जब भी महिला हौकी की बात आती है तो जेहन में शाहरुख खान की फिल्म ‘चक दे इंडिया’ छा जाती है कि किस तरह इस राष्ट्रीय खेल में फैडरेशन वालों का खेल होता है, लड़कियों को खिलाड़ी ही नहीं समझा जाता है, उन्हें अपने खेल को निखारने के साथसाथ उस समाज से भी लोहा लेना होता है जो उन्हें इस खेल से दूर रखने की कोशिशें करता है. इस सब के बावजूद हौकी को अपनाने वाली लड़कियां देशविदेश में अपनी कड़ी मेहनत से नाम कमा रही हैं.

ऐसी ही एक जुझारू खिलाड़ी मोनिका मलिक हैं, जो 2014 के इंचिओन में हुए एशियाई खेलों में ब्रोंज मैडल जीतने वाली भारतीय टीम का हिस्सा बनी थीं. इस के बाद 2018 में जकार्ता में हुए एशियाई खेलों में सिल्वर मैडल जीता था. इस से पहले 2017 में गिफू में हुए हौकी के एशिया कप में गोल्ड मैडल भी जीता था.

हरियाणा के सोनीपत जिले के गांव गामड़ी में 5 नवंबर, 1993 को एक साधारण परिवार में पैदा हुई मोनिका मलिक के लिए इस खेल में आने की राह मुश्किलों से भरी रही है.

मुश्किल थी राह

वे बताती हैं, ‘‘इस मुकाम तक पहुंचने के लिए मैं ने बहुत ज्यादा मेहनत की है, खूब पसीना बहाया है. 2006-07 में मैं ने ऐकैडमी जौइन की थी. उस के बाद 2009 में मैं ने जूनियर हौकी टीम का प्रतिनिधित्व किया. इस दौरान मैं ने अपने खेल स्किल्स पर बहुत ज्यादा ध्यान दिया. ‘अर्जुन’ और ‘द्रोणाचार्य’ अवार्ड विजेता कोच राजिंदर सिंह की मुझ पर की गई कड़ी मेहनत के चलते मैं आज इस जगह खड़ी हूं. अपने सीनियर पुरुष हौकी खिलाडि़यों जैसे धनराज पिल्लै और दीपक ठाकुर के खेल से मैं ने बहुतकुछ सीखा है.

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