जब उस ने कालेज में प्रिंसिपल को अपना त्यागपत्र सौंपा, तो उस को यात्रा की शुभकामनाएं देने के साथ ही वे यह कहे बिना न रह सके, ‘‘मिसेज राणा, आप जैसे टीचर्स की हमें सदैव जरूरत रहती है. यदि कभी भी वापस आएं तो आप का यहां स्वागत ही होगा.’’
अपनों व परिचितों की ढेरों शुभकामनाएं लिए व सुखद भविष्य की कामना करती स्मिता हिम्मत कर के पलक के साथ अमेरिका के लिए रवाना हो गई. दिल में कहीं पति से मिलने की उमंग थी, तो थोड़ा अबूझा सा डर भी. पर साथ ही स्वयं पर हर स्थिति से निबटने का विश्वास भी था. इसी के सहारे वह इस अनजाने सफर पर निकल पड़ी थी. अचानक उसे आया देख आशुतोष कितना चौंक उठेंगे… क्या प्रतिक्रिया होगी उन की? इन्हीं विचारों में उलझी स्मिता ने 16-17 घंटे का लंबा सफर तय कर जब अमेरिका की धरती पर कदम रखा, तो उस की हवाएं उसे बेहद अपनी सी लगीं क्योंकि आशुतोष भी तो वहीं था.
एक प्रीपेड टैक्सी ले कर, उसे पता बता, वह बेटी के साथ अपने गंतव्य की ओर बढ़ चली. आधे घंटे के बाद एक छोटे सुंदर से घर के सामने जा कर टैक्सी रुक गई. स्मिता ने नेमप्लेट चैक की. वह सही पते पर पहुंची थी. उसे उतार कर टैक्सी लौट गई और स्मिता ने कालबैल का बटन दबाया, तो एक 15-16 वर्षीय लड़की दरवाजा खोल प्रश्नवाचक नजरों से उसे देखने लगी. पर स्मिता द्वारा अपना परिचय देने पर वह दरवाजा पूरा खोल, एक तरफ हट गई. पर उस की निगाहों में छिपा असमंजस स्मिता से छिप न सका था.
अंदर आते हुए स्मिता ने पूछा, ‘‘डा. राणा नहीं हैं घर पर?’’
‘‘वे और रिया मैडम 1 घंटे में आ जाएंगे,’’ उस का सामान अंदर रखती वह युवती बोली.
‘‘तुम्हारा क्या नाम है? सारा दिन यहीं रहती हो क्या?’’
‘‘जी चीना…’’ कुछ सकुचाते हुए वह बोली, ‘‘मैडम और साहब के आने पर चली जाती हूं. उन के आने तक घर की देखभाल व अन्य काम खत्म हो जाते हैं. मैडम, आप दोनों फ्रैश हो लीजिए, तब तक मैं कुछ नाश्ता वगैरह लाती हूं.’’ तत्परता से उस का सामान एक कमरे में रख वह चली गई.
स्मिता एक नजर साफसुथरे, सुसज्जित कमरे पर डाल कर अटैची खोलने लगी. कमरा गैस्टरूम ही लग रहा था, क्योंकि किसी पर्सनल यूज की कोई चीज वहां नजर नहीं आ रही थी. जब वे दोनों तैयार हो कर आईं तो चीना कौफी व नाश्ता ट्रौली पर सजा कर ड्राइंगरूम में ले आई. नाश्ता कर के स्मिता एक मैगजीन के पन्ने पलटने लगी. आशुतोष के आने में अभी 15-20 मिनट बाकी थे. पलक वहीं पास में खेल रही थी. काम खत्म कर के चीना अपना बैग उठा कर जाने लगी, तभी आशुतोष व रिया एकदूसरे के हाथ में हाथ डाले बातें करते हुए अंदर आए. स्मिता को सामने बैठा देख आशुतोष बुरी तरह चौंक गया, उस के चेहरे का रंग उड़ गया. सकपका कर उस ने रिया का हाथ छोड़ दिया. रिया उसे प्रश्नवाचक निगाहों से देख रही थी, तभी पलक दौड़ती हुई आ कर आशुतोष से, ‘पापा…पापा…’ कहती हुई लिपट गई. पापा…? रिया ने हैरानी से उसे देखा. फिर पूछा, ‘‘क्या यह तुम्हारी डौटर है?’’
‘‘ओह नो… ये मेरी रिलेटिव हैं और यह इन्हीं की बच्ची है. इस के पापा दुबई गए हुए हैं, इसलिए यह शुरू से मुझे ही पापा कह कर बुलाती है,’’ स्मिता की तरफ इशारा कर उस से नजरें चुराता आशुतोष साफ झूठ बोल गया.
सब कुछ इतनी जल्दी हुआ कि स्मिता को कुछ कहनेसुनने का अवसर ही नहीं मिला. एक क्षण में वह बिलकुल बेगानी बना दी गई. ऐसी परिस्थिति की तो उस ने कल्पना भी नहीं की थी. अभी इस आघात से वह उबर भी न पाई थी कि रिया ने उसे अभिवादन किया और ‘यहां अपने घर जैसा फील करें,’ कह कर अंदर की तरफ बढ़ गई.
तभी उसे आशुतोष का स्वर सुनाई दिया, ‘‘अरे स्मिताजी, आप अचानक यहां? कम से कम खबर तो कर दी होती आने की…’’ कहतेकहते आवाज में नाराजगी स्पष्ट झलक उठी थी.
रिया के आंखों से ओझल होते ही वह रोष भरे स्वर में बोला, ‘‘तुम से मैं ने अभी आने को मना किया था न… इतनी जल्दी क्या थी… आने से पहले कम से कम एक फोन तो कर दिया होता.’’
‘‘कैसे करती फोन… न आप का मोबाइल मिलता था, न आप ने ही महीने भर से फोन किया. घर में सब कितने परेशान थे और यह क्या तमाशा है? अब मैं एक रिलेटिव हो गई हूं, बस? और पलक… पलक आप की बेटी नहीं है?’’ कहतेकहते अपमान व पीड़ा से स्मिता की आंखें भर आईं. विदेशी धरती पर वह कितनी अकेली हो गई थी.
एकाएक आशुतोष का स्वर कुछ नर्म पड़ा, ‘‘मेरा मोबाइल कुछ खराब हो गया था. और देखो स्मिता, विस्तार में मैं तुम्हें बाद में बताऊंगा. आज की हकीकत यह है कि रिया से चर्च में मेरी शादी हो चुकी है. वह मुझे बैचलर समझती थी. मेरा प्लान था कि बाद में मैं उसे किसी तरह समझा कर मना लूंगा. वह मुझे बहुत चाहती है, मेरी खुशी के लिए वह मान भी जाती. तब मैं तुम दोनों को भी यहीं बुला लेता. पर तुम ने इस तरह आ कर मेरा सारा प्लान चौपट कर दिया.’’
‘‘और आप ने जो मेरी जिंदगी चौपट कर डाली है उस का क्या? ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई थी, जो आप ने यह सब किया? आप ने यह सोच भी कैसे लिया कि इस योजना में मैं भी सहभागी बनूंगी? मुझे इस तरह धोखा दे कर आप ने अच्छा नहीं किया. हम सब की छोड़ो, पलक तक का ध्यान नहीं आया आप को?’’ बेबसी में उस की आंखें भर आई थीं.
‘‘देखो, मैं जानता हूं मैं गलत कर रहा हूं. पर रिया से संबंध बना कर यहां की हाई सोसाइटी में मेरी अच्छी पैठ हो गई है. इस के पिता काफी ऊंची पोस्ट पर हैं. उन्होंने मुझे कई तरह के बेहतर अवसर दिलाए हैं. आज की गलाकाट प्रतिस्पर्धा में कितनों को ऐसे मौके मिलते हैं. तुम थोड़ा इंतजार करो बस, रिया को मैं जल्द ही मना लूंगा. फिर तुम दोनों भी यहीं आ जाना.’’
3 दिन बाद आशुतोष इंडिया जाने के लिए निकल पड़ा. एक लंबे अरसे के बाद अपने देश की मिट्टी की गंध महसूस कर उसे रोमांच हो आया. एक होटल में ठहरने का बंदोबस्त कर के वह एक टैक्सी कर रोनित से लिए पते पर जा पहुंचा.
थोड़ी देर पहले ही घर लौटी स्मिता कौफी का सिप लेती हुई ड्राइंगरूम में आ कर बैठी ही थी कि कालबैल बजी. स्मिता ने दरवाजा खोला तो सामने आगंतुक को देख चौंक उठी.
‘‘आप… आज अचानक यहां कैसे?’’
‘‘क्या अंदर आने के लिए नहीं कहोगी?’’
‘‘ओह… आइए…,’’ हिचकिचाहटपूर्वक एक तरफ हटती स्मिता ने व्यंग्य से कहा, ‘‘हम तो ठेठ भारतीय ही हैं, घर आए मेहमान को बैठने को तो कहते ही हैं. घर का पता कहां से मिला?’’
‘‘रोनित से. मैं आज सुबह ही यहां पहुंचा हूं और एक होटल में ठहरा हूं.’’
‘‘मेरे लिए इतनी तकलीफ उठाने की वजह?’’ स्मिता ने उपेक्षा से पूछा. वह चाह कर भी पति के आने पर स्वयं को खुश नहीं पा रही थी. मन का आक्रोश उस के कहे वाक्यों में झलक ही उठा था.
‘‘स्मिता मैं जानता हूं मैं ने जो कुछ तुम सब के साथ किया, अक्षम्य है. पर मैं तुम से अपनी हर गलती की क्षमा मांगने आया हूं. मेरा अपराध माफी के लायक तो नहीं, पर क्या तुम मुझे माफ कर सकोगी…?’’
बीच में ही उस की बात काटती स्मिता बोली, ‘‘रिया नहीं आई आप के साथ?’’
‘‘नहीं, वह अब इस हालत में नहीं है कि सफर कर सके. मन तो उस का भी बहुत था, पर कैंसर की वजह से बहुत कमजोर हो गई है.’’
‘‘ओह… आई एम सौरी,’’ सपाट से स्वर में स्मिता की आवाज उभरी.
‘‘तुम्हारी तबीयत खराब होने की खबर सुन कर मैं स्वयं को रोक नहीं पाया. अब कैसी हो?’’
‘‘ठीक हूं… जिंदा हूं. आप को क्षमा देने वाले तो अब इस दुनिया में रहे नहीं. रही मेरी व पलक की बात, तो पलक की तो मैं नहीं जानती, हां, अपनी बता सकती हूं. आप के कारण विश्वास टूटने पर प्यार नफरत में बदल गया था. पर नफरत के साथ जी कर जिंदगी तो नहीं गुजारी जा सकती, इसलिए मैं ने आप से नफरत करनी भी छोड़ दी. तब मुझे अपनी बच्ची के साथ जीवनसंग्राम में जूझने का हौसला मिला. आज मैं आप के प्रति उतनी ही तटस्थ हो चुकी हूं, जितनी किसी भी अन्य अजनबी के लिए हो सकती हूं. अब आप हमें शांति से रहने दें और कृपया यहां दोबारा न आएं.’’
‘‘ऐसे न कहो स्मिता… मैं एक बार अपनी बेटी से मिलना चाहता हूं, वह क्या कर रही है आजकल?’’ आशुतोष बेहद भावुक हो उठा था.
‘‘पलक अपनी फ्रैंड के साथ बाहर गई हुई है. काफी देर बाद लौटेगी. आजकल वह इंटर्नशिप के साथ ही एमएस की तैयारी भी कर रही है.’’
‘‘और अभिजीत कैसा है? कौनकौन हैं परिवार में?’’ बात करने के लिए उसे और कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
‘‘अभिजीत के 2 बेटे हैं. बड़ा रोनित डाक्टर है, जो कनाडा में आप से मिला था और छोटा अभी इंटर में है,’’ कहते हुए स्मिता उठ कर खड़ी हो गई. परोक्ष रूप से जाने का संकेत पा कर आशुतोष भी उठ खड़ा हुआ.
उस के जाने के बाद स्मिता जीवन में अचानक आए इस मोड़ से थोड़ी विचलित हो उठी. क्या वास्तव में वह कभी उसे भूल पाई थी? कितनी ही रातें उस ने अकेले करवटें बदलते, रोते काटी थीं. क्या उन का कोई हिसाब था? उस का दर्द कौन जान सका था? पति की बेवफाई का जहर पी कर भी वह नीलकंठ सी मुसकराती रही, पलक की खुशी के लिए. पर कहीं अंदर से पति के प्रति उस की समस्त संवेदनाएं मरती चली गई थीं.
तभी फोन की घंटी घनघना उठी और उस ने रिसीवर उठा लिया, ‘‘हैलो कौन?’’
‘‘भाभी, मैं अभिजीत बोल रहा हूं, नमस्ते.’’
‘‘ओह अभि भैया, कहिए कैसे हैं आप सब? फोन कैसे किया?’’
‘‘भाभी, बेटी के डाक्टर बनने की मुबारकबाद देना चाहता हूं. सच कहूं तो यह आप की कड़ी तपस्या का ही फल है. बधाई हो.’’
‘‘आप सब को भी बधाई हो. आप सब के सहयोग के बिना तो मैं बिलकुल अकेली थी. इस दिन के लिए आप सब की भी तहे दिल से आभारी हूं. अब तो बस पलक को अच्छा घर और वर मिल जाए तो आखिरी जिम्मेदारी भी पूरी हो जाए.’’
‘‘इसीलिए तो आप को फोन किया है, भाभी… मेरे एक परिचित हैं, मिस्टर तनवीर. वे इनकम टैक्स औफिसर हैं. उन के घर के सब लोग बहुत ही मिलनसार व भले स्वभाव के हैं. उन का बेटा विवेक डाक्टरी पास कर के स्कौलरशिप पर रिसर्च करने कनाडा गया हुआ है. वहां वह रोनित का दोस्त है. रोनित ने विवेक को हर तरह से समझापरखा है. उस की बहुत तारीफ कर रहा था. विवेक अगले हफ्ते 10-15 दिनों के लिए भारत आ रहा है. आप कहें तो मैं पलक के लिए वहां बात चलाऊं?’’ अभिजीत ने कहा.
‘‘यदि आप ठीक समझते हैं, तो जरूर बात कर के देखिए, बल्कि मेरी तरफ से आप उन लोगों को यहां आने के लिए निमंत्रण दे दीजिए.’’
इस के बाद स्मिता ने आशुतोष के आने की जानकारी अभिजीत को फोन पर ही दे दी.