Monsoon Special: रिमझिम फुहार जगाए प्यार

जेठ महीने की चिलचिलाती गरमी ने किरण के स्वभाव में इतना चिड़चिड़ापन भर दिया था कि उस का किसी से बात करने का मन नहीं करता था. लेकिन मौसम ने करवट क्या ली, सब कुछ बदलाबदला महसूस होने लगा. एक ओर जहां बादलों ने सूरज की तपिश को छिपा लिया, वहीं दूसरी ओर बारिश की बूंदों ने महीनों से प्यासी धरती को शीतलता प्रदान कर दी. बारिश की बूंदों ने किरण के तनमन को छुआ तो मानो उस के बेजान जिस्म में जान आ गई और स्वभाव का चिड़चिड़ापन भी जाता रहा. रात को औफिस से किरण के पति सुनील घर लौटे तो दरवाजे पर उसे सजधज कर इंतजार करते हुए खड़ा पाया. वे कमरे में दाखिल हुए, तो सब कुछ रोमांटिक अंदाज में सजा कर रखा हुआ पाया. फ्रैश हो कर डिनर पर बैठे तो देखा रोमांटिक कैंडल लाइट डिनर का आयोजन था और किरण की आंखों में रोमांस और प्यार साफ नजर आ रहा था. खाना परोसा गया तो उन्हें प्लेट में सारी अपनी पसंद की डिशेज नजर आईं. सुनील को समझते देर नहीं लगी कि ये सब बारिश की बूंदों का असर है. उस ने भी पौकेट से खूबसूरत फूलों का गजरा निकाला और किरण के लंबे, घने और काले खुले केशों पर बड़े प्यार से सजा दिया. दरअसल, सुनील के औफिस से निकलते ही जब बारिश होने लगी, तो रिमझिम फुहारों ने उसे भी रोमांटिक बना दिया. तभी किरण के लिए उस ने गजरा खरीद लिया था.

जब रिमझिम बरसा पानी

कैंडल लाइट डिनर को अभी दोनों ऐंजौय कर ही रहे थे कि बादलों ने एक बार फिर से रिमझिम बरसना शुरू कर दिया. किरण तो मानो इस पल के इंतजार में थी. उस ने हौले से सुनील की कलाई थामी और आंखों में आंखें डाल कर सुनील को बगीचे तक ले गई. बारिश की रिमझिम फुहारें, हाथों में उन का हाथ और ‘रिमझिम से तराने ले के आई बरसात…’, ‘ये रात भीगीभीगी ये मस्त फिजाएं…’, ‘एक लड़की भीगीभागी सी…’, ‘आज रपट जाएं तो हमें न…’, ‘रिमझिम गिरे सावन उलझउलझ जाए मन…’ जैसे रोमांटिक गानों का साथ मिल जाने पर भला कौन ऐसा प्रेमी होगा, जो खुद को थिरकने से रोक सकेगा. दोनों खूब थिरके. कुछ ऐसा ही मौका एक प्रेमी युगल को भी मिला. लंबे समय बाद इस बार दोनों को एकांत में मिलने का मौका मिला था. उन की ग्रैजुएशन की पढ़ाई के दौरान किसी ने कभी भी उन्हें अलग नहीं देखा था. दोनों ने तभी तय कर लिया था कि जौब मिलते ही वे शादी कर लेंगे, लेकिन एक कांपिटीशन क्लीयर करने के बाद टे्रनिंग के लिए जब दोनों को अलग होना पड़ रहा था, तो उन के दोस्त उन का रोनाधोना देख कर बाहर निकल गए थे.

अब जब 2 साल बाद दोनों मिले हैं, तो बस एकदूसरे को देखे ही जा रहे हैं. न तो सचिन की आवाज निकल रही है और न ही स्मिता की. दोनों को समझ ही नहीं आ रहा था कि क्या पूछें, कैसे पूछें. तभी बाहर बिजली के कड़कने की आवाज हुई और पल भर में ही पड़ने लगीं फुहारें. बाहर धरती गीली हो रही होती है तो अंदर मन भी भीगता है, तभी तो स्मिता के जड़ पड़े होंठ कह उठे, ‘‘आज भी नहीं बदले, बिलकुल वैसे ही हो. सारा सामान बिखेर कर रखा हुआ है. हटो, मैं ठीक कर देती हूं.’’ सचिन भी कहां खामोश रहना चाहता था. बारिश की बूंदों ने उसे भी तो गीला कर दिया था. मन से भी और तन से भी. उसे याद आने लगा था वह मंजर, जब दोनों पहली बार बारिश में मतवाले हो कर भीगे थे और हाथों में हाथ थामे एकदूसरे पर रीझे थे. आज एक बार फिर उसी अंदाज में भीगने को आतुर हो रहे हैं दोनों. ऐसे में सचिन ने भूख का बहाना बना कर स्मिता से बाहर जाने के लिए पूछा. स्मिता कहां मना करने वाली थी. वह भी तो उन यादों का हिस्सा थी. बाहर निकलते ही पल भर में ही दोनों पूरी तरह से भीग चुके थे, लेकिन खानेवाने की बात दोबारा किसी ने नहीं की.

दरअसल, भूख का तो महज बहाना था. असल में तो उन्हें एकदूसरे के करीब आना था. हुआ भी वही. बारिश की बूंदों में फूट पड़े दोनों के पुराने प्यार के अंकुर. अब तो एकदूसरे की बांहों में समाने की इच्छा भी जोर मारने लगी थी. लगातार तेज होती जा रही बारिश में दूरदूर तक कोई नजर नहीं आ रहा था, तो दोनों लिपट पड़े एकदूसरे से.

जगाता तनमन में प्यार

सचमुच, सावन चीज ही ऐसी है. कमबख्त इश्क की तरह मन पर छा जाए तो तन भी अपने बस में नहीं रहता, मचलने लगता है. तभी तो रचनाकारों की रचनाओं और गीतकारों के गीतों में सावन और रिमझिम फुहारों को अलगअलग भाव, अंदाज और ढंग से पेश किया जाता रहा है. एक दार्शनिक की नजर से देखें तो धरती और आसमान के खूबसूरत समागम का प्रतीक है सावन का मौसम और अन्य प्राणियों के लिए यह संदेश कि सृजन का मौसम आ गया. धरती यानी स्त्री और आसमान यानी पुरुष, जब तक दोनों पास नहीं आते, सृजन का आधार अधूरा रहता है. तभी तो गरमी और लू के थपेड़ों से फटी धरती आसमान से बूंदों की बौछार पाते ही नवयौवना सी खिल उठती है. मानो कह रही हो कि सृजन के लिए अब वह पूरी तरह से तैयार है. ये रिमझिम फुहारें ही तो हैं, जो पुरुष और स्त्री के बीच भी ऐसे भाव जगाती हैं. समाजशास्त्री अमित कुमार कहते हैं, ‘‘हर मौसम का अपना महत्त्व और मिजाज है. जेठ की दोपहर न हो तो सावन की रिमझिम बेमानी है. आज हम कहते हैं कि ताउम्र प्यार बनाए रखना है, तो बीचबीच में एकदूसरे से दूर रहने की आदत डाल लो. न रिश्ते बासी होंगे, न प्यार फीका होगा, क्योंकि दूरियों के बाद ही एकदूसरे के प्रति मुहब्बत और उस की जरूरत का एहसास हो पाता है. कुछ ऐसी ही फिलौसफी प्रकृति की भी है. तभी तो लू के थपेड़ों के बाद होती है मीठी रिमझिम और यही कुदरती तालमेल प्रेमी युगलों को उन्मादी बनाता है.’’

दांपत्य और प्रेम के रिश्तों पर खास पकड़ रखने वाली मैरिज काउंसलर विनीता महापात्रा बताती हैं, ‘‘अजीब इत्तफाक है, मगर एक खूबसूरत सच लिए. मैरिज काउंसलिंग के दौरान हम ने अकसर पाया है कि उलझे हुए रिश्तों को सुलझाने या पार्टनर के दिल में प्यार जगाने में सावन का महीना या यों कहें कि रिमझिम फुहारें बेहद कारगर साबित होती हैं. मनोविज्ञान से जुड़ा है यह मौसम. ‘‘आप ही बताइए, प्यार और रोमानियत के लिए किन बुनियादी चीजों की जरूरत होती है. खूबसूरत माहौल, खुशगवार मौसम, आसपास खिले रंगबिरंगे फूल, भीनीभीनी खुशबू और तरंगित मन, है न. लेकिन रिमझिम फुहारों के बीच बिना कुछ किए ही स्वत: सब कुछ हो जाता है. कई बार हम ने पाया है कि जिन रिश्तों की आग आपसी तकरार से ठंडी पड़ने लगी थी, उन्हें जब हम ने सावन के मौसम में किसी खूबसूरत इलाके में चंद दिन एकांत में गुजारने की सलाह दी, तो उम्मीद से बढ़ कर परिणाम आए. उन जोड़ों ने माना कि मौसम में इतनी कशिश होती है, यह अब जाना.’’

क्या कहता है शोध

सावन के महीने को ले कर भले पहले जैसी कशिश न रह गई हो, लेकिन मौसम और मन का संबंध तो आज भी नहीं बदला. जरा सी बारिश होते ही हम आज भी खुशी से गुलफाम हो जाते हैं. यदि प्यार में गिरफ्तार हैं तो मन मचलने लगता है, क्योंकि प्यार करने वालों को प्यार के लिए ऐसे ही किसी मौके की तलाश रहती है. प्यार पर शोध करने वाले मानते हैं कि रिमझिम फुहारों और हारमोनल स्राव का गहरा रिश्ता है. प्यार का हारमोन फूलों की मादक खुशबू, खूबसूरत माहौल या किसी खास तरह का खाना खाने के बाद स्रावित होता है, जो प्यार करने को उकसाता है. ऐसे ही यह हारमोन सावन के मौसम में भी सक्रिय हो जाता है. गरमियों में यह जितना सुस्त होता है, बरसात में उतना ही चुस्त. इंसानों का ही नहीं, बाकी जीवों के लिए भी है यह ‘मेटिंग सीजन’ यानी सहवास का मौसम. अब तो आप मानेंगे न कि रिमझिम फुहारें जगाती हैं तनमन में प्यार.

भूलकर भी घर में न रखें ये 9 चीजें

घर में सकारात्मक ऊर्जा हो तो जिंदगी के सारे बिगड़े काम बनने लगते हैं और शरीर में भी एनर्जी बनी रहती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हमारा घर हमारे विचारों का दर्पण होता है. यहीं हमें दिन भर की थकान से राहत और सुकून की नींद का साथ मिलता है.

लेकिन कई बार सब कुछ अच्छा होने के बाद घर में एक मायूसी सी छाने लगती है और भी समस्याएं मुंह बढ़ाए सामने आ खड़ी होती हैं. ऐसा होने का एक कारण घर में रखी बेवजह की चीजों के कारण भी हो सकता है.

आइए जानें, इस बारे में…

1. टूटे-फूटे बर्तन

टूटे-फूटे और बेकार बर्तन घर में जगह घेरते हैं और नकारात्मक ऊर्जा को भी बढ़ावा देते हैं.

2. टूटा पलंग

जीवन में सुख-शांति के लिए जरूरी है कि पति-पत्नी का पलंग टूटा हुआ न हो. यदि पलंग ठीक नहीं होगा तो वैवाहिक जीवन में परेशानियां आ सकती हैं.

3. टूटा हुआ कांच

घर में रखा हुआ टूटा कांच आर्थिक नुकसान का कारण बनता है. साथ ही परिवार के सदस्यों को मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है.

4. टूटी हुई फोटो फ्रेम

यदि घर में कोई टूटी हुई फोटो फ्रेम या तस्वीर हो तो उसे भी घर से हटा देना चाहिए.

5. टूटा या खराब दरवाजा

यदि घर का कोई दरवाजा कहीं से टूट हो तो उसे तुरंत ठीक करवा लेना चाहिए.

6. टूटा-फूटा फर्नीचर

वास्तु के अनुसार, फर्नीचर में टूट-फूट घर में आर्थिक परेशानियों का कारण बन सकती है.

7. खराब घड़ी

घडियों की स्थिति से हमारे घर-परिवार की उन्नति निर्धारित होती है. यदि घड़ी टूटी हुई होगी तो परिवार के सदस्यों की उन्नति रुकेगी.

8. टूटे पेन

घर या ऑफिस में कभी टूटे हुए या बंद पेन नहीं रखने चाहिए. ऐसा करने से करियर में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.

9. खराब पड़े इलेक्ट्रॉनिक्स

घर में यदि कोई इलेक्ट्रॉनिक समान खराब या टूटा हुआ हो तो उसे भी घर से हटा देना चाहिए.

स्ट्रोक के बाद रिकवरी के लिए खानपान कैसा होना चाहिए?

सवाल

मेरे पति का स्ट्रोक का उपचार चल रहा है. उन की तेज और बेहतर रिकवरी के लिए उन के खानपान का किस तरह ध्यान रखना चाहिए?

जवाब-

एक बार स्ट्रोक आने के बाद खानपान का ध्यान रखना बहुत जरूरी है ताकि स्ट्रोक से रिकवरी बेहतर हो और दोबारा स्ट्रोक की चपेट में आने का खतरा भी कम हो जाए. संतुलित, पोषक और सादा भोजन रक्तदाब और वजन को नियंत्रित रखने में सहायता करता है  जो स्ट्रोक के प्रमुख रिस्क फैक्टर्स माने जाते हैं.

स्ट्रोक के मरीज के डाइट चार्ट में साबूत अनाज, रंगबिरंगे फल और सब्जियां, वसारहित दूध व दुग्ध उत्पाद, दालें, फलियां आदि संतुलित मात्रा में लेने चाहिए. आप उन्हें थोड़ी मात्रा में चिकन और फिश भी दे सकती हैं, लेकिन इसे पकाने में तेलमसालों का इस्तेमाल अधिक मात्रा में नहीं करना चाहिए. तेल, घी, नमक चीनी, चाय, कौफी बहुत थोड़ी मात्रा में दें. जंक और प्रोसैस्ड फूड्स, धूम्रपान और शराब का सेवन बिलकुल न करने दें. इस से न केवल रिकवरी की प्रक्रिया धीमी होगी बल्कि दोबारा स्ट्रोक आने की आशंका भी बढ़ जाएगी.

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मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे गूढ़ और महत्वपूर्ण अंग है जिसे खोपड़ी के अंदर बहुत ही नजाकत से संभाल कर रखा जाता है. लेकिन खराब लाइफस्टाइल और कई बीमारियां मस्तिष्क के लिए बड़ा खतरा बन जाती हैं. स्ट्रोक इन्हीं में से एक ऐसी बीमारी है, जो वैश्विक स्तर पर चार में से एक व्यक्ति को प्रभावित करती है. हालांकि सभी तरह के स्ट्रोक में तकरीबन 80 फीसदी मामलों से बचा जा सकता है, बशर्ते कि इसकी सही समय पर पहचान की जाए ताकि मरीज को तत्काल अस्पताल पहुंचाकर उसे लकवाग्रस्त होने तथा मौत से बचाया जा सके.

स्ट्रोक की स्थिति में लोगों को तत्काल कार्रवाई करने के लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है और 6—एस पद्धति से इसकी पहचान करने में मदद मिलती है. ये हैं: सडेन यानी लक्षणों की तत्काल उभरने की पहचान, स्लर्ड स्पीच यानी जुबान अगर लड़खड़ाने लगे, साइड वीक यानी बाजू, चेहरे, टांग या इन तीनों में दर्द होना, स्पिनिंग यानी सिर चकराना, सिवियर हेडेक यानी तेज सिरदर्द और छठा सेकंड्स यानी लक्षणों के उभरते ही कुछ सेकंडों में अस्पताल पहुंचाना. कई सारे अध्ययन बताते हैं कि स्ट्रोक पीड़ित मरीज की प्रति मिनट 19 लाख मस्तिष्क कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, लगभग 140 करोड़ स्नायु संपर्क टूट जाता है और 12 किमी तक स्नायु फाइबर खराब हो जाते हैं. ऐसी स्थिति में मिनट भर की देरी भी मरीज को स्थायी रूप से लकवाग्रस्त और मौत तक की स्थिति में पहुंचा देती है.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- स्ट्रोक की स्थिति में 6 – एस को जानें

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

75 सालों में कितना बदला महिलाओं का जीवन

हाल ही में मेक इन इंडिया के तहत बनी नौका तारिणी में सवार हो कर 6 महिला अफसरों ने एक साहसिक अभियान को अंजाम दिया. वह 19 सितंबर, 2017 का दिन था जब ऐश्वर्या, एस विजया, वर्तिका जोशी, प्रतिभा जम्वाल, पी स्वाति और पायल गुप्ता ने आईएनएस तारिणी पर अपना सफर शुरू किया. 19 मई, 2018 को वे 21,600 नाटिकल माइल्स यानी 216 हजार समुद्री मील की दूरी तय कर के वापस आई थीं. इस अभियान में लगभग 254 दिनों का समय लगा और इसी के साथ ही इन 6 नेवी महिला अफसरों ने अपने नाम को इतिहास के पन्नों में भी दर्ज करा लिया.

21 मई, 2018 को वे आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, पोलैंड और साउथ अफ्रीका होते हुए गोवा पहुंचीं. उन के सामने भी उतनी ही चुनौतियां थीं जितनी पुरुषों के सामने आती हैं, लेकिन उन्होंने उस का डट कर मुकाबला किया और सफलता पाई.

ये है आज की नारी की बदली हुई छवि यानी खुद आगे बढ़ कर जोखिमों का सामना करने वाली महिलाएं. यह प्रगति चाहे 1947 की आजादी की देन है या विश्व में होते हुए बदलाव की, बहुत सुखद है और इसे 75वें साल की सालगिरह पर याद करना एक अच्छी बात है.

भारत को आजाद हुए 75 वर्ष हो गए हैं. आजादी के 7 से ज्यादा दशकों के सफर में देश की महिलाओं का जीवन काफी बदला है. उन की स्थिति में सुधार हुआ है. उन्हें कई अधिकार मिले हैं, उन्होंने कई बंधनों से मुक्ति पाई है, कई तरह के अधिकारों की लड़ाई लड़ी है, कई जगह सफलता के परचम लहराए हैं और कई क्षेत्रों में पुरुषों से बाजी मारी है. मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कई मानों में उन की जिंदगी आज भी पारंपरिक यातनाओं का दंश ?ोल रही है. आज भी उन्हें दोयम दर्जा प्राप्त है, आज भी उन का शारीरिक शोषण हो रहा है और आज भी उन की मुट्ठी खाली ही है.

आइए, देखते हैं इन 75 सालों में महिलाओं की जिंदगी में किस तरह के बदलाव आए हैं.

भारत के अंगरेज शासकों ने समाज सुधारों और आम सुधारों पर कम ध्यान दिया था. आजादी के बाद संविधान बना जिस में औरतों को हर जगह बराबर के अवसर मिले. हिंदू कानूनों में 1956 तक कई परिवर्तन हुए जिन से बहु विवाह प्रथा समाप्त हुई. शिक्षा के क्षेत्र में कांग्रेस सरकारों ने बहुत नए स्कूल खोले जिन में लड़कियों को भी प्रवेश मिला. आजादी से पहले इस सब के बारे में सोचने की गवर्नर जनरल इन काउंसिल को कभी फुरसत नहीं रही.

समाज और परिवार में महिलाओं की स्थिति में धीरेधीरे ही सही पर बहुत से सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं.

शिक्षित हुई है नारी

अपने वजूद को पहचानने और अपनी काबिलीयत का लोहा मनवाने के लिए जरूरी है कि एक स्त्री शिक्षित हो. वह अपने हकों को जाने, कर्तव्यों को पहचाने और आगे बढ़ने से घबराए नहीं. महिलाओं के विकास में शिक्षा का सब से बड़ा रोल रहा है. आजादी के बाद महिलाओं को बराबर अधिकार मिले जिस से उन्हें पढ़नेलिखने का अवसर मिला. यहीं से आधी आबादी की दुनिया बदलनी शुरू हुई.

शिक्षा के कारण महिलाओं की चेतना जाग्रत हुई. वे परंपरागत और पुरातनपंथी सोच से बाहर आईं और अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हुईं. जब वे शिक्षित हुईं तो नौकरी के लिए घर से बाहर निकलीं, पुरुषों के इस समाज में अपनी जगह सुनिश्चित की और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनीं.

महिलाएं अब महज हाउसवाइफ की भूमिका में नहीं हैं बल्कि वे अब होममेकर बन चुकी हैं. घरपरिवार चलाने में आर्थिक सहयोग दे रही हैं. इस से उन के अंदर आत्मविश्वास पैदा हुआ है. ऐसी महिलाएं किसी पर निर्भर रहने के बजाय घरपरिवार, मातापिता और पति को आर्थिक रूप से सहयोग करने लगी हैं. जो महिलाएं ज्यादा पढ़ीलिखी नहीं वे भी अपनी बेटियों को अच्छी शिक्षा दे कर कुछ बनाना चाहती हैं और उन्हें अपने पैरों पर खड़ा करना चाहती हैं. यह एक सकारात्मक रुझन है.

पिछले 7 दशकों में महिलाओं की नौकरी करने की दर में अच्छाखासा इजाफा हुआ है. आज बहुत सी महिलाएं कंपनी की सीईओ और मैनेजिंग डाइरैक्टर बन रही हैं, ऊंचे से ऊंचे ओहदे पर बैठ रही हैं. वे न सिर्फ पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं बल्कि इन सभी बदलावों के कारण उन का आत्मविश्वास भी बढ़ा है.

वे अपनी बात सब के सामने रख पाती हैं. अपने अधिकारों को पाने के लिए तत्पर नजर आती हैं. अब वे सोशल मीडिया के जरीए भी अपनी बात रखने लगी हैं. महिलाओं से जुड़े कई कैंपेन भी इस माध्यम के जरीए चलाए जा रहे हैं, जिन के सकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं.

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की ताजा रिपोर्ट के अनुसार शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी बड़ी है. शिक्षण संस्थानों तक लड़कियों की पहुंच लगातार बढ़ रही है. 1 दशक पहले हुए सर्वेक्षण में शिक्षा में महिलाओं की भागीदारी 55.1% थी जो अब बढ़ कर 68.4% तक पहुंच गई है. यानी इस क्षेत्र में 13% से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है.

आधुनिक तकनीक भी महिलाओं की जिंदगी में शिक्षा का जरीया बनी है. गांव की लड़कियां बड़ेबड़े स्कूलकालेजों से घर बैठे अपनी पढ़ाई कर रही हैं. बड़ी औनलाइन कंपनियों से जुड़ कर उत्पाद बेच रही हैं. अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो रही हैं.

मन से भी स्वतंत्र हुई हैं महिलाएं

महिलाएं अब अपने मन की बात सुनती हैं और उस पर विचार भी करती हैं. सही फैसले लेने से हिचकिचाती नहीं हैं. यानी वे अब मन से भी स्वतंत्र हो रही हैं. वे अगर कुछ करने की ठान लेती हैं तो कर के गुजरती हैं.

मन में कुछ साहसिक और दुष्कर कर दिखाने की बात ठान लेना और सफलतापूर्वक कर के दिखाना आज की महिलाओं ने सीख लिया है. ऐसा 10-20 साल पहले तक महिलाएं सोच भी नहीं सकती थीं. पर अब उन के पास रास्ते हैं और जज्बा भी है. महिलाएं एकदूसरे से भी प्रेरित हो रही हैं. यही आजाद भारत की महिलाओं की उभरती नई छवि है.

खुद को साबित किया है

किसी देश का विकास उस के मानव संसाधन पर निर्भर होता है. इस में महिला और पुरुष दोनों का ही स्थान आता है. आजाद होने के बाद हमारे देश में भी हर नागरिक को समान अधिकार मिले जिस से उन के विकास की राह खुली. महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपनी क्षमता और प्रतिभा को साबित किया है. खेल का क्षेत्र हो या विज्ञान का, राजनीति हो या कौरपोरेट वर्ल्ड, अदाकारी हो या सैन्य क्षेत्र, डाक्टरी हो या इंजीनियरिंग महिलाएं हर जगह अपनी काबिलीयत दिखा रही हैं.

आज विदेश और रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों की जिम्मेदारियां महिलाओं पर हैं और वे बखूबी इस काम को कर रही हैं. वे देश के सर्वोच्च पदों पर पहुंच रही हैं. फाइटर पायलट बन कर देश की रक्षा दायित्व भी निभाने के लिए तैयार हैं. ये सभी बदलाव बहुत ही सकारात्मक हैं. अब घर का पुरुष चाहे पिता हो, भाई हो या पति सब महिलाओं के योगदान को महत्त्व दे रहे हैं और उन को सहयोग भी कर रहे हैं.

अपनी मरजी से जीना

खासकर मुंबई और दिल्ली जैसे भारत के महानगरों और अन्य बड़े शहरों में बसने वाली लड़कियों और महिलाओं की स्थिति में काफी बदलाव आए हैं. आज उन्हें शारीरिक पोषण और मानसिक विकास के समान अवसर मिल रहे हैं. सड़कों पर जरूरी काम से देर रात भी निकलना चाहें तो निकल सकती हैं. बेखौफ हो कर अपनी पसंद के कपड़े पहनती हैं.

अपने दिल और मरजी की थाप पर एक साथ गुनगुनाती है. अपनी मरजी से अपना साथी चुनने का अधिकार भी मिलने लगा है. दिल चाहे तो वह बुरका पहनती है और मन करे तो बिकिनी भी. उस की मरजी हो तब लिपस्टिक लगाने का अधिकार है और मरजी हो तो बिना मेकअप घूमनेफिरने का हक. शादी करने या न करने का फैसला भी ले सकती है.

वह अपनी मरजी से अकेली भी रहती है तो कोई उस पर ताने नहीं कसता. अपनी मरजी की जौब कर आत्मनिर्भर जिंदगी जीने के मौके भी उस के पास हैं. हां इतना दुख जरूर है कि यह क्रांति अभी बड़े शहरों तक सीमित है. छोटे शहरों और गांवों में आज भी पंचायत, समाज और खापों की चल रही है. कई जगह नए कपड़े पहनने तक पर पाबंदी है.

घर में सम्मान

शिक्षा और जागरूकता का असर घरेलू हिंसा पर भी पड़ा है. अब इस तरह के मामले पहले से कम हुए हैं. रिपोर्ट के अनुसार वैवाहिक जीवन में हिंसा ?ोल रही महिलाओं का प्रतिशत 37.2 से घट कर 28.8% रह गया है. सर्वे में यह भी पता चला कि गर्भावस्था के दौरान केवल 3.3% को ही हिंसा का सामना करना पड़ा.

एक सर्वेक्षण से यह भी सामने आया है कि 15 से 49 साल की उम्र में 84% विवाहित महिलाएं घरेलू फैसलों में हिस्सा ले रही हैं. इस से पहले 2005-06 में यह आंकड़ा 76% था. ताजा आंकड़ों के अनुसार लगभग 38% महिलाएं अकेली या किसी के साथ संयुक्त रूप से घर या जमीन की मालकिन हैं.

आज के बदलते परिवेश में जिस तरह नारी पुरुष वर्ग के साथ कंधे से कंधा मिला कर प्रगति की ओर अग्रसर हो रही है वह समाज के लिए एक गर्व और सराहना की बात है. आज राजनीति, टैक्नोलौजी, सुरक्षा समेत हर क्षेत्र में जहांजहां महिलाओं ने हाथ आजमाया उन्हें कामयाबी ही मिली. अब तो ऐसी कोई जगह नहीं है जहां आज की नारी अपनी उपस्थिति दर्ज न करा रही हो. इतना सब होने के बाद भी वह एक होममेकर के रूप में भी अपना स्थान बनाए हुए है.

हाल ही में भारत ने महिला सशक्तीकरण की दिशा में अभूतपूर्व कदम उठाते हुए देश की संसद और राज्य विधानसभाओं में एकतिहाई महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित की. वैसे एक सच यह भी है कि महिला आरक्षण का मात्र वही महिलाएं फायदा उठा सकती हैं जो शिक्षित या योग्य हैं. आज भी जो महिलाएं परदे के पीछे रहती हैं उन की स्थिति वही की वही है.

ज्यादा प्रयास की जरूरत

सिक्के का दूसरा पहलू भी विचारणीय है जहां आज भी महिलाओं को घर के बाहर न निकलने की हिदायत दी जाती है. रेप या बलात्कार होने पर हमारा समाज एक औरत को आत्महत्या के लिए मजबूर कर देता है. यही नहीं कन्या भ्रूण हत्या जैसी घटनाएं महिलाओं के विकास में अवरोध पैदा कर रही हैं.

आज भी महिलाओं को उतना आगे नहीं आने दिया जा रहा है जितना जरूरत है और इस की सब से बड़ी वजह है हमारे समाज का पुरुषप्रधान होना. हालात ऐसे हैं कि नारी पुरुषों के लिए भोगविलास की वस्तु मानी जाती है. विज्ञापनों, फिल्मों जैसे क्षेत्रों में उन्हें अश्लील रूप में प्रदर्शित किया जाता है.

अगर हम भारत के संदर्भ में बात करें तो पाएंगे कि अब भी हमारे देश को महिलाओं की स्थिति सुधारने की जरूरत है. शिक्षा को निचले स्तर तक पहुंचा कर हम नारियों को सशक्त करने का प्रयास कर सकते हैं.

महिला सशक्तीकरण की दिशा में देश में प्रगति हुई है, लेकिन बहुत से ऐसे क्षेत्र हैं जहां और प्रयासों की जरूरत है. लिंगानुपात के मोरचे पर देश ज्यादा प्रगति नहीं कर पाया है.

शहरी क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार हुआ है, इसलिए प्रसूति मौतों के मामलों में कमी आई है. हालांकि गांवों की स्थिति अभी ज्यादा नहीं बदली है. यूनिसेफ के अनुसार भारत में प्रसव के दौरान होने वाली मौतें पहले से घटी हैं, लेकिन ये अब भी बहुत ज्यादा हैं. देश में हर साल लगभग 45 हजार महिलाओं की मौत प्रसव के दौरान हो जाती है.

वेतन संबंधी असमानता

चैरिटी संगठनों के एक अंतर्राष्ट्रीय परिसंघ औक्सफैम के अनुसार भारत में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन असमानता दुनिया में सब से खराब है. मान्स्टर सैलरी इंडैक्स के अनुसार पुरुषों और महिलाओं दोनों द्वारा एक ही प्रकार के काम के लिए भारतीय पुरुष महिलाओं की तुलना में 25 रुपए अधिक कमाते हैं.

भारतीय समाज में महिलाओं के ऊपर हिंसा एक प्रमुख मुद्दा है. महिलाओं की सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए लड़कियों को ‘सही ढंग से व्यवहार करना’ सिखाने की तुलना में पुरुषों को ‘सभी महिलाओं का सम्मान’  करना सिखाना अधिक आवश्यक है.

देश की पितृसत्तात्मक संरचना के कारण भारत में घरेलू दुर्व्यवहार अभी भी सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य है. भारत में युवा पुरुषों और महिलाओं के एक सर्वेक्षण के अनुसार 57% लड़के और 53% लड़कियों का मानना है कि महिलाओं को उन के पति द्वारा पीटा जाना उचित है.

2015 और 2016 के बीच किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार 80% कामकाजी महिलाओं को अपने जीवनसाथी के हाथों घरेलू शोषण का सामना करना पड़ता है.

सेना में भारतीय महिलाओं की भागीदारी बेहद कम है और हाल ही के वर्षों में इस में गिरावट आई है. पुरुष से महिला अनुपात सिर्फ 0.36 है.

महिलाओं को नहीं मिली इन चीजों से आजादी

स्वतंत्रता दिवस हर भारतीय के लिए खास है क्योंकि इसी दिन हम अंगरेजों की गुलामी की जंजीरें तोड़ आजाद हुए थे. मगर बात अगर महिलाओं की स्थिति की करें तो आज भी कई ऐसी चीजें हैं जिन से उन्हें आजादी नहीं मिली. महिलाएं जो देश की 49% आबादी का गठन करती हैं अभी भी सुरक्षा, गतिशीलता, आर्थिक स्वतंत्रता, पूर्वाग्रह और पितृसत्ता जैसे मुद्दों से जूझ रही हैं.

फैसले का हक नहीं

हमारे जैसा पितृसत्तात्मक समाज पुरुषों को निर्णय लेने की शक्ति देता है, लेकिन लड़कियों को नहीं. ज्यादातर लड़कियां अपनी इच्छा से पढ़ नहीं सकतीं, खेल प्रतिस्पर्धा में भाग नहीं ले सकतीं, कैरियर नहीं बना सकतीं यहां तक कि जीवनसाथी चुनने का हक भी उन्हें नहीं मिलता. पढ़ने या काम करने के विकल्प से ले कर आर्थिक फैसले और कमाई के इस्तेमाल जैसे अहम मुद्दों पर अकसर महिलाओं को पुरुषों की बात माननी पड़ती है. पितृसत्ता वाले इस समाज का नतीजा है कि भारत में कन्या भू्रण हत्या की घटनाएं इतनी ज्यादा होती हैं. उन्हें दहेज के नाम पर जला दिया जाता है और उन की जिंदगी चौकेचूल्हे तक सीमित कर दी जाती है.

हिंसा, दुर्व्यवहार और शोषण से मुक्ति नहीं

भारत में महिलाओं को हर दिन एहसास करवाया जाता है कि वे अपने घर, औफिस और पब्लिक प्लेस में कितनी असुरक्षित हैं. घर में दुर्व्यवहार, पति की मारपीट और सास के ताने, कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न या मानसिक दबाव, सोशल मीडिया पर भद्दे कमैंट, सड़क पर छेड़खानी और रेप, मोबाइल पर ब्लैंक कौल्स जैसी घटनाओं से महिलाओं को हर दिन गुजरना पड़ता है. पति से ज्यादा कमाने वाली 27% पत्नियां शारीरिक हिंसा की शिकार हैं तो 11% को इमोशनल ब्लैकमेलिंग ?ोलनी पड़ती है.

शादी के बाद काम करने की आजादी

भारत में बहुत सी महिलाएं आज भी हाउसवाइफ की तरह अपनी जिंदगी व्यतीत कर रही हैं. उन में से बहुत सी औरतें तो घर के काम से खुश हैं, लेकिन कुछ मजबूरी के चलते बाहर काम नहीं करतीं. चूंकि आज भी कई जगहों पर महिलाओं को शादी के बाद काम करने की आजादी नहीं है. कुछ पुरुष आज भी पत्नी के काम को अपना अपमान समझते हैं.

मनचाहे कपड़े पहनने की आजादी

कुछ समय पहले उत्तराखंड के सीएम तीरथ सिंह रावत ने महिलाओं की फटी जींस को ले कर बयान देते हुए कहा था कि आजकल महिलाएं फटी जींस पहनती हैं. उन के घुटने दिखते हैं. ये कैसे संस्कार हैं? ये संस्कार कहां से आ रहे हैं? इस से बच्चे क्या सीख रहे हैं और महिलाएं आखिर समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं? अकसर इस तरह के बयान नेताओं या देश के तथाकथित हितचिंतकों की जबानी सुनने को मिल जाते हैं. अब जिस देश को संभालने वालों की ही ऐसी सोच हो तो वहां महिलाओं को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी भला कैसे मिलेगी?

महिलाओं ने अब तक जो हासिल किया भी है वह स्वयं के अनुभव, आत्मविश्वास और मेहनत के आधार पर किया है. मगर पुरुष समाज लैंगिक सोच के दायरे से बाहर नहीं निकला है. स्त्री को देह मानने की मानसिकता अब भी है. खाप पंचायतों की महिलाओं को ले कर हुए तुगलकी फरमान किसी से छिपे नहीं हैं. इसी समाज में रोजाना बुलंदशहर जैसी घटनाएं भी हमारे प्रगतिशील समाज के मुंह पर कालिख पोतती हैं. दलित, निर्धन और अशिक्षित महिलाओं की सुध लेने की बात तो दूर की है जब शहरी आबादी ही बुरी तरह सामाजिक परंपराओं के बोझ ढोने को विवश हो.

विश्वभर की संसदों में महिलाओं की संख्या के हिसाब से भारत आज भी 103वें स्थान पर है, जबकि नेपाल, बंगलादेश और पाकिस्तान की संसद में महिला सांसदों की संख्या कहीं अधिक है, जिन्हें हम अपने से भी ज्यादा पिछड़ा हुआ मानते हैं.

मंजिल अभी दूर

कुल मिला कर आज आजादी के 75 सालों बाद भी भारत में महिलाओं की स्थिति संतोषजनक नहीं कही जा सकती. आधुनिकता के विस्तार के साथसाथ देश में दिनप्रतिदिन बढ़ते महिलाओं के प्रति अपराधों की संख्या के आंकड़े चौकाने वाले हैं. उन्हें आज भी कई प्रकार के धार्मिक रीतिरिवाजों, कुत्सित रूढि़ मान्यताओं, यौन अपराधों, लैंगिक भेदभावों, घरेलू हिंसा, निम्न स्तरीय जीवनशैली, अशिक्षा, कुपोषण, दहेज उत्पीड़न, कन्या भ्रूण हत्या, सामाजिक असुरक्षा, तथा उपेक्षा का शिकार होना पड़ रहा है.

हालांकि कुछ महिलाएं इन सभी चुनौतियों से पार पाकर विभिन्न क्षेत्रों में देश के सम्माननीय स्तरों तक भी पहुंची हैं जिन में श्रीमती इंदिरा गांधी, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, सुषमा स्वराज, निर्मला सीतारमण, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, अमृता प्रीतम, महाश्वेता देवी, लता मंगेशकर, आशा भोंसले, श्रेया घोषाल, सुनिधि चौहान, अल्का याज्ञनिक, मायावती, जयललिता, ममता बनर्जी, मेधा पाटकर, अरुंधती राय, चंदा कोचर, पी.टी. ऊषा, ?साइना नेहवाल, सानिया मिर्जा, साक्षी मलिक, पी. वी. सिंधू, हिमा दास, झलन गोस्वामी, स्मृति मंधाना, मिताली राज, हरमनप्रीत कौर, गीता फोगाट, मैरी काम और हाल ही में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू आदि नाम उल्लेखनीय हैं.

भारत जैसे पुरुषप्रधान देश में 70 के दशक से महिला सशक्तीकरण तथा फैमिनिज्म शब्द प्रकाश में आए. गैरसरकारी संगठनों ने भी महिलाओं को जाग्रत कर उन में अपने अधिकारों के प्रति चेतना विकसित करने तथा उन्हें सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है.

हरियाणा, राजस्थान, पश्चिमी उत्तर प्रदेश आदि में कन्या भ्रूण हत्या को रोक कर लिंग अनुपात के घटते स्तर को संतुलित करने तथा शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं की स्थिति सुधारने के प्रयास में केंद्र सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ योजना चलाई जा रही है.

आजादी के बाद के वर्षों में महिलाओं के लिए समान अधिकार, अवसरों की समानता, समान कार्य के लिए समान वेतन, अपमानजनक प्रथाओं पर रोक आदि के लिए कई प्रावधान भारतीय संविधान में किए गए. इन के अतिरिक्त दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961, कुटुंब न्यायालय अधिनियम 1984, सती निषेध अधिनियम 1987, राष्ट्रीय महिला आयोग अधिनियम 1990, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005, बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम 2006, कार्यस्थल पर महिलाओं का लैंगिक उत्पीड़न (प्रतिषेध) अधिनियम 2013 आदि भारतीय महिलाओं को अपराधों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करने तथा उन की आर्थिक एवं सामाजिक दशा में सुधार करने के लिए बनाए गए प्रमुख कानूनी प्रावधान हैं. कई राज्यों की ग्राम व नगर पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों का प्रावधान भी किया गया है.

स्त्री सुरक्षा और समता

स्त्री सुरक्षा और समता में उठाया गया हमारा प्रत्येक कदम किसी न किसी हद तक स्त्रियों की दशा सुधारने में कारगर साबित हो रहा है इस में कोई दोराय नहीं. किंतु सामाजिक सुधार की गति इतनी धीमी है कि इस के यथोचित परिणाम स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ पाते. हमें और भी तेजी से इस क्षेत्र में जनजागृति और शिक्षा पहुंचाने का कार्य करने की आवश्यकता है.

हमें यह समझना होगा कि विकास और महिला उत्थान 2 अलग चीजें नहीं हैं. इन्हें 2 अलग नजरिए से देखने पर सिर्फ नाकामी ही हाथ लगेगी. महिलाओं को विकास की मुख्यधारा में शामिल करने के लिए प्रयास किए जाएं ताकि वे आत्मनिर्भर और जागरूक हो सकें.

आज किसी भी बड़े मौल में चले जाएं, सब से चमकदार दुकानों में औरतों का सामान बिक रहा है. सुपर मार्केटों में ज्यादा खरीदारी औरतें कर रही हैं. व्हाइट गुड्स जैसे फ्रिज, एयरकंडीशनर, गैस के चूल्हे, नई मौड्यूल, किचन आदि पर फैसला औरतें कर रही हैं. इंटीरियर डैकोरेशन पर औरतों की राय ली जा रही है और वे धड़ाधड़ नए डिजाइन के बैड, वार्डरोब, नए पेंट, पौलिश बाजार में छा रहे हैं जिन की ग्राहक औरतें हैं.

औरतें हर देश के सकल उत्पादन यानी जीडीपी की वृद्धि में अब बड़ा योगदान कर रही हैं और भारत में भी वे उत्पादन में भी लगी हैं और कंज्यूमर भी हैं.

तीज 2022: Ankita Lokhande के साड़ी कलेक्शन से नहीं हटेगी नजर

टीवी की पौपुलर एक्ट्रेसेस में से एक अंकिता लोखंडे (Ankita Lokhande) अपनी पर्सनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. जहां बीते दिनों एक्ट्रेस की प्रैग्नेंसी की खबर चर्चा में थी तो वहीं अब अंकिता लोखेंडे के शादी के बाद साड़ियों के कलेक्शन देखकर फैंस नजरें नहीं हटा पा रहे हैं. इसीलिए आज हम आपके लिए लेकर आए हैं तीज 2022 पर एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे के साड़ी कलेक्शन की झलक…

तीज पर ट्राय करें लाइट कलर

अक्सर महिलाएं तीज सेलिब्रेशन के लिए डार्क या ब्राइट कलर का चुनाव करती हैं. लेकिन अगर आप इस सेलिब्रेशन पर कुछ नया ट्राय करने की सोच रही हैं तो अंकिता लोखंडे की ये लाइट ग्रीन शेड वाली ये साड़ी ट्राय करना ना भूलें. ये स्टाइलिश के साथ-साथ आपके ट्रैडिशनल लुक पर चार चांद लगा देगी.

ग्रीन साड़ी करें ट्राय

तीज के सेलिब्रेशन में ग्रीन कलर के आउटफिट महिलाएं ज्यादा ट्राय करती हैं. वहीं अगर उन्हें मनचाहा कलर मिल जाए तो कहने ही क्या. इसीलिए हम लेकर आए हैं आपके लिए एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे की ग्रीन कलर की बनारसी साड़ी का औप्शन, जो इन दिनों ट्रैंड में हैं. वहीं एक्ट्रेस का ये लुक फैंस काफी पसंद कर चुके हैं. बालों में गजरा और मैचिंग ज्वैलरी फैंस को काफी पसंद आ रही है.

ब्लू कलर कर सकती हैं ट्राय

अपने तीज लुक को स्टाइलिश बनाने के लिए आप अंकिता लोखंडे की ये ब्लू कलर की साड़ी ट्राय कर सकती हैं. बनारसी पैटर्न की इस साड़ी के साथ आप मैचिं ज्वैलरी या गोल्ड ज्वैलरी आसानी से कैरी कर सकती हैं. ये रंग आपको रौयल लुक देने में मदद करेगा.

सी ग्रीन का चुनें औप्शन

अगर आप ग्रीन के दूसरे कलर और साड़ी के पैटर्न की तलाश कर रही हैं तो एक्ट्रेस अंकिता लोखंडे की ये नेट से बनें कपड़े वाली साड़ी ट्राय कर सकती है. ये स्टाइलिश के साथ-साथ आपको कंफर्टेबल महसूस कराने में मदद करेगी.

GHKKPM: बेटी सवी को बचाएगा विराट, सई के सामने आएगा विनायक का सच!

सीरियल गुम है किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) की कहानी में जल्द ही मेकर्स कई नए ट्विस्ट एंड टर्न्स लाने वाले हैं, जिसके चलते फैंस काफी एक्साइटेड हैं. वहीं फैंस विराट और सई को साथ देखने के लिए तरस रहे हैं. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में फैंस का ये सपना पूरा होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

सवी होगी खुश

अब तक आपने देखा कि विराट अपने बेटे विनायक से मिलने उसके समर कैंप के लिए जाता है. जहां वह सवी का पेड़ पर अपने बाबा के लिए लिखा मैसेज देखता है, जिसके चलते वह जवाब में लिखता है कि बाबा जल्दी आएंगे. अपकंमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि सवी, विराट का लिखा मैसेज पढ़ेगी और सई को दिखाएगी, जिसे देखकर सई इमोशनल होती नजर आएगी.

सवी को बचाएगा विराट

इसके अलावा आप देखेंगे कि विनायक और सवी पर कुछ गुंडे हमला करेंगे, जिसे देखकर विराट उन्हें बचाने के लिए आएगा. विराट गुंडे सवी को ले जाने की कोशिश करेगें, जिसके चलते वह उसे बचाता दिखेगा. इसी के चलते सवी और विराट के बीच दोस्ती हो जाएगी.

विनायक से बढ़ेगा सई का लगाव

 

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नए ट्विस्ट के साथ-साथ विनायक और सई की दोस्ती भी गहरी होगी और सई का उससे लगाव होता दिखेगा. वहीं खबरों की मानें तो सई, विनायक के पैरों का इलाज करेगी, जिसके चलते विराट और सई का आमना सामना होता हुआ भी दिखेगा. इसके अलावा सई के जिंदा होने की खबर, विराट चौह्वाण परिवार को देगा, जिससे उन्हें बड़ा झटका लगेगा. वहीं पाखी को हैरानी होगी.

बता दें, सीरियल Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin में कहानी जहां दिलचस्प मोड़ लेती दिख रही है तो वहीं सीरियल के सेट पर बच्चों की एंट्री से पूरी टीम काफी खुश हैं. वहीं सई और पाखी के रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस आयशा सिंह और ऐश्वर्या शर्मा अपने औनस्क्रीन बच्चों संग मस्ती करती दिख रही हैं.

तीज 2022: इस तरह बनाएं Nails को खूबसूरत

एक औरत की खूबसूरती यानी लुक तब तक पूरी नहीं होती जब तक की उनके नेल्स खूबसूरत न दिखें. इसलिए अपने नाखूनों को नजरअंदाज न करें. आपकी स्किन और बालों की तरह आपके नाखूनों को भी एक्स्ट्रा केयर की जरूरत होती है. कुछ टिप्स अपना कर आप अपने नाखूनों को सुन्दर व स्वस्थ रख सकती हैं.

बदलते समय के साथ अब फैशन की डिक्शनरी में नेल ट्रेंड की जगह भी बहुत महत्वपूर्ण होती जा रही है. यही वजह है कि अच्छे से अच्छे मेनीक्योर्स- पेडिक्योर्स और नेल आर्ट एक ट्रेंड-कान्शियस लड़की की लाइफस्टाइल का एक अहम हिस्सा बन गया है.

नेल्स के शेप

पिछले साल नेल्स में सबसे पापुलर स्क्वेयर शेप था. स्क्वेयर शेप के नेल्स को सबसे ज्यादा बौलीवुड अभिनेत्रियां रखती नजर आईं. लेकिन अब एकबार फिर से ट्रेंड में नया बदलाव आया है. इस बार नेल्स के शेप को नेचुरल रखने का ट्रेंड चलन में है. इसके लिए आप अपने नेल्स को प्राकृतिक शेप के अनुसार ही फाइलर से फाइल कर सकती हैं.

नाखूनों की लंबाई

फैशन के इस दौर में लड़किया अब नाखूनों की लंबाई को फिंगर टिप्स से थोड़ी ज्यादा रखने लगी हैं. आप इन्हें थोड़ा लंबा भी रख सकती हैं, लेकिन ऐसे में आपको नेल पालिश का विशेष ध्यान रखना जरूरी हैं.

नाखूनों की देखभाल कैसे करें

अपने नाखूनों पर नियमित रूप से नेल आयल या क्यूटिकल आयल से मसाज करें. अगर ये आयल आसानी से न मिलें तो आप पेट्रोलियम जेली या कोको बटर का भी प्रयोग कर सकती हैं .

हर रात अपने नाखूनों को गुनगुने आलिव आयल में भिगो कर हल्की मसाज करें. इससे आपके नाखून स्वस्थ रहेंगे.

नियमित रूप से थोड़ी-सी नरिशिंग क्रीम नाखूनों के बेस पर लगाकर गोल-गोल मोशन में हल्के हाथों से मसाज करें.

जरूरत से ज्यादा मैनीक्योर करने से बचें.

मैनीक्योर के दौरान अपने हाथों को सुखाने के बाद ही हल्के हाथों से क्यूटिकल्स को पुश करें. हाथ धोने के बाद अच्छा मायस्चराइजर लगाना न भूलें.

नेल पालिश के कलर्स

फैशन से इंस्पायर्ड यह सीजन इस बार नेल पालिश के ब्राइट कलर्स की ओर इशारा कर रहे हैं. इस सीजन में डार्क प्लम और इंकी रेड शेड्स चलन में हैं.

मैचिंग नेल पेंट्स

ग्रे और चारकोल के शेड्स के अलावा डार्क पर्पल्स, नेवी ब्ल्यूज, डार्क ब्राउन्स, डार्क आरेंज, कापर, लैवेंडर और वाइन के शेड्स इस समय बेहद पापुलर है. इस सीजन में स्वस्थ राउंड शेप्ड नेल्स पर डार्क शेड की नेल पालिश आपको ज्यादा ट्रेंडी और आकर्षक लुक देंगी. इसके अलावा गोल्ड और सिल्वर के शेड्स भी आपको अक नया लुक देती है.

अगर आपको लगता है कि ये शेड आपके स्किन टोन को ज्यादा सूट नहीं कर रहे हैं, तो आप ग्लिटरी नेल पालिश का भी चुनाव कर सकती हैं.

अगर आप अपने स्टाइल के साथ एक्सपेरिमेंट करने के मूड में नहीं हैं तो क्लासिक रेड शेप रिपीट कर सकती हैं. रेड के शेड्स हर बार की तरह इन सर्दियों में भी फेवरेट रहेंगे.

काला अतीत: क्या देवेन का पूरा हुआ बदला

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वजन घटाने के लिए लाइफस्टाइल चेंज कैसे करुं?

सवाल-

मैं घरेलू महिला हूं, मेरा वजन काफी बढ़ गया है. मैं थोड़ा सा काम करने में ही काफी थक जाती हूं. मैं अपने खानपान में क्या बदलाव लाऊं कि मेरा वजन भी कम हो जाए और थकान से निढाल भी न रहूं?

जवाब-

आप अपने खानपान पर नियंत्रण रख कर और ऐक्सरसाइज कर के अपना वजन कम कर सकती हैं और थकान से भी छुटकारा पा सकती हैं. आप को रोजाना 1 घंटा तेज चलना चाहिए या ऐक्सरसाइज करना चाहिए. दिन में कम से कम

5 बार मिनी मील खाएं. नाश्ता हैवी करें, लंच और डिनर हलका लें. खाने के बीच में थोड़ा सलाद और फल खाएं. चीनी, आलू, नमकीन बिस्कुट का सेवन न करें. नाश्ते में डबल टोंड मिल्क, कौर्नफ्लैक्स या ओट्स आदि ले सकती हैं. व्हाइट ब्रैड के बजाय मल्टी ग्रेन ब्रैड खाएं. अब तो मल्टी ग्रेन आटा भी मिलने लगा है. सामान्य आटे के बजाय इसे प्राथमिकता दें.

आप को कुछ रूटीन टैस्ट जैसे थायराइड फंक्शन, ब्लड शुगर, विटामिन डी, विटामिन बी12 आदि कराने चाहिए.

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जब थायराइड ग्रंथि में थायराक्सिन हार्मोन कम बनने लगता है, तब उसे हाइपोथाइरॉयडिज्‍म कहते हैं. ऐसा होने पर शरीर का मेटाबॉलिज्‍म धीमा पड़ने लगता है और आप अपना वजन नियंत्रित करने में असमर्थ हो जाते हैं.

इस बीमारी से अक्‍सर सबसे ज्‍यादा महिलाएं ही पीड़ित होती हैं. जो लोग हाइपोथाइरॉयडिज्‍म से पीडित हैं, उन्‍हें वजन घटाने में काफी दिक्‍कतों का सामना करना पड़ता है.

मगर डॉक्‍टरों के अनुसार अगर एक स्‍वस्‍थ दिनचर्या रखी जाए तो आप अपना बढ़ा हुआ वजन आराम से घटा लेंगी. आइये जानते हैं कुछ उपाय :

अपना पोषण सुधारिये: आप दिनभर में जो कुछ भी खाते हैं, उसके पोषण का हिसाब रखिये. आपकी डाइट में लो फैट वाली चीजें होनी चाहिये. ऐसे आहार शामिल करें जिसमें आयोडीन हो. आप, बिना वसा का मीट, वाइट फिश, जैतून तेल, नारियल तेल, साबुत अनाज और बीजों का सेवन कर सकते हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- Hypothyroidism: कैसे कम करें वजन

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz   सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

योग: नए दौर का धार्मिक कर्मकांड

अगर कोईर् यह कहे कि योग कोई धार्मिक कृत्य नहीं है, तो उस की नादानी पर या तो हंसा जा सकता है या फिर बेहिचक यह कहा जा सकता है कि वह नए दौर के पनपते धार्मिक पाखंडों के साजिशकर्ताओं में से एक है. हर साल सरकार अरबों रुपए खर्च कर के देश ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनवाती है. इसे मोदी सरकार की सफलता के बजाय इस नए नजरिए से देखा जाना मौजूं है कि यह जनता पर गैरजरूरी बोझ है. आखिरकार योग के प्रचारप्रसार और इसे सरकारी स्तर पर मनाने के लिए हमारे योगाचार्यों को अब खूब पैसा मिल रहा है, कुछ सरकार से तो कुछ अंधभक्तों से.

वजह सिर्फ इतनी है कि ‘भारत माता की जय’ बोलने के टोटके के बाद योग ऐसा धार्मिक कृत्य है जो ऊपरी तौर पर कर्मकांड से मुक्त है यानी एक ऐसा काम है जिस के एवज में आप को पंडों को सीधे कोई भुगतान नहीं करना पड़ता. सरकार बताना यही चाह रही है कि कर्मकांडों से इतर भी हिंदू धर्म है जिसे अब गैर शुद्ध दुकानदार भी बेच कर अपनी रोजीरोटी चला सकते हैं.

योग की आड़ में बिजनैस

यहां यह जानना बेहद दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पटरी उन बाबाओं से नहीं बैठती, जो पूजापाठ, यज्ञ, हवन वगैरह को पूर्णकालिक रोजगार या उद्योग बना चुके हैं, बल्कि उन की पटरी उस किस्म के बाबाओं से बैठती है, जो धर्म के कारोबार में नएनए आइडिए लाते हैं, वे भी ऐसे कि ग्राहक हिंदुत्व से मुंह न मोड़े. इन में रामदेव भी शामिल हैं जिन का प्रचार 2014 में मोदी के खूब काम आया और अब पतंजलि के उद्योग में पनप रहा है.

खुशियां बेचने वाले ‘आर्ट औफ लिविंग’ के प्रणेता श्रीश्री रविशंकर और योग की आड़ में अब हेयर रिमूवर छोड़ कर सबकुछ बेचने बाले योग गुरु के खिताब से ख्वाहमख्वाह नवाज दिए गए बाबा रामदेव बेवजह मोदी की पसंद नहीं हैं, जो गैरहिंदुओं से भी सूर्य पूजा करवाने और ओम भी कहलवाने की कूबत रखते हैं. विश्वभर में योग का प्रचार किया गया जबकि जो व्यायाम योग के नाम किए जाते हैं उन का तो पुराणों में जिक्र ही नहीं है.

धर्म के माने संकुचित क्यों

बात सही है कि धर्म के माने इतने संकुचित भी नहीं होने चाहिए कि वे अगरबत्ती के धुएं और 5-10 रुपए की भगवान की तसवीर में गुंथ कर रहे जाएं. धर्म की व्यापकता दिखाने के लिए सरकार योग के रैपर को भी एक प्रोडक्ट की तरह ले आई है, जिस का बाकायदा पिछले सालों से शुद्धिकारण किया जा रहा है और उम्मीद की जानी चाहिए कि योग पैसे वाले होते जा रहे अमीर हिंदुओं में इफरात से बिकेगा.

अभी करो योग रहो निरोग का दावा ठीक एक चमत्कार के रूप में किया जा रहा है जैसे कभी यह कहा जाता था कि हनुमान का नाम लेने भर से प्रेतात्माएं नजदीक नहीं फटकतीं. इस पर अंधविश्वासी लोगों ने सहज ही भूतप्रेतों के वजूद पर भरोसा कर लिया था. आज भी ये बुरी और भटकती आत्माएं गांवदेहातों के पीपल और पुराने पेड़ों पर लटकती मिल जाएंगी, जिन से बचाने का ठेका पंडितों ने दक्षिणा के एवज में ले रखा है.

धार्मिक लालसा

योग से बीमारियां दूर होती हैं इसीलिए कोविड-19 के दौरान रामदेव ने अपनी दवा जारी की. और कोई करता तो ड्रग कंट्रोलर उसे जेल में डलवा देता. अभिजात्य और शिक्षित हो चले नव हिंदुओं की धार्मिक लालसा को पकड़े मोदीजी यह दावा किए जा रहे हैं कि यह लालसा मुक्ति और मोक्ष की है जो योग से ही संभव है, स्वास्थ्य तो शुरुआती प्रलोभन भर है.

आप खुद योग करेंगे तो देरसवेर सीधे भगवान से कनैक्ट हो जाएंगे, फिर जीवन में कोई मोह या वासना नहीं रह जाएगी. आप देह से एक प्रकाशपुंज में परिवर्तित हो जाएंगे, जो कभी भी देह का धारण और त्याग इच्छा से कर सकता है यानी अतिमानव या ईश्वर बनने के लिए अब किसी को हिमालय की तरफ जाने की जरूरत नहीं रहेगी.

योगासनों को बेचने के लिए डाक्टरों और विचारकों की भी एक फौज तैयार की गई है. विदेशों में जो ईसा की मूर्ति के सामने बैठ कर अपने दुखों को दूर करने की कामना करते हैं, वे योग को भी ऐसे ही लपक रहे हैं जैसे संडे को चर्च में जाना. साधारण व्यायाम ज्यादा कारगर हैं तभी फिजियोथेरैपी और जिम चलाए जाते हैं जो शरीर विज्ञान के अनुसार चलते हैं.

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