4 से 10 बच्चे पैदा करना, घर वापसी करवाना, पैंट, जींस न पहनना, धर्मयात्राओं पर जाना आदि बातें भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणापत्र में तो नहीं हैं पर उन के बहुत से भगवाधारी व गैरभगवाधारी नेता या समर्थक उन बातों का ढोल पीटपीट कर शासन करने की जगह घरों के ड्राइंगरूमों व बैडरूमों में घुसने की कोशिश में हैं. इन की आवाज मई, 2014 से इतनी तेज हो गई थी कि लगने लगा था कि भारत विकसित, स्वच्छ, भ्रष्टाचारमुक्त, आधुनिक, स्मार्ट देश बने या न बने, कट्टर जरूर बन जाएगा.

दिल्ली की जनता को धन्यवाद कि उस ने इस बात पर ब्रेक लगा दिया है और विधानसभा चुनावों में 70 में से केवल 3 सीटें पकड़ा कर ‘3 तिगाड़ा काम बिगाड़ा’ वाला काम कर दिया है. दिल्ली की जनता ने तो इस तरह का समर्थन कभी किसी पार्टी को दिया न था. किसी और जगह सही लोकतंत्र में इस तरह का समर्थन नहीं मिलता. यह परिणाम तो कम्युनिस्ट देशों में देखने को मिलता है जहां सरकार और घर दोनों तानाशाहों के चंगुल में होते हैं.

यह करिश्मा दिखाया अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी ने जिस की पत्नी, जो सरकारी अफसर है, चुनाव के लिए निकली तक नहीं और जिस को अरविंद केवल धन्यवाद देने के लिए जनता व कैमरों के सामने लाया. अरविंद केजरीवाल के चुनाव मसौदों में जो मसौदे घर से जुड़े थे वे घरवाली को खुश करने के लिए थे. बिजली की खपत पर छूट, पानी की खपत पर छूट, फ्री वाईफाई वगैरह जो लगते तो हैं कि मुफ्त में चीजें दी जा रही हैं पर असल में जीवन को सुविधाजनक बनाने वाले थे.

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