दुनिया को अलविदा कहने से पहले कुछ जरूरी कामों को पूरा करने की मैं ने एक लिस्ट बनाई है, जिस में ‘शार्क फिनिंग’ यानी शार्क की पीठ पर मौजूद धारदार पंख जैसी संरचना वाले अंग को पाने के लिए उस की हत्या जैसे अमानवीय कृत्य पर रोक लगाना सब से ऊपर है.

क्या है यह धंधा

शार्क मछलियां समुद्र की प्रमुख प्रजातियों में से हैं. इन का वजूद सीधेसीधे समुद्र और उस के अंदर रहने वाली दूसरी मछलियों की सेहत से जुड़ा है. यदि सागर से शार्क की प्रजाति समाप्त हो जाए तो दूसरी समुद्री प्रजातियों के भी विलुप्त होते देर न लगेगी. चीन के निवासी, चाहे वे अपने देश में हों या कहीं और शार्क के फिन का सूप पीना पसंद करते हैं. ये लोग फिन को उबाल कर किसी सादे सूप में डाल देते हैं. इस फिन में ऐसा कुछ नहीं होता, जो इंसान के शरीर के लिए फायदेमंद हो. फिर भी चीनी यह सूप बनाते हैं. यह कुछ ऐसा है कि कुछ परिवारों को हाथीदांत की बनी चीजों का शौक था तो उन का यह शौक पूरा करने के लिए पिछले 3 सालों में लगभग 20 हजार हाथियों को बेरहमी से मार दिया गया. खाने में शार्क फिन के इस्तेमाल को सामाजिक प्रतिष्ठा के तौर पर भी देखा जाता है और त्योहारों के अवसर पर भी इस का भरपूर प्रयोग किया जाता है.

शार्क फिन का इस्तेमाल चीनी दवाओं में भी किया जाता है. सूप की क्वालिटी के हिसाब से इस का रेट 10 डौलर से शुरू हो कर 100 डौलर तक होता है. चूंकि चीन के लोग अब समृद्ध हो गए हैं तो वे महंगी डिश भी अफोर्ड कर सकते हैं, जिस के चलते फिन के लिए शार्कों की मांग और शिकार दोनों बढ़ गए हैं और हमेशा की तरह इस बार भी इन का शिकार भारत में ही हो रहा है.

कैसे होती है शार्क की हत्या

शिकारी पहले शार्क को पकड़ने के लिए समुद्र में जाल लगाते हैं. जब शार्क उस में फंस जाती है तो धारदार हथियार से उस का फिन उस के शरीर से अलग करने के बाद उसे वापस पानी में छोड़ देते हैं. थोड़ी ही देर में लगातार खून बहने के कारण शार्क की तड़पतड़प कर मौत हो जाती है. शार्क के मांस में यूरिक ऐसिड की मात्रा अधिक होने के कारण इस का मांस अच्छा नहीं माना जाता है.

बढ़ रहा है घिनौना धंधा

क्या विश्व स्तर पर इस धंधे के बारे में लोगों के सोच से भारत में इस के व्यापार में कोई कमी आई है? नहीं, बल्कि यह तो हर साल तेजी से बढ़ रहा है. पूरे विश्व में शार्क फिन की मांग का 90% तो भारत से ही पूरा हो रहा है. यदि आप को लग रहा है कि इस व्यापार से भारत सरकार या भारतीय अर्थव्यवस्था को कोई फायदा हो रहा है तो आप गलत हैं, क्योंकि फिन का ज्यादातर निर्यात ब्लैक मार्केट के जरीए होता है. दरअसल, शार्क को पकड़ने से ले कर फिन बेचने तक, सारा धंधा ही अनियंत्रित तरीके से चल रहा है. कितनी शार्कों का शिकार किया जा सकता है या फिन कहां और किस तरह बेचे जा सकते हैं, इस को नियंत्रण करने के लिए कोई कानून नहीं बनाया गया है.

फिन निकालने के बाद शार्कों के शरीर की बरबादी, 1 फिन बेचने के फेर में 6-7 फिनों की बरबादी मछुआरों, शिकारियों के लिए आम बात हो गई है. इस कारण हजारों शार्क रोज मारी जा रही हैं. नौबत यहां तक आ गई है कि शार्कों की कुछ ही प्रजातियां बची हैं और बची हुई शार्कों में भी वयस्कों की संख्या बेहद कम है.

इस व्यापार के अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रकों ने भारत सरकार पर उंगली उठाते हुए बताया है कि शार्क फिन निर्यात के आंकड़ों की सरकारी रिपोर्ट और असली रिपोर्ट में बहुत अंतर है. भारतीय शार्क फिन निर्यात के बारे में ‘यूनाइटेड नेशंस फूड ऐंड ऐग्रीकल्चर और्गेनाजेशन’ और ‘हौंगकौंग इंपोर्ट्स फ्रौम इंडिया’ के आंकड़े बताते हैं कि असली रिर्पोट और सरकारी रिपोर्ट में लगभग 70 हजार मीट्रिक टन का अंतर है.

शार्कों को पकड़ने और फिन निकालने की आज्ञा छोटे मछुआरों को ही है ताकि उन की आर्थिक मदद हो सके. पर छोटे मछुआरे शिकार के लिए बेड़ों, हाथ से मछली पकड़ने के तरीकों और डोंगियों का इस्तेमाल करते हैं. आधुनिक जलपोतों की तरफ सरकार का ध्यान नहीं जाता जबकि भारतीय समुद्र से 70% शार्क इन्हीं से पकड़ी जाती हैं. ऐसे आधुनिक पोत उन छोटे और गरीब मछुआरों के पास नहीं हैं, जो अब मात्र 12% ही बचे हैं और धीरेधीरे इन की संख्या घट रही है. इन महंगे पोतों के मालिक बड़ीबड़ी आयात कंपनियां या अमीर व्यापारी हैं. इन व्यापारियों में कुछ ऐसे भी हैं जिन के पास विदेशी पासपोर्ट हैं.

सब से ज्यादा दोषी

शार्कों को पकड़ने और फिन की कालाबाजारी के प्रमुख दोषी अंडमाननिकोबार द्वीपसमूह, केरल, तमिलनाडु और गुजरात राज्य हैं. इन में से गुजरात के जलपोत पकड़ी जाने वाली शार्कों का आधा हिस्सा अकेले ही पकड़ते हैं. बची हुई शार्कों को अंडमाननिकोबार के निकट सागर से पकड़ा जाता है. यहां शार्क का मांस बेचने के लिए कोई स्थानीय बाजार नहीं है.

भारतीय सागरों में शार्क की 70 प्रजातियां पाई गई हैं. एक भी मछली पकड़ने वाला जहाज इन का शिकार करना बंद नहीं करता, न ही सरकार इन को ऐसा करने से रोकती है. इस मामले में भारत दूसरे देशों से बिलकुल अलग है, क्योंकि यहां विदेशों की तरह जहाजों से शिकार के आंकड़े नहीं मांगे जाते.

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