बेकारी और आर्थिक कठिनाइयों में परिवारों का क्या होगा इस पर सोचने का समय अभी शायद न हो पर यह समझ लें कि पूरा देश एक लावे पर बैठा है, जिस में भयंकर भूख, बेकारी, बिगड़ती अर्थव्यवस्था के साथसाथ टूटतेबिखरते परिवार भी होंगे. यह समस्या आज लौकडाउन की वजह से बीमारों और मरने वालों के मोटे होते कारपैटों के नीचे छिपी है पर समाज का निस्संदेह दीमक की तरह खा रही है.

आज हजारों परिवार ऐसे हैं, जिन में पति कहीं है, पत्नी कहीं है. इन में बच्चों वाले भी हैं, बिना बच्चों वाले भी. पति की कमाई का ठिकाना नहीं तो पत्नी और बच्चों को कैसे पालेगा, इस का भरोसा नहीं. यह गुस्सा चीन से आए कोरोना पर उतारना चाहिए पर उतरेगा पति पर. हर पत्नी यह मान कर चलती है कि उस की जिम्मेदारी पति की है.

हर पतिपत्नी जो एक छत के नीचे रह रहे हैं या दूरदूर हैं, बेहद तनाव में हैं. सामाजिक मेलजोल के खत्म होने, बोरियत होने, एक सा खाना 3 बार खाने से जो भड़ास पैदा हो रही है, वह एकदूसरे पर उतर रही है, अगर आज साथ रह रहे हैं तो तब उभरेगी, जब भी और मिलेंगे.

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यह न सोचें कि इन में गरीब मजदूर ही हैं जो बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के गांवों से बड़े शहरों में आए थे. इन में वे भी हैं जो अच्छे वेतन की खातिर देश या विदेश में फंसे हैं और सिवा फोनों के बात नहीं कर सकते. जो लोग कुछ दिन के लिए गए थे और लौकडाउन के थोड़े दिन पहले ही गए थे और भी ज्यादा तनाव में होंगे.

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