राधे राधे .राधे राधे. राधे राधे. जय श्रीराम. जय श्रीराम .जय श्रीराम. रामाकांत पूरी श्रद्धा के महात्मा के साथ भक्ति में लीन थे. पूरी मंडली साथ में घंटी भी बजा रही थी. ये आवाजें दोनों बच्चों को पढ़ने नहीं दे रही थीं. वह बार-बार जाकर अपनी मां से कहता ,"मां प्लीज पापा को बोलो ना कि सब लोग थोड़ी हल्की आवाज में पूजा करें. मेरा कल बोर्ड का पेपर है और मैं पढ़ नहीं पा रहा हूं. जब वह अपने गुस्से को जाहिर कर रहा था तभी रमाकांत ने सुन लिया और तनमनाते हुए बोले ,"यह कोई पढ़ने का टाइम है? अगर कल परीक्षा है तो आज तो तुम्हें भगवान के आगे नतमस्तक होना चाहिए! बोलो जय सियाराम... जय सियाराम".…फिर रमाकांत अपने बच्चों की परेशानी से बेखबर... उल्टा अपनी पत्नी को झिड़कते हुए, "अकल नहीं है क्या तुझ में! महात्मा बैठे हैं पूजा कर रहे हैं तू यहां बच्चों में लगी हुई है. बेवकूफ औरत जाओ सभी के लिए गर्म दूध बनाकर लेकर आओ. बेचारी करती भी क्या! डरते हुए ,'जी' बोला और लग गई सेवा टहल में. बीच-बीच में उसकी सास की भी आवाजें आती रहीं, …"बहू प्रसाद बना कि नहीं?... बहू बिस्तर लगाया कि नहीं"... देखो महात्मा की सेवा में कोई कमी ना रह जाए….. जितनी मन से सेवा कर लेगी….. उतनी ही मेवा मिलेगी..… बहुत भाग्य से महात्मा घर में पधारते हैं…. कितने लोगों का निमंत्रण गया होगा…. लेकिन हमारा ही स्वीकारा और आज हम जो भी हैं वह सब इन्हीं की वजह से हैं,,,आदि आदि."
पूरा दिन और आधी रात तो इस सेवा के चक्कर में ही निकल जाती. मुश्किल से 2 घंटे ही लेट पाती कि 4:00 बजे से ही आवाज लगने लगती.." महात्मा के नहाने का टाइम हो गया है... इंतजाम हुआ कि नहीं... फिर वह सुबह 6:00 बजे प्रभात फेरी के लिए जाएंगे…. याद है ना कि तुम्हें उठकर सबसे पहले स्नान करना है."

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