करवा चौथ 2022: करवाचौथ- पति अनुज ने क्यों दी व्रत न रखने की सलाह?

‘‘कितनी बार समझाया है तुम्हें इन सब झमेलों से दूर रहने को? तुम्हारी समझ में नहीं आता है क्या?’’ अनुज ने गुस्से से कहा.

‘‘गुस्सा क्यों करते हो? तुम्हारी लंबी उम्र के लिए ही तो रखती हूं यह व्रत. इस में मेरा कौन सा स्वार्थ है?’’ निशा बोली.

‘‘मां भी तो रखती थीं न यह व्रत हर साल. फिर पापा की अचानक क्यों मौत हो गई थी? क्यों नहीं व्रत का प्रभाव उन्हें बचा पाया? मैं ने तो उन्हें अपना खून तक दिया था,’’ अनुज ने अपनी बात समझानी चाही.

‘‘तुम्हें तो हर वक्त झगड़ने का बहाना चाहिए. ऐसा इनसान नहीं देखा जो परंपराएं निभाना भी नहीं जानता,’’ निशा बड़बड़ाती रही.

अनुज ने निशा की आंखों में आंखें डालते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे भूखा रहने से ही मेरी उम्र बढ़ेगी, ऐसा ग्रंथों में लिखा है तो क्या सच ही है? ग्रंथों में तो न जाने क्या अनापशनाप लिखा हुआ है. सब मानोगी तो मुंह दिखाने लायक न रहोगी.’’ निशा बुरा सा मुंह बना कर बोली, ‘‘आप तो बस रहने दो. आप को तो बस मौका चाहिए मुझ पर किसी न किसी बात को ले कर उंगली उठाने का… मौका मिला नहीं तो जाएंगे शुरू सुनाने के लिए.’’

‘‘बात मौके की नहीं अंधविश्वास पर टिकी आस्था की है. ब्राह्मणों द्वारा विभिन्न प्रकार की धार्मिक रूढियों के जरीए स्त्री को ब्राह्मणवादी पित्रसत्ता के अधीन बनाए रखने की है.’’

‘‘बसबस आप तो चुप ही करो. क्यों किसी के लिए अपशब्द कहते हो. इस में ब्राह्मणों का क्या कुसुर… बचपन से सभी औरतों को यह व्रत करते हुए देख रही हूं. हमारे घर में मेरी मां भी यह व्रत करती हैं… यह तो पीढ़ी दर पीढ़ी चल रहा है.’’

अनुज अपने गुस्से को काबू करते हुए बोला, ‘‘व्रत, पूजापाठ ये सब ब्राह्मणों ने ही बनाए ताकि ज्यादा से ज्यादा आम लोगों को ईश्वर और भाग्य का भय दिखा कर अपना उल्लू सीधा कर सकें. उन्हें शारीरिक बल से कमजोर कर उन पर पूरी तरह से कंट्रोल कर के मानसिक बेडि़यां पहनाई जा सकें. तुम तो नहीं मानती थीं ये सब… क्या हो गया शादी के बाद तुम्हारी मानसिकता को? इतना पढ़ने के बाद भी इन दकियानूसी बातों पर विश्वास?’’ यह आस्था, अंधविश्वास सिर्फ इसलिए ही तो है ताकि आस्था में कैद महिलाओं को किसी भी अनहोनी का भय दिखा कर ये ब्राह्मण, ये समाज के ठेकेदार हजारों वर्षों तक इन्हीं रीतिरिवाजों के जरीए गुलाम बनाए रख सकें. यही तो कहती थीं न तुम?’’

‘‘मैं ने करवाचौथ का व्रत आप से प्रेम की वजह से रखा है… आप की लंबी आयु के लिए.’’

‘‘तुम मेरे जीवन में मेरे संग हो यही काफी है. तुम्हें अपना प्यार साबित करने की कोई जरूरत नहीं. हम हमेशा हर तकलीफ में साथ हैं. यह एक दिन का उपवास कुछ साबित नहीं करेगा. वैसे भी तुम्हारे लिए भूखा रहना सही नहीं.’’

मुझे आप से कोई बहस नहीं करनी. हम  जिस समाज में रहते हैं उस के सब कायदेकानून मानने होते हैं. आप जल में रह कर मगर से बैर करने के लिए मत कहो… कल को कोई ऐसीवैसी बात हो गई तो मैं अपनेआप को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी. आप चुपचाप घर जल्दी आ जाओ… मैं एक दिन भूखी रहने से मरने वाली नहीं हूं,’’ निशा रोंआसे स्वर में बोली.

पत्नी की जिद्द और करवाचौथ के दिन को महाभारत में बदल जाने की विकट स्थिति के बीच अनुज ने चुप हो जाना ही बेहतर समझा. तभी मां ने आवाज लगाई, ‘‘क्यों बेकार की बहस कर रहा है निशा से… औफिस जा.’’

‘‘अनुज नाराजगी से चला गया. उसे निशा से ऐसी बेवकूफी की आशा नहीं थी पर उस से भी ज्यादा गुस्सा उसे अपनी मां पर आ रहा था, जो इस बेवकूफी में निशा का साथ दे रही थीं. कम से कम उन्हें तो यह समझना चाहिए था. वे खुद 32 साल की उम्र से वैधव्य का जीवन जी रही हैं. सिर्फ 2 साल का ही तो था जब अचानक बाप का साया सिर से उठ गया.

अनुज को आज महसूस हो रहा था कि स्त्री मुक्ति पर कही, लिखी जाने वाली बातों का तब तक कोई औचित्य नहीं जब तक कि वे खुद इस आस्था और अंधविश्वास के मायाजाल से न निकलें. सही कह रहा था संचित (दोस्त) कि शुरुआत अपने घर से करो. गर एक की भी सोच बदल सको तो समझ लेना बदलाव है.

मेरे पति नौकरी करने के पीछे पड़े हैं, मैं क्या करुं?

सवाल-

मैं 30 वर्षीय विवाहिता हूं. पति की आयु 38 वर्ष है. मेरी शादी 2 वर्ष पूर्व हुई थी. मैं संतानोत्पत्ति के लिए उत्सुक हूं जबकि पति चाहते हैं कि मैं फिलहाल नौकरी करूं. पति की उम्र अधिक है, इसलिए मैं उन से कहती हूं कि पहले हम परिवार पूरा कर लेते हैं उस के बाद नौकरी कर लूंगी. पर उन्हें पता नहीं क्यों मेरी बात समझ में नहीं आ रही?

जवाब-

पति की ही नहीं आप की भी उम्र हो गई है, इसलिए आप को संतानोत्पत्ति के विषय में सोचना ही चाहिए. उम्र बढ़ने के साथ गर्भधारण करने और संतानोत्पत्ति के समय दिक्कत आती है, इसलिए पति को समझाएं.

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निर्देशक गुलजार की 1975 में आई फिल्म ‘आंधी’ ने सफलता के तमाम रिकौर्ड तोड़ डाले थे. इस फिल्म पर तब तो विवाद हुए ही थे, यदाकदा आज भी सुनने में आते हैं, क्योंकि यह दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की जिंदगी पर बनी थी. संजीव कुमार इस फिल्म में नायक और सुचित्रा सेन नायिका की भूमिका में थीं, जिन का 2014 में निधन हुआ था. ‘आंधी’ का केंद्रीय विषय हालांकि राजनीति था. लेकिन यह चली दरकते दांपत्य के सटीक चित्रण के कारण थी, जिस के हर फ्रेम में इंदिरा गांधी साफ दिखती थीं, साथ ही दिखती थीं एक प्रतिभाशाली पत्नी की महत्त्वाकांक्षाएं, जिन्हें पूरा करने के लिए वह पति को भी त्याग देती है और बेटी को भी. लेकिन उन्हें भूल नहीं पाती. पति से अलग हो कर अरसे बाद जब वह एक हिल स्टेशन पर कुछ राजनीतिक दिन गुजारने आती है, तो जिस होटल में ठहरती है, उस का मैनेजर पति निकलता है.

दोबारा पति को नजदीक पा कर अधेड़ हो चली नायिका कमजोर पड़ने लगती है. उसे समझ आता है कि असली सुख पति की बांहों, रसोई, घरगृहस्थी, आपसी नोकझोंक और बच्चों की परवरिश में है न कि कीचड़ व कालिख उछालू राजनीति में. लेकिन हर बार उसे यही एहसास होता है कि अब राजनीति की दलदल से निकलना मुश्किल है, जिसे पति नापसंद करता है. राजनीति और पति में से किसी एक को चुनने की शर्त अकसर उसे द्वंद्व में डाल देती है. ऐसे में उस का पिता उसे आगे बढ़ने के लिए उकसाता रहता है. इस कशमकश को चेहरे के हावभावों और संवादअदायगी के जरीए सुचित्रा सेन ने इतना सशक्त बना दिया था कि शायद असल किरदार भी चाह कर ऐसा न कर पाता.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- घर टूटने की वजह, महत्त्वाकांक्षी पति या पत्नी

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शादी से पहले यह प्लानिंग की क्या

बदलती सामाजिक और आर्थिक परिस्थितियों ने लोगों के जीवन को बहुत प्रभावित किया है. आधुनिकता के इस युग में ऐसी सभी सामाजिक मान्यताएं जो व्यक्ति की इच्छाओं और हितों के खिलाफ हैं, अपना औचित्य खो चुकी हैं. बदलावों की इस सूची में विवाह की प्रक्रिया को भी शामिल किया जा चुका है. जहां पहले मातापिता ही अपनी संतान के लिए हमसफर चुनते थे, वहीं अब जीवनसाथी का चुनाव युवा खुद करने लगे हैं.  प्यार के नशे में चूर युवाओं को अपने साथी के साथ के अलावा कुछ नहीं सूझता. अपने रिश्ते पर सामाजिक मुहर लगवाने के लिए शादी के बंधन में युवा बंध तो जाते हैं, लेकिन प्यार का हैंगओवर तब उतर जाता है जब पारिवारिक और आर्थिक समस्याओं से सामना होता है.

इस स्थिति में कई बार रिश्ते टूटने के कगार पर पहुंच जाते हैं.

ऐसा ही हुआ दिल्ली की दिव्या के साथ. वह अपने प्रेमी अमित को पति के रूप में पा कर बेहद खुश थी. दिव्या का परिवार आर्थिक रूप से मजबूत था, लेकिन अमित अपने घर में इकलौता कमाने वाला था. अत: मातापिता की जिम्मेदारी के साथसाथ छोटे भाई की पढ़ाईलिखाई का खर्च भी उसे ही उठाना पड़ता था. पहले से अमित के परिवार की आर्थिक स्थिति से अवगत दिव्या को उस के जिम्मेदाराना  स्वभाव ने ही आकर्षित किया था. लेकिन यह आकर्षण तब फीका पड़ने लगा जब दिव्या को ससुराल जा कर घरेलू कामकाज में खटना पड़ा. आमदनी अच्छी होने के बावजूद अमित दिव्या को नौकरचाकर की सुविधा उपलब्ध नहीं करा सकता था, क्योंकि उस की सैलरी का आधे से अधिक हिस्सा घर की ही जिम्मेदारियों को पूरा करने में खर्च हो जाता था.

दिव्या ने भी शादी से पहले अमित से इन सुविधाओं को उपलब्ध कराने की कोई बात नहीं की थी. अमित दिव्या को इसीलिए ऐडजस्टिंग स्वभाव का समझता था. लेकिन यहां गलती दिव्या की है. गलती यह नहीं कि सुविधाओं के अभाव में वह ऐडजस्ट नहीं कर पा रही, बल्कि गलती यह है कि दिव्या ने शादी से पूर्व अपनी जरूरतों का जिक्र अमित से नहीं किया जो उस की सब से बड़ी भूल थी. दिव्या की ही तरह कई लड़कियां हैं, जो अपनी उम्मीदों को अपने प्रेमी पर शादी से पहले कभी जाहिर नहीं करतीं और बाद में उम्मीद के विपरीत परिस्थितियों में उन्हें इस बात का पछतावा होता है कि आखिर अपनी इच्छाओं को पहले जाहिर कर देते तो ये दिन न देखने पड़ते.  इसलिए बहुत जरूरी है कि शादी से पहले अपनी और अपने प्रेमी की इन बातों का खयाल कर लिया जाए:

आप का प्रेमी किराए के मकान में रहता है, मगर आप अपना घर चाहती हैं, इस बात को अपने प्रेमी के आगे रखने में कोई हरज नहीं है. यदि उस की आर्थिक स्थिति उसे शादी से पहले नया घर खरीदने की मंजूरी देगी तो वह शायद ऐसा कर सकेगा वरना शादी के बाद जल्दी से जल्दी अपना घर खरीदने का प्रयास करेगा. इस के अलावा आप खुद भी अपना घर खरीदने में अपने पति की आर्थिक सहायता करने के लिए खुद को तैयार कर सकेंगी.

आजकल कामकाजी लड़कियों के पास रसोई में परिवार के लिए खाना बनाने का समय नहीं होता, लेकिन विवाह बाद रसोई के काम के अलावा घर के बाकी काम भी करने पड़ते हैं. मगर सहयोग के लिए एक नौकर हो तो बात बन जाती है. अपने प्रेमी को शादी से पहले ही इस बात का संकेत दे दें कि आप पूरा दिन रसोई में नहीं खट सकतीं और आप को बेसिक होम ऐप्लायंस और एक नौकर की आवश्यकता पड़ेगी. यदि आप के प्रेमी के घर में पहले से ये सब चीजें उपलब्ध नहीं होगीं, तो वह कोशिश करे आप की मदद के लिए कुछ सुविधाएं उपलब्ध कराने की या फिर वह आप को साफ कह दे कि घर के काम के लिए सहयोग की उम्मीद न रखें. इस से आप अपने लिए सुविधा का सामान खुद भी जुटा सकती हैं.

घर में वाहन होने के बाद भी उस के सुख से आप वंचित हैं, क्योंकि वाहन पति नहीं पति के पिता का है. जाहिर है आप का उस वाहन पर हक नहीं है. लेकिन यदि वाहन आप के लाइफस्टाइल के लिए बहुत जरूरी है, तो इस की व्यवस्था करने के लिए प्रेमी को कहें या फिर खुद प्रयास करें.

प्रेमी की दादी, बहन या भाई की जिम्मेदारी उठाना.

प्रेमी यदि संयुक्त परिवार से है तो भाभी/देवरानी आदि की समस्याएं.

नौकरी है तो ठीक वरना अपने व्यवसाय के लंबे घंटे.

कैरियर प्लानिंग पर भी चर्चा जरूरी

आज की लड़कियां शिक्षित, आत्मनिर्भर और महत्त्वाकांक्षी हैं. घर बैठ कर रोटियां बेलने के बजाय उन्हें लैपटौप पर उंगलियां दौड़ाना पसंद है. मगर शादी के बाद पति चाहता है कि वह हाउसवाइफ बन जाए. अब यहां निर्णय आप को लेना है कि पति चाहिए या कैरियर अथवा दोनों. इस के लिए आप को विवाह का निर्णय लेने के पूर्व ही बौयफ्रैंड से इन बिंदुओं पर बात कर लेनी चाहिए:  शादी के बाद भी आप अपने कैरियर के लिए उतनी ही फिक्रमंद रहना चाहती हैं जितनी अभी हैं. हो सकता है आप का बौयफ्रैंड इस के विपरीत आप को नौकरी छोड़ घर की जिम्मेदारियों को संभालने के लिए कहे. इस परिस्थिति में यदि आप अपने कैरियर से खुशीखुशी समझौता कर लेती हैं तो ठीक है वरना रिश्ते से समझौता करना ही बेहतर विकल्प होगा.

शादी के बाद प्रेमी किस शहर में शिफ्ट होने की सोच रहा है. इस बारे में प्रेमी से चर्चा करें. आपसी सहमति से ही किसी दूसरे शहर में शिफ्ट होने का निर्णय लें. कई बार शादी के बाद भी युवा अपने कैरियर से संतुष्ट नहीं होते. ऐसे में जौब छोड़ कर फिर से पढ़ने का मन बना लेते हैं. आप के साथ ऐसा न हो, इस के लिए पार्टनर से इस विषय पर भी बात कर लें.

परखें पार्टनर की नीयत

प्यार में साथी के आकर्षण में खो जाना एक आम बात है. लेकिन आकर्षण में इतना भी न खोएं कि पार्टनर की नीयत को न परख सकें. दरअसल, लड़कियां अधिक भावुक होती हैं. लड़कों की मीठीमीठी बातों में जल्दी फंस जाती हैं. लेकिन कुछ लड़कों में इस के विपरीत गुण होते हैं. वे अपना उल्लू सीधा करने के लिए लड़कियों को अपनी चिकनीचुपड़ी बातों में फंसा लेते हैं. जैसे कानपुर की सोनिया को कौशल ने फंसाया था. दोनों एक ही कालेज में पढ़ते थे. सोनिया पढ़ाई में होशियार थी. उस के घर की आर्थिक स्थिति भी मजबूत थी. कौशल इन सभी बातों को भांप चुका था. सोनिया को अपने प्यार में फंसाने का उस का मकसद केवल उस के पैसों पर जिंदगी भर मजे लूटना था. घर वालों के बहुत समझाने पर भी सोनिया नहीं मानी और कौशल से शादी कर ली. शादी के बाद पति का निकम्मापन सोनिया को खलने लगा. लेकिन अब घर वालों से भी वह कुछ नहीं कह सकती थी. पछताने के सिवा अब उस के पास और कोई चारा न था.

सोनिया जैसी स्थिति का सामना हर उस लड़की को करना पड़ सकता है, जो अपने पार्टनर की नीयत को परखे बिना शादी का फैसला ले लेती है. लेकिन सवाल यह उठता है कि साथी की नीयत को कैसे परखा जाए? चलिए हम बताते हैं:

  1. पैसों को ले कर बौयफ्रैंड का क्या बरताव है, यह भांपने की कोशिश करें. जब आप दोनों साथ घूमते हैं, तो अधिक खर्चा कौन करता है? कहीं पैसे खर्च करने में साथी आनाकानी तो नहीं करता? इन बातों को समझने की कोशिश करें.
  2. भले ही आप की सैलरी आप के बौयफ्रैंड से ज्यादा हो, लेकिन उस के आत्मसम्मान को परखें. यदि वह आप से पैसे लेने में नहीं हिचकता तो जाहिर है कि उस में आत्मसम्मान की कमी है.
  3. यह जानने की कोशिश करें कि आप का साथी शादी के वक्त आप से किनकिन विलासिता की चीजों की डिमांड करता है. जाहिर है यदि वह आप से नक्द या किसी मूल्यवान वस्तु की चाहत रखता है तो उसे आप से नहीं आप के पैसों से प्रेम है.

शादी से पूर्व फाइनैंशियल प्लानिंग

कनासा स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्चर एवं असिस्टैंट प्रोफैसर औफ फैमिली स्टडीज ऐंड ह्यूमन सर्विस की सोनया बर्ट की 4,500 कपल्स पर की गई स्टडी के परिणामस्वरूप पतिपत्नी के रिश्ते में सब से बुरा वक्त तब आता है, जब पैसों को ले कर दोनों में झगड़े होते हैं. स्टडी के मुताबिक इन झगड़ों की वजह से रिश्ता टूटने के कगार पर आ जाता है. इसलिए शादी से पूर्व ही भविष्य में आने वाली आर्थिक जरूरतों पर चर्चा कर लेनी चाहिए.

इस बाबत आर्थिक सलाहकार अरविंद सिंह सेन कहते हैं, ‘‘लव मैरिज में अकसर किसी एक पक्ष के घर वालों को रिश्ते पर आपत्ति होती है. ऐसे में शादी के बाद अपनी सभी आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिए नए जोड़े को अपनी ही आमदनी पर निर्भर होना पड़ता है. ऐसे में सब से अधिक जरूरी होती है सिर छिपाने के लिए एक छत यानी अपना घर और आपातकालीन स्थितियों से निबटने के लिए नक्द पैसा. यदि शादी से पूर्व कुछ निवेश किए गए हों तो इस से काफी मदद मिलती है. ये निवेश इस प्रकार के हो सकते हैं :

पना घर होने के सपने को पूरा करने के लिए शादी से 2-4 साल पहले ही रियल स्टेट स्मौल इन्वैस्टमैंट प्लान लिया जा सकता है. इस प्लान के तहत बिना होम लोन लिए और एकमुश्त डाउनपेमैंट की समस्या से बचने के लिए छोटीछोटी इंस्टौलमैंट्स दे कर अपना घर बुक किया जा सकता है. हां, यह प्लान लेने से पहले कुछ जरूरी बातों पर जरूर गौर कर लें:

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई गाइडलाइन को पढ़ कर ही कोई फैसला लें.

श्वसनीय बिल्डर द्वारा बनाई गई प्रौपर्टी में ही निवेश करें.

चिट फंड कंपनियों द्वारा बनाई प्रौपर्टी में निवेश करने से बचें.

ग्रुप हैल्थ इंश्योरैंस प्लान लें. यदि आप तय कर चुकी हैं कि शादी आप को अपने बौयफ्रैंड से ही करनी है तो अपने और उस के नाम पर इस प्लान को लिया जा सकता है. यह प्लान शादी के बाद सेहत से जुड़ी हर परेशानी में आप का आर्थिक मददगार बनेगा. इस प्लान के तहत छोटीछोटी बीमारियों से ले कर प्रैगनैंसी तक इस प्लान में कवर होते हैं.

अत: भावनाओं में बह कर बनाए गए रिश्ते भविष्य में आने वाली दिक्कतों का सामना करने में कमजोर साबित हो सकते हैं. प्रेम विवाह में अकसर ऐसा ही होता है. लेकिन थोड़ी सी समझदारी, प्लानिंग और साथी को परखने की कला आप की शादीशुदा जिंदगी को सफल बना सकती है.

करवा चौथ 2022: शाइनी स्किन के लिए अपनाएं बेसन

क्या आप भी दमकती त्वचा पाने के लिए बाजार के मंहगे-मंहेगे प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल करती हैं और क्या आप जानती हैं कि कुछ दिनों बाद ये सभी चीजें बेअसर हो जाती हैं व साथ ही त्वचा के लिए भी हानिकारक भी होती हैं.

तो हम आपको बता देना चाहते हैं कि आपकी किचन में एक ऐसी चीज मौजूद है, जिसके इस्तेमाल से आप स्वस्थ्य त्वचा और गोरा रंग पा सकती हैं. यहां हम बात कर रहे हैं बेसन की, जिसका इस्तेमाल शायद आपने अभी तक सिर्फ खाने की चीजों में ही किया होगा.

आइए जानते हैं कि गोरा रंग पाने के लिए बेसन का किस तरह से इस्तेमाल किया जा सकता है…

1. आप मुंहासों से छुटकारा पाने के लिए आप बेसन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसके लिए एक चम्मच शहद में दो चम्मच बेसन की मिलाएं और इस मिश्रण को आपने चेहरे पर लगाएं. 20 से 30 मिनट के बाद, जब ये सूख जाए तब अपने चेहरे को कुनकुने पानी से धो लें.

2. टैनिंग होने पर भी बेसन का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसे इस्तेमाल करने के लिए दो चम्मच बेसन में एक चम्मच दही, एक छोटा चम्मच नींबू का रस और एक चुटकी हल्दी को मिलाएं और इसे अच्छे से अपने चेहरे पर लगा लें और सूखने पर धो लें. आपको खुद ही जल्द फर्क दिखाई देगा.

3. अगर आप भी ऑयली स्किन से परेशान हैं, तो आपके लिए बेसन एक अच्छा उपाय है. इसके इस्तेमाल के लिए दो चम्मच बेसन में थोड़ा सा गुलाब जल मिलाकर पेस्ट तैयार करें और अपने चेहरे और गर्दन पर लगाकर, इसके सूखने के बाद इसे ठंडे पानी से धो लें.

4. चेहरे से अनचाहे बालों को हटाने के लिए बेसन का नुस्खा सबसे असरदार है. ऐसा करने के लिए दो चम्मच बेसन में एक छोटा चम्मच हल्दी और दही या थोड़ा सा दूध मिलाकर पेस्ट तैयार कर, इस पेस्ट को चेहरे पर स्क्रब की तरह इस्तेमाल करें या फिर इसे चेहरे पर लगाकर रखें और सूखने के बाद पानी की कुछ बूंदें लेकर इससे बालों की उल्टी दिशा में स्क्रब करें. इसके बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. आखिर में चाहें तो बर्फ के टुकड़े भी आप अपने चेहरे पर मल सकते हैं.

5. बालों पर भी बेसन का इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके लिए सबसे पहले संतरे के छिलकों का पाउडर बना लें, अब बेसन और इस पाउडर की बराबर मात्रा लेकर, एक छोटी चम्मच शहद के साथ मिलाकर पेस्ट बना लें और इसे शैम्पू की तरह इस्तेमाल करें. इससे आपके बाल चमकदार और सिल्की हो जाएंगे.

स्वयंसिद्धा- भाग 1: जब स्मिता के पैरों तले खिसकी जमीन

यूनिवर्सिटी का बड़ा हौल गणमान्य व्यक्तियों से खचाखच भर चुका था. मैडिकल काउंसिल के उच्च पदाधिकारी मंच पर पहुंच अपनी सीटें ग्रहण कर चुके थे. अपने ओहदे के अनुसार अन्य मैंबर्स भी विराजमान हो चुके थे. एक तरफ छात्रछात्राओं के अभिभावकों के बैठने के लिए बनी दीर्घा लगभग पूरी भर चुकी थी, तो दूसरी तरफ छात्र अपनी वर्षों की पढ़ाई को डिगरी के रूप में प्राप्त करने के लिए प्रतीक्षारत बैठे थे. मुख्य अतिथि के समापन भाषण के पश्चात अन्य पदाधिकारियों ने कुछ शब्द कहे, फिर मैरिट प्राप्त स्टूडैंट्स के नाम एक के बाद एक बुलाने प्रारंभ किए गए. स्मिता अभिभावकों वाली दीर्घा में बैठी उत्सुकता से अपनी बेटी पलक का नाम पुकारे जाने की प्रतीक्षा कर रही थी.

आज यह उस के जीवन का तीसरा अवसर था कनवोकेशन अटैंड करने का. पहला अवसर था अपनी एम.एससी. की डिगरी लेने का, दूसरा था अपने पति डा. आशुतोष राणा के एम.एस. की डिगरी लेने का समारोह और तीसरा आज, जिस में वह अपनी बेटी पलक को एम.बी.बी.एस. की डिगरी लेते देखेगी.

पति की याद आते ही उस का मुंह कसैला हो उठा था. लेकिन विगत की यादों को झटक कर वह वर्तमान में लौट आई. इस चिरप्रतीक्षित पल को वह भरपूर जीना चाहती थी. आखिर वह घड़ी भी आ ही गई. मंच पर अपनी बेटी पलक को गाउन पहने अपनी डिगरी ग्रहण करते देख स्मिता की आंखें खुशी से भर आईं. बेटी का सम्मान उसे अपना सम्मान लग रहा था. उस के जीवन की डाक्टर बनने की अधूरी इच्छा आज उस की बेटी के माध्यम से पूरी हो सकी थी. सच ही तो है, इंसान जो सपने अपने जीवन में पूरे न कर सका हो, उन्हें अपने बच्चों के माध्यम से साकार करने की चेष्टा करता है.

समारोह समाप्त होने के बाद हौल से बाहर आ कर पलक अपने जानने वालों के साथ कुछ आवश्यक बातचीत करने व कुछ अन्य कामों की वजह से रुक गई और स्मिता घर लौट आई.

घर आ कर भी स्मिता का मन वहीं भटकता रहा. आज इतने स्टूडैंट्स के बीच में स्वयं को पा कर उसे अपने कालेज के दिन याद आने लगे थे. एम.एससी. के इम्तिहान खत्म होने के पश्चात होस्टल से जाते समय सब लड़कियां एकदूसरे के पते ले कर व भविष्य में मिलने का वादा कर अपनेअपने घर लौट गई थीं. स्मिता भी आगे रसायनशास्त्र में डाक्टरेट करने का सपना संजोए घर लौट आई थी. उस ने पीएच.डी. के लिए रजिस्ट्रेशन कराने की कोशिश भी की किंतु किसी कारणवश बात नहीं बन सकी. उन्हीं दिनों शहर के एक डिगरी कालेज में जब उसे लैक्चररशिप मिल गई तो उसे कुछ संतोष मिला. पर साथ ही शोधकार्य करने के लिए भी वह प्रयासरत रही.

पर शायद वक्त को तो कुछ और ही मंजूर था. उस का विवाह डा. आशुतोष राणा के साथ कुछ ही दिनों बाद तय हो गया व शीघ्र ही विवाह भी हो गया. विवाह के पश्चात एक नया शहर, नया माहौल व नई चुनौतियां थीं. किसी भी निर्णय में अब केवल उस की इच्छा ही नहीं, पति की सहमति भी आवश्यक हो गई थी.

उस के नौकरी करने या शोधकार्य पूरा करने की इच्छा को उन्होंने तुरंत नकारा तो नहीं, परंतु अपनी सहमति इनकार के आवरण में ही लपेट कर देते हुए कहा, ‘‘तुम्हें जरूरत क्या है नौकरी करने की. मैं इतना तो कमा ही लेता हूं कि कोई अभाव न महसूस हो. केवल पैसे कमाने के लिए नौकरी करना किसी जरूरतमंद की जीविका पर कुठाराघात करना होगा. मेरी एम.एस. की पढ़ाई चल ही रही है. ऐसे में तुम भी अपनी पढ़ाई में लग गईं तो घर कौन संभालेगा? आगे तुम खुद समझदार हो, जैसा चाहो करो.’’

उस ने समझदारी दिखाते हुए इस विषय को फिर कभी नहीं उठाया. इतनी पढ़ाई कर के खाली बैठना उसे बेहद नागवार लगता था, लेकिन परिवार की खुशी उस के सपनों से कहीं बड़ी थी. शैक्षिक योग्यता का अर्थ केवल पढ़ाई कर के डिगरी प्राप्त करना ही नहीं वरन एक मानसिक स्तर का निर्माण भी होता है, जो जीवन को बेहतर ढंग से जीने व समझने का नजरिया देता है. वक्त का खालीपन तो इंसान अन्य विकल्पों से भी भर सकता है.

उसे अकसर अपनी दादी की कही बातें याद आ जातीं, ‘बिटिया, चाहे एम.एससी. करो या डाक्टरी… लड़की हो तो आगे घरगृहस्थी तुम्हीं को चलानी होगी. थोड़े घर के कामकाज भी सीखो.’

और वह उन्हें चिढ़ाती हंसती हुई कहती थी, ‘न दादी… मैं तो डाक्टर बनूंगी और नौकर रख लूंगी. सब काम हो जाया करेंगे.’

‘अरी, नौकरों से भी तो काम तभी कराएगी जब तुझे खुद कुछ आएगा. वरना जैसा कच्चापक्का खिला देगा, खाती रहना.’

अतीत की यादें कभीकभी कितनी सुखद लगती हैं. बड़ेबुजुर्गों की बातों में भी कितना गूढ़ जीवनसार होता है. जिंदगी फिर पति की पसंदनापसंद, चूल्हेचौके व घरगृहस्थी तक ही सिमट कर रह गई थी. डेढ़ साल में ही आशुतोष ने अपनी एम.एस. की पढ़ाई पूरी कर ली व स्मिता की गोद में पलक आ गई थी. फिर तो जैसे उस का वक्त पंख लगा कर उड़ने लगा. हर दिन एक नई खुशी ले कर आता. आज पलक ने मां बोला, आज घुटनों के बल चली, आज पहला कदम रखा. दिन, महीने, साल पलक की किलकारियों के साथ ही बढ़ते रहे. उन्हीं दिनों आशुतोष को सरकार की तरफ से विभागीय स्पैशल ट्रेनिंग लेने 5-6 डाक्टरों के एक ग्रुप के साथ, साल भर के लिए यूएसए जाने का अवसर मिला. परंतु वहां अपने साथ परिवार नहीं ले जा सकते थे, इसलिए पहले तो आशुतोष ने जाने से मना करना चाहा पर स्मिता द्वारा प्रोत्साहित करने पर जाने को सहमत हो गया. पत्नी व बेटी को अपने मातापिता के पास पहुंचा कर व अन्य जरूरी व्यवस्थाएं कर के वह अपने ग्रुप के साथ विदेश चला गया.

स्मिता की ससुराल में 2-3 वर्ष में रिटायर होने वाले बैंक में कार्यरत ससुर दीनानाथ व सास उमा देवी के अतिरिक्त किशोरवय का देवर अभिजीत भी था. अभी तक तो वह पति के साथ तीजत्योहार पर 2-4 दिन के लिए ही पहुंचती थी, अब सब के साथ रहने का अवसर मिलने पर उसे सब को करीब से जानने का मौका मिला था. परस्पर सौहार्दपूर्ण व अपनेपन भरे व्यवहार से शीघ्र ही सब लोग घनिष्ठ हो गए थे. पिता समान ससुर का मधुर व्यवहार, सरल स्वभाव की सास व विनोदप्रिय देवर के सान्निध्य में स्मिता अपनी हर चिंता से बेपरवाह नन्ही सी बेटी पलक के साथ आशुतोष का इंतजार करती आराम से रह रही थी.

कभी स्मिता आशुतोष की याद में उदास होती तो अभिजीत तुरंत भांप कर अपने चुटकुलों व हंसीमजाक से उसे हंसा देता.

मासूम पलक को तो सब हाथोंहाथ लिए रहते थे. स्मिता ने वहां आ कर घर का सारा काम स्वयं संभाल लिया था.

कभीकभी सास हंसती हुई कह भी देतीं, ‘‘बेटी स्मिता, तुम तो मेरी आदत ही खराब कर दोगी. कल को आशु आ जाएगा तो तुम चली जाओगी, तब कौन करेगा?’’

स्मिता हंसते हुए कहती, ‘‘मैं कहां जा रही हूं मां… मैं तो उन से भी कह दूंगी यहीं पर अपनी प्राइवेट प्रैक्टिस शुरू करें, वह खूब चलेगी. नहीं तो आप सब को भी वहीं बुला लूंगी.’’

भविष्य के गर्भ में क्या छिपा है, कौन जान सका है? क्रूर वक्त की हंसी तब कहां सुन सकी थी वह.

कुछ ही दिनों बाद अभिजीत की वार्षिक परीक्षाएं आरंभ होने वाली थीं. स्मिता उस का पूरा ध्यान रखती थी. देर रात उठ कर उसे चाय या कौफी बना कर देती तो कभी कोई कठिन प्रश्न हल कराती. पढ़तेपढ़ते उस के सो जाने पर उस की किताब बंद कर के रखती. अभिजीत ने स्मिता को हर वक्त, हर रूप में अपना मददगार पाया. इन 10-15 दिनों में जितना वह अपनी भाभी को समझता गया, उस के मन में उन के प्रति इज्जत उतनी ही बढ़ती गई. सब से ज्यादा राहत उसे स्मिता के पढ़ाने से मिली. उस का पढ़ाया हुआ अभिजीत को तुरंत समझ में आ जाता था. अब यदाकदा उस के अन्य मित्र भी अपनी प्रौब्लम्स पूछने आने लगे थे.

इंटर का रिजल्ट निकला तो अभिजीत ने पूरे कालेज में टौप किया था. अपनी सफलता का पूरा श्रेय स्मिता को देते हुए उस ने भाभी से कहा, ‘‘भाभी, आज आप के कारण ही मैं इतने अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हो सका हूं. मुझे तो रसायनशास्त्र मुश्किल विषय लगता था, पर आप के बताए टिप्स व पढ़ाने के ढंग ने मुझे इसी में सब से ज्यादा नंबर दिलाए हैं.’’

इतना मानसम्मान पा कर स्मिता अभिभूत हो उठी थी, ‘‘मेहनत तो आप ने ही की है… हम तो बस आप के साथ ही खड़े थे. सब कुछ बड़ों के मार्गदर्शन से ही संभव हुआ है. अब आप मांबाबूजी से भी मिल आइए. कंपीटिशन में भी अब इसी तरह अव्वल आना है, तभी बात बनेगी.’’

‘‘बस, अभी आया भाभी. वैसे आप को तो कहीं टीचर होना चाहिए था. मेरे कालेज के कई स्टूडैंट्स आप से ट्यूशन लेना चाहते हैं,’’ बाहर जाता हुआ अभिजीत तो कह कर चला गया पर स्मिता की दुखती रग छेड़ गया.

स्मिता ने तो इस विषय में फिर कोई बात नहीं की पर अभिजीत चुप नहीं बैठा. उस ने घर में यह बात मांबाबूजी की उपस्थिति में फिर उठाई तो स्मिता को यह जान कर सुखद आश्चर्य हुआ कि कोई भी उस के नौकरी करने के विरुद्ध नहीं था. किंतु वह तो जानती थी कि आशुतोष को यह पसंद नहीं आएगा. उसे लौटने में अब 3-4 महीने ही शेष थे, फिर कौन सा उसे हमेशा यहीं रहना था. आखिर पति की पोस्टिंग की जगह ही तो उसे भी जाना होगा. फिर व्यर्थ में ऐसा कार्य क्यों करे, जिस से आगे विवाद की स्थिति उत्पन्न हो.

लेकिन सब के बहुत कहने पर, उस ने सोचविचार कर 2-3 स्टूडैंट्स को घर पर ही पढ़ाने के लिए बुलाना आरंभ कर दिया, जिस से उस का खाली समय तो अच्छी तरह कटता ही था, साथ ही अतिरिक्त आय से अधिक अपनी विद्या के सदुपयोग का दिली सुकून मिलता था. देखते ही देखते आने वाले विद्यार्थी 2-3 से बढ़तेबढ़ते 10-12 हो गए. उस ने कुछ ही महीनों में इतनी आय अर्जित कर ली कि अपनी सास के जन्मदिन पर उसी से एअरकंडीशनर खरीद कर उन्हें बतौर तोहफा दिया, तो सब की आंखों में उस के लिए प्रशंसा के भाव भर उठे थे.

Laal Singh Chaddha के इस एक्टर का हुआ निधन, पढ़ें खबर

बीते दिनों टीवी और फिल्म इंडस्ट्री से बुरी खबरे सामने आ रही हैं. जहां कॉमेडियन राजू श्रीवास्तव का हाल ही में निधन हुआ था तो वहीं अब लाल सिंह चड्ढा में नजर आने वाले जाने माने एक्टर अरुण बाली  (Arun Bali)का निधन हो गया है. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

इस बीमारी के कारण हुआ निधन

 

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एक्टर अरुण बाली लंबी बीमारी से पीड़ित थे, जिसके बाद 7 अक्टूबर यानी आज मुंबई में उनका 79 साल की उम्र में निधन हो गया है. दरअसल, खबरों की मानें तो एक्टर पिछले कुछ समय से न्यूरोमस्कुलर बीमारी से जूझ रहे थे, जिसमें नसें और मसल्स के बीच कम्युनिकेशन फेल हो जाता है. वहीं कुछ दिन पहले ही मुंबई के हीरानंदानी हॉस्पिटल में उन्हें एडमिट करवाया गया था, जिसके बाद उनका निधन हो गया.

लाल सिंह चड्ढा में आए थे नजर

 

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दिग्गज अभिनेताओं की गिनती में आने वाले एक्टर अरुण बाली ने करीब 48 साल की उम्र में एक्टिंग डेब्यू किया, जिसके चलते वह बौलीवुड के कई बड़े एक्टर्स के साथ स्क्रीन शेयर करते हुए नजर आ चुके हैं. वहीं हाल ही में जहां एक्टर की आखिरी फिल्म ‘गुडबाय’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है तो वहीं कुछ दिनों पहले आमिर खान की ‘लाल सिंह चड्ढा’ में भी नजर आ चुके हैं, जिसमें उनकी एक्टिंग की काफी तारीफ हुई थी.

बता दें, बीते कुछ साल टीवी और बौलीवुड इंडस्ट्री के लिए काफी मुश्किल भरे रहे हैं क्योंकि इन सालों में कई दिग्गज एक्टर्स ने दुनिया को अलविदा कहा है. वहीं इनमें एक्टर ऋषि कपूर, इरफान खान जैसे एक्टर्स का नाम भी शामिल हैं. वहीं टीवी इंडस्ट्री में एक्टर सिद्धार्थ शुक्ला जैसे सितारों के जानें से फैंस काफी दुखी हैं.

कागज का रिश्ता- भाग 1: क्या परिवार का शक दूर हुआ

‘‘यह लो भाभी, तुम्हारा पत्र,’’ राकेश ने मुसकराते हुए गुलाबी रंग के पत्र को विभा की तरफ बढ़ाते हुए कहा.

सर्दियों की गुनगुनी धूप में बाहर आंगन में बैठी विमला देवी ने बहू के हाथों में पत्र देखा तो बोलीं, ‘‘किस का पत्र है?’’

‘‘मेरे एक मित्र का पत्र है, मांजी,’’ कहते हुए विभा पत्र ले कर अपने कमरे में दाखिल हो गई तो राकेश अपनी मां के पास पड़ी कुरसी पर आ बैठा.

कालेज में पढ़ने वाला नौजवान हर बात पर गौर करने लगा था. साधारण सी घटना को भी राकेश संदेह की नजर से देखनेपरखने लगा था. यों तो विभा के पत्र अकसर आते रहते थे, पर उस दिन जिस महकमुसकान के साथ उस ने वह पत्र देवर के हाथ से लिया था, उसे देख कर राकेश की निगाह में संदेह का बादल उमड़ आया.

‘‘राकेश बेटा, उमा की कोई चिट्ठी नहीं आती. लड़की की राजीखुशी का तो पता करना ही चाहिए,’’ विमला देवी अपनी लड़की के लिए चिंतित हो उठी थीं.

‘‘मां, उमा को भी तो यहां से कोई पत्र नहीं लिखता. वह बेचारी कब तक पत्र डालती रहे?’’ राकेश ने भाभी के कमरे की तरफ देखते हुए कहा. उधर से आती किसी गजल के मधुर स्वर ने राकेश की बात को वहीं तक सीमित कर दिया.

‘‘पर बहू तो अकसर डाकखाने जाती है,’’ विमला देवी ने कहा.

‘‘आप की बहू अपने मित्रों को पत्र डालने जाती हैं मां, अपनी ननद को नहीं. जिन्हें यह पत्र डालने जाती हैं उन की लगातार चिट्ठियां आती रहती हैं. अब देखो, इस पिछले पंद्रह दिनों में उन के पास यह दूसरा गुलाबी लिफाफा आया है,’’ राकेश ने तनिक गंभीरता से कहा.

‘‘बहू के इन मित्रों के बारे में मुकेश को तो पता होगा,’’ इस बार विमला देवी भी सशंकित हो उठी थीं. यों उन्हें अपनी बहू से कोई शिकायत नहीं थी. वह सुंदर, सुघड़ और मेहनती थी. नएनए पकवान बनाने और सब को आग्रह से खिलाने पर ही वह संतोष मानती थी. सब के सुखदुख में तो वह ऐसे घुलमिल जाती जैसे वे उस के अपने ही सुखदुख हों. घर के सदस्यों की रुचि का वह पूरा ध्यान रखती.

इन पत्रों के सिलसिले ने विमला देवी के माथे पर अनायास ही बल डाल दिए. उन्होंने राकेश से पूछा, ‘‘पत्र कहां से आया है?’’

राकेश कंधे उचका कर बोला, ‘‘मुझे क्या मालूम? भाभी के किसी ‘पैन फ्रैंड’ का पत्र है.’’

‘‘ऐं, यह ‘पैन फ्रैंड’ क्या चीज होती है?’’ विमला देवी ने खोजी निगाहों से बेटे की तरफ देखा.

‘‘मां, पैन फ्रैंड यानी कि पत्र मित्र,’’ राकेश ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छाअच्छा, जब मुकेश छोटा था तब वह भी बाल पत्रिकाओं से बच्चों के पते ढूंढ़ढूंढ़ कर पत्र मित्र बनाया करता था और उन्हें पत्र भेजा करता था,’’ विमला देवी ने याद करते हुए कहा.

‘‘बचपन के औपचारिक पत्र मित्र समय के साथसाथ छूटते चले जाते हैं. भाभी की तरह उन के लगातार पत्र नहीं आते,’’ कहते हुए राकेश ने बाहर की राह ली और विमला देवी अकेली आंगन में बैठी रह गईं.

सर्दियों के गुनगुने दिन धूप ढलते ही बीत जाते हैं. विभा ने जब तक चायनाश्ते के बरतन समेटे, सांझ ढल चुकी थी. वह फिर रात का खाना बनाने में व्यस्त हो गई. मुकेश को बढि़या खाना खाने का शौक भी था और वह दफ्तर से लौट कर जल्दी ही रात का खाना खाने का आदी भी था.

दफ्तर से लौटते ही मुकेश ने विभा को बुला कर कहा, ‘‘सुनो, आज दफ्तर में तुम्हारे भैयाभाभी का फोन आया था. वे लोग परसों अहमदाबाद लौट रहे हैं, कल उन्होंने तुम्हें बुलाया है.’’

‘‘अच्छा,’’ विभा ने मुकेश के हाथ से कोट ले कर अलमारी में टांगते हुए कहा.

अगले दिन सुबह मुकेश को दफ्तर भेज कर विभा अपने भैयाभाभी से मिलने तिलक नगर चली गई. वे दक्षिण भारत घूम कर लौटे थे और घर के सदस्यों के लिए तरहतरह के उपहार लाए थे. विभा अपने लिए लाई गई मैसूर जार्जेट की साड़ी देख कर खिल उठी थी.

विभा की मां को अचानक कुछ याद आया. वे अपनी मेज पर रखी चिट्ठियों में से एक कार्ड निकाल कर विभा को देते हुए बोलीं, ‘‘यह तेरे नाम का एक कार्ड आया था.’’

‘‘किस का कार्ड है?’’ विभा की भाभी शीला ने कार्ड की तरफ देखते हुए पूछा.

‘‘मेरे एक मित्र का कार्ड है, भाभी. नव वर्ष, दीवाली, होली, जन्मदिन आदि पर हम लोग कार्ड भेज कर एकदूसरे को बधाई देते हैं,’’ विभा ने कार्ड पढ़ते हुए कहा.

‘‘कभी मुलाकात भी होती है इन मित्रों से?’’ शीला भाभी ने तनिक सोचते हुए कहा.

‘‘कभी आमनेसामने तो मुलाकात नहीं हुई, न ऐसी जरूरत ही महसूस हुई,’’ विभा ने सहज भाव से कार्ड देखते हुए उत्तर दिया.

‘‘तुम्हारे पास ससुराल में भी ऐसे बधाई कार्ड पहुंचते हैं?’’ शीला ने अगला प्रश्न किया.

‘‘हांहां, वहां भी मेरे कार्ड आते हैं,’’ विभा ने तनिक उत्साह से बताया.

‘‘क्या मुकेश भाई भी तुम्हारे इन पत्र मित्रों के बधाई कार्ड देखते हैं?’’ इस बार शीला भाभी ने सीधा सवाल किया.

‘‘क्यों? ऐसी क्या गलत बात है इन बधाई कार्डों में?’’ प्रत्युत्तर में विभा का स्वर भी बदल गया था.

‘‘अब तुम विवाहिता हो विभा और विवाहित जीवन में ये बातें कोई महत्त्व नहीं रखतीं. मैं मानती हूं कि तुम्हारा तनमन निर्मल है, लेकिन पतिपत्नी का रिश्ता बहुत नाजुक होता है. अगर इस रिश्ते में एक बार शक का बीज पनप

गया तो सारा जीवन अपनी सफाई देते हुए ही नष्ट हो जाता है. इसलिए बेहतर यही होगा कि तुम यह पत्र मित्रता अब यहीं खत्म कर दो,’’ शीला ने समझाते हुए कहा.

‘‘भाभी, तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम लोग यह बधाई कार्ड सिर्फ एक दोस्त की हैसियत से भेजते हैं. इतनी साधारण सी बात मुकेश और मेरे बीच में शक का कारण बन सकती है, मैं ऐसा नहीं मानती,’’ विभा तुनक कर बोली.

शाम ढल रही थी और विभा को घर लौटना था, इसलिए चर्चा वहीं खत्म हो गई. विभा अपना उपहार ले कर खुशीखुशी ससुराल लौट आई.

लगभग पूरा महीना सर्दी की चपेट में ठंड से ठिठुरते हुए कब बीत गया, कुछ पता ही न चला. गरमी की दस्तक देती एक दोपहर में जब विभा नहा कर अपने कमरे में आई तो देखा, मुकेश का चेहरा कुछ उतरा हुआ सा है. वह मुसकरा कर अपनी साड़ी का पल्ला हवा में लहराते हुए बोली, ‘‘सुनिए.’’

विभा की आवाज सुन कर मुकेश ने उस की तरफ पलट कर देखा. विभा ने मुकेश की दी हुई गुलाबी साड़ी पहन रखी थी. उस पर गुलाबी रंग खिलता भी खूब था. कोई और दिन होता तो

मुकेश की धमनियों में आग सी दौड़ने लगती, पर उस समय वह बिलकुल खामोश था.

GHKKPM: औनस्क्रीन तकरार तो औफस्क्रीन एक-दूसरे पर प्यार लुटाती हैं सई और भवानी

सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में (Ghum Hai Kisikey Pyaar Meiin) आए दिन सुर्खियों में रहता है. जहां बीते दिनों नई एंट्री के चलते शो चर्चा में था तो वहीं अब अपने लेटेस्ट ट्रैक के चलते ट्रोलर्स के निशाने पर हैं. हालांकि सीरियल की कहानी की बात करें तो इन दिनों सई और भवानी की तकरार बढ़ती जा रही है, जिसके चलते वह पाखी को भड़काती नजर आ रही है. लेकिन आज हम सीरियल के ट्रैक की नहीं बल्कि सई और भवानी की औफस्क्रीन दोस्ती (Sai And Bhavani Bonding) की बात करेंगे. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर…

औफस्क्रीन ऐसा है सई और भवानी का रिश्ता

 

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सीरियल गुम हैं किसी के प्यार में की कहानी में सई और भवानी की तकरार शुरुआत से ही देखने को मिली है. जहां भवानी को सई का बेबाक अंदाज परेशान करता है तो वहीं भवानी की पुरानी सोच को सई बदलने की कोशिश करती नजर आती है. हालांकि औनस्क्रीन भले ही सई और भवानी का रिश्ता कैसा भी हो लेकिन औफस्क्रीन एक्ट्रेस आयशा सिंह (Ayesha Singh) और किशोरी शहाने विज (Kishori Shahane Vij) का रिश्ता बेहद खास है. दोनों सेट पर एक-दूसरे की बेस्ट फ्रैंड में से एक हैं.

 

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सोशलमीडिया पर छाई रहती हैं एक्ट्रेसेस

 

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सोशलमीडिया पर एक्टिव रहने वाली एक्ट्रेस किशोरी शहाने सेट से जुड़ी कई अपडेट फैंस के साथ शेयर करती रहती है. वहीं सई यानी एक्ट्रेस आयशा सिंह के साथ वह अपनी डांस और मीम्स की वीडियो फैंस को दिखाती नजर आती हैं. एक्ट्रेस आयशा सिंह और किशोरी शहाने की वीडियो और फोटोज फैंस को काफी पसंद आती हैं, जिसके चलते वह सोशलमीडिया पर वायरल होती रहती हैं.

 

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ट्रोलिंग का शिकार हुए मेकर्स

सीरियल के लेटेस्ट ट्रैक की बात करें तो इन दिनों नागपुर में शो का नया ट्रैक चल रहा है. हालांकि हाल ही के एपिसोड में समुद्र का सीन देखने को मिला था, जिस पर मेकर्स को ट्रोल करते हुए लोगों का कहना है कि नागपुर में समुद्र कहां से आया. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब शो के मेकर्स ट्रोलिंग का शिकार हुए हैं.

रिश्ते: क्यूं हर बार टूट जाती थी स्नेहा की शादी- भाग 3

स्नेहा को लगा कि जब हरकोई अपनी पसंद का खयाल रख रहा है तो उसे ?ि?ाक क्यों? अगली सुबह बड़ी हिम्मत करके वह अपनी मम्मी के सामने खड़ी हो गई और बोली, ‘‘मम्मी, मु?ो आपसे कुछ कहना है, शायद आपको अटपटा लगे सुनने में… लेकिन मैंने अपना जीवनसाथी चुन लिया है…’’

यह सुनकर मम्मी इतनी चौंकीं कि उनके हाथ से कलछी गिर गई. ‘‘मम्मी स्वनिल मेरी कंपनी में मैनेजर हैं और उन्होंने मेरे बारे में अपनी मां से बात कर ली है, अगले हफ्ते उनकी मां हमारे घर आ रही हैं, आप से मेरा हाथ मांगने,’’ स्नेहा ने छूटते ही सारी बात एक ही सांस में कह डाली. ‘‘ठीक है मैं आज ही तुम्हारे पापा से बात करूंगी…’’ मम्मी ने उसे दिलासा देते हुए कहा.

अगला दिन हमेशा से ज्यादा खूबसूरत था. पापा ने मु?ासे स्वनिल के बारे में बात की, उसकी सारी जानकारी ली. मम्मी ने भी प्यार से नाश्ता कराया. स्नेहा आज बादलों पर सवार होकर ऑफिस पहुंची. तभी उसे स्वनिल का एसएमएस मिला. वह दो-तीन दिन बाद आएगा. इस तरह पांच दिन गुजर गए, स्नेहा के मन में अब बुरे खयाल आने लगे. जब स्नेहा स्वनिल को फोन करती तो वह बड़े रूखेपन से पेश आता और कहता कि अभी वह व्यस्त है. उस दिन जब स्नेहा ऑफिस पहुंची तो उसे स्वनिल अपने केबिन में नजर आया. मारे खुशी के वह उसकी तरफ गई पर बिजी होने का बहाना बनाकर स्वनिल फोन उठा कर किसी और से बात करने लगा जैसे स्नेहा के लिए यह वहां से जाने का इशारा हो. किसी अनजाने डर से स्नेहा का मन कांप उठा, फिर भी उसने अपने मन को सम?ाया कि हो सकता है वाकई स्वनिल बिजी हो आखिर मैनेजर है वह कंपनी का. वह भी काम में अपना ध्यान लगाने की कोशिश करने लगी. शाम को 5 बजे जब वह स्वनिल के केबिन में गई तो पता चला कि वह तो कब का जा चुका है. स्नेहा ने जल्दी से स्वनिल को फोन मिलाया तो उसका मोबाइल स्विच्ड ऑफ आने लगा. आखिर क्या बात हो सकती है जो स्वनिल मु?ो ऐसे टाल रहा है… सोचकर स्नेहा बेचैन होने लगी. अगले दो दिनों तक स्वनिल यों ही उसके साथ लुकाछिपी खेलता रहा. एक दिन तंग आकर स्नेहा जब स्वनिल के घर पहुंची, तो दरवाजे पर ताला ?ाल रहा था. वह वहीं स्वनिल का इंतजार करती रही. जब 8 बजे के आसपास स्वनिल घर लौटा तो स्नेहा को वहां देखकर दंग रह गया. ताला खोलकर स्वनिल जैसे अंदर गया पीछे-पीछे स्नेहा भी आ गई. बोली, ‘‘तुम्हें क्या लगा था स्वनिल कि अगर तुम टालते रहोगे तो हम मिल नहीं सकते. इतना रूखा बरताव क्यों है तुम्हारा? इस तरह क्यों कतरा रहे हो मु?ासे? अंदर आते ही स्नेहा बिफर पड़ी.

‘‘स्नेहा मैं कुछ ज्यादा नहीं कह सकता. बस यह सम?ा लो कि हमारी शादी अब नहीं हो सकती,’’ स्वनिल ने बात खत्म करते हुए कहा.

‘‘अरे, यह क्या बात हुई? शादी का फैसला तो हम दोनों का था. अब इस तरह तुम कैसे बदल सकते हो और तुम्हारी मां ने भी तो हां कहा था, फिर अब क्या मुसीबत आ गई?’’ स्नेहा गुस्से से बोली.

‘‘देखो स्नेहा मां ने अब इनकार कर दिया है और वजह तुम न ही जानो तो अच्छा है. बस इतना कह सकता हूं कि आज के बाद हम दोनों न मिलें तो बेहतर है.’’ ‘‘वजह तो तुम्हें बतानी पड़ेगी. आखिर खुशियां बड़ी मुश्किल से मेरे दरवाजे पर आई हैं. मैं उनको तुम्हारे साथ जीना चाहती हूं,’’ स्नेहा की आंखों की बेबसी स्वनिल को तड़पा रही थी. वह नहीं चाहता था कि स्नेहा वजह जाने. ‘‘ठीक है, बताता हूं, लेकिन यह भी सुन लो कि जो मैं तुम्हें बताना चाहता हूं, उससे मैं सहमत तो नहीं हूं पर मैं कुछ नहीं कर सकता. मैं जब यहां से टूर पर गया था, वहीं से मां को लेने अपने गांव चला गया था. मां तुम्हारे बारे में जानकर बहुत खुश थीं, तुम्हें देने के लिए उन्हें कुछ खरीदारी करनी थी, तो उन्होंने मु?ो 2 दिन और रुकने को कहा. जिस रात को हम निकलने वाले थे, उस दिन दोपहर की डाक से हमें एक लिफाफा मिला, जिसमें तुम्हारे बारे में काफी बकवास लिखा गया था…’’ ‘‘क्या लिखा था?’’ स्नेहा ने बड़ी हैरानी से पूछा.

‘‘उसमें लिखा था कि चिट्ठी लिखने वाला तुम्हें अच्छी तरह से जानता है, तुम्हारा चरित्र अच्छा नहीं है, इसी वजह से तुम्हारी शादी दो-तीन बार टूट चुकी है वरना 30 साल तक तुम कुंआरी क्यों रहती.’’

‘‘बस, मां ने चिट्ठी पढ़कर इस शादी से मना कर दिया. वे नहीं चाहती हैं किउनकी बहू चरित्रहीन हो. मैंने सम?ाने की बहुत कोशिश की, मगर वे मानने को तैयार नहीं हैं और मैं उन्हें इस उम्र में अकेला नहीं छोड़ सकता. तुम्हारे बिना मेरी जिंदगी मुश्किल होगी पर मु?ो मां के लिए यह सहना ही होगा, मु?ो माफ कर दो,’’ सच बताकर स्वनिल ने उसके सामने वह लिफाफा रख दिया. स्नेहा ने लिफाफा खोल कर देखा, तो उसकी आंख फटी की फटी रह गईं. उसने उस लिखावट को पहचान लिया था. आखिर कैसे भूल सकती थी उस लिखावट को, जो उसके लिए आदर्श थी, बचपन में उसमें संस्कार भरने वाले यही तो अक्षर थे. तीन बार अपनी शादी टूटने का सबब स्नेहा की सम?ा में आ गया.

भावनाओं के बवंडर में उल?ा वह अनायास बोल पड़ी, ‘‘आपने यह क्या कर दिया पापा…’’

‘‘स्नेहा क्या यह खत तुम्हारे पापा ने भेजा है?’’ स्वनिल ने हैरान होकर पूछा. स्नेहा कुछ न कह सकी. वह अपने पापा को स्वनिल की नजरों में गिराना नहीं चाहती थी, लेकिन स्वनिल अब जानने को बेचैन हो रहा था. स्नेहा ने कड़े मन से अपने अतीत की सारी बातें उसके सामने रख दीं, ‘‘मैं तो अपने हिस्से का फर्ज निभा चुकी हूं, स्वनिल. अब पापा की बारी है न? आखिर कब तक फर्ज के नाम पर मैं तनहाई के बियाबान रास्ते पर चलती रहूंगी? कब तक रोऊंगी? कब तक कमजोर रहूंगी? खोखले रिश्ते के मकड़जाल में कब तक उल?ा रहूंगी? तुम कहो तो मैं अपने पापा का घर हमेशा के लिए छोड़ दूंगी…’’

पता नहीं स्नेहा की संजीदा आवाज में कैसी कसक थी, जो स्वनिल को ?ाक?ार गई, ‘‘नहीं पगली ऐसा नहीं कहते. तुम्हारे पापा को डर है कि तुम्हारी शादी हो गई तो उनका क्या होगा, क्योंकि बेटे ने तो पहले ही पल्ला ?ाड़ लिया है. उनकी भावनाओं को मैं सम?ा सकता हूं. स्नेहा यह बातें तुम्हें पहले बतानी चाहिए थी, हम कुछ हल जरूर निकाल लेते…’’

‘‘क्या अब कुछ नहीं हो सकता है? मु?ो यों अकेला मत छोड़ कर जाओ. स्वनिल मैं तुम्हारे बिना नहीं रह पाऊंगी,’’ स्नेहा ने उसे कसकर पकड़ लिया.

‘‘हां, हम जरूर कोशिश करेंगे…’’ स्विनिल उसे सहला कर शांत करता रहा, ‘‘स्नेहा, मेरे खयाल से तुम्हारे पापा अपनी और तुम्हारी मम्मी की बची हुई जिंदगी के लिए परेशान हैं, तुम्हारी शादी से नहीं. अगर तुम्हारी शादी होती है तो उन्हें दामाद के घर पर रहना शायद पसंद न आए.’’

‘‘देखो, हम दोनों की नौकरी इसी शहर में है, तो शादी के बाद हम दोनों उम्र भर उनके साथ रह लेंगे. कभी-कभी मां भी हमारे साथ रहने के लिए आती रहेंगी. मैं तुम्हारे पापामम्मी का बेटा बन कर उनका खयाल रखूंगा, फिर तो उन्हें हमारी शादी से कोई एतराज नहीं होगा न.’’

स्वनिल की बातों से स्नेहा के मन में उम्मीद के चिराग टिमटिमा उठे, ‘‘क्या यह मुमकिन है स्वनिल?’’ ‘‘हां, लेकिन थोड़ा मुश्किल तो है, पर नामुमिकन नहीं है, मुझे अपनी मां को राजी कराना पड़ेगा और मैं तुम्हारे लिए इतना तो करूंगा ही स्नेहा.’’ ‘‘अपने रिश्ते को समेट लो स्वनिल… इससे पहले कि कुछ और बिखर जाए…’’ स्नेहा ने बड़े विश्वास से अपना सिर स्वनिल के कंधे पर रख दिया तो स्वनिल ने उसे अपनी मजबूत बांहों में कस लिया.

7 Tips: होम मेकर भी कर सकतीं हैं फाइनेंशियल प्लानिंग

ऐसी बहुत सी होम मेकर हैं, जो पूरी तरह से अपने परिवार को समर्पित होती हैं, पर फाइनेंस के मामले में वे खुद को शामिल नहीं करती हैं. लेकिन घर को चलाने की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं की होती है. फाइनेंस की सारी टेंशन पति की होती है. हालांकि, घरेलू बजट में घर का सारा खर्च चलाने की जिम्मेदारी उन्हीं पर होती है. पिछले कुछ सालों में मंहगाई तो बढ़ गई है, लेकिन सैलरी में कोई खास बदलाव देखने को नहीं मिला है.

कई बार ऐसा देखा गया है कि घर में कोई बड़ी मुसीबत आ जाने पर होम मेकर पर बहुत सारे बोझ आ जाते हैं. यदि पति की नौकरी चली जाए या फिर उन्हें कोई गंभीर बीमारी हो जाए, तो आमदनी रुक जाती है, लेकिन खर्च नहीं. ऐसे में महिलाओं को भी फाइनेंशियल प्लानिंग के बारे में पूरी जानकारी रखना जरूरी है.

आइए जानते हैं कि महिलाओं को जीवन में किस तरह फाइनेंशियल प्लानिंग करनी चाहिए-

1. कैश फ्लो को मैनेज करने की आदत डालें

आम तौर पर होम मेकर्स तभी बजट बनाती हैं जब वह किराने का सामान या घरेलू जरूरत का अन्य सामान खरीदती हैं. लेकिन आपको घर के हर तरह के खर्च के लिए बजट बनाने की आदत विकसित करें. इस बजट में वे चीजें भी शामिल करें, जो अब तक आपके पति संभालते आए हैं, जैसे लोन, बिजली का बिल, टेलीफोन का बिल, क्रेडिट कार्ड का बिल, घर का किराया आदि.

फिर अपने परिवार की आमदनी का विश्लेषण करें और देखें कि क्या यह घर के कुल खर्च से अधिक है या कम. इसके लिए आपको किसी एक्सपर्ट की जरूरत नहीं है. अपने घर के पूरे बजट पर निगाह रखने के लिए आप एक्सेल शीट का इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर आप तकनीक से परिचित नहीं हैं, तो आप इसके लिए डायरी का उपयोग कर सकती हैं. अगर जरूरत हो, तो इसके लिए आप पति की मदद भी ले सकती हैं.

2. अपने खर्चों पर लगाएं लगाम

कैश फ्लो के विश्लेषण से आपको पता चलेगा कि आप कहां अधिक खर्च कर रही हैं. आप ऐसे तरीकों की तलाश करें जिनको अपना कर आप अपने खर्चे कम कर सकते हैं. रेस्तरां में खाना, वीकेंड पर मॉल में शॉपिंग करना, महीने में कई बार बाहर फिल्म देखने जाना ऐसे खर्च हैं जिनमें आप कटौती कर सकते हैं. इसके अलावा आप अपने विभिन्न बिल भी घटा सकते हैं. इसके अलावा घरेलू सामान की थोक शॉपिंग वहां से करें, जहां आपको लागत कम पड़े.

3. बचत, बचत और बचत

हर होम मेकर में पैसे बचाने की आदत होती है. इस आदत को विकसित करते हुए अपने लिए और परिवार के भविष्य के लिए बचत करना शुरू करें. इसके लिए आप एक सेविंग्स एकाउंट खोल लें और जब भी आप बचत करें, उसमें पैसे जमा करें. आजकल बैंक महिलाओं के लिए बचत और निवेश के विभिन्न विकल्प उपलब्ध करा रहे हैं. इस तरह आप छोटी-छोटी राशि से बड़ी बचत करने में कामयाब हो सकते हैं.

4. वित्तीय जागरुकता बढ़ाएं

महिलाओं के लिए भी वित्तीय जागरुकता बहुत जरूरी है. अगर आप बाजार में उपलब्ध विभिन्न वित्तीय विकल्पों के बारे में जानेंगी, तो यह आपके भविष्य के लिए काफी मददगार साबित होगा. बेहतर होगा कि आप बैंकिंग प्रॉडक्ट्स से इसकी शुरुआत करें. बैंक जाएं और इन प्रॉडक्ट्स के बारे में पता करें.

5. फाइनेंशियल प्लान बनाने की जरूरत

अगर आप होम मेकर हैं, तो मोटे तौर पर आप पति की प्लानिंग पर निर्भर होंगी. लेकिन आपात स्थितियां कभी भी आ सकती हैं, जिनकी वजह से आपको खुद से वित्तीय निर्णय लेने पड़ सकते हैं. यह पता करें कि आपातकालीन स्थितियों के लिए आपको किस तरह की योजना बनानी चाहिए. यह भी पता करें कि बच्चों की पढ़ाई के लिए आपको कितनी पूंजी की जरूरत होगी. सबसे बड़ी प्लानिंग रिटायरमेंट के बाद के लिए होनी चाहिए, जब आप अपने पति के साथ लंबा वक्त बिताएंगी.

6. निवेश करें ताकि बढ़े पूंजी

अगर आप बचत कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि भविष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए आपकी पूंजी में बढ़ोतरी हो. आपकी बचत आपके घर में पड़ी रहे या फिर आपके सेविंग्स एकाउंट में पड़ी रहे, तो यह बढ़ती महंगाई दर को नहीं पछाड़ सकती. ऐसे में यह जरूरी है कि पूंजी में बढ़ोतरी के लिए उसे निवेश किया जाए. इसके लिए या तो खुद को वित्तीय निर्णय लेने में सक्षम बनाएं या फिर किसी जानकार की मदद लें.

7. पढ़ना है बहुत जरूरी

कई ऐसी पत्रिकाएं, अखबार और ब्लॉग ऐसे हैं, जहां पर्सनल फाइनेंस की जानकारी उपलब्ध होती है. यहां तक कि महिलाओं पर केंद्रित कई पत्रिकाएं भी पर्सनल फाइनेंस पर जानकारी देने लगी हैं. असल उद्देश्य है मनी मैटर्स के बारे में जानकारी बढ़ाना. इससे न केवल आपको मिससेलिंग से बचने में मदद मिलेगी, बल्कि वित्तीय निर्णय लेने में भी आपकी सक्षमता बढ़ेगी.

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