बैंकों पर अविश्वास पंजाब ऐंड महाराष्ट्र कोऔपरेटिव बैंक के ₹7 हजार करोड़ के घोटाले से ही नहीं पैदा होना शुरू हुआ है. यह बहुत पुराना है. बैंक न केवल कम ब्याज देते हैं, वे तरहतरह की अड़चनें लगा कर जमा करने वालों को तंग करते रहते हैं. सरकारी हों या निजी बैंक, एक बार खाता खोल लिया तो आप उन के गुलाम हो गए.

घंटों में आप की पासबुक अपडेट होगी, लाइनों में लग कर लंबे इंतजार के बाद पैसा मिलेगा, हस्ताक्षर मिलते नहीं कह कर कोई भी चैक भुगतान न करने की छूट है. अब रिजर्व बैंक औफ इंडिया और वित्त मंत्री ने मिल कर नो योर कस्टमर के मारफत हर ग्राहक को बंधक बना लिया है. इनकम टैक्स वाले पैन और आधार के सहारे हर पाईपाई का हिसाब मांग सकते हैं.

इसीलिए सहारा, मार्गदर्शी, संचिता जैसी सैकड़ों चिटफंड कंपनियां व नौनबैंकिंग फाइनैंस कंपनियां उग आईं जो ज्यादा ब्याज देती हैं, जिन के एजैंट घरघर जा कर ग्राहकों की सेवा करते हैं. पर जैसा हमारे यहां धार्मिक सोच है कि जो पैसा आया है वह जाएगा भी, एक बार इन के हाथों में गया तो मंदिर की हुंडी में गए पैसे की तरह ही है. भगवान की कृपा होगी तो वापस मिलेगा वरना कोरा आशीर्वाद ले कर घर लौटो.

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आंध्र प्रदेश की एग्रीगोल्ड कंपनी एक ऐसी ही चिटफंड कंपनी थी. 1995 से उस के मालिक वेंकट शंभू नारायण राव ने काम शुरू किया और 2014 तक 32 लाख लोगों से ₹10 हजार करोड़ से ज्यादा जमा कर लिए. पश्चिम बंगाल की शारदा चिटफंड से 4 गुना पैसा जमा करने वाली इस कंपनी को तो चंद्रबाबू नायडू का वरदहस्त भी मिला हुआ था. हालांकि 2016 में इन के मालिकों को गिरफ्तार कर लिया गया.

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