हिंदुस्तान के कई शहरों को दुनिया के सब से ज्यादा गंदे शहरों में शामिल किया गया है. वर्ल्ड हैल्थ और्गेनाइजेशन ने 6 वर्षों तक 1,600 शहरों में सर्वे किया है जिन में सफाई व स्वास्थ्य के पैमानों पर दुनिया के शहरों को सब से गंदे व सब से साफ शहरों का क्रम दिया गया है.

यह गर्व की ही बात है न, कि स्वच्छ भारत का नारा देने वाले, स्वयं झाड़ू पकड़ने वाले, सफाईकर्मचारियों को साफ कपड़े पहना कर उन के पांव साफ परात में धोने वाले नरेंद्र मोदी का 5 वर्षों से अपना शहर दिल्ली दुनिया का सब से गंदा, प्रदूषित शहर घोषित किया गया है. साफ है कि मोदी का स्वच्छ भारत अभियान झाड़ू ले कर फोटो खिंचवाने तक ही सीमित रहा.

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दूसरे नंबर का शहर पटना है, गंगा के किनारे वाला नीतीश कुमार और मोदी की जोड़ी का शहर. फिर इथियोपिया का अदीस अबीबा है. उस के बाद ग्वालियर है, फिर रायपुर. मैक्सिको भी गंदे शहरों में है. कराची, पेशावर और रावलपिंडी, (पाकिस्तान), खुर्रमाबाद (ईरान), ऊंटानरीवो (मेडागास्कर) के बाद हमारा अपना मुंबई, फिर साबरमती के संत का अहमदाबाद, योगी आदित्यनाथ का लखनऊ हैं. और फिर ढाका (बंगलादेश), बाकू (अजरबैजान) हैं.

हमारी गंदगी की वजह क्या है, यह हम जानने की कोशिश ही नहीं करते. हां, नारे लगाना हम जरूर जानते हैं. ज्यादा हुआ तो इंग्लिश के  अखबारों में क्लीन इंडिया के पूरे पेज के विज्ञापन नरेंद्र मोदी या अरविंद केजरीवाल के फोटो छाप कर दे देंगे. ओम शांति के पाठ की तरह हम सोचते हैं कि सफाई हो. सफाई हो कहने भर से क्या सफाई हो जाएगी?

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