अपने राज में होने वाले बलात्कारों को छोटे मामले कहने वाले नेता कई बार मन का गुबार निकालते हुए सदियों पुरानी बातें कह जाते हैं. जैसे मुलायम सिंह यादव ने एक लड़की द्वारा 4 भाइयों पर लगाए बलात्कार के आरोप के बाद कहा कि क्या 4-4 एकसाथ बलात्कार कर सकते हैं? क्या हो सकता है क्या नहीं, इस की चिंता करने वाले यह नहीं सोचना चाहते कि कैसे उस गंदी भूख को बदला जाए जिस में पुरुष हर औरत को अपना शिकार मानने का हक रखते हैं. बलात्कार 1 भी कर सकता है और 10 भी. हर जना जो गैंगरेप में भीड़ में खड़ा है, बलात्कार का दोषी है चाहे उस ने कुछ किया या नहीं, क्योंकि शारीरिक यातना के साथ बलात्कार मानसिक यातना भी है.

सदियों से औरतों को आदमियों का गुलाम बना कर रखा गया है और धर्म ने इस तरह के बीज उन के मन में डाल दिए हैं कि बलात्कार के बाद औरत खुद को दोषी मानती है, मुंह छिपा कर रोती है और आत्महत्या तक करने पर उतारू हो जाती है. यह मामला सामूहिक सोच का है जिस के मुलायम सिंह जैसे सैकड़ों नेता ही नहीं धर्म के दुकानदार, बड़ेबूढ़े, औरतें और विचारक तक समर्थक हैं. बलात्कार औरत की इज्जत पर हमला है. उस की सामाजिक प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने की चेष्टा है. यह यौन सुख के लिए कम अपनी श्रेष्ठता दिखाने के लिए ज्यादा किया जाता है. आम जनता जिस तरह बोलचाल की भाषा में मांबहन की गालियां देती हैं उस से साफ है कि बलात्कार को एक हथियार के तरह इस्तेमाल किया जाता है ताकि कभी लड़की को खुद और कभी उस के पूरे परिवार को घुटने टेकने पर मजबूर किया जा सके.

मुलायम सिंह यादव जैसे नेता उस तरह के गांवों से आए हैं जहां बलात्कार को अल्टीमेट हथियार की तरह इस्तेमाल करने की इजाजत है. किसी ने पैसे दाबे, गलत काम किया तो बदला लेने के लिए उस की बहन, बीवी, भाभी या मां तक को बलात्कार का निशाना बना डालो. इस में गिनती कहां से आ जाएगी क्योंकि यह अपराध करने वाले 1 नहीं 10-20 भी हो सकते हैं. बलात्कार को रोकना आसान नहीं है पर इसे सामाजिक कलंक न मानना आसान है. अगर समाज लड़की को दूषित न माने तो बलात्कार का हथियार अपनेआप में कमजोर हो जाएगा. पर ऐसी सोच विकसित करना तो सदियों का काम है और यहां तो अभी शुरुआत भी नहीं हुई है.

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