हार की जीत- भाग 3: कपिल ने पत्नी को कैसे समझाया

शालू की समझ में नहीं आ रहा था क्या जवाब दे? पता नहीं क्या मांगने आई है? हो सकता है, सब्जी ही मांग बैठे. उस ने कपिल का दिया हुआ अस्त्र ही चलाया, ‘‘करेले पका रही हूं.’’

‘‘करेले,’’ आरुषि की आंखों में चमक आ गई.

शालू घबरा गई, ‘‘अब ये करेले मांगेगी… मुझे क्या पता था कि इसे करेले इतने पसंद हैं, नहीं तो झूठ ही बोल देती.’’

खिली हुई बांछों से आरुषि बोली, ‘‘फिर तो तेरे आलू बच गए होंगे. सौरभ कल बता रहा था कि औफिस से लौटते समय कपिल ने मंडी से अन्य सब्जियों के साथ आलू भी खरीदे थे. 4 आलू दे दे शाम को वापस कर दूंगी.’’

शालू रोआंसी हो गई. एक ही दिन में 2 अस्त्र बरबाद हो गए. शाम को उस ने कपिल को सारी बात बताई. कपिल सिर पकड़ कर बैठ गया. उस की समझ में ही नहीं आ रहा था इस समस्या से कैसे निबटा जाए?

अगले दिन रविवार था. कपिल और सौरभ का एक अन्य बैचमेट राघव अपनी

बीवी नैना और बच्ची समेत सामने वाले ब्लौक में ट्रक से सामान उतरवा रहा था. उन दोनों के कहने पर उस ने भी उसी कालोनी में 2 बैडरूम का फ्लैट खरीद लिया था. ट्रक से सामान उतरवा कर सौरभ तो वापस आ गया, कपिल वहीं रुका रहा.

अगले दिन शालू और कपिल डिनर ले कर राघव और नैना से मिलने पुन: उस के घर गए. बातों ही बातों में राघव ने कहा, ‘‘यार, यह सौरभ तो बड़ा अजीब आदमी है. दोपहर में आया और बोला, घर में सिलैंडर खत्म हो गया है. बच्चे भूख से बिलबिला रहे हैं. अपना जरिकैन मुझे दे दे. शाम को दुकान खुलते ही वापस कर दूंगा.’’

‘‘तूने बताया ही क्यों कि तेरे पास जरिकैन भर मिट्टी का तेल है?’’

‘‘बताने की क्या जरूरत है? वह तो सामान उतरवा रहा था, सो उस की नजर पड़ गई. जब तक गैस का कनैक्शन चालू हो, हौट प्लेट से काम चलाना पड़ेगा.’’

‘‘जरिकैन वापस मिला की नहीं?’’

‘‘अरे जरिकैन तो नहीं मिला, मजेदार बात यह है कि थोड़ी देर पहले नैना आरुषि से बात कर रही थी, तो उस के मुंह निकल गया कि कानपुर में मिट्टी के तेल की तो बेहद किल्लत है, तो जानते हो आरुषि क्या बोली?’’

‘‘क्या?’’

‘‘पता नहीं तुम्हारे हसबैंड कहां गए ढूंढ़ने? मेरे हसबैंड तो दोपहर में निकले और 10 मिनट में ही तेल ले कर आ गए. अब बताओ भला, हमारे यहां से तेल ले गए और हमारे ऊपर ही रोब झाड़ रहे हैं.’’

कपिल और शालू दोनों के मुंह खुले के खुले रह गए. मियांबीवी दोनों ही उस्ताद हैं. दोनों को मांगने की तो बुरी आदत है ही, मांग कर भूलने का नाटक करना भी इन की आदत में शुमार है.

घर लौट कर कपिल ने शालू से इस समस्या का हल ढूंढ़ने के लिए कहा, तो शालू ने तुरंत हल सुझाया, ‘‘हम साफ मना कर दें कि कुछ नहीं देंगे.’’

‘‘नहीं, वे बुरा मान सकते हैं.’’

शालू ने अगला प्रयत्न किया, ‘‘अच्छा अगर हम दी हुई चीज वापस मांग लें?’’

‘‘हां, किया जा सकता है, पर इस में आपस के संबंधों में तनातनी हो सकती है.’’

शालू सोच में पड़ गई, ‘‘एक तरीका और है, हम मकान ही बदल लें?’’

‘‘इतना आसान नहीं है मकान बदलना शालू. अगर दूसरी जगह भी ऐसा ही मांगने वाला पड़ोसी मिल जाए, तो फिर क्या तीसरा मकान ढूंढ़ेंगे?’’

‘‘एक तरीका है,’’ अगली सुबह औफिस जाते समय कपिल ने शालू से कहा, ‘‘कोई भी सामान आरुषि या सौरभ को दो तो मुझे जरूर बता देना.’’

औफिस पहुंचने के बाद शालू के 3 फोन आए और उस ने जोजो सामान आरुषि को दिया, सब बता दिया. औफिस में लंच सब लोग साथ किया करते थे, मिलबांट कर खाते थे. जब सब लोग इकट्ठा हो गए तो कपिल ने सौरभ से कहा, ‘‘सौरभ, आज तेरे घर, प्याज, चीनी और डिटर्जैंट खत्म हो गया है लौटते समय ले कर जाना.’’

‘‘तुझे कैसे मालूम?’’ सौरभ का कौर मुंह तक आतेआते रुक गया.

‘‘अरे यार तुझ से लापरवाह कोई नहीं हो सकता. तू तो घर का सामान लाना भूल जाता है, उधर भाभीजी घरघर सामान मांगमांग कर तेरी गृहस्थी चलाती रहती हैं. मैं ने इसीलिए शालू से कह दिया था कि भाभीजी के घर जोजो सामान खत्म होता जाए मुझे फोन पर बताती जाए. अभी तक ये 3 चीजें भाभीजी मेरे घर से ले कर गई हैं.’’

सौरभ को इस तरह सब के बीच पोल खुलना रास नहीं आया. वह गुर्राते हुए बोला, ‘‘ऐसा क्या सामान मांग लिया मेरी बीवी ने? भले पड़ोसी होने के नाते थोड़ाबहुत लेनदेन तो चलता ही है, आरुषि भी तेरे यहां से कुछ ले गई होगी. इस का मतलब यह तो नहीं कि तू ढिंढोरा पीटता फिरे?’’

इस से पहले कि कपिल कुछ बोल पाता, राघव बीच में ही बोल पड़ा, ‘‘अरे सौरभ, तुझे मिट्टी का तेल मिला कि नहीं? तूने तो जरिकैन भी वापस नहीं किया.’’

सौरभ इस दोतरफा हमले के लिए तैयार नहीं था. उस ने चुप बैठने में ही भलाई समझी. अमन वर्मा उन के गु्रप में सब से ज्यादा मस्त था. जानतेबूझते हुए बोला, ‘‘भिंडी की सब्जी बहुत अच्छी बनी हुई है. यह कौन लाया है?’’

‘‘मैं लाया हूं,’’ सौरभ बोला.

‘‘यानी कपिल के घर की भिंडी पर अपनी मुहर लगा रहे हो?’’

सौरभ के मुंह से जोर से निकला, ‘‘खबरदार, आज की सब्जी मेरे घर की है.’’

‘‘इस का मतलब, रोज की सब्जी कपिल के घर की होती थी,’’ अमन वर्मा ने बात पकड़ ली. इस के साथ ही पूरे गु्रप का जोरदार ठहाका गूंजा.

शाम को कपिल ने सब्जी मंडी में स्कूटर रोक लिया और सौरभ से बोला,

‘‘जा, जोजो सामान घर में खत्म हो रहा है वह ले ले. मुझे बहुत बुरा लगता है, जब भाभी घरघर हाथ फैलाती हैं.’’

सौरभ एक हारे हुए सिपाही की तरह स्कूटर से उतरा और सामान लेने चला गया.

सौरभ को देखते ही दुकानदार बोला, ‘‘बहुत दिन बाद आए बाऊजी.’’

कपिल मन ही मन बोला, ‘‘जब मैं रोज आ रहा था, तो यह क्या करते आ कर? मगर अब चिंता न करो, ये रोज आएंगे.’’

सौरभ ने सामान पैक करवाना शुरू किया, तो कपिल ने दुकानदार से उसी सामान में से कई चीजों के अलगअलग पैकेट बनाने को कहा.

सौरभ ने टोका, तो कपिल बोला, ‘‘अरे यार, तेरी इस भूलने की आदत के

कारण मैं भाभी को अब और अपमानित होते नहीं देख सकता, इसलिए बजाय इस के कि वे मांगा हुआ सामान मुझे वापस करने आएं, मैं पहले ही उसे अपने घर ले जा रहा हूं.’’

सौरभ के पास इतने जोरदार तर्क का कोई जवाब नहीं था. उस ने चुपचाप दुकानदार के पैसे चुकाए और दोनों लोगों की थैलियां हाथ में पकड़े चुपचाप स्कूटर के पीछे बैठ गया.

सौरभ से अपनी थैली ले कर जब कपिल अपने घर पहुंचा, तो शालू ने उस के हाथ से थैली ली और बोली, ‘‘सुनो यह मांगी हुई चीजों की लिस्ट क्या रोजरोज तुम्हें फोन पर देनी पड़ेगी?’’

‘‘कल से शायद तुम्हें इस की जरूरत नहीं पड़ेगी.’’

उधर आरुषि सौरभ को क्व2 हजार का बिल पकड़ाते हुए बोली, ‘‘आज सर्विस स्टेशन से मैकैनिक आया था. स्कूटर ठीक कर गया है. कह रहा था सौरभ का फोन आया था. उन्होंने ही घर का पता और स्कूटर नंबर दिया है.’’

दोनों घर आसपास थे, पर दोनों में माहौल अलग था. इधर कपिल से अपनी जीत की मुसकराहट रोके नहीं रुक रही थी और उधर सौरभ परेशान था कि उस ने तो कोई फोन नहीं किया था पर बीवी के आगे अपनी हार का परदाफाश होने के डर से वह शांत खड़ा था.

दोस्ती करें और ब्रेकअप फीवर से बचें

अकसर ब्रेकअप के बाद प्रेमीप्रेमिका एकदूसरे को भूलने के लिए हर फंडा अपनाते हैं. एकदूसरे को सोशल साइट्स पर ब्लौक करते हैं. वैसी जगहों पर जाना छोड़ देते हैं जहां उन के पार्टनर आते हैं. कुछ तो कौमन फ्रैंड्स से भी दूरी बना लेते हैं ताकि उन्हें ब्रेकअप का कारण न बताना पड़े.

पर कभी ब्रेकअप के बाद अपने ऐक्स से दोस्ती करने के बारे में नहीं सोचते, जबकि ब्रेकअप के बाद अपने ऐक्स से दोस्ती रखना  न केवल फायदेमंद होता है, बल्कि यह आप को मानसिक रूप से भी सबल बनाता है, जिस से आप खुश रहते हैं और डिप्रैशन से बाहर निकलते हैं.

क्यों पसंद नहीं करते दोस्ती करना

आमतौर पर ब्रेकअप के बाद दोस्ती रखना इसलिए पसंद नहीं किया जाता, क्योंकि इस से साथी और उस की यादों से निकलने में काफी तकलीफ होती है, पर ब्रेकअप के बाद आपस में दोस्ती का रिश्ता रख कर आप एकदूसरे की मदद कर सकते हैं. इस में कोई बुराई नहीं है बल्कि इस से यह स्पष्ट होता है कि आप के दिल में एकदूसरे के प्रति कोई गलत धारणा नहीं है.

बौलीवुड अदाकारा दीपिका पादुकोण ने अपने ऐक्स बौयफ्रैंड रणवीर कपूर से ब्रेकअप के बाद भी बहुत ही प्यारा और दोस्ताना रिश्ता रखा है. दीपिका की कई बातें ब्रेकअप के बाद मूवऔन करना और अपने ऐक्स के साथ दोस्ताना रिश्ता रखना सिखाती हैं. पर्सनल बातों को किनारे रखते हुए प्रोफैशनली दीपिका ने रणवीर कपूर के साथ फिल्म साइन की और दर्शकों ने इस फिल्म को काफी सराहा. इस बात से पता चलता है कि हमें प्यार और काम में कैसे बैलेंस बना कर रखना चाहिए. अगर आप और आप का ऐक्स एक ही जगह पढ़ते या काम करते हैं तो अपने काम को कभी भी रिश्ते की खातिर इग्नोर न करें और न ही ब्रेकअप को खुद पर हावी होने दें.

बौलीवुड कपल्स जिन्होंने ब्रेकअप के बाद भी निभाई दोस्ती

रणवीर दीपिका

रणवीर और दीपिका की दोस्ती को बौलीवुड सलाम करता है. ब्रेकअप के बाद दोस्ती के रिश्ते को मैंटेन रखना कोई इन से सीखे.

अनुष्का रणबीर

रणबीर सिंह और अनुष्का शर्मा ने अपनी पहली फिल्म ‘बैंड बाजा बरात’ के बाद एकदूसरे को डेट करना शुरू कर दिया था. लेकिन इन का यह रिश्ता बहुत समय तक चल नहीं पाया और ब्रेकअप हो गया. ब्रेकअप के बाद ये कुछ समय के लिए एकदूसरे से दूर थे, लेकिन फिर दोनों ने दोस्ती कर ली.

शिल्पा अक्षय

90 के दशक में इन की हिट जोड़ी थी, लेकिन कुछ समय बाद ये अलग हो गए और अक्षय ने टिंवकल से शादी कर ली और शिल्पा ने राज कुंदरा में प्यार ढूंढ़ लिया, लेकिन आज भी दोनों अच्छे दोस्त की तरह मिलते हैं.

ऋषि डिंपल

रणवीर ने दीपिका से ब्रेकअप के बाद दोस्ती काफी अच्छे से बरकरार रखी. आखिरकार इतने अच्छे से मैनेज करना उन्होंने अपने पापा से सीखा है. ऋषि कपूर ने भी एक जमाने में डिंपल कापडि़या के साथ दोस्ती मैंटेन की थी.

क्या न करें

सोशल प्लेटफौर्म न छोड़ें

अकसर ऐसा होता है कि ब्रेकअप के बाद हम सोशल प्लेटफौर्म छोड़ देते हैं, अकाउंट डिऐक्टिवेट कर देते हैं या फिर पार्टनर को ब्लौक कर देते हैं. ऐसे में सोशल साइट्स पर बने रहें, लेकिन वहां अपने इमोशंस को ज्यादा पोस्ट न करें.

इंसल्ट करने की गलती न करें

ब्रेकअप की वजह से हम इतने तनाव में आ जाते हैं कि हम क्या करते हैं, हमें खुद भी पता नहीं होता, इसलिए इंसल्ट करने की गलती न करें. अगर आप ऐसा करती हैं तो नुकसान आप का ही है.

इमोशनल ब्लैकमेल न करें

युवतियां ब्रेकअप के बाद काफी इमोशनल ब्लैकमेल करती हैं, बारबार फोन पर रोती हैं. इस तरह की हरकत न करें. ऐसा करने से पार्टनर को लगने लगता है कि अगर वह आप के टच में रहेगा तो उसे हमेशा आप का यह ड्रामा झेलना पड़ेगा.

ब्रेकअप के बाद न दिखाएं पजैसिवनैस

कुछ युवतियां जब तक रिलेशन में होती हैं तब तक वे रिलेशन को तवज्जो नहीं देतीं, लेकिन जैसे ही ब्रेकअप होता है वे पजैसिव बनने लगती हैं, अजीबअजीब हरकतें करने लगती हैं और दोस्ती बरकरार रखने का मौका खो देती हैं.

शहर व जौब न छोड़ें

ब्रेकअप के बाद अकेलापन लगता है, किसी काम में मन नहीं लगता. ऐसे में कुछ तो जौब छोड़ देते हैं या फिर शहर बदल लेते हैं ताकि सबकुछ भूल जाएं. लेकिन ऐसा करना समस्या का हल नहीं है. ऐसा कर के आप खुद का भविष्य खराब करते हैं.

अवौइड करने की भूल न करें

ब्रेकअप के बाद आप पार्टनर को अवौइड न करें. ऐसा न करें कि जहां आप का पार्टनर जा रहा हो, आप वहां सिर्फ इसलिए जाने से मना कर दें कि वहां आप का ऐक्स बौयफ्रैंड भी आ रहा है. अवौइड कर के आप लोगों को बातें बनाने का मौका देती हैं.

क्या करें

मिलें तो नौर्मल बिहेव करें

ब्रेकअप के बाद जब पार्टनर से मिलें तो नौर्मल बिहेव करें, ऐसा न हो कि आप उसे हर बात पर पुरानी बातें याद दिलाते रहें, कहते रहें कि पहले सबकुछ कितना अच्छा था, हम कितनी मस्ती करते थे और आज देखो, हमारे पास बात करने के लिए भी कुछ नहीं है. ऐसा भी न करें कि ब्रेकअप के बाद मिलें तो ओवर ऐक्साइटेड बिहेव करें, यह दिखाने के लिए कि आप पहले से ज्यादा खुश हैं, बल्कि ऐसे रहें जैसे आप अपने बाकी फैं्रड्स के साथ रहती हैं.

चिल यार का फंडा अपनाएं

ब्रेकअप के बाद खुद को स्ट्रौंग रखने के लिए चिल यार का फंडा अपनाएं. आप सोच रही होंगी कि चिल यार का फंडा क्या है? चिल यार का फंडा है जैसे अपना मेकओवर करवाएं, फ्रैंड्स के साथ पार्टी करें, वे सारी चीजें करें जो आप रिलेशनशिप की वजह से नहीं कर पाती थीं.

अपनी तरफ से दें फ्रैंडशिप प्रपोजल

भले ही सामने वाला आप से फ्रैंडशिप रखने में रुचि न दिखाए, लेकिन आप फिर भी खुद से फ्रैंडशिप का प्रपोजल दें. आप के व्यवहार को देख कर सामने वाला भी आप से दोस्ती बरकरार रखेगा.

एक सीमा तय करें

ब्रेकअप के बाद की दोस्ती में एक दायरा तय करें, क्योंकि पहले की बात कुछ और थी. अब चीजें बदल चुकी हैं. अब आप दोनों दोस्त हैं. ऐसा न हो कि आप के बीच का रिश्ता तो खत्म हो गया है लेकिन इस के बाद भी आप के बीच कभी शारीरिक संबंध बन जाएं. इसलिए एक दायरा तय करें. अगर आप ने तय किया है कि दोस्ती का रिश्ता बरकरार रखेंगे तो इस रिश्ते की गरिमा को बना कर रखें.

‘स्वच्छ सर्वेक्षण’ अवार्ड और सफाई

केंद्र सरकार अपने ‘स्वच्छ सुर्वेक्षण’ अवाड्र्स से देश के शहरों को सफाई के लिए हर साल अवार्ड देती है और इस बार फिर इंदौर (मध्य प्रदेश) व सूरत (गुजरात) पहले दूसरे नंबर पर आए हैं. 4534 शहरों में होने वाले इस सर्वे में छोटे शहरों में पंचगनी (महाराष्ट्र) व पाटन (छत्तीसगढ़) पहले व दूसरे नंबर पर  पाए गए.

यह अवार्ड सैरीकौनी एक अच्छा प्रयास है कि शहर का एडमिनिस्ट्रेशन कुछ करे कि हर साल उस की रैंङ्क्षकग बढ़े. आम आदमी को जो लाभ इन सर्वे की रैंङ्क्षकग से मिलता है वह भगत की तीसरे नंबर की अर्थव्यवस्था बनने की रैंकिंग से कहीं ज्यादा सुखद है. लोग अपने आसपास का माहौल सही चाहते हैं न कि देश की राजधानी के राजपथ पर 20000-30000 करोड़ खर्च कर के नए भवन देखना. लोगों को असली प्राइड तब तक होता है जब पता चले कि वे देश के सब से साफ  शहर या सब से गंदे शहर में रहते हैं.

कानपुर का रैंक 4320वां है, झूंझूड का 4304, देवप्रयास का 4095, भीमताल जैसे पर्यटकों के शहर का रैंक 4077 है, शिवकाशी का रैंक 3949 है, बचाकर 3912 स्थान पर है.

पूर्वी दिल्ली शहर 34वें नंबर पर है जो थोड़ा साप्राइङ्क्षजग है. दक्षिणी दिल्ली जो जरा अमीरों की है 28वां स्थान पा सकी है. दिल्ली से सटा गुडगांव 19वें स्थान पर है. पर फरीदाबाद 36वें पर है.

इस तरह की रिपोर्ट हर शहर के एडमिनिस्ट्रेशन को चौकन्ना रखती है और यदि शहर साफ शहरों में गिना जाए तो वहां संपत्ति का दाम तो अपनेआप बढ़ जाता है. वहां नौकरी करने या शादी करने के बाद जुडऩे वालों की लाइन भी बढ़ जाती है. कोई भी न तो चाहकर गंदे शहर में नौकरी करना चाहता है और न ही वहां के लडक़े या लडक़ी से शादी करना.

गंदे शहरों के लोगों को सिर झुका कर चलना होता है जबकि शहरों को गंदा करने में एडमिनिस्टे्रशन से ज्यादा गलती शहरीयों की अपनी होती है.

किसी भी शहर, कस्बे को साफ रखना सिर्फ रैंकिंग के लिए जरूरी नहीं है, यह स्वास्थ्य और कमाई के मौकों के लिए भी जरूरी है. गंदे शहर में रहना ज्यादा मंहगा पड़ता है क्योंकि वहां बिमारियां ज्यादा फैलती हैं, लोग तनाव में रहते हैं, कमाई कम होती है, वाहन खराब ज्यादा होते हैं.

शहरों की साफसफाई से घर को साफ रखने की आदत पड़ती है अगर शहर साफ हो, सडक़ें ठीक हों, बाग हरेभरे हो तो लोग अपनेआप अपने घरों को भी साफ रखने लगती हैं कि कहीं मोहल्ले का या कालोनी का सब से गंदा मकान का खिताब न मिलने लगे. आप के शहर की रैंकिंग क्या है तुरंत ढूंढिए और कुछ वारिस.

ब्लीच के इस्तेमाल से फेस पर जलन हो रही है, मैं क्या करुं?

सवाल-

मेरी उम्र 25 साल है. मैं हमेशा हर्बल ब्लीच इस्तेमाल करती हूं. कुछ दिन पहले मैं ने औक्सी ब्लीच इस्तेमाल किया था जिस से मेरे फेस पर बहुत जलन हो रही है. बताएं मैं क्या करूं?

जवाब-

हर्बल ब्लीच में कोई कैमिकल नहीं होता. इसलिए उसे इस्तेमाल करते वक्त आप को परेशानी नहीं होनी चाहिए. लेकिन औक्सी ब्लीच में कैमिकल होते हैं. हो सकता है कि उस के अंदर मौजूद कैमिकल आप की स्किन के लिए सूट न कर रहा हो, इसलिए आप को उस से जलन हो रही है. अत: आप हमेशा हर्बल ब्लीच ही इस्तेमाल करें. वैसे तो हमें किसी हर्ब से भी ऐलर्जी हो सकती है. कभीकभी नीबू या खीरे से भी किसी को ऐलर्जी हो जाती है.

मगर जो चीज आप को हमेशा सूट कर रही हो उसे बदलना नहीं चाहिए. औक्सी ब्लीच की खासीयत सुनने के बाद जरूर इच्छा होती है कि इसे इस्तेमाल कर के देखें. मगर जो चीज आप को सूट करती हो उस को न ही बदलें तो अच्छा रहता है. अगर किसी भी चीज से ऐलर्जी हो जाए तो उस वक्त दही में कुटी हुई बर्फ मिला कर चेहरे पर मसाज कर लें. इस से जलन खत्म हो जाती है.

ये भी पढ़ें-

गोरी रंगत, स्मूद और ईवनटोन स्किन हर महिला की चाहत होती है और इसे पाने का ब्लीचिंग सब से कौमन ब्यूटी ट्रीटमैंट होता है, क्योंकि इस के इस्तेमाल से फेशियल हेयर का रंग हलका हो जाता है, जिस से वे दिखाई नहीं देते और त्वचा भी गोरी व सुंदर नजर आती है. आज मार्केट में कई तरह के ब्लीच उपलब्ध हैं. ब्लीच का इस्तेमाल करने से पहले जानिए कुछ अहम बातें:

प्रोटीन हाइड्रा ब्लीच

यह ब्लीच फ्रेकल्स, ऐजिंग, पिगमैंटेशन, डार्क स्पौट और अनईवन स्किनटोन जैसी समस्याओं पर असरकारक तरीके से काम करता है. यह फेशियल हेयर को तो लाइटटोन करता ही है, साथ ही पिगमैंटेशन की समस्या को भी दूर करता है. यह स्किनटोन को भी लाइट करता है. यह स्किन को डीप क्लीन कर के स्किन पोर्स को भी रिफाइन करता है. सनटैन को रिमूव करने में यह सर्वोत्तम है. यह हर तरह की स्किनटोन के अनुरूप काम करता है. ईवन सैंसिटिव स्किन पर भी बिना किसी रैडनैस और जलन के. मगर प्रोटीन हाइड्रा ब्लीच किसी अच्छे सैलून में जा कर कुशल हाथों से ही करवाएं.

ऐक्स्ट्रा औयल कंट्रोल

जैसाकि नाम से मालूम होता है यह ब्लीच खासतौर पर ऐक्स्ट्रा औयली स्किन के लिए उम्दा उत्पाद है. इस ब्लीच से स्किन में मैलानिन पिगमैंट कम होता है. मैलानिन पिगमैंट जितना कम होगा, स्किन उतनी ही फेयर नजर आएगी. इसी के साथ यह ब्लीच त्वचा के ऐक्स्ट्रा औयल को कंट्रोल कर के मृत कोशिकाएं भी हटाता है.

हाइड्रेटिंग ब्लीच

शुष्क त्वचा के लिए यह सर्वोत्तम है. यह स्किन में पैनिट्रेट हो कर उसे मौइश्चर प्रदान करता है, जिस से वह सौफ्ट, फेयर व हैल्दी नजर आती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- जब कराएं ब्लीचिंग

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

कैसे रखें खुद का खयाल

दिल्ली, मुंबई समेत देश के 7 बड़े शहरों में किए गए एक सर्वे में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं. ‘द इंडियन वूमन हैल्थ-2021’ की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि 67 फीसदी महिलाएं अपनी सेहत से जुड़ी समस्याओं के बारे में बात करने से हिचकती हैं. उन का कहना है कि हमारे स्वास्थ्य के बारे में बात करना समाज में वर्जित माना जाता है.

देश में कामकाजी महिलाओं की सेहत ठीक नहीं है. आधी से अधिक महिलाओं को काम के साथ स्वयं को स्वस्थ रखना चुनौती साबित हो रहा है. महिलाएं लगातार काम करने और अपने दायित्वों का पालन करते हुए खुद की सेहत को दरकिनार करती हैं.

‘द इंडियन वूमन हैल्थ-2021’ की इस रिपोर्ट के अनुसार 22 से 55 की उम्र की 59 फीसदी कामकाजी महिलाएं सेहत से संबंधित समस्याओं के कारण नौकरी छोड़ देती हैं. 90 फीसदी महिलाओं को पारिवारिक दायित्वों के कारण दिक्कत होती है.

52 फीसदी महिलाओं के पास नौकरी, पारिवारिक दायित्वों के साथ स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए समय नहीं होता है. रिपोर्ट के अनुसार देश में महिलाएं कार्यस्थल पर सेहत से जुड़ी समस्याओं, पीरियड्स, ब्रैस्ट कैंसर, गर्भाशय समेत तमाम समस्याओं पर बात करने से हिचकती हैं. उन का कहना है कि जब हमारी सेहत की बात आती है तो 80 फीसदी पुरुष सहयोगी संवेदनशील नहीं होते हैं.

चौंकाने वाले परिणाम

देश में प्रत्येक 4 में से 3 नौकरीपेशा महिलाओं का स्वास्थ्य घरदफ्तर की भागदौड़ और उन के बीच संतुलन साधने में कहीं न कहीं कमजोर पड़ जाता है. एसोचैम के एक सर्वेक्षण में यह परिणाम सामने आया है कि दफ्तर का काम, बच्चों और घर की देखभाल की वजह से बने दबाव के चलते उन की दिनचर्या काफी व्यस्त रहती है और समय के साथ कई लंबी और गंभीर बीमारियां उन्हें घेर लेती हैं.

सर्वेक्षण में पाया गया कि 32 से 58 साल की आयु के बीच की तीनचौथाई कामकाजी महिलाएं अपनी कठिन जीवनशैली के कारण लंबी तथा गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाती हैं. उन्हें मोटापा, थकान, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, पीठ दर्द और उच्च कोलैस्ट्रौल जैसी बीमारियां घेर लेती हैं.

इस सर्वे के अनुसार कामकाजी महिलाओं में दिल की बीमारी का जोखिम भी तेजी से बढ़ रहा है. 60% महिलाओं को 35 साल की उम्र तक दिल की बीमारी होने का खतरा रहता है. 32 से 58 साल की उम्र की महिलाओं के बीच हुए इस सर्वे के अनुसार 83% महिलाएं किसी तरह का व्यायाम नहीं करतीं और 57% महिलाएं खाने में फलसब्जी का कम उपयोग करती हैं.

युवा लड़कियां जो इन परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम होती हैं उन पर भी बाद में इस तरह की स्वास्थ्य समस्याओं में घिर जाने का खतरा बना रहता है. सर्वेक्षण में शामिल महिलाओं में 22% पुरानी लंबी बीमारी से ग्रस्त बताई गईं जबकि 14% गंभीर बीमारी से पीडि़त बताई गईं. एसोचैम का यह सर्वेक्षण अहमदाबाद, बैंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, एनसीआर, हैदराबाद, जयपुर, कोलकाता, लखनऊ, मुंबई और पुणे में 32 से 58 साल की 2,800 महिलाओं पर किया गया. ये महिलाएं 11 विभिन्न क्षेत्रों की 120 कंपनियों में कार्यरत हैं.

अतिरिक्त तनाव और दबाव

महिलाओं पर अच्छा अभिभावक, अच्छी मां बनने का काफी दबाव रहता है और यह उन के तनाव का कारण भी बनता है. महिलाएं सुबह से शाम तक भागदौड़ भरी जिंदगी में कई बार डाक्टर के पास भी नहीं जा पाती हैं.

एसोचैम द्वारा किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि मां बनने के बाद कई महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं. सर्वे के मुताबिक 40% महिलाएं अपने बच्चों को पालने के लिए यह फैसला लेती हैं.

खुद की परवाह छोड़ कर मां जीती है बच्चे के लिए. बच्चे के जन्म से पहले ही मां अपने बच्चे का खयाल रखना शुरू कर देती है. जब बच्चा पेट में होता है तो हर मां ऐसी चीजें खाने से बचती हैं जिन से बच्चे की सेहत पर गलत असर हो. अपनी पसंद की चीजों को छोड़ कर हमेशा अच्छी चीजें ही खाती हैं ताकि बच्चे की हैल्थ अच्छी रहे.

फिर बच्चों के बड़े होने तक हर मां अपने बच्चों और घर के दूसरे सदस्यों के भी खानपान और सेहत का पूरा खयाल रखती हैं और इस कारण वे अपनी सेहत पर बिलकुल ध्यान नहीं दे पातीं. सेहत पर ध्यान न दे पाने से समय के साथसाथ कुछ बीमारियों का खतरा बढ़ने लगता है. ऐसे में जरूरी है कि महिलाएं अपनी सेहत पर भी ध्यान दें.

याद रखिए आज बच्चे और परिवार आप की प्राथमिकता हैं, मगर बहुत जल्द वह समय आएगा जब बच्चे अपनी पढ़ाई या नौकरी के लिए दूर चले जाएंगे. यही नहीं शादी के बाद उन का अपना परिवार होगा और हो सकता है वे किसी और शहर या दूसरे देश में सैटल हो जाएं. ऐसे में आप को अपना संबल खुद बनना है. आप का जीवनसाथी आप के साथ होगा, मगर उन की देखभाल भी आप तभी कर सकती हैं जब खुद स्वस्थ रहें. बच्चे आप के ऊपर तभी तक निर्भर होते हैं जब तक वे बड़े नहीं हो जाते. उस के बाद आप को बाकी के 20-30 साल अकेले अपने बल पर ही बिताने हैं.

इस के लिए आप का शारीरिक और मानसिक रूप से हैल्दी रहना जरूरी है वरना आप दूसरों पर बोझ बन कर रह जाएंगी.

अपनी सेहत को इग्नोर न करें

बदलते वक्त ने महिलाओं को आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक रूप से सशक्त किया है और उन की हैसियत एवं सम्मान में भी वृद्धि हुई है. अकसर यह देखा गया है कि जब महिलाएं घर, परिवार और कार्यस्थल हर जगह अपना दायित्व का पालन करती हैं उस वक्त वे अपनी सेहत पर बिलकुल ध्यान नहीं दे पाती हैं. जब परेशानी हद से ज्यादा बढ़ जाती है तब वे अपनी सेहत की जांच करवाती हैं. अत: बेहतर है कि वे समय रहते खुद का खयाल रखें.

समयसमय पर मैडिकल टैस्ट

घर के काम, बच्चों की जिम्मेदारियां, घरगृहस्थी और औफिस की टैंशन आदि के कारण महिला की सेहत पर गलत असर होता है और समय के साथ कई बीमारियां जन्म ले लेती हैं. इन बीमारियों से बचने का सब से अच्छा तरीका यह है कि समयसमय पर अपने कुछ मैडिकल टैस्ट कराए जाएं और डाक्टर को दिखाएं. अगर रिपोर्ट में कुछ गलत निकलता है तो डाक्टर समय रहते सही इलाज करेंगे जिस से बीमारी पर काबू पाया जा सकता है. मैमोग्राम, थायराइड, पैप स्मीयर, डायबिटीज, ब्लड प्रैशर आदि मैडिकल टैस्ट समयसमय कराती रहें.

खानपान का रखें ध्यान

सुबह जल्दी उठने से रात देर से सोने तक एक महिलाएं दिनभर घर के काम करने और अपनी जिम्मेदारियों को निभाने में ही लगी रहती हैं. ऐसे में वे अपने खानपान पर ध्यान नहीं दे पातीं. कई बार तो वे खाली पेट रह कर भी घर के कामों में लगी रहती हैं. लेकिन ऐसा करना काफी गलत होता है. इसलिए खयाल रखें और रोजाना खाना समय पर व पौष्टिक लें. अपनी डाइट में फाइबर, प्रोटीन, फ्रूट्स, फल और सब्जियां भी शामिल करें.

फिजिकल ऐक्टिविटी

दिनभर घर के काम करने से आप की फिजिकल ऐक्टिविटी काफी हो जाती है. लेकिन इस के दूसरी ओर इन कामों से मानसिक थकान भी हो सकती है. इसलिए अपनी दिनचर्या में कुछ फन ऐक्टिविटीज डालने की भी कोशिश करें. ऐसा करने से आप का मूड सही रहेगा और फिजिकल ऐक्टिविटी भी हो जाएगी. आप समय निकाल कर गार्डनिंग कर सकती हैं, पार्क में घूमने जा सकती हैं, सहेलियों से मुलाकात कर सकती हैं.

आराम की भी है जरूरत

जैसेजैसे उम्र बढ़ती जाती है वैसेवैसे शरीर को अधिक आराम की जरूरत होती है. सुबह जल्दी उठने और रात देर से सोने के कारण कई बार नींद पूरी नहीं हो पाती होगी. इसलिए कोशिश करें कि आप कम से कम 8-9 घंटे की नींद जरूर लें. अगर किसी कारण से रात में पूरी नींद नहीं हो पाती तो दिन में भी 2-3 घंटे की नींद ले सकती हैं. ऐसा करने से थकान को दूर करने में मदद मिलेगी.

दूसरों से मदद लें

बच्चा छोटा होता है तो उस के काम बहुत ज्यादा होते हैं. बड़े होने के बाद भी एक मां के लिए बच्चे के सारे काम खुद संभालना कठिन होता है. इसी वजह से उसे अपने बारे में सोचने का समय ही नहीं मिलता. इसीलिए जरूरी है कि आप घर के दूसरे सदस्यों की मदद लें ताकि अपने लिए थोड़ा समय बचा पाएं. अगर आप नईनई मां बनी हैं तो आप को अपना और ज्यादा खयाल रखना चाहिए. ऐसे में आप को बेहतर स्वास्थ्य के लिए चीजों को आसान बनाने की आवश्यकता है. आप पार्ट टाइम या फुलटाइम मदद के लिए घर में नौकर लगा लें. चाहें तो मदद के लिए मातापिता या सासससुर को बुला लें.

जिन घरों में पति या अन्य परिजन कामकाज में हाथ बंटाते हैं वहां महिलाओं का स्वास्थ्य अपेक्षाकृत बेहतर पाया जाता है. स्वस्थ महिला स्वस्थ परिवार और स्वस्थ समाज का निर्माण करती है, इसलिए महिलाओं को तनावमुक्त और काम के बोझ से मुक्त रखना परिवार की जिम्मेदारी है.

घर की सुंदरता में ऐसे लगाएं चार चांद

घर ऐसा स्थान है जहां आप का दिल रहता है और इस के लिए हम ऐसा स्थान तैयार करते हैं जो सुंदर, भव्य हो और हमारे व्यवहार को दर्शाता हो. साल में एक बार लोग अपने घर में रहने के स्थान से ले कर खानेपीने की जगह और बैडरूम से ले कर किचेन तक को नया लुक देने की कोशिश करते हैं. लेकिन क्या आप ने कभी अपनी बालकनी, छत, गार्डन और प्रवेशद्वार के बारे में कुछ नया करने की सोची है. कोई भी इन कोनों पर ध्यान क्यों नहीं देता है जो घर का अहम हिस्सा हैं? लाइम रोड स्टाइल काउंसिल ने आप के घर को नया लुक प्रदान करने के लिए घर की सजावट से संबंधित कुछ रुझानों पर ध्यान केंद्रित किया है. ये टिप्स आप के घर की सुंदरता को दोगुना बढ़ा देंगे.

हैंडपेंटेड वाल हैंगिंग :

आकर्षक हैंडपेंटेड वाल हैंगिंग को घर की डोरबैल के ठीक ऊपर लटकाएं. शीशम की लकड़ी और पीतल से बनी ढोकरा आकृतियों और बीच में घुंघरू लगा यह ब्राउन वाल हैंगिंग आप के घर के प्रवेशद्वार के दाईं ओर लगाने के लिए आकर्षक एवं स्टाइलिश उत्पाद है.

मोरक्कन मेटालिक लैंटर्न :

अपनी बालकनी को मोरक्कन लुक प्रदान करें. मोरक्कन मेटालिक लैंटर्न आप के घर को एक अलग अंदाज में जगमग कर देंगे. मेटालिक लैंटर्न घर को सुंदर ढंग से सजाने के लिए तैयार किए गए हैं.

मल्टी कैनवस वाल हैंगिंग :

विंड चाइम्स आप के गार्डन या बालकनी के लिए सुंदर रंगों में कैनवस वाल हैंगिंग के साथ जोड़े गए हैं. इस फिश डैकोरेटिव हैंगिंग में सजावटी घंटियां भी लगी हुई हैं जिन से सुंदरता और बढ़ जाती है.

पाइन वुड मिरर :

घर के प्रवेशद्वार को मल्टीकलर्ड पाइन वुड डैकोरेटिव मिरर के साथ आकर्षक बनाएं. यह एथनिक वाल मिरर आकर्षक दिखता है. जरूरत के हिसाब से प्रवेशद्वार या बालकनी में मिरर को लटकाएं और अपने आसपास आकर्षक बदलाव महसूस करें.

पिंक सिरेमिक गुलदस्ते :

घर के छोटे गार्डन में खास बदलाव करें. अपने गार्डन में पिंक या ब्लू कलर के आकर्षक सिरेमिक गुलदस्तों का इस्तेमाल करें.

हार की जीत- भाग 2: कपिल ने पत्नी को कैसे समझाया

छोटी सी सोसायटी थी. कुल मिला कर 4 टावर. गेट पर चौबीस घंटे का पहरा. कालोनी के बीच में बड़ा सा मैदान, जिस में बच्चों के लिए झूले लगे थे. शहर से थोड़ी दूर थी कालोनी, पर थी बहुत सुंदर. एक ही सप्ताह में दोनों अपनाअपना परिवार ले कर सामान समेत पहुंच गए. दोनों सपरिवार साथसाथ रह कर खुश भी थे. दिनभर औफिस का काम निबटा कर शाम को दोनों परिवार एकसाथ बैठ कर गपशप करते. कई बार रात का डिनर भी हो जाता था. कुछ सौरभ की पत्नी आरुषि पका लेती, तो कुछ शालू पका लेती… पिकनिक, पिक्चर, शौपिंग का प्रोग्राम भी साथसाथ ही चलता रहता था. दिन मजे से कट रहे थे.

एक दिन आरुषि सुबहसुबह शालू के पास आई. कुछ परेशान थी. बोली, ‘‘शालू, आज अचानक चीनी खत्म हो गई. मैं सोच रही थी डब्बे में होगी, पर डब्बा भी खाली था. गलती मेरी ही थी. शायद मंगाना ही भूल गई थी. गुडि़या दूध के लिए रो रही है. 1 कटोरी चीने दे दे. बाजार से मंगा कर वापस दे दूंगी.’’

शालू हंस दी थी, ‘‘हो जाता है कभीकभी. औफिस के काम में हमारे पति भी इतने मशगूल हो जाते हैं कि कई बार घर का सामान लाना ही भूल जाते हैं.’’

आरुषि खुश हो कर बोली, ‘‘शाम को वापस कर दूंगी.’’

‘‘अब 1 कटोरी चीनी वापस करोगी? बस इतनी ही दोस्ती रह गई हमारी…’’ शालू ने आरुषि के संकोच को दूर करने की गरज से कहा, ‘‘लेनदेन तो पड़ोसियों में चलता ही रहता है,’’ और फिर काफी देर तक उदाहरण समेत एक पड़ोसी ने दूसरे पड़ोसी की किस तरह सहायता की, इन भूलीबिसरी बातों की चर्चा छिड़ गई.

आरुषि ने शालू से इतने अच्छे व्यवहार की उम्मीद नहीं की थी. अब वक्तबेवक्त उस का शालू से कुछ भी मांगने का संकोच कम होने लगा. उस के घर हर समय कोई न कोई चीज घटती ही रहती थी. मौका मिलते ही पहुंच जाती थी शालू के घर और साथ ही सौरभ की लापरवाही के किस्से भी सुना आती थी.

आरुषि की हालत देख कर शालू का दिल पसीज उठता. सोचती वह कितनी खुश है कि कपिल कभी कोई सामान समाप्त ही नहीं होने देता. शुरू में उस के पास सिर्फ एक ही गैस का सिलैंडर था. गैस खत्म होती तो उसे हौट प्लेट पर खाना पकाना पड़ता था. जैसे ही दूसरे सिलैंडर की बुकिंग शुरू हुई उस ने दूसरा सिलैंडर तुरंत बुक कर लिया. पर सौरभ कितना लापरवाह है. सामान समाप्त हो जाता है, वह कईकई दिनों तक लाने की सुध ही नहीं लेता. यह तो अच्छा है हम दोनों के घर पासपास हैं वरना ऐसी जरूरत के समय बेचारी कहां मांगती फिरती.

शुरू में कपिल और सौरभ दोनों अपनेअपने स्कूटर से औफिस जाते थे. फिर सौरभ

ने प्रस्ताव रखा कि जब साथसाथ ही जाना है तो डबल खर्चा क्यों किया जाए. एक दिन सौरभ स्कूटर निकाल ले एक दिन कपिल.

इधर काफी दिनों से सौरभ का स्कूटर खराब पड़ा था. वह कपिल के स्कूटर से ही आ जा रहा था. एक बार कपिल ने पूछा तो बोला कि दफ्तर में काम ज्यादा होने के कारण उसे स्कूटर ठीक करवाने का समय ही नहीं मिल पा रहा है.

स्कूटर के हौर्न की आवाज आई तो, शालू दौड़ीदौड़ी बाहर भागी. कब शाम हो गई, उसे पता ही नहीं चला. कपिल औफिस से वापस आ गया था. पीछे सौरभ एक 5 लिटर का रिफाइंड औयल का डब्बा पकड़े बैठा था.

‘‘लीजिए भाभीजी, आप के रसोईघर का इमरजैंसी प्रबंध,’’ सौरभ तेल का डब्बा शालू को पकड़ाते हुए बोला.

उधर कपिल के दिमाग में घर के खर्चे का हिसाब घूम रहा था. उस ने शालू को साथ बैठा कर ध्यान से हिसाब की कौपी में 1-1 आइटम देखनी शुरू की. थोड़ी देर कुछ जोड़तोड़ के बाद उस ने उन जरूरी खर्चों का ही विश्लेषण करना शुरू किया जिन के बारे में शालू ने उसे सुबह बताया था.

‘‘शालू, पिछले महीने चीनी 5 किलोग्राम कैसे आई? 2 लोगों में तो ज्यादा

से ज्यादा 2 किलोग्राम चीनी खर्च होनी चाहिए.’’

शालू एकदम से कोई जवाब नहीं दे पाई.

कपिल फिर से हिसाब में घुस गया, ‘‘इस बार डिटर्जैंट भी 1 किलोग्राम लगा है, जबकि हम 2 लोगों के कपड़ों में 500 ग्राम डिटर्जैंट ही लगा करता था.’’

‘‘वह इस बार दफ्तर में व्यस्तता के कारण सौरभ सामान नहीं ला पाया था, इसलिए आरुषि चीनी और डिटर्जैंट उधार मां कर ले गई थी. कह रही थी कि जल्दी वापस कर देगी.’’

एक तो शालू खुद को गुनहगार समझ रही थी कि कपिल से बिना पूछे उस ने सामान आरुषि को दे दिया, दूसरे सौरभ कपिल का प्रिय मित्र था, इस कारण भी शालू अपनी बात को शिकायत का रूप नहीं देना चाह रही थी.

‘‘और यह क्या गैस का सिलैंडर 20 दिन में खत्म… कहां हमारा सिलैंडर 3 महीने चलता था?’’

‘‘वह सौरभ को टाइम नहीं मिल रहा था, इसलिए गैस बुक नहीं कर पा रहा था… आरुषि दालसब्जी हमारी ही गैस पर बना लेती है,’’ शालू धीरे से बोली तो कपिल चिल्लाया, ‘‘अगर सौरभ को समय नहीं मिल रहा था तो आरुषि बुक कर लेती… मुझे कहती मैं बुक कर देता. और यह क्या, पिछले महीने सब्जी भी बहुत ज्यादा आई है.’’

शालू एकदम से उस का कुछ हिसाब नहीं दे पाई. उसे याद भी नहीं आ रहा था कि सब्जी अधिक क्यों आई होगी? जो भी आई थी, पका कर खा ली गई थी, किसी भी दिन फेंकी नहीं गई थी.

थोड़ीबहुत नोकझोंक के बाद कपिल ने कौपी बंद कर दी.

माहौल को हलका बनाने के लिए शालू बोली, ‘‘तुम भी क्या हिसाबकिताब ले कर बैठ गए हो.’’

‘‘ऐसी बात नहीं है शालू. मेरे अकाउंट में कुल क्व10 हजार थे. क्व5 हजार फ्रिज की किस्त में निकल गए. आज सौरभ ने कहा कि उस के पैसे खत्म हो गए हैं और उसे बेटे की फीस भरनी है, सो ढाई हजार मैं ने उधार दे दिए. अब तो मात्र ढाई हजार बचे हैं. इतने पैसों में घर का हिसाब कैसे चलेगा?’’

‘‘ओह तो इस महीने हम प्रैस नहीं खरीद पाएंगे. मालूम है प्रैस करने का रोज का धोबी का खर्च 10-15 रुपए हो जाता है.’’

कपिल ने गरदन हिला कर बात वहीं समाप्त कर दी.

रविवार का दिन था. अचानक पड़ोस के घर से खटखट की आवाज आई. कपिल ऊपर छत पर चढ़ गया. सौरभ डिश लगवा रहा था. भुनभुनाते हुए वह नीचे उतर आया. बोला, ‘‘कल तक तो फीस के पैसे नहीं थे और आज डिश लगवा रहा है.’’

शालू ने आरुषि की ओर से सफाई दी, ‘‘अरे, उन का टीवी बेकार बंद पड़ा था. आरुषि भी बोर होती थी. इसलिए शायद लगवा लिया होगा.’’

कपिल ने झुंझलाई सी आवाज में कहा, ‘‘ठीक है, पर उधार ले कर क्यों.’’

शालू को थोड़ी हिम्मत बंधी. बोली, ‘‘अगर तुम नाराज न हो तो एक बात बताऊं? तुम्हारे जाने के बाद मैं हिसाब की कौपी ले कर बैठी. काफी सोचने पर मैं ने देखा कि आरुषि जो सामान ले कर जाती है, वह कह तो देती है कि वापस कर देगी, पर आज तक उस ने कभी कुछ वापस नहीं किया. हमें ही अधिक खरीदना पड़ता है. इसीलिए तुम्हें हिसाब में सामान अधिक खरीदा हुआ दिख रहा था.’’

‘‘और क्याक्या ले जाती थी वह…?’’

शालू ने एक ही सांस में बता दिया, ‘‘सभी कुछ सब्जी, दूध, चाय, चीनी, पाउडर, रिफाइंड तेल, बच्चों के लिए रबर, पैंसिल, शार्पनर, गैस का सिलैंडर तो उस ने कभी मांगा नहीं, मेरी किचन में आ कर चायनाश्ता और खाना खूब पकाया है. तभी तो सिलैंडर 15-20 दिन में खत्म हो जाता था.’’

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?’’

‘‘एक तो मेरा ध्यान ही नहीं गया, दूसरा सौरभ तुम्हारा मित्र है. इस तरह की छोटीछोटी बातें बताती तो तुम्हें शिकायत लगती.’’

शालू की डरी शक्ल देख कर कपिल थोड़ा शांत हो गया. बोला, ‘‘ठीक है आगे से थोड़ा सतर्क रहना शुरू कर दो.’’

‘‘कैसे?’’

‘‘आगे से वह कुछ मांगने आए तो बहाना बना देना. ऐसे मना कर देना जिस से उसे बुरा भी न लगे.’’

‘‘मुझे तो बहाने बनाने भी नहीं आते.’’

‘‘अरे, कुछ भी कह देना जैसे दूध फट गया है. चीनी खत्म हो गई है और हम गुड़ की चाय पी रहे हैं. आलू मांगे तो कहना करेले बना रही हूं.’’

कपिल घर से निकला ही था कि आरुषि धड़धड़ाती हुई अंदर आ गई.

‘‘अरे यार यह दरवाजा कैसे खुला छोड़ रखा है? फिर बिना शालू के जवाब की प्रतीक्षा किए ही बोली, ‘‘मैं नहाने घुसी और गैस पर रखा दूध सारा उबल गया. शालू, थोड़ा दूध दे दे. गुडि़या रो रही है.’’

‘‘दूध फट गया,’’ शालू को कपिल का वह बहाना याद आया. जब तक वह यह बहाना बना पाती, उस से पहले ही आरुषि ने फ्रिज खोल लिया. सामने 2 पैकेट रखे थे, ‘‘एक पैकेट मैं ले लेती हूं. शाम को सौरभ से कह कर मंगवा दूंगी,’’ और फिर आरुषि तेजी से वापस लौट गई.

घंटेभर बाद फिर घंटी बजी. आरुषि ही थी. किचन की तरफ पैर बढ़ाते हुए बोली, ‘‘आज क्या बना रही है खाने में?’’

हार की जीत- भाग 1: कपिल ने पत्नी को कैसे समझाया

कपिल हिसाब की कौपी देख कर दंग रह गया. इतना अधिक खर्चा? यह तो 1 महीने का ही हिसाब है. अगर ऐसे ही चलता रहा तो दिवाला ही निकल जाएगा.

पिछले 1-2 महीनों से कपिल देख रहा था कि जबतब शालू एटीएम से पैसे निकाल कर भी खर्च कर लेती थी. एटीएम नहीं जा पाती तो कपिल से पैसे मांग लेती थी. शुरू में तो कपिल यही सोच कर टालता रहा कि नईनई शादी है और शालू ने पहली बार गृहस्थी संभाली है, शायद इसीलिए खर्चों का हिसाब नहीं बैठा पा रही. खुद उसे भी कहां अंदाजा था. संयुक्त परिवार में खर्चा मां और बाबूजी चलाते थे. लेकिन हर महीने वेतन से ज्यादा खर्च तो पानी सिर के ऊपर जाने वाली बात हो गई. कपिल दुविधा में था. आखिर इतने पैसे कहां खर्च कर रही शालू?

कुछ दिन पहले ही उन दोनों की शादी हुई थी. कानपुर स्थानांतरण के बाद भी शुरूशुरू के 1-2 महीनों तक तो हिसाब सही चला, पर धीरेधीरे कपिल को महसूस होने लगा कि खर्चा कुछ ज्यादा हो रहा है. उस ने शालू को खर्चों के बारे में सावधान रहने के लिए इशारा भी किया, पर शालू ने इस ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया. कपिल को थोड़ी सी झल्लाहट हुई. बिजनैसमैन की बेटी है. ज्यादा कमाई है. शायद उसे अंदाजा ही नहीं होगा कि बंधीबंधाई कमाई से खर्चा कैसे चलाया जाता है. शादी से पहले उसे इसी बात का तो डर था.

कपिल के मांबाप शालू को पहले ही देख आए थे. शहर में शालू के पिता का नाम था. जितना बड़ा नाम उतनी ही बड़ी कोठी. शालू सुंदर थी, शिष्ट थी, पढ़ीलिखी थी. उन्हें पहली ही नजर में शालू पसंद आ गई थी. लेकिन कपिल थोड़ा असमंजस में था. उस ने ऐसे कई किस्से सुन रखे थे, जहां बड़े घर की लड़की बंधीबंधाई आमदनी से गुजारा नहीं कर पाती और खर्चों को ले कर रोज लड़ाईझगड़े होते हैं. कुछ मामलों में तो नौबत तलाक तक पहुंच जाती है.

ऐसा नहीं कि कपिल बड़े घर का नहीं था, पर उस का मानना था कि बड़ा घर तो उस के पिता का है. वह स्वयं तो वेतनभोगी ही है जिसे महीने में सिर्फ 1 बार ही बंधीबंधाई तनख्वाह मिलती है और कभीकभार टूर पर जाता है तो टीए, डीए मिल जाता है. इस के अलावा कोई आमदनी नहीं है. जो भी लड़की उस की पत्नी बन कर आएगी उसे पूरा महीना उसी सैलरी से गुजारा करना पड़ेगा.

मातापिता ने जब शालू के लिए कपिल पर थोड़ा दबाव डाला तो वह इस शर्त पर राजी हो गया कि वह पहले लड़की से बात करेगा, फिर निर्णय लेगा. कपिल की शर्त मान ली गई. कपिल ने दोटूक बात करना उचित समझा, ‘‘देखो शालू हम दोनों को अपनेअपने जीवन के विषय में एक अहम निर्णय लेना है. शक्लसूरत या जन्मपत्री ही सबकुछ नहीं होती. यह जरूरी है कि हम दोनों एकदूसरे के विषय में अच्छी तरह जान लेने के बाद ही किसी तरह का निर्णय लें. कुछ प्रश्न तुम्हारे दिल में होंगे और कुछ मेरे दिल में हैं. उस के बाद ही हम यह निर्णय लेंगे कि हम एकदूसरे के साथ रह सकते हैं या नहीं.’’

शालू को कपिल से इतनी खुली बात की आशा नहीं थी. वह समझ भी नहीं पा रही थी कि कपिल उस से किस विषय पर बात करेगा. उस की पढ़ाई के विषय में या उस की हौबी के विषय में या फिर घरेलू कामकाज के विषय में उस से सवाल पूछेगा…? हो सकता है उस के सामान्य ज्ञान की परीक्षा ले. उस ने डर के मारे उसी दिन से अखबार पढ़ना शुरू कर दिया. कोर्स की किताबें एक बार फिर खुल गईं. जैसे नौकरी के लिए साक्षात्कार की तैयारी कर रही हो.

कपिल ने अपना पक्ष रखा, ‘‘सब से पहली बात तो यह है कि हम दोनों के परिवारों का रहनसहन का स्तर सामान्य है. दोनों के घरों में खासा पैसा भी है, लेकिन वे दोनों घर हमारे मातापिता के हैं. मैं एक नौकरीपेशा आदमी हूं. मुझे माह में बंधा हुआ वेतन मिलता है और तुम्हें उसी वेतन में काम चलाना होगा. एक और बात, भविष्य में मैं या तुम कभी अपने मातापिता के आगे हाथ नहीं फैलाएंगे.’’

शालू ने सहमति में गरदन हिला दी.

‘‘चौकाबरतन के अतिरिक्त हम दूसरे किसी काम के लिए नौकर नहीं रखेंगे. घर के सारे काम हम दोनों को मिलजुल कर करने होंगे.’’

शालू ने इस बार भी हामी भर दी.

‘‘किसी दूसरे की सुखसुविधाओं को देख कर तुलना नहीं करनी है. हम जब समर्थ होंगे, तब खुद ही खरीद लेंगे.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘मुझे बेईमानी की कमाई से सख्त नफरत है. मुझे कभी ऊपर की कमाई के लिए मत कहना.’’

‘‘रिश्वत से तो मुझे भी चिढ़ है.’’

‘‘मेरे रैंक के अनुसार मुझे बड़ा मकान नहीं मिलेगा. शुरूशुरू में तुम्हें छोटे मकान में ही गुजारा करना पड़ेगा.’’

‘‘नहीं कहूंगी. बड़ा मकान तो वैसे भी मैंटेन करना मुश्किल होता है.’’

‘‘बस मुझे इतना ही कहना था. अब तुम्हारी कोई शर्त हो तो वह भी बता दो.’’

शालू मंत्रमुग्ध सी कपिल का चेहरा निहारने लगी. उसे खुद पर नाज हुआ कि कितना सरल स्वभाव है कपिल का. और कोई होता तो अपनी नौकरी के लिए बढ़चढ़ कर बता उसे प्रभावित करने की कोशिश करता. वह तो इस के लिए तैयार ही नहीं थी. तो उस के मुंह से इतना भर ही निकला, ‘‘मेरे पापा मुझे कभी शहर से बाहर घुमाने नहीं ले जाते. तुम मुझे घुमाने तो ले जाओगे न?’’

‘‘भला यह क्या शर्त हुई?’’ कपिल शालू के भोलेपन पर हंस दिया.

दोनों ने एकदूसरे की शर्तें मान लीं और फिर विवाह हो गया.

बरामदे में खड़ाखड़ा कपिल यही सोच रहा था, जब शादी से पहले उस ने सारी बातें खुल कर बता दी थीं, फिर शालू खर्चों पर नियंत्रण क्यों नहीं रख रही है? उस ने वहीं से शालू को आवाज दी. भरसक नियंत्रण रखने के बावजूद उस की आवाज तेज हो गई थी. शालू घबराईहड़बड़ाई सी रसोईघर से बाहर निकल आई. हड़बड़ाहट में वह और सुंदर लग रही थी. अपनी नई पत्नी को इस हाल में देख कर कपिल को तरस आ गया. थोड़ा क्रोध भी शांत हुआ. उस ने बड़े प्यार से पूछा, ‘‘शालू, यह हिसाब की कौपी देखो. तुम खर्चों पर नियंत्रण क्यों नहीं रख रही हो? मैं ने पिछले माह भी टोका था?’’

शालू ने सहम कर उत्तर दिया, ‘‘मैं तो पूरा खर्चा हाथ रोक कर करती हूं. न कोई कपड़ा खरीदती हूं, न मेकअप का सामान खरीदती हूं, न ब्यूटीपार्लर ही जाती हूं. यह तो रोजमर्रा का आवश्यक सामान है.’’

जब तक कपिल 1-1 आइटम हिसाब की कौपी में देख पाता, उस के मित्र सौरभ का मोबाइल पर फोन आ गया. बिल्ंिडग के बाहर गेट के पास खड़ा वह कपिल की प्रतीक्षा कर रहा था. कपिल अपनी कार निकाल कर सौरभ के साथ औफिस निकल गया. कपिल के स्थानांतरण के साथ ही उस के बैचमैट सौरभ का भी स्थानांतरण कानपुर हो गया था. दोनों ने साथसाथ ही मकान ढूंढ़ा. एक ही बैच के होने के कारण दोनों यही चाहते थे कि एक ही सोसायटी में दोनों को मकान मिल जाए.

सौरभ का परिवार थोड़ा बड़ा था. पत्नी, सासससुर और 2 बच्चे. उस ने 3 बीएचके का फ्लैट लिया. कपिल का परिवार छोटा था. वह और शालू. उस ने 1 बीएचके का फ्लैट लिया. दोनों को एक ही बिल्डिंग में आमनेसामने फ्लैट मिल गए.

नशा- भाग 1: क्या नेहा के लिए खुद को बदल पाया सुमित

सुबह 10 बजे के करीब मैं नेहा से मिलने उस के घर पहुंची. उस ने सुमित की जिंदगी से निकलने का फैसला क्यों किया है, मैं यह जानना चाहती थी.

मेरे सवाल को सुन कर वह बहुत परेशान हो उठी. कुछ देर खामोश रहने के बाद उस ने बोलना शुरू किया, ‘‘अनु दीदी, उस की शराब पीने की आदत उस का स्वास्थ्य भी बरबाद कर रही है और हमारे बीच भी ऐसी खाई पैदा कर दी है, जिसे भरने में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ और वह रोंआसी हो उठी.

‘‘क्या वह बहुत पीने लगा है?’’ मैं ने चिंतित लहजे में पूछा.

‘‘दीदी, सूरज डूबने के बाद उस के लिए शराब पीने से बचना संभव ही नहीं. घर में उस के मम्मीपापा दोनों पीते हैं. सुमित दोस्तों के यहां हो या क्लब में, शराब का गिलास उस के हाथ में जरूर नजर आएगा. बिजनैस बढ़ाने के लिए पीनापिलाना जरूरी है, वह इस उसूल को मानने वाला है. यह बात अलग है कि अब तक वह अपने बिजनैस में 10 लाख से ज्यादा रुपए डुबो चुका है.’’

‘‘तुम तो उसे दिल से प्यार करती थीं?’’

‘‘वह तो आज भी करती हूं दीदी, पर अब उस का साथ निभाना नामुमकिन हो गया है.’’

‘‘प्यार में बड़ी ताकत होती है, नेहा. तुम्हें यों हार नहीं माननी…’’

‘‘दीदी, आप मुझ पर कोशिश न करने का इलजाम न लगाओ, प्लीज,’’ उस की आंखों में आंसू भर आए, ‘‘मैं ने सुमित के सामने हाथ जोड़े… गिड़गिड़ाई… रोई… नाराज हुई… गुस्सा किया पर उस ने शराब छोड़ने के झूठे वादे ही किए, छोड़ी नहीं.

‘‘मैं ने उस से बोलना छोड़ा, तो वह सुधरने के बजाय मारपीट और गालीगलौज पर उतर आया… एक नहीं कई बार उस ने मुझ पर हाथ उठाया.’’

कुछ देर खामोश रहने के बाद मैं ने उस से पूछा, ‘‘वह शराब पीना छोड़ दे, तो क्या तुम उसे अपनी जिंदगी में दोबारा लौटने दोगी?’’

‘‘दीदी, मुझे झूठी आशा मत बंधाइए.’’

‘‘तुम मेरे सवाल का तो जवाब दो.’’

‘‘मैं ने तो सुमित के साथ ही जिंदगी गुजारने का सपना देखा है, दीदी. पर अब कभी शादी न करने का विचार मुझे जंचने लगा है… प्रेम पर से मेरा विश्वास उठ गया है,’’ वह बहुत उदास हो उठी.

‘‘तुम शाम को क्लब आओ, नेहा. मैं अभी सुमित से मिलने जा रही हूं. उस से क्या बात हुई, तुम्हें शाम को बताऊंगी,’’ उस का हाथ प्यार से दबा कर मैं उठ खड़ी हुई थी.

कुछ देर बाद सुमित के घर में व्याप्त तनाव को मैं ने अंदर कदम रखते ही महसूस किया. उस के पिता सुरेंद्र अंकल गुस्से से भरे थे. सीमा आंटी की सूजी आंखें साफ बता रही थीं कि वे कुछ देर पहले खूब रोई हैं.

सुमित से मैं करीब 3 महीने बाद मिल रही थी. उस का चेहरा मुझे सूजा सा नजर आया. आंखों के नीचे काले गड्ढे थे.

वे सब मुझे घर का सदस्य मानते थे. चिंता के कारण को अंकल और आंटी मुझ से ज्यादा देर छिपा नहीं पाए.

सुमित को नाराजगी से घूरते हुए सुरेंद्र अंकल ने मुझे बताया, ‘‘अनु, यह पहले ही लाखों रुपए का नुकसान करा चुका है. अब 20 लाख रुपए की और मांग है नवाबजादे की. यह किसी लायक होता तो मैं कहीं से इंतजाम जरूर करता पर इस को फिर अपने दोस्तों की सलाह पर चल कर नुकसान उठाना है. मुझे अब 1 रुपया भी नहीं लगाना इस के बिजनैस में.’’

‘‘बेकार की बातें कर के अपना और मेरा दिमाग मत खराब करो डैड. आप की रकम मैं साल भर में लौटा दूंगा,’’ सुमित बड़ी कठिनाई से अपने गुस्से को काबू में रख पा रहा था.

‘‘इस बार इस की मदद कर दीजिए,’’ अपनी पत्नी के इस सुझाव की प्रतिक्रिया में सुरेंद्र अंकल ने उन्हें बेहद गुस्से से देखा.

‘‘महत्त्वपूर्ण फैसले शांत मन से करने चाहिए, क्रोध या टकराव की भावना के वश में हो कर नहीं, अंकल. सुमित की परेशानी आप हल नहीं करेंगे तो कौन हल करेगा?’’ इन के झगड़े के बीच मैं खुद को बड़ा असहज व परेशान महसूस कर रही थी.

‘‘इस की मुसीबत की जड़ इस के वे दोस्त हैं अनु, जिन्हें शराब पी कर मौजमस्ती करने के अलावा कोई काम नहीं है और वह लड़की नेहा, जो इसे दुत्कारती रहती है और यह है कि उस के आगेपीछे घूमे जा रहा है… अरे, क्या कमी है इस के लिए अच्छी लड़कियों की? मैं एक से एक…’’

‘‘मुझे कोई दिलचस्पी नहीं है आप की किसी भी एक से एक बढि़या लड़की में. मेरा इस घर में दम घुटता है,’’ कह कर सुमित झटके से उठा और बाहर चला गया.

मैं उठ कर उस के पीछे भागी. वह मुझ से भी बात करने के मूड में नहीं था. शाम को क्लब में मिलने का वादा कर के वह अपनी फैक्टरी चला गया.

बाद में सुरेंद्र अंकल ने मुझ से सुमित की शिकायतें दिल भर कर कीं. सीमा आंटी जब भी अपने बेटे का पक्ष लेतीं, दोनों के बीच फौरन झगड़ा शुरू हो जाता.

लंच मैं ने अंकलआंटी के साथ ही किया. वे दोनों बीयर पीते हुए खा रहे थे.

‘‘सोलन में तो बहुत ठंड पड़ती है. तुम ने वहां भी अब तक ड्रिंक लेना शुरू नहीं किया है, अनु?’’ सीमा आंटी ने अपना बीयर का गिलास भरते हुए पूछा.

‘‘नहीं, आंटी,’’ मैं ने जबरदस्ती मुसकराते हुए जवाब दिया.

सुरेंद्र अंकल ने पहली बार वार्त्तालाप में हिस्सा लेते हुए हंस कर कहा, ‘‘जिंदगी के हर मोड़ पर आजकल जबरदस्त कंपीटीशन है. युवावर्ग टैंशन का शिकार है और उसे दूर करने के लिए पीना उस की जरूरत बन गया है.’’

‘‘आज का युवावर्ग कम पिएगा अगर हम ड्रिंक करने को सामाजिक स्वीकृति देना बंद कर दें. पीने को सामाजिक जीवन का स्वीकृत हिस्सा बना कर हम ठीक नहीं कर रहे हैं. इस से होने वाले नुकसानों को मुझे गिनाने की जरूरत नहीं है,’’ मैं ने जज्बाती अंदाज में अपने दिल की बात कही.

उन दोनों ने मेरी बात सुन कर भी अनसुनी सी कर दी. अपनी किसी गलती को सच्चे मन से स्वीकार कर के बदलाव लाना क्या आसान काम है?

शाम को सुमित की शराब पीने की लत ने जो रंग दिखाया, उसे मैं गहरे दुख और अफसोस के साथ ही बयान कर रही हूं.

ऐन वक्त पर पापा के एक दोस्त उन से मिलने आ गए, इस कारण हम उस शाम क्लब कुछ देर से पहुंचे थे. हौल में प्रवेश करने से पहले ही सुमित की नशे में लड़खड़ाती गुस्से से भरी आवाज हमारे कानों तक पहुंची. अंदर का दृश्य देख कर हमारा दिमाग घूम गया.

नशा- भाग 2: क्या नेहा के लिए खुद को बदल पाया सुमित

सुमित को 4 लोगों ने पकड़ रखा था. उस के सामने नेहा अपने मम्मीपापा के साथ खड़ी डरीसहमी नजर आ रही थी.

अपनी और नेहा व उस के परिवार की इज्जत को ताक पर रख सुमित चिल्ला रहा था, ‘‘आई लव यू, नेहा. तुम मुझ से दूर होने की सोचना भी मत… तुम्हारे बिना मैं जिंदा नहीं रह सकता…’’

उस ने अपने को आजाद कराने के लिए पूरी ताकत लगाई, तो अपना संतुलन खो कर गिर पड़ा. भीड़ में उपस्थित कई लोग मुसकराने लगे.

क्लब सैक्रेटरी ने नेहा के पापा से कहा, ‘‘आप मेरे साथ आइए, सर. क्लब में ऐसा गंदा, बेहूदा व्यवहार सहन नहीं किया जाएगा. मैं सख्त कार्यवाही करूंगा.’’

‘‘तुम मेरे पास रुको, नेहा,’’ सुमित ने खड़े हो कर उन सब का रास्ता रोकने की कोशिश की.

‘‘इसे बाहर का रास्ता दिखाओ और जब इस के पिताजी आएं, तो उन से कहना कि मुझ से मिलें,’’ ऐसी हिदायत क्लब के सुरक्षाकर्मियों को दे कर क्लब सैक्रेटरी उन तीनों को लाइब्रेरी में ले गया. चारों सुरक्षाकर्मी सुमित को जबरदस्ती बाहर ले चले.

‘‘मुझे छोड़ो, यू इडियट्स. मेरी भी यहां रुकने में कोई दिलचस्पी नहीं है,’’ सुमित ने झटका दे कर खुद को उन की पकड़ से आजाद किया और डगमगाते कदमों से मुख्यद्वार की तरफ बढ़ा.

‘‘सुमित, रुको,’’ वह मेरी बगल से गुजरा तो मैं ने उस का बाजू थाम कर उसे रोकने का प्रयास किया.

‘‘मुझे छोड़ो, अनु,’’ उस ने तेज झटके से मेरा हाथ हटाया और गुस्से से भरी आवाज में बोला, ‘‘यह मरेगी मेरे हाथों.’’

मैं ने पल भर को उस की आंखों में झांका था. आंखों में मुझे जो वहशीपन नजर आया, वह इस बात का सुबूत था कि यह इनसान इस वक्त किसी के भी साथ मारपीट और कैसी भी बदतमीजी कर सकता है.

‘‘इस ने शराब नहीं छोड़ी, तो नेहा को इस से कभी कोई रिश्ता नहीं रखना चाहिए,’’ मां की इस टिप्पणी से मैं पूरी तरह से सहमत थी.

सुमित इस वक्त नशे और भावनात्मक उथलपुथल का शिकार था. मैं ने अपने बड़े भैया अरुण से उस के साथ रहने की प्रार्थना की, तो वे फौरन सुमित के पीछेपीछे बाहर चले गए.

कुछ देर बाद सुरेंद्र अंकल और सीमा आंटी भी आ गए. उन्हें वहां हुए तमाशे की जानकारी फौरन मिल गई. दोनों लाइब्रेरी में क्लब सैक्रेटरी और नेहा व उस के मातापिता से मिलने चले गए.

घंटे भर के अंदर सुरेंद्र अंकल मामले को ठंडा करने में सफल हो गए. नेहा अपने मातापिता के साथ घर चली गई. सुमित और अरुण भैया से फोन पर संपर्क न स्थापित हो पाने के कारण हम सब की चिंता बढ़ती जा रही थी.

करीब 11 बजे अरुण भैया का फोन आया, ‘‘हमारी फिक्र मत करो. सब ठीक है. सुमित मेरे साथ है और 2-3 घंटों के बाद मैं उसे उस के घर छोड़ दूंगा.’’

क्लब से हम सब लोग सुरेंद्र अंकल के यहां आ गए. सुमित और अरुण भैया को ले कर सभी बुरीबुरी आशंकाएं व्यक्त कर रहे थे.

वे दोनों करीब 3 बजे रात घर लौटे. सुमित की हालत देख कर हम सब भौचक्के रह गए. उस के कपड़े जगहजगह से फटे हुए थे. दाहिनी आंख सूजी हुई थी. चेहरे पर जख्मों व खरोंचों के निशान थे. अरुण भैया का हाल इतना बुरा नहीं था, पर दोनों की हालत देख कर यह अंदाजा लगाना कठिन नहीं था कि उन का कहीं जबरदस्त झगड़ा हुआ है.

सुमित बहुत परेशान नजर आ रहा था. किसी से बिना बोले वह अपने कमरे में चला गया.

अरुण भैया ने संक्षेप में हमें बताया कि नशे की हालत में ड्राइव कर रहे सुमित ने कार को एक तिपहिया स्कूटर से टकरा दिया था. गलती स्कूटर चालक की थी, पर सुमित को नशे में देख कर सब ने उसे ही कुसूरवार मान लिया था.

स्थिति इस कारण ज्यादा बिगड़ी क्योंकि सुमित पहले ही जबरदस्त गुस्से का शिकार बना हुआ था. मैं ने उसे बहुत नियंत्रण में रखना चाहा, पर वह उस चालक से उलझता ही चला गया.

पहले हाथ सुमित ने छोड़ा और फिर उसे कई लोगों के थप्पड़, घूंसे सहने पड़े. नशे में धुत्त कोई अमीरजादा आम इनसान से दुर्व्यवहार करे, यह बात जनता को उत्तेजित कर गई और सुमित दुर्घटना का कुसूरवार न होते हुए भी बुरी तरह पिट गया.

पुलिस की जिप्सी घटनास्थल पर पहुंच गई. पुलिस दोनों को थाने ले आई. वहां स्कूटर चालक व सुमित दोनों को लौकअप में बंद कर दिया. थाने में 5 घंटे बिताने के बाद अब हम घर लौट पाए हैं.

‘‘तुम ने मुझे फौरन फोन क्यों नहीं किया?’’ सारी बात सुन कर सुरेंद्र अंकल ने गुस्से से कांपती आवाज में भैया से प्रश्न किया.

‘‘सुमित ने ऐसा करने से मना किया था,’’ अरुण भैया ने रूखे से स्वर में जवाब दिया.

सुमित के मातापिता उस के कमरे की तरफ चले गए. कुछ देर बाद सीमा आंटी और सुरेंद्र अंकल हमारे पास और भी ज्यादा दुखी हालत में लौटे. उन दोनों से सुमित ने बात करने से इनकार कर के अपने कमरे का दरवाजा खोलने से मना कर दिया था.

अरुण भैया घर लौटना चाहते थे, पर मैं ने सुमित से मिल कर जाने की जिद पकड़ ली.

‘‘वह दरवाजा नहीं खोलेगा,’’ सीमा आंटी की इस चेतावनी को नजरअंदाज कर मैं सुमित से मिलने चल पड़ी.

सुमित और मैं साथसाथ बड़े हुए हैं. हम दोनों के बीच दिल का गहरा रिश्ता है. मैं ने सिर्फ 1 बार उस से कहा और उस ने दरवाजा खोल दिया.

सुमित सिर झुकाए खामोश पलंग पर बैठ गया. मेरी समझ में बात शुरू करने का कोई तरीका नहीं आया तो मैं उस का हाथ पकड़ कर खामोश उस के पास बैठ गई.

उस की आंखों से आंसू बहने और फिर कंपकंपाती आवाज में शब्द बाहर आने लगे.

‘‘अनु, मैं उस स्कूटर वाले के साथ हवालात में बंद था,’’ उस की आवाज में पीड़ा के गहरे भाव साफ झलक रहे थे, ‘‘वह बीड़ी का धुआं बारबार मेरे मुंह पर फेंक रहा था. मुझे हिंसक नजरों से घूर रहा था… मैं कुछ कहता, तो बात बढ़ती… मारपीट होती… उस का कुछ नहीं जाता और मैं अपनी नजरों में और गिर जाता.

‘‘कल रात मुझे क्लब के सुरक्षाकर्मियों ने भी धक्के दिए… सिपाहियों ने धक्के दिए… गालीगलौज की… जिन की कोई औकात नहीं, उन छोटे लोगों ने मुझे बुरी तरह बेइज्जत किया.

‘‘क्या मैं इतना बुरा इनसान हूं, अनु?

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें