अनिताजी बोलीं, ‘‘आयुष और आशी को याद कर के मैं बेचैन हूं. अकारण ही वे मासूम आप दोनों की लड़ाई में पिस कर रह गए हैं. जब तुम दोनों ने अलग होने का निर्णय ले ही लिया है तो फिर ये इस फालतू फसाद को क्यों तरजीह दी जा रही है? रहा बच्चों की कस्टडी का प्रश्न तो उन की मरजी के अनुसार वहीं रहने दीजिए जहां वे चाहें. ऐसे भी परिवार जब टूटते हैं तो ज्यादा प्रभावित बच्चे ही होते हैं. ऐसी अति महत्त्वाकांक्षिनी लड़कियां शादी की मर्यादा ज्यादा दिनों तक नहीं रख पाती हैं. उस समय हम ने तुम्हें कितना समझाया था, लेकिन उस के विश्व सुंदरी के ताज की चकाचौंध ने तुम्हारी सोचनेसमझने की शक्ति ही हर ली थी. फिर जिस की मां ने ही इस रिश्ते की पावनता का मान नहीं रखा, वह अपनी बेटी का घर बसाने के लिए कुछ करेगी उस से ऐसी उम्मीद रखने का कोई औचित्य ही नहीं है… अपने बचपन की संगिनी अनन्या का मन भी तो तुम ने कितनी निर्दयता से तोड़ा था, साथ में हमारे सपनों में भी तो तुम ने मायूसी भर दी थी. वह तुम्हारा इंतजार करती रही और तुम सेहरा पहन कर किसी और के नूर बन गए.’’
मां चुप बैठी रहीं. जब गौतम ने कुछ नहीं कहा तो उन्होंने फिर कहा, ‘‘जो भी हुआ उसे वापस तो मोड़ा नहीं जा सकता. अब कल की तारीख पर कोर्ट में सब कुछ पर निर्णय हो जाना चाहिए. जो भी वह चाहती है दे कर रफादफा कर दी. अब और जिल्लतें मैं बरदाश्त नहीं कर सकती,’’ कहते हुए अनिताजी का स्वर अवरुद्ध हो गया.
ऐसी ही ऊहापोह में दिन गुजर रहे थे. परिवार, रिश्तेदारों, संगेसंबंधियों, दोस्तों, मीडिया सभी के आक्षेपों से घबरा कर किसी एकांत की खोज में गौतम गोवा चला गया. एक समुद्र के तट पर बैठ कर गौतम एकाग्रता से आत्ममंथन कर रहा था. मन में आंधियां ही आंधियां थीं, जिन्होंने उस के हंसतेगाते, मुसकराते चमन को उजाड़ कर रख दिया था. बाहर लहरों को उछालते हुए समंदर था तो मन के अंदर भूत, वर्तमान एवं भविष्य का समंदर विकराल लहरों को घेर उन्हें अतल गहराई में डुबो रहा था कि यशोधरा के साथ कहीं उस से ज्यादती तो नहीं हो गई? क्या पता सच में इन सब के पीछे उस की कोई मजबूरी रही हो. अपनी निर्दोषिता को प्रमाणित करने के लिए वह जो कुछ भी कह रही थी उसे निर्विवाद सुनना था.
बेगुनाही की फरियाद करने का एक अवसर तो देना था. घर से निकलने की बात कह कर उस पर हाथ उठाने की गलती वह कैसे कर बैठा? यशोधरा के मानसम्मान का भी खयाल नहीं रखा. अंतर्राष्ट्रीय बाजार की स्किन दिखाने की जरूरत से अच्छी तरह वाकिफ होने के बावजूद यशोधरा को कुछ भी कहने का अवसर उस ने नहीं दिया. अविश्वास की अग्नि में अपनी पारिवारिक सुखशांति को स्वाहा कर दिया. यह सोच कर उस की आंखें भर आईं. बच्चों के साथ अब यशोधरा की याद में वह विह्वल हो उठा. चाहत की असीम वेदना से वह तड़प उठा. पर अब कर भी क्या सकता था. तीर कमान से निकल चुका था. यशोधरा के स्वाभिमान से वह अच्छी तरह वाकिफ था.
6 साल पहले इसी प्राइवेट बीच पर यशोधरा के साथ उस ने कितना आनंद उठाया था. उस की 1-1 अदाओं पर वह सम्मोहित हो कर बलिहार गया था. दूसरे पतिपत्नी का हर जोड़ा उसे अवसाद से भरने लगा था. वह अब यशोधरा और बच्चों से दूर नहीं रह सकता. जो कुछ हुआ अच्छा नहीं हुआ. सभी कुछ पहले की तरह हो जाए, जा कर पूरी कोशिश करेगा.
जल्दी से वह लौटने लगा तो दूसरी ओर समंदर को निहारते हुए जिसे देखा सहसा वह अपनी आंखों पर विश्वास नहीं कर सका. डूबते सूरज की किरणों को जल की अनंत धाराओं में प्रतिबिंबित होते देखना यशोधरा को बहुत भाता था और वह उसी को देख रही थी.
बिना शृंगार के, उदासी की प्रतिमूर्ति बनी यशोधरा वहीं उसी बीच पर थी. उस के पावन सौंदर्य की मोहकता अप्रतिभा थी. अपनी इस अमूल्य धरोहर को फिर कहीं खो न बैठे कल्पना कर के गौतम कांपते मन में क्षमायाचना की चाहत लिए यशोधरा की तरफ तेज कदमों में भागा, लेकिन एक बड़ी लहर में फंस कर रह गया. जब तक वह भीड़ से निकलता यशोधरा उस की नजरों से दूर जा चुकी थी. काउंटर पर जा कर पता चला कि यशोधरा अभीअभी चैक आउट कर गई है. गौतम एयरपोर्ट आया. बिजनैस क्लास की सीटें भरी हुई थीं और इकोनौमी में उसे सब से पीछे सीट मिली. वह इतनी बुरी तरह थका था कि जिस मकसद से आया था उसे भूल कर बैठते ही सो गया और जब हवाई जहाज उतर चुका था तो होस्टेस ने उसे जगाया. जहाज से उतरने के बाद गौतम की व्याकुल नजरें यशोधरा को ही ढूंढ़ रही थीं.
तनमन दोनों से थक गए थे पर पांव किसी अनजान दिशा में बढ़ते गए. उस ने गाड़ी मैरीन ड्राइव पर रुकवा ली. इसी मैरीन ड्राइव पर वह यशोधरा के साथ बैठा करता था जब वह इतनी जानीपहचानी नहीं थी. वह सर ढके रखती थी ताकि आनेजाने वाले तंग न करें. थक कर वह पत्थरों के चबूतरे पर जा कर बैठ गया. रात का अंधेरा फैल चुका था. आकाश में पूनम का चांद था. अचानक गौतम को बराबर में किसी के बैठने का आभास हुआ और जिसे बैठे पाया उसे अपनी आंखों का भ्रम समझा.
आहिस्ता से उठ कर गौतम यशोधरा के पास जा बैठा. छिटकती हुई श्वेत चांदनी में नहाते हुए यशोधरा के संगमरमरी बदन के चारों ओर गौतम ने अपनी बांहें क्या फैलाईं कि वह सिमट कर उस के आगोश में आ गई. पश्चात्ताप के अश्रुजल से दोनों की पलकें भीगी हुईं थीं. एकदूजे को बांहों में बांधे हुए सुधबुध खोए एकदूसरे को अपलक निहार रहे थे. मानो दोनों के विदग्ध तप्त मन में प्यार का अमृत बरस रहा हो. पल भर में सारे गिलेशिकवे जाते रहे. पानी की तरह सारा मान बह गया. एकदूसरे में समाए दिल की धड़कनों को सुन रहे थे. उन दोनों के मिलन को देख उत्साह और उमंग से आलोकित हो कर समंदर मानो अपनी प्यार भरी लहरों को उछाल कर उन्हें भिगो रहा था.
आज सदियों बाद कोई अनारकली फूलों के चादर के नीचे अपने साहबेआलम की बांहों में खोई पड़ी थी. फर्क सिर्फ इतना था कि यह अनारकली अपने सलीम की मलिका एवं उस के 2 प्यारेप्यारे बच्चों की मां थी.
उस सलीम की अनारकली ने अपने साहबेआलम को रुसवाई से बचाने के लिए दीवार में चुनवा देने से पहले केवल एक दिन की हिंदोस्ताने मलिका बनने की खवाहिश की गुहार अकबरेआजम से लगा कर कांटों का ताज पहना था तो आज इस अनारकली ने अपने सलीम और बच्चों के खातिर विश्वसुंदरी के ताज की गरिमा को गर्व से ठुकराते हुए अपने प्यार भरे आशियाने की ओर लौटने को प्रतिबद्व थी. यह अनारकली है, उस पर उस का ही नहीं हजारों दीवानों का हक भी है. उसे समझौता करना पड़ेगा. पर यह जबरन समझौता नहीं प्रेम की समझ है. प्रेम में लेना होता है तो देना भी.