क्या आप ने कभी देखा है कि कबूतर और कबूतरी आपस में लड़ पड़े या हाथी ने अपनी हथिनी को पीटपीट कर मार डाला या मोर मोरनी से लड़ा या शेर अपनी शेरनी से लड़ा? नहीं, आप ने कभी यह नहीं सुनादेखा होगा, क्योंकि प्रकृति की इन जातियों का काम एकदूसरे को प्यार देना है, सहवास करना और उस के फलस्वरूप संतान उत्पन्न करना है. लाखों सालों से धरती का प्रत्येक जीव प्रकृति के इस नियम का पालन करता हुआ अपना जीवनचक्र पूरा कर रहा है. इस धरती पर सिर्फ हम इंसान ही हैं जो प्रकृति के इस नियम की धज्जियां उड़ाते हैं, अपनी मादाओं को मारतेपीटते और पूरा जीवन उन का शोषण करते हैं.

गैरसरकारी संगठन सहज और इक्वल

मेजर्स 2030 द्वारा महिलाओं पर किया गया एक सर्वेक्षण भारत के आधुनिक और विकसित चेहरे पर किसी तमाचे से कम नहीं है. वडोदरा की इन 2 संस्थाओं ने अपने सर्वेक्षण में पाया है कि भारत में करीब एक तिहाई शादीशुदा महिलाएं पतियों के हाथों पिटती हैं, मगर इन में से ज्यादातर को इस से कोई खास शिकायत भी नहीं है. वे इसे अपनी नियति मान चुकी हैं.

शर्मनाक है कि भारत में 15 से 49 साल के आयुवर्ग की महिलाओं में से करीब 27 फीसदी 15 साल की उम्र से ही घरेलू हिंसा बरदास्त करती आ रही हैं. मायके में पिता और भाई के हाथों और ससुराल में पति के हाथों पिट रही हैं.

हाल में ‘मीटू’ आंदोलन ने पढ़ीलिखी, ऊंचे ओहदों पर काम करने और आधुनिक कहलाने वाली औरतों की मजबूरी, त्रासदी और दुर्दशा का जो नंगा सच सामने रखा है, उसे देखते हुए अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस देश की कम पढ़ीलिखी, आर्थिक रूप से बेहाल, मजबूर, गांवदेहातों में रहने वाली औरतें पुरुष समाज के हाथों किस कदर अपमान, हिंसा, प्रताड़ना और शोषण का सामना कर रही हैं.

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