करवा चौथ 2022: इन 26 टिप्स से बढ़ाएं पति-पत्नी का प्यार

प्यार के महकते फूल को बचाए रखने के लिए यह जरूरी है कि बैडरूम को कुरुक्षेत्र नहीं, बल्कि प्रणयशाला बनाया जाए और इस के लिए यह बेहद जरूरी है कि बैडरूम लव की ए टु जैड परिभाषा को कायदे से जाना जाए. तो फिर चलिए प्रणयशाला की क्लास में:

1. अटै्रक्ट-आकर्षित करना

अपने साथी को आकर्षित करना ही प्रणयशाला का प्रथम अक्षर है. पत्नी को चाहिए कि वह पति के आने से पहले ही अपने काम निबटा कर बनावशृंगार कर ले और पतिदेव औफिस के काम का बोझ औफिस में ही छोड़ कर आएं.

2. ब्यूटीफुल-सुंदर

सुंदरता और आकर्षण सिक्के के 2 पहलू हैं. हर सुंदर चीज अपनी ओर देखने वाले को आकर्षित करती ही है, इसलिए शादी के बाद बढ़ते वजन पर लगाम लगाएं और ब्यूटीपार्लर जा कर अपनी सुंदरता को फिर से अपना बनाएं ताकि आप की सुंदरता को देख कर उन्हें हर दिन खास लगे.

3. चेंज-बदलाव

अगर जिंदगी एक ही धुरी पर घूमती रहे तो बेमजा हो जाती है. इसलिए अपनी सैक्स लाइफ में भी थोड़ा चेंज लाएं. मसलन, प्यार को केवल बैडरूम तक ही सीमित न रख कर एकसाथ बाथ का आनंद लें और अगर जौइंट फैमिली में हैं तो चोरीछिपे उन्हें फ्लाइंग किस दें, कभी अपनी प्यार की कशिश का चोरीछिपे आतेजाते एहसास कराएं. यकीन मानिए कि यह प्यार की लुकाछिपी आप की नीरस जिंदगी को प्यार से सराबोर कर देगी.

4. डेफरेंस-आदर

पतिपत्नी को चाहिए कि वे एकदूसरे को उचित मानसम्मान दें. साथ में एकदूसरे के परिवार का भी आदर करें, क्योंकि जिस दर पर आदर व कद्र हो, प्यार भी वहीं दस्तक देता है.

5. ऐलिगैंस-सुघड़ता

अस्तव्यस्त हालत में न तो घर अच्छा लगता है और न ही आप. कहीं ऐसा न हो कि जब आप दोनों बैडरूम में आएं तो पलंग पर सामान ही बिखरा पड़ा हो और बैठने की जगह भी न मिले. फिर प्यार की बात तो भूल ही जाएं. इसलिए घर को हमेशा संवार कर रखें.

6. फौरगेट-भूल जाना

भुलक्कड़पने की आदत वैसे तो बुरी होती है लेकिन बात जहां पतिपत्नी के रिश्ते की हो तो यह आदत अपनाना ही श्रेयस्कर है. मतलब अतीत में मिले जख्मों, शिकवेशिकायतों व लड़ाईझगड़ों को बैडरूम के बाहर ही भूल कर हर रोज अपने रिश्ते की नई शुरुआत करनी चाहिए और भूल कर भी भूली बातों को याद नहीं करना चाहिए.

7. गारमैंट्स-परिधान

यह काफी कौमन प्रौब्लम है कि लेडीज सुबह के पहने हुए कपड़ों में ही रात को सोने पहुंच जाती हैं. नतीजतन उन के कपड़ों से आने वाली सब्जियों, मसालों व पसीने की दुर्गंध बेचारे पतिदेव को व्यर्थ में ही सब्जीमंडी की याद दिला देती है. ऐसे में बेचारे दिल के कोने में दुबका पड़ा प्यार भी काफूर हो जाता है और उस की जगह चिड़चिड़ाहट ले लेती है. इसलिए प्यार के एहसास को तरोताजा करने के लिए खुद भी तरोताजा हो कर साथी के संसर्ग में आएं.

8. हैल्प-मदद

बढ़ती जरूरतों के कारण समयसीमा जिंदगी में छोटी पड़ती जा रही है. लेकिन अगर पतिपत्नी स्वेच्छा से एकदूसरे के काम में अपना सहयोग दें तो भागते समय में से प्यारमुहब्बत के पलों को आसानी से पकड़ा जा सकता है यानी जिम्मेदारियों को मिल कर उठाएं और जिंदगी का भरपूर आनंद लें.

9. इंपेशेंस-अधीरता

प्यार का मतलब सिर्फ जिस्मानी जरूरत से ही नहीं होता, बल्कि प्यार में एकदूसरे की भावना को भी मान देना जरूरी होता है. प्यार का तात्पर्य बेसब्री और अधीरता से प्रणयसंबंध बना कर दूसरी तरफ करवट ले कर सो जाना नहीं होता, बल्कि प्यार भरा आलिंगन प्रेमालाप और प्यार भरी बातों व स्नेहिल स्पर्श के द्वारा भी आप अपने साथी को प्यार से सराबोर कर सकते हैं.

10. जौइन-जोड़ना

अकसर पत्नी की आदत हो जाती है कि वह बैडरूम में आते ही ससुराल वालों की बुराई शुरू कर देती है, जिस से बेवजह माहौल में तनाव आ जाता है. माना कि आप परेशान हैं, लेकिन आप के पति को भी तो औफिस में न जाने कितने काम और टैंशनरही होगी. इन सब बेकार की बातों से आप अनजाने में वे हसीन पल गवां देती हैं, जो आप दोनों को खुशियां दे सकते थे. पतिपत्नी को स्वयं सोचना चाहिए कि जिंदगी में टैंशन तो लगी रहती है, लेकिन दिलों को जोड़ने वाले पल होते ही कितने हैं. इसलिए बैडरूम में दिलों को जोड़ें, न कि तोड़ने का काम करें.

11. किड्स-बच्चे

बच्चे होने के बाद पतिपत्नी के रिश्ते को मजबूत आधार मिलता है. लेकिन कहीं न कहीं पति को प्यार बंटता हुआ भी महसूस होता है, क्योंकि बच्चे होने के बाद पत्नी का ध्यान बच्चों में ज्यादा लगा रहता है जिसे पति अपनी उपेक्षा समझने लगता है. इसलिए बच्चों के साथसाथ अगर पति की भी थोड़ीबहुत फरमाइश पूरी करें तो उन को भी अच्छा लगेगा.

12. लाइक-अच्छा लगना

पतिपत्नी को एकदूसरे के स्वभाव, इच्छाओं आदि को मान देना चाहिए. स्त्री स्वभाव से शर्मिली होती है, इसलिए यह पति का कर्तव्य होता है कि वह चुंबन, आलिंगन, स्पर्श व प्यार भरी बातों से उस की झिझक को दूर करे. उसी तरह पत्नी को भी वह सब करना चाहिए जो पति को अच्छा लगे.

13. मसाज-मालिश

मसाज करने से बौडी और माइंड दोनों रिलैक्स फील करते हैं और ऐसे में यदि आप का पार्टनर ही आप को मसाज थेरैपी दे तो क्या कहने. माना कि वर्किंग डे में ऐसा होना मुश्किल है, लेकिन अगर वीकेंड में इस थेरैपी का इस्तेमाल किया जाए तो यकीन मानिए आप दोनों को ही वीकेंड का ही इंतजार रहेगा.

14. नेवर-कभी नहीं

प्यार को लड़ाईझगड़े में हथियार न बनाएं. फरमाइश पूरी न होने पर, ‘नहीं आज मूड नहीं है’, ‘मुझे सोना है’ और ‘जब देखो तब तुम्हें यही सूझता है’ जैसे संवाद रिश्तों में पड़ने वाली गिरह का काम करते हैं. इसलिए प्यार को सिर्फ प्यार ही रहने दें.

15. ओपिनियन-राय

गृहस्थ जीवन में कई ऐसे मुद्दे होते हैं, जिन में कभीकभी पतिपत्नी दोनों की राय एक होती है, तो कभीकभी दोनों की राय जुदा होती है. ऐसे मौकों पर एकदूसरे की राय को सुनें, उस पर ध्यान दें और मिल कर सही निर्णय लें फिर चाहे मसला जो भी हो.

16. प्लौडिट-प्रशंसा

हर इनसान अपनी प्रशंसा करवाना चाहता है, इसलिए जो बातें आप को एकदूसरे में अच्छी लगती हैं उन्हें निस्संकोच अपने साथी से कहें. सिर्फ इतना ही नहीं, निश्छल रूप से सहवास के आनंददायक पलों में भी बेझिझक उन की तारीफ करें. यह तारीफ आप के साथी में पहले से कई गुना ज्यादा जोश भर देगी.

17. क्वैरी-प्रश्न पूछना

अकसर संबंधों में ठहराव आने की वजह चुप्पी भी होती है, जिसे हम अपने अहं की वजह से ओढ़ लेते हैं. उस के कारण कई बार छोटेछोटे झगड़े बड़ा भयंकर रूप धारण कर लेते हैं. इसलिए चुप्पी की दीवार फांद कर उन से पूछें कि एक छोटी सी बात हमारे प्यार के बीच कब तक रहेगी? पतिपत्नी के रिश्ते में स्वस्थ संवाद होने बेहद जरूरी हैं अन्यथा दिल की धड़कनों को भी चुप्पी लगने में समय नहीं लगता.

18. रेमेंट-पोशाक

प्रेमिका या प्रेमी के रूप में आप ने अपने साथी को आकर्षित करने के लिए कितना कुछ किया, लेकिन शादी के बाद वह प्यार कहीं डब्बे में बंद कर दिया. इसलिए डब्बा खोलें और आप के हमसफर शादी से पहले आप को जिस ड्रैस व रूप में पसंद करते थे वापस उस रूप में आ जाएं.

19. सैटिस्फैक्शन-संतुष्टि

विवाह का एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है पतिपत्नी दोनों की यौन इच्छाओं की तृप्ति. लेकिन किसी एक के संतुष्ट न होने पर असंतोष, द्वेष, आक्रोश व हीनता का रूप ले लेता है. इसलिए अपने साथी की जरूरतों को समझें.

20. र्म-शर्तें

पतिपत्नी के रिश्ते में आपसी तालमेल व समझदारी बहुत माने रखती है. लेकिन जब संबंधों के बीच शर्त आने लगे तो वह रिश्ते में घुन का काम करती है. कई महिलाएं ऐसी भी होती हैं, जो प्यार और शर्त को एक ही पलड़े में रखती हैं. जैसे यह कहती हैं कि मुझे सोने का सैट ला कर दोगे तो ही हाथ लगाने दूंगी. नतीजा, पति का मन प्रणय संबंध से खट्टा हो जाता है और वह कहीं और प्यार की तलाश करने लगता है.

21. अनकंसर्न-उदासीन

जिस तरह प्यार में एकदूसरे का साथ जरूरी होता है, उसी तरह एकदूसरे की परवाह करना भी जरूरी होता है. ऐसा न हो कि पतिदेव आएं और आप टीवी या बच्चों में ही उलझी रहें. अगर रिश्ते में नीरसता और उदासीनता ही छाई रहेगी, तो प्यार को हरियाली कैसे मिलेगी, क्योंकि उन के छोटे से दिल में या तो उदासीनता रह सकती है या फिर आप.

22. वैराइटी-विभिन्न प्रकार

जिंदगी एक ढर्रे पर चलती रहे तो बोरिंग लगने लगती है. उसी तरह बैडरूम रोमांस में भी नई जान डालने के लिए रोमांटिक बनें. कभी बाथरूम, कभी ड्राइंगरूम तो कभी किचन रोमांस का लुत्फ उठाएं. प्रणय मिलन के समय अलगअलग रतिक्रीडाओं द्वारा सैक्सुअल लाइफ का भरपूर आनंद उठाएं.

23. व्हीड्ल-लुभाना

प्रणयमिलन का भरपूर लुत्फ उठाना चाहती हैं तो उस की शुरुआत दिन से ही करें. उन्हें फोन पर ‘आई लव यू’ कहें और मैसेज के द्वारा रोमांटिक बातें सैंड करें. उन्हें निस्संकोच बताएं कि आप उन का साथ चाहती हैं. फिर बनसंवर कर शाम को उन का इंतजार करें.

24. जेरौटिक-नीरस

बैडरूम के नीरस माहौल में तबदीली कर के उसे थोड़ा रोमांटिक व सुगंधित बनाएं. साथ में कोई धीमा संगीत चलाएं. माहौल को और ज्यादा रंगीन व खुशनुमा बनाने के लिए कोई रोमांटिक मूवी, मैगजीन या फोटो देखें, जो आप की उमंग भरी कल्पनाओं को हकीकत का रूप दे, साथ में आप की जिंदगी में नया जोश, नई उमंग भर दे.

25. योगा

हैल्दी सैक्स लाइफ के लिए हैल्दी शरीर होना बेहद जरूरी है और उस के लिए योगा यानी व्यायाम से बेहतर कोई और औप्शन नहीं है. यह आप के शरीर को नई स्फूर्ति व ऊर्जा देगा. फिट शरीर के साथ ही आप फिट सैक्स लाइफ पा सकते हैं और अपने साथी व अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं.

26. जेस्ट-मजेदार

जिंदगी मजेदार तभी होती है जब जिंदगी के हर पल का भरपूर आनंद उठाया जाए. सैक्स लाइफ को भी हैल्दी व अपडेट करना चाहते हैं, तो मुख्य सहवास क्रिया से ज्यादा फोरप्ले और आफ्टरप्ले में ध्यान लगाएं, जिस से हसीन लमहों का एहसास आप के साथसाथ आप के साथी को भी भरपूर मिले.

करवा चौथ 2022: जब कराएं ब्लीचिंग

गोरी रंगत, स्मूद और ईवनटोन स्किन हर महिला की चाहत होती है और इसे पाने का ब्लीचिंग सब से कौमन ब्यूटी ट्रीटमैंट होता है, क्योंकि इस के इस्तेमाल से फेशियल हेयर का रंग हलका हो जाता है, जिस से वे दिखाई नहीं देते और त्वचा भी गोरी व सुंदर नजर आती है. आज मार्केट में कई तरह के ब्लीच उपलब्ध हैं. ब्लीच का इस्तेमाल करने से पहले जानिए कुछ अहम बातें:

प्रोटीन हाइड्रा ब्लीच

यह ब्लीच फ्रेकल्स, ऐजिंग, पिगमैंटेशन, डार्क स्पौट और अनईवन स्किनटोन जैसी समस्याओं पर असरकारक तरीके से काम करता है. यह फेशियल हेयर को तो लाइटटोन करता ही है, साथ ही पिगमैंटेशन की समस्या को भी दूर करता है. यह स्किनटोन को भी लाइट करता है. यह स्किन को डीप क्लीन कर के स्किन पोर्स को भी रिफाइन करता है. सनटैन को रिमूव करने में यह सर्वोत्तम है. यह हर तरह की स्किनटोन के अनुरूप काम करता है. ईवन सैंसिटिव स्किन पर भी बिना किसी रैडनैस और जलन के. मगर प्रोटीन हाइड्रा ब्लीच किसी अच्छे सैलून में जा कर कुशल हाथों से ही करवाएं.

ऐक्स्ट्रा औयल कंट्रोल

जैसाकि नाम से मालूम होता है यह ब्लीच खासतौर पर ऐक्स्ट्रा औयली स्किन के लिए उम्दा उत्पाद है. इस ब्लीच से स्किन में मैलानिन पिगमैंट कम होता है. मैलानिन पिगमैंट जितना कम होगा, स्किन उतनी ही फेयर नजर आएगी. इसी के साथ यह ब्लीच त्वचा के ऐक्स्ट्रा औयल को कंट्रोल कर के मृत कोशिकाएं भी हटाता है.

हाइड्रेटिंग ब्लीच

शुष्क त्वचा के लिए यह सर्वोत्तम है. यह स्किन में पैनिट्रेट हो कर उसे मौइश्चर प्रदान करता है, जिस से वह सौफ्ट, फेयर व हैल्दी नजर आती है.

ब्लीच के प्रकार

पाउडर ब्लीच: अमोनिया, हाइड्रोजन पैरोक्साइड और ब्लीच पाउडर का सम्मिलित रूप है पाउडर ब्लीच. यह डार्क स्पौट और झांइयों के लिए अति उत्तम होता है. इसे कुशल हाथों से ही करवाएं, क्योंकि सही अनुपात न होने पर यह त्वचा को नुकसान भी पहुंचा सकता है.

क्रीम ब्लीच : क्रीम ब्लीच सब से ज्यादा चलन में है और इस्तेमाल में भी आसान है. यह क्रीम ब्लीच व ऐक्टिवेटर का सम्मिलित रूप होता है.

मिश्रण बनाने का तरीका: 4 भाग ब्लीच क्रीम में 1 भाग ऐक्टिवेटर डाल स्पैचुला से अच्छी तरह मिलाएं. कोई गांठ न रहे. ध्यान रखें ज्यादा इफैक्ट के लिए ऐक्टिवेटर की मात्रा बढ़ाने से भविष्य में पिगमैंटेशन की समस्या विकराल रूप ले सकती है या स्किन बर्न भी हो सकता है. इसलिए बढि़या इफैक्ट के लिए स्किन के अनुरूप ही ब्लीच का चुनाव करें तथा उस के मिश्रण का भी.

पैच टैस्ट: अगर ब्लीच का इस्तेमाल पहली दफा कर रही हैं, तो ब्लीच लगाने से पहले पैच टैस्ट जरूर कर लें. इस के लिए थोड़ी सी मात्रा में मिश्रण ले कर बांह पर लगाएं. अगर जलन होने लगे या लालिमा आ जाए, तो इस का प्रयोग न करें.

ब्लीच लगाने से पहले

ब्लीच लगाने से पहले चेहरे को ठंडे पानी और सौम्य फेसवाश से साफ कर लें. ध्यान रखें चेहरे पर गरम पानी व स्क्रब का ब्लीच से पहले व ब्लीच के एकदम बाद इस्तेमाल नहीं करें. यह नुकसानदायक हो सकता है. फिर पेस्ट को स्पैचुला या उंगली की मदद से चेहरे पर ऊपर से नीचे की तरफ लगाएं. आंखों, आईब्रोज और लिप्स पर न लगाएं. ब्लीच 10 से 15 मिनट तक लगाए रखें. इस के बाद पेस्ट को कौटन की मदद से साफ कर लें. फिर चेहरे पर मौइश्चराइजर लगा लें.

त्वचा के अनुरूप ब्लीच

संवेदनशील त्वचा: इस प्रकार की त्वचा पर प्रोटीन हाइड्रा, हर्बल, हाइड्रेटिंग व रैडिएंट ग्लो इस्तेमाल करें.

तैलीय त्वचा: तैलीय त्वचा पर अकसर कीलमुंहासों की परेशानी हो जाती है. अत: इस तरह की त्वचा के लिए ऐक्स्ट्रा औयल कंट्रोल, अमोनिया फ्री ब्लीच, डी टैन, फ्रूट ब्लीच उपयुक्त होता है.

शुष्क त्वचा: इस प्रकार की त्वचा के लिए औयल व मौइश्चर बेस्ड ब्लीच का प्रयोग करें जैसे हाइड्रेटिंग ब्लीच, व्हाइटनिंग ब्लीच आदि.

मैच्योर स्किन: इस प्रकार की त्वचा के लिए ऐजिंग औक्सीजन ब्लीच उपयुक्त रहता है. लेकिन त्वचा की नमी को बनाए रखने के लिए हाइड्रेटिंग ब्लीच का इस्तेमाल करें. इस के अलावा त्वचा के मैलानिन स्तर को कम करने के लिए प्रोटीन हाइड्रा औक्सी का इस्तेमाल करें.

ब्लीच करते समय ध्यान देने योग्य बातें

– थ्रैडिंग, वैक्सिंग, स्टीम व स्क्रबिंग के बाद कभी ब्लीच न करें.

– ब्लीचिंग करने से पहले प्री ब्लीच लोशन या लाइट मौइश्चराइजर का इस्तेमाल करें खासकर शुष्क व सैंसिटिव स्किन पर.

– यदि ब्लीच लगाने पर जलन महसूस हो, तो ठंडे पानी से चेहरे को तुरंत धो लें. बर्फ लगाएं.

– ब्लीच का इस्तेमाल पैच टैस्ट के बाद ही करें.

– कटीफटी त्वचा पर ब्लीच का इस्तेमाल न करें.

– ब्लीच का इस्तेमाल 15 से 20 दिन से पहले दोबारा न करें.

– ब्लीच को 15 मिनट से ज्यादा समय तक न लगाएं रखें.

– ब्लीच क्रीम में ऐक्टिवेटर मिक्स करते समय मैटल चम्मच व मैटल बाउल का इस्तेमाल न करें.

– चेहरे के ब्लीच को शरीर पर और शरीर के ब्लीच को चेहरे पर न लगाएं.

– ब्लीच करते समय टीवी देखने या किताब पढ़ने से परहेज करें, क्योंकि यह आंखों को नुकसान पहुंचा सकता है.

– ब्लीच करने के 6 घंटे बाद तक साबुन या फेसवाश का प्रयोग न करें.

– धूप से आने के तुरंत बाद ब्लीच न करवाएं. शरीर का तापमान सामान्य होने पर करवाएं.

– जिन की बौडी हीट ज्यादा रहती हो वे स्किन की जांच करवा कर ही स्किन के अनुरूप ब्लीच करवाएं.

– आफ्टर ब्लीच सनगार्ड लगा कर ही धूप में निकलें.

– कभी फेशियल करने के बाद ब्लीच का इस्तेमाल न करें वरना परिणाम गंभीर हो सकता है.

ब्लीच करने के फायदे

– ब्लीच से फेशियल हेयर स्किनटोन अच्छी तरह मैच हो कर ईवन फेयर ग्लो देती है.

– 10 से 15 मिनटों में ही स्किन फेयर व रैडिएंट नजर आने लगती है.

– ब्लीच स्किन की डैड लेयर को रिमूव कर के स्किन को ब्राइट लुक प्रदान करता है.

– पोस्ट ब्लीच पैक स्किन को हाइड्रेट कर के व्हाइटनिंग बैनिफिट देता है.

– सनटैन को रिमूव कर के मैलानिन को लाइट कर के स्किनटोन को लाइटर व फेयर करता है.

ब्लीच के नुकसान

– ब्लीच में मरकरी होता है, जो त्वचा को नुकसान पहुंचता है, इसलिए ब्लीच का इस्तेमाल जरूरत से ज्यादा न करें.

– ब्लीच के बाद त्वचा लाल हो जाए, तो धूप व आंच के संपर्क में न आएं.

– सांवलों को ही नहीं गोरी रंगत वालों को भी ब्लीचिंग की जरूरत पड़ती है, लेकिन स्किन के अनुरूप ब्लीच न होने पर यह स्किन डैमेज का कारण भी बन सकता है.

– ब्लीच के परिणामस्वरूप त्वचा में दर्द, उस का छिलना, लाल व भूरे रंग के धब्बे या सूजन होने का मतलब ब्लीच रिऐक्ट कर गया है.

– अगर आप ने कैमिकल पीलिंग करवाई है, तो ब्लीच का इस्तेमाल कम से कम 4 से 6 महीने तक न करें. सौंदर्य विशेषज्ञा से सलाह ले कर ही ब्लीचिंग का इस्तेमाल करें.

– ब्लीच को आंखों व भौंहों के आसपास न लगाएं वरना परेशानी हो सकती है.

– ब्लीच कुशल हाथों से ही करवाएं और ब्रैंडेड प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करें.

प्रैग्नेंसी के दौरान मॉर्निंग सिकनेस को इस तरह करें दूर

यूं तो एक मां बनने का सफर रोमांचक होता है, लेकिन कुछ  महिलाओं के लिये यह काफी मुश्किल भी हो सकता है. कई महिलाओं को प्रैग्नेंसी के दौरान मॉर्निंग सिकनेस की समस्या होती है, और उन्‍हें मितली और उल्टी जैसी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. इसके अलावा, अपने नाम से उलट मॉर्निंग सिकनेस दिन या रात किसी भी वक्त हो सकता है.

डॉ.आस्था जैन माथुर, कंसलटेंट  प्रसूति एवं स्‍त्री रोग विशेषज्ञ, मैकेनिक नगर इंदौर का कहना है कि-

प्रैग्नेंट महिलाओं में यह समस्या बेहद आम है, खासकर पहली तिमाही में. हालांकि, कुछ महिलाओं को गर्भवस्था की पूरी अवधि में ही मॉर्निंग सिकनेस का अनुभव होता है.

कुछ घरेलू उपचार, जैसे थोड़ी-थोड़ी देर में कुछ-कुछ खाते रहना और अदरक का रस (जिंजर ऐल) पीने के साथ-साथ मितली को कम करने के लिये ओवर-द-काउंटर दवाएं भी उपलब्ध हैं. इसे अपनी जरूरत के हिसाब से लिया जा सकता है. ऐसा बहुत कम होता है कि मॉर्निंग सिकनेस एक ऐसी स्थिति में पहुंच जाए कि वह हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम में तब्दील हो जाए.

हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम, तब होता है जब किसी को प्रैग्नेंसी-संबंधी मितली और उल्टी होती है. इसके गंभीर लक्षण होते हैं, जिससे काफी डिहाड्रेशन हो सकता है या फिर प्रैग्नेंसी से पहले शरीर का वजन 5% तक कम हो सकता है. हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम में अस्पताल में भर्ती कराने और इंट्रावीनस (आईवी) फ्लूड्स, दवाएं देने की जरूरत पड़ सकती है. कई बार इसमें फीडिंग ट्यूब लगाने की जरूरत भी पड़ सकती है.

मॉर्निंग सिकनेस के आम लक्षणों और संकेतों में जी मचलाना और उल्टी शामिल है, जो अक्सर किसी खास प्रकार की गंध, मसालेदार खाने, गर्मी, अत्यधिक लार या कई बार बिना कारण भी होता है. मॉर्निंग सिकनेस अक्सर प्रैग्नेंसी के नौ सप्ताह बाद शुरू होती है और पहली तिमाही के दौरान सबसे अधिक पाई जाती है. दूसरी तिमाही के मध्य से अंत तक, अधिकांश प्रैग्नेंट मांओं के लक्षणों में सुधार होने लगता है.

डॉक्टर को कब दिखाएं?

  1. यदि आपको लगातार या गंभीर मितली या उल्टी की समस्या हो रही हो
  2. कम मात्रा में यूरीन निकल रहा हो या फिर उसका रंग गहरा हो
  3. तरल निगलने में मुश्किल आ रही हो
  4. खड़े होने पर सिर में हल्कापन या चक्कर महसूस हो रहा हो
  5. धड़कनें तेज चल रही हों

अभी तक यह अस्‍पष्‍ट है कि आखिर किस वजह से मॉर्निंग सिकनेस होती है. मॉर्निंग सिकनेस, हॉर्मोनल बदलावों की वजह से होता है. ऐसा बहुत कम होता है कि प्रैग्नेंसी से असंबंधित समस्या जैसे थायरॉइड या लीवर की समस्या, गंभीर या क्रॉनिक मितली या उल्टी का कारण बने.

कुछ महिलाओं को इस बात की चिंता होती है कि उल्टी करने से उनके गर्भस्थ शिशु को नुकसान पहुंच सकता है. उल्टी करने की शारीरिक प्रक्रिया गर्भवस्थ शिशु को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है, लेकिन यह पेट की मांसपेशियों पर दबाव डाल सकती है और पेट के आस-पास के हिस्से में दर्द और सूजन हो सकती है. एमिनियाटिक सैक के चारों ओर, भ्रूण अच्छी तरह से सुरक्षित होता है.

कई सारे अध्ययनों में मॉर्निंग सिकनेस और गर्भपात के हल्के खतरे के बीच संबंध पाया गया है. फिर भी, लगातार उल्टी (जिसकी वजह से डिहाइड्रेशन और वजन कम होता है) होने से आपके बच्चे को सही पोषण नहीं मिल पाता और जन्म के समय बच्चे का कम वजन होने का जोखिम हो सकता है. यदि आपको मितली और उल्टी हो रही है तो, अपने डॉक्टर से बात करें.

गंभीर मॉर्निंग सिकनेस (हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम)

1000 में से एक प्रैग्नेंट महिला को हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम (एचजी) या गंभीर मॉर्निंग सिकनेस की समस्या होती है. डिहाइड्रेशन, लगातार उल्टी होना और वजन का कम होना, एचजी के लक्षण हैं. अस्पताल में भर्ती होना और इंट्रावीनस फ्लूएड्स और पोषण देना इस उपचार की आम प्रक्रिया है. हाइपरमेसिस ग्रेविडेरम का इलाज ना कराने से कई सारी समस्याएं हो सकती हैं, जैसे इलेक्ट्रोलाइट्स का असंतुलन, गंभीर रूप से एंजाइटी की समस्या और अवसाद, भ्रूण का कुपोषित होना और शरीर के प्रमुख अंगों जैसे लीवर, हार्ट, किडनी और ब्रेन पर बेवजह दबाव पड़ना.

मॉर्निंग सिकनेस में कैसे रखें ख्याल

किसी भी प्रकार की दवा का उपयोग करने से बचें जब तक कि आपके डॉक्टर ने प्रैग्नेंसी के दौरान खासकर उसे लेने के लिए नहीं कहा हो और वह आपकी स्थिति से अवगत न हों.

सुबह बिस्तर से उठने से पहले हल्के-फुलके, स्वीट क्रैकर्स या ड्राई क्रैकर्स खा लें.

कोई भी ऐसी चीज जो आपको लगता है कि बीमार कर सकती है, लेने से बचें. अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन अक्सर सही तरीके से सहन हो जाता है.

थोड़े-थोड़े अंतराल पर कुछ-कुछ खाएं, क्योंकि खाली पेट होने से मितली का अनुभव होता है.

खाना बनाने की तैयारी या पकाने से बचना फायदेमंद होता है.

जितना हो सके तरल पदार्थ लें. कई बार फलों के पतले जूस, कॉर्डियल, वीक टी, जिंजर टी, सूप, या बीफ एक्सट्रैक्ट वाले पेय लेना फायदेमंद हो सकता है. यदि इनमें से कुछ नहीं ले पा रहे हैं तो थोड़े बहुत आइस क्यूब चूसना मददगार हो सकता है.

बी6 विटामिन वाले सप्लीमेंट से मदद मिल सकती है, हालांकि रोजाना 200 एमजी से ज्यादा लेना खतरनाक हो सकता है. डॉक्टर की सलाह का पालन करें.

कलाई पर एक्यूपंचर या एक्यूप्रेशर के बारे में विचार कर सकते हैं.

ढीले-ढाले कपड़े पहनें ताकि पेट पर किसी प्रकार की बाधा ना आए.

चलने-फिरने पर मॉर्निंग सिकनेस गंभीर हो सकता है. जितना हो सके, आराम करें.

बचाव

मॉर्निंग सिकनेस से पूरी तरह बचा नहीं जा सकता. बहुत तेज गंध, ज्यादा थकान, मसालेदार खाना और अधिक शक्कर वाले खाद्य पदार्थ जैसे ट्रिगर्स से बचाव करने से काफी मदद मिल सकती है.

करवा चौथ 2022: करवाचौथ- भय व प्रीत का संगम

  कहानी का अर्थात प्रीत पैदा करने की कथा:

एक समय की बात है. एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे गांव में रहती थी. एक दिन उस का पति नदी में स्नान करने गया.

पति की आवाज सुन कर पत्नी करवा भागी चली आई और आ कर मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया. मगरमच्छ को बांध कर वह यमराज के पास पहुंच कर कहने लगी, ‘‘हे भगवन, मगरमच्छ ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है. उसे पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नर्क में ले जाओ.’’

यमराज बोले, ‘‘अभी मगर की आयु शेष है, अत: मैं उसे नहीं मार सकता.’’

इस पर करवा बोली, ‘‘अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप दे कर नष्ट कर दूंगी.’’

यह सुन कर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आ कर मगरमच्छ को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी.

हे करवा माता, जैसे तुम ने अपने पति की रक्षा की वैसे सब के पतियों की रक्षा करना.

इस कथा को मूल बता कर अगली कड़ी में कहानी का पार्ट-2 अर्थात भय पैदा करने की कथा सुनाई जाती है ताकि पति की दीर्घायु के लिए जो व्रत किया है उसे अगर हलके में लिया तो पति को खो दोगी.

एक बार एक ब्राह्मण लड़की मायके में थी, तब करवाचौथ का व्रत पड़ा. उस ने व्रत को विधिपूर्वक किया. पूरा दिन निर्जला रही. कुछ खायापीया नहीं. उस के सातों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी.

भाइयों से रहा नहीं गया. उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया. एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी ले कर चढ़ गया और दीपक जला कर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी. तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी, ‘‘देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो.’’

बहन ने भोजन ग्रहण कर लिया. भोजन ग्रहण करते ही उस के पति की मृत्यु हो गई. अब वह दुखी हो विलाप करने लगी. तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं. उन से उस का दुख न देखा गया. ब्राह्मण कन्या ने उन के पैर पकड़ लिए और पति के मरने का कारण पूछा.

तब इंद्राणी ने बताया, ‘‘तूने बिना चंद्र दर्शन किए करवाचौथ का व्रत तोड़ दिया, इसलिए यह कष्ट मिला. अब तू वर्षभर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तब तेरा पति जीवित हो जाएगा.’’

उस ने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किए तो पुन: सौभाग्यवती हो गई. इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए. द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर लौट आए. तभी से हिंदू महिलाएं अपने अखंड सुहाग के लिए करवाचौथ का व्रत करती हैं.

अब आप ही बताएं कौन पत्नी होगी जो अपने पति की दीर्घायु न चाहती हो? इसलिए कहानी का पार्ट-1 प्रीत पैदा कर ही देता है. कौन पत्नी होगी जो अपने पति को मारना चाहती है?

भय दिखा कर हलके में न लेने की नसीहत देता है.

अब आप ही बताएं कि यह सांप का फन जो हाथ में पकड़ाया गया है उसे कैसे छोड़ा जाए? छोड़ दिया तो सांप काट नहीं लेगा?

औरत की गुलामी के एहसास का दिन

करवाचौथ का व्रत पत्नी को गुलामी का एहसास दिलाने का एक और दिन है. क्या महिला के उपवास रखने से पुरुष की उम्र बढ़ सकती है? क्या धर्म का कोई ठेकेदार इस बात की गारंटी लेने को तैयार होगा कि करवाचौथ जैसा व्रत कर के पति की लंबी उम्र हो जाएगी? दूसरे देश नहीं मानते. और तो और भारत में ही दक्षिण या पूर्व में नहीं मनाते, लेकिन इस बात का कोई सुबूत नहीं है कि इन तमाम जगहों पर पति की उम्र कम होती हो और मनाने वालियों के पति की ज्यादा.

यह व्रत ज्यादातर उत्तर भारत में प्रचलित है. दक्षिण भारत में इस का महत्त्व न के बराबर है. क्या उत्तर भारत की महिलाओं के पति की उम्र दक्षिण भारत की महिलाओं के पतियों की उम्र से कम है? क्या इस व्रत को रखने से उन के पतियों की उम्र अधिक हो जाएगी? यह व्रत उन की परंपरागत मजबूरी है.

उपवास महिलाओं के लिए ही क्यों

ऐसा क्यों है कि सारे व्रत, उपवास पत्नी, बहन और मां के लिए ही हैं? पति, भाई और पिता के लिए क्यों नहीं? इसलिए कि धर्म की नजर में महिलाओं की जिंदगी की कोई कीमत नहीं है. अगर महिलाओं को आप ने सदियों से घरों में कैद रख कर उन की चिंतनशक्ति को कुंद कर दिया है, तो क्या आप का यह दायित्व नहीं बनता कि आप पहल कर के उन्हें इस मानसिक कुंदता से आजाद कराएं.

क्या आज के युग में सब पति पत्निव्रता हैं? आज की अधिकतर महिलाओं की जिंदगी घरेलू हिंसा के साथ चल रही हैं, जिस में उन के पतियों का हाथ है. ऐसी महिलाओं को करवाचौथ का व्रत रखना कैसा रहेगा? भारत का पुरुषप्रधान समाज केवल नारी से ही सबकुछ उम्मीद करता है परंतु नारी का सम्मान करने की कब सोचेगा? इस व्रत की शैली को बदलना चाहिए ताकि महिलाएं दिनभर भूखीप्यासी न रहें.

अनेक महिलाओं को करवाचौथ के दिन भी विधवा होते देखा गया है, जबकि वे दिनभर करवाचौथ का उपवास किए थीं.

2 साल पहले मेरा मित्र जिस की नईनई शादी हुई थी और पहली करवाचौथ के दिन ही घर जाने की जल्दी में एक सड़क हादसे में मृत्यु हो गई, उन की पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिए करवाचौथ का व्रत किए थी, तो ऐसा क्यों हुआ?

करवाचौथ कुप्रथा है. मर्द लोग अपनी पत्नियों से खुद की पूजा करवाते हैं और खुद कभी पत्नियों की पूजा नहीं करते. सुप्रीम कोर्ट को करवाचौथ को असंवैधानिक करार देना चाहिए, क्योंकि करवाचौथ से महिलाओं के संविधानसम्मत समानता के मूल अधिकार का हनन होता है. तीन तलाक पर कुलांचें भरती सरकार तो कुछ नहीं करेगी, क्योंकि असल में तो वह औरतों को गुलाम बनाए रखने के पौराणिक विधान में विश्वास रखती है.

एक सकारात्मक पहल

‘‘देखो बेवकूफी मत करो, खांसीजुकाम, ऊपर से बुखार में बदन तप रहा है, फिर भी व्रत रखने का फुतूर सवार है,’’ अपनी पत्नी गौरी को समझाते हुए आकाश बोला.

गौरी बोली, ‘‘आकाश यह मेरा पहला करवाचौथ का व्रत है. प्लीज रखने दो मैं कर लूंगी. तुम चिंता मत करो…’’

आकाश, ‘‘तुम्हें पता है करवाचौथ का व्रत क्यों रखा जाता है?’’

गौरी, ‘‘हां पता है, पति की अच्छी सेहत और लंबी उम्र के लिए.’’

आकाश, ‘‘सही कहा. और ऐसे बीमार रह कर इतनी तकलीफ झेल कर, खुद की तबीयत खराब कर के मेरी लंबी उम्र के लिए भगवान को कैसे कन्विंस करोगी? मतलब ‘चैरिटी बिगिन्स ऐट होम’ में तो भगवान विश्वास रखते होंगे… है न…?’’

गौरी, ‘‘कैसी बातें करते हो? लोग क्या सोचेंगे?’’

आकाश, ‘‘लोग क्या सोचेंगे, इस से मुझे फर्क नहीं पड़ता. औल आई केयर अबाउट इज योर हैल्थ और कोई बहस नहीं. यह ब्रेकफास्ट लो और दवा खाओ चुपचाप वरना मुझ से बुरा कोई नहीं.’’

गौरी, ‘‘पर आकाश करवाचौथ…’’

आकाश, ‘‘वह मैं रख रहा हूं न तुम्हारी सेहत और लंबी उम्र के लिए… प्लीज गैट वैल सून.’’

गौरी, ‘‘करवाचौथ तुम रखोगे, यार लोग क्या कहेंगे?’’

आकाश, ‘‘यही कि गौरी का पति कितना केयरिंग है खासकर तुम्हारी सहेलियां. काश, हमारा पति भी इतना केयरिंग होता.’’

गौरी हंस कर, ‘‘यार, हर बार ऐसे मजाक कर के मुझे मना लेते हो.’’

आकाश, ‘‘अच्छा सुनो, शाम को वक्त से छत पर आ जाना. मैं छलनी ले कर इंतजार करूंगा.’’

गौरी हंसते हुए, ‘‘आ जाऊंगी. कोई और सेवा?’’

आकाश, ‘‘हूं, अच्छा सुनो. आई लव यू.’’

गौरी, ‘‘आई लव यू टू. अच्छा सुनो न तुम्हें यह करवाचौथ का व्रत रखने की जरूरतहै. मुझे पता है तुम मुझे बहुत प्यार करते हो. प्यार करते रहो, यही जरूरी है. व्रतों से कुछ नहीं होता.’’

आकाश, ‘‘तुम ठीक रहोगी, लंबी उम्र तक जीओगी तभी तो मैं भी जिंदा रहूंगा, है न?’’

दोनों गले लग कर हंसने लगे, दोनों की आंखों में आंसू आने लगे सच्चे प्यार के. यही है सच्चा प्यार, जिस में एक पति पत्नी की और पत्नी पती की हर परेशानी को हंसतेखेलते दूर करते हुए, खुश रह कर एकदूसरे के साथ सुखदुख में साथ जिंदगी बिताते हैं.

काश, मेरी बेटी होती- भाग 4: शोभा की मां का क्या था फैसला

हाथ पोंछ कर माधवी चली गई. एक हफ्ता गुजर गया. आज रात की ट्रेन से सुकेश आने वाले थे. सुबह चाय पी कर शोभा गेट का ताला खोलने के लिए बाहर जा रही थी कि बरामदे की सीढ़ी से पैर लड़खड़ा गया. एक चीख मार कर वह वहीं बैठ गई. उस की जोर की चीख सुन कर ऋषभ और माधवी भागतेदौड़ते नीचे उतर कर उस के पास पहुंच गए. वह अपना पैर पकड़ कर कराह रही थी.

क्या हुआ मां? माधवी बोली.

‘‘अचानक से पैर लड़खड़ा गया सीढ़ी पर. दाएं पैर में बहुत दर्द हो रहा है.’’

‘‘ओह, कहीं फ्रैक्चर न हो गया हो,’’ कह कर ऋषभ शोभा को उठा कर अंदर ले आया. माधवी उस के पैरों के पास बैठ कर हलके हाथों से मलहम लगाती हुई बोली, ‘‘अभी डाक्टर के पास ले चलते हैं मां. चिंता मत करो, सब ठीक हो जाएगा.’’ उस ने उस के पैर में कस कर क्रेप बैंडेज बांध दी.

दोनों उसे अस्पताल ले गए. एक्सरे में फ्रैक्चर नहीं आया. मोच आ गई थी. डाक्टर ने कुछ दिन आराम करने के लिए कहा. सबकुछ करा कर उसे घर छोड़ कर ऋषभ औफिस चला गया. लेकिन माधवी थोड़ी देर बाद उस के पास जा कर बैठ गई.

तू औफिस नहीं गई? वह आश्चर्य  से बोली.

नहीं मां, ऐसी हालत में आप को छोड़ कर औफिस कैसे चली जाऊं मैं. फिलहाल कुछ दिन की छुट्टी ले ली है. पापा भी आ जाएंगे आज. ऐसे में खाना भी कैसे बनाएंगी आप?’’

कुछ न बोला गया शोभा से. मन भर आया और आंखें भी. सुकेश के डर पर दिल के उद्गार भारी पड़ गए. ‘मेरी बेटी होती तो ऐसी ही होती,’ उस ने सोचा, ‘नहींनहीं, ऐसी ही क्यों होती, बल्कि यही है मेरी बेटी.’

उस ने माधवी का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा. माधवी ने आश्चर्य से उस की आंखों में देखा. पर शोभा की आंखों में वात्सल्य का अनंत महासागर हिलोरें ले रहा था. वह हुलस कर शोभा की बांहों में समा गई. शोभा का वर्षों का सपना पूरा हो गया था.

माधवी ने उस के घर व उस के दिल में तो प्रवेश पा लिया था पर सुकेश के दिल में प्रवेश पाना टेढ़ी खीर था. रात की ट्रेन से सुकेश आए. शोभा के पैर में पट्टी बंधी देख कर परेशान हो गए. पर शोभा के चेहरे पर दर्द व परेशानी का नामोनिशान न था. वह आराम से पलंग पर पीछे तकिया लगा पीठ टिकाए बैठी मुसकरा रही थी. न यह शिकायत कि एक हफ्ता तुम्हारे बिना मन नहीं लगा वगैरहवगैरह.

‘‘कुछ तो गड़बड़ है,’’ सुकेश अपनी उधेड़बुन में कपड़े बदल कर नहाने चले गए. बाथरूम से फ्रैश हो कर लौटे,

‘‘दर्द तो नहीं हो रहा तुम्हें?’’

‘‘बिलकुल नहीं,’’ शोभा मुसकराते हुए बोली.

‘‘कुछ खाना तो बना नहीं होगा. बाहर से और्डर कर देता हूं.’’

तभी दरवाजे पर आहट हुई. देखा, तो माधवी 2 प्लेटों में खाना लिए खड़ी थी. मुसकराती हुई आगे बढ़ी, एक प्लेट माधवी को पकड़ा दी. बिना  िझ झके, सुकेश से बिना डरे शोभा ने प्लेट पकड़ ली. सुकेश आश्चर्य से माधवी को देख रहे थे. माधवी ने  िझ झकते हुए दूसरी प्लेट साइड टेबल पर रखी और वापस चली गई. शोभा इत्मीनान से खाना खाने लगी.

‘‘तुम कब से खाने लगी हो इस के हाथ का?’’ सुकेश के स्वर में क्रोध भरा था.

‘‘तरीके से बात करो सुकेश. वह तुम्हारे बेटे की पत्नी है और इस घर की बहू. अब जो जाति हमारी वही उस की,’’ शोभा तनिक रोष में बोली.

शोभा के रोष को भांप कर सुकेश थोड़ा आराम से बोले, ‘‘ठीक है, पर मेरे घर में यह सब नहीं चलेगा. तुम से पहले ही बात हो गई थी. यह शादी मैं ने सिर्फ ऋषभ की जिद के कारण की थी. वरना, इतनी छोटी जाति में… तुम जानती हो.’’

‘‘मुझे तो चोट लगी थी. खाना बना नहीं सकती थी. और वैसे भी, मैं तो कभी ब्राह्मणवाद के पीछे इतनी पागल भी नहीं रही हूं. पर तुम खाना बाहर से और्डर कर लो अपने लिए. लेकिन ध्यान रखना, जिस जगह और्डर करो, वहां किचन में खाना किस ने बनाया है, उस के ब्राह्मण होने का प्रमाणपत्र अवश्य ले लेना,’’ शोभा विर्दूप स्वर में बोली.

सुकेश ठगे से शोभा को देखने लगे.

‘‘हांहां, ऐसे क्या देख रहे हो. ब्याहशादियों में जाते हो. खाना बनाने वालों का, स्नैक्स सर्व करने वाले वेटरों की जाति भी पूछी है तुम ने कभी? सड़क मार्गों से लंबीलंबी यात्राएं करते हो औफिशियल दौरों के लिए, रास्तेभर रुकतेरुकाते, खातेपीते जाते हो, क्या वहां पर सब की जाति पूछ कर खातेपीते हो? उन सब की जाति पूछ लो. अगर वे सब ऊंची जाति के हों तो मैं अपनी ऐसी सुघढ़, सल्लज और प्यारी बहू के हाथ का खाना बंद कर दूंगी, वादा है तुम से. पर तब तक तुम मु झे टोकना मत,’’ कह कर शोभा खाना खाने लगी.

सुकेश थोड़ी देर किंकर्तव्यविमूढ़  से खड़े रह गए. शोभा के तर्कों  में दम था. अधिकतर शोभा उन की बात हंसीखुशी मान जाती थी पर जब वह किसी बात पर अड़ती थी तो उसे डिगाना मुश्किल होता था. वे खड़े सोचते रहे. बात तो सच है, इतनी जगह खाना खाते हैं क्या जाति पूछ कर. माधवी तो उन की बहू है. बेटे ने, शोभा ने उसे सहज अपना लिया. उन की वंशवेल उसी से आगे बढ़ेगी और  झूठे दंभ व  झूठी जिद्द के कारण वे उसे अपना नहीं पा रहे हैं.

उन्होंने खाने की प्लेट उठाई और शोभा की बगल में बैठ गए. पलभर के लिए दोनों की नजरें टकराईं. सुकेश ने रोटी का टुकड़ा तोड़ कर सब्जी में डुबोया और मुंह में डाल लिया. अंदर की मुसकराहट व दिल की पुलक अंदर ही दबाए शोभा चुपचाप खाना खाती रही. दोनों ने खाना खत्म किया ही था कि माधवी फिर आ गई.

‘‘मां, कुछ चाहिए तो नहीं?’’ पर पापा को खाते देख वह अचंभित सी हो गई. बिना छेड़े चुपचाप वापस पलट गई.

‘‘रुको माधवी,’’ सुकेश अपनी जगह पर खड़े हो गए, ‘‘बहुत अच्छा खाना बनाया तुम ने बेटा. इंजीनियरिंग करतेकरते कैसे सीख लिया इतना सबकुछ?’’

हतप्रभ हो माधवी अचल खड़ी हो गई. उस से यह सब संभल नहीं पा रहा था. भावविह्वल स्वर में बोली, ‘‘आप को अच्छा लगा पापा?’’

‘‘हां,  बहुत अच्छा लगा. आज पहली बार तुम्हारे हाथ का खाना  खाया है, इसलिए इनाम तो बनता है,’’ सुकेश ने अलमारी से कुछ रुपए निकाल कर माधवी के हाथ में रखे, ‘‘मांपापा की तरफ से अपने लिए कुछ ले लेना.’’

‘‘जी पापा,’’ वह भरी आंखों से पैरों में  झुक गई. सुकेश ने  झुकी हुई माधवी को उठा कर छाती से लगा लिया, ‘‘माफी चाहता हूं तुम से बेटा. कभीकभी बड़ों से भी गलतियां हो जाती हैं.’’

‘‘नहीं पापा, कुछ मत बोलिए, मु झे कोई शिकायत नहीं है.’’

जाति को ले कर बिना कोई तर्कवितर्क किए माधवी ने सुकेश के ब्राह्मणवाद के किले को फतेह कर लिया था. दोनों -पिता और बहूरूपी पुत्री – सजल नेत्रों से गले लिपटे हुए थे. तभी ऋषभ माधवी को ढूंढ़ता हुआ नीचे उतर आया. कमरे में आया तो पितापुत्री को गले लगे देखा. प्रश्नवाचक दृष्टि मां पर डाली पर वहां भी सजल मुसकराहट में सारे उत्तर थे. गरदन हिलाता हुआ वह भी मुसकरा दिया और उलटे पैरों वापस लौट गया, शायद ऊपर से अपना बोरियाबिस्तर समेटने के लिए.

काश, मेरी बेटी होती- भाग 2: शोभा की मां का क्या था फैसला

जयंति जब इन युवा लड़कियों की तुलना अपने समय की लड़कियों से करती तो पसोपेश में पड़ जाती. उस का जमाना भी तो कोई बहुत अधिक पुराना नहीं था पर कितना बदल गया है. लड़कियों की जिंदगी का उद्देश्य ही बदल गया. कभी लगता उस का खुद का जमाना ठीक था, कभी लगता इन का जमाना अधिक सही है. लड़केलड़कियों की सहज दोस्ती के कारण इस उम्र में आए स्वाभाविक संवेगआवेग इसी उम्र में खत्म हो जाते हैं और बच्चे उन की पीढ़ी की अपेक्षा अधिक प्रैक्टिकल हो जाते हैं.

पर फिर दिमागधारा दूसरी तरफ मुड़ जाती और वह शोभा व रक्षा के सामने अपनी बेटी को ले कर अपना रोना रोती रहती, उस के भविष्य को ले कर निराधार काल्पनिक आशंकाएं जताती रहती.

उधर, रक्षा की बहू भी तो कोई पुरानी फिल्मों की नायिका न थी. आखिर जयंति की बेटी जैसी ही एक लड़की रक्षा की बहू बन कर घर आ गई थी. अभी एक ही साल हुआ था विवाह हुए, इसलिए गृहस्थी के कार्य में वह बिलकुल अनगढ़ थी. हां, बेटाबहू दोनों एकदूसरे के प्यार में डूबे रहते. सुबह देर से उठते. बेटा भागदौड़ कर तैयार होता, मां का बनाया नाश्ता करता और औफिस की तरफ दौड़ लगा देता. थोड़ी देर बाद बहू भी चेहरे पर मीठी मुसकान लिए तैयार हो कर बाहर आती और रक्षा उसे भी नाश्ते की प्लेट पकड़ा देती. बहू के चेहरे पर दूरदूर तक कोई अपराधबोध न होता कि उसे थोड़ा जल्दी उठ कर काम में सास का हाथ बंटाना चाहिए था. इतना तो उस के दिमाग में भी न आता.

रक्षा सोचती, ‘‘चलो सुबह न सही, अब लंच और डिनर में बहू कुछ मदद कर देगी. पर नाश्ते के बाद बहू आराम से लैपटौप सामने खींचती और डाइनिंग टेबल पर बैठ कर नैट पर अपने लिए नौकरी ढूंढ़ने में व्यस्त हो जाती. वह अपनी लगीलगाई नौकरी छोड़ कर आई थी, इसलिए अब यहां पर नौकरी ढूंढ़ रही थी.

पायल छनकाती बहू का ख्वाब देखने वाली रक्षा का वह सपना तो ढेर हो चुका था. बहू के वैस्टर्न कपड़े पचाने बहुत भारी पड़ते थे. शुरूशुरू में आसपड़ोस की चिंता रहती थी, पर किसी ने कुछ न कहा. सभी अधेड़ तो इस दौर से गुजर रहे थे. वे इस नई पीढ़ी को अपनी पुरानी नजरों से देखपरख रहे थे. बेटा शाम को औफिस से आता तो रक्षा सोचती कि बहू उन के लिए न सही, अपने पति के लिए ही चाय बना दे. पर बेटा जो कमरे में घुसता, तो गायब हो जाता. कभी दोनों तैयार हो कर बाहर आते, ‘मम्मी, हम बाहर जा रहे हैं. खाना खा कर आएंगे.’ उस के उत्तर का इंतजार किए बिना वे निकल जाते और रक्षा इतनी देर से मेहनत कर बनाए खाने को घूरती रह जाती, ‘पहले नहीं बता सकते थे.’’

बेटे के विवाह के बाद उस का काम बहुत बढ़ गया था. आई तो एक बहू ही थी पर उस के साथ एक नया रिश्ता आया था, रिश्तेदार आए थे. जिन को सहेजने में उस की ऐसी की तैसी हो जाती थी. बेटेबहू के अनियमित व अचानक बने प्रोग्रामों की वजह से उस की खुद की दिनचर्या अनियमित हो रही थी. अच्छी मां व सास बनने के चक्कर में वह पिस रही थी. बच्चों की हमेशा बेसिरपैर की दिनचर्या देख कर उस ने बच्चों को घर की एक चाबी ही पकड़ा दी कि वे जब भी कहीं जाएं तो चाबी साथ ले कर जाएं. क्योंकि उन की वजह से वे दोनों कहीं नहीं जा पाते. रसोई में मदद के लिए एक कामवाली का इंतजाम किया. तब जा कर थोड़ी समस्या सुल झी. अब बहू को नौकरी मिल गई थी. सो, वह भी बेटे के साथ घर से निकल जाती और उस से थोड़ी देर पहले ही घर आती व सीधे अपने कमरे में घुस कर आराम करती.

रक्षा सोचती, ‘मजे हैं आजकल की लड़कियों के. शादी से पहले भी अपनी मरजी की जिंदगी जीती हैं और बाद में भी. एक उस की पीढ़ी थी, पहले मांबाप का डर, बाद में सासससुर और पति का डर और अब बेटेबहू का डर. आखिर अपनी जिंदगी कब जी हमारी पीढ़ी ने?’ रक्षा की सोच भी जयंति की तरह नईपुरानी पीढ़ी के बीच  झूलती रहती. कभी अपनी पीढ़ी सही लगती, कभी आज की.

उन की खुद की पीढ़ी ने तो विवाह से पहले मातापिता की भी मौका पड़ने पर जरूरत पूरी की. संस्कारी बहू रही तो ससुराल में सासससुर के अलावा बाकी परिवार की भी साजसंभाल की और अब बहूबेटों के लिए भी कर रहे हैं. कल इन के बच्चे भी पालने पड़ेंगे.

शिक्षित रक्षा सोचती, आखिर महिला सशक्तीकरण का युग इसी पीढ़ी के हिस्से आया है. पर उन की पीढ़ी की महिलाएं कब इस सशक्तीकरण का हिस्सा बनेंगी जिन पर पति नाम के जीव ने भी पूरा शासन किया, रुपए भी गिन कर दिए, जबकि, खुद ने अच्छाखासा कमा लाने लायक शिक्षा अर्जित की थी.

‘‘कैसा महिला सशक्तीकरण?’’ वह आश्चर्य से कहती और जयंति व शोभा के आगे बड़बड़ा कर अपनी भड़ास निकालती. उस की यह विचारधारा उन दोनों शिक्षित महिलाओं को भी प्रभावित करती, पर बाहरी तौर पर. क्योंकि, वे सीधीतौर पर तीसरी पीढ़ी से अभी प्रभावित नहीं हो रही थीं. पर शोभा उन दोनों के अनुभव सुनसुन कर बहू के बारे में तरहतरह के पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो बैठी थी.

पहले तो बेटा ही इतना नखरेबाज था, ऊपर से बहू न जाने कैसी हो. बहू की मनभावन काल्पनिक तसवीर उस ने अपने मस्तिष्क के कैनवास से पूरी तरह मिटा दी थी. रक्षा ठीक कहती है, आजकल की ऐसी बिगड़ैल बेटियां ही तो बहुएं बन रही हैं. आखिर, ऊपर से थोड़े ही न उतरेंगी. उस का वर्षों का मासूम सा सपना भी दिल ही दिल में दम तोड़ चुका था. जब वह सोचा करती थी कि काश, उस की भी बेटी होती. बेटी तो नहीं हुई पर बड़े होते बेटे को देख कर वह नन्हा सा ख्वाब पालने लगी थी कि उस की प्यारी सी बहू आएगी और उस का वर्षों का बेटी का सपना पूरा हो जाएगा. पर रक्षा की बातों से उस ने यह उम्मीद भी छोड़ दी थी.

अब वह मन ही मन हर आने वाले संकट के लिए तैयार हो गई थी. वह उम्र में उन दोनों से थोड़ी छोटी थी. पति की अच्छी आय के चलते उस का घर भी उन दोनों से बड़ा था. उस ने सोच लिया था कि बहू के साथ ज्यादा मुश्किल हुई तो बेटेबहू को ऊपर के पोर्शन में शिफ्ट कर देगी. रक्षा सही कहती है हमारे लिए महिला सशक्तीकरण के माने कब आकार लेगा.

बेटे ने 31वें साल में कदम रख दिया था. अब वह भी चाह रही थी कि बेटे का विवाह कर वह अपनी जिम्मेदारियों से निवृत्त हो जाए. शोभा के पति सुकेश भी सोचते थे कि उन के रिटायरमैंट से पहले बेटे का विवाह निबट जाए तो अच्छा है. पर जैसे ही बेटे से विवाह की बात छेड़ते, बेटा बहाने बना कर उठ खड़ा होता. जब भी किसी रिश्ते के बारे में बात चलती, बेटा हवा में उड़ा देता. जब भी किसी लड़की की तसवीर दिखाई जाती तो परे खिसका देता. यह देखतेदेखते एक दिन वह उखड़ ही गई, ‘‘ऐसा कब तक चलेगा ऋषभ? कब तक शादी नहीं करेगा तू?’’

प्रश्नचिह्न- भाग 3: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

घर पहुंचे निविदा को 2-3 दिन ही हुए थे कि एक दिन शाम को बिना किसी पूर्व सूचना के मालिनी उस के घर पहुंच गई.

‘‘कौन हो तुम?’’ एक अजनबी लड़की को दरवाजे पर बैग और अटैची के साथ खड़े देख कर मालिनी के पापा ने पूछा.

‘‘नमस्ते अंकल… नमस्ते आंटी… मैं मालिनी हूं… निविदा की बैस्ट फ्रैंड और उस की रूममेट.’’

इसी बीच निविदा बाहर आ गई. मालिनी को देख कर बुरी तरह चौंक गई, ‘‘मालिनी तू?’’

‘‘तू मुझ से बोल कर आई थी कि मम्मीपापा के साथ साउथ घूमने जाना है पर मैं समझ गई थी तू झूठ बोल रही है. इसलिए आ गई,’’ मालिनी बेबाकी से बोली.

उस की बोलचाल, चालढाल, उस के व्यक्तित्व से लग रहा था जैसे घर में तूफान आ गया है. उस की हरकतें देख कर निविदा व उस की मम्मी सुलेखा अपनेआप में सिमट रही थीं और निविदा के पापा उस संस्कारहीन लड़की को आश्चर्य से त्योरियां चढ़ाए देख रहे थे.

‘‘मालिनी तू क्यों… मेरा मतलब तू कैसे आ गई?’’ सकपकाई सी निविदा बोली.

‘‘अरे, ऐसे क्यों घबरा रही है… तेरे साथ छुट्टियां बिताने आई हूं…’’ वह उस की पीठ पर हाथ मारती हुई बोली, ‘‘चल, मेरा सामान अंदर रख और बाथरूम स्लीपर ले कर आ… आंटीजी, कुछ खानेपीने का इंतजाम कर दीजिए. बहुत भूख लगी है.’’

सुलेखा किचन में घुस गईं. निविदा उस का सामान अंदर रख बाथरूम स्लीपर उठा लाई. मालिनी ने आराम से जूते खोल स्लीपर पहन कहा, ‘‘जा मेरे जूते भी कमरे में रख. मेरी अटैची से तौलिया निकाल लाना.’’ निविदा के तौलिया लाने पर मालिनी वाशरूम में घुस गई.

निविदा के पापा को निविदा के साथ उस का नौकरों जैसा व्यवहार अखर गया. सुलेखा पकौड़े बना लाईं.

मालिनी फ्रैश हो कर टेबल पर आ गई. पूछा, ‘‘क्या बनाया आंटी? वाह पकौड़े… तू भी खा निविदा. क्या स्वादिष्ठ पकौड़े बनाए हैं आंटी… इस निविदा को भी सिखा दीजिए… कभीकभी पीजी होस्टल के रूम में ऐसे ही पकौड़े बना कर खिला दिया करना.’’

‘‘निविदा तुम्हारी नौकरानी है न,’’ एकाएक निविदा के पापा बुदबुदाए.

‘‘अंकल कुछ कहा आप ने?’’

मगर उन्होंने कोईर् जवाब नहीं दिया. रात को मालिनी कमरे में निविदा से अपने व्यवहार के लिए माफी मांग रही थी.

‘‘पर तू ऐसा कर क्यों रही है… मेरे पापा के मन में मेरी बैस्ट फ्रैंड की इमेज खराब हो जाएगी.’’

‘‘तू देखती जा कि मैं क्या करती हूं.’’

दूसरे दिन नाश्ते की टेबल पर सब चुपचाप नाश्ता कर रहे थे. लेकिन मालिनी का घमासान जारी था. वह निविदा को किसी न किसी चीज के लिए किचन में दौड़ा रही थी.

‘‘अच्छा, वह अखबार भी उठा कर देना तो जरा निविदा,’’ वह इतमीनान से टोस्ट के ऊपर आमलेट रख कर खाते हुए बोली.

निविदा ने अखबार ला कर उसे दे दिया. फ्रंट पेज पर समाचार समलैंगिक संबंधों पर कोर्ट की मुहर लगने को ले कर था.

‘‘तुझे पता है निविदा, समलैंगिकता क्या होती है?’’ एकाएक मालिनी बोली.

निविदा के पापा के हाथ से टोस्ट छूटतेछूटते बचा. उन्होंने गुस्से से भरी नजरों से निविदा की तरफ देखा. निविदा को काटो तो खून नहीं.

‘‘चुप मालिनी बाद में बात करेंगे,’’ वह किसी तरह बोली.

‘‘अरे बाद में क्या… देख न अंदर क्या समाचार छपा है… एक पिता ने अपनी तीनों बेटियों से रेप किया… कितने वहशी होते हैं ये पुरुष… अपनी शारीरिक क्षमता पर बहुत घमंड है इन्हें… औरत को कमजोर समझते हैं… औरत इन के लिए एक शरीर मात्र है… 2 टांगों के बीच कुदरत ने इन्हें जो दिया है न उस के बल पर दुनिया रौंदने चले हैं… न रिश्ता देखते हैं, न उम्र… न समय देखते हैं न परिस्थिति… हर तरह से औरत का इस्तेमाल करना, फायदा उठाना शगल है इन का… बीवी के रूप में भी औरत का शोषण करते हैं. कमजोर मानसिकता के खुद होते हैं और मारतेपीटते, सताते बीवियों को हैं… मेरा पति ऐसा करेगा तो हाथपैर तोड़ कर रख दूंगी…’’

निविदा और सुलेखा सन्न बैठी रह गईं. पापा के सामने मालिनी की ऐसी बेबाकी से निविदा की टांगें कांपने लगीं. हाथ से दूध का गिलास छूट गया. गिलास तो फूटा ही, नाश्ते की प्लेट भी नीचे गिर कर टूट गई.

‘‘निविदा,’’ पापा की कु्रद्ध दहाड़ गूंजी, ‘‘तमीज नहीं है तुम्हें… इसीलिए भेजा है तुम्हें घर से बाहर पढ़ने कि तुम समय देखो न जगह… कुछ भी डिसकस करने लग जाओ.’’

निविदा को लगा कि पापा का गुस्सा आज या तो उस की मम्मी को हलाल करेगा या फिर उसे.

लेकिन मालिनी इतमीनान से बोली, ‘‘यह क्या निविदा… दूध पीती बच्ची है क्या अभी… चीजें गिराती रहती है… और तू कांप क्यों रही है… हर वक्त कांपती रहती है, क्लास में… कालेज में टीचर्स के सामने, लड़कियों के सामने. मैं सोचती थी तू वहीं कांपती है. डरपोक कहीं की. अंकल इसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाइए… मानसिक रूप से बीमार है आप की बेटी.’’

निविदा के पापा गुस्से में नाश्ता पटक कर बाहर चले गए. निविदा खुद को संयत नहीं कर पा रही थी. मालिनी के सामने तो पापा ने किसी तरह खुद को नियंत्रित कर लिया पर इस का खमियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ेगा.

पापा के जाने के बाद मालिनी निविदा को खींच कर कमरे में ले गई और छाती से चिपका लिया, ‘‘डर मत निविदा, तेरा डर ही तेरा दुश्मन है. अकसर हमारे अंदर के डर का दूसरे फायदा उठाते हैं. तेरे घर का वातावरण और तेरे पापा के व्यवहार, क्रोध व ज्यादतियों ने तेरे अंदर डर भर दिया है और मैं तेरा यह डर दूर कर के रहूंगी.’’

निविदा देर तक मालिनी के कंधे पर सिर रख कर रोती रही. उस के पापा इस कुसंस्कारी, दिशाहीन, वाचाल लड़की को जितना अपनी नजरों से दूर रखना चाहते, वह उतना ही उन के आसपास मंडराती. निविदा मन ही मन कामना कर रही थी कि मालिनी के रहते हुए घर में कोई अप्रिय स्थिति न खड़ी हो… कहीं पापा मम्मी की धुनाई कर के अपना गुस्सा न निकाल दें या फिर मालिनी को ही कुछ उलटासीधा बोल दें.

मालिनी को आए 1 हफ्ता होने वाला था. एक दिन एकाएक निविदा के

फोन पर किसी लड़के के दोस्ताना मैसेज आने लगे. वह कोई गलत बात तो नहीं करता पर उस के प्रोफाइल फोटो पर बड़े प्यारे कमैंट करता. उसे दोस्त बनाने को उत्सुक दिखता.

निविदा बहुत परेशान हो रही थी कि न जाने कौन लड़का है. प्रोफाइल पिक्चर देखी तो काफी आकर्षक लगा. फिर मालिनी से अपनी परेशानी कही, ‘‘पता नहीं इस के पास मेरा नंबर कहां से आ गया… कहीं पापा को पता चल गया तो…’’

‘‘अरे, तू इतना डरती क्यों है? कोई ऐसीवैसी बात तो नहीं लिख रहा न… इस उम्र में दोस्ती, थोड़ीबहुत ऐसी हलकीफुलकी बातें जायज हैं. लड़केलड़की की दोस्ती कोई बुरी बात नहीं. जब तक कुछ बुरा नहीं कह रहा चुप रह.’’

यह सुन कर निविदा नहाने चली गई.

मालिनी ने निविदा का मोबाइल उठा कर चुपचाप लौबी में अखबार पढ़ते उस के पापा के सामने टेबल पर रख दिया. मैसेज लगातार आ रहे थे. लगातार बजती मैसेज टोन से परेशान उस के पापा ने निविदा का मोबाइल उठाया और चैक करने लगे. किसी लड़के के मैसेज निविदा के मोबाइल पर और वे भी ऐसे दिलकश अंदाज में, साथ ही उस ने अपने कई फोटो भी भेजे थे. उन्हें समझ नहीं आया कि पहले मोबाइल पटकें या निविदा को या फिर मालिनी को घर से निकालें… बस बहुत हो गई बाहर रह कर पढ़ाई.

‘‘निविदा… सुलेखा…’’ वे बहुत जोर से चिल्लाए.

कागज का रिश्ता- भाग 3: क्या परिवार का शक दूर हुआ

‘‘ऐसा मत कहिए. मोहन सिर्फ मेरा पत्र मित्र है और कुछ नहीं. मेरे मन में आप के प्रति गहरी निष्ठा है. आप मुझ पर शक कर रहे हैं,’’ कहते हुए विभा की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी.

‘‘तुम चाहे अब अपनी कितनी भी सफाई क्यों न दो लेकिन मैं यह नहीं मान सकता कि मोहन तुम्हारा केवल पत्र मित्र है. कौन पति यह सहन कर सकता है कि उस की पत्नी को कोई पराया मर्द प्रेमपत्र भेजता रहे,’’ मुकेश का स्वर अब नफरत में बदलने लगा था.

‘‘आप पत्र पढ़ कर देख लीजिए, यह कोई प्रेमपत्र नहीं है,’’ विभा ने जल्दी से मोहन का पत्र दराज से निकाल कर मुकेश के आगे रखते हुए कहा.

‘‘यह पत्र अब तुम अपने भविष्य के लिए संभाल कर रखो,’’ मुकेश ने मोहन का पत्र विभा के मुंह पर फेंकते हुए कहा.

‘‘तुम जानते नहीं हो मुकेश, मेरी दोस्ती सिर्फ कागज के पत्रों तक ही सीमित है. मेरा मोहन से ऐसावैसा कोई संबंध नहीं है. अब मैं तुम्हें कैसे समझाऊं?’’ विभा अब सचमुच रोने लगी थी.

‘‘तुम मुझे क्या समझाओगी? शादी के बाद भी तुम्हारी आंखों में मोहन का रूप बसता रहा. तुम्हारे हृदय में उस के लिए हिलोरें उठती हैं. मैं इतना बुद्धू नहीं हूं, समझीं,’’ मुकेश पलंग से उठ कर सोफे पर जा लेटा.

विभा देर तक सुबकती रही.

अगली सुबह मुकेश कुछ जल्दी ही उठ गया. जब तक विभा अपनी आंखों को मलते हुए उठी तब तक तो वह जाने के लिए तैयार भी हो चुका था. विभा ने आश्चर्य से घड़ी की तरफ देखा, 8 बज रहे थे. विभा घबरा कर जल्दी से रसोई में पहुंची. वह मुकेश के लिए नाश्ता बना कर लाई, परंतु वह जा चुका था.

विभा मुकेश को दूर तक जाते हुए देखती रही, नाश्ते की प्लेट अब तक उस के हाथों में थी.

‘‘क्या हुआ, बहू?’’ दरवाजे के बाहर खड़ी उस की सास ने भीतर आते हुए पूछा.

‘‘कुछ नहीं, मांजी,’’ विभा ने सास से आंसू छिपाते हुए कहा.

‘‘मुकेश क्या नाश्ता नहीं कर के गया?’’ उन्होंने विभा के हाथ में प्लेट देख कर पूछा.

‘‘जल्दी में चले गए,’’ कहते हुए विभा रसोई की तरफ मुड़ गई.

‘‘ऐसी भी क्या जल्दी कि आदमी घर से भूखा ही चला जाए. मैं देख रही हूं, तुम दोनों में कई दिनों से कुछ तनाव चल रहा है. बात बढ़ने से पहले ही निबटा लेनी चाहिए, बहू. इसी में समझदारी है.’’

शाम को मुकेश दफ्तर से लौटा तो मां ने उसे अपने समीप बैठाते हुए कहा, ‘‘मुकेश, आजकल इतनी देर से क्यों लौटता है?’’

‘‘मां, दफ्तर में आजकल काम कुछ ज्यादा ही रहता है.’’

‘‘आजकल तू उदास भी रहता है.’’

‘‘नहींनहीं, मां,’’ मुकेश ने बनावटी हंसी हंसते हुए कहा.

‘‘आज कोई पुरानी फिल्म डीवीडी पर लगाना,’’ मां ने हंसते हुए कहा.

‘‘अच्छा,’’ कहते हुए मुकेश उठ कर अपने कमरे में चला गया.

दिनभर के थके और भूख से बेहाल हुए मुकेश ने जैसे ही कमरे की बत्ती जलाई, उसे अपने बिस्तर पर शादी का अलबम नजर आया. कपड़े उतारने को बढ़े हाथ अनायास ही अलबम की तरफ बढ़ गए. वह अलबम देखने बैठ गया. हंसीठिठोली, मानमनुहार, रिश्तेदारों की चुहलभरी बातें एक बार फिर मन में ताजा हो उठीं. तभी विभा ने चाय का प्याला आगे बढ़ाते हुए कहा, ‘‘लीजिए.’’

मुकेश का गुस्सा अभी भी नाक पर चढ़ा था, पर उस ने पत्नी के हाथ से चाय का प्याला ले लिया. विभा फिर रसोईघर में चली गई.

मुकेश जब तक हाथमुंह धो कर बाथरूम से निकला, परिवार रात के खाने के लिए मेज पर बैठ चुका था. विमला देवी ने बेटे को पुकारा, ‘‘मुकेश, आओ बेटे, सभी तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं.’’

कुरसी पर बैठते हुए मुकेश सामान्य होने का प्रयत्न कर रहा था, पर उस का रूखापन छिपाए नहीं छिप रहा था. सभी भोजन करने लगे तो विमला देवी बोलीं, ‘‘आज मुकेश जल्दीजल्दी में नाश्ता छोड़ गया तो विभा ने भी पूरे दिन कुछ नहीं खाया.’’

‘‘पतिव्रता स्त्रियों की तरह,’’ राकेश ने शरारत से हंसते हुए कहा.

विमला देवी भी मुसकराती रहीं, पर मुकेश चुपचाप खाना खाता रहा. गरम रोटियां सब की थालियों में परोसते हुए विभा ने यह तो जान लिया था कि मुकेश बारबार उस को आंख के कोने से देख रहा है, जैसे कुछ कहना चाहता हो, पर शब्द न मिल रहे हों.

रात में बिस्तर पर बैठते हुए विभा बोली, ‘‘देखिए, मेरे दिल में कोई ऐसीवैसी बात नहीं है. हां, आज तक मैं अपने बरसों पुराने पत्र मित्रों के पत्रों को सहज रूप में ही लेती रही. मेरे समझने में यह भूल अवश्य हुई कि मैं ने कभी गंभीरता से इस विषय पर सोचा नहीं…’’

मुकेश चुपचाप दूसरी तरफ निगाहें फेरे बैठा रहा. विभा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ‘‘आज दिनभर मैं ने इस विषय पर गहराई से सोचा. मेरी एक साधारण सी भूल के कारण मेरा भविष्य एक खतरनाक मोड़ पर आ खड़ा हुआ है. हम दोनों की सुखी गृहस्थी अलगाव की तरफ मुड़ गई है. मैं आज ही आप के सामने इन कागज के रिश्तों को खत्म किए देती हूं.’’

यह कहते हुए विभा ने बरसों से संजोया हुआ बधाई कार्डों व पत्रों का पुलिंदा चिंदीचिंदी कर के फाड़ दिया और मुकेश का हाथ अपने हाथ में लेते हुए धीरे से कहा, ‘‘मैं आप को बहुत प्यार करती हूं. मैं सिर्फ आप की हूं.’’

शक के कारण अपनत्व की धुंधली पड़ती छाया मुकेश की पलकों को गीला कर के उजली रोशनी दे गई. वह पत्नी के हाथ को दोनों हाथों में दबाते हुए बोला, ‘‘मुझे अब तुम से कोई शिकायत नहीं है, विभा. अच्छा हुआ जो तुम्हें अपनी गलती का एहसास समय रहते ही हो गया.’’

‘‘जो कुछ हम ने कहासुना, उसे भूल जाओ,’’ विभा ने पति के समीप आते हुए कहा.

‘‘मुझे गुस्सा तुम्हारी लापरवाही ने दिलाया. एक के बाद एक तुम्हारे पत्र आते चले गए और मेरी स्थिति अपने परिवार में गिरती चली गई. जरा सोचो, अगर घर के बुजुर्ग इन पत्रों को गलत नजरिए से देखने लगते तो परिवार में तुम्हारी क्या इज्जत रह जाती?’’ मुकेश ने धीमे स्वर में कहा.

विभा कुछ नहीं बोली. मुकेश ने अपनी बात जारी रखते हुए आगे कहा, ‘‘उस शाम जब राकेश ने तुम्हारा वह पत्र मेरे हाथों में दिया था तो तुम नहीं जानतीं, वह कैसी विचित्र निगाहों से तुम्हें ताक रहा था. वह लांछित दृष्टि मैं बरदाश्त नहीं कर सकता, विभा. हम ऐसा कोई काम करें ही क्यों जिस में हमारे साथसाथ दूसरों का भी सुखचैन खत्म हो जाए?’’

‘‘आप ठीक कह रहे हैं,’’ विभा ने इस बार मुकेश की आंखों में देखते हुए कहा. उस ने मन ही मन अपने पति का धन्यवाद किया. जिस तरह मुकेश ने भविष्य में होने वाली बदनामी से विभा को बचाया, यह सोच कर वह आत्मविभोर हो उठी. फिर लाइट बंद कर सुखद भविष्य की कल्पना में खो गई.

अछूत- भाग 1: जब एक फैसला बना बेटे के लिए मुसीबत

वह अब एक मृत शरीर था. स्वयं को चिरंजीवी, दूसरों से बेहतर तथा कुलीन समझने के अभिमान से बंधा हुआ उस का शरीर, ऐंबुलैंस के अंदर घंटों से निर्जीव, निरीह पड़ा था. न जाने कितनी बार अपनी कठोरता और शुष्क व्यवहार से भर कर उस ने लोगों का तिरस्कार किया था, आज स्वयं तिरस्कृत हो कर, लावारिस के समान पड़ा हुआ था.
जिस श्मशानघाट के द्वार पर खड़े हो कर, कभी उस ने शवों का भी वर्गीकरण किया था, उस स्थान पर उस के ही प्रवेश पर गहन चर्चा चल रही थी. चारधामों की यात्रा के बावजूद अर्जित पुण्य भी उस के पवित्र शरीर के लिए 4 कंधों की व्यवस्था नहीं कर पा रहे थे. उस की विशुद्ध और स्वर्ण देह, आज निर्जीव पङी थी.

उसे कुछ दिनों पूर्व करोना का आलिंगन प्राप्त हुआ था, लेकिन उस की आत्मा तो न जाने कब से मलिन थी. इस महामारी ने उस बलराज शास्त्री के शरीर का अंत किया था, जिस का हृदय स्वार्थ और अहंकार के  वशीभूत था.

बलराज के पिता श्रीधर शास्त्री उज्जैन के एक गांव में एकमात्र यजमानी पंडित थे. इसी से घर में कभी खानेपीने, ओढ़नेबिछाने, पहननेखाने की वस्तुओं का अभाव नहीं रहा. यजमानों के घर में जन्म हो या मृत्यु, दोनों समान रूप से श्रीधर शास्त्री को समृद्धि से लाद जाते. वे ब्राह्मण थे और पूजित होने का परंपरागत जातिगत विशेषाधिकार उन्हें प्राप्त था.

4 पुत्रियों के बाद हुआ बलराज का जन्म, उस के परिवार और पिता के लिए किसी उत्सव से कम नहीं था. बचपन से ही उस की माता ने उस के भीतर के पुरुष का पूजन शुरू कर दिया, तो वहीं पिता ने उस के कोमल मन में घृणा का अंकुर बोना.

जब बलराज 4-5 साल का था तब हमारे पास के गांधी स्मारक स्कूल में उस का दाखिला कराया गया. इस स्कूल में लगभग सभी जातियों के बच्चे जाते थे. बच्चों के अलावा वहां  सभी जातियों के शिक्षक भी थे. वहां तमाम तरह के खेल खोखो, भाग छू, कबड्डी आदि खिलाए जाते थे. लेकिन वहां पर उस सामंती नैतिक शिक्षा का बोलबाला था, जिस का धीमा जहर सभी की धमनियों में परिवार से ले कर स्कूलों तक भरा जाता था. उस समय इन के प्रति सवालों का प्रायः अकाल था.

गांव में रामलीला भी होती थी. कभीकभी आसपास होने वाले शादीब्याह में नौटंकी भी होती थी. पासपड़ोस के कई लड़के उसे देखने जाते थे. उस का भी मन इन के प्रति सदा से उत्साह रहता, पर यह उत्साह प्रकट न हो सकता था, क्योंकि इन्हें देखने जाने की मनाही थी. कभीकभी जाने की जिद करने पर पिताजी कहते,”वहां अच्छे घरों के बच्चे नहीं जाते.”
अच्छे घरों से मतलब ऊंची जातियों से होता था.

तब वह नहीं जानता था कि रामलीला, नौटंकी नाटक की ही विविध शैलियां हैं. लेकिन जब जान गया तब भी कहां पूछ पाया कि जब नाटक को पंचम वेद की संज्ञा दी गई है, फिर वह वर्जित कैसे हो सकती थी?

हालांकि उस के पिताजी ने भरत मुनि का नाट्यशास्त्र कभी नहीं पढ़ा, पर  पढ़ कर भी बलराज उसे कहां समझ पाया. सदियों से घृणा सिंचित ब्राह्मण मानस की  जातिवादी  मानसिकता मस्तिष्क के चेतनअवचेतन में इस कदर घुल चुकी थी कि कुछ भी समझ पाने की बुद्धि शेष ही नहीं थी.

उस समय यह सब कुछ सही प्रतीत होता था. वह इस अमानवीय व्यवस्था का हिस्सा बनता चला गया, जहां एक बच्चे की कोमल भावनाओं को निर्ममता से कुचल दिया जाता था. हमेशा से अपने बाजार के दलित लड़कों को देख कर उस का मन दुखता था. एक पल को उस का बालमन सोचता कि कितने मस्त हैं, चाहे जहां जाते हैं, नाचते हैं, खाते हैं, पीते हैं. लेकिन अगले ही पल तर्कसंगत सोच पर झूठी श्रेष्ठता के दंभ का अधिकार हो जाता और वह उन्हें हिकारत की दृष्टि से देखने लगता.

बड़े होने पर बीए की पढ़ाई करने दिल्ली आया तब भी जाति ने पीछा नहीं छोड़ा. वैसे यह शहर बुद्धिजीवियों, पढ़नेलिखने वालों की नगरी थी, लेकिन ऐडमिशन लेते, किराए का कमरा ढूंढ़ते और लोगों से बात करते समय हमेशा जाति का संदर्भ जारी रहा.

इस देश में श्रेष्ठता के अनेक मापदंड हैं. विभिन्नता में एकता तो एक आदर्श परिस्थिति है जो यदाकदा ही नजर आती है. लेकिन विभिन्नताओं में अनेकता इस देश की कङवी सचाई  है. हर धर्म स्वयं को दूसरे से श्रेष्ठ साबित करने में लगा रहता है. जातिधर्म तो भारतीय समाज को सदियों से खोखला कर ही रही है. भाषा की लड़ाई ने भी घृणित रूप ले लिया है. एक ही देश के लोग उत्तर और दक्षिण की लड़ाई में व्यस्त रहने लगे हैं. रंगभेद रूपी घृणा का पेड़ भी फलफूल रहा है. निर्धन और संपन्न के मध्य धन के साथ नफरत की खाई भी बढ़ रही है.

धीरेधीरे वह भी यह सोचने लगा कि उस के नाम ‘बलराज’ के बाद ‘शास्त्री ’ लगते ही, उस के नाम का वजन बढ़ जाता है. लोगों का नाम सुन कर ही उस के हाथ हरकत में आया करते थे. वह कभी भी, तथाकथित बड़े और ऊंचे लोग जिन्हें अछूत जाति या नीच जाति कहते हैं, का सरनेम लगा होता तो उस व्यक्ति से हाथ नहीं मिलाया करता था. वह जाति इतर किसी के व्यक्तित्व को कोई महत्व ही नहीं दे पाया. किसी के ज्ञान व बुद्धि का उस के लिए जैसे कोई मूल्य ही नहीं था. महत्व था, मूल्य था, तो इस कट्टर व्यवस्था का जो सदियों से चली आ रही थी.

देश के कानून और अपनी बैंक की सरकारी नौकरी से बंधे होने के कारण बलराज खुल कर अपनी भावनाओं को तो व्यक्त नहीं कर पाता लेकिन, पारिवारिक चर्चाओं में उस के मन की कटुता कभी छिपी भी नहीं रहती थी. वैसे अब वह जाति से ब्राह्मण और कर्म से वैश्य था, लेकिन उस के अहंकार में लेशमात्र की भी कमी नहीं हुई थी.

नियत समय पर बलराज का विवाह कालिंदी के साथ हो गया. विवाह के बाद उसे बेटा हुआ तो ऐसा लगा जैसे उस की विरासत को उत्तराधिकारी प्राप्त हो गया. वैसे यह सोचना भी हास्यपद ही था कि कौन सी रियासत थी उस के पास, जिस का युवराज वह अपने बेटे शिशिर को बनाने वाला था.

इतिहास चक्र- भाग 1: सूरजा ने कैसे की सहेली की मदद

गली के मोड़ पर हांफता हुआ कमल पल भर को ठिठक गया. इतनी दूर से स्कूटर घसीटतेघसीटते उस की सांस फूल गई थी. दफ्तर आते हुए जब एहसास हुआ कि गाड़ी में पैट्रोल कम है, तो उस ने स्कूटर को पैट्रोल पंप की ओर मोड़ दिया. मगर पैट्रोल पंप पर ‘तेल नहीं है’ की तख्ती ने उसे मायूस कर दिया और घर से 1 किलोमीटर पहले ही जब स्कूटर झटका ले कर बंद हो गया तो कमल झल्ला उठा, क्योंकि उसे इतनी दूर तक स्कूटर घसीट कर जो लाना पड़ा था.

‘उफ,’ कमल ने माथे का पसीना पोंछा. उसे एहसास भी नहीं हुआ कि उसी गली से कब लाल रंग की मारुति कार निकली और उस के बगल में आ कर रुक गई.

‘‘कमल,’’ ड्राइविंग सीट पर बैठी एक सुंदर युवती ने उसे पुकारा.

कमल उसे देख कर चौंक गया. उस के चेहरे पर घृणा की रेखा तैर गई, ‘‘तुम?’’

‘‘आज तुम्हें इस हालत में देख कर अफसोस हो रहा है कमल. मैं अभी तुम्हारे घर गई थी. चांदनी भी अपनी रोशनी बिखेर कर चुकती जा रही है,’’ सूरजा ने कहा.

‘‘सूरजा,’’ कमल का स्वर कड़वा हो उठा था, ‘‘मैं ने तुम से कई बार कहा है कि मैं तुम्हारी सूरत से नफरत करता हूं. चांदनी की सहेली होने के नाते मैं तुम्हें घर आने से नहीं रोक सकता. तुम्हें मेरे हालात पर अफसोस करने की कोई जरूरत नहीं, समझी.’’

‘‘जरूरत है कमल, मगर मुझे नहीं तुम्हें. सोचो कमल, सूरजा सदा तुम्हें प्यार करती आई है. तुम ने मेरे प्यार को ठुकरा कर चांदनी और उस की गरीबी का जो कफन ओढ़ा है एक दिन वह तुम्हें मार डालेगा.’’

‘‘मैं मर भी जाऊं तो क्या, सूरजा, अपने हालात से मैं ने शिकवा कभी नहीं किया, रहा प्यार का सवाल तो ये अमीरी के चोंचले किसी और को दिखाना. मैं तुम्हारे इस दिखावटी प्यार को पसंद नहीं करता.’’

‘‘मैं तुम्हारी इस नफरत से भी प्यार करती हूं कमल, और तुम तो जानते ही हो सूरजा कितनी जिद्दी है, तुम मेरा प्यार ही नहीं मेरा अभिमान भी हो. यह अभिमान मैं टूटने नहीं दूंगी. मैं ने प्यार किया है कमल और मैं अपने प्यार को मरता नहीं देख सकती. कमल, गरीबी के फांके तुम्हें मेरी बांहों में आने को मजबूर कर देंगे.’’

‘‘उस दिन से पहले कमल आत्महत्या कर लेगा सूरजा, मगर तेरे दर पर झांकने तक नहीं आएगा,’’ कमल का स्वर घृणा और अपमान से भर उठा. वह तेजी से वहां से आगे बढ़ गया.

‘‘जा रहे हो कमल, लेकिन एक बात तो सुनते जाओ. कमल चांदनी की चमकीली किरणों से नहीं खिलता. उस के लिए सूरज की रोशनी की जरूरत पड़ती है और सूरजा अपने जीतेजी अपने कमल को मुरझाने नहीं देगी. मैं तुम्हें मिटने नहीं दूंगी कमल. कभी नहीं, मैं तुम से दिल से प्रेम करती हूं और सदा करती रहूंगी,’’ और एक झटके से कार स्टार्ट कर वह तेजी से आगे बढ़ गई.

कमल ने घृणा से सिर झटका. सूरजा की बातों से उस का रोमरोम सुलग रहा था, ‘‘बड़ी आई प्रेम करने वाली,’’ घर में घुसते ही उस का आक्रोश भड़क उठा, ‘‘चांदनी… चांदनी…’’

‘‘अरे, आप आ गए, आज बड़ी देर कर दी. आप हाथमुंह धोइए, मैं चाय बनाती हूं,’’ कहती हुए चांदनी कमरे में घुसी, मगर कमल की भावभंगिमा देख कर ठिठक गई, ‘‘क्या बात है बहुत परेशान लग रहे हैं?’’ आगे बढ़ कर उस ने कमल के माथे पर हाथ रखा, ‘‘सचसच बता दो, क्या बात है?’’ चांदनी ने उसे अपनी बांहों में भरना चाहा लेकिन कमल ने तेजी से उस का हाथ झटक दिया, ‘‘सूरजा यहां क्यों आई थी?’’

‘‘सूरजा दीदी,’’ चांदनी पल भर को चकित रह गई. उस ने कमल का गुस्सा कई बार देखा था मगर यह रूप नहीं देखा था.

‘‘हां, तुम्हारी सूरजा दीदी… वही सूरजा दीदी जिस से तुम्हारा कमल नफरत करता है. वह इस घर में क्यों आई थी?’’ कमल बोला.

‘‘सुनिए, अभी आप गुस्से में हैं, सोचिए, इस घर में आने वाले किसी को भी मैं कैसे रोक सकती हूं और फिर सूरजा दीदी तो कालेज से ही हम दोनों को जानती हैं. मैं जानती हूं कि उन का आना आप को अच्छा नहीं लगता मगर मैं उन्हें घर से निकाल भी तो नहीं सकती.’’

दीवाली के कुछ दिन पहले सूरजा फिर मिलने आ गई.

चांदनी ने आंचल से जल्दी से कुरसी को साफ किया, ‘‘कई दिन हो गए आप आई नहीं, दीदी.’’

‘‘हां, इधर दीवाली की खरीदारी चल रही थी न इसलिए चाह कर भी नहीं आ सकी. कमल कहीं गया है क्या?’’

‘‘हां, दफ्तर में कुछ काम था न सो दफ्तर गए हैं,’’ कहतेकहते चांदनी की आंखें झुक गईं.

‘‘चांदनी,’’ सूरजा उठ कर पास आ गई थी, ‘‘मुझ से झूठ बोल रही है न… अपनी दीदी से… मैं जानती हूं आज सारे दफ्तर बंद हैं और मैं बता भी सकती हूं कि कमल कहां गया होगा, वहीं ताश के 52 पत्तों के बीच बैठा होगा.’’

‘‘दीदी,’’ चांदनी की आंखें भर गई थीं.

सूरजा ने उस के आंसुओं को प्यार से पोंछ दिया, ‘‘रो मत चांदनी, मैं जानती हूं, कमल जिस दलदल में फंसा है वहां बरबादी के सिवा कुछ भी नहीं है. तू उसे समझाती क्यों नहीं?’’

‘‘मैं क्या समझाऊं दीदी,’’ चांदनी सिसक उठी, ‘‘अपने घर, अपने प्यार और अपने भविष्य को बरबाद करने वाला और कोई नहीं स्वयं उस का निर्माता है. दीदी, दीवाली की काली रातों का यह अंधेरा कभी छंटने वाला नहीं है.’’

‘‘नहीं पगली, अंधेरा कितना भी घना क्यों न हो, सूरज के उगते ही भाग जाता है. मैं कमल को समझाऊंगी.’’

‘‘नहीं दीदी, आप का तो नाम लेते ही वह नफरत से भर जाते हैं, आप कुछ मत कहिएगा वरना…’’

‘‘जानती हूं चांदनी, कमल मुझ से नफरत करता है,  मगर मैं उस की नफरत को भी प्यार करती हूं. मेरा प्यार खुदगर्ज नहीं है, मैं अब कमल को एक दोस्त के रूप में देखती हूं और तू… तू तो मेरी छोटी बहन है… चांदनी, तुम दोनों की खुशियों से मुझे प्यार है. मैं जानती हूं मेरी बहन मुझे गलत नहीं समझती है, इस का मुझे गर्व है. मैं कमल को छेड़ देती हूं सिर्फ इसलिए कि वह जोश में आ कर अपनेआप में सुधार कर ले, मगर अब लगता है कोई दूसरा रास्ता अपनाना पड़ेगा. अच्छा, सुन, तू दीवाली की तैयारियां कर. इस बार दीवाली दोनों प्रेम से मनाना.’’

‘‘कमल मेरे बस में नहीं है दीदी,’’ चांदनी सिसक उठी.

‘‘देख चांदनी, तुझे अपने कमल को इस दलदल से खींच कर लाना होगा. मैं तेरा साथ दूंगी. अच्छा, सुन तुझे कुसुम की याद है न,’’ सूरजा बोली.

‘‘हां, सुना है. उस की भी शादी यहीं चौक में हुई है रमन के साथ. काफी बड़ा आदमी है.’’

‘‘सुन चांदनी, आज रात तुम दोनों को कुसुम के यहां आना है, समझीं और देख मैं जैसा कहूं वैसा ही करना,’’ इस के बाद देर तक सूरजा ने चांदनी को समझाया.

उस के जाने के बाद चांदनी ने एक लंबी सांस ली. आंखें आने वाली विजय के प्रति आश्वस्त हो चमक उठी थीं और वह कमल की प्रतीक्षा करने लगी.

शाम को 4 बजे जब कमल घर आया तो उस का चेहरा खिला हुआ था. आते ही उस ने चांदनी का चेहरा चूमा और बोला, ‘‘क्या बात है, मेरी चांदनी उदास क्यों है?’’

चांदनी कुछ बोल नहीं पाई. उस की आंखों से अश्रुधारा फूट पड़ी.

‘‘चांदनी, ओ चांदनी,’’ कमल ने उसे अपने बाहुपाश में जकड़ लिया था, ‘‘क्या बात है, बोलो न, वर्ष भर में तो यह त्योहार आता है और तू मुंह लटकाए बैठी है.’’

‘‘एक बात पूछूं, सचसच बताइएगा,’’ चांदनी ने अपने आंसू पोंछ कर कहा, ‘‘आज आप का दफ्तर बंद था न,’’ कमल का चेहरा मुरझा गया, ‘‘वह… चांदनी…’’

‘‘मैं जानती हूं, आज फिर दोस्तों के साथ बैठे थे न.’’

‘‘चांदनी, तुम तो जानती हो दीवाली के दिन हैं, ऐसे में दोस्त जब घसीट कर ले जाते हैं तो इनकार नहीं कर सकते,’’ कमल बोला.

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