बहुत रो धोकर ही सही मगर श्रेया को मां पापा से घर से दूर जाकर नौकरी करने की इजाजत मिल ही गयी. कुछ महीनों तक तो मां बाप परेशान से रहे, जवान बेटी अकेले इतने बड़े शहर मे कैसे रहेगी. कुछ ऊंच नीच हो गयी तो, कल को शादी भी करनी है लड़की की और फिर जिसे आज तक कांच की गुड़िया की तरह सहेज कर रखा, अब उसे इस तरह अपने से मीलों दूर अकेले कैसे रहने दे सकते हैं. बेटी की फिकर हर वक्त रहती थी, इसलिये दिन मे कई बार मम्मी पापा श्रेया को फोन करके उसका हाल चाल पूछ लेते थे.

फिर कोई साल भर ही बीता था कि एक दिन इस बात का खुलासा हुआ कि श्रेया  अपने किसी सहकर्मी लड़के के साथ एक ही फ्लैट मे रहने लगी है. मां बाप पर तो जैसे व्रजपात हो गया. बिन ब्याहे किसी लड़के के साथ रात दिन एक ही छत के नीचे रहने का मतलब सिर्फ उनकी बेटी की तबाही थी उनकी नजरों में. उन्हें नये जमाने के चलन से कोई सरोकार नहीं था, उन्हे तो बस श्रेया का भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा था.

बहुत समझाया, जमाने का डर, इज्जत की दुहाई, अपने मरने तक की कसमें दी, मगर श्रेया टस से मस नहीं हुई. आखिरकार मां बाप दिल पर पत्थर रखकर बैठ गये. पिता को बेटी की शक्ल से भी नफरत हो गयी, मां चिंता मे दिन रात घुलने लगी. श्रेया भी पुरानी सोच के अभिभावकों से कोई समझौता नहीं करना चाहती थी.

महीनों गुजर गये, मगर श्रेया ने जिद मे आकर घरवालों को एक फोन तक नहीं किया, फिर एक दिन सुबह सुबह दरवाजे की डोर बेल बजी. सूजी हुई आंखों के साथ अपना बैग लेकर श्रेया दरवाजे पर खड़ी थी. मां से लिपटकर फूट फूट कर रोयी.

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