एक व्यक्ति सामाजिक जाल से बच कर नहीं जी सकता. हमारे अस्तित्व के लिए समाज के प्रति अपनेपन की भावना का होना आवश्यक है. जब किसी व्यक्ति का किसी एक सामाजिक समूह द्वारा जान बूझ कर बहिष्कार किया जाता है तो यह उसके दिमाग में स्ट्रेस का कारण बन सकता है. जिसके कारण न केवल डिप्रेशन बल्कि आत्महत्या की भी नौबत आ सकती है. इसलिए उसकी भागीदारी भी उसके मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक स्वास्थ्य व सफलता के लिए आवश्यक होती है. इस कारण कोई भी इंसान नकारत्मक हो सकता है जिसकी वजह से उस के इम्यून सिस्टम पर भी प्रभाव पड़ सकता है. अतः अपनेपन की भावना को हम आत्मविश्वास से जोड़ सकते हैं.

किसी एक समूह से तालुकात रखना हमारी सामाजिक छवि को दर्शाता है जोकि हमारी व्यक्तिगत छवि के लिए बहुत आवश्यक है. आप की सामाजिक छवि आप की एक पहचान है जो आप को समाज में किसी गुणी समूहों का हिस्सा बनने पर मिलती है. अतः सामाजिक बहिष्कार एक बहुत ही दर्दनाक स्थिति होती है. किसी एक समूह द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को बिल्कुल इग्नोर करना उसके जीवन पर विभिन्न प्रकार से प्रभाव डाल सकता है. यदि कोई थोड़े समय के लिए बहिष्कृत किया जाता है तो उसे इससे संभलने में भी ज्यादा समय नहीं लगता है. परंतु यदि यह बहिष्कार काफी लंबे समय तक किया जाता है तो इसका उस व्यक्ति पर असर भी लंबा ही होता है. इसके दिमाग में बहुत नकारत्मकता भर जाती है.

सामाजिक बहिष्कार अनुत्पादकता, हाशिए ( जो लोग नीची जाति के होने के कारण समाज द्वारा एक किनारे पर धकेल दिए जाते हैं ) व गरीबी से जुड़ा हुआ है. बहिष्करण से संबंधित सामाजिक समस्याएं समाजशास्त्रीय, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण हैं.  इस तरह के अनुभव आम हैं और जो लोग सबसे असुरक्षित हैं, उनमें एकल महिलाएं, बेरोजगार लोग, विकलांग और बेघर शामिल हैं.  सच में, जब हम एक समूह से बाहर किए जाते हैं, तो हम सभी को बहुत दर्द होता है.

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