सितारों की तरफ देखें और जरा विचार करें कि क्या कभी ब्रह्मांड की लाखों दुनिया में से किसी एक पर भी इंसान कभी पहुंच पाएगा? क्या चांद पर पहुंचने के प्रथम अभियान को कभी दोहाराया जा सकेगा? क्या कभी इंसान मंगल ग्रह पर अपने कदम रख पाएगा?

अगर हम कभी दूसरे ग्रह पर पहुंच पाए तो मुझे आशा है कि हमारे खोजकर्ता इस काम में कुत्ते के योगदान को याद रखेंगे. वैसे रूस ने पहली बार अंतरिक्ष में जाने की कोशिश की थी.

जीवित तौर पर अंतरिक्ष की कक्षा में भेजा जाने वाला जीव एक कुत्ता था. साइबेरियन कुत्ते लाइका को मास्को की सड़कों से उठा कर 3 नवंबर, 1957 को ‘स्पूतनिक’ नामक रौकेट में बैठा दिया गया था. वैज्ञानिकों ने उसे अंतरिक्ष में भेज तो दिया, मगर उस की सुरक्षित वापसी के लिए कोई इंतजाम नहीं किया. रौकेट के भीतर बढ़ती गरमी और तनाव के चलते रौकेट के अंतरिक्ष की कक्षा में पहुचने से पहले ही लाइका ने दम तोड़ दिया.

रौकेट की छोटी सी मशीन में बंद लाइका ने दम तोड़ने से पहले 7 घंटों तक जिस भय और तनाव को महसूस किया होगा, उस का अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. इस घटना के 40 सालों के बाद 1998 में सोवियत के वरिष्ठ वैज्ञानिक ओलेग गैजेंको ने इस के लिए माफी मांगी. गैजेंको भी उस मिशन का हिस्सा थे, जिस में लाइका को अंतरिक्ष में भेजा गया था.

अमानवीय व्यवहार

50 और 60 के दशक के बीच सोवियत के वैज्ञानिकों ने लगभग 57 कुत्तों को अंतरिक्ष में भेजा और वह भी 1 से ज्यादा बार. इस के लिए मादा कुत्तों को प्राथमिकता दी गई, क्योंकि वैज्ञानिकों का मानना था कि मेल कुत्तों की अपेक्षा मादा कुत्तों में रौकेट के भीतर का तनाव सहने की क्षमता ज्यादा है. इन मादा कुत्तों को ट्रेनिंग के दौरान 15-20 दिनों तक छोटे बौक्सों में बंद कर के रखा गया. उन्हें भी अंतरिक्ष के लिए ऐस्ट्रोनौट सूट्स में विशेषरूप से तैयार किया गया.

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