विद्रोह- भाग 1: क्या राकेश को हुआ गलती का एहसास

सीमा को अपने मातापिता के घर में रहते हुए करीब 15 दिन हो चुके थे. इस दौरान उस का अपने पति राकेश से किसी भी तरीके का कोई संपर्क नहीं रहा था. उस शाम राकेश को अचानक घर आया देख कर वह हैरान हो गई.

‘‘बेटी, आपसी मनमुटाव को ज्यादा लंबा खींचना खतरनाक साबित हो जाता है. राकेश के साथ समझदारी से बातें करना,’’ अपनी मां की इस सलाह पर कोई प्रतिक्रिया जाहिर किए बिना सीमा ड्राइंगरूम में राकेश के सामने पहुंच गई.

‘‘तुम्हें मेरे साथ घर चलना पडे़गा, सीमा,’’ राकेश ने बिना कोई भूमिका बांधे सख्त लहजे में कहा.

‘‘तुम्हारा घर मैं छोड़ आई हूं,’’ सीमा ने भी रूखे अंदाज में अपना फैसला उसे सुना दिया.

‘‘क्या हमेशा के लिए?’’ राकेश ने उत्तेजित हो कर सवाल किया.

‘‘ऐसा ही समझ लो,’’ सीमा ने विद्रोही स्वर में जवाब दिया.

‘‘बेकार की बात मत करो. मेरी सहनशक्ति का तार टूट गया तो पछताओगी,’’ राकेश भड़क उठा.

‘‘मुझे डरानेधमकाने का अब कोई फायदा नहीं है,’’ सीमा ने निडर हो कर कहा, ‘‘अगर तुम्हें और कोई बात नहीं कहनी है तो मैं अपने कमरे में जा रही हूं.’’

राकेश ने अपनी पत्नी को अचरज भरी निगाहों से देखा.  उन की शादी को करीब 12 साल  हो चुके थे. इस दौरान उस ने कभी सपने में भी कल्पना नहीं की थी कि सीमा ऐसे विद्रोही अंदाज में उस से पेश आएगी.

उठ कर खड़ी होने को तैयार सीमा को हाथ के इशारे से राकेश ने बैठने को कहा और फिर  बताया कि कल सुबह मयंक और शिक्षा होस्टल से 10 दिनों की छुट्टियां बिताने घर पहुंच रहे हैं.

कुछ देर सोच में डूबी रहने के बाद सीमा ने व्याकुल स्वर में कहा, ‘‘उन दोनों को यहां मेरे पास छोड़ जाना.’’

‘‘तुम्हें पता है कि तुम क्या बकवास कर रही हो. वह दोनों यहां नहीं आएंगे,’’ राकेश गुस्से से फट पड़ा.

‘‘फिर जैसी तुम्हारी मर्जी, मैं बच्चों से कहीं बाहर मिल लिया करूंगी,’’ सीमा ने थके से अंदाज में राकेश का फैसला स्वीकार कर लिया.

‘‘यह कैसी मूर्खता भरी बात मुंह से निकाल रही हो. तुम्हारे बच्चे 4 महीने बाद घर लौट रहे हैं और तुम उन के साथ घर रहने नहीं आओगी. तुम्हारा यह फैसला सुन कर मुझे अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा है.’’

‘‘अपने बच्चों के साथ कौन मां नहीं रहना चाहेगी,’’ सीमा का अचानक गला भर आया, ‘‘मैं अपने फैसले से मजबूर हूं. मुझे उस घर में लौटना ही नहीं है.’’

‘‘हम अपने झगडे़ बाद में निबटा लेंगे, सीमा. फिलहाल तो बच्चों के मन की सुखशांति के लिए घर चलो. तुम्हें घर में न पाने का सदमा वे दोनों कैसे बरदाश्त करेंगे? अब वे दोनों बहुत छोटे बच्चे नहीं रहे हैं. मयंक 10 साल का और शिखा 8 साल की हो रही है. उन दोनों को बेकार ही मानसिक कष्ट पहुंचाने का फायदा क्या होगा?’’ राकेश ने चिढे़ से अंदाज में उसे समझाने का प्रयास किया.

‘‘एक दिन तो बच्चों को यह पता लगेगा ही कि हम दोनों अलग हो रहे हैं. यह कड़वी सचाई उन्हें इस बार ही पता लग जाने दो,’’ उदास सीमा अपनी जिद पर अड़ी रही.

‘‘ऐसा हुआ ही क्या है हमारे बीच, जो तुम यों अलग होने की बकवास कर रही हो?’’ राकेश फिर गुस्से से भर गया.

‘‘मुझे इस बारे में तुम से अब कोई बहस नहीं करनी है.’’

‘‘इस वक्त सहयोग करो मेरे साथ, सीमा.’’

सीमा ने कोई जवाब नहीं दिया. वह सिर झुकाए सोच में डूबी रही.

राकेश ने अंदर जा कर अपने सासससुर को सारा मामला समझाया. मयंक और शिखा की खुशियों की खातिर वह अपनी नाराजगी व शिकायतें भुला कर राकेश की तरफ  हो गए.

सीमा पर ससुराल वापस लौटने के लिए अब अपने मातापिता का दबाव भी पड़ा. अपने बच्चों से मिलने के लिए उस का मन पहले ही तड़प रहा था. अंतत: उस ने एक शर्त के साथ राकेश की बात मान ली.

‘‘मैं तुम्हारे साथ बच्चों की मां के रूप में लौट रही हूं, पत्नी के रूप में नहीं. पतिपत्नी के टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ने का कोई प्रयास न करने की तुम कसम खाओ, तो ही मैं वापस लौटूंगी,’’ बडे़ गंभीर हो कर सीमा ने अपनी शर्त राकेश को बता दी.

अपमान का घूंट पीते हुए राकेश को मजबूरन अपनी पत्नी की बात माननी पड़ी.

‘‘बच्चे कल आ रहे हैं, तो मैं भी कल सुबह घर पहुंच जाऊंगी,’’ अपना निर्णय सुना कर सीमा ड्राइंगरूम से उठ कर अपने कमरे में चली आई.

सीमा के व्यक्तित्व में नजर आ रहे जबरदस्त बदलाव ने उस के मातापिता व पति को ही नहीं, बल्कि उसे खुद को भी अचंभित कर दिया था.

उस रात सीमा की आंखों से नींद दूर भाग गई थी. पलंग पर करवटें बदलते हुए वह अपनी विवाहित जिंदगी की यादों में खो गई. उसे वे घटनाएं व परिस्थितियां रहरह कर याद आ रही थीं जो अंतत: राकेश व उस के दिलों के बीच गहरी खाई पैदा करने का कारण बनी थीं.

उस शाम आफिस से देर से लौटे राकेश की कमीज के पिछले हिस्से में लिपस्टिक से बना होंठों का निशान सीमा ने देखा. अपने पति को उस ने कभी बेवफा और चरित्रहीन नहीं समझा था. सचाई जानने को वह उस के पीछे पड़ गई तो राकेश अचानक गुस्से से फट पड़ा था.

‘हां, मेरी जिंदगी में एक दूसरी लड़की है,’ सीमा के दिल को गहरा जख्म देते हुए उस ने चिल्ला कर कबूल किया, ‘उस की खूबसूरती, उस का यौवन और उस का साथ मुझे वह मस्ती भरा सुख देते हैं जो तुम से मुझे कभी नहीं मिला. मैं तुम्हें छोड़ सकता हूं, उसे नहीं.’

‘मेरे सारे गुण…मेरी सेवा और समर्पण को नकार कर क्या तुम एक चरित्रहीन लड़की के लिए मुझे छोड़ने की धमकी दे रहे हो?’ राकेश के आखिरी वाक्य ने सीमा को जबरदस्त मानसिक आघात पहुंचाया था.

‘उस लड़की के लिए न कोई अपशब्द कभी मेरे सामने निकालना और न उसे छोड़ने की बात करना. तुम अपनी घरगृहस्थी और बच्चों में खुश रहो और मुझे भी खुशी से जीने दो,’ कहते हुए बड़ी बेरुखी दिखाता राकेश बाथरूम में घुस गया था.

वह रात सीमा ने ड्राइंगरूम में पडे़ दीवान पर आंसू बहाते हुए काटी थी. उस के दिलोदिमाग में विद्रोह के बीज को इन्हीं आंसुओं ने अंकुरित होने की ताकत दी थी.

उस रात सीमा ने अपने दब्बूपन व कायरता को याद कर के भी आंसू बहाए थे.

परवरिश- भाग 3: मानसी और सुजाता में से किसकी सही थी परवरिश

अक्षत का आचरण समझ में नहीं आ रहा था. बहू आखिर कितनी भी खराब क्यों न हो, तब भी क्या अक्षत का उसे समझाना जरूरी नहीं. और कम से कम अगर उस की बीवी पर नहीं चलती तो वह अपना व्यवहार तो ठीक रख सकता है मां के साथ? दीदी जो कुछ बातें बता रही थीं, लग रहा था जैसे मेरा किशोरावस्था का राहुल मेरे सामने आ खड़ा है. तब दीदी कहती थीं, ‘मैं तेरी जगह होती तो थप्पड़ लगा देती.’ क्या अब अक्षत को थप्पड़ लगा सकती हैं दीदी? क्या बहू को चुप करवा सकती हैं?

दीदी की समस्या अपनों से थी जिस में मैं कुछ नहीं कर सकती थी. अक्षत मेरी सुनने वाला भी नहीं था. फिर भी मैं ने एक बार अक्षत से बात करने की सोची. मैं   2-4 दिन वहां रही. मेरे सामने सबकुछ ठीक ही रहा. लेकिन छोटीछोटी बातों में भी मैं ने बहुत कुछ महसूस कर लिया. कच्चे पड़ते रिश्तों के धागों की तिड़कन, रिश्तों में आता ठंडापन, बहुत कुछ.

एक दिन मैं ने अक्षत को मौका देख कर पास बुलाया, ‘कुछ कहना चाहती हूं अक्षत तुम से.’

‘कहिए, मौसी…’ अक्षत ने बिना किसी लागलपेट के नितांत लापरवाही से कहा.

‘कुछ निजी सवाल करूंगी…बुरा तो नहीं मानोगे?’ मैं अंदर से थोड़ा घबरा भी रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि होम करते हाथ जल जाएं.

‘क्या…’ अक्षत की प्रश्न भरी नजरें मेरे चेहरे पर टिक गईं. मेरी समझ में नहीं आया, कहां से बात शुरू करूं, ‘क्या कुछ ठीक नहीं चल रहा है घर में?’ मेरे मुंह से फिसल गया.

‘क्या ठीक नहीं चल रहा है…’ अक्षत की त्यौरियां चढ़ गईं.

‘अपनी मां को नहीं जानते, अक्षत, दीदी अपने जीवन की कमियों के बारे में बात भी करती हैं कभी, वह तो हमेशा ही अपनेआप को संपूर्ण दिखाना चाहती हैं.’

‘हां, चाहे उस के लिए घर वालों को कितनी भी घुटन क्यों न हो?’

‘कैसी बात करते हो अक्षत…तुम अपनी मां के बारे में बात कर रहे हो…’

‘जानता हूं, मौसी…जीवन भर मां सब पर हुक्म चलाती रहीं…अब मां चाहती हैं कि बहूबेटे की गृहस्थी भी उन के अनुसार ही चले, बहू को भी वह वैसे ही अंकुश में रखें जैसे हम सब को रखती थीं…उन की किसी के साथ बन ही नहीं सकती,’ अक्षत गुस्से में बोला.

‘अक्षत, क्या मैं दीदी को नहीं जानती, कितना संघर्ष किया है उन्होेंने जीवन में, सभी नातेरिश्ते भी निभाए, तुम्हारे पापा को भी देखा, तुम्हें उन के संघर्ष  को समझना चाहिए. यह नहीं कि बीवी ने कुछ बोला और तुम ने आंख मूंद कर विश्वास कर लिया,’ मैं हिम्मत कर के कह गई.

‘मैं इस बारे में अधिक बहस नहीं करना चाहता, मौसी, और मैं आंख मूंद कर क्यों विश्वास करूंगा? क्या मैं मां का स्वभाव नहीं जानता…’ कह कर अक्षत उठ गया.

अक्षत चला गया लेकिन मेरे दिल में एक सूनापन छोड़ गया. अक्षत का व्यवहार देख कर मैं ने राहुल और नियोनिका की तरफ से अपना मन और भी मजबूत कर लिया. कैसा बदल जाता है बेटा शादी के बाद…और मेरा बेटा तो पहले से ही बदला बदलाया है. बस, अंतर इतना है कि दीदी के साथ जीजाजी का साथ नहीं है.

‘दीदी, कुछ दिन मेरे पास रहने आ जाओ…’ मैं ने आते समय दीदी को गले लगा कर सांत्वना दी. उन के घाव पर तो मरहम भी काम नहीं कर रहा था, क्योंकि घाव अपनों ने दिए थे. परायों का मरहम क्या काम करता.

घर पहुंची तो 2 दिन घर ठीकठाक करने में लग गए. अगले दिन राहुल व नियोनिका वापस लौट आए. मैं अनायास ही राहुल के व्यवहार में अक्षत को ढूंढ़ने लग गई, लेकिन अभी तो राहुल ही बदला हुआ नजर आ रहा था. पता नहीं कितने दिन का है यह बदलाव.

मुझ से हर बात पर लड़ने और विद्रोह करने वाला राहुल, बीवी के सामने अचानक इतना आज्ञाकारी कैसे हो गया. राहुल मुझ से और अपने पापा से प्यार और इज्जत से बात करता. नियोनिका नई लड़की थी, जैसा राहुल को देखती वैसा ही करती.

मैं शाम की चाय बना रही थी. राहुल और नियोनिका लान में बैठे थे. तब तक उस के पापा लान में चले गए. एक कुर्सी खाली पड़ी थी फिर भी राहुल ने उठ कर पापा की तरफ अपनी कुर्सी बढ़ा दी. मैं अंदर से देख रही थी. चाय की ट्रे ले कर मैं बाहर आ गई. राहुल की ही तरह नियोनिका ने भी उठ कर मेरी तरफ अपनी कुर्सी बढ़ा दी. राहुल ने उठ कर मेरे हाथ से चाय की ट्रे ले ली.

कहीं अंदर तक मन भीग गया. बात बड़ी छोटी सी थी पर अपने राहुल से इस तरह के व्यवहार की उम्मीद नहीं की थी. नौकरी के बाद उस में थोड़ाबहुत बदलाव आया तो था लेकिन विवाह के बाद? दीदी कहती हैं, अक्षत अब वह अक्षत नहीं रहा और इधर राहुल भी वह राहुल नहीं रहा है. बदलाव तो दोनों में आया पर एकदूसरे के विपरीत, ऐसा क्यों? तभी राहुल मुझे कंधों से पकड़ कर बिठाता हुआ बोला.

‘बहुत कर लिया मम्मी, आप ने काम…अब अपनी जिम्मेदारी नियोनिका को दो और आप तो बस, इस की मदद करो. और बैठ कर राज करो. पापा के साथ ज्यादा वक्त बिताओ, घूमने जाओ. एक समय होता है जब मातापिता बच्चों के लिए करते हैं…फिर एक समय आता है जब बच्चे मातापिता के लिए करते हैं. आप दोनों ने बहुत किया, अब हमारा समय है,’ मैं अपलक राहुल का चेहरा देखती रह गई.

राहुल ने मुझे कुर्सी पर बिठा दिया. नियोनिका ने अपने पापा और मुझे चाय का कप पकड़ा दिया. सभी बातें करते हुए चाय पी रहे थे और मैं अपनेआप में गुम सोच रही थी कि किशोरावस्था में आवश्यकता से अधिक नियंत्रण ने शायद अक्षत की आक्रामकता को, गुस्से को, मातापिता के अनुशासन के प्रति उस उम्र के स्वाभाविक विद्रोह को बाहर नहीं निकलने दिया, यहां तक कि जीजाजी भी दीदी से दबते रहे. अक्षत को दीदी से शिकायत भी हुई तो उस ने अपने अंदर दबा ली. चिंगारी अंदर दबी रही और बहू की शिकायतों ने उसे शोलों में बदल दिया और किशोरावस्था की उन मासूम सी शिकायतों को इतना कठोर रूप दे दिया.

कितना कहती थी मैं दीदी से तब कि बच्चों पर आवश्यकता से अधिक नियंत्रण ठीक नहीं है. बंधन और अनुशासन में फर्क होता है पर दीदी किसी की कहां सुनती थीं. बचपन बुनियाद है और किशोरावस्था दीवारें, जिस पर युवावस्था की छत पड़ती है और शेष जीवन जिस में इनसान हंसता या रोता है. यही कारण था शायद अक्षत के आज के इस व्यवहार का, जबकि राहुल ने उस उम्र की सारी भड़ास उसी उम्र में निकाल दी, जिस से उस के दिलोदिमाग में मातापिता के लिए कोई ग्रंथि नहीं पनपने पाई बल्कि उस ने मातापिता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझा और शायद कहीं पर अपनी गलतियों को भी.

‘‘मम्मी, क्या सोच रही हैं…’’ राहुल ने मुझे हिलाया तो मेरी तंद्रा टूटी. मैं अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई, ‘‘चलिए, हम सब रात का शो देखते हैं… और बाहर ही डिनर करेंगे,’’ नियोनिका को सब का एकसाथ जाना पसंद हो न हो पर राहुल ने यह बात पूरे आत्मविश्वास से कही. मैं ने खुशी से उस का गाल थपथपा दिया.

‘‘अरे, हम तो अपने जमाने में खूब गए पिक्चर देखने…अब तुम्हारा समय है…जाओ…मैं भी तो देखूं, कितने प्यारे लगते हैं मेरे बच्चे साथसाथ चलते हुए,’’ कह कर मैं ने उन दोनों को जबरन उठा दिया. हमारे बच्चे कार में बैठ रहे थे और हम दोनों उन को ममता भरी निगाहों से निहार रहे थे.

‘‘अपना राहुल कितना बदल गया है, है न?’’ मैं इन के पास खिंच आई.

‘‘हां…’’ यह मेरा गाल थपक कर बोले, ‘‘मैं तो तुम से पहले ही कहता था कि तुम किशोरावस्था में उस का व्यवहार देख कर भविष्य की बात मत सोचो. हमारा पालनपोषण का तरीका, हमारे दिए संस्कार उस के भविष्य के व्यक्तित्व का निर्माण करेंगे. अब देखो, राहुल का अपना आत्मविश्वास ही है जिस से वह अपने तरीके से व्यवहार करता है. वह किसी दबाव में न आ कर स्वाभाविक तरीके से रहता है.

मातापिता की इज्जत करता है, इसीलिए नियोनिका को कुछ समझाना नहीं पड़ता. राहुल उस से कोई जबरदस्ती नहीं करता, लेकिन जैसा वह करता है वैसा ही नियोनिका भी करने की कोशिश करती है, वरना जब तुम्हारा बेटा ही तुम्हें आदर नहीं देगा, तुम्हारे वजूद को महत्त्व नहीं देगा तो बहू से कैसे उम्मीद कर सकते हैं. और इस की बुनियाद बहुत पहले किशोरावस्था में ही पड़ चुकी होती है. यदि उस उम्र में मातापिता की बच्चों के साथ संवाद- हीनता की स्थिति रहती है तो वही स्थिति बाद में विकट हो जाती है.’’ यह बोले तो इन की बात का विश्वास मुझे अंदर ही अंदर हो रहा था.

सफर की हमसफर- भाग 3: प्रिया की कहानी

दोनों एकदूसरे की तरफ कुछ पल देखती रहीं फिर प्रिया ने पलकें झुका लीं। उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से क्या कहे और कैसे कहे। दोनों ने ही इस मसले पर फिर बात नहीं की. प्रिया के दिमाग में बड़ी उधेड़बुन चलने लगी थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां ने उसे पसंद किया या नहीं. उस ने स्वरूप को वे सारी बातें मैसेज कर के बताईं . मां भी खामोश बैठी रहीं. प्रिया कुछ देर के लिए आंखें बंद कर लेट गई. उसे पता ही नहीं चला कि कब उसे नींद आ गई. मां के आवाज लगाने पर वह हड़बड़ा कर उठी तो देखा मुंबई आ चुका था और अब उसे मां से विदा लेनी थी.

स्टेशन पर उतर कर वह खुद ही बढ़ कर मां के गले लग गई. मन में एक अजीब से घबराहट थी. वह चाहती थी कि मां कुछ कहें. पर ऐसा नहीं हुआ. मां से विदा ले कर वह अपने रास्ते निकल आई. अगले दिन ही फ्लाइट पकड़ कर वापस दिल्ली लौट आई.

फिर वह स्वरुप से मिली और सारी बातें विस्तार से बताईं. ब्वॉयफ़्रेंड वाली बात भी. स्वरूप भी कुछ समझ नहीं सका कि मां को प्रिया कैसी लगी. मां 2 दिन बाद लौटने वाली थीं. दोनों ने 2 दिन बड़ी उलझन में गुजारा. उन की जिंदगी का फैसला जो होना था.

नियत समय पर मां वापस लौटी. स्वरूप बहुत बैचैन था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि मां से कैसे पूछे. वह चाहता था कि मां खुद ही उस से प्रिया की बात छेड़े. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. एक दिन और बीत गया. अब तो स्वरुप की हालत खराब होने लगी. अंततः उस ने खुद ही मां से पूछ लिया,” मां आप का सफर कैसा रहा? सह यात्री कैसे थे?”

“सब अच्छा था.” मां ने छोटा सा जवाब दिया.

स्वरूप और भी ज्यादा बैचैन हो उठा. उसे समझ नहीं आ रहा था कि कैसे पूछे मां से. उस से रहा नहीं गया तो उस ने सीधा पूछ लिया, “और वह जो लडकी थी

जाते समय साथ में. उस ने आप का ख़याल तो रखा? ‘

” क्यों पूछ रहे हो? जानते हो क्या उसे?” मां ने प्रश्नवाचक नजरें उस पर टिका दीं.

स्वरूप घबड़ा गया. जैसे उस की चोरी पकड़ी गई हो, “जी ऐसा कुछ नहीं. मैं तो बस ऐसे ही पूछ रहा था. ”

“ओके ! सब अच्छा रहा. अच्छी थी लड़की.” मां फिर छोटा सा जवाब दे कर बाहर निकलने लगीं. लेकिन फिर ठहर गईं और बोलीं,

“हां एक बात बता दूं कि मेरे साथ जो लड़की थी न उस की कई बातों ने मुझे अचरज में डाल दिया. जानते हो मेरे दाहिने पैर में चोट लगी तो उस ने क्या

किया?

“क्या किया मां ?” अनजान बनते हुए स्वरुप ने पूछा.

“मेरे दाहिने पैर में मलहम लगाने के बहाने उस ने मेरे दोनों पैरों को छू लिया. फिर जब मैं ने उस से यह पूछा कि क्या उस का कोई बॉयफ्रेंड है तो 2 पल के लिए उस के दिमाग में एक जंग सा छिड़ गया. लग रहा था जैसे वह सोच रही हो कि अब मुझे क्या जवाब दे. एक बात और जानते हो, तेरा नाम लेते ही उस की नजरों में अजीब सी चमक आई और पलके झुक गई. मैं समझ नहीं सकी कि ऐसा क्यों है?

मां की बातें सुन कर स्वरूप के चेहरे पर घबराहट की रेखाएं खिंच गईं. वह एकटक मां की तरफ देखे जा रहा था जैसे मां उस के एग्जाम का रिजल्ट सुनाने

वाली हैं.

मां ने फिर कहा,” एक बात और बताउं स्वरूप, जब वह सो रही थी तो उस के मोबाइल स्क्रीन पर मुझे तुम्हारे कई सारे व्हाट्सएप मैसेज आते दिखे क्यों कि उस ने तुम्हारे मैसेज पॉप अप मोड में रखा था. मैसेज कुछ इस तरह के थे, ‘डोंट वरी प्रिया. मां के साथ तुम्हारा यह सफर हम दोनों की जिंदगी के लिए बहुत महत्वपूर्ण है’ , ‘मां बस एक बार तुम्हें पसंद कर लें फिर हम हमेशा के लिए एक हो जाएंगे.’

फिर तो मेरा शक यकीन में बदल गया कि तुम दोनों मिल कर मुझे बेवकूफ़ बना रहे हो,” कहतेकहते मां थोड़ी गंभीर हो गईं.

स्वरूप की आँखों में बेचैनी साफ झलकने लगी,” नहीं मॉम ऐसा नहीं है.” उस ने मां के कंधे पकड़ कर कहा तो वह झटके से अलग होती हुई बोली,” देखो स्वरूप एक बात अच्छी तरह समझ लो.. .”

“क्या मॉम ?” डरासहमा सा स्वरूप खड़ा रहा.

“यही कि तुम्हारी पसंद ….” कहतेकहते मां ठहर गईं. स्वरूप को लगा जैसे उस की धड़कनें रुक जाएंगी. तभी मां खिलखिला कर हंस पड़ी,” जरा अपनी सूरत

तो देखो. ऐसा लग रहा है जैसे एग्जाम में फेल होने के बाद चेहरा बन गया हो तुम्हारा. मैं तो कह रही थी कि तुम्हारी पसंद बहुत अच्छी है. मुझे बस ऐसी

ही लड़की चाहिए थी बहू के रूप में. सर्वगुण संपन्न. रियली आई लाइक योर चॉइस.”

मां के शब्द सुन कर स्वरूप अपनी खुशी रोक नहीं पाया और मां के गले से लग गया. “आई लव यू ममा.”

मां प्यार से बेटे का कंधा थपथपाने लगीं.

मीत मेरे- भाग 2

हैरी ने गौरव का इन्विटेशन खुशीखुशी स्वीकार कर लिया. नेहा ने बड़ी मेहनत से स्पैशल इंडियन डिशेज तैयार कीं, मटरपनीर, मलाई कोफ्ता, भरवां भिंडी, दहीबड़े के साथ पूरियां और कचौडि़यां बनाईं. मेवा डाल कर चावल की खीर भी तैयार कर डाली.

हैरी दंपती ने ठीक 6 बजे कालबैल बजाई. दरवाजा खोल गौरव ने स्वागत किया. ‘‘गुड ईवनिंग, हमारे घर में आप का स्वागत है.’’

‘‘नमस्ते…’’ कुछ अटकते हुए मिसेज हैरी ने हिंदी में अभिवादन कर गौरव को विस्मित कर दिया.

‘‘अरे, आप हिंदी बोल सकती हैं?’’ पीछे से आई नेहा ने आश्चर्य से कहा.

‘‘हां, मेरा स्कूल में थोड़ा इंडियन स्टूडैंट्स हैं, वो सिखाया है.’’

‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है, आइए, अंदर चलें,’’ नेहा की आंखों में प्रशंसा थी. सब के बैठने पर गौरव ने कुछ संकोच से कहा, ‘‘हमारा यह छोटा सा अपार्टमैंट है.’’

‘‘ओह, यह तो सुंदर घर है. अभी तुम्हारा स्ट्रगल पीरियड है. इस्टैब्लिश होने के बाद बड़ा घर लोगे,’’ हैरी ने गौरव को बढ़ावा दिया.

‘‘आप लोग क्या लेना पसंद करेंगे? सौरी, हमारे पास ड्रिंक का लिमिटेड स्टाक है, मैं ड्रिंक कम करता हूं.’’

‘‘अरे, नेहा की कंपनी में तो सौफ्ट ड्रिंक में भी सुरूर आ जाएगा, पर पहले इंट्रोडक्शन तो हो जाए, यह मेरी स्वीटहार्ट एलिजाबेथ, यानी क्वीन औफ माई हार्ट और डार्लिंग, यह गौरव और उस की चार्मिंग वाइफ नेहा,’’ हंसते हुए हैरी ने नेहा को देखा.

‘‘यू नो, हैरी ऐसा ही है, हर टाइम हंसता है.’’

‘‘हंसना तो बहुत अच्छी बात है. हंसने वाले इनसान हमेशा यंग दिखते हैं. देखो न, हैरी कितने यंग दिखते हैं,’’ गौरव ने नेहा से कहा.

‘‘यह तो असल में भी यंग मैन ही है, मैं इस से 7 साल बड़ी हूं. क्यों हैरी, ठीक कह रही हूं न?’’ एलिजाबेथ के चेहरे पर मुसकान थी.

एलिजाबेथ की बात सुन कर नेहा ने सोचा, ‘अपनी उम्र के बारे में इतनी सचाई से ऐसी बात स्वीकार करने के लिए साहस होना चाहिए. भारत में पत्नी का उम्र में बड़ा होना कोई सामान्य बात नहीं मानी जाती. वैसे भी वहां लड़कियां अकसर अपनी सही उम्र कम ही बताती हैं. कभीकभी मातापिता भी 1-2 साल कम कर के ही बताते हैं.’

‘‘अरे, तुम्हारी उम्र कुछ भी हो, मेरे लिए तो तुम स्वीट सिक्सटीन ही हो,’’ हैरी हंस रहा था.

‘‘हैरी सब को ऐसे ही प्यार करता है, तुम दोनों का तो फैन हो गया है. तुम को लाइक किया, इसलिए यहां आया है, नहीं तो इसे अपने गिटार और म्यूजिक के अलावा कुछ नहीं चाहिए,’’ एलिजाबेथ ने मुसकरा कर हैरी को देखा.

‘‘यह तो हैरी का बड़प्पन है. कोई और होता तो…’’

‘‘तो वह भी वही करता,’’ गौरव की बात काट कर हैरी ने कहा.

‘‘आई विश, आज टीना भी हमारे साथ आई होती,’’ एलिजाबेथ ने कहा.

‘‘टीना कौन?’’ नेहा ने पूछा.

‘‘एलिजाबेथ का पहले हसबैंड से डिवोर्स हो गया. टीना एलिजाबेथ के पहले हसबैंड से एलिजाबेथ की बेटी है, वह अपने फादर के साथ रहती है. वीकैंड में हमारे पास आती है. आज वह अपनी ग्रैनी (नानी) के पास गई हुई है वरना हम उसे भी साथ लाते.’’

‘‘क्या टीना के फादर उसे आप के पास आसानी से आने देते हैं?’’ अनजाने में नेहा पूछ बैठी.

‘‘हां, इस में क्या प्रौब्लम होगी? टीना हमारी भी तो बेटी हुई, आखिर एलिजाबेथ उस की मदर है. एलिजाबेथ का पहला हसबैंड मेरा अच्छा दोस्त है, हम सब मिल कर पार्टी करते हैं,’’ नेहा के सवाल पर हैरी विस्मत था.

‘‘माफ कीजिए, असल में भारत में पतिपत्नी के अलग होते समय बच्चों के बंटवारे को ले कर झगड़े उठ खड़े होते हैं इसीलिए मैं सवाल कर बैठी.’’

नेहा को याद हो आया, उस की कजिन गीता को अपने दुश्चरित्र पति से तलाक लेते समय 5 वर्ष के राहुल को कस्टडी में लेने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़े थे.

ऐसा नहीं कि उस के पति को बेटे से बहुत  प्यार था, पर पुरुष का अहं और गीता को तड़पाना उस का मकसद था. अकसर कानूनी अड़चनें भी मां के विरुद्ध फैसला देने को विवश होती हैं.

‘‘अमेरिका में दूसरी शादी के लिए मर्द या औरत को बराबरी का अधिकार है. जब दोनों को महसूस होता है, वे साथ नहीं रह सकते तो आपसी समझौते से अलग हो जाते हैं. तलाक से बच्चों पर ज्यादा असर नहीं पड़ता. यहां तलाक सामान्य बात है. बच्चे भी इसे आसानी से स्वीकार करते हैं. हो सकता है, इंडिया में हमारी मैरिज को बेमेल कहा जाए, पर यहां यह कोई नई बात नहीं है,’’ हैरी ने गंभीरता से कहा.

‘‘हां, पहले तो इंडिया में बच्चे वाली विधवा या परित्यक्ता स्त्री का विवाह मुश्किल होता था, पर आजकल समाज बदल रहा है. मीडिया के कारण लोगों में तेजी से चेतना आ रही है. हमारा समाज उदार होता जा रहा है,’’ जानकारी देते हुए गौरव को मीडिया पर आने वाली कई घटनाएं याद हो आईं, जब पीडि़त स्त्री को न्याय दिलाने के लिए मीडिया आगे आया था.

कोल्ड ड्रिंक देती नेहा ने कहा, ‘‘इफ यू डौंट माइंड, एक बात पूछ सकती हूं?’’

‘‘जरूर, हमें खुशी होगी. आप क्या जानना चाहती हैं?’’

‘‘आप दोनों की मुलाकात कैसे हुई थी?’’

‘‘एलिजाबेथ अपने स्कूल के बच्चों के साथ एक कोरस गीत के आर्केस्ट्रा के लिए मदद लेने हमारे म्यूजिक स्कूल आई थी. मजे की बात यह थी कि एलिजाबेथ को म्यूजिक

की एबीसीडी भी नहीं आती. कोरस गीत के साथ जब मेरी आर्केस्ट्रा टीम ने साथ दिया तो लोगों की तालियां देर तक हाल में गूंजती रहीं. उस दिन के बाद से हर म्यूजिक प्रोग्राम के लिए यह मेरी मदद लेने आने लगी. बस, पहले हम दोनों दोस्त थे, बाद में हसबैंडवाइफ,’’ बात खत्म करता हुआ हैरी, एलिजाबेथ को देख कर मुसकरा दिया.

‘‘लेकिन अब तो मैं काफी कुछ समझती हूं न, हैरी?’’

‘‘हां, अब तुम गलत नोटेशन पर हंस लेती हो. वैसे तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, नेहा ने इंडियन क्लासिकल म्यूजिक में मास्टर्स की डिग्री ली है.’’

‘‘वाऊ, दैट्स ग्रेट. हैरी, तुम अपने स्कूल में इंडियन क्लासिकल म्यूजिक की क्लासेज क्यों नहीं शुरू कर लेते? मैं ऐसे बहुत से इंडियन पेरैंट्स को जानती हूं, जो अपने बच्चों को इंडियन म्यूजिक सिखाना चाहते हैं,’’ एलिजाबेथ ने सुझाव दिया.

‘‘ओह यस, गुड आइडिया. नेहा, क्या तुम मेरे स्कूल में म्यूजिक टीचर की जौब लेना चाहोगी?’’ हैरी ने पूछा.

‘‘जी, मैं ने संगीत सीखा है, पर किसी को सिखाया नहीं है,’’ संकोच से नेहा ने कहा.

‘‘वह कोई प्रौब्लम नहीं है. एक बार सिखाना शुरू करोगी तो बहुत आसान लगेगा,’’ एलिजाबेथ ने उत्साहित किया.

‘‘मैं सोचती हूं, पहले गौरव को कोई जौब मिल जाए फिर…’’

‘‘गौरव के के लिए भी कोशिश की जाएगी. वह क्वालिफाइड है. उसे जरूर अच्छी जौब मिल जाएगी. जौब लेने से तुम्हें सैलरी के साथ मैडिकल इंश्योरेंस भी मिलेगा. अभी तुम लोग जो प्रौब्लम फेस कर रहे हो, उस से छुटकारा पाना जरूरी है. बी प्रैक्टिकल नेहा.’’

‘‘तुम्हें कोई औब्जेक्शन तो नहीं है, गौरव?’’ गौरव को चुप देख एलिजाबेथ ने पूछा.

‘‘नहीं, अगर नेहा की इच्छा है तो काम करे,’’ विक्षुब्ध हो कर गौरव ने कहा.

‘‘ठीक है, तुम दोनों सोच लो. मेरा औफर रहेगा. हां, नेहा को जौब पर रखने के लिए कुछ फौरमैलिटीज पूरी करनी होंगी. नेहा को आसानी से वर्कपरमिट मिल जाएगा, उस के साथ जौब करने की परमिशन हो जाएगी.’’

छोटी सी डाइनिंग टेबल पर डिनर सजा देख, एलिजाबेथ चौंक गई, प्रशंसा में बोली, ‘‘माई गौड, लगता है मैरिज पार्टी की तैयारी है. इतनी मेहनत क्यों की, नेहा? हम तो सिर्फ 2 ही गेस्ट हैं या कोई और भी आने वाला है?’’

‘‘यह तो कुछ नहीं है. हमारे देश में अतिथि को देवता यानी गौड कहा जाता है. उन के सत्कार में जो भी किया जाए कम है. आज आप हमारे गैस्ट यानी अतिथि हैं,’’ हंसते हुए गौरव ने बताया.

एलिजाबेथ और हैरी को खाना बहुत पसंद आया. एलिजाबेथ हर डिश की रैसिपी पूछ रही थी. हैरी ने उसे चिढ़ाया, ‘‘माई डियर, अपनी कुकिंग बेकिंग तक ही रहने दो. यह मजेदार स्पाइसी फूड बनाना तुम्हारे बस का नहीं. नेहा, तुम्हें हमारे घर में बेक्ड केक, पाई या टिन में पैक्ड खाना ही मिलेगा.’’

‘‘हैरी ठीक कहता है, हमारी कुकिंग बिलकुल अलग किस्म की होती है. शायद तुम्हें हमारा खाना उबला हुआ लगेगा,’’ एलिजाबेथ ने सचाई से कहा.

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है. हर देश और जगह का खानपान अलग होता है. हमारे देश में तो अलगअलग स्टेट्स का खाना अलग तरह का होता है. हमारी नेबर मंगलाजी साउथ की हैं, उन की और हमारी नौर्थ इंडियन डिशेज अलग होती हैं, पर हम दोनों एकदूसरे की डिशेज खूब ऐंजौय करते हैं,’’ मुसकराती नेहा ने कहा.

स्वीट डिश के रूप में मेवा पड़ी खीर ने तो उन्हें मुग्ध ही कर दिया.

‘‘व्हाट ए लवली स्वीट डिश. मजा आ गया,’’ डिनर खत्म होने पर हैरी और एलिजाबेथ को अपनी प्लेटें धोने के लिए जाने की कोशिश करते देख नेहा ने रोक दिया, ‘‘नहीं, प्लीज आप ऐसा न करें. हमारे यहां गैस्ट से यह काम अपेक्षित नहीं है. यह उन का अपमान माना जाता है.’’

‘‘पर अमेरिका में मेजबान पर सारा काम छोड़ कर नहीं जाया जाता. मेहमान अपनी डिशेज खुद धो कर डिशवाशर में लगाते हैं. इस तरह से मेजबान का काम भी हलका हो जाता है,’’ हैरी ने बताया.

‘‘हो सकता है, अगर हम यहां रहने लगें तो यहां की लाइफस्टाइल अपना लें, पर अभी तो हमारे संस्कार भारतीय ही हैं. हमें क्षमा करें,’’ नेहा ने उन के हाथों से प्लेटें ले कर सिंक में रख दीं.

उन के जाने के बाद गौरव चुपचाप लेट गया. डिशवाशर में बरतन लगाती नेहा सोचने लगी, ‘यह अच्छा देश है, इस देश में हर छोटे से छोटे अपार्टमैंट में भी मूल सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं. डिशवाशर, कपड़े धोने, सुखाने के लिए वाशिंग मशीन और ड्रायर, माइक्रोवेव और फ्रिज के रहने से

सारा काम कितना आसान हो जाता है.’

काम खत्म कर, कमरे में आ कर गौरव को लेटा देख नेहा ने खुशी से कहा, ‘‘क्या थक गए? वैसे आज की शाम बड़ी अच्छी बीती. दोनों पतिपत्नी कितने अच्छे हैं. एलिजाबेथ को हमारा बनाया खाना बहुत पसंद आया.’’

‘‘हां, तुम्हारे लिए तो जौब का औफर भी आ गया. तुम्हारी शाम तो अच्छी होनी ही थी,’’ कुछ तल्खी से गौरव ने कहा.

‘‘अरे, मैं कौन सी नौकरी करने जा रही हूं. उन्होंने कहा और मैं ने सुन लिया,’’ गौरव की आवाज की तल्खी नेहा पहचान गई थी.

‘‘सोचता हूं, हम इंडिया वापस क्यों न चलें. यहां का जो हाल देख रहा हूं, उस में अच्छी जौब का मिलना कठिन ही होगा.’’

‘‘इंडिया की अपनी जौब भी तो छोड़ कर आए हो.’’

‘‘तो क्या दूसरी जौब नहीं मिलेगी,

वहां के हालात यहां के मुकाबले में बहुत अच्छे हैं.’’

‘‘वह बात यहां भी तो संभव हो सकती है. तुम्हारे पास ऊंची डिग्री है, काम का अनुभव भी है, तुम्हें जरूर कोई अच्छी जौब मिल जाएगी. हिम्मत रखो. इंडिया में सारा सामान बेच कर घर खाली कर आए हैं.

वहां जा कर फिर से गृहस्थी जमाना भी तो इतना आसान नहीं होगा. लोग क्या हमारी हंसी नहीं उड़ाएंगे?’’

नेहा की बात में दम था. अमेरिका से जौब का औफर मिलने पर गौरव फूला न समाया था. आफिस में कितनी शान से कहा था, ‘‘इस दोटके की नौकरी में क्या रखा है? अमेरिका में जो सैलरी मिलेगी, उस से 1-2 साल में यहां एक शानदार बंगला बनवा लूंगा.’’

असल में आज नेहा के जौब औफर ने उसे विक्षुब्ध कर दिया. पत्नी नौकरी करे और पति घर में निकम्मा बैठा रहे, भारतीय पति की मानसिकता इसे सहज ही स्वीकार नहीं कर सकती. अभी तो परदेश से ठीक से परिचय भी नहीं हुआ था कि नौकरी चली जाने से असहायता की स्थिति बन गई. उस की अपेक्षा नेहा प्रसन्न लग रही थी. किसी तरह करवटें बदलते रात कट गई.

सुबहसुबह कालबैल सुन कर नेहा चौंक गई. दरवाजा खोलने पर मंगला खड़ी दिखीं.

‘‘अरे मंगला बहन, सब खैरियत तो है?’’

‘‘अइअइयो, अम्मा, बोत खुशी की बात है, नेहा. अम को काम मिलने का जी. ये लो, तुम्हारे लिए मैसूर पाक लाया है,’’ खुशी से मंगला का चेहरा चमक रहा था.

‘‘वाह, यह तो बहुत अच्छी खबर है. काम कहां मिला है?’’

‘‘वो जो पंजाबी होटल है ना, उस के मालिक ने बुलाया, मेरे को बोला कि

‘पुत्तर, तुसी बोत अच्छा इडलीडोसा बनाता, हमारे होटल में काम करो तो पैसा और नाम दोनों मिलेगा.’ मेरे को सुबह 8 से 1 बजे तक और शाम को 4 से 8 तक काम करने का जी.’’

‘‘तुम्हारे हसबैंड मान गए? मेरा मतलब अब तुम्हें काफी टाइम बाहर रहना होगा?’’

‘‘काए को नहीं मानेगा, हमारे पैसे से उस का भी तो फायदा होने का कि नईं? हम इंडिया जास्ती पैसा भेज सकने का,’’ मंगला के चेहरे पर आशा का उल्लास था.

‘‘हां, यह बात तो सच है, पर सब मर्द ऐसा नहीं सोचते.’’

‘‘क्या बोलता, नेहा, अमेरिका में हम देखा, सारी औरतें काम करने का,’’ अचानक पीछे खड़े गौरव पर निगाह पड़ते ही नेहा चुप हो गई. निश्चय ही उस ने नेहा की बात सुन ली थी.

 

‘‘बंधाई, हो मंगला बहन. मिस्टर रामास्वामी को भी कांग्रेचुलेट कीजिएगा.’’

‘‘थैंक्यू, अब हम को जाने का. आज से ही ड्यूटी करने का. रामास्वामी वेट करता जी,’’ उत्साहित मंगला चली गई.

‘‘हैरी का औफर स्वीकार कर लो, नेहा,’’ चाय पीते हुए गौरव ने कहा.

‘‘क्या?’’ नेहा चौंक गई.

‘‘हां, सोचता हूं, कम से कम कुछ समय के लिए तो समस्या से छुटकारा मिल ही जाएगा. बाद में जब मुझे जौब मिल जाएगी तब तुम आराम करना,’’ गौरव मुसकराया.

‘‘सच कहो, यह बात दिल से कह रहे हो, पर क्या मैं संगीत सिखा पाऊंगी?’’

‘‘क्यों नहीं, आखिर तुम ने संगीत में एम.ए. किया है. यहां तो सा रे गा मा से शुरू करना है. आज ही हैरी को तुम्हारी ऐक्सैप्टैंस भेज देता हूं,’’ गौरव ने उत्साहित किया.

‘‘तुम्हें परेशानी नहीं होगी?’’ नेहा ने गौरव का मन जानना चाहा.

‘‘कैसी परेशानी? दिन भर आराम से पैर फैला कर सोऊंगा. अभी तक काम की वजह से 8 की जगह 10-11 घंटे काम करना पड़ता था.’’

‘‘तुम घर पर रहोगे, मैं काम पर जाऊंगी तो लोग क्या कहेंगे?’’ नेहा शंकित थी.

‘‘हम भारत में नहीं हैं, जहां लोग अपने से ज्यादा दूसरों पर नजर रखते हैं. इतने दिनों में एक बात समझ गया हूं, इस देश में कोई किसी के बारे में नहीं सोचता. सब अपने काम से काम रखते हैं. हां, सामने पड़ने वाले अजनबी को भी हायहैलो जरूर करते हैं,’’ गौरव ने अपने 4 महीनों का अनुभव बताया.

‘‘थैंक्स, गौरव,’’ नेहा के चेहरे पर खुशी झलक आई.

एक घंटे में हैरी का फोन आ गया.

‘‘गुड, नेहा ने जौब करने का फैसला लिया है. मैं कल नेहा का वेट करूंगा,’’ हैरी की आवाज में खुशी स्पष्ट थी.

थोड़ी सी जमीं थोड़ा आसमां: क्या थी कविता की कहानी

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बताएं कि हम बताएं क्या: मनोज ने क्या किया था

‘उई मां, मैं लुट गई’ के आर्तनाद के साथ वह दीवार के साथ लग कर फर्श पर बैठ गई.

कई दिनों से मुझे बुखार ने अपने लपेटे में ले रखा था और लीना आज डाक्टर के पास मेरी ब्लड रिपोर्ट लेने गई थी. मैं ने सोचा रास्ते में जाने उस ने किस रिश्तेदार के बारे में कौन सी मनहूस खबर सुन ली कि घर आते ही दुख को बरदाश्त न कर पाई और बिलख पड़ी.

तभी मेरे दिमाग की घंटियां बजीं कि अपने हाथों की चूडि़यां तोड़ना तो सीधे अपने सुहाग पर अटैक है. मैं ने जल्दी से अपने दिल की धड़कन को जांचा फिर नब्ज टटोली तो मुझे अपने जीवित होने पर कोई शक न रहा.

पलंग से उतर कर मैं लीना के पास पहुंचा और शब्दों में शहद घोल कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘दूर रहिए मुझ से,’’ लीना खुद ही थोड़ी दूर सरक गई और बोली, ‘‘आप को एड्स है.’’

‘‘मुझे… और एड्स…’’ मैं ने जल्दी से दीवार का सहारा लिया और गिरतेपड़ते बड़ी मुश्किल से अपने को संभाल कर पलंग तक ले गया.

‘‘हांहां, आप को एड्स है,’’ लीना ने सहमे स्वर में कहा, ‘‘मै

डा. गुप्ता के रूम में आप की ब्लड रिपोर्ट लेने बैठी थी. उन्होंने रिपोर्ट देखी और कहा कि पोजिटिव है. तभी उन का कोई विदेशी दोस्त आ गया. मुझे बाहर भेज कर वे दोनों आप के केस के बारे में विचार विमर्श करने लगे. बाहर बैठेबैठे मैं ने सुना कि वह इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आप को एड्स है.’’

‘‘लीनाजी, मगर मुझे एड्स कैसे हो सकता है?’’ मैं ने थोड़ा संभल कर कहा, ‘‘मैं न तो बाहर दाढ़ी बनवाता हूं कि मुझे किसी एड्स रोगी के ब्लेड से कट लगा है. न ही आज तक किसी को अपना खून दियालिया कि किसी एड्स रोगी का खून मेरे शरीर में गया. यहां तक कि वर्षों से मुझे इंजेक्शन भी नहीं लगा है और वैसे भी आजकल डिसपोजेबल इंजेक्शन इस्तेमाल किए जाते हैं. यहां तक कि मेरे परिवार में भी किसी को यह बीमारी नहीं थी.’’

‘‘हूं,’’ हिंदी फिल्मों की खलनायिका की तरह लीना ने लंबी सांस छोड़ी, ‘‘फिर वह कौन थी?’’

‘‘वह कौन थी?’’ मैं ने दोहराया और उस की आंखों में इस सवाल का जवाब ढूंढ़ने लगा.

‘‘हां, मैं पूछती हूं, वह कौन थी?’’

‘‘वह कौन थी…ओ, वह कौन थी? तो भई ‘वह कौन थी’ एक फिल्म का नाम है, जिस में मनोज कुमार और साधना थे और कोई आत्मा…’’ मैं ने बतलाना चाहा.

मेरी इस हरकत पर आज लीना की आंखों में प्यार का सागर लहराने के बजाय लाल डोरे उभर आए और वह गुस्से में बोली, ‘‘मैं पूछती हूं कि वह कौन थी जिस से आप यह सौगात ले कर आए हैं?’’ लीना मेरे सामने आ खड़ी हुई.

‘‘लीनाजी, आप जो समझ रही हैं वैसी कोई बात नहीं है,’’ मैं ने लीना के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘मत छुओ मुझे,’’ इतना कहते हुए लीना ने मेरा हाथ झटक दिया और फिर मोबाइल थामे वह दूसरे कमरे में चली गई.

थोड़ी देर बाद देखता क्या हूं कि 2 युवतियां कमरे के अंदर आ गईं. उन में से एक के गले में फ्लैश लगा कैमरा था. वह लड़की सुर्ख रंग की बिना बाजू की मिनी शर्ट और नीले रंग की स्लैक्स में थी. दूसरी लड़की ने सफेद सलवारकमीज पर काले रंग की जैकेट पहन रखी थी. उस के कंधे पर एक बैग लटका हुआ था.

अपने नाम की पुकार सुन लीना कमरे में आ गई और सिसकते हुए बारीबारी से दोनों के गले लगी.

‘‘घबराओ नहीं, हम सब संभाल लेंगे,’’ कैमरे वाली लड़की ने लीना की पीठ थपकते हुए कहा, ‘‘तो यह हैं तुम्हारे एड्स पीडि़त पति,’’ और इसी के साथ लड़की ने मुझे फोकस में ले कर 3-4 बार फ्लैश चमकाए.

‘‘मेरे फोटो क्यों ले रही हो?’’ यह कहते हुए मैं ने अपने चेहरे को हाथ से छिपाने का असफल प्रयास किया.

‘‘आप के फोटो कल समाचार- पत्रों में छापे जाएंगे ताकि जनता को पता चले कि इस शहर में भी कोई एड्स का मरीज है और तुम्हें देखते ही लोग पहचान जाएं,’’ उस ने मुझे बताया और फिर लीना से बोली, ‘‘दीदी, तुम तनिक इन के साथ लग कर बैठ जाओ ताकि मैं दुनिया को बता सकूं कि किस तरह एक आदर्श पत्नी, अपने एड्स रोगी पति की सेवा, अपनी सलामती की परवा किए बिना कर रही है.’’

लीना पलंग पर मुझ से सट कर ऐसे बैठी मानो हम स्टूडियो में बैठे हों और मेरे बालों में अपनी उंगलियों से कंघी करने लगी.

कैमरे वाली लड़की ने हमें फोकस में लिया और फ्लैश का झपाका हुआ.

इस के बाद लीना पलंग से मेढक की तरह कूद कर अपनी दोनों सहेलियों के पास पहुंच गई.

अब जैकेट वाली लड़की ने अपने कंधे पर लटके बैग से एक कागज निकाला जिस पर कोर्ट का टिकट लगा था.

‘‘लो, वकालतनामे पर दस्तखत करो, तुम्हारे तलाक का मुकदमा मैं

लड़ं ूगी. एड्स के रोगी के साथ तुम्हारी शादी पहली पेशी पर ही टूट जाएगी.’’

लीना ने अपनी सहेली के हाथ से पैन ले कर वकालतनामे पर दस्तखत घसीटे.

‘‘हां जनाब, अब आप अपनी उस ‘गर्लफ्रैंड’ का नाम बताएं जिस से आप को यह तोहफा मिला ताकि उस की तसवीरें और नामपता भी अखबार में छाप कर हम दूसरे भोलेभाले मर्दों को एड्स का शिकार होने से बचा सकें,’’ कैमरे वाली लड़की ने चुभती नजरों से मुझे देखा.

‘‘मगर मैं ऐसी किसी औरत को नहीं जानता और न ही मैं किसी दूसरी औरत के पास गया हूं.’’

‘‘ए मिस्टर,’’ जैकेट वाली लड़की बोली, ‘‘सीधी तरह बताएं कि वह कौन थी?’’

‘‘फिर वही ‘वह कौन थी?’ मैं ने कहा न मैं किसी ‘वह कौन थी’ को नहीं जानता,’’ मैं ने प्रोटेस्ट किया.

बाहर किसी ट्रक की गड़गड़ाहट को अनसुना कर मैं ने कहा, ‘‘आप मेरा विश्वास कीजिए, मैं किसी ‘वह कौन थी’ को नहीं जानता हूं.’’

‘‘विश्वास और तुम्हारा?’’ लीना के ताऊजी का गुस्से से भरा स्वर कानों में गूंजा.

मैं ने दरवाजे की ओर देखा तो लीना के ताऊजी, बलदेव भैया और 4 हट्टेकट्टे मजदूर अंदर आ गए. एक मजदूर के कंधे से रस्सी का गुच्छा लटक रहा था.

लीना अपने ताऊजी के गले लग कर रोने लगी और हिचकियों के बीच बोली, ‘‘ताऊजी, मैं लुट गई. बरबाद हो गई.’’

‘‘घबरा मत मेरी बच्ची, अब हम मनोज को लूटेंगे,’’ ताऊजी ने लीना के सिर पर हाथ फेर कर उसे पुचकारा. फिर वह मजदूरों की ओर पलटे, ‘‘घर का सामान उठा कर बाहर खड़े ट्रक में भर लो.’’

2 मजदूर फ्रिज और 2 सोफे की ओर बढे़. तभी मैं चिल्लाया और पलंग से उठ कर उन के बीच जा कर खड़ा हो गया कि किसी भी सामान को हाथ मत लगाना.

‘‘सामान हमारी बेटी का है और अब वह यहां नहीं रहेगी,’’ ताऊजी ने झाग छोड़ते हुए मुझ से कहा, ‘‘एक तरफ हट जाओ.’’

‘‘बलदेव भैया,’’ मैं ने उन की दुहाई दी, तो वह हाथी की तरह चिंघाड़े, ‘‘मुझे भैया कहा तो जबान खींच लूंगा,’’ और इसी के साथ उन्होंने अपना हाथ मेरे मुंह की ओर बढ़ाया. फिर जल्दी से हाथ पीछे खींच लिया.

‘‘आप लोग ऐसा नहीं कर सकते,’’ मैं ने ताऊजी को कहा.

‘‘हम क्याक्या कर सकते हैं यह हम तुम्हें अभी बताते हैं,’’ इतना कह कर ताऊजी मजदूरों की ओर मुडे़ और बोले, ‘‘अरे, तुम लोग देखते क्या हो, इसे इस पलंग पर डाल कर बांध दो.’’

3 मजदूरों ने मुझे बकरे की तरह गिरा कर दाब लिया और रस्सी वाले मजदूर ने मुझे पलंग से बांधना शुरू किया. एक तो बुखार की कमजोरी उस

पर हट्टेकट्टे मजदूरों की ताकत… मिनटों में पलंग के साथ जकड़ा बेबस पड़ा था.

चारों मजदूर जल्दीजल्दी घर का सामान बाहर ले जाने लगे.

लीना और उस की सहेलियां भी बाहर निकल गईं.

थोड़ी देर में ही खाली कमरे में वह पलंग रह गया जिस के ऊपर मैं बंधा पड़ा था.

‘‘अब इस को पलंग समेत उठाओ और बाहर ले चलो,’’  ताऊजी ने मजदूरों को आदेश सुनाया, ‘‘बलदेव बेटा, घर को ताला लगा कर चाबी साथ ले चलो.’’

मजदूरों ने मुझे पलंग समेत उठा लिया और दरवाजे की तरफ ले गए. पलंग चौड़ा होने से दरवाजे की चौखट में किसी अडि़यल नेता की तरह अड़ गया.

‘‘पलंग को थोड़ा तिरछा कर लो जी,’’ बलदेव ने मजदूरों को राय दी.

मजदूरों ने उन के बताए अनुसार पलंग को तिरछा कर उठाएउठाए ही दरवाजा पार कर लिया. उसे ले जा कर सड़क के किनारे रख दिया.

मैं पलंग से बंधा बेबस अपने सामान को देख रहा था जो ट्रक में बेतरतीब ढंग से रखा गया था. ट्रक के पास लीना, उस की दोनों सहेलियां, बलदेव भैया, ताऊजी और मजदूर खड़े थे. आसपड़ोस के कुछ लोग भी थे मगर वे घटनास्थल से काफी दूर खड़े थे. उन के चेहरों पर डर के भाव थे और वे सहमीसहमी निगाहों से मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे मैं किसी दूसरे ग्रह का प्राणी हूं. कुछ एक ने तो अपनी नाक पर रूमाल ही टिका रखा था.

अब ताऊजी ने फरमान जारी किया कि इसे यहां से उठा कर सामने पार्क में किसी पेड़ के नीचे डाल दो.

चारों मजदूर पलंग की ओर बढ़े तो मैं बचाव में चिल्लाया और अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगा.

तभी मेरे घर के सामने एक कार आ कर रुकी तो मैं ने अपनी गरदन घुमा कर देखा.

कार में से डा. गुप्ता और एक लंबा, सुर्ख सफेद आदमी बाहर निकले.

सामान से भरे ट्रक पर एक नजर डालने के बाद डा. गुप्ता बोले, ‘‘लीनाजी, क्या मकान शिफ्ट कर रही हैं? तभी जल्दी में आप मनोजजी की रिपोर्ट भी क्लिनिक में छोड़ आईं,’’ फिर मेरी ओर देख कर डाक्टर बोले. ‘‘मनोजजी को ऐसे क्यों बांध रखा है? क्या बुखार सिर को चढ़ गया है?’’

‘‘नहीं, डाक्टर साहब, मुझे पार्क में डालने की तैयारी है,’’ लीना से पहले मैं बोल पड़ा.

‘‘मगर क्यों?’’

‘‘क्योंकि मुझे  एड्स है,’’ मैं ने रुंधे गले से कहा.

‘‘किस ने बताया कि तुम्हें एड्स है?’’

‘‘आप ही ने तो लीना को बताया था कि मुझे एड्स है.’’

‘‘मैं ने…कब,’’ डा. गुप्ता लीना की ओर देखने लगे.

‘‘आज जब मैं आप के क्लिनिक में गई थी तो आप ने बताया था कि पोजिटिव रिपोर्ट आई है. तभी आप के यह दोस्त आ गए और आप ने मुझे बाहर भेज दिया और अपने कमरे में बैठ कर आप इन के साथ इस केस पर विचारविमर्श करने लगे. मैं ने बाहर बैठ कर सुना था. आप के मित्र ने कहा था कि इन को एड्स है,’’ इतना कह कर लीना सिसकने लगी.

‘‘मिस्टर लाल, हम ने कब इन के केस को ले कर डिसकस किया था?’’ डा. साहब ने अपने मित्र से पूछा.

कुछ सोचते हुए मिस्टर लाल बोले, ‘‘डा. गुप्ता, मैं ने आप के अस्पताल के लिए जो चैक विदेश से ला कर दिए और बताया कि यह ‘ऐड’ है उसे ही इन्होंने एड्स तो नहीं समझ लिया?’’ मिस्टर लाल ने डा. गुप्ता से प्रश्न किया.

‘‘तो आप लोग इन को एड्स होने की बात नहीं कह रहे थे?’’ लीना ने डरतेडरते पूछा, ‘‘और वह पोजिटिव रिपोर्ट?’’

‘‘वह तो इन के मलेरिया की रिपोर्ट थी,’’ डा. साहब ने बताया, ‘‘मैं इधर से निकल रहा था तो मैं ने सोचा कि मनोजजी की रिपोर्ट देता चलूं और दवाइयां भी लिख दूंगा.’’

डा. गुप्ता ने मेरी ओर देखने के बाद लीना की ओर मुंह फेरा और चुभते शब्दों में बोले, ‘‘किसी एड्स के मरीज को यों जकड़ कर पार्क में डालने की क्या तुक है?’’

‘‘चाहिए तो यह कि एड्स के मरीज को इस बात का एहसास न होने दिया जाए कि वह मौत की ओर खिसक रहा है,’’ मिस्टर लाल कहते गए, ‘‘उस के साथ तो ऐसा व्यवहार करना चाहिए कि वह जीवन का आखिरी रास्ता सुकून से अपने हमदर्दों के बीच तय कर पाए और आप लोग तो जानते हैं कि यह बीमारी छूत की नहीं है फिर भी आप ने ऐसा बेवकूफी का काम किया?’’

डाक्टर के तेवर को देख कर ताऊजी बोले, ‘‘अरे, तुम लोग खडे़खडे़ मुंह क्या देख रहे हो. जाओ, जल्दी से जंवाई राजा के सामान को घर के अंदर पहुंचाओ’’.

ताऊजी ने बलदेव के हाथ से मकान की चाबी छीन कर घर का दरवाजा खोल दिया.

डेढ़ घंटे बाद कमरे में सामान के ढेर के पास मैं पलंग पर अधलेटे बैठा था. ट्रक जा चुका था. ताऊजी, बलदेव और लीना की दोनों सहेलियां बाहर से ही खिसक चुके थे और लीना?

लीना, अपनी नई कांच की चूडि़यां शृंगार बाक्स से निकाल, कलाइयों में पहने, डे्रसिंग टेबल के सामने बैठी अपनी कलाइयां घुमा कर चूडि़यां खनका रही थी.

दूर कहीं से गाने की आवाज आ रही थी :

‘‘मेरे हाथों में नौनौ चूडि़यां हैं…’’

क्या होती है आवर्तनशील प्राकृतिक खेती, जिसे जानने विदेशी भी आते है?

80 के दशक में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमबीए करने वाले ग्राम बरोखरपुर, बाँदा जिला, उत्तरप्रदेशप्रेम सिंह ने शुरुआत में नौकरी की. कुछ दिनों बाद नौकरी से उनका मन भर गया और कुछ अलग करने की इच्छा हुई, तब उन्होंने25 एकड़ जमीन में खेती करने का संकल्प लिया और तब से लेकर आज तक खेती ही करते है. प्रेम सिंह जैविक खेती करते हैं और आसपास के सैकड़ों किसान उनसे खेती की तकनीक सीखने आते हैं और उन्हें अपनी उपज भी बेचते हैं. केवल देश से ही नहीं विदेश से भी उनकी इस जैविक खेती करने की कला को सीखने विदेशी भी आते है. वे अपनी इस सफलता से बहुत खुश है और चाहते है कि विश्व में आगे भी ऐसी खेती की जाय, ताकि किसी को भूखों न मरना पड़े और पर्यावरण संतुलन बनी रहे. उन्होंने खेती और उससे जुडी हुई कई बातों पर बातचीत की, आइये जानते है, कैसे प्रेम सिंह ने ऐसा कर दिखाया और आगे भी मॉडर्न और अधिक उन्नतखेती करने वाले है.

नहीं थी इच्छा पिता की

किसान प्रेम सिंह कहते है कि मैं ग्राम बरोखर खुर्द, बाँदा जिला, उत्तरप्रदेश का रहने वाला हूँ,साल 1987 में पोस्ट ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद कुछ दिनों तक जॉब किया, लेकिन अंत में खेती करने का मन बना लिया. असल में नौकरी करने के बाद सफलता बहुत देर में प्रयास करने के बाद मिलती है. सैलरी भी अच्छी नहीं थी, लेकिन मुझे लगा कि नौकरी में परिवार को लेकर इधर से उधर भागना पड़ता है और मेरे पिता के पास खेत थी, तो मैंने समय बर्बाद न कर खेती की ओर गया. पिता चाहते नहीं थे कि मैं खेती करूँ, उनसे काफी दिनों तक मन-मुटाव चलता रहा, पर मैंने का 1987 से खेती का काम शुरू कर दिया.

बदला कृषि पद्यति

प्रेम सिंह 1987 से 89 तक कन्वेंशनल फार्मिंग किया, जिसमे रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग कर, एक ही तरह की फसलें उगाना था. जिसमे धान और गेहूँ बहुत मात्रा में उत्पन्न होते रहे. पिता की तरह परम्परागत खेती में कुछ अधिक कर नहीं पा रहा था.दो साल बाद जब उन्होंने डायरी पलती तो देखा कि जितनी आमदनी थी. फसल बेचने के बाद बहुत कम पैसे हाथ आते थे क्योंकि उसमे से अधिकतर पैसा रासायनिक उर्वरकों, बीज, पशुओं की दवाइयां आदि खरीदने में लग जाता था. 60 हज़ार रुपये ट्रेक्टर की क़िस्त के लिए बैंक में जाता था. हाथ में 30 से 35 हज़ार ही एक साल में बच पाता था. इसमें 4 भाइयों के परिवार को पालना कठिन था. बीमारी, पढाई-लिखी सब में पैसों की जरुरत थी.

बदला खेती करने का तरीका

प्रेम सिंह कहते है कि साल 1989 में मेरे अंदर खेती के तरीके को बदलने की इच्छा पैदा हुई. मैंने  बागवानी, फ्लोरीकल्चर, खेती की लागत में कमी करने की कोशिश की, जिसमे एक जुताई में ही साल में एक से अधिक फसलों का तैयार हो जाना, आदि पर विचार करने लगा. इस सोच के साथ मैंने रूरल मैनेजमेंट में एमबीए कर लिया, क्योंकि मेरी सफलता न मिलने की वजह मैं अपने कम ज्ञान को समझ रहा था. ऐसे ही वर्ष 1992 से 1995 तक आते-आते वैकल्पिक व्यवस्था के परिणाम आने लगे. मैं गुड़ बनाने लगा, उसमे सालाना डेढ़ लाख रुपये तक आमदनी होने लगी, इसके बाद फ़ूड प्रोसेसिंग, दलिया बनाने का काम आदि भी शुरू कर दिया, इससे आमदनी में खूब वृद्धि हो गई. इससे पैसे भी मिलने के अलावाकईयों को रोजगार भी देने लगा. आमदनी में बृद्धि होने से कर्जमुक्ति मिली. उस समय मुझे पता नहीं चल पा रहा था कि मैं क्या कर रहा हूँ, क्योंकि तब जैविक खेती का प्रचलन नहीं था. 2002 में पता चला कि यही वैकल्पिक विधि है.

किये संसाधनों पर काम

किसान प्रेम सिंह का आगे कहना है कि धीरे-धीरे मैंने जो जरूरतें एक अच्छी खेती के लिए थी, उसपर काम किया, जो निम्न है, मसलन जल संतुलन का काम, जिसमे गढ्ढा खोद कर तालाब बनाया गया, जिसमे बारिश का पानी रुकता था और बिना पैसे के खेतों में साफ पानी से सिंचाई कर लेता था.उर्वरता संतुलन के लिए गाय, भैस, बकरी, मछली, मुर्गी, आदि सब पालने की वजह से खाद की समस्या दूर हो गई, क्योंकि इससे कम्पोस्ट खाद मिल जाने लगा. खेती में रासायनिक उर्वरकों के बदले कम्पोस्ट खादों का प्रयोग करने लगे, जो पशु-पालन से आने लगी. खाद खरीदने के पैसे में कमी आ गयी, इसके अलावा गाय,भैस, मुर्गी, मछली से आमदनी के स्त्रोत भी बढ़ने लगे. मैंकई प्रकार के कम्पोस्टिंग  बनाता हूँ. पहले सभी भाइयों ने साथ मिलकर काम किया, लेकिन अब सब अलग-अलग काम करते है, बाग़ वही है, लेकिन हम सभी चारों भाई पैसा बाँट लेते है.

मुनाफा कैसे हो

प्रेम सिंह के पास खेती बहुत अधिक है,वे अपने गांव बडोखर खुर्द में रहते है,जबकि एक भाई महोबा गांव में है, दूसराहरदोई में, पिता की खेत के अलावा माँ की प्रॉपर्टी भी उनके पास आई है, क्योंकि माँ के परिवार में कोई किसानी करने वाला नहीं है. खेत छोटे-छोटे है,लेकिन कई जगह है. कहीं 10 बीघे,कहीं 15 तो कहीं 5 बीघे ऐसे बंटे हुए खेत है. इसलिए उनके भाईयों को भी उनकी तरह ही अलग-अलग जगहों पर जाकर खेती करना पड़ता है. इस काम के लिए उन्हें श्रम करने वालों की आवश्यकता होती है. इस समय प्रेम सिंह के पास 10 लोग स्थायी रूप से साथ रहते है, काम करते हुए ही सभी लोग प्रशिक्षित हो गए है. उन्हें ट्रेनिंग की जरुरत नहीं होती, देहात में जन्मजात सीखे रहते है. वर्ष 1995 के बाद उनकी खेती अच्छी चलने लगी. साल 2004 के बाद में बाहर से लोग उनके पास आने लगे औरउन्हें अपनी खेती करने की विधि को एक्सप्लेन करने के लिए बुलावा भी आने लगा.एक बार प्रेम सिंह ने एक विदेशी से उनके पास आने की वजह जाननी चाही, तो उन्हें पता चला कि  यहाँ कीखेती की कुछ खास पद्यतिउन्हें पसंद है. प्रेम सिंह ने निम्न विषयों पर अधिक ध्यान दिया.

  • जल संतुलन
  • वायुऔर ताप का संतुलन, जो पेड़ पौधों के लगाने से हुआ,
  • उर्वरता संतुलन
  • उर्जा संतुलन, जिससेयहाँ 11 किलोवाट सोलर एनर्जी मिलती है,
  • सामाजिक संतुलन –उनकी माँ कहती थी कि जमीन उनकी होने पर भी वे उसका मालिकनहीं, यह एक सामाजिक जिम्मेदारी है, जिसमे अधिक से अधिक लोग जुड़ कर अच्छा काम करें. यहाँ वेतन देने का काम नहीं होता, साल भर का मेहनताना पहले तय हो जाता है. प्रोसेसिंग काउंटर से ही लोग आकर उचित मूल्य देकर सामान ले जाते है, कोई बाज़ार माल बेचने नहीं जाता.

बने किसान देश हो खुशहाल

साल 2010 में कलबुर्गी में ‘भारत विकास सम्मेलन’ हुआ था. वहां देश के 10 पुरस्कृत किसानों में से मैं भी एक किसान प्रेम सिंह भी थे. वे कहते है कि पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भाषण के दौरान 5 बच्चों को प्रश्न पूछने का मौका दिया. उसमे से एक लड़के ने अंत में उनसे पूछ लिया कि वे डॉक्टर, इंजिनियर, नेता, ब्यूरोक्रेट्स आदि बनने के लिए प्रेरित करते है, लेकिन किसी को किसान बनने के लिए प्रेरित क्यों नहीं करते?किसान और खेती के बिना देश और देश का भविष्य क्या होगा?इस प्रश्न ने मुझे हिला कर रख दिया, क्योंकि किसी के पास इसका जवाब नहीं था. अगले दिन सभी अखबारों की सुर्ख़ियों में जब ये खबर छपी, तो मैंने इसपर विचार करने की सोची, क्योंकि किसान और किसानी के बारें में किसी के पास कोई उत्तर नहीं था.

क्या है आवर्तनशील खेती

किसान प्रेम सिंह कहते है कि मैंने अपने आसपास के सभी किसानों से बातचीत की और खुद कुछ करने की योजना बनाई, क्योंकि संसद और नेता कोई भी इसमें कुछ नहीं करते. 6 महीने बाद सभी ने तय किया कि स्कूल कॉलेजों के इतिहास में राजा-रजवाड़े के बारें में पढ़ाया जाता है,जिन्होंने हमें लूटा,जबकि किसान के बारें में कभी नहीं पढ़ा जाता, इसलिए मैंने साल 2011 में एक किताब किसान की जिंदगी के बारें में लिखा और एक म्यूजियम किसानी में प्रयोग किये जाने वाली वस्तुओं को लेकर बनाया, ताकि बाहर से आने वालों को भी काम का अंदाजा मिले.इसे मैंनेआवर्तनशील प्राकृतिक खेती का नाम दिया. स्वास्तित्व विकास पर आधारित ये उन्नत खेती है.

विदेशी किसानो की भीड़

प्रेम सिंह का कहना है कि किसान की स्वायत्तता पर मैंने अधिक जोर दिया, जिसमें किसान  बीज, उर्जा, पानी, विचार सबअपने हिसाब सेकरें, इसकी उन्हें आज़ादी हो, क्योंकि गांव में सभी किसान का पुश्तैनी खेती है और वे जन्म के बाद से ही खेती के बारें में जानना शुरू कर देते है.जल, उर्जा, उर्वरता आदि में संतुलन के बाद समृद्धि आती है, अर्थात् प्राकृतिक नियमों के अनुसार खेती करने से ही समृद्धिआती है.इसलिए मैंने खेत के कुछ भाग में फल, वन, पशु और घर में प्रयोग के सामान पैदा करता हूँ. बचने वाले सामान को प्रोसेस कर बाजार भेजते है. साथ ही आसपास के गाँव से आने वाले किसी को भी जरुरत के अनुसार सहायता करते है.अभी तक 23 देशों से लोग मुझसे मिलने आये है और इस खेती को करने के तरीके को जाना है.

अमेरिका, इजराइल और अफ्रीका जैसे समृद्ध देशों से भी किसानों और विशेषज्ञों का तांता भी प्रेम सिंह के खेतों में लगा रहता है. आज पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन और संसाधनों की कमी का सामना कर रही है, ऐसे में भारतीय किसान द्वारा ईजाद की गई आवर्तनशील खेती की ये तकनीक बड़े खर्चों को बचाने में कामयाब हो रही है.

युवाओं का बढ़ता रुझान

किसान आगे कहते है कि पेंडेमिक के बाद एक परिवर्तन मैंने यूथ में देखा है. करीब 80 प्रतिशत युवा नौकरी छोड़ या नौकरी चले जाने की वजह से खेती सीखने आ रहे है. ये नया ट्रेंड विकसित हुआ है. असल में इन युवाओं को समझ में आया है कि केवल नौकरी कर अपने पैसों को बाहर के जंक फ़ूड और डॉक्टर पर खत्म करदेते है और अंत में एक कफन में ही जाना पड़ता है. इसके अलावा एककर्मचारी एक अमीर व्यक्ति को ही अमीर बनाते जाते है और 60 साल के बाद उन्हें अयोग्य घोषित कर रिटायर्ड कर दिया जाता है.

नीतियों में बदलाव ठीक नहीं

प्रेम सिंह कहते है कि हर नई सरकार को नीतियाँ बदलना ठीक नहीं.यही वजह है कि व्यापार में अब अस्थिरता आ गयी है. किसी भी व्यवसाय में स्थिरता लाने में बहुत समय लगता है. इसलिए भी लोग नौकरी छोड़कर किसानी सीखने चले आते है. बदलती नीतियों की वजह से किसान समस्याग्रस्त हो जाते है.इस सरकार ने किसानों के भले के लिए नीतियाँ बनाई थी, लेकिन इसे लागू करने में किसानों का विरोध हो रहा था, तो तुरंत इसे वापस लेनी चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कानून अगर बन जाती, तो भारत सरकार को दिसम्बर या जनवरी तक बाहर से गेहूँ खरीदने की नौबत आती और जनता की स्थिति बहुत ख़राब होती. पूरा सामान व्यापारियों के पास चले जाने पर ग्राहकों को अधिक पैसे से उसे खरीदने पड़ते, क्योंकि व्यापारियों ने उसे अधिक दाम पर किसानों से ख़रीदा है. युक्रेन की युद्ध भी देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर कर दिया है.देखा जाय तो सरकार की नीतियों के वापस लेने तक खाद्यान्न का बहुत बड़ा हिस्सा व्यापारी ले गए है. अगर सरकार को किसी बात की जानकारी नहीं है, तो उन्हें चुप रहना चाहिए.उसे छेड़-छाड़ करना ठीक नहीं. सरकार की नीतियाँ ठीक नहीं थी और इसे हटा लेना ही देश के लिए हितकारी रहा.

पुश्तैनी है किसानी

प्रेम सिंह के परिवार के सभी इस व्यवसाय से जुड़े है, बच्चे भी यही काम करेंगे. बेटा वकालत के साथ खेती का भी काम करता है. शिविर का आयोजन प्रेम सिंहहर साल करते है और उसके ज़रिये लोगों तक जागरूकता फैलातेहै.करीब 500 किसानों ने मिलकर सरकार से प्राकृतिक खेती का ऐसा सवरूप जो जल, वायु, ताप, उर्वरता, उर्जा, समाज संतुलित कर, आवर्तनशील खेती के बारें में जानकारी देने के लिए समय-समय पर वर्कशॉप का आयोजन किया जाय, ताकि लोगइस प्रकार की खेती से भ्रमित न हो.

आर्थिक संकट विश्व में

श्री लंका में खेती करने की वजह से आर्थिक संकट आने के बारें में पूछने पर प्रेम सिंह कहते है कि ये केमिकल लॉबी की एक साजिश है, क्योंकि प्राकृतिक खेती से उपज कम नहीं होती, बार-बार केमिकल डालने से खेती की उर्वरता कम हो जाती है और उसका खामियाजाकिसान और आम लोग भुगत रहे है. देखा जाय तो प्राकृतिक खेती में किसी प्रकार का पैसा नहीं लगता. श्री लंका के सरकार के पास केमिकल खरीदने का पैसा नहीं था, तो उन्होंने प्राकृतिक तरीके से खेती करने का सुझाव दिया था, लेकिन मिट्टी की उपजाऊ कम हो जाने से फसल कम हुई. इसमें केवल खेती ही नहीं सरकार की नीतियां भी गलत है.

किसान प्रेम सिंह आगे भी कृषि से जुडी विषयों पर युवाओं को जागरूक बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रहे है, क्योंकि कृषि में उन्नति ही देश को उन्नत बना सकती है और सही खेती करने से खाद्य समस्या भी कम हो सकती है.

फैन: क्या था शीला बूआ की नाराजगी का कारण

करीब 8 महीने पहले शीला बूआ का अपने भतीजे राजीव की शादी के अवसर पर सप्ताह भर के लिए कानपुर से दिल्ली आना हुआ था. उस के बाद अब वे 1 महीने के लिए अपने छोटे भाई शंकर के घर रहने आई थीं.

राजीव की बहू मानसी अपने कमरे से निकल कर जब उत्साहित अंदाज में भागती सी उन के पास आई तब उस ने जींस और टौप पहना हुआ था. बूआ के माथे में पड़े बल देख कर शंकर, उन की पत्नी सुमित्रा और राजीव तीनों समझ गए कि नई बहू का पहनावा उन्हें पसंद नहीं आया. बूआजी की नाराजगी से अनजान मानसी ने पहले उन के पैर छुए और फिर बड़े जोश के साथ गले लगते हुए बोली, ‘‘मैं ने मम्मी से आप की पसंद की चाय बनानी सीख ली है. आप के लिए चाय मैं ही बनाया करूंगी, बूआजी.’’

‘‘तुम्हारे शरीर से पसीने की बदबू आ रही है,’’ उस की बात से खुश होने के बजाय बूआ ने नाक सिकोड़ कर उसे परे कर दिया.

‘‘आप के आने से पहले मैं व्यायाम कर रही थी. जब आप की आवाज सुनी तो मुझ से रुका नहीं गया और भागती हुई मिलने चली आई. मेरे नहाते ही पसीने की बदबू गायब हो जाएगी.’’

‘‘क्या तुम अभी तक नहाई नहीं हो?’’ बूआ ने दीवार पर लगी घड़ी की तरफ देखा, जिस में 11 बज रहे थे.

‘‘आज रविवार है, बूआजी.’’

‘‘उस से क्या हुआ?’’

‘‘रविवार का मतलब है सब कुछ आराम से करने का दिन.’’

‘‘अच्छे घर की बहुओं की तरह तुम्हें रोज सूरज निकलने से पहले नहा लेना चाहिए,’’ बूआ ने तीखे स्वर में उसे डांट दिया.

‘‘आप के हुक्म को मान कर मैं संडे को भी जल्दी नहा लिया करूंगी. अब मैं आप के लिए चाय बना कर लाऊं?’’ बूआ की डांट का बुरा न मान मानसी मुसकराती हुई बोली.

‘‘हां, ले आओ बहू,’’ सुमित्रा ने अपनी बहू को बूआजी के सामने से हटाने की खातिर जवाब दिया, पर उन की यह तरकीब सफल नहीं हुई.

बूआ ने सुमित्रा से ही नाराजगी से घूरते हुए पूछा, ‘‘कहीं तुम ने भी बिना नहाए रसोई में घुस कर काम करने की आदत अपनी पढ़ीलिखी बहू से तो नहीं सीख ली है?’’

‘‘बिलकुल नहीं, दीदी. चाय मैं ही बना कर लाती हूं,’’ सुमित्रा अपनी जान बचाने को रसोई की तरफ चल पड़ीं.

‘‘और मैं आप से ढेर सारी बातें करने को फटाफट नहा कर आती हूं,’’ मानसी झुक कर बूआजी के गले लगी और फिर तुरंत अपने कमरे की तरफ भाग गई.

‘‘यह तो साफ दिख रहा है कि बहू अपने घर से कोई अदबकायदा सीख कर नहीं आई है, पर तुम तो उसे इज्जतदार घर की बहू की तरह ढंग से रहना सिखाओ… इसे इतना ज्यादा सिर चढ़ा कर सब रिश्तेदारों के बीच में अपना मजाक उड़वाने का इंतजाम न करो,’’ इस तरह की बातें करते हुए बूआ चाय आने तक शंकर और राजीव की क्लास लेती रहीं.

दोनों उन की सारी बातें खामोशी से सुनते रहे. बूआजी के सामने उलटा बोलने या उन के कहे को टालने की हिम्मत किसी में नहीं थी.

‘‘दीदी, अब आप ही उसे काबिल और समझदार बना कर जाना. मैं बाजार हो कर आता हूं,’’ चाय का कप बूआ के हाथ में आते ही शंकर अपनी जान बचा कर घर से निकल गए.

राजीव बूआजी की अटैची को उठा कर उसे गैस्टरूम में रखने के बहाने से वहां से खिसक लिया. बेचारी सुमित्रा अपनी ननद का लंबा लैक्चर सुनने के लिए तैयार हो उन के सामने सिर झुका कर बैठ गईं. उसी दिन शाम को ड्राइंगरूम में एकसाथ चाय पीते हुए राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारी में हुए घोटालों पर चर्चा हो रही थी.

‘‘जरा धीरे हंसाबोला कर, बहू,’’ मानसी को गुस्से से टोकने के बाद बूआजी ने शंकरजी की तरफ मुड़ कर चुभते लहजे में पूछा, ‘‘तू ससुर है या बहू का देवर? अब जरा गंभीर हो कर घर में रहना सीख.’’

किसी के कुछ कहने से पहले ही मानसी बोल पड़ी, ‘‘ये तो सचमुच मेरे दोस्त ससुरजी हैं, बूआजी. हमारे बीच…’’

मानसी अपनी बात पूरी नहीं कर सकी, क्योंकि उस की बात सुन कर अपनी हंसी रोकने के चक्कर में शंकर का खांसतेखांसते दम फूल गया.

‘‘बड़ों के सामने इतना ज्यादा बोलना तुम्हें शोभा नहीं देता है, बहू. तुम बड़ों का शर्मलिहाज करना सीखो,’’ सब को मुसकराते देख बूआ को तेज गुस्सा आया और उन्होंने मानसी को इतनी जोर से डांटा कि घर के हर सदस्य के चेहरे पर तनाव झलक उठा.

‘‘जी, बूआजी,’’ मानसी ने पल भर को अपने मुंह पर उंगली रखी और फिर फौरन उसे हटा कर बूआजी को चहकते हुए बताने लगी, ‘‘यह सारा कुसूर मेरे पापा का है. आप जब उन से मिलें, तो उन्हें जरूर डांटना. उन्होंने मुझे बचपन से ही किसी भी विषय पर अपने साथ खुल कर चर्चा करने की छूट दे रखी थी. अब मैं यहां पापा के साथ बातें करतेकरते जोश में भूल जाती हूं कि ये तो मेरे ससुरजी हैं. मुझे इन के सामने खामोश रहना चाहिए.’’

‘‘शंकर, तू इसे गलत व्यवहार करते देख कर डांटताटोकता क्यों नहीं है?’’

‘‘दीदी, मैं अब से टोका करूंगा,’’ शंकरजी के लिए अभी भी अपनी हंसी रोकना मुश्किल हो रहा था.

‘‘और मैं अपने को सुधारने का वादा करती हूं, पापा,’’ मानसी ने यों गरदन झुका ली मानों बहुत बड़ा जुर्म करते पकड़ी गई हो. यह देख सब की हंसी छूट गई.

‘‘तुम सब का तो इस जोकर लड़की ने दिमाग खराब कर दिया है,’’ बूआजी को अपनी हंसी रोकना मुश्किल लगा तो वे बड़बड़ाती हुईं अपने कमरे में चली गईं.

बूआजी के आने से घर का माहौल अजीब सा हो गया था. वे मानसी की कमियां गिनाते हुए नहीं थकती थीं. जब और कोई उन की ‘हां’ में ‘हां’ नहीं मिलाता तो वे नाराज सी नजर आतीं घर में घूमतीं.

‘‘तुम लोगों ने इसे जरूरत से ज्यादा सिर चढ़ा रखा है,’’ यह डायलौग वे दिन भर में न जाने कितनी दफा कहती थीं.

बूआ के आने के करीब 10 दिन बाद सुमित्रा के नैनीताल वाले चाचाजी का देहांत हो गया. शंकरजी और सुमित्रा को राजीव कार से नैनीताल ले गया. वे तीनों अगले दिन शाम तक लौटने वाले थे.

उन के जाने के बाद बूआजी पड़ोस में रहने वाली अपनी सहेली आरती के साथ शाम को बाजार घूमने निकल गईं वहां दोनों ने जम कर चाट खाई. बदपरहेजी का नतीजा यह हुआ कि रात के 9 बजतेबजते बूआजी की तबीयत खराब होनी शुरू हो गई. उन्हें उलटियां शुरू हो गईं. बाद में जब दस्त भी शुरू हो गए तो उन्हें बहुत कमजोरी महसूस होने लगी. मानसी कालोनी के बाहर से तिपहिया स्कूटर ले कर आई और उन्हें डाक्टर को दिखाने चल दी.डाक्टर के वेटिंगरूम में इंतजार कर रहे मरीजों की काफी भीड़ थी पर वह बूआजी को ले कर सीध डाक्टर साहब के कक्ष में घुस गई. कंपाउंडर ने जब उन्हें रोकने की कोशिश की तो मानसी ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘जो उलटीदस्त कर कर के मरा जा  रहा है, उस मरीज को इंतजार करने को कहना गलत है. डाक्टर साहब पहले इस सीरियस मरीज को ही देखेंगे.’’

डाक्टर भी बूआजी को लाइन के बिना पहले देखने की उस की प्रार्थना को टाल नहीं सके. उन्होंने बूआजी की जांच करने के बाद दवा लिख दी. घर आ कर बूआजी को पहली खुराक लेने के कुछ देर बाद से आराम मिलना शुरू हो गया. मानसी पूरे जोश के साथ उन की तीमारदारी में जुट गई. उस ने बूआ से पूछ कर मूंग की दाल की खिचड़ी बनाई. बूआजी का कुछ खाने का मन नहीं कर रहा था पर मानसी ने सामने बैठ कर उन्हें प्यार से कुछ चम्मच खिचड़ी खिला ही दी. बूआजी को 2 घंटे बाद दर्द बढ़ने लगा तो उन्होंने घबरा कर मानसी से पूछा, ‘‘अगर रात को मुझे ले कर डाक्टर के यहां जाना पड़ा तो किसे बुलाएगी?’’

‘‘मैं हूं न, बूआजी. आप किसी बात की फिक्र न करो,’’ मानसी ने बूआजी के माथे का चुंबन ले कर इतने आत्मविश्वास से कहा कि बूआजी की सारी टैंशन दूर हो गई.

रात को नैनीताल से फोन आया तो मानसी ने अपने ससुरजी को भी आश्वस्त कर दिया, ‘‘चिंता की कोई बात नहीं है. मैं सब संभाल लूंगी.’’ रात में जब भी बूआजी की आंख खुली उन्होंने मानसी को जागता पाया. वह हर बार उन्हें नमकचीनी के घोल के कुछ घूंट पिला कर ही मानती. करीब 12 बजे जब उन का बुखार बढ़ने लगा तो मानसी ने काफी देर तक उन के माथे पर गीली पट्टियां रखीं. बुखार कम हुआ तो बूआजी की कुछ देर को आंख लग गई. फिर अचानक रात में उन्हें इतनी जोर से उलटी हुई कि वे अपने कपड़े व पलंग की चादर को खराब होने से नहीं बचा पाईं.

‘‘अब चिंता की कोई बात नहीं. इस बार पेट में बची बाकी चाट भी बाहर आ गई है. देखना, अब आप की तबीयत सुधरती चली जाएगी, बूआजी.’’

मानसी की बात सुन कर कष्ट भुगत रहीं बूआजी मुसकराने से खुद को रोक नहीं पाईं. मानसी ने उन के कपड़े उतरवाए. तौलिया गीला कर के पूरा बदन साफ किया. बाद में पलंग की चादर बदली. फिर उन्हें नए कपड़े पहनाने के बाद उन का सिर इतने अच्छे तरीके से दबाया कि बूआजी को 15 मिनट में गहरी नींद आ गई. सुबह 7 बजे के करीब बूआजी की नींद खुली तो उन्होंने मानसी को पलंग के पास कुरसी पर बेसुध सा सोते पाया. उन्होंने उस के सिर पर प्यार से हाथ रखा तो उस ने फौरन चौंक कर आंखें खोल दीं. बूआजी ने कोमल स्वर में मानसी से कहा, ‘‘बहू, अब तू अपने कमरे में जा कर आराम से सो जा.’’

‘‘अब आप की तबीयत कैसी है?’’ मानसी की आंखों में चिंता के भाव झलक उठे.

‘‘बहुत अच्छा महसूस कर रही हूं. आखिरी उलटी करने के बाद बहुत चैन मिला था.’’

‘‘मैं नहा कर आप के लिए चाय बनाती हूं.’’

‘‘अरे, नहीं. तुम आराम करो. मैं खुद बना लूंगी.’’

‘‘तब तो आप के हाथ की बनी चाय मैं भी पीऊंगी,’’ मानसी छोटी बच्ची की तरह तालियां बजा कर खुश हुई तो बूआजी भी खुल कर मुसकरा उठीं.

दोनों ने साथ चाय पी. फिर रात भर की थकी मानसी बूआ की बगल में सो गई. मानसी 12 बजे के करीब उठी तब तक बूआजी ने रोटीसब्जी बना दी थी. साथसाथ लंच करते हुए दोनों के बीच खूब गपशप चलती रही. शाम को शंकर, सुमित्रा और राजीव लौट आए. बूआजी को स्वस्थ देख कर उन सब की आंखों में राहत के भाव उभरे. बूआजी ने मानसी को अपनी छाती से लगा कर उस की खुले दिल से तारीफ की, ‘‘अब मेरी समझ में आ गया है कि क्यों तुम सब इस बातूनी लड़की के फैन हो. यह सचमुच हीरा है हीरा. कल रात क्या डांटा था इस ने कंपाउंडर को… इस ने ऐसी फर्राटेदार अंगरेजी बोली कि डाक्टर साहब की भी मुझे लाइन के बगैर देखने से इनकार करने की हिम्मत नहीं हुई.

‘‘सारी रात जाग कर इस ने मेरी देखभाल की है. तुम सब कल्पना भी नहीं कर सकते कि नमकचीनी का घोल पीने से इनकार करने पर कितनी जोर से यह मुझे डांट देती थी. इस हिम्मती लड़की ने कल रात न खुद का हौसला खोया और न मुझे खोने दिया.

‘‘घर के काम करना तो यह बातूनी लड़की देरसवेर सीख ही जाएगी पर इस के जैसी चुलबुली, हंसमुख और करुणा से भरा दिल रखने वाली बहू बहुत मुश्किल से मिलती है. राजीव, तू ने अपने लिए बहुत अच्छी लड़की चुनी है.’’

भावुकता का शिकार बनी बूआजी ने जब प्यार से राजीव और मानसी का माथा चूमा तो उन की आंखों में आंसू छलक उठे. अब बूआ के सामने मानसी को कोई कुछ नहीं कह सकता था, क्योंकि घर के बाकी लोगों की तरह अब वे भी सोने का दिल रखने वाली मानसी की जबरदस्त प्रशंसक बन गई थीं.

विधवा विदुर- भाग 2: किस कशमकश में थी दीप्ति

देविका ने सोचना शुरू किया. दिल और दिमाग में एक द्वंद्व चल रहा था पर दिमाग पर दिल हावी हो गया और देविका ने प्यार को चुना. पापा ने उन दोनों की तरफ देखते हुए कहा कि आज से उन लोगों का देविका से कोई वास्ता नहीं रह गया है और वे दोनों इसी समय उन के घर से निकल जाएं.

कोई रास्ता न देख कर देविका और रजनीश ने आर्य समाज मंदिर में शादी कर ली. रजनीश की पोस्टिंग गाजियाबाद के बैंक में थी, इसलिए बैंक के पास के ही एक महल्ले में 2 कमरों का मकान किराए पर ले लिया. उन के मकान के पास एक दीप्ति नाम की विधवा औरत अपने 4 साल के इकलौते बेटे शान के साथ रहती थी. उन के पति पुलिस में थे और एक दंगे के दौरान शहीद हो गए थे.

दीप्ति और देविका की मुलाकात अकसर मौर्निंग वाक के दौरान होती. देविका बड़े अच्छे सलीके से पेश आती थी दीप्ति से और फिर दोनों दोस्त बन गईं.

देविका और रजनीश दोनो के घर वालों ने उन से अपना नाता तोड़ रखा था जिस की खलिश उन दोनों के मन में हमेशा बनी रहती थी. देविका का शोधकार्य पूरा हो चुका था और उस ने विश्वविद्यालय में प्रवक्ता की नौकरी के लिए आवेदन भी कर दिया था.

कुछ दिनों के बाद देविका का इंटरव्यू हुआ और उसे नौकरी पर रख लिया गया.

दोनों की शादी को 3 साल पूरे होने को आए थे कि देविका गर्भवती हो गई, हालांकि वह अभी बच्चा नहीं चाहती थी फिर भी दोनों ने पहले बच्चे को जन्म देने का फैसला कर लिया.

समय आने पर देविका ने एक सुंदर सी बेटी को जन्म दिया. उस का नाम परी रखा. रजनीश और देविका बहुत खुश थे.

इस खुशी में रजनीश ने अपने घर वालों को भी शामिल करना चाहा तो उस ने घर फोन मिलाया पर किसी ने फोन नहीं उठाया. जब परी 5 साल की हुई तो उसी समय देश में कोरोना की दूसरी लहर आई और देविका को लील गई.

परी अनाथ हो गई थी. परिवार वाले पहले ही अपनी जिम्मेदारियों से पीछा छुड़ा चुके थे. कहना गलत नहीं होगा कि देविका के जाने से केवल परी ही नहीं बल्कि रजनीश भी अनाथ हो गया था.

एक तो देविका का गम, ऊपर से छोटी बच्ची को संभालना, उस के खानेपीने का ध्यान रखना, उस के कपड़े बदलना उस की हर छोटीबड़ी चीज को संभालना. मातृत्व कितना दुख देने वाला कार्य है यह रजनीश को अच्छी तरह से पता चल गया था.

‘वर्क फ्रौम होम’ भला कब तक चलता. बाहर की जिंदगी में सबकुछ तो नौर्मल हो गया था पर नौर्मल नहीं हुई थी तो रजनीश और परी की जिंदगी.

बच्ची की कई चीजों और जरूरतों को रजनीश बड़े अच्छे से मैनेज कर रहा था पर असली परेशानी तब आई जब उसे परी को छोड़ कर औफिस के लिए जाने का समय आया. आखिर किसके सहारे छोड़े वह परी को.

कौन उस की देखभाल करेगा. सोचता नौकरी ही छोड़ दे. यही तो आखिरी रास्ता बचा है उस के पास.

किसी ने राय दी कि क्रेच में छोड़ दो तो किसी ने बताया कि बोर्डिंग में डाल दो. बोर्डिंग स्कूल वाली बात रजनीश की सम झ में आ गई. बोर्डिंग में डाल देने से परी का ध्यान भी सही से रखा जाएगा और फिर हर महीने खुद रजनीश ही मुलाकात करने चला जाया करेगा.

रजनीश ने मन ही मन सोच लिया कि वह जल्द ही परी को बोर्डिंग में दाखिल करा आएगा और इस बाबत स्कूलों की उस ने जानकारी भी लेनी शुरू कर दी.

‘‘मैं आप से कुछ कहना चाहती हूं रजनीशजी,’’ एक महिला का स्वर सुन कर रजनीश चौंक गया. मुड़ कर देखा तो दीप्ति अपने बच्चे शान को ले कर खड़ी थी, ‘‘भला बोर्डिंग में परी का एडमिशन कराने से आप की समस्याएं खत्म हो जाएंगी? आप अपनी जिम्मेदारियों से भाग क्यों रहे हैं.’’

दीप्ति की बात सुन कर थोड़ा खीज सा गया रजनीश और फिर उस ने कहा कि तो वह क्या करे? इस बच्ची को कहां ले जाए? नौकरी छोड़ कर बेबीसिटिंग करेगा तो भूखे मरने की नौबत आ जाएगी.

‘‘आप परी को औफिस जाते समय मेरे घर छोड़ दिया करो और आते समय ले जाया करो. मेरा और मेरे बेटे का मन भी इसके साथ लगा रहेगा और फिर मांबाबूजी भी परी को देख कर खुश होंगे,’’ देविका के प्रति प्रेम दीप्ति के मन से छलक रहा था.

बात थोड़ी अजीब सी जरूर लगी कि कैसे दीप्ति ध्यान रख पाएगी किसी और की बच्ची का. क्यों करेगी वह इतना सब? पर रजनीश की मजबूरी भी थी और यह प्रस्ताव भी अच्छा था. कुछ सोचविचार के बाद उस ने हामी भर दी और वह परी को दीप्ति के पास छोड़ कर औफिस जाने लगा.

बच्ची को एक मां की तरह ध्यान रखने वाली आंटी मिल गई थी, दीप्ति के बूढ़े सासससुर जब अपने पोते और परी को साथ खेलते देखते तो उन्हें बड़ी खुशी मिलती.

औफिस से आते ही रजनीश परी को लेने सीधा दीप्ति के घर चला जाता, जहां पर परी को दीप्ति के बेटे के साथ खेलते देख कर उसे भी बड़ा सुकून मिलता.

दीप्ति के सासससुर रजनीश का दर्द सम झते थे और अकसर शाम की चाय के लिए अपने साथ बैठा लेते थे और कभीकभी खाने पर भी बुला लेते थे. हालांकि इस तरह से दीप्ति के घर पर परी को छोड़ कर जाना और खुद का आनाजाना रजनीश को थोड़ा अजीब तो लगता था पर उस के सामने मजबूरी थी.

विधवा दीप्ति अपनी मर्यादा जानती थी, इसलिए वह रजनीश से अधिक बात नहीं करती और अगर परी के संदर्भ में उसे कुछ कहना भी होता तो वह अपने सासससुर की उपस्थिति में ही रजनीश से बात करती.

‘‘आग और फूस एक पास रखे हों और चिनगारी न भड़के यह तो संभव है पर एक

जवान विधवा और एक विधुर को इस प्रकार से एकदूसरे की मदद करते हुए देख कर भी बातें न बनें यह संभव नही है, सब से पहले दीप्ति की सास से महल्ले की एक औरत ने कहा, ‘‘देखो तुम्हारी बहू बच्ची का खयाल रख रही है यह तो अच्छी बात है पर कहीं उस विधुर का खयाल भी न रखने लगे. सम झा देना अपनी बहू को.’’

जब विटामिन डी की हो कमी तो ऐसे करें ठीक

विटामिन डी का उपनाम “सनशाइन विटामिन” मुख्य रूप से शरीर द्वारा त्वचा पर सूर्य के प्रकाश की क्रिया से शुरू होने वाली प्रक्रिया के माध्यम से निर्मित होता है. स्वस्थ हड्डियों को विकसित करने और बनाए रखने के लिए शरीर को कैल्शियम की आवश्यकता होती है – और विटामिन डी शरीर द्वारा कैल्शियम के अवशोषण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. विटामिन डी के आहार स्रोतों में डेयरी उत्पाद और नाश्ता अनाज (दोनों विटामिन डी के साथ मजबूत होते हैं), गढ़वाले सोया और चावल के पेय, गढ़वाले संतरे का रस, मार्जरीन, और डी विटामिन की थोड़ी मात्रा भी पनीर और अंडे की जर्दी में पाए जाते हैं.

डॉ महेंद्र डडके, विभागाध्यक्ष – इंटरनल मेडिसिन, जुपिटर अस्पताल पुणे का कहना है-

हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होने के अलावा यह विटामिन आपके पूरे शरीर में कई महत्वपूर्ण कार्य करता है. और जबकि कुछ खाद्य पदार्थ जैसे फोर्टिफाइड डेयरी उत्पाद और वसायुक्त मछली में यह विटामिन होता है, अकेले अपने आहार के माध्यम से पर्याप्त प्राप्त करना मुश्किल है.इसलिए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि विटामिन डी की कमी सबसे आम पोषण संबंधी कमियों में से एक है, दुनिया भर में अनुमानित 1 अरब लोगों में विटामिन के निम्न रक्त स्तर होते हैं.

पर्याप्त विटामिन डी की आवश्यकता और कैसे प्राप्त करें-

विटामिन डी एक मोटा-घुलनशील विटामिन है जो हड्डियों के स्वास्थ्य और प्रतिरक्षा समारोह सहित आपके शरीर के समुचित कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. कैंसर को रोकने में मदद करने के अलावा, यह कई पुरानी स्थितियों जैसे अवसाद, टाइप 2 मधुमेह, हृदय रोग और मल्टीपल स्केलेरोसिस से भी सुरक्षा प्रदान कर सकता है. जबकि विटामिन डी की कमी का कोई एक कारण नहीं है, कई पर्यावरणीय, आहार, जीवन शैली, आनुवंशिक और चिकित्सा कारकों की भूमिका हो सकती है. इसके अलावा, विटामिन डी की कमी बहुत कम या कोई लक्षण प्रस्तुत नहीं करती है जिससे यह पता लगाना और भी मुश्किल हो जाता है कि क्या किसी व्यक्ति में सनशाइन विटामिन का स्तर कम है. इसके प्रकट होने के कुछ तरीकों में पीठ दर्द, थकान, बालों का झड़ना, खराब घाव भरना और अवसाद के लक्षण शामिल हैं.

उपचार और रोकथाम

यदि आपको विटामिन डी की कमी हो रही है, तो आपका स्वास्थ्य देखभाल प्रोफेशनल आपके स्तर को ठीक करने के लिए निम्नलिखित विकल्पों में से किसी एक की सिफारिश कर सकता है.

  • विटामिन डी की खुराक आम तौर पर प्रचलित उपचार है और इसे आसानी से काउंटर पर खरीदा जा सकता है, लेकिन अपने स्वास्थ्य देखभाल प्रोफेशनल से खुराक की जांच करें. गंभीर कमी के लिए, डॉक्टर मजबूत खुराक की सिफारिश कर सकता है या विटामिन डी इंजेक्शन पर भी विचार कर सकता है.
  • खाद्य स्रोत जैसे अधिक विटामिन डी युक्त खाद्य पदार्थ जैसे वसायुक्त मछली, अंडे की जर्दी, फोर्टिफाइड दूध, जूस, दही आदि खाने से भी आपके विटामिन डी के स्तर में वृद्धि हो सकती है.
  • इसके अलावा, पूरक और विटामिन डी से भरपूर आहार के अलावा, डॉक्टर विटामिन को उसके प्राकृतिक स्रोत – सूरज की रोशनी से लेने की भी सिफारिश कर सकता है. हालांकि, अतिरिक्त पराबैंगनी जोखिम के नकारात्मक प्रभावों से सावधान रहें और आवश्यक सावधानी बरतें.

क्या अतिरिक्त विटामिन डी अच्छे से ज्यादा नुकसान कर सकता है?

हां, विटामिन डी विषाक्तता के रूप में जाना जाने वाला अतिरिक्त विटामिन डी हानिकारक हो सकता है और विषाक्तता के लक्षणों में मतली, उल्टी, कमजोरी और वजन कम होना शामिल है. साथ ही, यह रक्त में कैल्शियम के बढ़ते स्तर के साथ-साथ किडनी के लिए भी हानिकारक हो सकता है जिससे हृदय गति में भ्रम, समस्या आदि हो सकती है.

विटामिन डी शरीर के कई कार्यों के लिए महत्वपूर्ण है, और इसलिए, इस विटामिन के पर्याप्त स्तर को बनाए रखना आवश्यक है. हालांकि, अधिक मात्रा में सेवन करने पर अधिक नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए, सुनिश्चित करें कि आप सही खुराक के लिए अपने स्वास्थ्य देखभाल प्रोफेशनल के संपर्क में हैं और उपचार कब तक जारी रखना है.

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