लेखक- आत्मा चौधरी

लगातार 5 गोल्ड मैडल जीतना आसान नहीं होता, मगर हिमा दास ने यह भी कर दिखाया. हिमा ने यह साबित कर दिया कि उन में विश्व विजेता बनने की ताकत है. धान के खेतों से निकली हिमा दास का अब तक का जीवन किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है. जिस हिमा को 2 वर्ष पूर्व उन के पड़ोसी गांव के लोग भी नहीं जानते थे आज विश्व में उन्होंने अपने बलबूते पर अपनी पहचान बनाई है. यही नहीं हिमा ने देश का नाम भी विश्व के खेल जगत में बढ़ाया है. देश के अन्य गांवों की तरह असम में फुटबौल काफी लोकप्रिय खेल है और हो भी क्यों नहीं बाढ़ और कीचड़ भरे मैदान में अगर कोई खेल खेला जा सकता है तो वह फुटबौल ही है. हिमा भी बचपन से फुटबौल के रंग में रंगी हुई थीं. कुछ साल पहले तक अपने खेतों के बीच खाली मैदानों में उन्होंने लड़कों को छकाया था.

फुटबौल से था लगाव

हिमा दास यह बताते हुए भावुक हो जाती है, ‘‘मेरा शुरू से फुटबौल से जुड़ाव था. मेरे पिता भी एक अच्छे खिलाड़ी रहे हैं. पहले मैं ने गांव में फुटबौल खेला, फिर स्कूल में और फिर कुछ स्थानीय क्लबों में भी. हालांकि मुझे यह पता था कि पिता की आर्थिक स्थिति के चलते मैं आगे नहीं जा पाऊंगी.’’

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यह 2016 की बात है जब फुटबौल में हिमा की तेजी देख कर उन के स्कूल के कोच शमशुल शेख ने उन्हें धावक बनने की सलाह दी. कोच के दिमाग में यह भी था कि दौड़ में उस के लिए ज्यादा मौके होंगे. इसलिए उन्होंने उसे यह सलाह दी.

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