निजी फाइवस्टार टाइप अस्पतालों की देश भर में बाढ़ सी आ गई है. प्राइवेट स्कूलों की तरह चमचमाते अस्पताल अब खुशनुमा माहौल तो दे रहे हैं पर जब चकाचौंध के बाद मरीज के पास बिल आता है तो उस के होश फाख्ता हो जाते हैं. लाखों के बिल अब आम हो गए हैं. छोटीछोटी बीमारियों को बढ़ाचढ़ा कर बताना, बेकार में महंगे टैस्ट कराना अब आम बात है और मरीज इन की शिकायतें करना तक बंद कर चुके हैं.

इन अस्पतालों को कोसा तो बहुत जा रहा है पर ये लोगों के पास आ रहे पैसे, प्रचार, शान, बेवकूफियों और मांग व पूर्ति की देन हैं. लोग इन अस्पतालों में जा ही इसलिए रहे हैं, क्योंकि ये प्रचार करते हैं और बीमारी में यहीं जाना जीवनशैली का अंग माना जाता है. अपनी अमीरी की शान दिखाने के लिए बहुत बार वह इलाज जो नुक्कड़ के एमबीबीएस डाक्टर से कराया जा सकता है इन अस्पतालों में कराया जाता है.

ये अस्पताल अब जम कर प्रचार पर खर्र्च कर रहे हैं मानो दावत दे रहे हों कि बीमार पड़ो और हमारे यहां आओ. चूंकि जो प्रचार करते हैं उन का बिजनैस अच्छा चल रहा होता है, यह देख दूसरे भी प्रचार करने लगे हैं. मजेदार बात यह है कि आज इतना प्रचार फाइवस्टार होटल भी नहीं करते जितना फाइवस्टार अस्पताल और स्कूल करते हैं. यह समाज की बेवकूफियों का स्पष्ट प्रदर्शन है.

इन अस्पतालों में अगर कहीं भूलचूक हो जाए तो ही रोष होता है पर उस रोष के पीछे गलती से ज्यादा पैसे चुकाने का दर्द होता है. इतना पैसा खर्च किया फिर भी इलाज ठीक नहीं हुआ की भावना ज्यादा रहती है. यही समस्या का कारण है.

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