गेट टू गेदर पार्टी में बनाएं ये क्विक डिशेज

फेस्टिव सीजन चल रहा है और त्यौहार की खुशी मेहमानों के आने से और अधिक बढ़ जाती है. ऐसे में अक्सर अपने कुछ खास मेहमानों और परिचितों के साथ हम गेट टू गेदर पार्टी का आयोजन भी करते हैं. आजकल सभी नया टेस्ट खोजते हैं आज हम आपको ऐसी ही कुछ मीठी और नमकीन डिशेज बनाना बता रहे हैं जिन्हें बनाना बहुत आसान तो है ही साथ ही ये ट्रेडिशनल और मॉडर्न दोनों ही युगों का प्रतिनिधित्व भी करतीं हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-

-रेप्ड डेट्स

कितने लोगों के लिए               10

बनने में लगने वाला समय        30 मिनट

मील टाइप                            वेज

सामग्री

बड़े और ताजे खजूर              10

किसा ताजा पनीर                100 ग्राम

इलायची पाउडर                  1/4 टीस्पून

मिल्क पाउडर।                    1 टीस्पून

किसा मोजरेला चीज            1/4 कप

शहद                                   2 टेबलस्पून

विधि

पनीर में मिल्क और इलायची पाउडर अच्छी तरह मिला लें.  अब खजूर के बीज निकालकर पनीर को इनमें स्टफ कर दें. इसी प्रकार सारे खजूर तैयार कर लें. अब इनके ऊपर चीज डालकर माइक्रोवेब में 200 डिग्री पर बेक करें और गर्मागर्म डेट्स को शहद के साथ सर्व करें.

-चीजी पोमेग्रेनेट टोस्ट

कितने लोगों के लिए               6

बनने में लगने वाला समय         20 मिनट

मील टाइप                              वेज

सामग्री

गार्लिक ब्रेड स्लाइस                6

चीज क्यूब्स                            2

ताजा दूध                                1/4 कप

ताजी हरी चटनी                     2 टेबलस्पून

किसा पनीर                          2 टेबलस्पून

चाट मसाला                         1/2 टीस्पून

बटर                                    1 टीस्पून

अनार के दाने                     1/2 कप

बारीक कटा हरा धनिया       1 टीस्पून

विधि

ब्रेड स्लाइस के किनारे काट लें. एक नॉनस्टिक पैन पर बटर लगाकर ब्रेड स्लाइस को धीमी आंच पर सेककर टोस्ट बना लें. चीज और दूध को एक साथ गर्म करके चीजी सॉस बनाएं और ठंडा होने पर इसमें हरी चटनी अच्छी तरह मिला दें. अब टोस्ट पर चीजी हरी चटनी लगाकर पनीर और अनार के दाने डाल दें. ऊपर से चाट मसाला और हरा धनिया डालकर सर्व करें.

-बिस्किट सैंडविच

कितने लोगों के लिए           8

बनने में लगने वाला समय      20 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री

पफ बिस्किट                   8

उबले आलू                     2

उबले छोले                    1/4 कप

बारीक कटा प्याज           1

बारीक कटा हरा धनिया      1 टीस्पून

बारीक कटी हरी मिर्च।        2

चाट मसाला                     1/4 टीस्पून

नीबू का रस                      1/4 टीस्पून

टोमेटो सॉस                     सर्विंग के लिए

विधि

पफ बिस्किट को बीच से काट दें. एक बाउल मे टोमेटो सॉस को छोड़कर समस्त सामग्री को एक साथ अच्छी तरह मिला लें. तैयार भरावन को पफ बिस्किट के बीच में भरकर सैंडविच तैयार करें और टोमेटो सॉस के साथ सर्व करें.

-ब्रूशेटा

कितने लोगों के लिए          6

बनने में लगने वाला समय    20 मिनट

मील टाइप                        वेज

सामग्री

ब्रेड स्लाइस                  6

टमाटर के स्लाइस           6

बेसिल कटी                   1 टीस्पून

ऑलिव ऑइल               1 टीस्पून

चिली फ्लैक्स                 1/4 टीस्पून

ऑरिगेनो                       1/4 टीस्पून

काला नमक                   1/4 टीस्पून

विधि

ब्रेड स्लाइस के किनारे काटकर ऑलिव ऑइल के साथ तवे पर टोस्ट कर लें.  अब इसके ऊपर टोमेटो स्लाइस, कटी बेसिल, चिली फ्लैक्स, ऑरिगेनो और काला नमक स्प्रिंकल करके सर्व करें.

कब होता है चिंताजनक बच्चों का अंगूठा चूसना और इसे कैसे रोकें?

सभी नवजात शिशुओं में चूसने की अनैच्छिक प्रवृत्ति होती है क्योंकि उनके लिए भोजन और तरल पदार्थों का सेवन करना आवश्यक होता है. कई माता-पिता इस आदत के बारे में चिंतित हो जाते हैं, जबकि यह शिशुओं में एक सामान्य अनैच्छिक क्रिया है. इसे गैर-पोषक चूसने के रूप में भी जाना जाता है, जिसके कुछ सकारात्मक पहलू हैं, जैसे कि यह नवजात शिशुओं को शांति देता है और उन्हें आराम करने और ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है. ज्यादातर बच्चे 2 से 4 साल तक की उम्र में अंगूठा चूसना अपने आप बंद कर देते हैं. बच्चे अगर पाँच साल की उम्र से पहले तक ही ऐसा करते हैं, तो अंगूठा चूसने से आमतौर पर लंबे समय तक समस्याएं नहीं होती हैं.

इस बारे में बता रहे हैं डॉ निशांत बंसल, कंसल्टेंट नियोनैटोलॉजिस्ट, मदरहुड हॉस्पिटल, नोएडा

बच्चे अंगूठा चूसने का सहारा क्यों लेते हैं?

अंगूठा चूसना अधिकांश लत की तरह है, यह सहन या सामना करने की एक तकनीक है. यहाँ तक कि सामान्य बेचैनी या चंचलता में हिलना-डुलना, नाखून काटना, पैर हिलाना, अंगुलियों को मरोड़ना जैसे आदि कार्य करते है, अंगूठा चूसना भी उससे बहुत अलग नहीं हैं. शिशुओं और छोटे बच्चों के लिए, उनका अंगूठा चूसना स्वाभाविक रूप से आत्म-संतुष्टि और सुरक्षा की भावना को बढ़ावा देता है.

क्या नहीं करना चाहिए?

अपने बच्चे को अंगूठा चूसने से रोकने के लिए कुछ माता-पिता चरम विधियों का उपयोग करते हैं.  कुछ माता-पिता तो बच्चे के अंगूठे को सिरके या मिर्च की चटनी में डुबाने की हद तक भी चले जाते हैं. लेकिन, ऐसे जबर्दस्‍ती किये जाने वाले तरीकों का प्रयोग करने से बचना सबसे अच्छा है क्योंकि इससे नन्हे बच्चों में विद्रोह की प्रवृत्ति पैदा हो सकती है.

आपको कब हस्तक्षेप करना चाहिए?

याद रखें कि अंगूठा चूसना अविश्वसनीय रूप से व्यसनकारी है और यदि आप अपने बच्चे को अंगूठा चूसना बंद कराने का प्रयास कर रहे हैं, तो आपको धैर्य रखने की आवश्यकता है. आपको उन्हें रोकने की कोशिश कब आरम्भ करनी चाहिए, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उनके अंगूठा चूसने की तीव्रता कितनी है या फिर वह कितना जिद्दी है. आदतन लगातार अंगूठा चूसने से त्वचा पर बुरा असर हो सकता है और इससे जिस उंगली को बच्चा चूसता रहता है उस पर कैलस या त्वचा फटने की समस्याओं का खतरा हो सकता है. 5 साल की उम्र के बाद अंगूठा चूसना जारी रहता है तो इस उम्र में गलत तरीके से काटने जैसी दंत समस्याएँ उभर सकती हैं. फिर भी, अपने बच्चे को इस आदत से जल्द से जल्द छुड़ाना एक अच्छा विचार हो सकता है ताकि अधिक गंभीर रूप से जकड़ी हुई प्रवृत्ति को रोका जा सके.

अपने बच्चे को अंगूठा चूसने से रोकने में मदद करने के तरीके-

-उनके तनाव से राहत पाने वाले व्यवहार को कुछ अधिक रचनात्मक उपायों से बदलें, जैसे कि कोई प्यारा खिलौना, टेडी बियर, मनपसंद खिलौने, या प्रतिबिम्ब दिखाने वाले खिलौने आदि.

-उनके व्‍यवहार पर नजर रखने के लिए स्टिकर का उपयोग कर एक चार्ट बनाएं, और जब वे एक विशेष संख्या में स्टिकर जमा करते हैं, तो उन्हें पुरस्कृत करें.

-अपने बच्चे को विकल्प देने का प्रयास करें. विकल्प खिलौने, खेल, गतिविधियों, शिल्प, किताब और खुद करने वाले कार्य (डीआईवाई) जैसी चीजें हो सकती हैं.

-ऐसी बातों से बचें जिनसे बच्चे को तनाव हो सकता है, जैसे कि अंगूठा चूसने के लिए उन्हें लज्जित करना, आलोचना करना या  डाँटना-फटकारना.

-अंगूठा नहीं चूसने के सकारात्मक व्यवहार को प्रोत्साहित करने के लिए पुरस्कार और प्रशंसा का प्रयोग करें.

-रात में उनके अंगूठे पर पट्टी बांधकर या कपड़े से हाथ ढँकने कर आप इस प्रवृत्ति को हतोत्साहित कर सकते हैं.

-अपने बच्चे को उनकी परेशानी और तनाव को कम करने और प्रबंधित करने में मदद करें.

यदि आपका बच्चा काफी बड़ा है, तो उसे समझाएँ कि अंगूठा चूसने से उनके मुँह में क्या-क्या समस्या हो सकती है.

फायदेमंद सुझाव –

यदि अंगूठा चूसने से रोकने के लिए आपके अपने उपाय कारगर नहीं हो रहे हैं तो अपने दन्त-चिकित्सक से सलाह करना बेहतर है. अंगूठा चूसने को हतोत्साहित करने के लिए, वे कोई कड़वी दवा, अंगूठा चूसने वाले कवर, या एक दंत उपकरण (असामान्य परिस्थितियों में)  के प्रयोग का सुझाव दे सकते हैं.

करवा चौथ 2022: एक और करवाचौथ

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गुलाबो की मुसकान: वेलेंटाइन डे पर क्या हुआ उसके साथ

कालेज के लंचटाइम में हम सभी स्टाफ के साथ गपशप कर रहे थे कि अचानक मेरे कानों में आवाज आई, ‘मैडम, प्लीज यहां विटनैस में आप के साइन की जरूरत थी. दरअसल, मैं ने यहां पीजीटी (मैथ्स) के रूप में जौइन किया है. बैंक में अकाउंट के लिए बैंक वाले एक विटनैस मांग रहे हैं.’ मुझे उस के बोलने का लहजा, पहनावा अपनों जैसा लगा. पेपर मेरे सामने था, मैं न नहीं कर सकी. फौर्म पर हलके से नजर डाली, इंद्रेश बरेली. ‘ओह तो महाशय बरेली से हैं.’ यह बुदबुदाने के साथ साइन कर फौर्म दे दिया. सर ने थैंक्यू कहा और मुसकरा कर चले गए.

उन के मुड़ते ही एक जोरदार ठहाका लगा, ‘‘क्यों इंदु, इंद्रेशजी ने क्या राशि देख कर तुम्हारे साइन मांगे या फिर…?’’

‘‘कैसी बातें कर रहे हैं आप लोग. उन्होंने तो आगे बढ़ाया था पेपर, अब वह मैं सामने पड़ गई तो वे क्या करते या मैं क्या करती,’’ मैं ने कहा.

‘‘तो इतनी जल्दी फेवर भी होने लगा,’’ दूसरी टीचर साथी ने कहा. टन…टन…टन तभी घंटी बज गई, हम सभी अपनेअपने क्लास में चले गए.

लेकिन मैं क्लास में जा कर भी क्लास में नहीं पहुंच सकी. गले में मफलर, पैंट, हां ये तो हमारे यहां जैसा ही है. ओह, मिट्टी, पानी और बोली में इतनी ताकत होती है कि आदमी दस की भीड़ में भी अपनों को पहचान लेता है. पर मैं तो उन्हें जानती भी नहीं. मैं ने साइन तो कर दिए हैं पर क्या? चलो, जो होगा, देखा जाएगा. मैं ने ऐसा सोच कर अपने को झटका पर विचारों की शृंखला हटने का नाम ही नहीं ले रही थी कि एक बच्चे ने कहा, ‘‘मैडम, क्लास ओवर हो गई.’’

मैं ने अपने शरीर को एक क्लास से ढकेल कर दूसरे क्लास में पहुंचा दिया. पूरा दिन इसी उधेड़बुन में निकल गया.

अगले दिन सुबह जब असेंबली के लिए सारे टीचर्स बच्चों के सामने खड़े थे, मेरी आंखें गेट पर लगी थीं. सामने से मुझे इंद्रेश सर तेजी से, कुछ शरमाए, घबराए, शांत, कुछ मुसकराते हुए आते दिखाई दिए. मैं ने कनखियों से उन्हें देखा. वे मुझ से कुछ दूरी पर आ कर खडे़ हो गए. उन्होंने मुझ से नमस्ते की तो मुझे अपने शहर की हवा चलती हुई महसूस हुई.

2-3 दिन बाद उन का अकाउंट खुल गया. वे मुझे धन्यवाद देने मेरे पास आए. तब पता चला उन के बारे में थोड़ाबहुत. मैं उस परदेश में 4 साल से रह रही थी. नौकरी के दौरान मेरे कुछ दोस्त भी बने थे पर फिर भी आज पहली बार उन सब को पीछे छोड़ कर आखिर यह कौन था जिस को ले कर मैं सोचने लगी थी. वरना मैं, मेरा कमरा मेरा मोबाइल, मेरी डायरी. इस के सिवा मैं किसी को अपना कीमती वक्त देना पसंद नहीं करती थी. आंखें नीची कर तेज चाल से जाने वाली मैं अब सड़कों पर किसी के साथ का इंतजार करने लगी थी.

3 महीने हो गए सर को जौइन किए हुए. अब हमारे बीच नियमित कुछ न कुछ बातों का आदानप्रदान होने लगा था. मैं छोटीमोटी चीजें बाजार से सर के द्वारा मंगवा लेती थी. वे चीजें देने के बहाने मेरे यहां आ जाया करते थे. हम चाय पीते हुए घर पर थोड़ी देर गपशप कर लिया करते थे. वे बहुत कम बोलते थे. दरअसल, वे मैथ्स के टीचर थे. मैं संगीत की. मुझे लिखनेपढ़ने में थोड़ी रुचि थी इसलिए मेरा अभिव्यक्ति पक्ष थोड़ा मजबूत था. हम एकदूसरे को सर और मैडम कह कर ही संबोधित करते थे.

वैसे तो मैं ने सपनों में किसी राजकुमार को देखा ही नहीं था. फिर भी मुझे बोलने वाले बिंदास लोग ही पसंद आते थे. पर फिर भी न जाने क्यों मैं सर से मिलने, उन से बात करने के बाद उन की छोटीछोटी बातों को सोचसोच कर खुश होने लगी थी. वे मेरी जिंदगी में बिना आहट किए दबेपांव प्रवेश कर चुके थे. मैं उन की तरफ खिंचने लगी थी. मैं जितनी बातूनी, चंचल, हंसमुख, वे उतने ही शांत, सौम्य, गंभीर. अब उन की मैथ में प्लस और माइनस का क्या रिजल्ट होता है, मैं जानना चाहती थी. एक दिन हम दोनों मेरे कमरे में बैठे चाय पी रहे थे तब मैं ने कहा कि कितने शांत हैं यह पहाड़ बिलकुल आप की तरह, मन करता है इस शांति के साथ हम देर तक यों ही बैठ कर चाय पीते रहें. मैं अपनी बात खत्म भी न कर पाई थी कि वे बीच में ही बोल पड़े, ‘‘यदि ज्यादा देर तक चाय पीनी है तो चलो कहीं बाहर घूमने चलते हैं.’’

यह बात उन के मुंह से सुन कर मैं अवाक् रह गई. वैसे तो हम पहाड़ों पर रहते थे. हमारा कालेज घाटी में था. पर हम दोनों ऐसे व्यवसाय से जुड़े थे कि उस जगह हम कहीं भी साथसाथ नहीं जा सकते थे.मैं ने हंसते हुए कहा, ‘‘कहां चलेंगे हम, यहां तो पहाड़ों के अलावा कुछ है ही नहीं.’’ तो उन्होंने बड़ी गंभीरता से कहा था, ‘‘पहाड़ों की ही तो जरूरत है, पहाड़ी से तुम्हें मांगना चाहता हूं, इसीलिए तो.’’ मेरा मन भावनाओं के अथाह सागर में गोते खाने लगा . अब तो जाना ही पड़ेगा.

उन की चंद अभिव्यक्तियों ने मुझे उन की दीवानी बना दिया था. जो मन में था वह बाहर आने लगा था. प्रेम परवान चढ़ने लगा था. वक्त तेजी से दौड़ रहा था.

‘‘मैडम, बड़े सर ने बुलाया है,’’ चपरासी क्लास में कहने आया. मैं तेजी से अपना बैग उठा कर पिं्रसिपल औफिस में पहुंची.

‘‘जी सर,’’ मैं ने कहा.

‘‘हां मैडम, आप का ट्रांसफर और्डर आ गया है. आप को देहरादून मिल गया है. बधाई हो,’’ प्रिंसिपल सर ने कहा. ‘मुझे ट्रांसफर नहीं चाहिए,’ मैं लगभग बुदबुदाई.

‘‘जी?’’ सर ने कहा.

‘‘नहीं, कुछ नहीं सर, कब जौइन करना है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘विद इन अ वीक,’’ वे बोले.

मैं ने तेजी से अपना शरीर स्टाफरूम की तरफ ढकेला. टन…टन…टन छुट्टी की आवाज आई, मैं किसी से मिले बिना चुपचाप घर चली गई. तो क्या जिंदगी का एक अध्याय यहीं खत्म हुआ. नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं यह ट्रांसफर लेना नहीं चाहती. मैं अभी एक ऐप्लीकेशन लिखती हूं. तभी अचानक फोन की घंटी से मैं स्वयं से बाहर निकली, ‘‘हैलो.’’

‘‘हां बेटा, मैं ने नैट पर देखा, तुम्हारा ट्रांसफर हो गया है. तुम अब घर आ जाओगी. चलो, अच्छा हुआ, मन बहुत परेशान रहता था. तुम्हें अकेला छोड़ तो रखा था पर…’’ पापा बोलते जा रहे थे. पर मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था.

मै इस घटना के बाद 2 दिन तक कालेज नहीं गई. तीसरे दिन सर, कुछ परेशान से घर पर आए, बोले, ‘‘क्या बात है मैडम, कालेज क्यों नहीं आईं? 4 दिन बाद तो आप वैसे भी जा रही हैं. फिर तो हम आप को देख नहीं पाएंगे.’’

मै फफक कर उन से लिपट गई. उन्होंने मुझे अपने से अलग करते हुए कहा, ‘‘मैं आप की आंखों में आंसू नहीं देख सकता. पर यह तो बताओ, आप क्यों रो रही हैं?’’

मैंने गुस्से से उन की तरफ देखा, ‘‘क्या आप नहीं जानते?’’

‘‘नहीं, मैं तुम्हारे मुंह से सुनना चाहता हूं.’’

‘‘मैं जाना नहीं चाहती.’’

‘‘क्यों, तुम ने तो रिक्वैस्ट की थी?’’

‘‘हां, पर तब कुछ और बात थी.’’

‘‘और अब क्या बात है?’’

‘‘तो सबकुछ मुझ से ही कहलवाना चाहते हैं. जैसे आप मुझे अपना बनाना चाहते हैं वैसे ही मैं भी,’’ कहते हुए मेरी आंखें फिर भर आई थीं. मेरी बात सुन कर वे हंसे.

‘‘आप को हंसी आ रही है. मैं देहरादून नहीं जाऊंगी,’’ मैं लगभग चीखती हुई सी बोली.

‘‘तो तुम्हें अपने पर विश्वास नहीं है?’’

‘‘शायद नहीं.’’

‘‘पर विश्वास के बिना तो प्यार भी पूर्ण नहीं होता है,’’ उन्होंने कहा तो मैं कुछ नहीं बोली.

4 दिनों के बाद पापा आ गए. मैं अपना सामान पैक कर के जाने को तैयार हो गई. भीगी पलकों से स्टाफ ने विदाई दी. सभी बसस्टैंड तक छोड़ने आए. सर भी आए. मुझे मन ही मन ऐसा लगा जैसे मैं अपनी भावनाओं के हाथों छली गई थी. सर के चेहरे पर सामान्य भाव थे. तो क्या उन्हें मेरे अलग होने का दुख नहीं हुआ. रास्ते भर इसी ऊहापोह में मेरा श्रीनगर से देहरादून का सफर तय हो गया.

मैं ने नया कालेज जौइन कर लिया. मेरा नए कालेज में बिलकुल मन नहीं लग रहा था. मैं कालेज जाती और आ जाती, न किसी से बोलना न बतियाना. एक सप्ताह के बाद जब छुट्टी की घंटी बजी. मैं कालेज से बाहर निकली तो सर सामने खड़े थे. मैं ठिठक गई, ‘‘अरे…अरे, आप?’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों, भूल गई या आश्चर्य हुआ,’’ उन्होंने हंसते हुए कहा.

‘‘हां, नहीं तो, पर आप यहां कैसे?’’

‘‘तुम्हें हमेशा के लिए अपना बनाने को आया हूं.’’

उन की इस बात से मैं हतप्रभ रह गई.

‘‘कल मम्मीपापा तुम्हें देखने तुम्हारे घर आ रहे हैं. जरा सजसंवर कर उन के सामने जाना. और हां, बोलना थोड़ा कम.’’

मैं शरमा गई. फिर हम ने बाहर जा कर चाय पी. ‘‘और कालेज में सब ठीक है?’’ मैं ने पूछा.

‘‘मैं तुम्हारे आने के बाद कालेज ही नहीं गया. नहीं गया या यों समझो कि जाने का मन ही नहीं हुआ. तुम्हारे जाने के बाद ऐसा लगा कि अब मैं बिलकुल अकेला हो गया. कुछ समझ में नहीं आ रहा था.

‘‘मांबाबा से अपने मन की बात बता कर बड़ी मुश्किल से तुम्हें देखने को राजी कर सका हूं. वे थोड़े परंपरावादी हैं पर तुम चिंता मत करो. मैं सही परंपराओं के निर्वहन पर विश्वास करता हूं और गलत का सख्त विरोध करता हूं. वैसे अंदर की बात यह है कि मेरी बहन नंदिनी को तुम पसंद हो. उस ने मम्मी को समझा कर तैयार कर लिया है. फिर भी आगे का खेल तुम्हारे हाथ में है.’’

मैं ने सर को इतना बोलते हुए और इतना खुश पहले कभी नहीं देखा था. वे हमेशा मुझे गंभीर, शांत से ही दिखे थे. पर हां, मैं नर्वस जरूर थी.

‘‘आप कमजोर लग रहे हैं,’’ मैं ने कहा पर उन्होंने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया. बिना कहे भी उन की आंखों ने बहुतकुछ कह दिया. उन की आंखें भीगी थीं. मैं कितनी गलत थी जो सोचती थी कि मैं छली गई.

वे वापस घर चले गए. मैं ने मां को डरतेडरते घर जा कर यह बात बताई. मांपापा मुझ से बहुत प्यार करते थे, मुझ पर उन्हें पूरा विश्वास था. इसलिए उन्होंने कोई नकारात्मक बात नहीं कही और अगले दिन की तैयारी के लिए जुट गए.

मैं ने सर की पसंदीदा रंग की साड़ी पहनी. चाय ले कर जब कमरे में पहुंची तो सर के मम्मीपापा के साथ नंदिनी भी थी. मुझे आश्चर्य हुआ यह देख कर कि मैं ने नंदिनी से इस से पहले कई बार बात की थी. वह उछल पड़ी, मैं शरमा गई.

मुझे माहौल थोड़ा भारी सा लगा. न तो मम्मीपापा ने ही उन्हें प्रभावित करने की कोशिश की और न ही उन्होंने ही ज्यादा बात की. उन की मां ने मुझ से बस यह पूछा कि कभी बरेली अपने घर पर गई हो. मैं ने हंस कर कह दिया कि वहां कोई रहता ही नहीं है, इसलिए पापा हमें वहां कभी भी नहीं ले गए. बस, सर की बहन ही बातें करती रही थी.

उन के जाने के बाद मां ने कुछ परेशान होते हुए कहा, ‘साड़ी उतार दो और मन में पल रहे प्रेम को मार दो क्योंकि यह रिश्ता नहीं हो सकेगा.’’ मुझे आश्चर्य हुआ ऐसा क्या था जो मां को पसंद नहीं आया. मैं ने झुंझलाते हुए कहा, ‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि वे हमारे परिवार को पसंद नहीं करेंगे,’’ जवाब पापा ने दिया था.

मैं पापा की तरफ मुड़ी, ‘‘पर उन्होंने तो ऐसा कुछ नहीं कहा.’’

‘‘25 साल पहले ही कह दिया था जब तुम्हारे चाचा ने तुम्हारी चाची से अंतर्जातीय विवाह किया था. तुम्हारी चाची एक ऐसी जाति से हैं जिसे अपने समाज ने तिरस्कृत किया है. चाचाजी तो चाची से शादी कर के विदेश चले गए पर हमारे परिवार का हुक्कापानी अपनी जाति वालों ने बंद कर दिया. हम मां और पिताजी को ले कर देहरादून आ गए. तब से हम बरेली लौट कर नहीं गए. अपनों से दूर, अपनी मिट्टी से दूर, अपने रिश्तों से दूर. मां इसी गम को लिए साल भर के भीतर चल बसीं और पिताजीउन के 5 साल बाद. न चाचाजी को फिर कभी दोबारा देखा और न अपना घर,’’ पापा ने लंबी सांस ली. मां ने पापा के कंधे को पकड़ लिया.

पापा इन चंद लमहों में मुझे बूढ़े दिखाई देने लगे. मैं झल्लाई, ‘‘हुक्कापानी बंद पर पापा, यह तो अब ब्लैक ऐंड व्हाइट मूवी की स्टोरी जैसा लगता है. पापा इंटरनैट का जमाना है. लोग दूसरे प्लैनैट्स पर कालोनीज बनाने की सोच रहे हैं. क्या आज भी 25 साल पुरानी बातें माने रखेंगी? यह आप का पूर्वाग्रह है. आप परेशान न हों, देखना कल सर का ‘हां’ में फोन जरूर आएगा.’’ पाप मुसकराए और बोले, ‘‘बेटा, बदलाव की बयार चल जरूर रही है पर सब को छू नहीं पा रही है. तुम नहीं जानतीं, आज भी अपटूडेट दिखने वाले भी वैसे ही अनपढ़ हैं जैसे पहले थे. आज भी हम हर जाति के साथ अपना लंच शेयर नहीं करते. मैं नेतो अपने स्कूल में देखा है, बच्चों का एक समूह आज भी दीवार से चिपक कर जमीन पर बैठ कर चुपचाप अपना खाना खा लेता

है. यह जाति और छुआछूत की समस्या सदियों से चली आ रही है और पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेगी जब तक इस देश के युवा स्वयं कोई ठोस कदम नहीं उठाते. हमें ठोस कदम के साथ आगे बढ़ना होगा.

मैं तुम्हारे चाचा की कुछ बातों से सहमत नहीं. उसे शादी कर के वहीं रहना था. यदि हम दो होते तो उस विरोध को आसानी से झेल लेते. आज मैं इसलिए दुखी नहीं हूं कि तुम्हारे चाचा द्वारा उठाया गया कदम तुम्हारे आगे परेशानी बन कर खड़ा है, बल्कि इसलिए कि तुम्हें तुम्हारी पसंद नहीं दिला पाऊंगा.’’

मैं संभल चुकी थी और अब मुझे चाचा के द्वारा जलाई मशाल को ले कर आगे बढ़ना था.

मैं ने अगले दिन सर को फोन किया और अपने इरादों को बताया. सर ने सिर्फ इतना कहा कि मैं अपने इरादों में मजबूत हूं. अब यह शादी सिर्फ प्यार को पाने के लिए नहीं, बल्कि युवाओं में जातिगत भावना से ऊपर उठने के लिए एक अलख जगाना है.’’ मैं ने कहा, ‘‘मैं तुम्हारा इंतजार करूंगी और इस जंग में हमेशा तुम्हारे साथ हूं.’’

इस बात को 1 वर्ष हो गया. उस के बाद न तो उन का कोई फोन आया, न ही कोई समाचार. मैं ने कई बार उन्हें फोन करने का प्रयास किया पर नंबर मिला ही नहीं. शायद, सब यहीं खत्म हो गया, मुझे अब ऐसा लगने लगा. लड़का व लड़की भावनाओं में बह कर शादी के बड़ेबड़े वादे तो कर लेते हैं पर रूढि़वादी परंपराओं की दीवार तोड़ने का साहसी कदम नहीं उठा पाते.

फरवरी का महीना, कोहरा खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था. मैं कालेज जा रही थी. आज वैलेंटाइन डे था. कालेज में सभी के हाथ में गुलाब, ग्रीटिंग और खुशियां देखते ही बनती थीं. मैं धुंध की मोटी चादर में सिमटती जा रही थी. छुट्टी हो गई. लो, यह दिन भी खत्म हुआ. टिं्रगटिं्रग की आवाज से स्वयं से बाहर आई. पर्स से मोबाइल निकाला. अनफीडेड नंबर देख बेमन से ‘हैलो’ कहा.

‘‘हां, मैं बोल रहा हूं, हैपी वैलेंटाइन डे. बाहर निकलो, तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.’’

उधर से चिरप्रतीक्षित आवाज सुन कर चेहरा खिल गया. चाल तेज हो गई. बाहर आई. सर खड़े हुए थे. उन्हें देख मेरी आंखों में आंसू आ गए. उन से लिपट कर रोना चाहती थी. ‘हमेशा इतना इंतजार और सरप्राइज क्यों देते हैं आप?’ कहना चाहती थी. पर छुट्टी हो गई थी, बच्चे बाहर जा रहे थे, न कुछ कह सकी न कर सकी. बस, उन के साथ आगे बढ़ने लगी.

‘‘इतने दिनों बाद? नंबर क्या बदल लिया? कहां थे? कहां से आ रहे हो? क्या सब शादी के लिए राजी हो गए?’’ मैं ने पूछा.

‘‘इतने सवाल एकसाथ पूछोगी तो कैसे बता पाऊंगा,’’ उन्होंने कहा.

मेरे बहुत समझाने पर वे शादी के लिए राजी हो गए हैं. मैं ने तुम्हारा ट्रांसफर भी कैंसिल करवा दिया है. पापा संडे को ‘रोके’ के लिए आ रहे हैं. नंदिनी ने अपने साथ प्रैक्टिस कर रहे डाक्टर को पसंद किया है. जब वे लोग नंदिनी का हाथ मांगने आए तअंतर्जातीय होने के बाद भी मांबाबा मना नहीं कर सके और उन्होंने मुझ से कहा कि फिर तुम ने क्या गलती की है. सो, वे शादी की बात आगे बढ़ाने के लिए आ रहे हैं. और हां, हम अपना रिसैप्शन बरेली में करेंगे ताकि तुम और तुम्हारे मम्मीपापा फिर से अपना खोया हुआ घर देख सकें. चलो, जल्दी करो, बस चल देगी.’’

मैं ने बस में बैठे हुए पूछा, ‘‘हम कहां जा रहे हैं?’’

‘‘शादी की तारीख निकलवाने,’’ वे हंसते हुए बोले.

मैं ने बस में बैठ कर बाहर देखा, धूप निकल आई थी, कोहरा छंट गया था. सड़कों पर लड़के और लड़कियों के हाथों में वैलेंटाइन डे के गुलाबों की मुसकान साफ नजर आ रही थी.

कैसे बनाएं सुखद मैरिड लाइफ, ये टिप्स जरूर आजमाएं

दिल्ली के दीपक का मानना है कि शारीरिक संबंध तभी बनाया जाए जब इस की भूख हो. भावना और प्यार की इन की सोच में कहीं जगह नहीं है.

ऐसा अकसर देखने में आता है कि पतिपत्नी सहवास के दौरान एकदूसरे की इच्छा और भावना को नहीं समझते. वे बस एक खानापूर्ति करते हैं. लेकिन वे यह बात भूल जाते हैं कि खानापूर्ति से सैक्सुअल लाइफ तो प्रभावित होती ही है, पतिपत्नी के संबंधों की गरमाहट भी धीरेधीरे कम होती जाती है. ऐसा न हो इस के लिए प्यार और भावनाओं को नजरअंदाज न करें. अपने दांपत्य जीवन में गरमाहट को बनाए रखने के लिए आगे बताए जा रहे टिप्स को जरूर आजमाएं.

1. पत्नी की इच्छाओं को समझें

सागरपुर में रहने वाली शीला की अकसर पति के साथ कहासुनी हो जाती है. शीला घर के कामकाज, बच्चों की देखभाल वगैरह से अकसर थक जाती है, लेकिन औफिस से आने के बाद शीला के पति देवेंद्र उसे सहवास के लिए तैयार किए बिना अकसर यौन संबंध बनाते हैं. वे यह नहीं देखते कि पत्नी का मन सहवास के लिए तैयार है या नहीं.

सैक्सोलौजिस्ट डा. कुंदरा के मुताबिक, ‘‘महिलाओं को अकसर इस बात की शिकायत रहती है कि पति उन की इच्छाओं को बिना समझे सहवास करने लगते हैं. लेकिन ऐसा कर के वे केवल खुद की इच्छापूर्ति करते हैं. पत्नी और्गेज्म तक नहीं पहुंच पाती. आगे चल कर इसी बात को ले कर आपसी संबंधों में कड़वाहट पैदा होती है.

‘‘पति को चाहिए कि सैक्स करने से पहले पत्नी की इच्छा को जाने. उसे सैक्स के लिए तैयार करे. तभी संबंधों में गरमाहट बरकरार रहती है.’’

2. करें प्यार भरी बातें

एक हैल्दी सैक्सुअल लाइफ के लिए बेहद जरूरी है कि यौन संबंध बनाने से पहले पत्नी से प्यार भरी बातें जरूर की जाएं. कोई समस्या हो तो उस का हल निकालें. पत्नी से बातोंबातों में पता करें कि वह सैक्स में क्या सहयोग, क्या नवीनता चाहती है.

जयपुर के संजय और रूपाली का विवाह 2007 में हुआ. शादी के कुछ सालों तक संजय रूपाली के साथ खुल कर यौन संबंध बनाते रहे. लेकिन इधर 1 साल से वे रूपाली के साथ सैक्स संबंध बनाने से कतराने लगे हैं. रूपाली कहती है कि संजय गाहेबगाहे शारीरिक संबंध बनाते तो हैं, लेकिन बाद में उस से अलग हो कर सोने लगते हैं.

दरअसल, संजय की नजरों में यौन संबंध केवल पुरुष की भूख है, इसलिए रूपाली चाह कर भी संजय को भरपूर सहयोग नहीं कर पाती है.

मनोचिकित्सक डा. दिनेश त्यागी का मानना है कि एक अच्छे सहवास सुख के लिए आवश्यक है कि पतिपत्नी आपस में सैक्स के दौरान प्यार भरी बातें करें. यदि ऐसा नहीं हो तो पत्नी को लगता है कि पति को केवल सैक्स की ही भूख है, प्यार की नहीं. इसलिए प्यार भरी बातों को नजरअंदाज न करें.

3. स्थान व समय को बदलें

दिल्ली के ही नवीन का कहना है कि यदि वे रोजरोज पत्नी के साथ यौन संबंध नहीं बनाएंगे तो दूसरे दिन औफिस में तरोताजा हो कर काम नहीं कर पाएंगे. लेकिन उन की पत्नी को कोई मजा नहीं आता है, क्योंकि यह रोज के ढर्रे जैसी बात बन गई है. उस में कोई भी नवीनता नहीं रहती.

डा. कुंदरा कहते हैं कि सहवास का भरपूर आनंद उठाने के लिए कभी सोफा, कभी फर्श, कभी कालीन तो कभी छत पर और अगर घर में झूला लगा हो तो झूले पर, नहीं तो लौन पर चटाई बिछा कर सैक्स का आनंद लिया जा सकता है. पत्नियां सैक्स को प्यार से जोड़ती हैं. प्यार के इस अनुभव को वे घर के अलगअलग स्थानों पर अलगअलग समय पर नएनए तरीके से करना चाहती हैं. लेकिन अकसर पति यह बात समझ कर भी नहीं समझते.

4. शुरुआत धीरेधीरे करें

डा. कुंदरा यह भी कहते हैं कि कई पत्नियों की यह शिकायत रहती है कि उन के पति सहवास की शुरुआत धीरेधीरे न कर के उन्हें बिना उत्तेजित किए जल्दीबाजी में करते हैं. जबकि सहवास की शुरुआत धीरेधीरे विभिन्न सैक्स मुद्राओं जैसे गालों को काटना, सैक्स के हिस्सों पर थप्पड़ लगाना आदि को अपना कर ही करनी चाहिए और उस के बाद ही सैक्स सुख का आनंद लेना चाहिए.

5. फोर प्ले का आनंद उठाएं

पति को चाहिए कि वह पत्नी के साथ चुंबन, आलिंगन, उसे सहलाना, केशों में उंगलियां फेरना, अंगों को स्पर्श करना वगैरह की अहमियत को समझे. ऐसा कर के वह पत्नी को उत्तेजित कर के मानसिक और शारीरिक रूप से सहवास के लिए तैयार करे. पत्नी का और्गेज्म तक पहुंचना जरूरी होता है. और्गेज्म तक नहीं पहुंच पाने के कारण घर में अकसर तनाव का माहौल पैदा हो जाता है, जो आपसी संबंधों में दिक्कतें भी पैदा करता है. एक सर्वे के मुताबिक 55% लोगों का मानना है कि सैक्स के दौरान जो आनंदमयी क्षण आते हैं, उन का अनुभव बेहद महत्त्वपूर्ण है.

6. बराबर का साथ दें

डा. कुंदरा के अनुसार, ‘‘सैक्सुअल लाइफ बेहद रोमांटिक तभी बन पाती है, जब पतिपत्नी सैक्स संबंध बनाते समय बराबर का साथ दें. सहवास के दौरान 70% महिलाएं बिस्तर पर चुपचाप ही पड़ी रहती हैं. पुरुष ऐसी महिलाओं को पसंद नहीं करते. सहवास के दौरान बराबर का साथ पति पसंद करते हैं. यदि पत्नी ऐसा करती है तो सैक्स का आनंद और भी ज्यादा बढ़ जाता है.’’

दिल्ली की जनकपुरी की रेशमा 48 साल की और उन के पति 54 साल के हो गए हैं, लेकिन हफ्ते में 1-2 बार दोनों खुल कर यौन संबंध बनाते हैं. एकदूसरे के लिए रोमांटिक बने रह कर वे खुल कर उस का आनंद उठाते हैं.

7. फालतू बातों को तूल न दें

मैरिज काउंसलर एन.के. सूद कहते हैं कि पतिपत्नी जब भी यौन संबंध बनाएं, पत्नी घर की समस्याओं या शिकायतों का पिटारा खोल कर न बैठे. सारिका जब भी रमेश के साथ सहवास करती थी, कोई न कोई शिकायत ले कर बातें शुरू कर देती थी. इस से रमेश असहज हो जाता था. आगे चल कर इन की समस्या इतनी बढ़ गई कि इन्हें आपसी संबंधों को सहज बनाने के लिए मैरिज काउंसलर की सहायता लेनी पड़ी.

संबंधों में गरमाहट बनी रहे इस के लिए ऐसी बातों को तूल न दे कर सैक्स लाइफ को ऐंजौय करें. पति का साथ दें, उन के साथ बिस्तर पर सक्रिय बनी रहें.

8. सैक्सी कपड़ों में लुभाएं

कोटा में रहने वाली राधा गोरी और खूबसूरत नैननक्श वाली है. लेकिन वह अपने पति महेंद्र के पास उन्हीं कपड़ों में जाती है, जो उस ने सुबह से पहने होते हैं. राधा को तरोताजा न देख कर महेंद्र सहवास में ढंग से सहयोग नहीं कर पाते हैं.

पति को लुभाने व उत्तेजित करने के लिए सैक्सी ड्रैस व हौट लुक में अपने पार्टनर को ऐसा सरप्राइज दें कि यौन संबंधों में नवीनता तो आए ही, सहवास सुखद भी बने. ऐसा होने से पतिपत्नी का आपसी विश्वास व प्यार भी बराकरार रहता है.

9. नएनए प्रयोग करें

डा. कुंदरा कहते हैं कि अकसर पुरुष सैक्स को ले कर ज्यादा ही उत्साहित होते हैं. वे नएनए आसनों का प्रयोग कर सहवास को सुखद बनाते हैं. लेकिन पत्नी यदि किसी तरीके को अनकंफर्टेबल महसूस करे तो पति को बताए जरूर.

बहुत सी महिलाएं यौन संबंध बनाते वक्त नएनए प्रयोगों से घबराती हैं. वे ऐसा न कर के पति के साथ सहवास में प्रयोग करें. उम्र कोई बाधा नहीं, दिलदिमाग और शरीर को स्वस्थ रखने और वैवाहिक जीवन को सफल बनाने में नए प्रयोग हमेशा मददगार ही साबित होते हैं.

करवा चौथ 2022: त्योहारों पर कुछ खास हेयर डिजाइंस

त्योहारों का मौसम एक बार फिर आ गया है. हर कोई तैयार है त्योहारों का मजा लूटने के लिए. महिलाएं तो त्योहारों को ले कर बेहद उत्साहित रहती हैं. वे चाहती हैं कि इन खास मौकों पर कुछ खास दिखाई दें. इस के लिए वे महीनों पहले से तैयारियां भी शुरू कर देती हैं. लेकिन कंप्लीट मेकअप और ड्रैसअप के बाद सोच में पड़ जाती है कि हेयरस्टाइल कौन सा बनाएं? जो महिलाएं स्वयं घर पर तैयार होती हैं वे अकसर हेयर डिजाइन को ले कर परेशान रहती हैं. हम आप को कुछ बेहद आकर्षक और आसान हेयर डिजाइंस बनाने के तरीके बता रहे हैं.

जूड़ाचोटी

माथे के ऊपर के केशों को ले कर पिनअप कर लें. उस के बाद कानों के ऊपर के केशों को ले कर बैक कौंबिंग करें और इन्हें सैट करने के लिए जैल लगा लें. नीचे बचे केशों के 4-5 भाग कर लें और 1-1 भाग को उंगली पर लपेटते हुए बैक कौंबिंग के नीचे पिनअप करती जाएं. अंतिम सिरों को ऐसे ही छोड़ दें. अब केशों पर स्प्रे करें. इस के बाद पीछे जो केश बचे हैं, उन की एक पोनीटेल बना कर उस के 4 भाग कर लें. दोनों साइड के सैक्शन के रोल बना कर बैक कौंबिंग के नीचे पिनअप कर दें. नीचे के अंतिम सैक्शन पर ऐक्सटैंशन केश लगा कर एक लंबी चोटी बना लें. इस पर आर्टिफिशियल फूलों अथवा मनचाही हेयर ऐक्सैसरीज से सजावट कर दें.

स्टाइलिश जूड़ा

साइड मांग निकाल कर केशों को सैट कर लें. इस के बाद इयर टु इयर मांग निकाल कर केशों को 2 सैक्शन में बांटें और आगे के सैक्शन को बैक कौंबिंग करते समय हलका सा पफ देते हुए केशों को पिनअप करें. अब बचे हुए सारे केशों को ले कर एक पोनीटेल बना लें. पोनीटेल के केशों को 6 भागों में बांट लें. हर भाग का रोल बनाते हुए पिनअप करती जाएं, साथ में स्प्रे भी करती जाएं. चाहें तो 2 लटों को रोलर से कर्ल कर के ऐसे ही छोड़ दें. बैक कौंबिंग पर बीट्स आदि से सजावट कर लें.

जूड़ा विद बैक कौंबिंग

केशों की सीधी कंघी कर के उन की बैककौंबिंग कर लें और इयर टु इयर उन पर बीट्स लगाएं. बचे केशों की चोटी बना लें और उस पर भी बीड्स और गजरे लगा कर सजा दें.

पफ जूड़ा चोटी

सामने से छोटी मांग निकाल कर दोनों तरफ पिनअप कर के सैट कर लें. इस के बाद केशों के 2 सैक्शन करें. पहले सैक्शन को बैक कौंबिंग कर के ऊंचा सा पफ बना कर सैट कर लें और पोनीटेल बना लें. अब उस पोनीटेल के 2 भाग करें और दोनों भागों को विपरीत दिशाओं में ले जा कर सैट कर लें. उन पर फूल अथवा बीड्स से सजावट कर लें. बाकी बचे केशों की चोटी बना लें. उसे वेणी या मोतियों से सजा लें.

जूड़ा विद चोटी

यह स्टाइल हर उम्र की महिला पर सूट करता है. आमतौर पर मध्य उम्र की महिलाएं इस जूड़े को बनाना पसंद करती हैं. इसे बड़ी आसानी से घर पर ही तैयार किया जा सकता है. सब से पहले केशों को दोनों साइड से थोड़ा सा पफ दे कर पिनअप कर लें. पीछे पोनीटेल बना लें व इस के 6 भाग कर लें. 4 बड़े व 2 छोटे. केशों के इन भागों को उंगली पर रोल कर साइड में पिनअप कर लें. इस में जूड़ा पिन के स्थान पर छोटी पिनों का इस्तेमाल करें. हर 1 रोल पर साथसाथ स्प्रे भी करती जाएं. साइड के दोनों रोल्स को गोलाई दे कर जूड़े के दोनों तरफ पिनअप करें और स्प्रे कर दें. इस पर खूबसूरत हेयर ऐक्सैसरीज से सजावट कर दें.

‘हेयरस्टाइल इज ऐन आर्ट’ अकादमी की हेयर ऐक्सपर्ट गायत्री प्रभाकर से की गई बातचीत पर आधारित. 

तोषू के कारण मोहल्ले के सामने बेइज्जत होगी बा, परी को ढूंढूगी Anupama

सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों किंजल और तोषू का रिश्ता टूटने की कगार पर आ गया है. वहीं अपने बेटे तोषू का साथ देने की बजाय अनुपमा बहू किंजल का सपोर्ट करती दिख रही है. इसी के चलते अपकमिंग एपिसोड में तोषू गुस्से में अपनी ही बेटी को किडनैप करने वाला है. हालांकि इस दौरान शाह परिवार को बेइज्जती का सामना करना पड़ेगा. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे (Anupama Written Update In Hindi) …

बा के खिलाफ बरखा चलती है चाल

अब तक आपने देखा कि अनुपमा और अनुज से सम्मान लेने के लिए बा मंच पर जाती है. जहां वह अपनी स्पीच में अनुपमा और उसके रिश्ते की तारीफ करती है. हालांकि बरखा, शाह परिवार को बेइज्जत करने के लिए मौह्ल्ले की औरतों को तोषू के अफेयर का सच बता देती है, जिसके चलते वह बा पर ताने कसना शुरु हो जाते हैं. वहीं बा और शाह परिवार की भी मौहल्ले की औरतों से कहासुनी हो जाती है. लेकिन अनुपमा सभी को शांत करवा देती है.

 

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किंजल के पास आएगा तोषू

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि मौहल्ले की औरतों को शांत कराने के बाद अनुपमा, कपाड़िया और शाह फैमिली के साथ नवरात्रि का जश्न मनाएगी. इसी दौरान तोषु गरबा के दौरान किंजल के पास आकर डांस करेगा. लेकिन अनुपमा उसके साथ गरबा करने के लिए आएगी और उसे सबक सिखाएगी. वहीं वनराज, तोषु को किंजल से दूर रहने की चेतावनी देगा, जिसके कारण तोषू का गुस्सा और बढ़ जाएगा.

 

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बेटी को किडनैप करेगा तोषू

इसके अलावा आप देखेंगे कि अपनी बेटी को पाने के लिए तोषू पागल हो जाएगा और उसे किडनैप कर लेगा. वहीं पालने में अनुपमा को परी नहीं बल्कि तोषू की एक चिट्ठी मिलेगी और वह वनराज को तोषू के परी को किडनैप करने की बात बताएगी. एक तरफ जहां किंजल और पूरा परिवार परी के लिए परेशान होगा तो वहीं अनुपमा, तोषू को खोजती हुई मंदिर में पहुंचेगी जहां पर परी का खिलौना उसे मिलेगा और वह तोषू को ढूंढ निकालेगी.

काश, मेरी बेटी होती- भाग 3: शोभा की मां का क्या था फैसला

‘‘अभी जल्दी क्या है मम्मी? आप तो, बस, शादी के पीछे ही पड़ जाते हो,’’ वह उठते हुए बोला. ‘‘मैं तु झे आज उठने नहीं दूंगी. 30 साल का हो गया, अभी शादी की उम्र नहीं हुई, तो कब होगी?’’

‘‘मम्मी. यह आप की ढूंढ़ी लड़कियां आखिर मु झे क्या पता कि ये कैसी हैं. एकदो मुलाकातों में किसी के बारे में कुछ पता थोड़े ही न चलता है.’’ ‘‘तो फिर कैसे देखेगा तू लड़की?’’

‘‘मैं जब तक लड़की को 2-4 साल देखपरख न लूं, हां नहीं बोल सकता.’’ ‘‘क्या मतलब?’’ शोभा आश्चर्यचकित हो बोली. ‘‘मतलब साफ है, मैं अरैंज्ड मैरिज नहीं करूंगा.’’

‘‘तो क्या तू ने कोई लड़की पसंद की हुई है?’’ ऋषभ बिना जवाब दिए अपने कमरे में चला गया. शोभा उस के पीछेपीछे दौड़ी, ‘‘बोल ऋषभ, तू ने कोई लड़की पसंद की हुई है?’’

‘‘हां.’’ ‘‘तो फिर बताता क्यों नहीं, इतने दिनों से हमें बेवकूफ बना रहा है.’’ ‘‘बेवकूफ नहीं बना रहा हूं. बता इसलिए नहीं रहा था कि मेरी पसंद को आप लोग पसंद कर पाओगे या नहीं.’’

‘‘तेरी पसंद अच्छी होगी तो क्यों नहीं पसंद करेंगे. पर तू विस्तार से बताएगा उस के बारे में.’’ ‘‘क्या सुनना है आप को? लड़की सुंदर है, शिक्षित है. मेरी तरह इंजीनियर है. ठीकठाक सा परिवार है पर…’’‘‘पर क्या?’’

‘‘अगर आप के शब्दों में कहूं तो वह छोटी जाति की है. उसी जाति की जिन जातियों के आरक्षण का मुद्दा हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है और जिन जातियों पर देश की राजनीति हमेशा गरम रहती है और पापा का ब्राह्मणवाद… वह तो घर के नौकरचाकरों तक पर हावी रहता है. वे तो चाहते हैं कि घर में नौकर भी हो तो ब्राह्मण हो. ऐसी स्थिति में…? और मैं कहीं दूसरी जगह शादी कर नहीं सकता. इसलिए आप मेरी शादी की बात तो भूल ही जाओ.’’

शोभा का मुंह खुला का खुला रह गया. उस की स्थिति देख कर ऋषभ परिहास सा करता हुआ बोला, ‘‘इसीलिए कहता हूं मु झे ही बेटा व बहू दोनों सम झ लो और मस्त रहो,’’ कह कर वह कमरे से बाहर चला गया.

शोभा जड़ खड़ी रह गई. रक्षा और जयंति के बच्चों ने तो उन का सुखचैन ही छीना था पर उस के बेटे ने तो उसे जीतेजी ही मार दिया. घर से भी साधारण और जाति से भी छोटी. जिस लड़की के आने से पहले ही दिल में फांस चुभ गई हो, दिलों में दीवार खड़ी होने की पूरी संभावना पैदा हो गई. उस के घर में आने पर क्या होगा, सोचा जा सकता है. बेटा तो फिर से अपनी दिनचर्या में मस्त और व्यस्त हो गया पर उसे ज्वालामुखी के शिखर पर बैठा गया. उसे पता था, बेटे के हाथ पीले करने हैं तो बात तो माननी ही पड़ेगी. वह पति से बात करने की कूटनीति तैयार करने लगी. बहुत मुश्किल था सुकेश के ब्राह्मणवाद से लड़ना. कई बार तो उस की खुद की भी बहस हो जाती थी इस बात पर सुकेश से. पर उसे नहीं पता था कि ऋषभ उसे इस नैतिक दुविधा में डाल देगा.

खैर डरतेघबराते जब उस ने सुकेश को बताया तो घर कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया. युद्ध का आगाज हो जाने के कारण वह बिना किसी जतन के बेटे के पाले में फेंक दी गई. और सुकेश अपने पाले में अकेले रह गए. नित तोपगोले दागे जाते. दोनों पक्ष व्यंग्यबाणों से एकदूसरे को घायल करने में कोताही न बरतते. कई तरह के तर्कवितर्क होते पर महिला सशक्तीकरण का भूत कुछकुछ शोभा के दिमाग को वशीभूत कर चुका था, इसलिए वह डटी रही. आखिर सुकेश को अपने तीरतरकश जमीन पर रखने ही पड़े. असहाय शत्रु की तरह वे शरण में आ गए इस शर्त पर कि विवाह के बाद बेटेबहू ऊपर के पोर्शन में रहेंगे. इस बात को ऋषभ व शोभा दोनों मान गए और दोनों पक्षों की सफल वार्त्ता के बाद विवाह विधिविधान से संपन्न हो गया.

 

ऋषभ ने अपने कपड़ों की अटैची उठाई और दान में मिले पलंग व 4 बरतनों के साथ एक गैस का चूल्हा खरीदा और ऊपर के पोर्शन में अपनी गृहस्थी बसा ली. शोभा तो बहू को ले कर पहले ही कई तरह के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त थी, ऊपर से छोटी जाति की लड़की. हालांकि वह बहुत ज्यादा जातिवाद नहीं मानती थी पर फिर भी इस स्तर की जाति तक जाना, रुढ़ीवादिता से ग्रसित उस का मन भी बहुत खुल कर बहू को अपना नहीं पा रहा था.  इसलिए उस ने भी पति सुकेश को मनाने की कोशिश नहीं की. बहूबेटे विवाह के अगले दिन 10 दिन के हनीमून ट्रिप पर निकल गए. उस ने भी विवाह के बाद के कार्य, रिश्तेदारों में मिठाईकपड़े वगैरह का लेनदेन निबटाया. अपने निकट रिश्तेदारों का इस विवाह में मूड जो उखड़ा था, उखड़ा ही रहा. वे कर भी क्या सकते थे. ‘बेटे की मरजी थी’ कह कर उन्होंने हाथ  झाड़ दिए थे. बच्चों के वापस आने का दिन पास आ रहा था. इसी बीच सुकेश औफिस की तरफ से एक हफ्ते की ट्रेनिंग के लिए चेन्नई चले गए. उस के अगले दिन बेटेबहू हनीमून से वापस आ गए.

सुबह शोभा की देर से नींद खुली. उठ कर वह बाथरूम में फ्रैश होने चली गई. मुंह धो कर वह तौलिए से पोंछती हुई बाहर आ रही थी कि सुबहसुबह कोयल सी कुहुक कानों में मधुर संगीत घोल गई.

‘‘मां, चाय लाई हूं आप के लिए,’’ मुखड़े पर मीठी मुसकान की चाशनी घोले माधवी ट्रे लिए खड़ी थी. सुबहसुबह की धूप से उज्ज्वल मुखड़े पर स्निग्ध चांदनी छिटकी हुई थी.

‘‘पर तुम क्यों लाईं चाय, मैं खुद ही बना लेती,’’ शोभा को एकाएक सम झ नहीं आया, क्या बोले.

‘‘वो, ऋषभ ने कहा कि पापा नहीं हैं तो… आप पी लेंगी. नहीं पीना चाहती हैं तो कोई बात नहीं. मैं वापस ले जाती हूं.’’ मुखड़े की चांदनी जैसे मलिन हो गई. शोभा का हृदय द्रवित हो गया.

‘‘नहींनहीं, रख दो, मैं पी लूंगी.’’ खुश हो माधवी ने ट्रे साइड टेबल पर रख दी. मुखड़ा फिर से लकदक करने लगा. शोभा का दिल किया, बहू को खींच कर छाती से लगा ले पर नहीं, उंगली पकड़ कर उस की गृहस्थी में उस का अनाधिकार प्रवेश? सुकेश कभी भी बरदाश्त नहीं करेंगे. वह 2 मिनट खड़ी रही, फिर चली गई.

शोभा सुबह उठती और चाय की ट्रे ले कर माधवी उस के पास खड़ी हो जाती. न जयंति की बेटी सुबह उठती है न रक्षा की बहू. माधवी भी इंजीनियर है पर यह कैसे? अगले दिन रविवार था. लंच के समय माधवी कढ़ी का कटोरा लिए हाजिर हो गई. ‘‘मां, मैं ने कढ़ी बनाई है आज. खा कर देखिए, कैसी बनी है?’’

कढ़ी खाते हुए शोभा सोच रही थी, ‘इतनी स्वादिष्ठ कढ़ी? इंजीनियरिंग करतेकरते यह लड़की कब गृहस्थी के काम सीख गई. रात को भी माधवी कमल ककड़ी के कोफ्ते रख गई. उस की सुघढ़ता देख कर शोभा के दिल में सुनीसुनाई आजकल की बिगड़ैल बेटीबहुओं की छवि गड्डमड्ड हो रही थी. लड़की माधवी जैसी भी होती है. पर उसे ज्यादा भाव नहीं देना चाह रही थी क्योंकि सुकेश का ब्राह्मणवाद उस के समूचे प्यार व सपनों पर हावी हो रहा था.

दूसरे दिन कामवाली ने छुट्टी ले ली यह कह कर कि उसे अपने भाई के घर जाना है, शाम तक आ जाएगी. ऊपर भी वही काम करती थी. सुबह माधवी चाय रख गई. अभी शोभा चाय पी ही रही थी कि उसे किचन में बरतनों की खटरपटर की आवाज सुनाई दी. वह किचन में गई तो देखा, माधवी जल्दीजल्दी रात के बरतन धो रही है. यह क्या कर रही हो माधवी?

‘‘मां, आज कामवाली दीदी ने छुट्टी की है न, इसलिए बरतन धो रही हूं. ऊपर के तो मैं ने उठते ही धो लिए थे.’’

शोभा आश्चर्य व ममता से माधवी को निहारने लगी, तु झे औफिस के लिए देर नहीं हो रही?

‘‘नहीं, अभी तो टाइम है. बस, तैयार हो जाऊंगी जल्दी से,’’ बरतन रख कर, सिंक धो कर वह उस की तरफ पलटती हुई बोली.

जयंति और रक्षा को तो कितनी शिकायतें हैं अपनी बेटी और बहू से. पर माधवी, कितनी अलग है. उस की खुद की बेटी होती तो क्या ऐसी ही होती या उन के जैसी होती. दिल फिर किया, बहू को छाती से लगा ले, मनभर कर दुलार कर ले. पर सुकेश की बड़ीबड़ी गुस्सैल आंखें याद आ गईं. ‘नहींनहीं, शादी करा दी किसी तरह. बस, दोनों खुश रह लें आपस में. अब नहीं उल झना उसे.’

प्रश्नचिह्न- भाग 2: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

मालिनी क्लास में भी उस की दोस्ती किसी दूसरे से नहीं होने देती. उस की दबंगता की वजह से दूसरी लड़कियां निविदा के आसपास भी नहीं फटकतीं. मालिनी उस से मनचाहा व्यवहार करती. उस का दब्बूपन उस के लिए कुतूहल का विषय था. ऐसी लड़की पढ़ने में इतनी होशियार कैसे थी कि उसे इस कालेज में प्रवेश मिल गया.

मालिनी की हरकतों की वजह से निविदा भी कई बार डांट खा जाती थी.

एक दिन मालिनी टीचर्स के जाने के बाद क्लास में अपने गु्रप की लड़कियों के साथ टीचर्स की नकल कर उन का मजाक उड़ा रही थी. बाकी विद्यार्थी चले गए थे. लेकिन वह तो मालिनी की आज्ञा के बिना खिसक भी नहीं सकती. उस दिन मालिनी व उन लड़कियों की शिकायत चपरासी के जरीए टीचर्स तक पहुंच गई.

उन सब के साथ निविदा को भी खूब डांट पड़ी. कालेज में उस पूरे ग्रुप की तो छवि खराब थी ही, निविदा भी उस में शामिल हो गईर् थी. उन के क्लासरूम के आगे स्टाफरूम था जहां से निकल कर जाते समय टीचर्स की नजर विद्यार्थियों पर पड़ जाती थी.

दूसरे दिन मालिनी व उस की गु्रप की लड़कियां क्लासरूम की पीछे की खिड़की से कूद कर एडल्ट मूवी देखने की योजना बना रही थीं.

मालिनी ने उसे भी पकड़ लिया, ‘‘तू भी चल हमारे साथ.’’

‘‘नहीं, मैं नहीं जाऊंगी… मुझे क्लास अटैंड करनी है,’’ वह भीख मांगने वाले अंदाज में बोली.

‘‘एक दिन नहीं करेगी तो क्या आईएएस बनने से रह जाएगी?’’ चुपचाप चल हमारे साथ.

‘‘तुम मेरे साथ इतनी जबरदस्ती क्यों करती हो मालिनी?’’ वह घिघियाती हुई बोली, ‘‘तुम्हें जाना है तो तुम जाओ.’’

‘‘ताकि तू टीचर्स से हमारी खासकर मेरी शिकायत कर दे.’’

‘‘मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगी.’’

मगर मालिनी ने उस की एक न सुनी और उस के डर से वह भी पीछे की खिड़की से कूद कर मालिनी के साथ चली गई. उस में इतनी हिम्मत नहीं थी कि मालिनी की दबंगता के खिलाफ बगावत कर उस की शिकायत कर उस से दुश्मनी मोल लेती. मूवी में उस का मन बिलकुल नहीं लगा.

घर के घुटनभरे वातावरण से भाग कर यहां आईर् थी पर मालिनी पता नहीं कहां से अभिशाप बन उस के जीवन के साथ लग गईर् थी. मालिनी के गु्रप के साथ उसे जबरदस्ती रहना पड़ता था, जिस से क्लास में, कालेज में उस की छवि खराब हो रही थी.

यों मालिनी उसे कई मुसीबतों से बचाती भी थी. तबीयत खराब होने पर उसे डाक्टर को भी दिखा लाती. दवा भी ला देती. उस की तरफ उस का रवैया सुरक्षात्मक तो रहता पर वैसा ही जैसा किसी का अपने गुलाम के प्रति रहता है.

उस दिन उन के पूरे ग्रुप के गायब होने की शिकायत प्रिंसिपल तक चली गई और अगले दिन प्रिंसिपल के सामने उन का जवाब तलब हो गया. सब को खूब डांट पड़ी. सभी को अपनेअपने अभिभावकों को बुला लाने का फरमान सुना दिया गया. प्रिंसिपल के इस फरमान के बाद तो निविदा के लिए जैसे दुनिया खत्म हो गई और भविष्य चौपट.

पापा का डरावना चेहरा, मम्मी का रोनासिसकना, गिड़गिड़ाना, घर का घुटन भरा वातावरण सबकुछ याद आ गया. इस हरकत के बाद तो पापा उसे यहां कभी नहीं रहने देंगे. उस दिन कमरे में आ कर वह फूटफूट कर रो पड़ी. पर मालिनी को कोई फर्क नहीं पड़ा. वह मस्त थी.

‘‘इतना स्यापा क्यों कर रही है ऐसा क्या हो गया भई? मूवी ही तो गए थे किसी का मर्डर तो नहीं किया. प्रिंसिपल ने डांटा ही तो है… कालेज लाइफ में तो ये सब चलता ही रहता है.’’

‘‘तुम्हारे लिए यह साधारण बात होगी,’’ अचानक निविदा ने अपना आंसुओं भरा चेहरा उठाया, ‘‘पर मेरे लिए तो मेरा पूरा भविष्य खत्म हो गया. मुझे तो अब कालेज छोड़ना पड़ेगा… मेरे पापा अब मुझे यहां किसी कीमत पर नहीं रहने देंगे… जिन मुश्किलों से घबरा कर यहां आई थी, तुम्हारी हरकतों व ज्यादतियों ने मुझे फिर वहीं धकेल दिया. तुम्हारा क्या, तुम तो खेल की दुनिया में भी अपना कैरियर बना लोगी, पर मैं क्या करूंगी,’’ कहतेकहते निविदा फिर फूटफूट कर रोने लगी.

शांत और हर समय घबराई सी निविदा को इतने गुस्से से बोलते देख मालिनी एकाएक संजीदा हो गई. टेबल पर सिर रख कर फूटफूट कर रोती निविदा के सिर पर स्नेह से हाथ फेरने लगी, ‘‘चुप हो जाओ निविदा… लगता है कुछ गलती हो गई मुझ से… मैं कोशिश करूंगी स्थिति को संभालने की… कम से कम तुम पर आंच न आए… पर ऐसा क्या है तुम्हारे मन में जो तुम इतनी डरी और घुटी हुई रहती हो हर वक्त? क्या कमी है तुम में? तुम्हारे जैसा दिमाग, खूबसूरती, जिन के पास हो उन का व्यक्तित्व तो आत्मविश्वास से वैसे ही छलक जाएगा. सबकुछ होते हुए भी तुम इतनी डरपोक क्यों हो? आत्मविश्वास नाम की चीज नहीं है तुम्हारे अंदर.’’

निविदा ने कोई जवाब नहीं दिया.

मालिनी उस के सिर पर हाथ फेरती रही, ‘‘बताओ मुझे… शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद

कर सकूं.’’

‘‘तुम क्या मदद करोगी मेरी… इतनी बड़ी मुसीबत में फंसा दिया मुझे.’’

‘‘बोल कर तो देखो निविदा… खोटा सिक्का भी काम आता है कभीकभी… मैं जिंदगी को बहुत गंभीरता से कभी नहीं लेती, इसलिए बिंदास रहती हूं… पर तुम्हारी बातों ने आज सोचने पर मजबूर कर दिया है.’’

और निविदा ने धीरेधीरे सुबकसुबक कर पहली बार किसी गैर के सामने अपना पूरा मन खोल कर रख दिया. पूरा बचपन, पूरा अतीत बयां करते हुए मालिनी को न जाने कितनी बार निविदा को गले लगा कर चुप करा कर सांत्वना देनी पड़ी.

‘‘इतना कुछ निविदा… काश, तुम मुझे पहले बताती. आई एम सौरी… गलती हो गई मुझ से… पर मैं ही सुधारूंगी इसे. चाहे इस के लिए मुझे सारा इलजाम खुद पर क्यों न लेना पड़े. तुम फिक्र मत करो.’’

दूसरे दिन मालिनी प्रिंसिपल से व्यक्तिगत तौर पर मिलने उन के औफिस पहुंच गई

और उन्हें सारी बात कह सुनाई, ‘‘बस एक मौका और दे दीजिए मैम. पूरे ग्रुप से आप को कभी शिकायत का मौका नहीं मिलेगा… अगर शिकायत मिली तो आप सब से पहले मुझे रैस्टिकेट कर दीजिएगा…’’

प्रिंसिपल पिघल गईं और उन्होंने पूरे ग्रुप को माफी दे दी.

निविदा मालिनी की मुरीद हो गई. उस के बिंदास, लापरवाह, दबंग स्वभाव के पीछे एक संजीदा व सहृदय दोस्त के दर्शन हुए. जिस मालिनी की वजह से निविदा को कालेज की भी जिंदगी दमघोटू महसूस हो रही थी वही जिंदगी उसी मालिनी के सान्निध्य में खुशगवार लगने लगी थी. वह पढ़ाई करती तो मालिनी अपना ही नहीं उस का भी काम कर देती.

‘‘तू अपनी पढ़ाई पर ध्यान दे… मैं तेरे जैसी लायक नहीं… पर मेरी सखी जिस दिन आईएएस बनेगी गर्व से कौलर मैं ही अप करूंगी.’’

‘‘वह मौका तो मुझे भी मिलेगा मालिनी जिस दिन खेल की दुनिया में तू नाम रोशन करेगी.’’

दोनों सहेलियां दिल से एकदूसरे के नजदीक आ गईर् थीं. प्रथम वर्ष के इम्तिहान के बाद विद्यार्थी छुट्टियों में अपनेअपने घर चले गए. निविदा भी दुखी मन से अटैची पैक करने लगी. अपने घर जाने का मन मालिनी का भी नहीं हो रहा था.

‘‘मैं भी तेरे साथ तेरे घर चलती हूं निविदा… कुछ दिन तेरे साथ रहूंगी. फिर कुछ दिनों के लिए घर चली जाऊंगी या फिर तू मेरे साथ चले चलना कुछ दिनों के लिए…’’

निविदा घबरा गई. मालिनी की बेबाकी घर में क्या गुल खिला सकती है, वह जानती थी. उस ने कई तरह के बहाने बनाए और फिर सुबह की बस से अपने घर चली गई.

कागज का रिश्ता- भाग 2: क्या परिवार का शक दूर हुआ

चिंता की गहरी लकीरें उस के माथे पर स्पष्ट उभर आई थीं. उस ने एक गुलाबी लिफाफा अपनी पत्नी के आगे रखते हुए कहा, ‘‘तुम्हारा पत्र आया है.’’

‘‘मेरा पत्र,’’ विभा ने आगे बढ़ कर वह पत्र अपने हाथ में उठाया और चहक कर बोली, ‘‘अरे, यह तो मोहन का पत्र है.’’

मुसकरा कर विभा वह पत्र खोल कर पढ़ने लगी. उस के चेहरे पर इंद्रधनुषी रंग थिरकने लगे थे.

मुकेश पत्नी पर एक दृष्टि फेंक कर सिगरेट सुलगाते हुए बोला, ‘‘यह मोहन कौन है?’’

‘‘मेरे पत्र मित्रों में सब से अधिक स्नेहशील और आकर्षक,’’ विभा पत्र पढ़तेपढ़ते ही बोली.

विभा पत्र पढ़ती रही और मुकेश चोर निगाहों से पत्नी को देखता रहा. पत्र पढ़ कर विभा ने दराज में डाल दिया और फिल्मी धुन गुनगुनाती हुई ड्रैसिंग टेबल के आईने में अपनी छवि निहारते हुए बाल संवारती रही.

मुकेश ने घड़ी में समय देखा और विभा से बोला, ‘‘आज खाना नहीं मिलेगा क्या?’’

‘‘खाना तो लगभग तैयार है,’’ कहते हुए विभा रसोई की तरफ चल दी. जब रसोई से बरतनों की उठापटक की आवाज आनी शुरू हो गई तो मुकेश ने दराज से वह पत्र निकाल कर पढ़ना शुरू कर दिया.

हिमाचल के चंबा जिले के किसी गांव से आया वह पत्र पर्वतीय संस्कृति की झांकी प्रस्तुत करता हुआ, विभा को सपरिवार वहां आ कर कुछ दिन रहने का निमंत्रण दे रहा था.

विभा के द्वारा भेजे गए नए साल के बधाई कार्ड और पूछे गए कुछ प्रश्नों के उत्तर भी उस पत्र में दिए गए थे. पत्र की भाषा लुभावनी और लिखावट सुंदर थी.

विभा ने मेज पर खाना लगा दिया था. पूरा परिवार भोजन करने बैठ चुका था, पर मुकेश न जाने क्यों उदास सा था. राकेश बराबर में बैठा लगातार अपने भैया के मर्म को समझने की कोशिश कर रहा था. उसे अपनी भाभी पर रहरह कर क्रोध आ रहा था.

राकेश ने मटरपनीर का डोंगा भैया के आगे सरकाते हुए कहा, ‘‘आप ने मटरपनीर की सब्जी तो ली ही नहीं. देखिए तो, कितनी स्वादिष्ठ है.’’

‘‘ऐं, हांहां,’’ कहते हुए मुकेश ने राकेश के हाथ से डोंगा ले लिया, पर वह बेदिली से ही खाना खाता रहा.

मुकेश की स्थिति देख कर राकेश ने निश्चय किया कि वह इस बार भाभी के नाम आया कोई भी पत्र मुकेश के ही हाथों में देगा. जितनी जल्दी हो सके, इन पत्रों का रहस्य भैया के आगे खुलना ही चाहिए.

राकेश के हृदय में बनी योजना ने साकार होने में अधिक समय नहीं लिया. एक दोपहर जब वह अपने मित्र के यहां मिलने जा रहा था, उसे डाकिया घर के बाहर ही मिल गया. वह अन्य पत्रों के साथ विभा भाभी का गुलाबी लिफाफा भी अपनी जेब के हवाले करते हुए बाहर निकल गया.

राकेश जब घर लौटा तब मुकेश घर पहुंच चुका था. भाभी रसोई में थीं और मांजी बरामदे में बैठी रेडियो सुन रही थीं. राकेश ने अपनी जेब से 3-4 चिट्ठियां निकाल कर मुकेश के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘भैया, शायद एक पत्र आप के दफ्तर का है और एक उमा दीदी का है. यह पत्र शायद भाभी का है. मैं सतीश के घर जा रहा था कि डाकिया रास्ते में ही मिल गया.’’

‘‘ओह, अच्छाअच्छा,’’ मुकेश ने पत्र हाथ में लेते हुए कहा. अपने दफ्तर का पत्र उस ने दफ्तरी कागजों में रख लिया और उमा का पत्र घर में सब को पढ़ कर सुना दिया. विभा के नाम से आया पत्र उस ने तकिए के नीचे रख दिया.

रात को कामकाज निबटा कर विभा लौटी तो मुकेश ने गुलाबी लिफाफा उसे थमाते हुए कहा, ‘‘यह लो, तुम्हारा पत्र.’’

‘‘मेरा पत्र, इस समय?’’ विभा ने आश्चर्य से कहा.

‘‘आया तो यह दोपहर की डाक से था, जब मैं दफ्तर में था. लेकिन अभी तक यह आप के देवर की जेब में था,’’ मुकेश ने पत्नी की तरफ देखते हुए कहा.

विभा ने मुसकरा कर वह पत्र खोला और पढ़ने लगी. शायद पत्र में कोई ऐसी बात लिखी थी, जिसे पढ़ कर वह खिलखिला कर हंस पड़ी. मुकेश ने इस बार पलट कर पूछा, ‘‘मोहन का
पत्र है?’’

‘‘हां, लेकिन आप ने कैसे जान लिया?’’ विभा ने हंसतेहंसते ही पूछा.

‘‘लिफाफे को देख कर. कुछ और बताओगी इन महाशय के बारे में?’’ मुकेश ने पलंग पर बैठते हुए कहा.

‘‘हांहां, क्यों नहीं. मोहन एक सुंदर नवयुवक है. उस का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक है. मुझे तो उस की शरारती आंखों की मुसकराहट बहुत भाती है,’’ विभा ने सहज भाव से कहा पर मुकेश शक और ईर्ष्या की आग में जल उठा.

मुकेश ने फिर पत्नी से कोई बात नहीं की और मुंह फेर कर लेट गया. विभा ने एक बार मुकेश की पीठ को सहलाया भी, पर पति का एकदम ठंडापन देख कर वह फिर नींद की आगोश में डूब गई.

घरगृहस्थी की गाड़ी ठीक पहले जैसी ही चलती रही पर मुकेश का स्वभाव और व्यवहार दिनोंदिन बदलता चला गया. अब अकसर वह देर रात घर लौटता. पति के इंतजार में भूखी बैठी विभा से वह ‘बाहर से खाना खा कर आया हूं’ कह कर सीधे अपने कमरे में घुस जाता. मांजी और राकेश भी मुकेश का व्यवहार देख कर परेशान थे. मुकेश और विभा के बीच धीरेधीरे एक ठंडापन पसरने लगा था. दोनों के बीच वार्त्तालाप भी अब बहुत संक्षिप्त होता था. मुकेश अब अगर दफ्तर से समय पर घर लौट भी आता तो सिगरेट पर सिगरेट फूंकता रहता.

आखिर एक शाम विभा ने मुकेश के हाथ से सिगरेट छीनते हुए तुनक कर कहा, ‘‘आप मुझे देखते ही नजरें क्यों फेर लेते हैं? क्या अब मैं सुंदर नहीं रही?’’

मुकेश ने विभा की बात का कोई जवाब नहीं दिया.

‘‘आप किस सोच में डूबे रहते हैं? देखती हूं, आप आजकल सिगरेट ज्यादा ही पीने लगे हैं. बताइए न?’’ विभा की आंखों में आंसू भर आए.

‘‘तुम तो उतनी ही सुंदर हो जितनी शादी के समय थीं, पर मैं न तो मोहन की तरह सुंदर हूं न ही बलिष्ठ. न मैं उस की तरह योग्य हूं न आकर्षक,’’ मुकेश ने रूखे स्वर में जवाब दिया.

‘‘यह क्या कह रहे हैं आप?’’

‘‘मैं अब तुम्हें साफसाफ बता देना चाहता हूं कि अब मैं तुम्हारे साथ अधिक दिनों तक नहीं निभा सकता. मैं बहुत जल्दी ही तुम्हें आजाद करने की सोच रहा हूं जिस से तुम मोहन के पास आसानी से जा सको,’’ मुकेश ने अत्यंत ठंडे स्वर से कहा.

‘‘यह क्या कह रहे हैं आप?’’ विभा घबरा कर बोली. उसे लगा, संदेह के एक नन्हे कीड़े ने उस के दांपत्य की गहरी जड़ों को क्षणभर में कुतर डाला है.

‘‘मैं वही सच कह रहा हूं जो तुम नहीं कह सकीं और छिप कर प्रेम का नाटक खेलती रहीं,’’ अब मुकेश के स्वर में कड़वाहट घुल गई थी.

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