों को लेने तुम्हें ही स्टेशन जाना होगा. तुम्हारे साथ मेरे देवरजी भी जाएंगे मगर उन्होंने भी लड़के वालों को नहीं देखा. इसलिए तुम्हें फोटो दे रही हूं. संभाल कर रखो. बरात को लिवा लाने में मदद मिलेगी.’’

अर्चना के हाथ से नरेंद्र ने फोटो ले ली. जैसे ही उस की नजर फोटो पर पड़ी उस के मन में फिर वही भावना जगी- कहीं देखा है इसे. पर कहां? दूर से भाईबहन को बतियाते देख विभा भी वहां आ गई.

‘‘सुनो, इस लिफाफे में दूल्हे की फोटो है. अपने पर्स में संभाल कर रख लो. परसों मुझे दे देना. बरात को लाने मुझे ही जाना है.’’

विभा ने लिफाफे में से फोटो निकाली, ‘‘अरे, यह तो महिंदर भाईसाहब का दामाद है.’’

नरेंद्र उछल पड़ा. उस की थकावट और नींद जाने कहां उड़ गई, ‘‘मगर यह बात तुम डंके की चोट पर कैसे कह रही हो? आखिर तुम ने भी तो उसे केवल एक बार शादी में ही देखा था.’’

‘‘आप मर्द लोग शादी में ताश खेलते हो, सुंदरसुंदर भाभियों पर लाइन मारते हो या राजनीति की चर्चाएं करते हों. शादी में दूल्हा या दुलहन बदल जाए तो भी तुम्हें पता नहीं चलता.’’

‘‘तो क्या तुम औरतों की तरह साजशृंगार कर के अदाएं बिखेरते चलें? खैर, छोड़ो असली बात तो बताओ.’’

‘‘शादी के अलबम दिखाने के लिए गेटटुगेदर के बहाने सिमरन भाभी ने सारी महिलाओं को बुलाया था. यह और बात है कि हमें झक मार कर 2 घंटे बैठ कर वीडियो भी देखना पड़ा. इतनी देर तक देखते रहने के बाद भला हम दूल्हे को कैसे भूल सकते हैं. मैं ही नहीं, सारी महिलाएं इसे पहचान लेंगी.’’

‘मगर अब करें क्या? यही तो सोचना है. शादी तो हमें हर हाल में रोकनी है’, नरेंद्र और विभा इसी चिंता के कारण रातभर सो नहीं पाए.

महिंदर भी नरेंद्र के अन्य मित्रों की तरह अपनी नौकरी पर निर्भर मध्यवर्ग का व्यक्ति था. बहुत सीधासादा और ईमानदार. उस ने अपनी जमापूंजी सब लगा कर अपनी लड़की की शादी इस लड़के से तय की थी कि लड़का सुंदर है, अच्छी नौकरी है. सब से बड़ी बात है लड़का अमेरिकावासी है. यह तो ‘बिन मांगे मोर’ था. उन लोगों ने सपनों में भी इस की कल्पना नहीं की थी. उन्होंने सोचा कि लड़की सुखी रहेगी. दूसरी बेटी के विवाह में वह हाथ भी बंटाएगी.

मगर यह आदमी शादी के बाद ऐसे गायब हुआ कि आज ही उस के बारे में पता चला जब उस की फोटो मिली.

महिंदर की बेटी लवली बेचारी आज भी इस की राह देख रही है. यहांवहां से तरहतरह की बातें सुन कर महिंदर को कुछकुछ अंदाजा हो गया है मगर घर में इस बात की चर्चा करने से डरता है. अब क्या किया जाए?

महिंदर की बात तो बाद में आती है. इस समय 2 दिन बाद होने वाली शादी को कैसे रोका जाए? वह कुछ कहे तो क्या दीदी और जीजाजी उस का विश्वास करेंगे? हमारे समाज में शादी टूटना बहुत बुरी बात है. नरेंद्र की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. वह अपनी भांजी की जिंदगी बरबाद होते नहीं देख सकता था.

पौ फटते ही नरेंद्र बिना किसी से कुछ कहेसुने विभा से फोटो ले कर निकल गया. 11 बजे तक वह महिंदर के घर में था. अब तक महिंदर के घर में सब को पता चल चुका था कि वे लोग ठगे गए थे. अब नरेंद्र की भांजी की घटना सुन कर उन का खून खौल उठा. उस के बाद की घटनाएं बड़ी तेजी से घटीं.

महिंदर को साथ ले कर नरेंद्र सारा दिन दौड़धूप करता रहा. शाम को महिंदर  को साथ ले कर टैक्सी से भोपाल के लिए निकल पड़ा. घर पहुंचतेपहुंचते रात के 11 बज गए. दीदी और जीजाजी नरेंद्र पर बहुत बिगड़े. पर नरेंद्र और महिंदरजी के मुख से सारी बात सुन कर उन के पांव तले की जमीन खिसक गई. रात आधी हो गई थी. घर मेहमानों से भरा था. क्या करें क्या न करें. वे सब अंदर सामान वाले कमरे में जागते रहे.

सुबह 10 बजे की गाड़ी से बरात आने वाली थी. पर सुबह होते ही जैसे कोहराम मच गया. अखबार में नाम और बड़ीबड़ी तसवीरों के साथ अमेरिकी दूल्हे की सारी कहानी छपी थी. शादी का जो सुमधुर कोलाहल था वह भयानक नीरवता में बदल गया जिस में मेहमानों की खुसुरफुसुर स्पष्ट रूप से सुनाई दे रही थी.

इस घटना को कोई 20-22 वर्ष गुजर गए हैं. अब विभा नहीं कहती ‘जाने पप्पू कब बड़ा होगा.’ क्योंकि इस लंबे अंतराल में उस के जीवन में बहुत से उतारचढ़ाव आए. जमापूंजी इकट््ठी करने के बाद भी पैसे कम पड़े तो मकान को गिरवी रख कर पप्पू यानी सुशांत को विदेश भेजा गया. वहां उस की पढ़ाई समाप्त हुई और अच्छी सी नौकरी भी लग गई. जाने से पहले पप्पू ने जो कहा था, वे शब्द आज भी विभा के कानों में गूंज रहे थे. उस ने नम आंखों से दोनों के चरण छूते हुए कहा था, ‘मां, बाबूजी, आप ने अपनी जिंदगीभर की जमापूंजी मुझ पर दांव लगा दी, मैं यह बात कभी नहीं भूलूंगा. मैं आप लोगों का सपना अवश्य पूरा करूंगा. खूब परिश्रम करूंगा और  पढ़ाई पूरी होते ही अच्छी नौकरी अवश्य मिल जाएगी. मैं अपना मकान छुड़वा लूंगा और हम सब मिल कर सुखचैन से रहेंगे.’’

सुशांत के जाने के बाद 3 वर्षों में ही नरेंद्र इतना बीमार पड़ा कि वह बिस्तर से उठ ही नहीं पाया. नई नौकरी का वास्ता दे कर सुशांत आ नहीं पाया. विभा कहां जाती. उस ने एक वृद्धाश्रम में पनाह ले ली. अब वह पेड़ के उस सूखे, पीले पत्ते की तरह है जो किसी भी क्षण पेड़ की टहनी से अलग हो कर धूल में मिल सकता है और अपना अस्तित्व खो सकता है. फिर भी उसे इंतजार है…

सूखे और झुर्रियों वाले चेहरे पर धंसी हुई निस्तेज आंखें कहीं दूर शून्य में फंसी हुई हैं. उसे इंतजार है अपने बेटे का. उस के सूखे होंठ बुदबुदा रहे हैं,‘जाने पप्पू कब आएगा…

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