जनसंख्या पर नियंत्रण अच्छी बात है पर क्या औरत की कोख पर सरकार, समाज और धर्म का कब्जा होना चाहिए? क्या यह एक औरत के मौलिक प्राकृतिक अधिकार का हिस्सा नहीं है कि वह कब किस से सैक्स संबंध बनाए और उस से कब बच्चे पैदा करे या न करे? क्या एक औरत या उस की संतान को इस बात की सजा दी जा सकती है कि उस से तीसरा या चौथा बच्चा पैदा क्यों हुआ?

भारत सरकार अब चीनी सरकार की तरह जनसंख्या नियंत्रण की सोच रही है और प्रधानमंत्री ने यह बात 15 अगस्त के भाषण में दोहराई है. इंदिरा गांधी ने आपातकाल में इसे राष्ट्रीय प्राथमिकता मान कर लागू किया था. यह असल में वैयक्तिक स्वतंत्रता में दखल है और अगर इस के पीछे कट्टर हिंदुओं को खुश करने की नीयत हो तो आश्चर्य नहीं.आज का कट्टर हिंदू निचली व पिछड़ी जातियों और मुसलमानों के परिवारों में होने वाले ज्यादा बच्चों को देश की प्रगति में बाधा मान रहा है.

ये भी पढ़ें- अंधविश्वास की चपेट में जानवर भी

ऊंची जातियों के हिंदुओं ने तो तकनीक और पैसे के बल पर परिवार सीमित कर लिए हैं, पर जहां परिवार नियोजन महंगा है वहां जन्मदर काफी है.यहां यह समझ लेना चाहिए कि एक नया तीसरा या चौथा बच्चा हर औरत के लिए बोझ होता है. खुशी तो पहले 2 बच्चों में ही मिलती है, उस के बाद तो बच्चों को पालने में जिस तरह औरतों की कमर टूटती है, यह वे ही जानती हैं.

बच्चे होने से रोेकना उन के बस में नहीं होता, क्योंकि मर्द अपनी सैक्स की भूख मिटाने के लिए बिना परिणामों की चिंता किए अपना काम कर जाता है. अनपढ़ लोगों को न तो तकनीक समझ आती है और न ही वे इस का खर्च सहन कर सकते हैं.सरकार, समाज या कानून यदि धार्मिक वजह से परिवार नियोजन को थोपेगा तो यह गलत होगा. यह नारा बन कर रह जाएगा.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...