डिवोर्स या तलाक के कई महत्वपूर्ण कारण हैं- जैसे एक दूसरे के चरित्र पर शक होना, एक दूसरे का स्वभाव बर्दास्त न होना, संवादहीनता तथा और भी कई कारण. लेकिन हाल में जो एक कारण बहुत तेजी से उभरा है, वह है पति पत्नी के बीच फाइनेंशियल मुद्दों पर अस्पष्टता और एक दूसरे से असहमति. मशहूर पत्रिका ‘इकोनाॅमिक्स एंड पाॅलीटिकल वीकली’ के एक शोध के मुताबिक भारत में जैसे जैसे कृषि अर्थव्यवस्था खत्म हो रही है और सर्विस इकोनाॅमी बढ़ रही है, वैसे वैसे कमाने वाले पति, पत्नियों की संख्या भी बढ़ रही है और इसी के साथ ऐसे युगलों के बीच झगड़े, मनमुटाव और तलाक का सबसे बड़ा कारण वित्तीय मुद्दे होते जा रहे हैं.

साल 2016 में भारत में एक करोड़ 36 लाख लोग तलाकशुदा थे, जो कि तब तक की विवाहित आबादी का करीब 0.24 प्रतिशत था और कुल आबादी का 0.11 प्रतिशत थे. लेकिन याद रखिये ये ऐसे तलाकशुदा लोग थे, जिनका बकायदा अदालत से तलाक हुआ था. इन आंकड़ों में बड़ी संख्या में वे लोग शामिल नहीं हैं, जो बिना किसी तलाक के अलग अलग रह रहे थे और न ही ऐसे लोग शामिल हैं, जिन्होंने मुंहजबानी यानी तलाक, तलाक, तलाक कहकर तलाक हासिल किया था और बिना किसी लिखत-पढ़त के तलाकशुदा हो चुके थे. मतलब यह कि वास्तविक रूप से तलाकशुदा लोगों की संख्या और भी ज्यादा है.

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अगर यह देखना हो कि देश में सबसे ज्यादा तलाक कहां होते हैं तो मिजोरम देश में नंबर एक तलाक लेने वाला राज्य है और दूसरे नंबर पर उच्चतम तलाक दर वाला राज्य नागालैंड है. मिजोरम में कुल विवाहित लोगांे में से 4.08 प्रतिशत लोग तलाकशुदा हैं, तो नागालैंड में 0.88 प्रतिशत तलाकशुदा लोगों की आबादी हैं. एक करोड़ से ज्यादा की आबादी वाले राज्यांे में सबसे ज्यादा तलाक गुजरात में होते हैं, उसके बाद क्रमशः असम, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल आते हैं. लेकिन नोट करने वाली बात यह है कि मिजोरम और गुजरात दोनो ही राज्यों मंे हर चैथे व्यक्ति के तलाकशुदा होने के पीछे किसी न किसी रूप में वित्तीय मुद्दा कारण है.

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