37 साल की अनुषा देओल महिला कालेज में लैक्चरर है. उस ने मनोविज्ञान में पीएचडी कर के अपने लिए यह फील्ड चुनी. उस का पति साधारण ग्रैजुएट है और प्रौपर्टी डीलिंग का काम करता है. घर में पति के अलावा सासससुर और तलाकशुदा जेठ है. अनुषा को घर में अकसर कहा जाता है कि वह जौब छोड़ दे, मगर अनुषा इस के लिए तैयार नहीं होती. उसे लगता है कि जौब के बहाने कुछ समय तो वह इस घर की चारदीवारी से दूर समय बिता लेती है.

अनुषा ने बहुत मुश्किल से घर में सब को राजी कर जौब कंटीन्यू की है. कालेज जाने से पहले उसे घर का सारा काम करना पड़ता है. नाश्ते के साथ ही लंच की पूरी तैयारी कर दौड़तीभागती कालेज पहुंचती है. पूरा दिन काम कर शाम में थकीहारी लौटती है तो कोई उसे एक कप चाय भी बना कर नहीं देता. सास कोई न कोई शिकायत ले कर जरूर पहुंच जाती है.

बेटी को पढ़ाना हो या कोई और काम करना हो सब उसे ही करना होता है. पति उस पर हर समय हुक्म चलाता रहता है.

जब भी वह किसी गलत बात का विरोध कर अपना पक्ष रखना चाहती है तो पति उसे डांटता हुआ कहता है, ‘‘खुद को बहुत पढ़ालिखा सम  झ कर मु  झ से जबान लड़ाती है. जबान खींच कर हाथ में दे दूंगा.’’

पीछे से सास भी आग में घी डालने का काम करते हुए कहती है, ‘‘कितना कहा था पढ़ीलिखी लड़कियां किसी काम की नहीं होतीं. जबान गज भर की और काम का सलीका जरा भी नहीं. उस पर तेवर ऐसे जैसे यही हमारा घर चला रही हो. याद रख तेरे कुछ हजार रुपयों से हमारा खजाना नहीं भर गया, जो आंखें दिखाएगी. बहू है तो बहू की तरह रह वरना जा अपने बाप के घर. वहीं जा कर नखरे दिखाना.’’

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