एक तरफ महंगाई बढ़ रही है, नौकरियां छूट रही हैं, व्यापार खत्म हो रहे हैं, खेती भी धन्ना सेठों के कब्जे में आकर किसानों को कंगाल बनाने की योजना में फंस गई है और दूसरी ओर बैंकों ने जमापूंजी पर ब्याज घटाना शुरू कर दिया है और सरकार ने प्रोक्डिैंट फंड की ब्याज की दर भी घटाने की मंथा जाहिर कर दी है. अगर घरवाले सोच रहे थे कि उन की जमापूंजी से ये मुश्किल के दिन गुजर जाएंगे तो वे भूल कर रहे हैं.

सरकार यह तब कर रही है जब नया संसद भवन बन रहा है जिस पर न जाने कितने हजार करोड़ खर्च हो जाएंगे. राममंदिर बन रहा है जो भक्तों और जनता के टैक्स का कर्ई हजार करोड़ खा जाएगा. वहां सडक़ें, नहरें, हवाई अड्डे, रेलवे स्टेशन, बिजलीघर, पार्क, सिनेमा, मौल भी बनने हैं.

सरकार का एक कदम भी ऐसा नहीं दिख रहा जिस से एक आम घरवाली को थोड़ा भी संतोष हो. हां भक्तों की कमी नहीं जो हर तकलीफ को भगवान की परीक्षा मानते हैं और सोचते है कि भगवान अंत में बरदान तो देंगे ही. उन्हें इसी बात से खुशी है कि मसजिद गिर गई, मुसलिम पकड़े गए, खुदाई में मूॢत मिल गई, चारधाम की सडक़ें बन गईं. वे अपनी बचीबचाई संपत्ति को भी अंधविश्वास की भेंट चढ़ा रहे हैं.

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शायद इसीलिए भारत सरकार दुनिया की सरकारों की तरह लोगों को कोरोनावायरस से हुए नुकसान का खामियाजा देने में कोई उत्सुक नहीं है. अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो वायडन न 1.9 मिलीयन डौलर की आॢथक सहायता का पैकेज दिया है जिस में और चीजों के साथ हर घर को लगभग 1400 डौलर मिले हैं जो औसत अमेरिकी की एक माह की तन्खवाह के बराबर तो है ही. दुनिया के और बहुत सारे देशों ने ऐसा किया है पर भारत सरकार पैट्रोल, घरेलू गैस के माध्यम से जनता को चूसने पर लगी है.

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