विधवा विदुर- भाग 1: किस कशमकश में थी दीप्ति

लखनऊ विश्वविद्यालय का सभागार आज खचाखच भरा हुआ था. सभी छात्र समय से पहले ही पहुंच गए थे. नगर के सम्मानित व्यक्तियों को भी आमंत्रित किया गया था. यह मौका था वादविवाद प्रतियोगिता के फाइनल का.

विश्वविद्यालय में एमएससी कर रहे एक छात्र रजनीश और शोध कार्य कर रही छात्रा देविका फाइनल में पहुचे थे और बहस का विषय था ‘तकनीक के समय में पुस्तकों की उपयोगिता.’

रजनीश ने तकनीक का पक्ष लिया और बोलना शुरू किया, उस ने तकनीक की महत्त्वता बताई और अनेक तर्क दिए जैसे रजनीश ने बताया कि आज जब हमारे पास कंप्यूटर है, लैपटौप है और  तीव्र गति से  हर परिणाम दिखाने वाला इंटरनैट है तो भला हम किताबों के भरोसे क्यों रहें.

आज इंटरनैट पर सिर्फं एक बटन दबाते ही दुनिया भर की जानकारी उपलब्ध हो सकती है तो  हम किताबें ढोने में समय क्यों गंवाएं, पुरातनपंथी क्यों बनें और क्यों न तकनीक को अपनाएं.

इस के बाद भी रजनीश ने तकनीक की बढ़ाई करते हुए बहुत सारे तर्क दिए जो लगभग अकाट्य थे. लोगों ने खूब तालियां बजा कर रजनीश का उत्साहवर्धन किया.

बारी देविका की आई तो वह बोली, ‘‘मेरे दोस्त ने काफी कुछ कह दिया है पर फिर भी मैं इतना कहूंगी कि तकनीक जरूरी है पर इस का मतलब यह नहीं कि हम पुस्तकों के महत्त्व को नकार ही दें. आखिरकार हमारे ज्ञान का स्रोत तो पुस्तकें ही हैं. जिस तरह से पौधा हमेशा ऊपर की ओर  जाता है पर उस की जड़ें नीचे की ओर बढ़ती हैं और जड़ें जितना नीचे जाती हैं वह पौधा उतना ही मजबूत पेड़ बन जाता है. इस के बाद देविका ने भी लोगों को एक के बाद एक तथ्य बताए जो यह सिद्ध करते थे कि इंटरनैट के इस युग में भी पुस्तकें को पढ़ना जरूरी है.

जूरी के सदस्यों के सामने ऊहापोह की स्थिति आ गई थी क्योंकि दोनों वक्ताओं ने इतना अच्छा बोला था कि उन की सम झ में ही नहीं आ रहा था कि वे प्रतियोगिता का विजेता किसे घोषित करें. काफी देर चली डिस्कसन के बाद जब परिणाम बताने की बारी आई तो जूरी ने दोनों को ही संयुक्त रूप से विजेता घोषित कर दिया.

कुछ दिनों तक पूरे विश्वविद्यालय में इस प्रतियोगिता की खूब चर्चा होती रही.

एक दिन रजनीश टैगोर लाइब्रेरी में बैठा नोट्स बनाने में लगा था तभी वहां देविका आई. दोनों की निगाहें आपस में टकराईं और एक मुसकराहट का आदानप्रदान भी हुआ.

सामने की टेबल पर देविका को भी कुछ जरूरी नोट्स लेने थे. उन्हें बना लेने के बाद देविका बाहर निकल गई. रजनीश भी पीछेपीछे आया और देविका को आवाज दी, ‘‘अरे मैडम हमें भी साथ ले लो.’’

‘‘आज पता चला कि तकनीक का हवाला देने वाले लोग भी किताबों का सहारा लेते हैं,’’  देविका ने मुसकराते हुए कहा तो बदले में रजनीश ने उसे बताया कि असल में तो किताबों का शौकीन वह भी है पर वादविवाद प्रतियोगिता में रखे गए उस के विचार मात्र प्रतियोगिता जीतने के लिहाज से बोले गए थे. उन विचारों से वह इत्तफाक ही रखे यह कोई जरूरी तो नहीं.

दोनों बात करतेकरते कैंपस में बनी कैंटीन तक आ गए थे. रजनीश ने देविका को चाय का औफर दिया जिसे उस ने बड़ी सहजता से मना कर दिया और वहां से चल दी.

उसे जाते देख कर बिना रोमांचित हुए बिना नहीं रह सका रजनीश. लगभग हर दूसरे दिन दोनों का आमनासामना हो ही जाता. दोनों एकदूसरे की पढ़ाई में मदद करने के साथासाथ तमाम मुद्दों पर बातें भी करते.

देविका को कई बार यह भी लगता कि जिस तरह के जीवनसाथी का सपना उस ने अपने जीवन के लिए मन में सजा रखा है रजनीश में वे सारी खूबियां हैं और कुछ ऐसा ही विचार रजनीश भी देविका के लिए मन में रखता था. दोनों ने एकदूसरे के सामने यह बात प्रकट भी कर दी और कई महीनों के साथ के बाद आखिर वह समय भी आया जब रजनीश और देविका ने एकदूसरे से शादी का वादा कर लिया. पर अगले ही दिन से कई दिनों तक देविका को रजनीश दिखाई नहीं दिया. उस का मोबाइल भी बंद आ रहा था.

देविका परेशान हो उठी. रजनीश के दोस्तों से भी पूछा पर किसी ने कुछ ठोस बात नहीं बताई. देविका को लगने लगा कि हो न हो रजनीश के साथ या उस के परिवार में कोई हादसा हो गया है पर कुछ भी पता कर पाना उस के बस में नहीं था.

कुछ हफ्तों बाद जब शाम को थकीहारी देविका अपने घर पहुची तो सामने का दृश्य देख कर खुशी से चौंक गई. सामने के कमरे में रजनीश बैठा था और देविका के मांबाप से बातें करने में व्यस्त था. देविका को देख कर उस के चेहरे पर एक मुसकराहट दौड़ गई. देविका ने पापा के चेहरे की तरफ देखा. वे कुछ तनाव में लग रहे थे. रजनीश पापा को बता रहा था कि उसे बैंक में एक क्लर्क की नौकरी मिल गई है, जौब का प्रोफाइल थोड़ा लो जरूर है पर अपने घर की जरूरतों की वजह से उसे नौकरी की जरूरत थी, इसलिए जौइन कर ली.

देविका सीधे किचन में चली गई,थोडी देर बाद वहां मां भी आ गईं और बोलीं, ‘‘यह सब तुम ने हमें पहले क्यों नहीं बताया?’’

‘‘पर क्या मां?’’

‘‘यही कि तुम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हो और शादी करना चाहते हो.’’

‘‘हां मां, पर सही समय आने पर मैं आप को बताती ही.’’

‘‘हां, पर अब ये सब हमें बताने की कोई जरूरत नहीं है. तेरे पापा अपने से नीची जाति वाले से कभी तेरी शादी नहीं करेंगे, ‘‘मां के

स्वर में कड़वाहट थी. न जाने कहां खोई हुई थी देविका आज तक. रजनीश से कब उसे प्यार हो गया था यह तो इसे पता भी नहीं चला था और प्यार करतेकरते वह भूल बैठी थी कि इस समाज में शादी के लिए समान जातियों का भी होना जरूरी है. हां, समाज में विजातीय शादियां भी होती हैं पर समाज उन जोड़ों को भला कहां अपना पाता है?

खिड़की से देविका ने रजनीश की तरफ नजर डाली, उस के चेहरे की उदासी देख कर वह सब सम झ गई थी. बचपन से पापा को आदर्श माना था, उन्होंने भी देविका को बड़े नाजों से पाला था और दबाव में भी हमेशा सही फैसला ही लेना सिखाया था.

तभी पापा की आवाज गूंजी. उन्होंने देविका को बुलाया और उस से बिना किसी भूमिका बांधे परिवार या प्यार में से एक को चुन लेने को कहा. उस दिन से पहले ऐसी अजीब हालत में नही फंसी थी देविका.

लड़का चाहिए: सुरेंद्र क्या अपने दिल की बात कह पाया

यह सुरेंद्र का दुर्भाग्य था या सौभाग्य, क्या कहें. वह उस संयुक्त परिवार के बच्चों में सब से आखिरी और 8वें नंबर पर आता था. अब वह 21 साल का ग्रैजुएट हो चुका था व छोटामोटा कामधंधा भी करने लगा था. देखनेदिखाने में औसत से कुछ ऊपर ही था. उस के विवाह के लिए नए प्रस्ताव भी आने लगे थे. यहां तक तो उस के भाग्य में कोई दोष नहीं था परंतु उस के सभी बड़े भाइयों के यहां कुल 17 लड़कियां हो चुकी थीं और अब किसी के यहां लड़का होने की उम्मीद नहीं थी. इसी कारण वंश को आगे बढ़ाने की सारी जिम्मेदारी सुरेंद्र पर टिकी हुई थी.

अब तक घरपरिवार और चेहरेमोहरे को देखने वाले इस परिवार ने दूसरी बातों का सहारा लेना भी शुरू कर दिया, जैसे जन्मपत्रिका मिलाना, परिवार में हुए बच्चों का इतिहास जानना आदि. पत्रिका मिलान करते समय पंडितों को इस बात पर विशेष ध्यान देने को कहा जाता कि पत्रिका में पुत्र उत्पन्न करने संबंधी योग, नक्षत्र भी हैं या नहीं.

एक पंडित से पत्रिका मिलवाने के बाद दूसरे पंडित की सैकंड ओपिनियन भी जरूर ली जाती. पंडित लोग भी मौका देख कर भारीभरकम फीस वसूल करते.

कई लड़कियां तो सुरेंद्र को अच्छी भी लगीं किंतु पंडितों की भविष्यवाणी के आधार पर रिजैक्ट कर दी गईं. एक जगह तो अच्छाखासा विवाद भी हो गया जब एक लड़की ज्योतिष के सभी परीक्षणों में सफल भी हुई, लेकिन स्त्री स्वतंत्रता की पक्षधर उस लड़की को यह सबकुछ बेहद असहज व स्त्रियों के प्रति अपमानजनक लगा.

सुरेंद्र से एकांत में मुलाकात के समय उस ने सुरेंद्र से कहा कि जब आप के परिवार में 17 कन्याओं ने जन्म लिया है तो मुझे आप के घर के पुरुषों के प्रति संदेह है कि उन में लड़का पैदा करने की क्षमता भी है या नहीं. मेरे साथ शादी करने से पहले आप को इस बात का मैडिकल प्रमाणपत्र देना होगा कि आप पुत्र उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं.

जब यह बात रिश्तेदारों और जानपहचान वालों को पता चली तो कई लोग बिन मांगे सुझाव और सलाहों के साथ हाजिर हो गए. किसी ने कहा कि ऐसी लड़की का चयन करना जिस की मां को पहली संतान के रूप में पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई हो. किसी की सलाह थी, कमर से जितने अधिक नीचे बाल होंगे, लड़का होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी. एक सलाह यह भी थी कि पुत्र उत्पन्न करने में वे लड़कियां ज्यादा सफल होती हैं जो चलते समय अपना बायां पैर पहले बाहर रखती हैं.

यदि लड़की की नानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को जन्म दिया हो, संभावनाएं शतप्रतिशत हो जाती हैं.

इसी तरह की और भी न जाने क्याक्या सलाहें मिलती रहीं.

सुरेंद्र का परिवार सभी सलाहों पर हर मुमकिन अमल करने का प्रयास भी इस तरह से कर रहा था मानो यदि अब एक लड़की और हो गई तो वह उस की परवरिश करने में असमर्थ रहेगा. अब तो टोनेटोटके के बावजूद पैदा हुई सब से छोटी लड़की के पुराने कपड़ों को भी घर से हटा दिया गया था क्योंकि इस तरह के पुराने कपड़ों को रखना पनौती माना जाता है.

सुझावों को ध्यान में रख कर सुरेंद्र के लिए लड़कियां देखी जाती रहीं, और किसी न किसी आधार पर अस्वीकृत भी की जाती रहीं. इसी तरह 2 बरस बीत गए और कुछ रिजैक्टेड लड़कियों ने अपनी शादी के बाद अपनी पहली संतान के रूप में लड़कों को जन्म भी दे दिया.

आखिरकार, परिवार की मेहनत रंग लाई और कड़ी खोजबीन के बाद इस तरह की लड़की को खोजने में सफल हो ही गया. खोजी गई लड़की के बाल कमर से लगभग डेढ़ फुट तक नीचे जाते थे. मतलब, एक विश्वसनीय सुरक्षित लंबाई थी बालों की.

लड़की की मां, नानी, यहां तक कि परनानी ने भी पहली संतान के रूप में लड़के को ही जन्म दिया था. यानी यहां दोहरा सुरक्षाकवच मौजूद था. सोने पर सुहागा यह कि लड़की चलते समय बायां पैर ही पहले निकालती थी.

अब तो तीनसौ प्रतिशत संभावनाएं थीं कि यह लड़की, लड़का पैदा करने में पूरी तरह सक्षम है. परंतु जो बात सब से महत्त्वपूर्ण थी वह यह कि सुरेंद्र को यह लड़की पसंद नहीं थी क्योंकि लड़की रंगरूप के मामले में औसत भारतीय लड़कियों से भी नीचे थी.

उस से भी बड़ी बात यह थी कि लड़की मुश्किल से 3 प्रयासों के बाद इंटर की परीक्षा पास कर पाई थी. सभी चीजें तो एक लड़की में नहीं मिल सकती न, ‘वंश तो लड़कों से चलता हैं न कि लड़की की पढ़ाईलिखाई या रंगरूप से’ ये बातें सुरेंद्र को समझा कर किसी ने उस की एक न सुनी.

इस तरह सभी भौतिक परीक्षाओं में पास होने के बाद लड़की की जन्मकुंडली पंडितजी को दिखाई गई. पंडितजी भी एक ही जजमान की कुंडली बारबार देख कर त्रस्त हो चुके थे. वे भी चाहते थे जैसे भी हो, इस बार कुंडली मिला ही दूंगा चाहे कोई पूजा ही क्यों न करवानी पड़े.

उन के अनुसार भी, कुंडली का मिलान भी श्रेष्ठ ही था. किंतु एक हिदायत उन्होंने भी दे दी कि लड़का होने की संभावनाएं तब ही बलवती होंगी जब संतान शादी के एक वर्ष के भीतर गोद में आ जाए.

आखिरकार सुरेंद्र की अनिच्छा के बावजूद शादी धूमधाम से हो गई. लड़की ने इंटर की परीक्षा जरूर 3 प्रयासों में पास की थी लेकिन वह इतना तो जानती ही थी कि इतनी जल्दी मातृत्व का बोझ उठाना ठीक नहीं होगा. उस ने टीवी और फिल्मों के जरिए यह जान लिया था कि शादी के शुरुआती वर्ष पतिपत्नी को एकदूसरे को समझने के लिए बहुत अहम होते हैं. ऐसे में कुछ वर्ष बच्चा नहीं होना चाहिए.

सुरेंद्र की पत्नी को पहले ही दिन से वीआईपी ट्रीटमैंट दिया जा रहा था. उसे तरहतरह के प्रलोभन दिए जा रहे थे.

सुरेंद्र पर भी दबाव डाला जा रहा था और पंडितजी की हिदायतों की समयसमय पर याद करवाई जा रही थी.

2 माह बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सारे परिवार को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी गर्भवती हो चुकी थी. मतलब, हर नजरिए से इस परिवार को पुत्र के रूप में वारिस मिलने की संभावनाएं बहुत अधिक हो गई थीं. किसी ने सलाह दी कि यदि इस में कुछ चिकित्सकीय सहायता भी ले ली जाए तो असफलता की संभावनाएं नहीं रहेंगी.

एलोपैथिक के डाक्टरों ने तो इस प्रकार की कोई भी औषधि देने से इनकार कर दिया. तब एक परिचित की सहायता से एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक वैद्यजी को दिखाया गया. वे इस शर्त पर दवा देने को तैयार हुए कि बच्चे के लिए सोनोग्राफी नहीं करवाई जाएगी.

परिवार वालों ने वैद्यजी की बातों को माना और वैद्यजी की बताई गई दवाई पूर्णिमा को खिला भी दी गई.

समयसमय एलोपैथी के डाक्टर को दिखा कर बच्चे की शारीरिक प्रगति पर ध्यान दिया जाता रहा. लेकिन वैद्यजी की सलाह के अनुसार सोनोग्राफी की अनुमति नहीं दी गई. डाक्टर अपने अनुभवों के आधार पर उपचारित करते रहे. परिवार वाले भी सुरेंद्र की पत्नी की हर इच्छा को आदेश मान कर पालन करते रहे.

सुरेंद्र की पत्नी अपनेआप को किसी वीआईवी से कम नहीं समझ रही थी. विवाह के 11 महीनों के बाद आखिर वह दिन भी आ ही गया जिस का सभी को इंतजार था. सुरेंद्र की पत्नी को अस्पताल में भरती करवा दिया गया. घर पर पूजापाठहवन आदि का इंतजाम किया गया. पूरे घर में लड़का होेने की अग्रिम खुशी में उत्सव जैसा माहौल हो गया.

आखिर वह समय भी आ गया

जब परिणाम घोषित हुआ. परिणाम पिछले 17 परिणामों से अलग नहीं था.

सुरेंद्र की पत्नी ने एक स्वस्थ और सुंदर कन्या को जन्म दिया. इस घड़ी में सुरेंद्र का परिवार तो कुछ कहने की स्थिति में नहीं था परंतु बाहर के लोग तो कह ही रहे थे, कुछ हंसी में और कुछ संवेदना में. कुछ लोग तो यह सलाह देने के लिए आ रहे थे कि दूसरी संतान पुत्र कैसे हो, इस के कुछ नुस्खे उन के पास मौजूद हैं.

किंतु, गुस्से से भरा सुरेंद्र पहले की सलाह देने वालों को ढूंढ़ रहा है. आप भी तो उन में से एक नहीं है न. यदि हैं, तो बच कर रहिए.

गरबा 2022: ट्रैडिशनल लुक के साथ दिखें अलग और आकर्षक

कहने को तो नवरात्रि गुजरातियों का त्यौहार है, लेकिन अब यह म्यूजिक फेस्टिवल हर किसी का पसंदीदा त्यौहार बन चुका है. आज देश के हर कोने में इसे बड़े ही हर्षोल्लास के साथ लोग मनाते हैं. इस दिन लोग रंग बिरंगे पारंपरिक परिधानों में खुद को सजाते हैं और रात भर संगीत के ताल पर नाचते हैं, जिसे आप बड़े से बड़े क्लब, मैदान से लेकर हर गली-मोहल्ले, सड़कों और हाउसिंग सोसाइटीयों में देख सकते है. नवरात्रि में लोग विशेष तौर पर पारंपरिक परिधान चनिया चोली और केडियु पहनना पसंद करते है. लेकिन अब इन पारंपरिक परिधानों के साथ हम किस तरह एक्सपेरिमेंट कर अपने आप को दूसरों से अलग और आकर्षक बना सकते हैं यह आप इस आर्टिकल में देख सकती हैं.

फैशन एंड ब्यूटी ब्लागर रिद्धि जाला के अनुसार, इस नवरात्रि पर यदि आप भीड़ से अलग दिखना चाहती हैं तो आपको कुछ ऐसा पहनना और दिखना होगा, जो आपको दूसरों से अलग करे. इस मौके पर अब ज्यादातर महिलाएं पारंपरिक, इंडो वेस्टर्न, फ्यूजन और माडर्न चनिया चोली का चुनाव कर रहे हैं, जिसके साथ आप एक्सपेरिमेंट करके खुद को अलग लुक दे सकती हैं. जैसे-

लुक- मिडनाइट मोनोक्रोम

यदि आप नवरात्रि की रात खुद को सिंपल और क्लासी दिखाना चाहती हों तो ब्लैक कलर की जिग जैग प्रिंटेट चनिया और प्लेन ब्लैक ब्लाउज के साथ मोनोक्रोम पैटर्न के प्लेन ब्लैक दुपट्टा काफी आकर्षक लुक देगा. इस प्लेन परिधान को आप हैण्ड कफ, हैवी झुमका, काइन आकार का नैक लेस आपको परफेक्ट लुक देगा. इस लुक की विशेषता यह है कि इसे आप नवरात्रि के अलावा दूसरे अवसरों पर स्कर्ट और क्रौप टौप के साथ ट्राई कर सकती हैं.

लुक- काला चश्मा स्वैग

यह उनके लिए है जो कलरफुल कपडे पहनना पसंद करते है. प्लेन पिंक ब्लाउज के साथ जिग ज़ैग आकार की चनिया चोली और गोल्डन प्रिंटेट पिंक दुपट्टा एक एलिगेंट और सिंपल लुक देता है. इसमें दुपट्टा ज्यादा आकर्षक है जिसे आप अलग अलग स्टाइल में लेकर लुक में बदलाव ला सकते है. इसके साथ आप कम से कम एक्सेसरीज पहने. लौन्ग झुमके, स्पाईकी चोकर नैकलेस के साथ काला चश्मा लगाकर निश्चित तौर पर आप अलग दिखेंगी. क्योंकि इस परिधान से एक अलग ही तरह का फन वाईब निकल कर बाहर आता है.

लुक – आरेंज पर्पल का काम्बिनेशन

आरेंज और पर्पल का काम्बिनेशन काफी वाइब्रेंट होता है. यह फ्यूजन स्टाइल गरबा नाईट के लिए एकदम सही और काफी कैची होता है. पर्पल कलर्ड प्लेन लाइन्ड ब्लाउज के साथ बॉक्स प्रिंटेड आरेंज कलर्ड चनिया और आरेंज बौक्स प्रिंटेड वाइट दुपट्टा लोगों का ध्यान आकर्षित करते है. इसके साथ ट्राइबल एक्सेसरी जैसे हेड लौन्ग नैकपिस, लौन्ग झुमका और नोजपिन का चुनाव बेहतरीन लुक देता है.

लुक- फ्लोवी कलमकारी

यह परिधान उन लड़कियों के लिए है जो ज्यादा ताम झाम के बिना पारंपरिक पोशाक पहनना पसंद करती हैं. रेड कलर की फ्लोवी कलमकारी और फ्लेयर्ड चनिया के साथ ब्लू कलर का प्रिंटेड ब्लाउज और वाइट दुपट्टा काफी आकर्षक लगेगा. इसके साथ आप ट्रेडिशनल एक्सेसरी जैसे टिका, मिरर इअरिंग, लौन्ग नैकलेस पहनकर खुद को एक परफेक्ट ट्रेडिशनल लुक दे सकते है, जिसका आजकल ट्रेंड चल रहा है.

लुक- माडर्न ट्विस्ट

यह लुक उन लड़कियों के लिए है जो नवरात्रि की स्टार बनना और फैशन के साथ एक्सपेरिमेंट करना पसंद करती हैं. यह आउटफिट निश्चित तौर पर ट्रेडिशनल कपड़ों में माडर्न ट्विस्ट लाता है जो आपको कम्फर्ट, सेक्सी और एलिगेंट लुक देता है. इस परिधान का कलर और लुक काफी नेचुरल और दोस्तों के साथ गरबा नाईट एन्जाय करने के लिए बढ़िया विकल्प है. स्ट्रेपी ब्लू ब्लाउज जिसे क्रौप टौप की तरह भी पहन सकती हैं, रेड प्रिंटेड चनिया जो पूरी तरह से फ्लेयर्ड के बजाय सिलिंडर के आकार में है, जिसके ऊपर मस्टर्ड येलो कलर दुपट्टा एकदम हट कर और फैंसी लुक देगा. इस आउटफिट को और भी माडर्न और ट्रेंडी बनाने के लिए लौन्ग कलरफुल इअरिंग अवं काइन चोकर नैकपिस पहनकर एक अलग लुक के साथ नवरात्रि एन्जाय कर सकती हैं.

दुल्हन बनने से पहले: रत्ना की सूनी निगाहें क्यों दीवार ताकने लगीं

ढोलक की थाप पर बन्नाबन्नी गाती सहेलियों और पड़ोस की भाभियों का स्वर छोटे से घर को खूब गुलजार कर रहा था. रत्ना हलदी से रंगी पीली साड़ी में लिपटी बैठी अपनी सहेलियों के मधुर संगीत का आनंद ले रही थी. बन्नाबन्नी के संगीत का यह सिलसिला 2 घंटे से लगातार चल रहा था.

बीचबीच में सहेलियों और भाभियों के बीच रसिक कटाक्ष, हासपरिहास और चुहलबाजी के साथ स्वांग भी चलने लगता तो अम्मा आ कर टोक जातीं, ‘‘अरी लड़कियो, तुम लोग बन्नाबन्नी गातेगाते यह ‘सोहर’ के सासबहू के झगड़े क्यों अलापने लगीं?’’

थोड़ीबहुत सफाई दे कर वे फिर बन्नाबन्नी गाने लगतीं. अम्मा रत्ना को उन के बीच से उठा कर ‘कोहबर’ में ले गईं. बाहर बरामदे में उठते संगीत का स्वर कोहबर में बैठी रत्ना को अंदर तक गुदगुदा गया :

‘‘मेरी रुनकझुनक लाड़ो खेले गुडि़या

बाबा ऐसा वर खोजो

बीए पास किया हो,

बीए पास किया हो.

विलायत जाने वाला हो,

विलायत जाने वाला…’’

उस का वर भी तो विलायत में रहने वाला है. जी चाहा कि वह भी सहेलियों के बीच जा बैठे.

उस का भावी पति अमेरिका में इंजीनियर है. यह सोचसोच कर ही जबतब रत्ना का मन खुशी से भर उठता था. कोहबर में बैठेबठे वह कुछ देर के लिए विदेशी पति से मिलने वाली सुखसुविधाओं की कल्पना में खो गई. वह बारबार सोच रही थी कि वह कैसे अपने खूबसूरत पति के साथ अमेरिका घूमेगी, सुखसमृद्धि से सुसंपन्न बंगले में रहेगी और अपनी मोटरगाड़ी में घूमेगी. वहां हर प्रकार के सुख के साधन कदमकदम पर बिछे होंगे.

एकाएक उसे अपने मातापिता की उस प्रसन्नता की भी याद आई जो उसे सुखी देख कर उन्हें प्राप्त होगी. उस प्रसन्नता के आगे तो उसे अपने सुख के सपने बड़े सतही और ओछे नजर आने लगे.

वह सोचने लगी, ‘अम्मा और पिताजी बेटियों से उबर जाएंगे. दीदी की शादी से ही उन की आधी कमर टूट गई थी. घर के खर्चों में भारी कटौती करनी पड़ी थी. कई तरह के कर्जे भरतेभरते दोनों तनमन से रिक्त हो गए थे. रत्ना के नाम से जमा रकम भी बहुत कम थी. उस में वे हाथ भी नहीं लगाते कि कब देखते ही देखते रत्ना भी ब्याहयोग्य हो जाएगी और वे कहीं के नहीं रहेंगे.’

लेकिन रत्ना की शादी के लिए उन्हें कोई कर्ज नहीं लेना पड़ा. आनंद के परिवार वालों ने दहेज के लिए सख्त मना कर दिया था. अमेरिका में उसे किसी बात की कमी न थी.

रत्ना ने कोहबर की दीवारों पर नजर दौड़ा कर देखा, जगहजगह से प्लास्टर उखड़ा था. छत की सफेदी पपड़ी बनबन कर कई जगह से झड़ गई थी. दीदी की शादी के बाद घर में सफेदी तो दूर, मरम्मत जैसे जरूरी काम तक नहीं हो पाए थे. भंडारघर की चौखट दीवार छोड़ने लगी थी. रसोई के फर्श में जगहजगह गड्ढे बन गए थे. छत की मुंडेर कई जगह से टूट कर गिरने लगी थी.

कोहबर में बैठी रत्ना सोचने लगी, ‘अम्मापिताजी के दुख के दिन समाप्त होने वाले हैं. अब तो पिताजी के सिर्फ 40-50 हजार रुपए ही खर्च होंगे. बाकी जो 40-50 हजार रुपए और बचेंगे उन से वे पूरे घर की मरम्मत करा सकेंगे. अब पैसा जोड़ना ही किस के लिए है? मुन्ना की पढ़ाई का खर्च तो वे अपने वेतन से ही चला लेंगे.

‘जब सारी दीवार के उधड़े प्लास्टर की मरम्मत हो जाएगी और ऊपर से पुताई भी, तो दीवार कितनी सुंदर लगेगी. फर्श के भी सारे गड्ढे भर कर चिकने हो जाएंगे. मां को घर में पोंछा लगाने में आसानी होगी. फर्श की दरारों में फंसे गेहूं के दाने, बाल के गुच्छे, आलपीन वगैरह चाकू से कुरेदकुरेद कर नहीं निकालने पड़ेंगे…’

यही सब सोचसोच कर रत्ना पुलकित हो रही थी.

रत्ना के भावी पति का नाम आनंद था. आनंद के प्रति कृतज्ञता ने रत्ना के रोमरोम में प्यार और समर्पण भर दिया. बिना भांवर फिरे ही रत्ना आनंद की हो गई.

तभी बाहर के शोरगुल से उस के विचारों को झटका लगा और वह खयालों के आसमान से उतर कर वास्तविकता के धरातल पर आ गई.

‘‘कोई आया है.’’

‘‘बड़ी मौसी आई हैं.’’

‘‘दीदी आई हैं.’’

इन सम्मिलित शोरशराबे से रत्ना समझ गई कि पटना वाली मौसी आई हैं.

बहुत हंसोड़, खूब गप्पी और एकदम मुंहफट, घर अब शादी के घर जैसा लगेगा. कभी हलवाइयों के पास जा कर वे जल्दी करने का शोर मचाएंगी, घीतेल बरबाद नहीं करने की चेतावनी देंगी, तो कभी भंडार से सामान भिजवाने की गुहार लगाएंगी. इसी बीच ढोलक के पास बैठ कर बूआ लोगों को दोचार गाली भी गाती जाएंगी.

मां को धीरे से कभी किसी से सचेत कर जाएंगी तो कभी कुछ सलाह दे जाएंगी. दहेज का सामान देखने बैठेंगी तो छूटाबढ़ा कुछ याद भी दिला देंगी. बुलंद आवाज से खूब रौनक लगाएंगी. यह सब सोचतेसोचते रत्ना का धैर्य जाता रहा. वह जल्दीजल्दी कोहबर की लोकरीति खत्म कर बाहर आ गई.

रत्ना ने देखा कि मौसी का सामान अंदर रखा जा चुका था. मौसी भी अंदर आ तो गई थीं पर यह क्या? कैसा सपाट चेहरा लिए खड़ी हैं? शादी के घर में आने की जैसे कोई ललक ही न हो. कहां तो बिना वजह इस उम्र में भी चहकती रहती हैं और कहां चहकने के माहौल में जैसे उन्हें सांप सूंघ गया हो.

मां ने बेचैनी भरे स्वर में पूछा, ‘‘क्या बात है दीदी, क्या बहुत थक गई हो?’’

‘‘हूं, पहले पानी पिलाओ. फिर इन गानेबजाने वालियों को विदा करो तो बताऊं क्या बात है?’’ मौसी ने समय नष्ट किए बिना ही इतना कुछ कह दिया.

मां ने जैसे अनिष्ट को भांप लिया हो, फिर भी साहस कर आशंकित हो कर पूछा, ‘‘क्या हुआ, दीदी? गानाबजाना क्यों बंद करा दूं? यह तो गलत होगा. जल्दी कहो, दीदी, क्या बात है?’’

‘‘बैठो सुमित्रा, बताती हूं. अब समय बहुत कम है, इसलिए तुरंत निर्णय ले लो. हिम्मत से काम लो और अपनी रत्ना को बचा लो,’’ मौसी ने बैठेबैठे ही मां की दोनों हथेलियां अपनी मुट्ठी में दबा लीं.

‘‘जल्दी बताओ दीदी, कहना क्या चाहती हो?’’ घबराहट में जैसे मां के शब्द ही सूख गए. चेहरा ऐसा लग रहा था जैसे दिल का दौरा पड़ गया हो. मौसी भी घबरा गईं लेकिन समय की कमी देखते हुए उन्हें बात जल्दी से जल्दी कहनी थी वरना कोई और बुरा हादसा हो जाता. अभी तो ये अपनी बात कह कर सुमित्रा को संभाल भी लेंगी और जो सदमा देने जा रही थीं, उसे साथ रह कर बांट भी लेंगी.

‘‘सुनो सुमित्रा, जिस आनंद को तुम रत्ना का पल्लू से बांध रही हो वह पहले से ही शादीशुदा है.’’

सुमित्रा की भौंहें तन गईं, ‘‘क्या कह रही हो, दीदी? जिस ने यह शादी तय कराई है वह क्या इस बात को छिपा कर रखेगा?’’

‘‘हां सुमित्रा, शांत हो जाओ और धीरज धरो, या तो उस ने बात छिपाई होगी या लड़के वालों ने उस से बात छिपाई होगी. मैं तो कल ही आ जाती, लेकिन इस बात की सचाई का पता लगाने के लिए कल आरा चली गई थी. वहां मुझे दिनभर रुकना पड़ा, नहीं तो कल पहुंच जाती तो बात संभालने के लिए तुम लोगों को भी समय मिल जाता. खैर, अभी भी बिगड़ा कुछ नहीं है. किसी तरह समय रहते सबकुछ तय कर ही लेना है.’’

रत्ना के पैर थरथराने लगे. लगा कि वह गिर पड़ेगी. मौसी ने इशारे से रत्ना को पास बुलाया और हाथ पकड़ कर बगल में बिठा लिया.

‘‘दुखी मत हो बेटी, संयोग अच्छा है. समय रहते सचाई का पता चल गया और तुम्हारी जिंदगी बरबाद होने से बच गई.’’

मौसी के दिलासा दिलाने के बावजूद रत्ना को आंसू रोकना मुिश्कल हो रहा था.

रत्ना के पिता ने अधीर हो कर पूछा, ‘‘आप को कैसे पता चला कि आनंद शादीशुदा है?’’

समय की कमी देखते हुए मौसी ने जल्दीजल्दी बताया, ‘‘पटना में रत्ना के मौसा के दफ्तर में विष्णुदेवजी काम करते हैं. मैं यहां आने से ठीक एक दिन पहले उन के घर गई थी. उन्हें मैं ने बताया कि मैं अपनी बहन की लड़की की शादी में गया जा रही हूं. फिर उन्हें मैं ने बातोंबातों में आनंद के परिवार के बारे में भी बताया. बीच में ही उन की पत्नी उठ कर अंदर चली गईं. आईं तो एक एलबम लेती आईं. उस में एक जोड़े का फोटो लगा था, दिखा कर बोलीं, ‘यही आनंद तो नहीं है?’ फोटो देख कर मैं तो जैसे आकाश से गिर पड़ी. वह उसी आनंद का फोटो था. तुम ने मुझे देखने के लिए जो भेजी थी, वैसी आनंद की एक और फोटो उस एलबम में लगी थी. फिर जब सारे परिवार की बात चली तो शक की बिलकुल गुंजाइश ही नहीं रह गई, क्योंकि तुम ने तो सब विस्तार से लिख ही भेजा था.’’

रत्ना की मां आगे सुनने का धैर्य नहीं जुटा पाईं. वे अपनी बहन की हथेली पकड़ेपकड़े ही रोने लगीं, ‘‘हाय, अब क्या होगा? बरात लौटाने से तो पूरी बिरादरी में ही नाक कट जाएगी.’’

अब तक रत्ना भी जी कड़ा कर संयत हो गई थी. दुख और क्षोभ की जगह क्रोध और आवेश ने ले ली थी, ‘‘नाक क्यों कटेगी मां? नाक कटाने वाला काम हम लोगों ने किया है या उन्होंने?’’ रत्ना के पिता ने सांस भर कर कहा, ‘‘ये सारे इंतजाम व्यर्थ हो गए. अब तक का सारा खर्च पानी में…’’ बीच में ही उन का भी गला भरभराने लगा तो वे भी चुप हो गए.

इस समय पूरे घर का संबल जैसे रत्ना की बड़ी मौसी ही हो गईं, ‘‘क्यों दिल छोटा कर रहे हो तुम लोग? समय रहते बच्ची की जिंदगी बरबाद होने से बच गई. क्या इस से बढ़ कर खर्च का अफसोस है? यह सोचो कि अगर शादी हो जाती तो रत्ना कहीं की न रहती. तुम लोग धीरज से काम लो, मैं सब संभाल लूंगी. अभी कुछ बिगड़ा भी नहीं है, और समय भी है. मैं जा कर सब से पहले शामियाने वाले और सजावट वालों को विदा करती हूं. फिर इन लड़कियों और पड़ोसिनों को संभाल लूंगी. जो सामान बना नहीं है वह सब वापस हो जाएगा और जो पक गया है उसे हलवाइयों से कह कर होटलों में खपाने का इंतजाम करवाती हूं.’’

फिर तो मौसी ने सबकुछ बड़ी तत्परता से संभाल लिया. मांपिताजी और रत्ना तीनों को तो जैसे काठ मार गया हो. हमेशा चहकने वाला मुन्ना भी वहीं चुपचाप मां के पास बैठ गया. बाकी सगेसंबंधी समय की नाजुकता समझते हुए चुपचाप इधरउधर कमरों में खिसक लिए. सब तरफ धीमेधीमे खुसुरफुसुर में बात जानने की उत्सुकता थी पर स्थिति की नाजुकता को देखते हुए मुंह खोल कर कोई कुछ पूछ नहीं रहा था. सभी शांति से मौसी के आने के इंतजार में थे.

एकडेढ़ घंटे में सब मामला सुलझा कर, एकदो नजदीकी रिश्तेदारों को हर अलगअलग विभाग को निबटाने की जिम्मेदारी दे कर, मौसी अंदर आईं. अब इस थकान में उन्हें एक कप चाय की जरूरत महसूस हुई. महाराजिन से सब के लिए चाय भिजवाने का आदेश जारी करते हुए मां से बोलीं, ‘‘सुमित्रा, तुम जरा भी निराश मत हो. मैं रत्ना के लिए बढि़या से बढि़या लड़का ला कर खड़ा कर दूंगी. और वह भी जल्दी ही. जिस आनंद की तुम ने इतनी तारीफ लिख कर भेजी थी, वह दोदो शादियां रचाए बैठा है. विष्णुदेव के बड़े भैया की आरा में फोटोग्राफी की बहुत बड़ी दुकान है. उन्हीं की लड़की से शादी हुई थी उस धोखेबाज आनंद की. विष्णुजी के भैया ने खूब धूमधाम से अपनी बेटी की शादी की थी. लड़की भी बेहद खुश थी. एक हफ्ते ससुराल रह कर आई तो आनंद की खूब तारीफ की. आनंद 15 दिन रह कर अमेरिका चला गया. बहुत दिन तक आनंद के मातापिता कहते रहे कि बहू का वीजा बना नहीं है, बन जाएगा तो चली जाएगी. वैसे बहू को वे लोग भी प्यार से ही रखते थे.

‘‘लेकिन 3-4 माह बाद ही आनंद ने अपनी बीवी को पत्र लिखा कि ‘मुझे बारबार बुलवाने के लिए पत्र लिख कर तंग मत करो. मैं तुम्हें अंधेरे में रख कर परेशान नहीं करूंगा. मैं तुम्हें अमेरिका नहीं बुला सकता क्योंकि यहां मेरी पत्नी है जो 3 साल से मेरा साथ अच्छी तरह निभा रही है.

‘‘‘मेरे मांबाप को एक हिंदुस्तानी बहू की जरूरत थी, सो तुम से शादी कर मैं ने उन्हें बहू दे दी. मेरा काम खत्म हुआ. अब तुम उन की बहू बन कर उन्हें खुश रखो. वे भी तुम्हें प्यार से रखेंगे. मैं भी हिंदुस्तान आने पर जहां तक संभव होगा, तुम्हें प्यार और सम्मान दूंगा लेकिन अमेरिका आने की जिद मत करना. वह मेरे लिए संभव नहीं होगा.’

‘‘इस के बाद विष्णुजी के भैयाभाभी बेटी को हमेशा के लिए ससुराल से लिवा लाए. तलाक का नोटिस भिजवा दिया. हालांकि आनंद के मातापिता ने बहुत दबाव डाला कि बहू को छोड़ दें. वे कह रहे थे, ‘इसी की सहायता से हम लोग आनंद को हिंदुस्तान लाने में सफल होंगे. आनंद हम लोगों को बहुत प्यार करता है. देरसवेर उसे अमेरिकी बीवी को ही छोड़ना पड़ेगा.’ लेकिन विष्णुदेव के भैयाभाभी नहीं माने और समधी को इस धोखे के लिए खरीखोटी सुनाईं. तलाक भी जल्दी ही मिल गया. लेकिन जरा उन लोगों की धृष्टता तो देखो, इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी हिंदुस्तानी बहू लाने का चाव गया नहीं है. फिर लड़के को देखो, वह कैसे दोबारा फिर सेहरा बांधने को तैयार हो गया.’’

किसी दूसरे के घर की यह घटना होती तो मौसी बड़ी रसिकता से आनंद के परिवार के साथसाथ उस से जुड़ने वाले बेबस परिवार को भी अपने परिहास की परिधि में लपेटने से नहीं चूकतीं. पर यहां मामला अपनी सगी बहन का था और इस संकट में उन का अवलंबन भी वही थीं. इसलिए वे पूरी संजीदगी के साथ स्थिति को विस्फोटक होने से बचाए हुए थीं.

‘‘मौसी, लड़के की अक्ल पर क्या परदा पड़ा है जो वह मांबाप के इस बेहूदा खेल में दोबारा शामिल हो रहा है?’’ अभी तक रत्ना जिसे मन ही मन महान समझ रही थी, उस के प्रति उस का तनमन वितृष्णा और घृणा से भर उठा.

‘‘अरी बेटी, अनदेखे लड़की वालों के घर से उसे क्या सहानुभूति होगी? हिंदुस्तान आने पर मांबाप फिर हिंदुस्तानी बहू की रट लगा देते होंगे, अपने अकेलेपन की दुहाई देते होंगे. रातदिन के अनुरोध को टालना उस के बस की बात नहीं रहती होगी.’’

‘‘सुना है, अभी भी वह मांबाप का बड़ा आदर करता है और उन से डरता भी है. अमेरिका जा कर वह जरा भी नहीं बदला है. बस, अमेरिका वाली ही उस के दिल का रोग हो गई है, जो सुना है कि हिंदुस्तान नहीं आना चाहती. हिंदुस्तान में मांबाप के साथ शांति से एकदो महीने गुजर जाएं और मौजमस्ती के लिए एक पत्नी भी मिल जाए, इस से बढि़या क्या होगा. शायद इसीलिए वह दोबारा शादी करने के लिए राजी हो गया होगा.’’

सबकुछ सुन कर रत्ना के मातापिता मोहन व सुमित्रा तो वहीं तख्त पर निढाल से पड़ गए. सुमित्रा की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. रत्ना के पास भी अब उपयुक्त शब्द नहीं थे जो वह मां को चुप कराती. उस के तो हृदय में स्वयं एक मर्मांतक शूल सा उठ रहा था. सारे रिश्तेदार चुपचाप अपनेअपने कमरों में जा कर तय करने लगे कि जल्द से जल्द किस गाड़ी से वापस लौटा जाए? किसी ने भी मोहन और सुमित्रा पर आर्थिक और मानसिक बोझ बढ़ाना उचित नहीं समझा.

रत्ना के ताऊजी ने पुलिस कार्यवाही करने की सलाह दी. लेकिन मोहनजी ने भीगे और टूटे स्वर में कहा, ‘‘अब यह सब करने से हमें क्या फायदा होगा? उलटे मुझे ही शारीरिक, मानसिक और आर्थिक कष्ट होगा. उत्साह का काम होता तो शरीर भी सहर्ष साथ देता और पैसे की भी चिंता नहीं होती.’’

अपने मनोभावों को पूरी तरह व्यक्त करने की शक्ति भी मोहनजी में नहीं रह गई थी. इसलिए यही तय किया गया कि बरातियों को अपमानित कर के ही उसे दंडित किया जाए.

किया भी यही गया. बराती संख्या में बहुत कम थे. स्वागत तो दूर, उन्हें बैठने तक को नहीं कहा गया. चारों तरफ से व्यंग्यबाण बरसाए जा रहे थे. आनंद के पिता हर तरह से सफाई देने की कोशिश में थे, किंतु कोई कुछ सुनने को तैयार नहीं था. बरात में आए एकदो बुजुर्गों ने भी सुलह करने का परामर्श देना चाहा तो कन्या पक्ष वालों ने उन्हें भी बुरी तरह से लताड़ा.

रिश्तेदारों की निगाहों से बच कर रत्ना चुपचाप अकेली कोहबर में आ गई. बाहर उठता शोर रत्ना के कानों में सांपबिच्छू के दंश सा कष्ट दे रहा था. हालात ने उसे आशक्त, असमर्थ और जड़ बना दिया था. कांपते हाथों से धीरेधीरे वह विवाह के लिए पहनी जाने वाली पीली साड़ी उतारने लगी. दो चुन्नट खोलतेखोलते जैसे शक्ति क्षीण होने लगी. पास पड़ी पीढ़ी पर निढाल सी बैठ गई. रत्ना की सूनी निगाहें दीवार ताकने लगीं, ‘अब इन दीवारों पर प्लास्टर नहीं होगा, पुताई…’ आगे सोचने की भी सामर्थ्य जवाब दे गई और वह जोरजोर से हिचकियां भरने लगी.

कूल फूल: क्या हुआ था राजन के साथ

राजेश, विक्रम, सरिता, पिंकी और रश्मि कालेज के बाहर खड़े बातचीत में व्यस्त थे कि तभी एक बाइक तेजी से आ कर उन के पास रुक गई. वे सब एक तरफ हट गए. इस से पहले वे बाइक सवार को कुछ कहते उस ने हैलमैट उतारते हुए कहा, ‘‘क्यों कैसी रही ’’

वे फक्क रह गए, ‘‘अरे, राजन तुम,’’ सभी एकसाथ बोले.

‘‘बाइक कब ली यार ’’ विक्रम ने पूछा.

‘‘बस, इस बार जन्मदिन पर डैड की ओर से यह तोहफा मिला है,’’ कहते हुए वह सब को बाइक की खासीयतें बताने लगा.

राजन अमीर घर का बिगड़ा हुआ किशोर था. हमेशा अपनी लग्जरीज का घमंड दिखाता और सब पर रोब झाड़ता, लेकिन वे तब भी साथ खातेपीते और उस से घुलेमिले ही रहते. रश्मि को राजन का इस तरह बाइक ला कर बीच में खड़ी करना और रोब झाड़ना बिलकुल अच्छा नहीं लगा. वे सभी कालेज के फर्स्ट ईयर के विद्यार्थी थे. लेकिन रश्मि 12वीं तक स्कूल में राजन के साथ पढ़ी थी इसलिए वह अच्छी तरह उस के स्वभाव से वाकिफ थी. सरिता व पिंकी तो हमेशा उस से खानेपीने के चक्कर में रहतीं, अत: एकदम बोल पड़ीं, ‘‘कब दे रहे हो पार्टी बाइक की ’’

‘‘हांहां, बस, जल्दी ही दूंगा. ऐग्जाम्स खत्म होते ही खाली होने पर करते हैं पार्टी,’’ राजन लापरवाही से बोला और बाइक स्टार्ट कर घरघराता हुआ चला गया. रश्मि सरिता व पिंकी से बोली, ‘‘मुझे तो बिलकुल अच्छा नहीं लगा इस का यह व्यवहार, हमेशा रोब झाड़ता रहता है अपनी अमीरी का. उस पर तुम लोग उस से पार्टी की उम्मीद करते हो. याद है, पिछली बार उस ने फोन की पार्टी देने के नाम पर क्या किया था.’’

‘‘हां…हां, याद है,’’ पास खड़ी सरिता बोली, ‘‘उस ने पार्टी के नाम पर बेवकूफ बनाया था, यही न. लेकिन तुम्हें पता है न अचानक उस के मामा की तबीयत खराब हो गई थी जिस कारण वह पार्टी नहीं दे सका था.’’

दरअसल, राजन का जन्मदिन 20 मार्च को होता था और पिछले वर्ष उसे जन्मदिन पर स्मार्टफोन मिला था. उस ने सब को दिखाया. फिर पार्टी का वादा भी किया, लेकिन आया नहीं. बाद में सब ने पूछा तो कह दिया कि मामाजी की तबीयत खराब हो गई थी, जबकि रश्मि जानती थी कि ऐसा कुछ नहीं था. बस, वह सब को मूर्ख बना रहा था. अब तो बाइक मिलने पर राजन का घमंड और बढ़ गया था. वह तो पहले ही अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता था. अत: राजन ने सब को कह दिया, ‘‘ऐग्जाम्स के बाद मैं सभी को एसएमएस कर के बता दूंगा कि कहां और कब पार्टी दूंगा.’’

शाम को सरिता घर में बैठी अगले दिन के पेपर की तैयारी कर रही थी कि रश्मि का फोन आया. बोली, ‘‘राजन का मैसेज आया है. 1 तारीख को दोपहर 1 बजे शिखाजा रैस्टोरैंट में पार्टी दे रहा है. जाओगी क्या ’’

‘‘हां, यार, मैसेज तो अभीअभी मुझे भी आया है. जाना भी चाहिए. तुम बताओ ’’ सरिता ने जवाब दिया.

‘‘मुझे तो उस पर रत्तीभर भरोसा नहीं है. सुबह वह कह रहा था ऐग्जाम्स के बाद पार्टी देगा और अब यह मैसेज. फिर मैं तो पिछली बार की बात भी नहीं भूली,’’ रश्मि साफ मना करती हुई बोली, ‘‘मैं तो नहीं जाऊंगी.’’

तभी राजेश का भी फोन आया और उस ने भी रश्मि को बताया कि राजन ने उसे व विक्रम को भी मैसेज किया है. सब चलेंगे दावत खाने. रश्मि बोली, ‘‘भई, पहले कन्फर्म कर लो, कहीं अप्रैल फूल तो नहीं बना रहा सब को  मैं तो जाने वाली नहीं.’’

पहली तारीख को सभी इकट्ठे हो रश्मि के घर पहुंच गए और उसे भी चलने को कहने लगे. रश्मि के लाख मना करने के बावजूद वे उसे साथ ले गए. शिखाजा रैस्टोरैंट पहुंच कर सभी राजन का इंतजार करने लगे, लेकिन राजन का कहीं अतापता न था. वेटर 2-3 बार और्डर हेतु पूछ गया था. जब उन्होंने फोन पर राजन से संपर्क किया तो उस का फोन स्विचऔफ आ रहा था. काफी देर इंतजार के बाद उन्होंने रैस्टोरैंट में अपनेअपने हिसाब से और्डर दिया और थोड़ाबहुत खापी कर वापस आ गए. उन्हें न चाहते हुए भी अपनी जेब ढीली करनीपड़ी. जब वे सभी घर पहुंच गए तो राजन का मैसेज सभी के पास आया, ‘‘कैसी रही पार्टी अप्रैल फूल की ’’ सभी अप्रैल फूल बन कर ठगे से रह गए थे. ‘राजन ने हमें अप्रैल फूल बनाया’ सभी सोच रहे थे, ‘और हम लालच में फंस गए.’

रश्मि बारबार उन्हें कोस रही थी, ‘‘मैं तो मना कर रही थी पर तुम ही मुझे ले गए. खुद तो मूर्ख बने मुझे भी बनाया.’’

घर आ कर रश्मि ने अपनी मां को सारी बात बताई और राजन को कोसने लगी. मां ने उस की पूरी बात सुनी और बोलीं, ‘‘कूल रश्मि कूल.’’

‘‘कूल नहीं मां, फूल कहो फूल, हम तो जानतेसमझते मूर्ख बने,’’ रश्मि गुस्से से बोली.

‘‘रश्मि, अगर अप्रैल फूल बने हो तो गुस्सा कैसा  यह दिन तो है ही एकदूसरे को मूर्ख बनाने का. तुम भी तो कई बार झूठमूठ डराती हो मुझे इस दिन. कभी कहती हो तुम्हारी साड़ी पर छिपकली है तो कभी गैस जली छोड़ देने का झूठ. फिर जब मुझे पता चलता है तो तुम गाना गाती हो और मुझे चिढ़ाती हो, ‘अप्रैल फूल बनाया…’

‘‘अगर फूल बन ही गए हो तो कुढ़ने से कुछ होने वाला नहीं. सोचो, कैसे राजन को भी तुम अप्रैल फूल बना सकते हो,’’ मां ने सुझाया. अब रश्मि शांत हो गई और कुछ सोचने लगी. फिर उस ने सभी दोस्तों को फोन कर अपने घर बुलाया और राजन को फूल बनाने की तरकीब सोचने को कहा. सभी राजन को भी मूर्ख बना कर बदला लेना चाहते थे. फिर उन्होंने भी राजन को मूर्ख बनाने की तरकीब सोचनी शुरू की. थोड़ी देर बाद रश्मि ही बोली, ‘‘मेरे दिमाग में एक आइडिया आया है. हम राजन को कूल फूल बनाएंगे. उस ने हमें फोन पर एसएमएस कर मूर्ख बनाया है, हम भी उसे फोन के जरिए मूर्ख बनाएंगे. सुनो…’’ कहते हुए उस ने अपनी योजना बताई.

शाम को राजन घर के अहाते में फोन पर बातचीत कर रहा था. उस की बाइक आंगन में खड़ी थी. तभी रश्मि उस के घर पहुंची. उसे देखते ही राजन बोला, ‘‘आओआओ रश्मि, कैसे आना हुआ ’’ रश्मि सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘वाह राजन, आज तो तुम ने सभी को अच्छा मूर्ख बनाया. अच्छा हुआ मैं तो गई ही नहीं थी,’’ उस ने झूठ बोला.

‘‘अरे भई, तुम्हारी पार्टी तो ड्यू है ही. यह तो वैसे ही मैं ने मजाक किया था. बैठो, मैं तुम्हारे लिए कुछ खाने को लाता हूं,’’ कह कर राजन घर के अंदर गया. वह अपना फोन मेज पर ही छोड़ गया था. रश्मि तो थी ही मौके की तलाश में. उस ने झट से राजन का फोन उठाया और भाग कर आंगन में जा कर राजन की बाइक का फोटो खींच कर उसी के फोन से ओएलएक्स डौट कौम पर बेचने के लिए डाल दिया. कीमत भी सिर्फ 10 हजार रुपए रखी. फिर वापस वैसे ही फोन रख दिया. राजन रश्मि के लिए खानेपीने को लाया. रश्मि ने 2 बिस्कुट लिए और बोली, ‘‘चलती हूं, तुम्हें फूल डे की कूल शुभकामनाएं. अच्छा है अभी तक तुम्हें किसी ने फूल नहीं बनाया और तुम ने सब दोस्तों को एकसाथ बना दिया,’’ और मुसकराती हुई चल दी.

अभी रश्मि घर के गेट तक ही पहुंची थी कि राजन के मोबाइल की घंटी बज उठी, ‘‘आप अपनी बाइक बेचना चाहते हैं न, मैं खरीदना चाहता हूं क्या अभी आ जाऊं ’’

‘‘क्या ’’ राजू सकपकाता हुआ बोला, ‘‘कौन हैं आप  किस ने कहा कि मैं ने अपनी बाइक बेचनी है. अरे, अभी चार दिन पहले ही तो खरीदी है मैं ने. मैं क्यों बेचूंगा ’’ कहते हुए उस ने फोन काट दिया. रश्मि अपनी योजना सफल होती देख मुसकराई और तेजी से घर की ओर चल दी. गुस्से में राजन ने फोन काटा ही था कि एक एसएमएस आ गया. ‘मैं आप की बाइक खरीदने में इंट्रस्टेड हूं. आप के घर आ जाऊं ’ राजन इस अनजान बात से बहुत आहत हुआ. आखिर थोड़ी ही देर में ऐसा क्या हुआ कि इतने फोन व एसएमएस आने लगे. उस ने तो कुछ भी ओएलएक्स पर नहीं डाला. उस के पास अब लगातार एसएमएस और फोन आ रहे थे. वह अभी एसएमएस के बारे में सोच ही रहा था कि तभी एक एसएमएस आया. वह मैसेज देखना नहीं चाहता था. लेकिन उस ने स्क्रीन पर देखा तो चौंका, मैसेज रश्मि का था.

‘अरे, रश्मि का मैसेज,’ सोच उस ने जल्दी से इनबौक्स में देखा तो पढ़ कर दंग रह गया. लिखा था, ‘क्यों, कैसा रहा हमारा रिटर्न अप्रैल फूल बनाना. तुम ने हमें रैस्टोरैंट में बुला कर फूल बनाया और हम ने तुम्हें तुम्हारे ही घर आ कर.’ राजन का गुस्सा सातवें आसमान पर था. उस ने आननफानन में बाइक उठाई और रश्मि के घर चल दिया. रश्मि के घर पहुंचा तो उस के घर सभी दोस्तों को इकट्ठा देख कर दंग रह गया. फिर तमतमाता हुआ बोला, ‘‘तुम मुझे मूर्ख समझते हो. मुझे फूल बनाते हो.’’

‘‘कूल बच्चे कूल. हम ने तुम्हें फूल बनाया है इसलिए गुस्सा थूक दो और सोचो तुम ने हमें रैस्टोरैंट में एकत्र कर मूर्ख नहीं बनाया क्या. तब हमें कितना गुस्सा आया होगा ’’

‘‘हां, पर तुम ने तो मेरी प्यारी बाइक ही बिकवाने की प्लानिंग कर दी.’’

तभी सभी दोस्त हाथ जोड़ कर खड़े हो गए और बोले, ‘‘कूल यार कूल… हमारा मकसद तुम्हें गुस्सा दिलाना नहीं था बल्कि तुम्हें एहसास दिलाना था कि तुम ऐसी हरकत न करो. पिछले साल भी तुम ने मूर्ख दिवस पर पार्टी रख हमें मूर्ख बनाया था. तब तो हम तुम्हारा बहाना भी सच मान गए थे पर इस बार फिर तुम ने ऐसा किया… क्या हम हर्ट नहीं होते ’’ ‘‘हां, लेकिन तुम ने यह सब किया कैसे  मैं तो तुम से पूरे दिन मिला भी नहीं,’’ राजन ने दोस्तों से पूछा.

‘‘तुम नहीं मिले तो क्या. रश्मि तो मिली थी तुम्हें तुम्हारे घर पर,’’ सरिता बोली.

फिर रश्मि ने उसे सारी बात बता दी. ‘‘रश्मि तुम…’’ दांत भींचता हुआ राजन अभी बोला ही था कि अंदर से रश्मि की मां पकौडे़ की प्लेट लेती हुई आईं और बोलीं, ‘‘कूल…फूल…कूल. इस तरह झगड़ते नहीं. अगर मजाक करते हो तो मजाक सहना भी सीखो. मुझे रश्मि ने सब बता दिया है. आओ, पकौड़े खाओ. मैं चाय लाती हूं,’’ कहती हुई मां किचन की ओर मुड़ गईं.

‘‘आंटी, आप भी मुझे फूल कह रही हैं,’’ राजन आगे कुछ बोलता इस से पहले ही रश्मि ने उस के मुंह में पकौड़ा ठूंस दिया और बोली, ‘‘कूल यार फूल… कूल.’’ यह देख सब हंसने लगे और ठहाकों के बीच पकौड़े खाते पार्टी का आनंद उठाने लगे. राजन पकौड़े खातेखाते अपने फोन से बाइक का स्टेटस डिलीट करने लगा.

ईवनिंग स्नैक्स में बनाएं मेक्सिकन रोटी चीज बॉल्स

शाम होते होते भूख लगना स्वाभाविक सी बात है परन्तु अक्सर इस भूख को मिटाने के लिए बाजार के रेडीमेड खाद्य पदार्थों का सेवन कर लिया जाता है जो सेहतमंद नहीं होते क्योंकि उन्हें बनाने के लिए प्रयोग किया गया तेल और मसाले उतने हाइजीनिक और उत्तम क्वालिटी के नहीं होते. आज हम आपको घर में उपलब्ध सामग्री से ही एक ऐसा स्नैक बनाना बता रहे हैं जो बहुत हैल्दी तो है ही साथ बहुत टेस्टी भी है तो आइए देखते हैं कि इसे कैसे बनाया जाता है-

कितने लोगों के लिए            4

बनने में लगने वाला समय     30 मिनट

मील टाइप                         वेज

सामग्री

रोटी                                  4

उबले आलू                        2

बारीक कटा प्याज                1

कटे लहसुन                        4

अदरक पेस्ट                       1 टीस्पून

बारीक कटा टमाटर              1

बारीक कटी शिमला मिर्च       1

उबले कॉर्न                           1 टेबलस्पून

उबले राजमा                       1 टेबलस्पून

बारीक कटी हरी मिर्च             2

बारीक कटी हरी धनिया         1 टीस्पून

तेल                                      1 टीस्पून

हल्दी पाउडर                         1/4 टीस्पून

गरम मसाला                       1/4 टीस्पून

लाल मिर्च पाउडर              1/4 टीस्पून

नमक                               स्वादानुसार

नीबू का रस                   1 टीस्पून

चिली फ्लैक्स                  1/4 टीस्पून

ऑरिगेनो                       1/4 टीस्पून

टोमेटो सॉस                   1 टेबलस्पून

बटर                              2 टेबलस्पून

चीज क्यूब्स                   4

विधि

गरम तेल में प्याज, अदरक, हरी मिर्च और लहसुन भूनकर हल्दी व सभी कटी सब्जियां डालकर अच्छी तरह चलाएं. जब सब्जियां हल्की नरम हो जाएं तो कॉर्न, राजमा, आलू, नमक, गरम मसाला, लाल मिर्च डालकर अच्छी तरह चलाएं. 2-3 मिनट भूनकर नीबू का रस और हरा धनिया डालकर गैस बंद कर दें. ठंडा होने पर तैयार मिश्रण को चार भागों में बांट लें. एक रोटी को चकले पर फैलाकर बीच में फिलिंग रखकर चारों तरफ से फोल्ड करके बाल जैसी बनाएं और फोल्ड किये हिस्से की तरफ से पैन में रख दें इसी तरह सारी बॉल्स तैयार कर लें. पैन में बटर अच्छी तरह लगाएं. चारों बॉल्स को एक साथ रखें और इनके बीच में बटर डाल दें ताकि ये दूसरी तरफ से भी क्रिस्पी हो जाएं. अब सभी बॉल्स पर ऊपर से टोमेटो सॉस लगाकर चारों पर चीज स्लाइस सभी बॉल्स को कवर करते हुये  ग्रेट कर दें. ऑरिगेनो और चीज फ्लैक्स बुरक कर ढक दें और एकदम मंदी आंच पर 5-7 मिनट अथवा चीज के मेल्ट होने तक पकाकर गरमा गरम स्नैक्स को सर्व करें.

सैक्स फीलिंग्स के ये 5 सीक्रेट्स जानती हैं आप

ज्यादातर महिलाएं चाहती हैं कि उन के कुछ सैक्स सीक्रेट्स उन के पतियों को खुद जानने चाहिए. नौर्थवैस्टर्न यूनिवर्सिटी इलिनौयस की सैक्सुअलिटी प्रोग्राम की थेरैपिस्ट पामेला श्रौक कहती हैं कि ज्यादातर विवाहित पुरुष अपनी पत्नी की सैक्सुअल प्राथमिकताओं और चाहतों को नहीं समझते. पामेला ने इस विषय पर पत्नियों के मन में झांकने की कोशिश की तो उन्हें कुछ ऐसे सैक्स सीक्रेट्स का पता चला, जिन्हें महिलाएं अपने पति से कहना तो चाहतीं, पर कह नहीं पातीं.

महिलाओं के लिए अच्छा सैक्स सिर्फ इंटरकोर्स नहीं:

महिलाओं को आनंददायक सैक्स के लिए सिर्फ इंटरकोर्स ही नहीं, बल्कि पति के साथ दिन के अन्य क्षणों में भी अच्छी फीलिंग्स और अनुभव की जरूरत होती है. महिलाओं को यह बात कतई अच्छी नहीं लगती कि पति दिन भर सिर्फ अपने ही काम में व्यस्त रहे, रात को घर लौट कर खाना खा देर तक टीवी देख कर फिर बिस्तर पर आते ही पत्नी को दबोच ले. इस से पत्नी के मन में खुद को औब्जैक्ट समझने की भावना आती है. वह अपने पति को बेहद स्वार्थी और खुद को भोग की वस्तु समझने लगती है. हर पत्नी चाहती है कि उस का पति उसे सिर्फ बिस्तर पर ही नहीं बिस्तर के बाहर भी उतना ही प्यार करे, उस पर ध्यान दे, उस के साथ अपनी बातें शेयर करे, प्रेमपूर्वक बातें करे, उस की भावनाओं को जानने की कोशिश करे आदि.

समाजशास्त्री डालिया चक्रवर्ती कहती हैं, ‘‘पत्नियां अपनी जिंदगी के हर पहलू को एकदूसरे से जोड़ कर देखती हैं जबकि पति समझते हैं कि स्ट्रैस और झगड़ों को सैक्स के वक्त एक तरफ रख देना चाहिए और इन चीजों को सैक्स के साथ नहीं जोड़ना चाहिए. सच यह है कि सैक्स का असली मजा अफैक्शन के कारण ही आता है. मानसिक रूप से अपनापन, प्यार और नजदीकियां होती हैं तभी सैक्स संबंध सही माने में उत्तेजनापूर्ण होता है. जब कोई पति अपनी पत्नी को समयसमय पर छोटेमोटे उपहार देता है, बीवीबच्चों को घर से बाहर ले जाता है, परिवार का खयाल रखता है और बीवी को स्पैशल फील करवा कर घर का माहौल खुशनुमा रखता है, तो सैक्स का मजा कई गुना बढ़ जाता है.

महिलाओं को टर्नऔन करने के लिए प्रेम भरी बातें चाहिए:

रात के भोजन के वक्त मीठीमीठी छेड़छाड़, रोमांटिक बातें और गुदगुदाने वाले किस्से पत्नियों को भीतर तक भिगो देते हैं. इस से उन का मूड बन जाता है. इसी तरह सैक्स के दौरान पत्नी की प्रशंसा, उस के साथ प्यार का इजहार और उस का नाम लेना पत्नी को उत्तेजना से भर देता है. सैक्स थेरैपिस्ट लिन एटवाटर कहती हैं, ‘‘महिलाओं की शारीरिक संबंधों से ज्यादा दिलचस्पी मानसिक उत्तेजना और मानसिक संबंधों में होती है.’’

यूनिवर्सिटी औफ कैलिफोर्निया मैडिकल स्कूल की साइकोलौजिस्ट लोनी बारबच कहती हैं, ‘‘अकसर घरेलू कामों, बच्चों की देखभाल, पति के हजार काम और फिर औफिस वर्क के दबाव के बीच किसी पत्नी को सब से ज्यादा जरूरत सहानुभूति और प्रेमपूर्ण बातों की होती है. उसे शरीर सहलाने से जितना मजा आता है उस से कहीं ज्यादा उस का मन सहलाने से आनंद मिलता है. हर पत्नी चाहती है कि उस का पति उस के साथ रोमांटिक बातें करे.’’

महिलाओं में भी होती है परफौर्मैंस ऐंग्जाइटी:

कई अध्ययनों में यह बात सामने आ चुकी है कि सिर्फ 60% ऐसी पत्नियां हैं, जिन्होंने जितनी बार संभोग किया उस से कम से कम आधी बार चरम आनंद का अनुभव किया. लेकिन उन्हें पति को खुश करने के लिए सैक्स के दौरान चरम आनंद का दिखावा करना पड़ा. कई बार तो उन के मन में अपराधबोध आ जाता है कि कहीं उन्हीं में तो कोई कमी नहीं.

पत्नियों में भी अपने अंगों की बनावट, आकार और साफसफाई को ले कर तुलनात्मक हीनता की भावना होती है. इसीलिए वे अंधेरे में ही निर्वस्त्र होना चाहती हैं. ऐसे में वे अपने पति से प्रोत्साहन, अपने शारीरिक अंगों की प्रशंसा और सौंदर्य के बखान की अपेक्षा रखती हैं. कई पति तो अपनी पत्नी की प्रशंसा करना ही नहीं जानते और कई सैक्स के दौरान उस के अंगों में भी मीनमेख निकालने लगते हैं. पत्नी को मोटी, थुलथुल आदि न जाने क्याक्या कहने लगते हैं. ऐसे में पत्नी के मन का बुझ जाना, उस का तनावग्रस्त हो जाना स्वाभाविक है. ऐसी पत्नी अपने पति के साथ सैक्स संबंध बनाने से कतराने लगती है.

जाहिर है, इन का यौन जीवन नीरस और आनंदविहीन हो जाता है. झूठी बढ़ाई की जरूरत नहीं, लेकिन समझदार पति वही है जो अपनी पत्नी की त्वचा की कोमलता, आंखों या उस का जो कुछ भी अच्छा लगे उस की सराहना कर के पत्नी का आत्मविश्वास बढ़ाए और हंसीठिठोली करे ताकि पत्नी ऐंग्जाइटी से ग्रस्त न हो.

सैक्स के बाद भी चाहिए अटैंशन:

कई पति पत्नी के साथ अंतरंग क्षणों का जम कर आनंद उठाते हैं और फिर चरम पर पहुंच कर स्खलित होते ही ऐसे मुंह फेर कर सो जाते हैं जैसे उन्हें पत्नी से कोई लेनादेना ही नहीं. ऐसे में पत्नी खुद को बेहद अकेली, उपेक्षित समझने लगती है. उसे लगता है कि बस पति का यही अंतिम उद्देश्य था. पत्नी चाहती है कि सैक्स और स्खलन के बाद भी पति उसे सहलाए, चूमे उस के अंगों को छेड़े. साथ ही उसे धन्यवाद दे व प्यार जताए. ऐसा करतेकरते ही पत्नी को बांहों में भरे हुए उसे नींद आ जाए. इस से पत्नी को बड़ा आत्मसंतोष महसूस होता है.

नौनसैक्सुअल टच: पत्नियों को यह बात बिलकुल अच्छी नहीं लगती है कि दिन भर में पति उन्हें एक बार भी न छुए या चूमे. बस बिस्तर पर फोरप्ले के लिए ही उन के हाथ बढ़ते हैं. वे चाहती हैं कि दिन में भी पति उन्हें छूएं, लेकिन यह टच नौनसैक्सुअल हो. वे छेड़छाड़ या हंसीमजाक के लिए अथवा अपनापन जताने के लिए छूएं. कभी बालों को सहलाएं या पीठ पर हाथ फेरें, गालों को चूमें, गालों को थपथपाएं. मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि पति और पत्नी के संबंध सिर्फ और सिर्फ सैक्स के लिए ही नहीं होने चाहिए. सैक्स के अलावा भी दुनिया में और बहुत कुछ ऐंजौय करने को होता है. संबंधों में प्रगाढ़ता और केयरिंग होना ज्यादा जरूरी है. पत्नी की कुकिंग को सराहते हुए उस के हाथों को चूम लेना, उस की ड्रैसिंग सैंस की प्रशंसा करना, बात करने के तरीके को सराहना आदि उस के मन को गहराई तक छू लेता है. रिश्तों में मजबूती के लिए यह बेहद जरूरी है. पत्नी को जताएं कि आप उसे सिर्फ सैक्स के लिए ही नहीं चाहते.

प्रश्नचिह्न- भाग 1: निविदा ने पिता को कैसे समझाया

निविदा को चंडीगढ़ के मशहूर गर्ल्स कालेज में प्रवेश मिल गया था. उस की खुशी का ठिकाना न था. उज्ज्वल भविष्य की एक उम्मीद तो पक्की हो ही गईर् थी, पर सब से बड़ी बात यह थी कि वह अपने घर से भाग जाना चाहती थी. घुटन होती थी उसे यहां रहने में. नफरत हो गई थी उसे पिता की दबंगता व मम्मी की भीरुता से.

निविदा उठ कर अपनी स्टडी टेबल पर बैठ गई. मन में पिता के रौद्र रूप का कुछ ऐसा डर बैठा कि वह अपनी सहेलियों के पिताओं से भी डरने लगी. कोई उस से ऊंची आवाज में कुछ पूछ लेता तो उस के मुंह से शब्द नहीं निकल पाते. ऐसी स्थिति उस के साथ अकसर आती.

उस की सहेलियां अकसर उस का मजाक उड़ातीं, ‘‘कब तक बच्ची बनी रहेगी?’’

मम्मी का कभी सिर फूटा होता, कभी गालों पर थप्पड़ों के निशान होते, तो कभी पीठ पर नील पड़े होते. मम्मी को तो लंबे समय तक नाराज रहने या बोलचाल बंद रखने का भी अधिकार नहीं था. पापा से अधिक मुंह फुला कर बात करना भी उन्हें भारी पड़ जाता. वे और पिट जातीं. अगर पिटतीं नहीं तो खाने की थाली फिंकती या घर की कोई अन्य चीज टूटती. घर का वातावरण हमेशा तनावपूर्ण बना रहता. उस में सांस लेना दूभर हो जाता.

बचपन की याद आते ही निविदा का मन कड़वाहट से भर गया. उसे याद आया कि

क्लास में टीचर अचानक खड़ा कर के कोई

प्रश्न पूछते तो उत्तर आते हुए भी वह बता नहीं पाती थी और अगर टीचर ने डांट दिया तो उस की बोलती अगले कई दिनों के लिए बंद हो

जाती थी. वह चाहते हुए भी बातचीत शुरू नहीं कर पाती थी.

निविदा की ऐसी कई स्थितियां देख कर प्रिंसिपल जबतब उस की मम्मी को बुला लेती थीं पर मम्मी बेचारी भी क्या करतीं. वे इतनी परेशान हो गईं कि उस का स्कूल बदलने का सोचने लगीं. तब मम्मी की एक फ्रैंड ने उसे किसी मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह दी. मम्मी पिता से छिप कर उसे मनोचिकित्सक के पास ले गईं.

डाक्टर ने सबकुछ विस्तार से जानना चाहा तो मम्मी ने सबकुछ बता दिया.

पूरी बात सुन कर डाक्टर ने कहा, ‘‘मैं दवा तो दूंगा, लेकिन सब से पहला इलाज तो आप दोनों पतिपत्नी के हाथों में है. इस तरह लड़ते पतिपत्नी, एक कोने में खड़े बच्चों को बिलकुल भूल जाते हैं कि उन के कोमल मन पर इस का कितना खतरनाक असर पड़ता है.

‘‘आज की आप लोगों की  गलतियां आप की बेटी को मानसिक रूप से उम्रभर के लिए पंगु बना देंगी. वह अपना आत्मविश्वास खो देगी. मानसिक रूप से बीमार हो जाएगी.’’

‘‘आप ही बताएं, क्या करूं डाक्टर?’’

‘‘मेरे खयाल से बच्ची के भविष्य के लिए आप को अपने पति से अलग हो जाना चाहिए.’’

‘‘यह कैसे होगा डाक्टर… बच्ची का भविष्य बनाने के लिए पैसा भी तो चाहिए? मायके से भी कोई सहारा नहीं है मुझे,’’ मम्मी हताश हो कर बोलीं तो डाक्टर हार कर चुप हो गए.

डाक्टर से दवा लिखवा कर मम्मी उसे घर ले आई थीं. उस के बाद मम्मी उस का अतिरिक्त खयाल रखने लगी थीं.

बड़ी होतेहोते निविदा समझने लगी थी कि उसे अतिरिक्त भावनात्मक सुरक्षा देने में मम्मी भी किस कशमकश व अंतर्द्वंद्व के दौर से गुजरती थीं.

एक तरफ गुस्से से दहाड़ता पति, दूसरी तरफ कांपती बेटी… मम्मी को खुद को कितना जोड़ना पड़ता था उसे टूटने से बचाने के लिए.

मम्मी बस उसे उठतेबैठते पढ़ाई पर ध्यान लगाने के लिए समझातीं, कुछ बड़ा करने के लिए प्रेरित करतीं, ‘‘देख बेटा, बहुत कुछ हासिल कर सकती है तू अपनी शिक्षा के बल पर… अपने पैरों पर खड़ा होना और वह भी इतनी मजबूती से कि कोई तुझे धक्का न दे सके… बस तू पढ़ाई में अपना तनमन लगा दे.’’

और निविदा ने खुद को किताबों में डुबो दिया. जबजब घर की स्थिति कटुपूर्ण होती, वह अपने कमरे का दरवाजा बंद कर देती, क्योंकि पिता का विरोध करने की उस में हिम्मत नहीं थी. ‘पिता का मजबूती से विरोध करने के लिए उसे मजबूती से अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा,’ इसी सोच ने उसे किताबी कीड़ा बना दिया.

12वीं कक्षा में उस ने 97% मार्क्स लिए. मम्मी काफी खुश हुईं. पापा ने भी बहुत शाबाशी दी. बेटी की प्रगति से वे खुश तो होते थे पर वे उस का खो क्या रहे हैं, यह नहीं समझते थे.

लड़कियों के मामले में उस के पिता आज भी दकियानूसी विचारों के थे. लड़कों से दोस्ती, खुली या छोटी पोषाक पहनना, बातचीत में खुलापन, बड़ों से हर विषय पर बातचीत, लड़की का मुंह उठा कर कुछ भी जोर से बोल देना, देर तक सहेली के घर रुकना, उन की नजरों में आज के जमाने में भी संस्कारहीन रवैया था. ऐसे ही बहुत से कारण थे जिन से वह इस बंदीगृह से भाग कर खुली हवा में सांस लेना चाहती थी.

आखिर उस का प्रवेश चंडीगढ़ के एक कालेज में हो गया. लेकिन उस की मुश्किलें यहां भी कम नहीं हुईं. पीजी होस्टल में उसे रूममेट के नाम पर जिस लड़की का साथ मिला, वह उस से बिलकुल उलट थी. मालिनी अति आत्मविश्वासी, बिंदास, टौमबौय टाइप की, पढ़ने में औसत, एक हाकी प्लेयर थी जिस का प्रवेश इस कालेज में स्पोर्ट्स कोटे से हुआ था.

निविदा ने कमरे में पहले अपना सामान रखा, बाद में मालिनी आई थी. 5 फुट 7 इंच लंबी पैंटशर्ट पहने, बौय कट हेयर और लड़कों जैसे बेबाक हावभाव व बातचीत देख कर निविदा पहले ही दिन घबरा गई कि कहां फंस गई… यह तो पढ़ने भी नहीं देगी. उस ने अपना कमरा बदलवाने की कोशिश भी की पर सफल न हो सकी.

‘‘क्या बात है कमरा बदलवाने गईर् थी? मुझ से डर लगता है… खा जाऊंगी क्या?’’

‘‘न… नहीं तो…’’ निविदा उस की बेबाक बात से सूखे पत्ते सी कांप गई.

‘‘तो फिर?’’ वह एक पैर कुरसी पर रखती हुई बोली.

‘‘नहीं, बस मैं तो ऐसे ही…’’

‘‘क्या कमरा बदलना है?’’ वह उस के कंधे पर हाथ रखते हुए, देख लेने वाले अंदाज में बोली, ‘‘तो बदलवा देती हूं.’’

‘‘न… नहीं तो…’’

‘‘ठीक है तो फिर फिक्र मत कर…’’ वह कंधा थपथपाते हुए बोली, ‘‘अब चल जरा मेरा सामान खोल और मेरी अलमारी में लगा दे..’’

‘‘मैं?’’

‘‘हां तो और कौन? पिघल जाएगी क्या

मेरा सामान लगाने में?’’ वह धमकाने वाले अंदाज में बोली.

निविदा आगे कुछ नहीं बोली. चुपचाप मालिनी का सामान निकाल कर अलमारी में लगाने लगी. कमरा छोड़ कर जाए भी तो कहां. यहां होस्टल में यह दबंग लड़की उसे रहने नहीं देगी और घर जाना नहीं चाहती.

मालिनी का बिस्तर ठीक करना, कपड़े धोना, प्रैस करना, मतलब कि उस के सभी जरूरी कार्य करना उस की दिनचर्या में शामिल होने लगा. तिस पर भी मालिनी उसे चैन से रहने दे तब तो. कभी वह कमरे में दोस्तों का जमघट लगा लेती, कभी फोन पर जोरजोर से बातें करती, कभी मोबाइल पर गाने सुनती. और कुछ नहीं तो जबरदस्ती उस से फालतू की बातें करती. वह तभी चैन से पढ़ पाती जब मालिनी कहीं खेलने गई होती.

Anupama: राखी दवे बताएगी अपने पति का सच, गायब होगी किंजल की बेटी

स्टार प्लस के सीरियल ‘अनुपमा’ की कहानी दिलचस्प मोड़ लेती हुई नजर आ रही है. जहां एक तरफ तोषू का अनुपमा के लिए गुस्सा बढ़ता जा रहा है तो वहीं राखी दवे अपने दामाद को सबक सिखाने की ठान चुकी है. हालांकि अपकमिंग एपिसोड में सीरियल में कुछ ऐसा होने वाला है, जिसके चलते नवरात्रि सेलिब्रेशन के बीच शाह परिवार और अनुपमा की खुशियों पर ग्रहण लहगने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा सीरियल में आगे (Anupamaa Upcoming Episode In Hindi)…

राखी दवे बताएगी किंजल को कड़वा सच

 

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अब तक आपने देखा कि किंजल के तलाक के फैसले पर अनुपमा उसका सपोर्ट करती है, जिसके चलते बा एक बार फिर बरसती हुई दिखती हैं. हालांकि राखी दवे इस बार अनुपमा और अपनी बेटी किंजल के साथ खड़ी होती है. वहीं तोषू को ये बात चुभ जाती है, जिसके चलते वह बदला लेने की सोचता है. इसी के साथ अपकमिंग एपिसोड में राखी दवे, किंजल को उसके पिता के एक्सट्रा मैरिटल अफेयर का सच बताएगी. दरअसल, राखी, किंजल को बताएगी कि उसने अमीर होने के बाद भी उसके पिता से प्यार किया था. लेकिन शादी होने के बाद उसके पति ने भी एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर चलाना शुरू कर दिया. वहीं उसकी गोदभराई के दिन उसे सच पता चला. जिसके बाद राखी और उसके पति का रिश्ता टूट गया. मां की ये बात सुनकर किंजल टूट जाएगी.

 

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किंजल की बेटी होगी गायब

 

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एक तरफ जहां तोषू अनुपमा से बदला लेने के लिए अनाथालय में छोटी अनु का ख्याल न रखने की शिकायत कर देता है, जिसके चलते अनाथालय के लोग छोटी अनु को लेने पहुंच जाते हैं. हालांकि अनुपमा और अनुज हाथ जोड़कर उनसे विनती करते हैं. दूसरी तरफ, अनुपमा और अनुज, तोषू पर शिकायत करने के लिए गुस्सा करते हैं. इसी बीच अनुपमा उसे कहेगी कि जो चीज वह हमारे लिए चाह राह था . वह कहीं उसके ऊपर ना हो जाए. अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि शाह और कपाड़िया परिवार नवरात्रि उत्सव में व्यस्त हो जाएंगे. वहीं इसी बीच कोई परी को ले जाएगा, जिसे जानकर परिवार के लोग परेशान हो जाएंगे.

पर्सनल लाइफ के संघर्ष को लेकर क्या कहते हैं एक्टर मानव गोहिल, पढ़ें इंटरव्यू

अभिनेता मानव गोहिल फिल्म और टीवी के एक जाने-माने अभिनेता है, उन्होंने थिएटर से अपने कैरियर की शुरुआत की, इसके बाद उन्होंने टीवी और फिल्मों में काम किया है, सौम्य और हंसमुख मानव ने हमेशा अलग किरदार निभाया है. उनकी सबसे चर्चित शो ‘कहानी घर घर की’ और रियलिटी शो ‘नच बलिये 2’रही, जिसकी वजह से वे इंडस्ट्री में चर्चित हुए. हिंदी के अलावा उन्होंने गुजराती फिल्मों में भी काम किये है. वे अपने उत्कृष्ट अभिनय के लिए भी इंडस्ट्री में प्रसिद्ध है. काम के दौरान उनकी मुलाकात अभिनेत्री श्वेता क्वात्रा से हुई, पहले दोनों दोस्त बने फिर शादी हुई और एक बेटी के पिता बने.

मानव कीगुजराती वेब शो ‘मत्स्य भेदन’ है, जो मी शेमारूमी पर रिलीज होने वाली है. मानव गुजरात से मुंबई आकर इंडस्ट्री में अपनी एक इमेज कैसे बनाया, आइये जानते है उनकी कहानी उनकी जुबानी.

अभिनय बना पैशन

 

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गुजरात से मुंबई आने पर मानव ने अभिनय के बारें में नहीं सोचा था, एम् बी ए करने के बाद उन्होंने खुद का व्यवसाय शुरू किया था. इससे पहले गुजरात में उन्होंने मॉडलिंग शुरू की थी, उस दौरान एक पेजेंट हुआ, जिसमे मानव को ‘मैन ऑफ़ गुजरात’ का टाइटल मिला,जिससे उनका हौसला बढ़ा और 6 महीने मुंबई आकर कुछ काम की तलाश में जुट गए.कुछ विज्ञापनों में काम मिला और धीरे-धीरे उनकी रूचि अभिनय की होने लगी.

मुंबई देती है सहारा

मानव आगे कहते है कि मुंबई एक ऐसी शहर है, जो बहुत कुछ मांगती है. समय, धैर्य, मेहनत यहाँ करने पर कुछ अवश्य मिलता है. हालाँकि मैंने कुछ फैल्योर लोगों को भी देखा था, मॉडलिंग करते-करते लगा कि मैं सबसे बहुत पीछे हूं, मुझे कुछ जल्दी काम करना चाहिए. इसके बाद मैंने थिएटर ज्वाइन किया और यही से लगाव अभिनय के प्रति बढ़ने लगा. अच्छा भी लगने लगा.

अलग किरदार निभाना है जरुरी

अभिनेता मानव कहते है कि अब तक की भूमिका से अलग और डार्क,थ्रिलर सीरीज गुजराती में है, मैंने अबतक गुजराती फिल्में की है, क्योंकि मैं गुजराती हूं और भाषा जानता हूं. ये भूमिका चुनौतीपूर्ण होने की वजह से मैं भी देखना चाहता था कि मैं कितना अच्छा कर पाता हूं, लुक पर मैंने अधिक काम किया, दाढ़ी बढाई थी. इस शो को एक साल पहले शूट किया था.मैंने उस समय कुछ पुरानी डार्क ज़ोन वाली फिल्मे देखी, जिससे मैं इसमें एकदम अलग दिखने की कोशिश की, जरुरत के अनुसार मैंने बदलाव किया. मत्स्य भेदन एक अलग तरीके की फिल्म है. इसमें प्राचीन काल की तुलना आज के परिवेश से की गई है.

योगदान सभी शो का

 

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अपनी पॉपुलैरिटी के बारें में मानव कहते है कि अगर शो की बात करें, तो सभी शो के साथ मेरी जिंदगी बदली है. कहानी घर-घर की बहुत चर्चित शो थी, उसके बाद कुसुम, कसौटी जिंदगी की आदि कई धारावाहिकों में काम करने का मौका मिला, असल में हर चरित्र के साथ कुछ नया सीखने के साथ-साथ पॉपुलैरिटी बढती है और मैं नए – नए लोगों के बीच में प्रसिद्ध हो गया. मेरे कैरियर में हर एक शो का योगदान रहा है. देखा जाय तो डेली सोप का दौर मेरे लिए काफी अच्छा था.

रिश्ता बनाता हूं अच्छा

हालांकि एकता कपूर के साथ काम करना आसान नहीं होता, लेकिन उनकी शो में काम कर लोग प्रसिद्ध भी हो जाते है, पर मानव का उनके साथ बहुत अच्छा रिलेशन रहा, वे कडक होने के साथ-साथ बहुत अच्छी व्यवहार अपने आर्टिस्टों के साथ भी रखती है. सबको मौका और काम देती है. काम में कमिटमेंट एकता हमेशा चाहती है, क्योंकि उनकी इतनी बड़ी एम्पायर को चलाने में ऐसा रहना जरुरी भी है.

संतुष्ट जर्नी से

अभिनेता मानव की जर्नी बहुत अच्छी रही है. वे कहते है कि मैंने जो चाहा उनसे कही अधिक मुझे मिला है. मैं बहुत संतुष्ट हूं, मुझे एक नई चुनौती हमेशा अच्छा फील करवाती है. मैं पूरे जीवन अभिनय करना चाहता हूं, कोई रिग्रेट नहीं है, काम की बेसिक चैलेंज अब खत्म हो गयी. बेटी की भविष्य के बारें में सोचकर काम कर रहा हूं.

दोस्ती से बनी जिंदगी

 

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मानव गोहिल का श्वेता क्वात्रा से मिलना धारावाहिक ‘कहानी घर – घर की से वर्ष 2001 में हुआ और 4 साल बाद शादी की थी. उनका कहना है कि मैं गुजरात के एक साधारण परिवार से हूं, जबकि श्वेता दिल्ली की है, उसकी एक्सपोजर और लाइफस्टाइल मुझसे अलग थी. मैं बालों में तेल लगाकर घुमने वाला लड़का था. पहले हम दोनों दोस्त बने, कभी लगा नहीं था कि हमदोनो एक दूसरे के लिए बने है. शादी की बात बाद में आई, क्योंकि श्वेता पहले डायनामिक लड़की थी और आज भी वैसी है, वह लाइव वायर है. सभी उनसे सेट पर बात करने से डरते थे. मैं भी बात करने से कतराता था, लेकिन जान-पहचान के बाद पता चला कि वह एक दिल से अच्छी इंसान है.

बदलाव है अच्छा

पहले से आज के फिल्मो की कहानियों में अंतर के बारें में मानव बताते है कि परिवर्तन केवल कहानियों में नहीं, उनके खपत में भी हुआ है, लोग अब जिस तरह की कहानिया देखना चाहते है, वैसा पहले नहीं था. बदलाव होता है और इंडस्ट्री अपने आप में बदलती रही है, जिसमे तकनीक से लेकर अभिनय सब में बदलाव आया है. विजुअल ट्रीट बहुत अधिक होने लगा है. फिल्मे रियलिटी और हकीकत पर आधारित है, जबकि कुछ फिल्में फेंटासी होती है. मेरे हिसाब से हर फिल्म के लिए दर्शक है, किसी को हॉरर तो किसी को एक्शन पसंद होता है,मुझे हॉरर पसंद नहीं, मैं सोचता हूं कि डरावनी पिक्चर क्यों देखना, क्योंकि देखने के बाद कही आने -जाने में डर लगे, लेकिन लोग पसंद करते है. हर मूड के पिक्चर होते है.

काम के बिना खुद को सम्हालना मुश्किल

मानव कई सालों तक बिना काम किये घर पर रहे है, लेकिन उन्होंने इसे अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया. वे कहते है कि काम न मिल पाने की वजह से मैंने कुछ दिन नहीं, कई साल बिना काम के गुजारे है. हर कलाकार के जीवन में ऐसा समय आता है, जब उन्हें मनचाहा काम नहीं मिलता. मेरा भी ऐसा ही अनुभव है, उस समय मेरा परिवार और मेरा फिटनेस मुझे सकारात्मक बनाये रखा, मनोबल टूटने नहीं दिया. हिंदी सिनेमा जगत में एंट्री किसी के लिए आसान नहीं होती, ये न तो पहले आसान था और न आज है.

काम मिलना होता है कठिन

मानव का अभिनय के क्षेत्र में आने वाले यूथ के लिए कहना है कि मैं 25 साल पहले आया था, तब टीवी चैनल भी कम थे, अभी बहुत सारे प्लेटफॉर्म है, काम भी बहुत हो रहा है, लेकिन न तो तब काम मिलना आसान था और न अब. मुंबई में टिके रहना मुश्किल है, इसलिए मेरा सुझाव है कि पहले खुद का आंकलन करें और अभिनय क्षमता को जान लें.  सफलता जो लोग बाहर से देखते है, वह बहुत सारे फैल्योर के बाद ही मिलता है.

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