दिल का नया रिश्ता: वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड

आप को उस के दोस्तों के नाम पता हैं. आप उस की पसंदीदा फिल्मों के नाम जानती हैं. आप उस की जिंदगी में घटी तमाम खास घटनाएं जानती हैं. आप उस पर आंख मूंद कर भरोसा करती हैं. कभीकभी वह आप को डांटता है, फिर भी आप उस की शिकायत किसी और से नहीं करतीं, न ही आप को यह सब बुरा लगता है. आप को उस के बोलने के अंदाज का पता है. उस के मन में क्या चलता रहता है, आप को इस का भी अंदाजा रहता है.

सवाल- आखिर आप का वह कौन है?

आप उस से उम्मीद करते हैं कि वह आप के पसंदीदा कपड़े पहने. आप चाहते हैं जब आप दोनों लंच करने बैठें तो खाना वह परोसे. आप चाहते हैं जब आप कुछ बोल रहे हों, भले गुस्से में तो भी वह चुपचाप सुन ले, पलट कर उस समय जवाब न दे, बाद में भले उलटे आप को डांट दे. आप उसे अपने फ्यूचर के प्लान बताते हैं, यात्राओं के दौरान घटी दिलचस्प घटनाएं बताते हैं. आप उस के साथ बैठ कर काम करने की बेहतर रणनीति पर विचार करते हैं.

सवाल- आखिर वह आप की कौन है?

जी हां पहले सवाल का जवाब है पति और दूसरे सवाल का जवाब है पत्नी. लेकिन रुकिए ये सामान्य जीवन के पतिपत्नी नहीं हैं. ये वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ हैं. वर्क हसबैंड यानी कार्यस्थल या दफ्तर का पति. इसी तरह वर्क वाइफ का भी मतलब है कार्यस्थल या दफ्तर की पत्नी. सुनने में यह भले थोड़ा अटपटा लगे या झेंप जाएं, मगर हकीकत यही है. कामकाज की नई संस्कृति के फलनेफूलने के साथ ही दुनिया भर में ऐसे पतिपत्नियों की संख्या दफ्तरों में काम करने वाले कुल लोगों के करीब 40 फीसदी है.

1950 के दशक में अमेरीका में ऐसे रिश्तों के लिए बड़ी शिद्दत से एक शब्द का इस्तेमाल किया जाता था- वर्कस्पाउस. ये वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड वास्तव में उसी शब्द के विस्तार हैं. कहने का मतलब यह है कि कामकाजी दुनिया में यह कोई नया रिश्ता नहीं है. बस, नया है तो इतना कि अब इस रिश्ते को दुनिया के ज्यादातर देशों में साफसाफ शब्दों में स्वीकार किया जाने लगा है.

इसलिए हमें इस रिश्ते को ले कर आश्चर्य प्रकट करने की कोई जरूरत नहीं है. सालों से दुनिया में इस तरह के संबंधों की मौजूदगी है और हो भी क्यों न? यह बिलकुल स्वाभाविक है कि जब हम दिन का ज्यादातर समय साथसाथ गुजारते हैं तो आखिर भावनात्मक रिश्ते क्यों नहीं विकसित होंगे?

औस्कर वाइल्ड ने कहा था, ‘‘औरत और आदमी बहुत कुछ हो सकते हैं, मगर सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते. दोस्त होते हुए भी उन में औरत और आदमी का रिश्ता विकसित हो जाता है.’’

मनोविद भी कहते हैं कि जब 2 विपरीत सैक्स के लोग एकदूसरे के साथ लगाव महसूस करते हैं, तो उन का यह लगाव उन की स्वाभाविक भूमिकाओं वाला आकार ले लेता है यानी पुरुष, पुरुष हो जाता है और औरत, औरत हो जाती है.

पहले भी रहे ऐसे रिश्ते

ऐसे रिश्ते हमेशा रहे हैं और जब भी औरत और आदमी साथसाथ होंगे हमेशा रहेंगे. ऐसे रिश्ते पहले भी थे, पर उन की संख्या बहुत कम थी. इस की वजह थी औरतों का घर से बाहर निकलना मुश्किल था, दफ्तरों में आमतौर पर पुरुष ही पुरुष होते थे. मगर अब जमाना बदल चुका है. आज के दौर में स्त्री और पुरुष दोनों ही घर से बाहर निकल कर साथसाथ काम कर रहे हैं. दोनों का ही आज घर में रहने की तुलना में दफ्तर में ज्यादा वक्त गुजर रहा है. काम की संस्कृति भी कुछ ऐसी विकसित हुई है कि तमाम काम साथसाथ मिल कर करने पड़ रहे हैं. लिहाजा, एक ही दफ्तर में काम करते हुए 2 विपरीत सैक्स के बीच प्रोफैशनल के साथसाथ भावनात्मक नजदीकियां बढ़नी भी बहुत स्वाभाविक है.

एक जमाना था, जब दफ्तर का मतलब होता था सिर्फ 8 घंटे. लेकिन आज दफ्तरों का मिजाज 8 घंटे वाला नहीं रह गया है. आज की तारीख में व्हाइट कौलर जौब वाले प्रोफैशनलों के लिए दफ्तर का मतलब है एक तयशुदा टारगेट पूरा करना, जिस में हर दिन के 12 घंटे भी लग सकते हैं और कभीकभी लगातार 24 से 36 घंटों तक भी साथ रहते हुए काम करना पड़ सकता है.

ऐसा इसलिए है, क्योंकि अर्थव्यवस्था बदल गई है, दुनिया सिमट गई है और वास्तविकता से ज्यादा चीजें आभासी हो गई हैं. जाहिर है लंबे समय तक दफ्तर में साथसाथ रहने वाले 2 लोग अपने सुखदुख भी साझा करेंगे, क्योंकि जब 2 लोग साथसाथ रहते हुए काम करते हैं, तो वे आपस में हंसते भी हैं, साथ खाना भी खाते हैं, एकदूसरे के घरपरिवार के बारे में भी सुनते व जानते हैं, बौस की बुराई भी मिल कर करते हैं और एकदूसरे को तरोताजा रखने के लिए एकदूसरे को चुटकुले भी सुनाते हैं. यह सब कुछ एक छोटे से कैबिन में संपन्न होता है, जहां 2 सहकर्मी बिलकुल पासपास होते हैं.

ऐसी स्थिति में वे एकदूसरे को चाहेअनचाहे हर चीज साझा करते हैं. सहकर्मी को कैसा म्यूजिक पसंद है यह आप को भी पता होता है और उसे भी. उसे चौकलेट पसंद है या आइसक्रीम यह बात दोनों सहकर्मी भलीभांति जानते हैं. जाहिर है लगाव की डोर इन सब धागों से ही बनती है.

जब साथ काम करतेकरते काफी वक्त गुजर जाता है, तो हम एकदूसरे के सिर्फ काम की क्षमताएं ही नहीं, बल्कि मानसिक बुनावटों और भावनात्मक झुकावों को भी अच्छी तरह जानने लगते हैं. जाहिर है ऐसे में 2 विपरीत सैक्स के सहकर्मी एकदूसरे के लिए अपनेआप को कुछ इस तरह समायोजित करते हैं कि वे एकदूसरे के पूरक बन जाते हैं. उन में आपस में झगड़ा नहीं होता. दोनों मिल कर काम करते हैं तो काम भी ज्यादा होता है और थकान भी नहीं होती. दोनों साथ रहते हुए खुश भी रहते हैं यानी ऐसे सहकर्मी मियांबीवी की तरह काम करने लगते हैं. इसलिए ऐसे लोगों को समाजशास्त्र में परिभाषित करने के लिए वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ की श्रेणी में रखा जाता है.

हो रही बढ़ोतरी

पहले इसे सैद्धांतिक तौर पर ही माना और समझा जाता था. लेकिन पूरी दुनिया में मशहूर कैरिअर वैबसाइट वाल्ट डौटकौम ने एक सर्वे किया और पाया कि 2010 में ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ करीब 30 फीसदी थे, जो 2014 में बढ़ कर 44 फीसदी हो गए हैं.

इस स्टडी के लेखकों ने एक बहुत ही जानासमझा उदाहरण दे कर दुनिया को समझाने की कोशिश की है कि वर्क वाइफ और वर्क हसबैंड कैसे होते हैं? उदाहरण यह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जौर्ज बुश व उन की विदेश मंत्री व राष्ट्रीय सलाहकार रहीं कोंडालिजा राइस के बीच जो कामकाजी कैमिस्ट्री थी, वह वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ के दायरे में आने वाली कैमिस्ट्री थी.

कितना जायज है यह रिश्ता

सवाल है क्या यह रिश्ता जायज है? क्या यह रिश्ता विश्वसनीय है? वाल्ट डौटकौम का सर्वेक्षण निष्कर्ष इस बात की पुष्टि करता है कि लोग इसे एक जरूरी और मजबूत रिश्ता मानते हैं. इस सर्वेक्षण के दौरान ज्यादातर लोगों ने कहा कि दफ्तर में पसंदीदा सहकर्मी के साथ जो रिश्ते बनते हैं, वे ज्यादा विश्वसनीय और ज्यादा मजबूत होते हैं. लोग इन रिश्तों को बखूबी निभाते हैं. करीब वैसे ही जैसे कोई शादीशुदा जोड़ा अपनी जिंदगी को सुचारु रूप से निभाने की कोशिश करता है. इस रिश्ते को पश्चिम में समाजशास्त्रियों ने व्यावहारिकता की कई कसौटियों में रख कर देखा है और उन्होंने पाया है कि यह रिश्ता न सिर्फ बेहद खास, बल्कि बहुत ही समझदारी भरा भी होता है.

इस रिश्ते में रोमांस नहीं होता, बस जोड़े एकदूसरे के साथ जज्बाती लगाव रखते हैं और एकदूसरे की परेशानियों और हकीकतों को बेहतर समझते हुए उस रिश्ते के लिए जमीन तलाशते हैं. हालांकि ज्यादातर ऐसे जोड़े जो ऐसे रिश्तों के दायरे में आते हैं, गहरे जिस्मानी रिश्ते नहीं रखते. लेकिन थोड़े बहुत रिश्ते तो सभी के होते हैं, मगर समाजशास्त्रियों ने अपने व्यापक विश्लेषणों में पाया है कि जिन जोड़ों के बीच जिस्मानी रिश्ते भी होते हैं, वे भी एकदूसरे की वास्तविक स्थितियों का सम्मान करते हैं और मौका पड़ने पर बहुत आसानी से एकदूसरे से दूरी बना लेते हैं, बिना किसी झगड़े, मनमुटाव के.

प्रोफैसर मैकब्राइट जिन्होंने इस सर्वे का वृहद विश्लेषण किया, उन के मुताबिक बहुत कम लोगों के बीच इन कामकाजी रिश्तों के साथ रोमानी रिश्ता होता है.

सवाल है आखिर इस रिश्ते का फायदा क्या है? इस सर्वेक्षण के निष्कर्षों की मानें और सर्वेक्षण के दौरान लोगों से किए गए साक्षात्कारों से निकले निष्कर्षों पर भरोसा करें तो जब 2 सहकर्मियों के बीच वर्क वाइफ या वर्क हसबैंड का रिश्ता बन जाता है, तो वे दोनों कर्मचारी अपने काम के प्रति ज्यादा ईमानदार हो जाते हैं. उन्हें काम से ज्यादा लगाव हो जाता है और ज्यादा काम भी होता है. यही वजह है कि दुनिया की तमाम बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां चाहती हैं कि उन के कर्मचारियों के बीच वर्क वाइफ, वर्क हसबैंड का रिश्ता बने तो बेहतर है.

आज दुनिया की तमाम कंपनियां अपने कर्मचारियों के लिए जिस किस्म का आरामदायक कार्य माहौल प्रदान कर रही हैं और दफ्तरों में जिस तरह महिलाओं और पुरुषों को करीब समान अनुपात में रख रही हैं, उस के पीछे एक सोच यह भी रहती है कि तमाम कर्मचारी अपनेअपने जोड़े तय कर के काम करें.

मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक जब पुरुष और महिला एकसाथ बैठ कर काम करते हैं, तो उन में बिना किसी वजह के भी 10 फीसदी खुशी की भावनाएं होती हैं यानी जब अकेलेअकेले पुरुष या अकेलेअकेले महिलाएं काम करती हैं, तो वे काम से जल्द ऊब जाते हैं. उन का कार्य उत्पादन भी कम होता है और काम करने के प्रति कोई लगाव या रोमांच भी नहीं रहता.

मगर जब महिला और पुरुष मिल कर साथसाथ काम करते हैं, तो उन्हें एक आंतरिक खुशी का एहसास होता है, भले ही इस खुशी का कोई मतलब न हो. वास्तव में 2 विपरीत सैक्स के लोग एकसाथ समय गुजारते हुए एकदूसरे से चार्ज होते रहते हैं.

बढ़ती है काम की गुणवत्ता

तमाम सर्वेक्षणों और शोधों में यह भी पाया गया है कि जब महिला और पुरुष मिल कर काम करते हैं, तो वे न केवल ज्यादा काम करते हैं, बल्कि उच्च गुणवत्ता वाला काम भी करते हैं. साथ ही नएनए आइडियाज भी विकसित करते हैं. बहुराष्ट्रीय कंपनियां इसी रणनीति के तहत अपने कर्मचारियों को आपस में घुलनेमिलने हेतु माहौल प्रदान करने के लिए अकसर पार्टियां आयोजित करती हैं. कर्मचारियों को एक खुशगवार माहौल में रखती हैं ताकि सब एकदूसरे की कमजोरियों और खूबियों को पहचान सकें ताकि कर्मचारियों को अपनेअपने अनुकूल साथी चुनने में दिक्कत न आए.

वर्क हसबैंड और वर्कवाइफ का चलन तेजी से बढ़ रहा है. हालांकि हिंदुस्तान जैसे समाज में ही नहीं अमेरिका और यूरोप जैसे समाजों में कर्मचारी इस शब्द के इस्तेमाल से झिझकते हैं. शादीशुदा या गैरशादीशुदा दोनों ही किस्म के कर्मचारी अपने परिवार और दोस्तों के बीच इस शब्द का इस्तेमाल भूल कर भी नहीं करते. यहां तक कि आपस में भी वे कभी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं करते या एकदूसरे को नहीं जताते कि हां, ऐसा है. मगर वे एकदूसरे से इस भावना से जुड़े हैं, यह बात दोनों जानते हैं.

ये रिश्ते टूटते हैं

जिस तरह शादीशुदा जोड़ों के बीच तलाक होता है या कईर् बार रिश्ते ठंडे पड़ जाते हैं अथवा कई बार उन में अलगाव हो जाता है, उसी तरह ऐसे वर्क हसबैंड और वर्क वाइफ के बीच भी अलगाव होता है. कई बार आप की वर्क वाइफ किसी दूसरी कंपनी में चली जाती है और आप को नए सिरे से नए साथी की तलाश करनी पड़ती है. ठीक ऐसे ही उसे भी नए सिरे से वर्क हसबैंड की तलाश करनी पड़ती है. लेकिन ऐसे मौकों पर इस तरह के अलगाव को दिल से नहीं लेना चाहिए और न ही इस का अपने कामकाज पर प्रभाव पड़ने देना चाहिए.

कई बार कुछ वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ एकदूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़ जाते हैं और वे एकदूसरे का साथ पाने के लिए अपनी उन्नतितरक्की को भी दांव पर लगा देते हैं. विशेषज्ञों के मुताबिक यह व्यावहारिक कदम नहीं है. इस तरह के रिश्तों के भावनात्मक जाल में फंस कर अपनी बेहतरी के मौके को गंवा देना ठीक नहीं. अगर कामयाबी की सीढि़यां चढ़ने का मौका मिला है तो हर हाल में चढ़ें, क्योंकि क्या मालूम ऊपर की सीढि़यों में कोई और बेहतर साथी आप का इंतजार कर रहा हो, जो आप की प्रोफैशनल और भावनात्मक दोनों ही किस्म की जरूरतों को पहले साथी से बेहतर ढंग से पूरा कर सकता हो.

आखिर कहां खींचें लक्ष्मणरेखा

विशेषज्ञ कहते हैं कि कार्यस्थल पर किसी के साथ प्रोफैशनल झुकाव होना यानी वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना अनैतिकता नहीं है. लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह रिश्ता हमेशा हमारी वास्तविक यानी घरेलू जिंदगी के लिए चिंता का विषय बना रहता है. सवाल है ऐसा क्या करें जिस से इस तरह के डर या इस तरह की चिंताओं से दूर रहा जा सके?

– कार्यस्थल पर वर्क हसबैंड या वर्क वाइफ होना तो ठीक है लेकिन यह अक्लमंदी नहीं है कि आप घर जा कर पूरे दिन की दफ्तर की गतिविधियों की कौमैंट्री करें और सुबह दफ्तर पहुंच कर अपने विपरीतलिंगी सहकर्मी के साथ पूरी रात की गतिविधियों पर डिस्कस करें. घर और दफ्तर के बीच एक स्पष्ट सीमारेखा तय होनी चाहिए.

– यह बात हमेशा याद रखें कि न आप के वास्तविक पति का विकल्प वर्क हसबैंड हो सकता है और न ही आप के वर्कहसबैंड का विकल्प आप का वास्ततिक पति का हो सकता है. दोनों के बीच अपनीअपनी जगह, जरूरतें हैं और दोनों का अपनाअपना महत्त्व है. यही बात वर्क वाइफ और वास्तविक वाइफ के संदर्भ में भी लागू होती है. आप दोनों के बीच जिस दिन तुलना करने लगते हैं और दोनों को दोनों में तलाशने लगते हैं, उसी दिन से तनाव शुरू हो जाता है, क्योंकि कोईर् एक कमतर हो जाता है और दूसरा बेहतर.

– अपने वर्क हसबैंड के साथ कुछ मामलों में बिलकुल स्पष्ट रहें उस के साथ जितना हो सके. उस के साथ गुजारे गए समय को ही शेयर करें. न तो उसे जानबूझ कर नीचा दिखाने की कोशिश करें और न ही उस की अपने वास्तविक पति से तुलना करें. तुलना करें भी तो कभी भी यह बात उसे न बताएं. दरअसल, पुरुषों की यह कमजोर नस है कि वे खुद को सब से ऊपर ही मानना और देखना चाहते हैं. ऐसे में विशेष कर वर्क वाइफ के लिए यह दिक्कत पैदा हो सकती है. अगर वह दोनों के बारे में दोनों से बताती है. भले ही वह अलगअलग समय पर अलगअलग पुरुषों को दूसरे से बेहतर ही क्यों ने बताती हो?

जानें अनियमित पीरियड्स से जुड़ी जरुरी बातें

औरतों को हर माह पीरियड से दोचार होना पड़ता है, इस दौरान कुछ परेशानियां भी आती हैं. मसलन, फ्लो इतना ज्यादा क्यों है? महीने में 2 बार पीरियड क्यों हो रहे हैं? हालांकि अनियमित पीरियड कोई असामान्य घटना नहीं है, किंतु यह समझना आवश्यक है कि ऐसा क्यों होता है.

हर स्त्री की मासिकधर्म की अवधि और रक्तस्राव का स्तर अलगअलग है. किंतु ज्यादातर महिलाओं का मैंस्ट्रुअल साइकिल 24 से 34 दिनों का होता है. रक्तस्राव औसतन 4-5 दिनों तक होता है, जिस में 40 सीसी (3 चम्मच) रक्त की हानि होती है.

कुछ महिलाओं को भारी रक्तस्राव होता है (हर महीने 12 चम्मच तक खून बह सकता है) तो कुछ को न के बराबर रक्तस्राव होता है.

अनियमित पीरियड वह माना जाता है जिस में किसी को पिछले कुछ मासिक चक्रों की तुलना में रक्तस्राव असामान्य हो. इस में कुछ भी शामिल हो सकता है जैसे पीरियड देर से होना, समय से पहले रक्तस्राव होना, कम से कम रक्तस्राव से ले कर भारी मात्रा में खून बहने तक. यदि आप को प्रीमैंस्ट्रुल सिंड्रोम की समस्या नहीं है तो आप उस पीरियड को अनियमित मान सकती हैं, जिस में अचानक मरोड़ उठने लगे या फिर सिरदर्द होने लगे.

असामान्य पीरियड के कई कारण होते हैं जैसे तनाव, चिकित्सीय स्थिति, अतीत में सेहत का खराब रहना आदि. इन के अलावा आप की जीवनशैली भी मासिकधर्म पर खासा असर कर सकती है.

कई मामलों में अनियमित पीरियड ऐसी स्थिति से जुड़े होते हैं जिसे ऐनोवुलेशन कहते हैं. इस का मतलब यह है कि माहवारी के दौरान डिंबोत्सर्ग नहीं हुआ है. ऐसा आमतौर पर हारमोन के असंतुलन की वजह से होता है. यदि ऐनोवुलेशन का कारण पता चल जाए, तो ज्यादातर मामलों में दवा के जरीए इस का इलाज किया जा सकता है.

इलाज संभव

जिन वजहों से माहवारी अनियमित हो सकती है या पीरियड मिस हो सकते हैं वे हैं: अत्यधिक व्यायाम या डाइटिंग, तनाव, गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन, पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम, युटरिन पोलिप्स या फाइब्रौयड्स, पैल्विक इनफ्लैमेटरी डिजीज, ऐंडोमिट्रिओसिस और प्रीमैच्योर ओवरी फेल्योर.

कुछ थायराइड विकार भी अनियमित पीरियड का कारण बन सकते हैं. थायराइड एक ग्रंथि होती है, जो वृद्धि, मैटाबोलिज्म और ऊर्जा को नियंत्रित करती है. किसी स्त्री में आवश्यकता से अधिक सक्रिय थायराइड है, इस का रक्तपरीक्षण से आसानी से पता किया जा सकता है. फिर रोजाना दवा खा कर इस का इलाज किया जा सकता है. हारमोन प्रोलैक्टिन का उच्च स्तर भी इस समस्या का कारण हो सकता है.

यदि किसी महिला को पीरियड के दौरान बहुत दर्द हो, भारी रक्तस्राव हो, दुर्गंधयुक्त तरल निकले, 7 दिनों से ज्यादा पीरियड चले, योनि में रक्तस्राव हो या पीरियड के बीच स्पौटिंग, नियमित मैंस्ट्रुअल साइकिल के बाद पीरियड अनियमित हो जाए, पीरियड के दौरान उलटियां हों, गर्भाधान के बगैर लगातार 3 पीरियड न हों तो अच्छा यही होगा कि तुरंत चिकित्सीय परामर्श लिया जाए. अगर किसी लड़की को 16 वर्ष की आयु तक भी पीरियड शुरू न हो तो तुरंत डाक्टर से मिलना चाहिए.

– डा. मालविका सभरवाल
स्त्रीरोग विशेषज्ञा, नोवा स्पैशलिटी हौस्पिटल्स

हिंदी फिल्मों में महिलाएं, पिक्चर अभी बाकी क्यों

भारत ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में पहला कदम 1913 में रखा था. पहली मूक और ब्लैक ऐंड व्हाइट फिल्म बनी- ‘राजा हरिशचंद्र.’ भारतीय सिनेमा ने शुरुआत से ही परदे पर भारतीय नारी को बड़ा निरीह, कोमल, रोनेधोने वाली, अपने दुखों को ले कर ईश्वर के आगे सिर पटकने वाली, भक्तिभजनों में डूबी, पूजापाठ में रमी, सास के हाथों पिटती, अपमानित होती और पति की घरगृहस्थी बच्चों को संभालती औरत के रूप में दिखाया, जबकि उन दिनों भी ऐसी बहुत सी स्त्रियां थीं जो आजादी की लड़ाई में मर्दों से भी 2 कदम आगे बढ़ कर काम कर रही थीं.

रानी लक्ष्मी बाई, बेगम हजरतमहल, सावित्रीबाई फुले, कस्तूरबा गांधी, विजया लक्ष्मी पंडित, कमला नेहरू, दुर्गा बाई देशमुख, सुचेता कृपलानी, अरुणा आसफ, सरोजिनी नायडू उन्हीं में शामिल हैं, जिन के संघर्षमय जीवन को, उन की वीरता को रंगीन परदे पर आना चाहिए था ताकि देश उन वीर नारियों के बारे में जान पाता, मगर ऐसा हुआ नहीं.

बेगम हजरतमहल तो 1857 की क्रांति में भाग लेने वाली पहली महिला थीं, जिन्होंने पूरे अवध को अंगरेजों से मुक्त करा लिया था, मगर उन पर भी आज तक कोई फिल्म नहीं बनी. रानी लक्ष्मी बाई पर भी देश की आजादी के 7 दशक बाद जा कर एक फिल्म बनी- ‘मणिकर्णिका.’

बदतर थी औरतों की हालत

यह बात ठीक है कि जब फिल्में बननी शुरू हुईं तो भारत की अधिकांश जनता गरीबी, भुखमरी और प्रताड़ना का शिकार थी. औरतों की हालत बदतर थी. आम औरतों का जीवन चूल्हेचौके, खेतखलिहान में खप जाता था. वे साहूकारों और जमींदारों के जुल्मों का शिकार भी बनती थीं. तब की ज्यादातर पारिवारिक फिल्मों में आम औरत का यही हाल दिखाया गया.

फिल्म ‘मदर इंडिया’ से नई शुरुआत

1957 में ‘मदर इंडिया’ फिल्म में औरत के जज्बे, उस की मेहनत और आक्रोश को दिखाया गया. ‘मदर इंडिया’ भारतीय सिनेमा के शुरुआती और क्लासिक दौर की फिल्म थी. यह उस समय नई राह दिखाने वाली फिल्म थी. इस फिल्म में अभिनेत्री नरगिस ने एक गरीब किसान राधा का किरदार निभाया था. राधा अपने 2 बेटों को बड़ा करने के लिए पूरी दुनिया से लड़ जाती है. गांव वाले उसे न्याय और सत्य की देवी की तरह देखते हैं. यहां तक कि अपने सिद्धांतों पर अडिग रहते हुए वह अपने विद्रोही बेटे को गोली तक मार देती है.

‘मदर इंडिया’ ने औरत की अबला नारी वाली छवि तोड़ कर अन्याय और अत्याचार के खिलाफ उस के मुखर रूप को दर्शाया. यह फिल्म आज भी देखने वालों के रोंगटे खड़े कर देती है. हालांकि नरगिस को फिल्म में सफल होते दिखाया है पर अंत में यही दिखाया है कि औरतों को कैसे भी वर्ण व्यवस्था को मजबूत रखना होगा और उस के लिए बेटे की जान ले ले तो महान है.

नारी के संघर्ष को दिखाया गया

1993 में स्त्रीप्रधान फिल्म आई थी ‘दामिनी.’ फिल्म ‘दामिनी’ में मुख्य भूमिका मीनाक्षी शेषाद्रि ने निभाई थी. इस फिल्म में ऐसी नारी के संघर्ष को दिखाया गया है, जिस की शादी बेहद संपन्न परिवार में होती है. दामिनी इस फिल्म में अपने देवर को घर की नौकरानी का रेप करते हुए देख लेती है. दामिनी उस महिला को इंसाफ दिलाने और अपराधी को सजा दिलवाने की ठान लेती है.

दामिनी का पूरा परिवार उस के खिलाफ हो जाता है. लेकिन इस के बावजूद वह अपने निश्चय पर टिकी रहती है और घर छोड़ देती है. हालांकि बलात्कार की शिकार महिला की अस्पताल में मौत हो जाती है, मगर एक वकील की मदद से दामिनी अंतत: अपराधी को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने में कामयाब होती है.

औरत की अबला और मासूम छवि को तोड़ने वाली एक अन्य फिल्म थी ‘बैंडिट क्वीन,’ जो 1994 में आई थी. फिल्म एक महिला डकैत फूलन देवी की जिंदगी पर आधारित है. इस फिल्म में फूलन देवी का किरदार सीमा बिस्वास ने निभाया है. इस फिल्म में सीमा बिस्वास ने काफी बोल्ड सीन दिए. पहली बार परदे पर दर्शकों ने भारतीय औरत को जम कर गालीगलौज करते और बंदूक चलाते देखा.

टुटी और बिखरी महिला की कहानी

‘द डर्टी पिक्चर’ में विद्या बालन ने अपने अस्तित्व के लिए जूझती एक अभिनेत्री सिल्क स्मिता के निजी जीवन और उस के संघर्ष को बखूबी दर्शाया. फिल्मी दुनिया में औरतों की कामयाबी और नाकामयाबी, समझतों और धोखों की कहानी पर आधारित इस फिल्म में विद्या ने सिल्क की फर्श से अर्श तक पहुंचने और फिर टूट कर खत्म हो जाने की कहानी को परदे पर जीया. यह फिल्म स्त्रीप्रधान तो जरूर है, मगर एक हताश, टूटी और बिखरी हुई महिला की कहानी है. अधिकांश महिलाप्रधान फिल्मों में नायिका को अंत में दुखी या हताश ही दिखाया गया है चाहे पूरी फिल्म में वह सफलता के झंडे गाड़ रही हो.

विद्या बालन ने दूसरी फिल्म ‘बौबी जासूस’ में महिला जासूस का किरदार निभाया. एक महिला सिर्फ शादी कर के पति का घर और बच्चे संभालने के बजाय अपने जासूसी के हुनर की बदौलत नाम और पैसा कमाने घर से बाहर निकलती है. महिला जासूस पर केंद्रित शायद यह पहली हिंदी फिल्म थी, मगर कहानी ढीली होने के चलते विद्या की यह फिल्म ज्यादा नहीं चली.

उपेक्षित रही महिलाएं

बौलीवुड में बनी महिलाओं के संघर्षों पर आधारित फिल्में उंगलियों पर गिनी जा सकती हैं. अबला का चोला उतार कर, रूढि़वादी परंपराओं को ठुकरा कर और सामाजिक बंधनों को तोड़ कर अपने दम पर कुछ कर गुजरने वाली औरतों की कुछ कहानियां जो हाल के दशक में परदे पर आईं, उन्हें काफी पसंद किया गया और औरतों के लिए ये फिल्में काफी प्रेरणादाई भी रहीं.

महिला रैसलर पर आधारित फिल्म ‘दंगल’ में 2 खिलाडि़यों और उन के पिता के संघर्ष को दिखाया गया. यह फिल्म गीता फोगाट और उन की बहन बबीता फोगाट के जीवन पर आधारित थी. फिल्म में गीता फोगाट और बबीता फोगाट का किरदार ऐक्ट्रैस फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा ने निभाया. वहीं आमिर खान उन के पिता और गुरु के रूप में परदे पर नजर आए.

बाधाओं से पार करने की कहानी

फिल्म ‘शेरनी’ 18 जून, 2021 को ओटीटी प्लेटफौर्म अमेजन प्राइम पर रिलीज हुई. विद्या बालन इस में लीड रोल में हैं. अमित मसुरकर द्वारा निर्देशित यह फिल्म मानवपशु संघर्ष पर आधारित है. इस में विद्या एक वन अधिकारी की भूमिका निभाती हैं जिस के आगे एक आदमखोर शेरनी को पकड़ने की चुनौती है. उस आदमखोर शेरनी ने आसपास के गांवों में कई लोगों को अपना शिकार बनाया. बावजूद इस के विद्या उस को मारने के पक्ष में नहीं बल्कि जिंदा पकड़ने के पक्ष में होती हैं और एक प्लान तैयार करती हैं.

वे कहती हैं कि कोई भी शेरनी आदमखोर नहीं, भूखी होती है. एक वन्य अधिकारी होने के नाते उन का मानना है कि कोई भी जानवर आदमखोर नहीं होता, लेकिन जब भूख सहन नहीं होती तो वह पेट भरने के लिए इंसान पर भी हमला करता है. अगर जानवरों से उन के जंगल न छीने जाएं तो जानवर भी सुरक्षित रहें और इंसान भी.

इस फिल्म में विद्या ने एक महिला वन अधिकारी की भूमिका बेहतरीन तरीके से निभाई है. वे शिकारियों, गांव की राजनीति, विभागीय राजनीति, पितृसत्ता सोच के साथ लगातार लड़ती हैं. वे अंतर्मुखी हैं, लेकिन कमजोर नहीं हैं. वे कुछकुछ जंगल की शेरनी जैसी हैं. शेरनी को अपना रास्ता मालूम है, लेकिन मनुष्यों द्वारा निर्मित बाधाएं हैं. वहीं, विद्या के सामने सामाजिक बाधाएं हैं. क्या ‘शेरनी’ इन बाधाओं से पार जा पाएगी? इसी के इर्दगिर्द फिल्म की पूरी कहानी घूमती है.

सपनों को पूरा करने की कहानी

कंगना रनौत द्वारा अभिनीत फिल्म ‘थलाइवी’ तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता के जीवन पर बनी फिल्म है, जिस में उन के संघर्ष को कंगना ने बखूबी परदे पर उतारा है. यह फिल्म हमें दिवंगत नेता के जीवन के सभी उतारचढ़ावों से रूबरू कराती है और राजनीति में औरत के संघर्ष को दिखाती है.

फिल्म ‘साइना’ बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल के जीवन पर आधारित है, जो 2021 में आई. इस फिल्म में उन का किरदार परिणीति चोपड़ा ने निभाया. साइना नेहवाल पद्मश्री, अर्जुन अवार्ड, राजीव गांधी खेल रत्न से सम्मानित होने वाली विश्व रैंकिंग में शीर्ष तक पहुंचने वाली पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं.

वहीं ऐसिड अटैक की पीडि़त महिलाओं की जिंदगी पर बनी फिल्म ‘छपाक’ 2020 में आई, जिस में अभिनेत्री दीपिका पादुकोण ने ऐसिड अटैक विक्टिम लक्ष्मी के संघर्ष को परदे पर दिखाया. 15 साल की लक्ष्मी के चेहरे और शरीर पर एक युवक ने तब तेजाब फेंक दिया जब उस ने उस से शादी करने से इनकार कर दिया. घटना के बाद अस्पताल में लक्ष्मी लंबे समय तक मृत्यु से जंग लड़ती रही. अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद जले हुए भयावह चेहरे के साथ जीवन की जंग और अदालत से न्याय पाने की उस की जंग को दीपिका ने परदे पर बखूबी चित्रित किया. यह कहानी उस स्त्री की कहानी है जिस की हिम्मत और अदालतों में लंबी कानूनी लड़ाई लड़ने का नतीजा यह हुआ कि देश में बाजार में खुले तेजाब बेचने पर बैन लग गया.

2020 में लैफ्टिनैंट गुंजन सक्सेना पर फिल्म बनी- ‘गुंजन सक्सेना.’ गुंजन एक भारतीय वायु सेना औफिसर और पूर्व हैलिकाप्टर पायलट है. सक्सेना को कारगिल गर्ल के नाम से भी जाना जाता है. सक्सेना 1994 में इंडियन एयर फोर्स में शामिल हुई थी और 1999 के कारगिल युद्ध में जाने वाली वह एकमात्र महिला थी. इस फिल्म में जाह्नवी कपूर ने गुंजन सक्सेना का किरदार निभाया है.

फिल्में जिन से प्रेरणा मिलती हैं

5 बार की वर्ल्ड चैंपियन रहीं बौक्सर एम. सी. मैरी कौम के जीवन पर आधारित फिल्म ‘मैरी कौम’ में उन का किरदार प्रियंका चोपड़ा ने निभाया. इस फिल्म के जरीए खेल के क्षेत्र में संघर्ष कर रही महिलाओं की सफलताओं को बखूबी दर्शाया गया. खेल जगत का जानामाना नाम मैरी कौम को कई अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है, जिन में ‘पद्मभूषण,’ ‘अर्जुन अवार्ड,’ ‘पद्मश्री’ और ‘खेलरत्न’ शामिल हैं.

बीती एक शताब्दी में महिलाओं के संघर्ष ने समाज को उन के प्रति अपनी सोच बदलने के लिए बाध्य किया है. महिलाओं के बुलंद इरादों ने अनेक क्षेत्रों में अपने झंडे गाड़े हैं, मगर उन की कामयाबी अखबारों के भीतरी पन्नों पर कुछ लाइनों की खबर बन कर सिमट जाती है. उन की सफलताओं को अगर रंगीन परदे पर भी प्रदर्शित किया जाता रहता तो देश की अनेकानेक औरतों को इन फिल्मों से प्रेरणा मिलती.

आज औरतें जब परिवार के साथ फिल्म देखने थिएटर जाती हैं तो उन के सामने रोनेधोने वाली पारिवारिक फिल्में या पुरुषप्रधान मारधाड़ वाली ऐक्शन फिल्में ही ज्यादा होती हैं. कभीकभी बनने वाली स्त्रीप्रधान फिल्मों में कुछ तो चलती हैं, लेकिन ज्यादातर कम बजट, प्रचार की कमी, लचर कहानी आदि के कारण पिट जाती हैं.

महिलाओं के संघर्ष को परदे पर न दिखा कर ज्यादातर फिल्मों में उन को रोमांटिक और पारिवारिक दृश्यों तक सीमित रखने का एक बड़ा कारण यह भी है कि बौलीवुड में महिला फिल्म राइटर, प्रोड्यूसर और निर्देशक न के बराबर हैं. पुरुष लेखकनिर्देशकप्रोड्यूसर पुरुषप्रधान और पितृसत्ता को मजबूती देनी वाली फिल्में ही बनाते हैं और ऐसी फिल्मों में औरत अबला ही बनी रहती है.

तीज 2022: क्विक हेयरस्टाइल से दिखें स्टाइलिश

पार्टी में जाना हो या फिर डेट पर, समझ नहीं आता कि बालों को स्टाइलिश लुक कैसे दिया जाए, क्योंकि हर बार यह संभव नहीं होता कि पार्लर जा कर हेयरडू करवाया जाए. ऐसे में लुक चेंज करने का सब से आसान तरीका होता है हेयरस्टाइल में बदलाव करना. बालों को डिफरैंट लुक देना ही हेयरस्टाइलिंग कहलाता है और अलग अलग औकेजन पर अलग अलग हेयरस्टाइल बनाना हर किसी को पसंद होता है.

लड़कियों और महिलाओं की इसी चाहत को ध्यान में रखते हुए ब्यूटीशियन एवं हेयरस्टाइलिस्ट परमजीत सोई ने कुछ ऐसे क्विक हेयरस्टाइल बनाने के तरीके बताए जिन से लुक में बदलाव के साथ साथ स्टाइलिश भी दिखा जा सकता है.

ब्राइडल या पार्टी हेयरस्टाइल

यह हेयरस्टाइल ब्राइड और विवाहित युवतियों पर खासा जंचता है. इसे बनाने के लिए सब से पहले बालों को अच्छी तरह सुलझा लें. फिर फ्रंट के थोड़े बालों को सौफ्ट लुक के लिए छोड़ दें और बाकी में बैककौंब करते हुए स्प्रे करें. फिर थोड़ेथोड़े बालों को ले कर लूप बनाते हुए जूड़ा बनाती जाएं. जूड़े की फाइनल फिनिशिंग इनलिजिबल जूड़ा पिन से करें. बाद में ज्वैलरी से मैचिंग सिल्वर या गोल्डन मैचिंग ज्वैल्ड फ्लौवर्स या पिन्स लगाएं.

गर्लिश लुक हेयरस्टाइल

इस हेयरस्टाइल के लिए बालों को आयरन रौड से सीधा कर लें और आगे के बालों की हलके हाथों से बैककौंबिंग करते हुए पफ बना लें. अगर पफ न पसंद हो तो बालों को बिना पफ बनाए बैककौंबिंग किए बालों को साइड में पिनअप कर लें. इस तरह के हेयरस्टाइल के ज्वैल्ड पिन्स का प्रयोग कर के स्टाइलिश लुक पाया जा सकता है.

पफ विद लेयर्स हेयरडू

आधे से ज्यादा बालों को एक तरफ ले लें और आगे थोड़े बाल छोड़ दें. पीछे के बालों की कौंब कर के रबड़बैंड से चोटी बनाएं. आगे के थोड़े बालों को छोड़ कर बाकी बालों को पीछे ले कर लेयर्स में बैककौंब करें. इस के बाद कौंब करते हुए पफ बनाएं. फ्रंट लुक के लिए आगे के थोड़ेथोड़े बालों को उठाते हुए ट्विस्ट करते हुए पफ कर अटैच करती जाएं. पीछे के बचे बालों का फ्रैंच रोल बनाएं और रफ बालों को बैककौंब करें. सारे बालों को नैट में ले लें और राउंडराउंड करते हुए फैंच रोल की शेप देते हुए पिनअप कर आर्टिफिशियल फूलों से सजाएं.

लो साइड बन

यह हेयरस्टाइल लंबे बालों के लिए परफैक्ट होता है. इस हेयरस्टाइल को बनाने के लिए इयर टु इयर पार्टिंग करें और पीछे के बचे बालों को रबड़बैंड की सहायता से पोनीटेल बनाएं. इस के बाद रबड़बैंड की जगह स्टफिंग रख कर जूड़ा पिन्स से लौक कर दें. फिर पोनीटेल के बालों को 4 हिस्सों में बांट लें और सौफ्ट बैककौंबिंग करते हुए ब्रश से नीट करती जाएं और लूप बना कर जूड़े में फिक्स करती जाएं व बन का लुक दें.

इस के बाद अगर फोरहैड ब्रौड हो तो आगे के बालों को फोरहैड पर ऐसे सैट कर लें, जिस से फोरहैड की ब्रौडनैस कम दिखे. बचे बालों को पीछे बचे बालों के बन के नीचे सैट कर दें. अंत में बन को रैड रोज से ऐक्सैसराइज कर के फिनिशिंग टच दें.

मैसी ब्रेड लुक

सब से पहले बालों को हौट आयरन रौड की सहायता से टौग्स बना लें. फिर टौंग्स को ऊंगलियों की सहायता से सौफ्ट कर लें. फिर साइड से पार्टिंग करते हुए फ्रंट से थोड़े बालों को छोड़ दें और सैंटर औफ द हेयर में मैसी ब्रेड बनाएं और ब्रेड को थोड़ा लूज कर दें. ऐसे ही पीछे के बालों की कई ब्रेड बनाएं और उन्हें भी लूज करती जाएं. ब्रेड बनाते समय थोड़े बाल छोड़ दें. फ्रंट के बालों के अलगअलग स्ट्रिंग लेते हुए कर्ल करें और बालों को हलका सा ट्विस्ट करें. पीछे बनी सारी ब्रेड की नौट बांधें व पिन से सैट कर दें. बाद में छोटेछोटे फ्लौवर से ऐक्सैसराइज करें.

Food Special: बच्चों के लिए बनाएं उत्तपम पिज्जा

पिज्जा, बर्गर, पास्ता जैसे विदेशी फ़ूड आज बच्चे बड़े सभी को बेहद प्रिय होते हैं. डोमिनोज, पिज़्ज़ा हट जैसी बड़ी बड़ी कम्पनियां बाजार में है जो फ़ास्ट फ़ूड के लिए ही जानी जातीं हैं. चूंकि पास्ता, पिज्जा और बर्गर को मैदा से बनाया जाता है इसलिए इन्हें सीमित मात्रा में खाना ही उचित रहता है. आज हम आपको बिना मैदा के पिज्जा बनाने की ऐसी विधि बता रहे हैं जिसे आप आसानी से घर पर बना सकतीं है . मैदे का लेशमात्र भी प्रयोग न किये जाने के कारण यह बहुत सेहतमंद भी है. तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

-उत्तपम पिज्जा

कितने लोगों के लिए               4

बनने में लगने वाला समय        20 मिनट

मील टाइप                            वेज

सामग्री

चावल                              1 कटोरी

उडद की धुली दाल            1/4 कटोरी

नमक                             1/4 चम्मच

जीरा                              1/4 टीस्पून

कटा हरा धनिया              1 टीस्पून

उबले कॉर्न                       1 टीस्पून

ऑलिव्स                          1 टीस्पून

चिली फ्लैक्स                   1/4 टीस्पून

ओरेगेनो                          1/4 टीस्पून

किसा मोजरेला चीज़        1 कप

पिज्जा सॉस                     1 टीस्पून

बटर                             1 टेबलस्पून

विधि

दाल और चावल को एक साथ रात भर के लिए भिगो दें. सुबह पानी निथारकर मिक्सी में पीस लें. 7-8 घण्टे के लिए ढककर धूप में रख दें ताकि इसमें फर्मेंटेशन हो जाये. यदि आपके पास समय का अभाव है तो आप फर्मेंटेशन के लिए ईनो फ्रूट सॉल्ट का प्रयोग भी कर सकतीं हैं. फर्मेंट होने के बाद पिसे मिश्रण में 1 टीस्पून नमक मिलाएं. एक नॉनस्टिक पैन में बटर लगाकर तैयार मिश्रण में से 1 बड़ा चम्मच मिश्रण लेकर पैन में मोटा मोटा फैला दें. ढककर धीमी आंच पर लगभग 5 मिनट तक पकाएं. जब सुनहरा हो जाये तो पलट दें. पिज्जा सॉस लगाकर आधा कप चीज पूरे उत्तपम पर अच्छी तरह फैला दें. कॉर्न, ऑलिव्स, कटा हरा धनिया, बचा चीज अच्छी तरह फैलाकर चिली फ्लैक्स और ऑरिगेनो बुरक दें. पैन को ढक दें. एकदम धीमी आंच पर 5 मिनट तक पकाएं. चीज मेल्ट हो जाये तो गैस बंद कर दें. तैयार उत्तपम पिज्जा को पिज़्ज़ा कटर से काटकर टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

नोट-आप दाल और चावल के बेटर के स्थान पर आटे की रोटी, आटे की ब्रेड और भाकरी का प्रयोग भी कर सकतीं हैं.

-टॉपिंग के लिए आप कटी शिमला मिर्च, किसी गाजर, कटे प्याज और कटे टमाटर का प्रयोग भी कर सकतीं हैं.

-एक टीस्पून टोमेटो सॉस और 1 टीस्पून शेजवान सॉस को मिलाकर पिज्जा सॉस बनाएं और टॉपिंग पर लगाएं.

जीवन की मुसकान: क्या थी रश्मि की कहानी

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महिलाओं के लिए अचूक हथियार आर्थिक आत्मनिर्भरता

आजादी के 75 साल हो गए हैं. बीते दशकों से भारत की महिलाओं ने सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक कई मोरचों पर बदलाव देखे हैं. कुछ मोरचों पर वे कमजोर हैं तो कुछ मोरचों पर धीरेधीरे पहले से भी ज्यादा सशक्त और मजबूत हो रही हैं जैसे कि आर्थिक मोरचे पर.

एक दौर था जब महिलाएं आर्थिक तौर पर पूरी तरह से पुरुषों पर निर्भर थी. लेकिन आजादी के 75 सालों बाद हालात बदले हैं. आज की औरत किचन भी संभालती है और मिसाइल भी लौंच करती है. बनिए से राशन का हिसाबकिताब भी देखती है और बैंक में भी कई पदों पर काम कर रही हैं.

आइए, चलिए विश्लेषण करते हैं मौजूदा दौर में महिलाओं की आर्थिक स्थिति के बारे में:

घूंघट से पावर तक तब और अब

पहले महिलाएं पूरी तरह से अपने परिवार पर आश्रित होती थीं. उन्हें जैसा परिवार ने कह दिया, वे चुपचाप उसे ही पत्थर की लकीर मान कर बैठ जाती थीं. पिता ने जहां शादी तय कर दी, वहां बिना अपने पति का मुंह देखे, जाने हां कह कर पूरी जिंदगी उस के साथ जीवनयापन करने के लिए तैयार हो जाती थीं. शादी के बाद भी अपने वजूद को त्याग कर सिर्फ और सिर्फ परिवार, पति की आवभगत में लग जाती थीं. पढ़ाईलिखाई के आभाव में जिस ने जैसा बोल दिया मान लेती थीं.

उन का काम तो बस लंबा घूंघट निकाल कर सुबह से शाम तक चूले के आगे बैठे रहना, पति की बिना बात की मार खाना, परिवार के ताने सुनना. इतना सब सहने के बाद भी उसी पति को भगवान मानती थीं और उस परिवार को जन्नत समझती थीं क्योंकि उन के मातापिता ने जो सीख दे कर भेजा था कि अब वही तुम्हारा घर है. इस घर पर आज से तुम्हारा कोई हक नहीं.

ऐसे में बेचारी बन लंबा घूंघट निकाल कर ससुराल को ही सब कुछ मान लेती थीं और उन के इसी बेचारेपन का सब लोग खूब फायदा उठाते थे क्योंकि उन्होंने खुद को सब पर आश्रित जो कर रखा था, खुद को बेचारा जो बना रखा था. ऐसे में दूसरे तो उन का फायदा उठाएंगे ही. लेकिन अब हालात बिलकुल उलट हैं. आज की नारी खुद को अबला नहीं समझती, बल्कि खूब पढ़लिख कर अपने दम पर आज ऐसा मुकाम हासिल कर रही है कि देशदुनिया भर में अपनी अलग पहचान बना ली है. अब के पेरैंट्स भी लड़कियों को पढ़ाने में व उन की मरजी जानने में ज्यादा यकीन रखते हैं ताकि उन्हें किसी के आगे हाथ न फैलने पड़ें. वे अपनी पढ़ाई व काबिलीयत के दम पर इतना नाम व शोहरत कमाए कि उन्हें लड़कों की नहीं बल्कि लड़कों को खुद उन की जरूरत महसूस हो.

ताजा उदाहरण

हाल का ताजा उदाहरण देखें तो आप देख कर हैरान रह जाएंगे. बता दें कि इस समय कानपुर देहात जिले में ज्यादातर महत्त्वपूर्ण पदों की जिम्मेदारी महिलाएं ही संभाल रही हैं. जैसे डीएम नेहा जैन, एसपी सुनीति, सीडीओ सोमन्या पांडेय. यहां तक कि कई एसडीएम, बीएसए और जिला पंचायती राज अधिकारी भी महिलाएं ही हैं, जिन्होंने इन पदों पर आसीन हो कर जता दिया कि अब हम घर की भागदौड़ से ले कर देशदुनिया की भागदौड़ संभाल सकते हैं.

इंदिरा गांधी हमारे देश की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं. सिर्फ वे नाम के लिए ही प्रधानमंत्री नहीं थीं बल्कि उन के कार्यकाल में हरित क्रांति, बैंकों का राष्ट्रीयकरण जैसे महत्त्वपूर्ण कार्यों को अंजाम दिया गया. प्रतिभा पाटिल भारत की आजादी के बाद हमारे देश की पहली महिला राष्ट्रपति रह चुकी हैं. उन्होंने अपने कार्यकाल में महिलाओं व बच्चों के कल्याण के लिए हर संभव प्रयास किए. किरण बेदी हमारे देश की पहली महिला आईपीएस रही हैं, जिन्होंने नवज्योति व इंडिया विजन जैसी संस्थाओं का गठन किया. इंदिरा नूई पेप्सिको कंपनी की अध्यक्ष व मुख्य कार्यकारी अधिकारी रह चुकी हैं. उन की लगन, मेहनत का ही परिणाम है कि उन्होंने दुनिया में 100 शक्तिशाली महिलाओं में अपनी जगह बनाई है. वे हम सब के लिए प्रेरणास्रोत्र हैं.

द्रौपदी मुर्मू सब से युवा राष्ट्रपति बनीं. उन का जीवन संघर्षों से भरा होने के बावजूद उन्होंने शिक्षा में कोई कमी नहीं छोड़ी. ये सभी उदाहरण दर्शाते हैं कि आज की महिलाएं पढ़लिख कर अपने दम पर आगे बढ़ कर आर्थिक रूप से खुद को सशक्त बनाने पर जोर दे रही हैं, जो एकदम सही है.

मौजूदा आर्थिक स्थिति अब और तब

पहले की बात करें तो महिलाएं पढ़ीलिखी नहीं होने के कारण पूरी तरह से अपने परिवार पर निर्भर रहती थीं, जिस कारण उन पर शोषण भी ज्यादा होते थे. लेकिन अगर आजादी के इतने सालों बाद की बात करें तो अभी भी देखने में यही आया है  कि आर्थिक आजादी और विकास में महिलाओं की भूमिका उतनी ज्यादा नहीं है, जितनी ज्यादा होनी चाहिए.

ऐसा हम नहीं बल्कि ‘इन्वैस्ट इंडिया इनकम एंड सेविंग सर्वे’ के आंकड़े बताते हैं, जिस में बताया गया है कि शहरी आबादी की तुलना में गांवों की महिलाएं घर के बाहर जा कर यानी खेतों आदि में ज्यादा काम करती हैं. गांवों में 35% से ज्यादा महिलाएं खेतों में काम करती हैं और इन में से 45% महिलाएं सालभर में 50 हजार रुपए भी नहीं कमा पाती हैं. उन में सिर्फ 26% महिलाएं ही सिर्फ अपने पैसे को अपनी मरजी के अनुसार खर्च कर पाती हैं.

इस के अलावा यह भी देखने में आया है कि शहरी क्षेत्र में जिन परिवारों की वार्षिक आय 2 से 5 लाख रुपए है, उन में सिर्फ 13% महिलाएं ही सिर्फ बाहर नौकरी के लिए जाती हैं, जबकि 5 लाख से ऊपर की आय वाले परिवारों में यह प्रतिशत सिर्फ 9% है. वहीं अगर बात करें गांव की तो 50 हजार से 5 लाख की आय वाले परिवारों में यह प्रतिशत 16 से 19% है.

कैसे बनें मजबूत

किसी काम को छोटा न समझें. अकसर हम यह सोच कर कि क्यों करें रिसैप्शनिस्ट की जौब, क्यों करें सेल्स गर्ल की जोब, हम खाना बनाना आने के बावजूद यह सोच कर कुकिंग क्लासेज नहीं देती हैं या फिर टिफिन सेवा शुरू नहीं करती हैं कि ऐसे छोटे काम कर के हमारी शान में कमी आएगी. हम पेंटिंग बनाना तो जानती हैं, लेकिन बना कर बेचने में शर्म आती है. अरे शर्म कैसी, यह तो आप का हुनर है, जिसे सही तरीके से यूज कर के आप नाम व शोहरत कमा सकती हैं.

हाउसवाइफ खुद को समझे

अगर आप हाउसवाइफ हैं तो खुद को किसी भी माने में काम न आंकें और न ही यह समझें कि मैं तो सिर्फ घर व किचन का काम ही संभाल सकती हूं बल्कि अगर आप बाहर जा कर नौकरी नहीं कर पा रही हैं तो घर के छोटेमोटे काम सीख कर पैसों को बचा सकती हैं. जैसे खुद से बल्ब, ट्यूबलाइट लगाना. अगर घर का कोई स्विच खराब हो जाए तो उसे ठीक करना आता हो तो इस से एक तो आप इन कामों पर होने वाले पैसों को बचा सकती हैं, साथ ही आप का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा.

फ्रीलांस काम से बनें आत्मनिर्भर

आज आप घर बैठे भी अच्छाखासा पैसा कमा सकती हैं अगर आप में कुछ करने का टैलेंट हो. जैसे अगर आप कंटैंट का काम जानती हैं, या फिर आप को कुछ क्रिएटिव करने का शौक है तो आप औनलाइन फ्रीलांस साइट्स पर रजिस्टर कर के घर बैठे अपनी पसंद का काम कर के घंटों व महीनों के हिसाब से कमा सकती हैं. इस से आप की प्रतिभा भी बेकार नहीं जाएगी और आप धीरेधीरे अपने इस हुनर से घर बैठे अपने परिवार को देखने के साथसाथ खुद को भी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बना पाएंगी.

डांस कला से कमाएं

अगर आप को प्रोफैशनल डांस आता है, तो आप उस हुनर का इस्तेमाल करें. इस के लिए आप औनलाइन क्लासेज ले सकती हैं. अब आप सोच रही होंगी कि इस की शुरुआत कहां से करें तो आप को बता दें कि आप अपने आसपास के बच्चों से इस की शुरुआत करें. भले ही शुरुआत में ज्यादा अच्छा रिस्पौंस न मिले, फिर भी आप हिम्मत न हारें क्योंकि आप का हुनर और मेहनत एक दिन जरूर रंग लाएगी.

अपना बिजनैस शुरू करें

अगर आप को होममेड मसाले, अचार आदि बनाने का शौक है तो फिर अपने इस हुनर को अपने घर तक ही न समेट कर रखें बल्कि इन मसालों, आचार को अपनी एक औनलाइन साइट बना कर कम मेहनत में आप ज्यादा पैसा कमा सकती हैं.

सेविंग पर जोर दें

अगर आप आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हैं और आप को ज्यादा पैसा खर्च करने की आदत है तो इस बात का ध्यान रखें कि जो कमाया उसे उड़ा दिया वाली नीति को आप को छोड़ना होगा वरना आप अपने व अपने परिवार के भविष्य को सुरक्षित नहीं कर पाएंगी. ठीक इसी तरह अगर आप हाउसवाइफ हैं तो आप छोटीछोटी बचत करना सीखें.

बात करें अगर ‘वूमंस ऐंड मनी पावर 2022’ की रिपोर्ट की, तो भारत में 33 फीसदी महिलाएं बिलकुल निवेश नहीं करती हैं. ऐसे में जरूरी है उन में निवेश संबंधित जागरूकता बढ़ाने की. तो आइए जानते हैं कि महिलाएं कहां व कैसे निवेश कर सकती हैं:

पीपीएफ: पब्लिक प्रौबिडैंट फंड लोकप्रिय बचत योजनाओं में से एक है, जिस में आप सालाना 500 रुपए से डेढ़ लाख रुपए तक जमा कर सकती हैं, जिस में 15 साल तक पैसे जमा करने पर आप को अंत में अच्छीखासी रकम मिलती है.

फिक्स्ड डिपौजिट: बैंकों में फिक्स्ड डिपौजिट एक भरोसेमंद निवेश का विकल्प है, जिस में आप अच्छीखासी ब्याज दर पर पैसा जमा कर के उस का लाभ उठा सकती हैं.

रेकरिंग डिपौजिट: यह निवेश का आसान सा विकल्प है, जिस में आप 500 रुपए से ले कर अपनी मरजी मुताबिक राशि का अकाउंट खोल सकती हैं, जिस से आप को सेविंग की भी आदत पड़ जाती है और साथ ही एक समयसीमा पर आप को फिक्स्ड अमाउंट भी मिल जाएगा. इस तरह आप रिसर्च व रिस्क फैक्टर्स को देख कर निवेश के विभिन्न विकल्पों को चुन कर सेविंग कर सकती हैं.

‘संजोग’ में मां के रोल में दिखेंगी Kamya Punjabi, पेरेंटिंग को लेकर इंटरव्यू में कही ये बात

टीवी इंडस्ट्री में काम्या पंजाबी एक जानी मानी अभिनेत्री है. उन्होंने अपने उम्दा अभिनय से करोड़ों दर्शकों के दिलों को जीता है. धारावाहिक ‘बनू मैं तेरी दुल्हन’‘शक्ति-अस्तित्व के एहसास की’ जैसे कई हिंदी टीवी धारावाहिकों में नकारात्मक किरदार निभाकर अपनी एक अलग छवि बनाने में वह हमेशा सफल रही.

स्पष्टभाषी काम्या ने अभिनय की एक लम्बी और सफल जर्नी तय की है, लेकिन उनके निजी जीवन में कई समस्याएं आई, पर वे टूटी नहीं. उन्होंने अपने लॉन्गटर्म बॉयफ्रेंड शलभ डांग से दूसरी शादी की.पहली शादी से उनकी एक बेटी आरा है. काम्या बेबाक कहने से नहीं डरती और रुढ़िवादी समाज के खिलाफ कई बार आवाज उठाती है.एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि जब मैंने दूसरी शादी की, तो मुझे बहुत ट्रोल किया गया, लेकिन मैं उसके खिलाफ मजबूत तरीके से डटी रही, ये सभी जानते है. दुनिया में बहुत कम लोग है, जो खड़े रहकर अपनी आवाज उठा सकते है या बोल सकते है. जब मेरे साथ गलत हुआ तो मैं खुद अपनी लड़ाई लड़ी, क्योंकि मैं अकेले ही काफी हूं. मेरे लिए ये चीजे कोई माइने नहीं रखती, मैं डटकर मुकाबला करती हूं. मैं उन प्रताड़ित लड़कियों को कहना चाहती हूं कि पहले सोच बदले, तभी देश आगे बढ़ेगा, वरना हम जैसे थे,वैसे ही रहेंगे. काम्या अभी जी टीवी पर धारावाहिक ‘संजोग’ में एक स्पष्टभाषी माँ की भूमिका निभा रही है, जिन्हें पता नहीं कि उनकी बेटी उनके स्वभाव से अलग क्यों है. पेश है काम्या से हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल –आप अपनी जर्नी से कितने खुश है? आप स्पष्टभाषी और निडर है, इसे कैसे लेती है?

जवाब – मैंने अपनी जर्नी से बहुत कुछ सीखा है. हर परिस्थिति में मैंने कुछ न कुछ सीखती आ रही हूं. उसी वजह से मैं इतनी मजबूत हूं, हालात व्यक्ति को कुछ न कुछ अवश्य सिखाती है. काम हो या परफोर्मेंस करते-करते सीखा है. आज मैं कैमरे के आगे बिना किसी डर के आकर खडी हो सकती हूं. ये सब मैंने अभिनय के दौरान ही सीखा है.मेरी जर्नी रोलर कोस्टर राइड की तरह थी, कभी ऊपर तो कभी नीचे, जिसमे बहुत सारी बाते सीखी है और पीछे मुड़कर देखने पर लगता है कि वाकई इंडस्ट्री ने बहुत कुछ सिखा दिया.

सवाल – क्या अभी भी कैमरे के सामने आने पर घबराहट होती है?

जवाब – पहली बार कैमरे पर आने या किसी शो में पहले दिन शूट करते हुए अगर घबराहट न आये, तो कैरियर उस दिन खत्म हो जायेगा. मैं चाहती हूं कि ऐसी घबराहट हमेशा मेरे अंदर रहे और मैं उसे पार करती जाऊं.

सवाल – इस शो में माँ और बेटी के रिश्तों को दिखाया गया है, आपका माँ के साथ कैसा सम्बन्ध रहा ?

जवाब – मेरी माँ ने कभी गिवअप करने नहीं दिया. उन्होंने कभी खुद भी हार नहीं मानी. वह कितनी भी बीमार रहे, लेकिन हमेशा कहती थी कि मैं ठीक हूं. ये सब मेरे अंदर बचपन से आ गया है. माँ को भी पता नहीं होगा कि उन्होंने हिम्मत न हारने की बात सिखाई है. वह मुझे हमेशा स्ट्रोंग कहती थी, क्योंकि एक बार मेरी उल्टी हुई और मैं थककर सो गयी. ये सब तनाव तब तक चलता रहा, जब तक मैं खुद पहली शादी से बाहर नहीं निकली और बहनों की शादियाँ नहीं करवाई. जो भी जिम्मेदारी मुझे मिली मैं हमेशा करती गयी, ये बातें मैंने अपनी बेटी को भी सिखाई है. मैं बहुत इमोशनल हूं, लेकिन मेरी बेटी इतनी नहीं है. जो सही काम मैंने की है, उसे सिखाती हूं और जो गलतियाँ मैंने की है, वह कभी न करें.

सवाल –आपने हमेशा चुनौतीपूर्ण काम किया है, क्या नई भूमिका आपको आकर्षित करती है या कुछ और बात होती है?

जवाब – चुनौतीपूर्ण अभिनय करने से दर्शक बहुत चकित होते है और मुझे ये बहुत अच्छा लगता है. इसके अलावा मुझे प्रोफेशनल एक्टर का ख़िताब बहुत पसंद है. निर्माता निर्देशक का मुझपर विश्वास होता है कि 10 साल भी शो चलने पर मैं इसे करुँगी, छोड़कर नहीं जाउंगी. मेरी मेहनत और लगन को वे सराहते है, जो मुझे आगे अधिक अच्छा करने के लिए प्रेरित करती है. यही मैंने कमाया है, मुझे लीड का टैग नहीं चाहिए. मुझे एक अच्छा रोल और एक अच्छा माहौल होना चाहिए, क्योंकि थोड़े दिनों बाद शो के सारे लोग मेरा परिवार बन जाते है. मैंने देखा है कि लीड करने के कुछ दिनों बाद अधिकतर कलाकार उस शो को छोड़ देती है. मुझे इसका लोजिक समझ नहीं आता, क्योंकि इसे छोड़कर वे किसी दूसरी धारावाहिक में ही जाती है. फिर इसे छोड़ना क्यों? मुझे ऐसा करना पसंद नहीं होता, अधिक दिनों तक काम करने से अभिनय की बारीकियां ठीक हो जाती है. मेरे लिए ये एक अवार्ड है, क्योंकि दर्शकों की पसंद के आधार पर ही शो को आगे बढ़ाया जाता है. इसलिए निर्माता, निर्देशक को भी कोई समस्या मुझे कास्ट करने पर नहीं होती.

सवाल –आप काम के साथ परिवार की देखभाल कैसे कर पाती है?

जवाब – मेरे पति शलभ ने मेरी लाइफस्टाइल देख लिया था. उन्हें पता था कि मैं दिमाग से बहुत मजबूत हूं. कही भी लड़ने के लिए खड़ी हो जाती हूं. ये सब उन्हें पता था और जिसे लोग नकारात्मक रूप में लेते है, उसे उन्होंने सकारात्मक रूप में लिया. उन्हें मेरे अंदर की सारी बातें पसंद आई, इसलिए काम करना आसान हुआ. ये सहयोग होना आवश्यक है. अभी मेरी जिंदगी में एक ठहराव आ गया है. अभी इमोशनल सहयोग बहुत मिल रहा है, जिसका असर मेरे चेहरे पर है, मुझे इसी की जरुरत भी है.

सवाल – बच्चे की गलती को माँ की परवरिश से जोड़ी जाती है, माँ की भूमिका बच्चे की परवरिश में कितनी होती है? आप भी माँ है, इसे कैसे लेती है?

जवाब –बच्चे की परवरिश में माँ का बहुत बड़ा योगदान होता है, लेकिन बड़ा होकर बच्चा नालायक बन जाय तो उसमे माँ को दोष देना ठीक नहीं, क्योंकि बड़े होने पर बच्चे की संगत, शिक्षा आदि का प्रभाव भी उनपर रहता है. अधिक बड़े होने पर बच्चे बहुत कुछ दुसरे को देखकर करते है, जो कई बार घातक होती है. बचपन में बच्चे का जुड़ाव माँ से ही अधिक होता है. बड़े होकर अगर वे कुछ गलत काम करें और उसके लिए माँ को दोषी ठहराया जाना ठीक नहीं. मैं बेटी को लेकर ओवर प्रोटेक्टिव और स्ट्रिक्ट माँ हूं, लेकिन मैंने उसकी गलत हरकतों पर डांट लगाना कभी नहीं छोड़ा. मैं अकेली होकर भी उसे सही तरह से परवरिश की है अभी वह 12 साल की है. मैं सिंगल मदर होकर बहुत चिंता बेटी के लिए करती थी और वह डर हमेशा बना रहा. कहीं अकेले जाने नहीं देती थी. मेरी सहेलियां मुझे साईको मदर कहती थी. जरुरत पड़े तो बेटी को एक चांटा मारने से भी परहेज नहीं करती.

सवाल – क्या कोई ड्रीम ऐसी है, जिसे पूरा करने की इच्छा रखती है?

जवाब – ड्रीम बहुत है और उसे पूरा कर रही हूं, एक जाती है तो दूसरी ड्रीम आ जाती है, जब तक ड्रीम है, काम करती जाउंगी.

https://www.youtube.com/watch?v=oZBZaWZl6Ow

Anupama: घर से निकालने से पहले बरखा के सामने ये शर्त रखेगा अनुज

सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों फैमिली ड्रामा फैंस का दिल जीत रहा है. जहां अनुज की तबीयत ठीक होने से #MaAn फैंस बेहद खुश हैं तो वहीं बरखा और अंकुश की साजिशों का खुलासा होने के बाद उनके कपाड़िया हाउस से निकलने का इंतजार करते दिख रहे हैं. लेकिन अनुपमा की कहानी में और नए ट्विस्ट आने अभी बाकी हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Written Update In Hindi)…

बरखा को कोसेगा अंकुश

 

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अब तक आपने देखा कि अनुज के ठीक होने और वनराज का सच सामने आने के बाद लीला और पूरा शाह परिवार बेहद खुश नजर आता है. वहीं अंकुश कपाड़िया हाउस से निकलने के डर से बरखा पर इल्जाम लगाता दिखता है. हालांकि बरखा उसकी बात का करारा जवाब देती हुई नजर आती है. इसके अलावा राखी दवे, बरखा को ताने कसती हुई दिखती है.

 

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अनुपमा कहेगी ये बात

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि जहां अनुज, वनराज का शुक्रिया अदा करेगा तो वहीं अंकुश और बरखा पर अपना गुस्सा जाहिर करता हुआ दिखेगा. इसी के साथ वनराज और राखी दवे, बरखा और अंकुश को घर छोड़ने की नसीहत देते दिखेंगे. हालांकि वह दोनों अनुपमा से अनुज को मनाने और घर से न निकलने की गुजारिश करेंगे. लेकिन अनुपमा उनसे कहेगी कि यह सब उन्हें कपाड़िया अम्पायर हड़पने की साजिश और उसके चरित्र पर इल्जाम लगाने से पहले सोचना चाहिए था, जिसे सुनकर अंकुश और बरखा हैरान रह जाएंगे.

 

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बरखा और अंकुश के सामने शर्त रखेगा अनुज

 

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दूसरी तरफ, कपाड़िया हाउस से निकलने की नौबत आने पर अंकुश और बरखा  नया ड्रामा रचते हुए नजर आएंगे, जिसके चलते वह अंकुश की तबीयत खराब होने का नाटक करेंगे और अनुपमा से मदद करने की भीख मांगेंगे और कुछ भी करने के लिए कहेंगे. वहीं अनुज उनकी बात सुनेगा और उनके सामने शर्त रखेगा कि वह जो कहेगा उन्हें सब कुछ करना पड़ेगा.

Monsoon Special: ताकि खुल कर लें रिमझिम का मजा

झुलसाती गरमी से राहत पाने के लिए बरसात के मौसम का हम सभी बेसब्री से इंतजार करते हैं. इस रोमांटिक मौसम का मजा वाकई अनोखा है, लेकिन इस मौसम में बारिश की वजह से आप को सेहत, फिटनैस, कपड़ों के स्टाइल, त्वचा और केशों की समस्याओं से भी दोचार होना पड़ता है. इन समस्याओं से बचने के लिए पेश हैं, विशेषज्ञों के बताए खास टिप्स:

बरसात और फिटनैस

बरसात का मौसम सुहावना और आनंदमयी होता है, मगर बारिश की वजह से फिटनैस के शौकीनों की जौगिंग, लौंग वाक और ऐक्सरसाइज वगैरह पर जैसे बंदिशें लग जाती हैं. लेकिन इस मौसम में व्यायाम को छुट्टी न दे कर और भी सख्ती से व्यायाम के टाइमटेबल को फौलो करने की जरूरत होता है.

बारिश की वजह से हम बाहर ऐक्सरसाइज करने या जिम जाने के लिए आनाकानी करते हैं. कभीकभी तो लोग घर में अपने मन से टीवी पर फिटनैस प्रोग्राम देख कर ऐक्सरसाइज करते हैं. लेकिन गलत ऐक्सराइज करने से मसल्स पेन हो सकता है. इसलिए जिम जाना ही सर्वोत्तम विकल्प है क्योंकि जिम में हम सही ढंग से ऐक्सरसाइज कर सकते हैं.

अगर प्रतिदिन जिम नहीं जा सकते तो भी हफ्ते में कम से कम 5 दिन तो नियमित रूप से जाना ही चाहिए. ऐक्सरसाइज के बाद समुचित मात्रा में प्रोटीन लेना भी जरूरी होता है. आज की दौड़धूप भरी जिंदगी में अगर फिट रहना है तो फिटनैस और डाइट का सही तालमेल बहुत जरूरी है.

अगर वेट बढ़ रहा है तो जिम में ऐक्सरसाइज के साथ योगा, पावर योगा या साल्सा डांस कर के बढ़ता वेट कंट्रोल में रख सकते हैं. आज केवल सैलिब्रिटी ही नहीं आम आदमी के लिए भी जिम जाना जैसे एक जरूरत बन गया है. ऐक्सरसाइज से बौडी टोनिंग होती है और वेट कंट्रोल में रहता है.

आज के युवकयुवतियों को लगता है कि जिम में कार्डिओ कर के हम अपनी बौडी शेप में ला सकते हैं, मगर बौडी शेप के लिए संतुलित डाइट, ऐक्सरसाइज और आराम की जरूरत होती है. आप बारिश की मौसम में इन सभी चीजों का ध्यान रखेंगे तो बरसात का मौसम और भी सुहावना हो जाएगा.

– लीना मोगरे, फिटनैस इंस्टिट्यूट की संचालक

कौटन एक सर्वोत्तम विकल्प

बरसात के मौसम में तरोताजा रहने के लिए कपड़ों का चयन सतर्कता से करना जरूरी होता है. इस वक्त तापमान में अधिक नमी रहती है और यह नमी कौटन के कपड़े ही सोखते हैं. इसलिए इस मौसम में कौटन के कपड़ों का चयन सर्वोत्तम है. आजकल मार्केट में बारिश के मौसम के लिए लाइट कौटन के विविध विकल्प मौजूद हैं. आप गरमी के मौसम में लाइट कलर के कपड़ों का चयन करती हैं, लेकिन बरसात के मौसम में डार्क कलर के कपड़ों का चयन कर सकती हैं.

बरसात के मौसम में चारों तरफ कीचड़, पानी और गंदगी होती है. फिर भी हमें बस या टे्रन में सफर तो करना पड़ता है. डार्क कलर के कपड़ों पर कीचड़ और मिट्टी के दाग दिखते नहीं हैं, जो इस मौसम में कपड़ों पर अकसर लग जाते हैं. कौटन के साथ आप सिंथैटिक कपड़ों का भी चयन कर सकती हैं क्योंकि सिंथैटिक कपड़े भीगने पर जल्दी सूखते हैं. बारिश में डैनिम और वूलन कपड़ों का इस्तेमाल बिलकुल न करें. उन्हें सुखाने में भी बहुत वक्त लगता है और नमी की बदबू उन से आती रहती है.

बरसात में अगर किसी प्रोग्राम या शादी के अवसर पर साड़ी पहननी हो तो फ्लोरल प्रिंट और डिजाइनर वर्क की सिंथैटिक साड़ी पहन सकती हैं. ज्वैलरी भी लाइट वेटेड और रंग न छोड़ने वाली पहनें. बरसात में कपड़ों के साथ मेकअप पर भी विशेष ध्यान दें. पाउडर, कुमकुम की जगह वाटरपू्रफ मेकअप प्रोडक्ट इस्तेमाल करें. अगर छोटे केश हों तो उन्हें खुला छोड़ सकती हैं. केश लंबे हों तो एक चोटी बांध कर ऊपर फोल्ड कर सकती हैं.

– अनिता डोंगरे, फैशन डिजाइनर

त्वचा व बालों की देखभाल जरूरी

पहली बारिश में हर कोई भीगते हुए रिमझिम बरसात का लुत्फ उठाना चाहता है. लेकिन इस से तो दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि शुरुआती बारिश में ऐसिड ड्रीन अधिक होने के कारण त्वचा की समस्याएं हो जाती हैं.

इस मौसम में लोग समझते हैं कि धूप नहीं है तो फिर सनस्क्रीन लगाने की क्या जरूरत? लेकिन यह सच नहीं है. इस मौसम में सनस्क्रीन लगाना बहुत जरूरी है. इसलिए आप सुबह सनस्क्रीन लगाएं और उस के 3-4 घंटे के बाद फिर सनस्क्रीन लगाएं.

कुछ लोगों का मानना है कि इस मौसम में त्वचा व बालों की देखभाल की खास जरूरत नहीं होती. लेकिन बारिश में धूप नहीं होती और ड्राईनैस महसूस कराने वाली ठंड भी नहीं होती, इस लिए कारण उन की अपेक्षा बरसात के मौसम में त्वचा व बालों में काफी बदलाव होते रहते हैं.

कभी त्वचा औयली हो जाती है तो कभी ड्राई. इस के अलावा त्वचा निस्तेज भी होने लगती है. पसीना व औयल की वजह से और चेहरे पर धूलमिट्टी की वजह से पिंपल्स और ब्लैकहैड्स की समस्या बढ़ जाती है. इस मौसम में त्वचा में चिपचिपाहट रहने के कारण कुछ लोग मौइश्चराइजर लगाने की जरूरत नहीं समझते लेकिन नैचुरल कौंप्लैक्शन कायम रखने के लिए स्किन केयर बहुत जरूरी है.

बारिश में क्लींजिंग भी बहुत जरूरी है. क्लींजिंग के बाद अल्कोहल फ्री टोनर का इस्तेमाल कीजिए. इस मौसम में नमी के कारण स्किन पोर्स अपने आप खुल जाते हैं. इस कारण धूलमिट्टी जमने से पिंपल्स की समस्या बढ़ जाती है. इसीलिए क्लींजिंग के बाद टोनिंग जरूरी है. इस से खुले पोर्स बंद होते हैं.

भले ही इस मौसम में सूरज बादलों में छिप जाए, लेकिन अल्ट्रावायलेट रेज तो सक्रिय रहती हैं. इस के लिए लाइटनिंग एजेंट और लैक्टिक ऐसिडयुक्त मौइश्चराइजर का इस्तेमाल कीजिए और सैलेड, वैजिटेबल सूप का अपने डाइट में समावेश कीजिए. स्किन नरिशमैंट के लिए पानी की जरूरत होती है, इसलिए रोजाना 8 से 10 गिलास पानी पीजिए. बारिश में ज्यादा प्यास नहीं लगती है, लेकिन शरीर में पानी की कमी न हो इस के लिए भरपूर मात्रा में पानी पीना चाहिए, यह बात ध्यान में रखिए.

– अनुजा, त्वचा विशेषज्ञ

बरसात के इस रोमांटिक मौसम का मजा तो है पर इसे और भी आनंददायक बनाने के लिए उपरोक्त सुझावों पर अमल करना भी जरूरी होगा ताकि किसी समस्या से दोचार न होना पड़े.

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