family story in hindi
family story in hindi
पीरियड्स के दौरान काफी सारी महिलाओं को ब्रेस्ट में दर्द महसूस होता है. ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उस दौरान हमारे शरीर में कई सारे हार्मोनल चेंज हो रहे होते हैं.
ब्रेस्ट में कड़ापन, दर्द और सूजन देख कर कई महिलाओं को शंका हो जाती है कि कहीं यह ब्रेस्ट कैंसर के संकेत तो नहीं. हार्मोनल बदलाव के अलावा भी कई ऐसी और भी चीज़ें हैं, जो ब्रेस्ट में दर्द पैदा कर सकती हैं, उदाहरण के तौर पर शरीर में पोषण की कमी, खराब खान-पान की आदत और बहुत ज्यादा तनाव.
अगर आपको भी अपने पीरियड्स के समय ब्रेस्ट में दर्द रहता है तो, हमारे बताए हुए घरेलू उपचार जरुर आजमाएं, आपको इससे जरुर राहत मिलेगी.
केस्टर ऑयल
केस्टर ऑयल को जैतून के तेल के साथ मिक्स करें और उससे अपने ब्रेस्ट को हल्के हाथों से मसाज करें. इससे आपको आराम मिलेगा.
गरम पानी से सिकाईं
गरम पानी के बरतन में एक सादा कपड़ा डाल कर उसे निचोड़ें और फिर उसको अपने ब्रेस्ट पर तब तक रखें जब तक कि वह कपड़ा गरम बरकरार रहे. ऐसा 10 मिनट तक करें. इस गर्मी की वजह से खून की धमनियां खूल जाएंगी और खून पूरे शरीर में प्रवाह करने लगेगा. इससे ब्रेस्ट का दर्द कम हो जाएगा.
बरफ का पैक
एक साफ कपड़े में कुछ बरफ ले लें, फिर इसे ब्रेस्ट पर रखें. इससे दर्द कम हो जाएगा क्योंकि खून की सिकुड़ी हुई धमनियां खुल जाएंगी.
सौंफ
सौंफ से सूजन और दर्द दोंनो ही चीजें कम हो जाएगी. आप इसे चाय की तहर ले सकती हैं. 1 कप पानी में थोड़ी सी सौंफ डाल कर उबालें और उसे छान कर पी लें.
पीपल की पत्तियां
एक पैन में पीपल की पत्तियां रख कर उस पर कुछ बूंद सरसों या जैतून का तेल डाल कर गरम करें. फिर इन गरम पत्तियों को ब्रेस्ट पर रख कर सिकाईं करें. इन पत्तियों से 4-5 बार सिकाई करें.
केला
केले में पोटैशियम पाया जाता है, जिसको खाने से ब्रेस्ट में जमा रक्त प्रवाह करने लगता है और दर्द कम हो जाता है.
नारियल पानी
नारियल पानी में भी पोटैशियम की मात्रा काफी अधिक होती है, जिसे पीने पर दर्द कम हो जाता है.
अलसी के बीज
आपको अपने डाइट में रोजाना अलसी के बीजों को शामिल करना चाहिए. इन्हें खाने से दर्द में कमी आती है.
हरी पत्तेदार सब्जियां
ब्रॉक्ली और पालक जैसी सब्जियां शरीर में estrogen level को कम करती हैं, जिससे ब्रेस्ट में दर्द कम होता है.
पीरियड्स का दर्द दे सकता है हार्ट अटैक
पीरियड्स का दर्द और इस दौरान होने वाला ब्लड फ्लो सबके लिए अलग होता है. किसी को इस दौरान बहुत अधिक फ्लो और दर्द का सामना करना पड़ता है तो किसी को न के बराबर दर्द होता है.
अब तक पीरियड्स के दर्द को सिर्फ कमजोरी और चिड़चिड़ेपन से ही जोड़कर देखा जाता था लेकिन हाल में हुए एक शोध के मुताबिक, जिन महिलाओं को माहवारी के दौरान बहुत अधिक तकलीफ उठानी पड़ती है उन्हें हार्ट अटैक होने की आशंका तीन गुना बढ़ जाती है.
भारी और पीड़ादायक महावारी एंडोमेट्रियोसिस विकार के कारण होती है. इस विकार की वजह से यूटरस यानी गर्भाशय की बाहरी परत पर टिशूज की असामान्य वृद्धि होने लगती है.
अमेरिका के बोस्टन शहर के ब्रिंघम एंड विमेन हॉस्पिटल में हुई एक रिसर्च में यह तथ्य सामने आया है. इसके मुख्य लेखक , फैन मू के मुताबिक, एंडोमेट्रियोसिस से पीड़ित महिलाओं में दूसरी महिलाओं की तुलना में हार्ट अटैक का खतरा तीन गुना अधिक होता है. चौंकाने वाली बात यह है कि युवावस्था में यह जोखिम अधिक होता है.
इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने नर्सेस हेल्थ स्टडी के दूसरे भाग की एक लाख 16 हजार 430 महिलाओं के आंकड़ों का आकलन किया. शोधार्थियों का कहना है कि एंडोमेट्रियोसिस के ऑपरेशन से भी आंशिक रूप से हार्ट अटैक का खतरा बढ़ सकता है.
यह शोध ‘सर्कुलेशन कार्डियोवस्कुलर क्वालिटी एंड आउटकम्स’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.
अगर आप भी ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद करती हैं, तो सावधान हो जाइए, क्योंकि आप साइबर अपराधियों के निशाने पर हो सकती हैं. आज कल त्योहारों के खास मौके पर साइबर क्राइम के ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जिनमें साइबर अपराधी इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों को अपना निशाना बनाने की फिराक में हैं.
कंप्यूटर या स्मार्टफोन की स्क्रीन पर पूरी दुनिया का बाजार सिमट आया है. लोग ऑनलाइन शॉपिंग का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं. हालांकि जो लोग ऑनलाइन शॉपिंग को लेकर पूरी तरह से बेफिक्र हैं, उन्हें भी कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए और जिन्होंने अभी अभी शॉपिंग करना शुरु किया है वे भी सावधान हो जाएं, क्योंकि साइबर अपराधी की नजर आप पर हो सकती है.
कई बार कुछ ऐसे केस भी देखे जाते हैं जहां आपको पहले ईमेल भेजा जाता है और फेक डोमेन नेम यूज किया जाता है, ताकि आप उस ईमेल को खोलें और उस साइट पर जाएं जहां फेक डोमेन नेम यूज किया गया है.
ये मेल पॉपुलर ब्रांड्स के नामों से भेजे जाता हैं और इन पर 80 फीसदी डिस्काउंट भी दिए जाते हैं, ताकि लोग आकर्षित होकर खरीदें.
ऑनलाइन शॉपिंग का बाजार इतना बड़ा है कि साइबर अपराधी हमेशा इस बाजार में अपने शिकार की फिराक में रहते हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत में ऑनलाइन शॉपिंग का बाजार 4 हजार करोड़ रुपये का हो सकता है.
आजकल ऑनलाइन ऑफर्स की बरसात करने वाले ई-मेल्स का आना आम बात है लेकिन इसमें से कई ई-मेल आपको गलत वेबसाइट की तरफ ले जा सकते हैं. अगर आपने इनमें अपनी जानकारी दे दी तो साइबर अपराधी इसका फायदा उठा सकते हैं. इस तरह के मामलों को स्पियर फिशिंग कहते हैं.
यूं बचें ऑनलाइन शॉपिंग में धोखा खाने से :
– अनजान वेबसाइट पर शॉपिंग न करें.
– डिस्काउंट्स के चक्कर में पड़कर किसी स्कैम का शिकार न हों.
– पेमेंट करते हुए सचेत रहें.
– किसी और के मोबाइल फोन से शॉपिंग करना भी खतरनाक हो सकता है.
– अनसेक्योर्ड इंटरनेट कनेक्शन का इस्तेमाल ऑनलाइन पेमेंट या शॉपिंग के लिए न करें.
देश में एक पार्टी मजबूत हो रही है, एक ध्धमर्म मजबूत हो रहा है. संस्कार मजबूत हो रहे हैं. मंदिरों के खंबे मजबूत हो रहे हैं. सरकार की जनता पर पकड़ मजबूत हो रही है. पुलिस के पंजे मजबूत हो रहे हैं. कानून मजबूत हो रहा है. जो चीख सकते हैं, नारे लगा सकते हैं, मजबूत हो रहे हैं.
पर इस चक्कर में सामाजिक बंधन तारतार हो रहे हैं. सपने टूट रहे हैं. कल के भविष्य की आशाएं धूमिल हो रही हैं. चाहे घरों में बच्चे कम हो रहे हैं फिर भी उन्हें पढ़ाई कर के सुखी देखने की आशा टूट रह है. घरों की दीवारों का रंग फीका हो रहा है. ममहीन, सुखद, गारंटेड फ्यूचर की नींव कमजोर हो रही है.
जब देश में हर समय खबरें सिर्फ छापों, रेडों और पाॢटयों को तोडऩे की हो रही हो तो जोडऩे की बातें कहां होंगी. एक समाज तब बनता है जब पड़ोसी से, एक गली का दूसरी गली से जुड़ाव हो, एक ईलाके की मिसाल दूसरे इलाकों से हो, देश के निवासी अपने को व्यापक भीड़ में सुरक्षित समझें न कि भगदड़ का अंदेशा हो, ट्रैफिक जाम का डर हो, लंबी लाइनों का भय हो.
आंकड़ों में देश में सब कुछ अच्छा हो रहा है पर किसी के भी व्हाट्सएप गु्रप, ट्विटर अकाउंट, इंस्टाग्राम, फेसबुक के पेजों को देख लें, एक भय का साया दिख जाएगा. इस काले साए का रंग हर घर पड़ रहा है, पतिपत्नी संबंधों पर पड़ रहा है, भाईबहन पर पड़ रहा है.
सरकार जनता से इतनी भयभीत है कि हर चौराहे पर 4-5 कैमरें लगे हैं. हर मील में 2 जगह बैरीयर रखे हैं, सरकार हर समय आप का आधार नंबर, पैन नंबर, पासवर्ड, यूजर नेम पूछ रही है. हर समय डर लगता है कि बैंक अकाउंट केवाईसी के चक्कर में बंद न हो जाए, क्रेडिट कार्ड की पेमेंट डिक्लाइन न हो जाए, बिजली का बड़ा बिल न आ जाए. पैट्रोल गैस का दाम फिर न बढ़ जाएं. यह डर हर संबंध को दीमक और घुन की तरह खाता है.
पतिपत्नी का जोड़ा साथ रहते हुए भी भरोसा नहीं करता. भाईभाई, भाईबहन अपनेअपने भविष्य के लिए दूसरे के हकों को तो रौंद नहीं रहे, यह डर रहता है. कोई ऐसी बिमारी न आ जाए जिस का इलाज मुश्किल हो या इलाज इतना मंहगा हो कि अफोर्ड नहीं कर सकते. छुट्टी में डर लगता है कि लौंड स्लाइड न हो जाए, लहरें मौत न जाए. नदी का पानी बिमार न कर दे.
देश की सारी मजबूती के दावे असलियत की धरती पर बेमानी हो चुके हैं. कल अच्छा हो या न हो, आज शाम व रात तक सब अच्छा रहे, यही डर सता रहा है और इस के आगे वादे, नारे, दावे सब निरर्थक हैं.
अगर आप अपने जीवनसाथी के साथ पहले मिलन को यादगार बनाना चाहती हैं तो आप को न केवल कुछ तैयारी करनी होंगी, बल्कि साथ ही रखना होगा कुछ बातों का भी ध्यान. तभी आप का पहला मिलन आप के जीवन का यादगार लमहा बन पाएगा.
करें खास तैयारी: पहले मिलन पर एकदूसरे को पूरी तरह खुश करने की करें खास तैयारी ताकि एकदूसरे को इंप्रैस किया जा सके.
डैकोरेशन हो खास:
वह जगह जहां आप पहली बार एकदूसरे से शारीरिक रूप से मिलने वाले हैं, वहां का माहौल ऐसा होना चाहिए कि आप अपने संबंध को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.
कमरे में विशेष प्रकार के रंग और खुशबू का प्रयोग कीजिए. आप चाहें तो कमरे में ऐरोमैटिक फ्लोरिंग कैंडल्स से रोमानी माहौल बना सकती हैं. इस के अलावा कमरे में दोनों की पसंद का संगीत और धीमी रोशनी भी माहौल को खुशगवार बनाने में मदद करेगी. कमरे को आप रैड हार्टशेप्ड बैलूंस और रैड हार्टशेप्ड कुशंस से सजाएं. चाहें तो कमरे में सैक्सी पैंटिंग भी लगा सकती हैं.
फूलों से भी कमरे को सजा सकती हैं. इस सारी तैयारी से सैक्स हारमोन के स्राव को बढ़ाने में मदद मिलेगी और आप का पहला मिलन हमेशा के लिए आप की यादों में बस जाएगा.
सैल्फ ग्रूमिंग:
पहले मिलन का दिन निश्चित हो जाने के बाद आप खुद की ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें. खुद को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार करें. इस से न केवल आत्मविश्वास बढ़ेगा, बल्कि आप स्ट्रैस फ्री हो कर बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगी. पहले मिलन से पहले पर्सनल हाइजीन को भी महत्त्व दें ताकि आप को संबंध बनाते समय झिझक न हो और आप पहले मिलन को पूरी तरह ऐंजौय कर सकें.
प्यार भरा उपहार:
पहले मिलन को यादगार बनाने के लिए आप एकदूसरे के लिए गिफ्ट भी खरीद सकते हैं. जो आप दोनों का पर्सनलाइज्ड फोटो फ्रेम, की रिंग या सैक्सी इनरवियर भी हो सकता है. ऐसा कर के आप माहौल को रोमांटिक और उत्तेजक बना सकती हैं.
खुल कर बात करें:
पहले मिलन को रोमांचक और यादगार बनाने के लिए खुद को मानसिक रूप से तैयार करें. अपने पार्टनर से इस बारे में खुल कर बात करें. अपने मन में उठ रहे सवालों के हल पूछें. एकदूसरे की पसंदनापसंद पूछें. जितना हो सके पौजिटिव रहने की कोशिश करें.
सैक्स सुरक्षा:
संबंध बनाने से पहले सैक्सुअल सुरक्षा की पूरी तैयारी कीजिए. सैक्सुअल प्लेजर को ऐंजौय करने से पहले सैक्स प्रीकौशंस पर ध्यान दें. आप का जीवनसाथी कंडोम का प्रयोग कर सकता है. इस से अनचाही प्रैगनैंसी का डर भी नहीं रहेगा और आप यौन रोगों से भी बच जाएंगी.
सैक्स के दौरान
– सैक्सी पलों की शुरुआत सैक्सी फूड जैसे स्ट्राबैरी, अंगूर या चौकलेट से करें.
– ज्यादा इंतजार न कराएं.
– मिलन के दौरान कोई भी ऐसी बात न करें जो एकदूसरे का मूड खराब करे या एकदूसरे को आहत करे. इस दौरान वर्जिनिटी या पुरानी गर्लफ्रैंड या बौयफ्रैंड के बारे में कोई बात न करें.
– संबंध के दौरान कल्पनाओं को एक तरफ रख दें. पोर्न मूवी की तुलना खुद से या पार्टनर से न करें और वास्तविकता के धरातल पर एकदूसरे को खुश करने की कोशिश करें.
– बैडरूम में बैड पर जाने से पहले अगर आप घर में या होटल के रूम में अकेली हों तो थोड़ी सी मस्ती, थोड़ी सी शरारत आप काउच पर भी कर सकती हैं. ऐसी शरारतों से पहले सैक्स का रोमांच और बढ़ जाएगा.
– सैक्स संबंध के दौरान उंगलियों से छेड़खानी करें. पार्टनर के शरीर के उत्तेजित करने वाले अंगों को सहलाएं और मिलन को चरमसीमा पर ले जा कर पहले मिलन को यादगार बनाएं.
– मिलन से पहले फोरप्ले करें. पार्टनर को किस करें. उस के खास अंगों पर आप की प्यार भरी छुअन सैक्स प्लेजर को बढ़ाने में मदद करेगी.
– सैक्स के दौरान सैक्सी टौक करें. चाहें तो सैक्सुअल फैंटेसीज का सहारा ले सकती हैं. ऐसा करने से आप दोनों सैक्स को ज्यादा ऐंजौय कर पाएंगे. लेकिन ध्यान रहे सैक्सुअल फैंटेसीज को पूरा के लिए पार्टनर पर दबाव न डालें.
– संयम रखें. यह पहले मिलन के दौरान सब से ज्यादा ध्यान रखने वाली बात है, क्योंकि पहले मिलन में किसी भी तरह की जल्दबाजी न केवल आप के लिए नुकसानदेह होगी, बल्कि आप की पहली सैक्स नाइट को भी खराब कर सकती है.
सैक्स के दौरान बातें करते हुए सहज रह कर संबंध बनाएं. तभी आप पहले मिलन को यादगार बना पाएंगे. संबंध के दौरान एकदूसरे के साथ आई कौंटैक्ट बनाएं. ऐसा करने से पार्टनर को लगेगा कि आप संबंध को ऐंजौय कर रहे हैं.
शाम के समय चाय के साथ स्नैक्स की आवश्यकता होती ही है, यदि आप डिनर देर से करते हैं तो आपको शाम की चाय के साथ कुछ स्नैक्स अवश्य लेना चाहिए क्योंकि आहार विशेषज्ञों के अनुसार लंच और डिनर में बहुत अधिक गेप नहीं होना चाहिए. परन्तु अक्सर समस्या यह होती है कि स्नैक्स में ऐसा क्या बनाया जाए जो जल्दी भी बने और मेहनत भी कम लगे. आज हम आपको ऐसे ही स्नैक्स बनाना बता रहे हैं जो झटपट बनेंगे भी और पौष्टिक भी हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाते हैं.
-स्प्राउट चीज रोल
कितने लोगों के लिए 4
बनने में लगने वाला समय 20 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
तैयार रोटी 4
अंकुरित मूंग 1 कटोरी
कटी हरी मिर्च 2
बारीक कटा प्याज 1
कटा टमाटर 1
कटा हरा धनिया 1 टेबल स्पून
बटर 1 टेबल स्पून
लाल मिर्च पाउडर 1/4 टी स्पून
नमक स्वादानुसार
अमचूर पाउडर 1/2 टी स्पून
चीज क्यूब्स 2
पत्तागोभी के पत्ते 2
हरी चटनी 1 टेबलस्पून
विधि-
एक नानस्टिक पैन में बटर गर्म करके हरी मिर्च और कटे प्याज को सॉते करें. जब प्याज हल्का ब्राउन हो जाए तो टमाटर डालकर गलने तक पकाएं. अब अंकुरित मूंग, लाल मिर्च, नमक और अमचूर पाउडर डालकर चलाएं और 10 मिनट तक ढंककर पकाएं. कटा हरा धनिया डालकर चलाएं और मैशर से हल्का सा मैश करें. गर्म में ही चीज क्यूब्स को किस कर मिलाएं.
अब रोटी को समतल सतह पर फैलाएं और पूरी रोटी पर हरी चटनी फैलाएं. पत्तागोभी का पत्ता रखकर बीच में 1 चम्मच अंकुरित मूंग का मिश्रण फैलाएं. अब इसे रोल करें और बीच से काट कर सर्व करें.
2-मेयो अनियन रोल
सामग्री (कवरिंग के लिए)
गेंहूं का आटा 1 छोटी कटोरी
तेल 1 टीस्पून
नमक 1/4 टीस्पून
सामग्री
प्याज 1
हरी मिर्च 2
आलू 1
नमक 1/4 टीस्पून
मेयोनीज 1 टी स्पून
गाढ़ा दही( हंग कर्ड) 1 कटोरी
हल्दी पाउडर 1/4 टी स्पून,
लाल मिर्च पाउडर 1/2 टी स्पून,
भुना जीरा पाउडर 1/4 टी स्पून
कार्नफलोर 1 टेबल स्पून
तलने के लिए पर्याप्त मात्रा में तेल
टोमेटो सौस 1 टेबलस्पून
पालक के पत्ते 4
विधि-
सभी सब्जियों को लम्बाई में काट लें. तेल को छोडकर समस्त सामग्री को एक बाउल में डालें और अच्छी तरह चलाकर आधे घंटे के लिए एक तरफ रख दें. अब गेहूं के आटे में नमक और तेल डालकर गूँथकर चार भागों में बांटकर गैस पर गोल रोटियां बना लें. एक पैन में तेल गर्म करके मेरीनेशन वाले मिश्रण से पकोड़े जैसे गर्म तेल में सुनहरा होने तक तलकर बटर पेपर पर निकाल लें फिलिंग की इस सामग्री को भी चार भागों में बांट लें, तैयार रोटी को समतल सतह पर फैलाकर पूरी रोटी पर मेयोनीज फैलाकर पालक का पत्ता रखें और तैयार फिलिंग की सामग्री को बीच में लंबाई में रखकर ऊपर से टोमेटो सौस चम्मच से लगाकर रोल करें और गर्मा गर्म सर्व करें।
यह भी रखें ध्यान
-रोल बनाने के लिए आप अपने परिवार के सदस्यों की पसन्द के अनुसार कोई भी फिलिंग का प्रयोग कर सकतीं हैं.
-रोल को तभी बनाएं जब सर्व करना हो पहले से बनाकर रखने से रोटी गीली सी हो जाएगी.
-फिलिंग में आप उन सब्जियों का प्रयोग करें जिन्हें बच्चे खाने में आनाकानी करते हैं.
-यदि आपके समय का अभाव है तो आप सुबह ही अधिक रोटियां बनाकर रखें और फिर किसी भी सब्जी में थोड़ा अचार का मसाला और चीज किसकर डाल दें.
-फिलिंग को पूरी तरह ठंडा हो जाने के बाद ही रोटी में रोल करें.
-रोटी की पौष्टिकता बढ़ाने के लिए आप मल्टीग्रेन, मिस्सी और पालक मैथी के आटे का प्रयोग कर सकतीं हैं.
रेटिंगः एक़ स्टार
निर्माताः चार्मी कौर, पुरी जगन्नाथ, करण जेहर, अपूर्वा मेहता
निर्देशकः पुरी जगन्नाथ
कलाकारः विजय देवराकोंडा, अनन्या पांडे, रमय्या कृष्णा, विशु, चंकी पांडे, अली, मकरंद देशपांडे, गीता श्रिनु, माइक टायन व अन्य
अवधिः ढाई घंटे
दक्षिण भारत की दो तीन फिल्मों के हिंदी संस्करणों ने बाक्स आफिस पर अच्छी कमायी क्या कर ली, हर किसी को ‘पैन इंडिया’ सिनेमा यानी कि तमिल, तेलगू के साथ हिंदी में भी फिल्म बनाने का चस्का लग गया. ऐसे में 2000 से तेलगू फिल्में निर्देशित करते आ रहे पुरी जगन्नाथ कैसे पीछे रह जाते. पुरी जगन्नाथ तेलगू में ‘बद्री’, ‘बाची’, ‘इडिएट’, ‘शिवामणि’, रोमियो’, ‘टेम्पर’, ‘स्मार्ट शंकर’ सहित लगभग 25 फिल्में निर्देशित कर चुके हैं. पहली बार उन्होने अपनी फिल्म ‘लाइगर’ को तमिल, तेलगू व हिंदी में भी बनाया है. इस फिल्म का उन्होंने चार्मी कौर व धर्मा प्रोडक्शन के साथ निर्माण भी किया है. जबकि इस फिल्म से 2011 से तेलगू फिल्मों में अभिनय करते आ रहे अभिनेता विजय देवराकोंडा ने हिंदी में कदम रखा है. वह ‘नुव्वील्ला’, ‘येवादे सुब्रमण्यम’, ‘अर्जुन रेड्डी’ सहित कई सफल फिल्में कर चुके हैं. मगर उनके सिर पर भी ‘पैन इंडिया स्टार’ का भूत सवार हुआ और वह भी ‘लाइगर’ से हिंदी सिनेमा में कदम रख लिया. इतना ही नही खुद को ‘पैन स्टार’ सबित करने के ेलिए अपनी फिल्म की पीआर टीम के साथ पटना, जयपुर, लखनउ, अहमदाबाद, वडोदरा, इंदौर, पुणे सहित देश के शहरोंे का फिल्म की हीरोईन अनन्या पांडे संग चप्पल पहनकर भ्रमण करते हुए अजीबोगरीब बयानबाजी करते रहे. खुद को सताया हुआ और लोगों द्वारा उन्हे आगे बढ़ने से रोका गया, ऐसा दावा भी करते रहे. वहीं वह ‘लाइगर’ को लेकर बड़े बड़े दावे करते नजर आए. मगर उनके पास अपनी फिल्म के संदर्भ में अच्छे से बात करने के लिए समय का अभाव रहा. एक ही दिन में ग्रुप में पत्रकारों से बात कर उन्होने इतिश्री कर दी. फिल्म देखकर समझ में आया कि फिल्म ‘लाइगर’ के निर्देशक के साथ ही विजय देवराकोंडा व अनन्या पांडे पत्रकारों से ज्यादा क्यो नही मिले? क्योंकि उन्हे पता था कि उनकी फिल्म में दम नही है. और वह सिनेमा की समझ रखने वाले पत्रकारांे से बात नहीं कर पाएंगे. फिल्म ‘लाइगर’ देखकर यकीन करना मुश्किल हो जाता है कि ‘लाइगर’ में अभिनय करने वाले और पिछले एक माह से कई तरह की बयानबाजी करते आ रहे विजय देवराकोंडा ने ही तेलगू फिल्म ‘‘अर्जुन रेड्डी’’में अभिनय किया था. ‘लाइगर’अति बकवास फिल्म है. जिसमें न कहानी का अता पता है और न ही किसी कलाकार ने अच्छा अभिनय ही किया है. फिल्म का नाम ‘लाइगर’ क्यांे है, यह समझना कठिन है. मगर फिल्म में लाइगर की मां बनी रमैया कृष्णा का संवाद है-‘‘शेर और बाघ दोनों से पैदा हुआ है-‘लाइगर’.
अपनी फिल्म ‘‘लाइगर’’ के हश्र से विजय देवराकोंडा व पुरी जगन्नाथ परिचित थे. इसलिए उन्होने ‘लाइगर’ के तमिल व तेलगू संस्करण को 25 अगस्त की सुबह ही सिनेमाघरों में प्रदर्शित कर दिया था. उन्हे यकीन था कि जहां वह सुपर स्टार हैं, वहां वह अपने दर्शकों को मूर्ख बना ले जाएंगे, पर ऐसा नही हुआ. बहरहाल, हिंदी में बनी ‘लाइगर’ 25 अगस्त की रात आठ बजे सिनेमाघरोे में पहुॅचाया गया. इस बार पत्रकारांे को ेभी 25 अगस्त की रात में ही यह फिल्म दिखायी गयी. मीडिया में दिन भर कानाफूसी होती रही कि यदि फिल्मकार अपनी फिल्म को लेकर इतना डरे हुए हैं, तो उन्हे अच्छी कहानी पर अच्छी फिल्म बनानी चाहिए अथवा फिल्म ही न बनाएं.
कहानीः
यह कहानी एक किक बाक्सर व हकलाने वाले इंसान लाइगर (विजय देवरकोंडा) की है. जो कि बनारस से चेन्नई अपनी मां बलमणि (रमैया कृष्णन)के साथ सड़क पर ठेला@ टपरी लगाकर चाय बेचता है. बलमणि (रमैया कृष्णन) खुद को बाघिन समझती हैं. वह अपने बेटे के माध्यम से मार्शल आर्ट के एमएमए फार्म में राष्ट्ीय चैंपियनशिप जीतने का सपना देख रही है, जिसे जीतने से पहले ही उनके पति बलराम की मौत हो गयी थी. और बेटा लाइगर ने एमएमए राष्ट्ीय चैंपियनशिप हासिल करने की कसम खायी है. उसकी मां उसे लेकर चेन्नई आयी है, जिससे वह मार्शल आर्ट की बेहतरीन शिक्षा मास्टर (रोनित रॉय)से मुफ्त में दिला सके. पहले तो मास्टर मना कर देते हैं. मगर जब लाइगर की मां उसे याद दिलाती हैं कि एक बार प्रतियोगिता में लाइगर के पिता बलराम ने उन्हे हराया था, तब वह तैयार हो जाते हैं. मगर मास्टर के यहां एमएमए का प्रशिक्षण ले रहे दूसरे लड़के लइगर के हकलाने का उपहास उड़ाते हैं.
फिर फिल्म में एक अमीर बाप की बिगड़ैल व सोशल मीडिया की सुपर स्टार बनने का सपना देख रही तान्या (अनन्या पांडे) का अवतरण होता है, जो कि एक रेस्टारेंट में पहली मुलाकात में ही लाइगर को दिल दे बैठती है और बताती है कि वह संजू (विशु) की बहन है. इससे पहले संजू और लाइगर के बीच मारामारी हो चुकी है. लाइगर की मां बालमणि उसे सलाह देती है कि ‘चुड़ैल’ लड़कियों से दूर रहे. मगर मंदिर में एम एस सुब्बुलक्ष्मी के गाने पर लिप सिंक कर वीडियो बनाते तान्या को देखकर बालमणि उसकी तरफ आकर्षित होती हैं. पर चंद क्षण में ही तान्या अपना असली रूप बालमणि को दिखा देती है. दोनों के बीच कहासुनी भी होती है. कुछ दिन बाद लाइगर व तान्या के संबंध पता चलने पर बालमणि, तान्या को अपने बेटे से दूर रहने के लिए कहती है. संजू के चलते तान्या, लाइगर से ूदूर चली जाती है. इधर लाइगर एमएमए में राष्ट्ीय चैंपियन बन जाता है. अब उसे एमएमए में अंतरराष्ट्ीय चैंपियन बनना है. पर उसके पास बीस लाख रूपए नही है. नाटकीय अंदाज में अमरीका बसे अप्रवासी भारतीय पांडे(चंकी पांडे ) सारा खर्च ही नहीं उठाते है बल्कि लाइगर, मास्टर व अन्य लड़कों को अपने प्रायवेट जेट विमान से अमरीका बुलाते हैं.
अमरीका के लास वैगास शहर में एमएमए का अंतरराट्ीय सेमी फाइनल जीतने के बाद लाइगर से पांडे बताते है कि तान्या उनकी बेटी है. तान्या ने उससे दूरी बनायी थी जिससे वह चैंपियन बन सके. संजू( विशु रेड्डी ) भी उनका बेटा है. तभी अंडरवल्र्ड डॉन माइक टायसन(माइक टायसन ), तान्या का अपहरण कर लेता है. क्योंकि पंाडे ने उससे कुछ उधार ले रखा है. तान्या को छुड़ाने के लिए लाइगर, अंडरवल्र्ड डॉन के अड्डे पर जाते हैं. जहां दोनों के बीच लड़ाई होती है, जिसका लाइव प्रसारण होता है. लाइगर, माइक टायसन को अपने पिता का कातिल कहता है और अंततः जीत जाता है.
लेखन व निर्देशनः
फिल्म ‘लाइगर’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इसकी कहानी व पटकथा लेखक तथा निर्देशक पुरी जगन्नाथ ही हैं. फिल्म में कहानी के नाम पर कुछ भी नही है. बेसिर पैर की बातें है. पुरी जगन्नाथ को बनारस की संस्कृति ही नही मां बेटे के रिश्ते की भी कोई समझ नही है. कम से कम वाराणसी की मां अपने बेटे को ‘साले’ कभी नही बोलती. पूरी फिल्म भावनाओं से मुक्त है. पुरी जगन्नाथ ने अपनी फिल्म के नायक को हकलाने वाला बताया है. पर उन्हे हकलाहट के मनोविज्ञान की समझ ही नही है. यदि उन्हे समझ होती तो कहानी में कुछ दूसरे तत्व वह जोड़ते.
यह फिल्म ‘‘मार्शल आर्ट’ का नाम बदनाम करती है. इतना ही नही माइक टायन जैसे इंसान को अंडारवर्ड डौन बताने के साथ ही उन्हे गालियंा खाने के अलावा एक नौ सीखिए से हारते हुए भी दिखाया है. माइक टायसन ने शायद मोटी रकम देखकर यह किरदार निभा लिया. मगर माइक टायसन जैसे लीजेंड को इस तरह से पेश करना लेखक व निर्देशक का दिमागी दिवालियापन ही कहा जाएगा. वैसे भी लाइगर और माइक टायसन के बीच घंूसे बरसाने के दृश्य महज हास्य ही पैदा करते हैं. फिल्म का क्लायमेक्स भी घटिया है. सबसे बड़ी हकीकत यह है कि अतीत में भी पुरी जगन्नाथ हिंदी में मात खा चुके हैं. उन्हेोन अपनी दूरी तेलगू फिल्म‘बद्री’ को हिंदी में ‘शर्ट ए चैंलज’ के अलावा ‘बुड्ढा होगा तेरा बाप’ जैसी फिल्में बना चुके हैं, जिन्हे दर्शकों ने सिरे से नकार दिया था.
लेखक व निर्देशक के दिमागी दिवालियापन की दूसरी मिसाल यह है कि लाइगर ने अपने पिता को ‘एमएमए’ में हारते हुए नही देखा, उसने यह नही देखा कि उसके पिता को किसने मारा, मगर अपनी मां कहती है कि वह अपने हर प्रतिस्पर्धी को अपना कातिल मानकर उसे खत्म कर दे. यह सिर्फ अजीब सा लौजिक ही नही है, बल्कि आम जनमानस को बहुत ही गलत और अमानवीय संदेश भी देता है. जब लाइगर सोचता है कि माइक टायसन उसके पिता का कातिल है, तभी वह उन्हे हरा पाता है.
फिल्म को देशभक्ति का जामा पहनाने के लिए अमरीका के लास वेगास में एक चायवाले से ‘एमएए’ में अंतरराष्ट्ीय विजेता बने लाइगर को भारतीय ध्वज लहराते, ‘वाट लगा देंगे‘ और ‘हम भारतीय हैं, दुनिया को आग लगा देंगे‘ के नारे से देशभक्ति की बातें भी की गयी हैं, मगर सब कुछ बहुत ही अजीब तरीके से चित्रित किया गया है. पूरी फिल्म देखकर कहीं भी देशभक्ति कर जज्बा नही उभरता. बल्कि यह फिल्म पूरी तरह से बदले की कहानी ही नजर आती है.
‘लाइगर’ एक अंडरडॉग स्ट्रीट फाइटर की कहानी बतायी गयी है, जो ‘एमएए’ फार्म के मार्शल आर्ट की प्रतियोगिता मंे अंतरराष्ट्रीय खिताब जीतने में सफल होता है. इस कहानी में नयापन क्या है?इसी तरह के कथानक पर पहले भी कई फिल्में बनी हैं और उन्हे सफलता नही मिली. कुछ समय पहले इसी तरह की कहानी वाली फरहान अख्तर की बाक्स आफिस पर बुरी तरह से मात खाने वाल फिल्म ‘‘तूफान’’ आयी थी. तो वहीं बी सुभाष की 1984 में आयी फिल्म ‘‘कसम पैदा करने वाले की’’ में दलित युवक द्वारा अपने पिता का बदला लेने की कहानी थी, जिसे दर्शकों ने पंसद नही किया था. वैसे ‘लाइगर’ देखते समय लोगों को 1984 में ही प्रदर्शित मिथुन चक्रवर्ती की फिल्म ‘बाक्सर’ की याद भी आती है.
एक औरत होते हुए भी लाइगर की मां बलमणि एक लड़की को ‘चुड़ैल’ की संज्ञा देती है और अपने बेटे से कहती है कि वह लड़कियांे से दूर रहे, क्योंकि ‘चुड़ैल’ लड़की उसे प्यार में फंसाने का प्रयास करेगी. यह सोच तो पूरी नारी जाति का अपमान है. एक जगह हीरो कहता है कि महिलाओं को चूमना यानी कि ‘किस’ ठीक है, लेकिन उनसे लड़ना ठीक नहीं है. तो वहीं एक संवाद है-मैने तुम्हे गर्भवती किया है क्या?’’इस तरह के संवाद सेंसर बोर्ड ने पारित कैसे कर दिए? इस फिल्म से सेंसर बोर्ड पर भी सवाल उठते हैं.
फिल्म के गाने भी घटिया हैं और उनका फिल्मांकन नब्बे के दशक के अंदाज मंे किया गया है. इन गानों को बेवजह कहीं भी ठॅूंस दिया गया है. संवाद दोयम दर्जे के हैं. एडीटर ने भी अपना काम सहीं ढंग से अंजाम देने में विफल रहे हैं.
अभिनयः
लाइगर के किरदार में विजय देवराकोडा दूसरी सबसे बड़ी कमजोर कड़ी हैं, वह हकलाने वाले के किरदार मंे है, मगर इस किरदार को निभाने से पहले अगर उन्होेने हकलाहट के मनोविज्ञान को समझने का प्रयास किया होता, तो उनके हित में होता. वह कहंी से भी महत्वाकांक्षी मां के बेटे नजर ही नही आते. लगता है कि ‘पैन इंडिया स्टार’ बनने का सपना देखते हुए विजय देवराकोंडा अभिनय भी भूल गए. .
एक अमीर, अत्याधुनिक और सोशल मीडिया पर अपने फालोवअर्स बढ़ाने के लिए मरी जा रही तान्या के किरदार में 2019 में फिल्म ‘‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’’ से अभिनय कैरियर की शुरूआत करने वाली अनन्या पांडे महज संुदर व कम वस्त्रों मे ही नजर आयी हैं. उनका अभिनय से कोई लेना देना नही है. लगभग हर दृश्य में उनका चेहरा सपाट ही नजर आता है. अनन्या पांडे के परदे पर आते ही दर्शक मंुॅह बनाने लगता है. तो चंद मिनट के दृश्य में मकरंद देशंपाडे की प्रतिभा को जाया किया गया है. क्या मकरंद देशपांडे ने यह फिल्म महज पैसों के लिए की? यह तो वही जाने? लाइगर की मां बालमणि के किरदार में रमैया लगभग हर दृश्य में औरतों का अपमान करते अथवा फिल्म ‘बाहुबली’ के अपने किरदार की तरह महज चिल्लाते हुए ही नजर आती है. शायद बामणि का किरदार निभाते हुए उन्हे याद ही नहीं रहा कि वह ‘बाहुबली’ नही कर रही है. उन्हे उनका अभिनय अप्रभावशाली है. तान्या के पिता पांडे के किरदार में चंकी पांडे की प्रतिभा को भी जाया किया गया है. उनके हिस्से करने को कुछ आया ही नहीं. संजू के किरदार में 2009 से तेलगू फिल्मों में अभिनय करते आ रहे अभिनेता विशु रेड्डी हैं. पर इस फिल्म में उन्होने क्यो सोचकर अभिनय किया, यह बात समझ से परे है.
अंत मेंः
‘‘पैन इंडिया सिनेमा’’ के नाम पर ‘‘लाइगर’’जैसी फिल्में भारतीय सिनेमा को तबाही की ओर ही ले जा रही हैं.
बिग बॉस 14 फेम सोनाली फोगाट (Sonali Phogat) की हाल ही में हुई मौत की गुत्थी उलझती ही जा रही है. जहां बीते दिनों सोनाली की मौत हार्टअटैक से बताई गई थी तो वहीं नेता के भाई ने इसे मर्डर नाम दिया था. हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट सामने आने के बाद कई सच सामने आते दिखाई दे रहे हैं. आइए आपको बताते हैं सोनाली फोगाट की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में क्या सामने आया है…
चोट के निशान आए सामने
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हाल ही में सामने आई सोनाली फोगाट की रिपोर्ट में कई खुलासे हुए हैं. दरअसल, रिपोर्ट में सोनाली के शरीर पर कई चोटों के बारे में पता चला है. इसके अलावा शरीर पर किसी नुकीली वस्तु से जबरन कई बार वार करने का जिक्र भी किया गया है. वहीं रिपोर्ट सामने आने के बाद गोवा पुलिस ने आईपीसी की धारा 302 के तहत 42 वर्षीय सोनाली फोगाट (Sonali Phogat) के पीए सुधीर सांगवान और उसके दोस्त सुखविंदर वासी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर लिया है.
भाई ने हत्या की जताई थी आशंका
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बीते दिनों 23 अगस्त को हार्ट अटैक से सोनाली फोगाट के निधन होने की खबरें सामने आई थी, जिसके बाद उनके परिवार ने हत्या की आशंका जताई थी. सोनाली फोगाट के भाई रिंकू ढाका ने अंजुना पुलिस थाने मे दो लोगों के खिलाफ हत्या की शिकायत दर्ज करवाई थी, जिसके बाद गोवा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के फोरेंसिक विशेषज्ञों के एक पैनल ने सोनाली के शव का पोस्टमार्टम किया और उनके मर्डर को लेकर खुलासा हुआ.
सोशलमीडिया पर वीडियो हुआ वायरल
हाल ही में सोनाली फोगाट का एक पुराना वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें डांस करती हुई दिखाई दे रही हैं. हालांकि सोशलमीडिया पर ये वीडियो में कितनी सच्चाई है ये सामने नहीं आई है. हालांकि गोवा में एक मीटिंग करने के बाद होटल में 22 अगस्त को एक पार्टी का हिस्सा बनीं थी. वहीं उनकी मौत की खबर सामने आई थी. लेकिन सोनाली फोगाट के भाई ने मर्डर और रेप के भी आरोप पीए पर लगाए थे.
फोटो क्रेडिट- विरल भयानी
स्टार प्लस के सीरियल गुम है किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी को मेकर्स लीप के बाद दिलचस्प बनाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं, जिसके चलते फैंस को सीरियल की कहानी पसंद आ रही है. वहीं इन दिनों विराट और सई को देखकर फैंस काफी खुश हैं. हालांकि जल्द ही सीरियल में पाखी भी नजर आने वाली है. हालांकि इस बार वह चौह्वण निवास की मालकिन बनीं हुई दिखेगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin Written Update In Hindi) …
विराट ने बचाया सवी को
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अब तक आपने देखा कि सई अपनी बेटी सवी को विराट के बारे में कुछ नहीं बताती हैं. वहीं विनायक से उसकी मुलाकात होती है. हालांकि वह विनायक के पिता यानी विराट से नहीं मिल पाती. दूसरी तरफ किडनैपिंग से बचाने के चलते विराट की मुलाकात सवि से होती है और उन दोनों की बौंडिग देखने को मिलती है.
चौह्वाण परिवार पर राज करेगी पाखी
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इसके अलावा आप देखेंगे कि जहां विराट और सई मिलेंगे तो वहीं पाखी और चौह्वाण परिवार को भी शो में दिखाया जाएगा. दरअसल, आप अपकमिंग एपिसोड में देखेंगे कि पूरा परिवार घर में गणेश चतुर्थी के जश्न की तैयारी करेगा, जिसके चलते घर के फैसले लेने के लिए पूरा परिवार पाखी को कहेगा. वहीं भवानी भी पाखी को घर की मालकिन बताएगी और कहेगी कि वह अब चौह्वाण परिवार की जिम्मेदारियां उठा रही है तो घर की मालकिन वही है. इसी के साथ वह विनायक और विराट का बेसब्री से इंतजार करती हुई दिखेगी.
सई की होगी मुलाकात
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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सई और विराट की कैंप में मुलाकात होगी. वहीं सई को पता चलेगा कि उसका बेटा विनायक जिंदा है, जिसके चलते विराट पर उसका गुस्सा बढ़ जाएगा. इसी के साथ विराट को पता चलेगा कि सवी उसकी बेटी है.
आप को उस के दोस्तों के नाम पता हैं. आप उस की पसंदीदा फिल्मों के नाम जानती हैं. आप उस की जिंदगी में घटी तमाम खास घटनाएं जानती हैं. आप उस पर आंख मूंद कर भरोसा करती हैं. कभीकभी वह आप को डांटता है, फिर भी आप उस की शिकायत किसी और से नहीं करतीं, न ही आप को यह सब बुरा लगता है. आप को उस के बोलने के अंदाज का पता है. उस के मन में क्या चलता रहता है, आप को इस का भी अंदाजा रहता है.
सवाल- आखिर आप का वह कौन है?
आप उस से उम्मीद करते हैं कि वह आप के पसंदीदा कपड़े पहने. आप चाहते हैं जब आप दोनों लंच करने बैठें तो खाना वह परोसे. आप चाहते हैं जब आप कुछ बोल रहे हों, भले गुस्से में तो भी वह चुपचाप सुन ले, पलट कर उस समय जवाब न दे, बाद में भले उलटे आप को डांट दे. आप उसे अपने फ्यूचर के प्लान बताते हैं, यात्राओं के दौरान घटी दिलचस्प घटनाएं बताते हैं. आप उस के साथ बैठ कर काम करने की बेहतर रणनीति पर विचार करते हैं.
सवाल- आखिर वह आप की कौन है?
जी हां पहले सवाल का जवाब है पति और दूसरे सवाल का जवाब है पत्नी. लेकिन रुकिए ये सामान्य जीवन के पतिपत्नी नहीं हैं. ये वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ हैं. वर्क हसबैंड यानी कार्यस्थल या दफ्तर का पति. इसी तरह वर्क वाइफ का भी मतलब है कार्यस्थल या दफ्तर की पत्नी. सुनने में यह भले थोड़ा अटपटा लगे या झेंप जाएं, मगर हकीकत यही है. कामकाज की नई संस्कृति के फलनेफूलने के साथ ही दुनिया भर में ऐसे पतिपत्नियों की संख्या दफ्तरों में काम करने वाले कुल लोगों के करीब 40 फीसदी है.
1950 के दशक में अमेरीका में ऐसे रिश्तों के लिए बड़ी शिद्दत से एक शब्द का इस्तेमाल किया जाता था- वर्कस्पाउस. ये वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड वास्तव में उसी शब्द के विस्तार हैं. कहने का मतलब यह है कि कामकाजी दुनिया में यह कोई नया रिश्ता नहीं है. बस, नया है तो इतना कि अब इस रिश्ते को दुनिया के ज्यादातर देशों में साफसाफ शब्दों में स्वीकार किया जाने लगा है.
इसलिए हमें इस रिश्ते को ले कर आश्चर्य प्रकट करने की कोई जरूरत नहीं है. सालों से दुनिया में इस तरह के संबंधों की मौजूदगी है और हो भी क्यों न? यह बिलकुल स्वाभाविक है कि जब हम दिन का ज्यादातर समय साथसाथ गुजारते हैं तो आखिर भावनात्मक रिश्ते क्यों नहीं विकसित होंगे?
औस्कर वाइल्ड ने कहा था, ‘‘औरत और आदमी बहुत कुछ हो सकते हैं, मगर सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते. दोस्त होते हुए भी उन में औरत और आदमी का रिश्ता विकसित हो जाता है.’’
मनोविद भी कहते हैं कि जब 2 विपरीत सैक्स के लोग एकदूसरे के साथ लगाव महसूस करते हैं, तो उन का यह लगाव उन की स्वाभाविक भूमिकाओं वाला आकार ले लेता है यानी पुरुष, पुरुष हो जाता है और औरत, औरत हो जाती है.
पहले भी रहे ऐसे रिश्ते
ऐसे रिश्ते हमेशा रहे हैं और जब भी औरत और आदमी साथसाथ होंगे हमेशा रहेंगे. ऐसे रिश्ते पहले भी थे, पर उन की संख्या बहुत कम थी. इस की वजह थी औरतों का घर से बाहर निकलना मुश्किल था, दफ्तरों में आमतौर पर पुरुष ही पुरुष होते थे. मगर अब जमाना बदल चुका है. आज के दौर में स्त्री और पुरुष दोनों ही घर से बाहर निकल कर साथसाथ काम कर रहे हैं. दोनों का ही आज घर में रहने की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजर रहा है. काम की संस्कृति भी कुछ ऐसी विकसित हुई है कि तमाम काम साथसाथ मिल कर करने पड़ रहे हैं. लिहाजा, एक ही दफ्तर में काम करते हुए 2 विपरीत सैक्स के बीच प्रोफैशनल के साथसाथ भावनात्मक नजदीकियां बढ़नी भी बहुत स्वाभाविक है.
एक जमाना था, जब दफ्तर का मतलब होता था सिर्फ 8 घंटे. लेकिन आज दफ्तरों का मिजाज 8 घंटे वाला नहीं रह गया है. आज की तारीख में व्हाइट कौलर जौब वाले प्रोफैशनलों के लिए दफ्तर का मतलब है एक तयशुदा टारगेट पूरा करना, जिस में हर दिन के 12 घंटे भी लग सकते हैं और कभीकभी लगातार 24 से 36 घंटों तक भी साथ रहते हुए काम करना पड़ सकता है.
ऐसा इसलिए है, क्योंकि अर्थव्यवस्था बदल गई है, दुनिया सिमट गई है और वास्तविकता से ज्यादा चीजें आभासी हो गई हैं. जाहिर है लंबे समय तक दफ्तर में साथसाथ रहने वाले 2 लोग अपने सुखदुख भी साझा करेंगे, क्योंकि जब 2 लोग साथसाथ रहते हुए काम करते हैं, तो वे आपस में हंसते भी हैं, साथ खाना भी खाते हैं, एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में भी सुनते व जानते हैं, बौस की बुराई भी मिल कर करते हैं और एकदूसरे को तरोताजा रखने के लिए एकदूसरे को चुटकुले भी सुनाते हैं. यह सब कुछ एक छोटे से कैबिन में संपन्न होता है, जहां 2 सहकर्मी बिलकुल पासपास होते हैं.
ऐसी स्थिति में वे एकदूसरे को चाहेअनचाहे हर चीज साझा करते हैं. सहकर्मी को कैसा म्यूजिक पसंद है यह आप को भी पता होता है और उसे भी. उसे चौकलेट पसंद है या आइसक्रीम यह बात दोनों सहकर्मी भलीभांति जानते हैं. जाहिर है लगाव की डोर इन सब धागों से ही बनती है.
जब साथ काम करतेकरते काफी वक्त गुजर जाता है, तो हम एकदूसरे के सिर्फ काम की क्षमताएं ही नहीं, बल्कि मानसिक बुनावटों और भावनात्मक झुकावों को भी अच्छी तरह जानने लगते हैं. जाहिर है ऐसे में 2 विपरीत सैक्स के सहकर्मी एकदूसरे के लिए अपनेआप को कुछ इस तरह समायोजित करते हैं कि वे एकदूसरे के पूरक बन जाते हैं. उन में आपस में झगड़ा नहीं होता. दोनों मिल कर काम करते हैं तो काम भी ज्यादा होता है और थकान भी नहीं होती. दोनों साथ रहते हुए खुश भी रहते हैं यानी ऐसे सहकर्मी मियांबीवी की तरह काम करने लगते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समाजशास्त्र में परिभाषित करने के लिए वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ की श्रेणी में रखा जाता है.
हो रही बढ़ोतरी
पहले इसे सैद्धांतिक तौर पर ही माना और समझा जाता था. लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर कैरिअर वैबसाइट वाल्ट डौटकौम ने एक सर्वे किया और पाया कि 2010 में ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ करीब 30 फीसदी थे, जो 2014 में बढ़ कर 44 फीसदी हो गए हैं.
इस स्टडी के लेखकों ने एक बहुत ही जानासमझा उदाहरण दे कर दुनिया को समझाने की कोशिश की है कि वर्क वाइफ और वर्क हसबैंड कैसे होते हैं? उदाहरण यह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जौर्ज बुश व उन की विदेश मंत्री व राष्ट्रीय सलाहकार रहीं कोंडालिजा राइस के बीच जो कामकाजी कैमिस्ट्री थी, वह वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ के दायरे में आने वाली कैमिस्ट्री थी.
कितना जायज है यह रिश्ता
सवाल है क्या यह रिश्ता जायज है? क्या यह रिश्ता विश्वसनीय है? वाल्ट डौटकौम का सर्वेक्षण निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करता है कि लोग इसे एक जरूरी और मजबूत रिश्ता मानते हैं. इस सर्वेक्षण के दौरान ज्यादातर लोगों ने कहा कि दफ्तर में पसंदीदा सहकर्मी के साथ जो रिश्ते बनते हैं, वे ज्यादा विश्वसनीय और ज्यादा मजबूत होते हैं. लोग इन रिश्तों को बखूबी निभाते हैं. करीब वैसे ही जैसे कोई शादीशुदा जोड़ा अपनी जिंदगी को सुचारु रूप से निभाने की कोशिश करता है. इस रिश्ते को पश्चिम में समाजशास्त्रियों ने व्यावहारिकता की कई कसौटियों में रख कर देखा है और उन्होंने पाया है कि यह रिश्ता न सिर्फ बेहद खास, बल्कि बहुत ही समझदारी भरा भी होता है.
इस रिश्ते में रोमांस नहीं होता, बस जोड़े एकदूसरे के साथ जज्बाती लगाव रखते हैं और एकदूसरे की परेशानियों और हकीकतों को बेहतर समझते हुए उस रिश्ते के लिए जमीन तलाशते हैं. हालांकि ज्यादातर ऐसे जोड़े जो ऐसे रिश्तों के दायरे में आते हैं, गहरे जिस्मानी रिश्ते नहीं रखते. लेकिन थोड़े बहुत रिश्ते तो सभी के होते हैं, मगर समाजशास्त्रियों ने अपने व्यापक विश्लेषणों में पाया है कि जिन जोड़ों के बीच जिस्मानी रिश्ते भी होते हैं, वे भी एकदूसरे की वास्तविक स्थितियों का सम्मान करते हैं और मौका पड़ने पर बहुत आसानी से एकदूसरे से दूरी बना लेते हैं, बिना किसी झगड़े, मनमुटाव के.
प्रोफैसर मैकब्राइट जिन्होंने इस सर्वे का वृहद विश्लेषण किया, उन के मुताबिक बहुत कम लोगों के बीच इन कामकाजी रिश्तों के साथ रोमानी रिश्ता होता है.
सवाल है आखिर इस रिश्ते का फायदा क्या है? इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों की मानें और सर्वेक्षण के दौरान लोगों से किए गए साक्षात्कारों से निकले निष्कर्षों पर भरोसा करें तो जब 2 सहकर्मियों के बीच वर्क वाइफ या वर्क हसबैंड का रिश्ता बन जाता है, तो वे दोनों कर्मचारी अपने काम के प्रति ज्यादा ईमानदार हो जाते हैं. उन्हें काम से ज्यादा लगाव हो जाता है और ज्यादा काम भी होता है. यही वजह है कि दुनिया की तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाहती हैं कि उन के कर्मचारियों के बीच वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड का रिश्ता बने तो बेहतर है.
आज दुनिया की तमाम कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए जिस किस्म का आरामदायक कार्य माहौल प्रदान कर रही हैं और दफ्तरों में जिस तरह महिलाओं और पुरुषों को करीब समान अनुपात में रख रही हैं, उस के पीछे एक सोच यह भी रहती है कि तमाम कर्मचारी अपनेअपने जोड़े तय कर के काम करें.
मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक जब पुरुष और महिला एकसाथ बैठ कर काम करते हैं, तो उन में बिना किसी वजह के भी 10 फीसदी खुशी की भावनाएं होती हैं यानी जब अकेलेअकेले पुरुष या अकेलेअकेले महिलाएं काम करती हैं, तो वे काम से जल्द ऊब जाते हैं. उन का कार्य उत्पादन भी कम होता है और काम करने के प्रति कोई लगाव या रोमांच भी नहीं रहता.
मगर जब महिला और पुरुष मिल कर साथसाथ काम करते हैं, तो उन्हें एक आंतरिक खुशी का एहसास होता है, भले ही इस खुशी का कोई मतलब न हो. वास्तव में 2 विपरीत सैक्स के लोग एकसाथ समय गुजारते हुए एकदूसरे से चार्ज होते रहते हैं.
बढ़ती है काम की गुणवत्ता
तमाम सर्वेक्षणों और शोधों में यह भी पाया गया है कि जब महिला और पुरुष मिल कर काम करते हैं, तो वे न केवल ज्यादा काम करते हैं, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाला काम भी करते हैं. साथ ही नएनए आइडियाज भी विकसित करते हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसी रणनीति के तहत अपने कर्मचारियों को आपस में घुलनेमिलने हेतु माहौल प्रदान करने के लिए अकसर पार्टियां आयोजित करती हैं. कर्मचारियों को एक खुशगवार माहौल में रखती हैं ताकि सब एकदूसरे की कमजोरियों और खूबियों को पहचान सकें ताकि कर्मचारियों को अपनेअपने अनुकूल साथी चुनने में दिक्कत न आए.
वर्क हसबैंड और वर्कवाइफ का चलन तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि हिंदुस्तान जैसे समाज में ही नहीं अमेरिका और यूरोप जैसे समाजों में कर्मचारी इस शब्द के इस्तेमाल से झिझकते हैं. शादीशुदा या गैरशादीशुदा दोनों ही किस्म के कर्मचारी अपने परिवार और दोस्तों के बीच इस शब्द का इस्तेमाल भूल कर भी नहीं करते. यहां तक कि आपस में भी वे कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करते या एकदूसरे को नहीं जताते कि हां, ऐसा है. मगर वे एकदूसरे से इस भावना से जुड़े हैं, यह बात दोनों जानते हैं.
ये रिश्ते टूटते हैं
जिस तरह शादीशुदा जोड़ों के बीच तलाक होता है या कईर् बार रिश्ते ठंडे पड़ जाते हैं अथवा कई बार उन में अलगाव हो जाता है, उसी तरह ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ के बीच भी अलगाव होता है. कई बार आप की वर्क वाइफ किसी दूसरी कंपनी में चली जाती है और आप को नए सिरे से नए साथी की तलाश करनी पड़ती है. ठीक ऐसे ही उसे भी नए सिरे से वर्क हसबैंड की तलाश करनी पड़ती है. लेकिन ऐसे मौकों पर इस तरह के अलगाव को दिल से नहीं लेना चाहिए और न ही इस का अपने कामकाज पर प्रभाव पड़ने देना चाहिए.
कई बार कुछ वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ एकदूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं और वे एकदूसरे का साथ पाने के लिए अपनी उन्नतितरक्की को भी दांव पर लगा देते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक यह व्यावहारिक कदम नहीं है. इस तरह के रिश्तों के भावनात्मक जाल में फंस कर अपनी बेहतरी के मौके को गंवा देना ठीक नहीं. अगर कामयाबी की सीढि़यां चढ़ने का मौका मिला है तो हर हाल में चढ़ें, क्योंकि क्या मालूम ऊपर की सीढि़यों में कोई और बेहतर साथी आप का इंतजार कर रहा हो, जो आप की प्रोफैशनल और भावनात्मक दोनों ही किस्म की जरूरतों को पहले साथी से बेहतर ढंग से पूरा कर सकता हो.
आखिर कहां खींचें लक्ष्मणरेखा
विशेषज्ञ कहते हैं कि कार्यस्थल पर किसी के साथ प्रोफैशनल झुकाव होना यानी वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना अनैतिकता नहीं है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह रिश्ता हमेशा हमारी वास्तविक यानी घरेलू जिंदगी के लिए चिंता का विषय बना रहता है. सवाल है ऐसा क्या करें जिस से इस तरह के डर या इस तरह की चिंताओं से दूर रहा जा सके?
– कार्यस्थल पर वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना तो ठीक है लेकिन यह अक्लमंदी नहीं है कि आप घर जा कर पूरे दिन की दफ्तर की गतिविधियों की कौमैंट्री करें और सुबह दफ्तर पहुंच कर अपने विपरीतलिंगी सहकर्मी के साथ पूरी रात की गतिविधियों पर डिस्कस करें. घर और दफ्तर के बीच एक स्पष्ट सीमारेखा तय होनी चाहिए.
– यह बात हमेशा याद रखें कि न आप के वास्तविक पति का विकल्प वर्क हसबैंड हो सकता है और न ही आप के वर्कहसबैंड का विकल्प आप का वास्ततिक पति का हो सकता है. दोनों के बीच अपनीअपनी जगह, जरूरतें हैं और दोनों का अपनाअपना महत्त्व है. यही बात वर्क वाइफ और वास्तविक वाइफ के संदर्भ में भी लागू होती है. आप दोनों के बीच जिस दिन तुलना करने लगते हैं और दोनों को दोनों में तलाशने लगते हैं, उसी दिन से तनाव शुरू हो जाता है, क्योंकि कोईर् एक कमतर हो जाता है और दूसरा बेहतर.
– अपने वर्क हसबैंड के साथ कुछ मामलों में बिलकुल स्पष्ट रहें उस के साथ जितना हो सके. उस के साथ गुजारे गए समय को ही शेयर करें. न तो उसे जानबूझ कर नीचा दिखाने की कोशिश करें और न ही उस की अपने वास्तविक पति से तुलना करें. तुलना करें भी तो कभी भी यह बात उसे न बताएं. दरअसल, पुरुषों की यह कमजोर नस है कि वे खुद को सब से ऊपर ही मानना और देखना चाहते हैं. ऐसे में विशेष कर वर्क वाइफ के लिए यह दिक्कत पैदा हो सकती है. अगर वह दोनों के बारे में दोनों से बताती है. भले ही वह अलगअलग समय पर अलगअलग पुरुषों को दूसरे से बेहतर ही क्यों ने बताती हो?