कोविड 19 की दूसरी लहर. (दिल्ली के अरङ्क्षवद केजरीवाल तो इसे दिल्ली की चौथी लहर कहते हैं) पटरी पर लौटती ङ्क्षजदगी को फिर से बिगाड़ रही है. यह अब देखना बाकि है कि क्या हम से इतना उत्साह और धैर्य बचा है कि हम एक और इस माहमारी के थपेड़े खा सकें?

यह न भूलें कि छोटे पैमानों पर मानव जाति इस से ज्यादा बड़े जीवन पर हमले देख चुकी है. दुनिया भर में इतिहास साक्षी है कि बारबार लंबे युद्ध हुए चाहे कबीलों और देशों के बीच में ही पर हर युद्ध की लहर कोविड 19 की तरह ही होती थी. दोनों तरफ के आक्रमिक अपने सीधी पटरी  पर चलती ङ्क्षजदगी को उतार कर दूसरी तरफ के लोगों की ङ्क्षजदगी को बिगाडऩे चल पड़ते थे.

अकाल कईकई साल चलते रहे हैं. प्लेग, हैजा, मलेरिया बारबार समाज के हिस्सों को तंग करता रहा है, बारबार लगातार. कोविड की तरह विदेशी लूटेरे लूटने, औरतों के उठा ले जाने, घरों को जला डालने बारबार आते और हर तरह की बचाव की कोशिश के बावजूद ङ्क्षजदगी तहसनहस कर जाते. प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध 4-5 साल चले और उन्होंने यूरोप के बड़े हिस्से को इन दिनों इसी तरह कफ्र्यू में रखा जैसा अब कोविड रख रहा है.

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फर्क यह है कि विज्ञान और तकनीक के कारण हमें भरोसा हो गया था कि हमें कुछ नहीं होगा. हमें 100 साल आराम से जीने की अस्था दिला दी गई थी. लोग पक्के मकान बनाने लगे थे जो 50-100 साल रहेंगे. बैंक भी 30-40 साल की योजनाएं धड़ाधड़ बेच रहे थे. दूसरे विश्व युद्ध के बाद कोरिया, वियतनाम, कंबोडिया, अफ्रीका के  रवांडा व सीरिया व लेबनान के अलावा दुनिया लगभग शांत रही है.

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