लेखक- धीरज कुमार

यात्री से भरी बस झारखंड से बिहार की तरफ आ रही थी. अचानक सुनसान सड़क के दूसरी तरफ से सियार पार कर गया. ड्राइवर ने तेज ब्रेक लगाया. झटका खाए यात्रियों ने पूछा,”भाई बस क्यों रोक दी गई?”
बस के खलासी ने जवाब दिया,”सड़क के दूसरी तरफ सियार पार कर गया है इसलिए बस कुछ देर के लिए रोक दी गई है.”
सभी यात्रीगण भुनभुनाने लगे. कुछ लोग ड्राइवर की होशियारी की चर्चा करने लगे. उस अंधेरी रात में दूसरी गाड़ी सड़क पर पार नहीं कर गई, तब तक वह बस खड़ी रही. लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि यह अंधविश्वास है. इससे कुछ होता जाता नहीं है .सड़क है तो दूसरी तरफ से कोई भी जीव जंतु इधर से उधर पार कर सकता है. यह सामान्य बात है. इसमें बस रोकने जैसी कोई बात नहीं है. जबकि कई लोग मन ही मन अनहोनी होने से डरने लगे थे. रास्ते के इस पार से उस पार कुत्ता, बिल्ली, सियार जैसे जानवर आ जा सकते हैं. इसे अंधविश्वास से जोड़ा जाना उचित नहीं है. इसके लिए मन में किसी अनहोनी होने का डर आदि पालना भी बिल्कुल गलत है.

बिहार के रोहतास जिला के डेहरी में बाल काटने वाले सैलून तो सातों दिन खुला रहते हैं. लेकिन सोनू हेयर कट सैलून के मालिक से पूछे जाने पर यह बताते हैं,” ग्राहकों की भीड़ पूरे सप्ताह में सिर्फ 4 दिन ही होते हैं. तीन दिन तो हम लोग खाली खाली बैठे रहते हैं. यहां के अधिकतर हिन्दू लोग मंगलवार, गुरुवार और शनिवार को बाल नहीं कटवाते हैं. इन तीन दिनों में इक्का-दुक्का लोग बाल कटवाने आते हैं. जिनका ताल्लुक दूसरे धर्म से रहता है.”

भले ही हम लोग 21वीं सदी के विज्ञान युग में जी रहे हैं. लेकिन आज भी हमारी सोच 18 वीं सदी वाली ही है. यहीं के रहने वाले विनोद कुमार पेशे से कोयला व्यापारी हैं. उनका एक बेटा है. इसलिए सोमवार को बाल दाढ़ी नहीं कटवाते हैं. पूछे जाने पर हंसते हुए कहते हैं,” ऐसी मान्यता है कि जिनके एक पुत्र होते हैं. उनके पिता सोमवार को दाढ़ी बाल नहीं कटवाते हैं.इसके पीछे कोई खास वजह नहीं है. गांव घर में पहले के ढोंगी ब्राह्मणों ने यह फैला दिया है तो आज भी अंधविश्वास जारी है. दरअसल लोगों के मन में सदियों से इस प्रकार की फालतू बातें बैठा दी गई है इसीलिए आज भी चलन में है. पहले के लोग सीधे-सादे लोग होते थे.इस तरह के पाखंडी ब्राह्मणों ने जो चाहा, वह सुविधा अनुसार अपने फायदे के लिए समाज में फैला दिया.”

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आज भी गांव में भूत, प्रेत, ओझा, डायन के बारे में लोग खूब बातें करते है. आज भी लोगों को विश्वास है कि गांव में डायन जादू टोना करती है. औरंगाबाद के गांव के रहने वाले रणजीत का कहना है कि उनकी पत्नी 2 सालों से बीमार रह रही है.उनकीपत्नी की बीमारी की वजह कुछ और नहीं, बल्कि डायन के जादू टोने के कारण है. इसीलिए वे किसी डॉक्टर के दिखाने के बजाय कई सालों से ओझा के पास दिखा रहे हैं. कई सालों से वे मजार पर जाते हैं और चादर चढ़ाते रहें हैं.

रोहतास जिले के एक गांव में एक लड़की को जहरीले सांप ने काट लिया था. उसके परिजन बहुत देर तक झाड़ फूंक करवाते रहें. झाड़-फूंक के बाद मामला जब बिगड़ गया तो उसे अस्पताल ले जाया गया, जहां उसे बचाया नहीं जा सका. जबकि अखबार में भी इसके बारे में प्रचार प्रसार किया जाता रहा है कि किसी व्यक्ति को सांप काटने पर झाड़-फूंक नहीं बल्कि अस्पताल ले जाएं.अगर समय रहते उस लड़की को अस्पताल ले जाया गया होता तो बचाया जा सकता था. किंतु आज भी लोग अंधविश्वास के कारण झाड़-फूंक में ज्यादा विश्वास करते हैं अभी भी लोग इलाज कराने के बजाय सांप काटने पर झाड़ फूंक करवाना ही उचित समझते हैं.

आज भी लोग झाड़-फूंक, मंत्र, टोना, जादू पर विश्वास करने के कारण अपनी जान गवा रहे हैं वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि झाड़-फूंक करवाने से कुछ नहीं होता है. इससे कोई फायदा होने वाला नहीं है. अगर समय रहते सांप काटने वाले व्यक्ति की इलाज कराया जाए तो उसकी जान बचाई जा सकती थी.

बिहार के कई शहरों में अधिकतर दुकानदार शनिवार को अपने दुकान के आगे नींबू मिर्च लटकाते हैं. प्रत्येक शनिवार की सुबह कुछ लोग नींबू मिर्च को एक साथ धागे में पिरोकर दुकान दुकान बेचते वाले भी मिल जाते हैं. लगभग सभी दुकानदार खरीदते हैं.पुरानी लटकी हुई नींबू और मिर्च को सड़क पर फेंक देते हैं. लोगों ‌के पांव उस पर न पड़ जाए, इसलिए लोग बचकर चलते हैं. कई बार तो दोपहिया वाहन वाले भी अपने गाड़ी के पहिए के नीचे आने से बचाते हैं. कभी-कभी दुर्घटना होने से बाल-बाल बचते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि पांव के नीचे या वाहन के नीचे अगर फेका हुआ नींबू और मिर्च आ जाए तो जीवन में परेशानी बढ़ सकती है. कुछ दुकानदारों का मानना है कि नींबू मिर्च लटकाने से बुरी नजर से बचाव होता है. दुकान में बिक्री खूब होती है. इस प्रकार देखा जाए तो फालतू में नींबू और मिर्च आज भी बर्बाद किए जा रहे हैं जबकि इस तरह के नींबू मिर्च लटकाने का कोई फायदा नहीं है. आज भी बहुत से गरीब लोग हैं जो पैसे के अभाव में नींबू मिर्च खरीदने के लिए सोचते हैं. अतः इस प्रकार से नींबू और मिर्च की बर्बादी है. ऐसा कहने वाला कोई भी धर्मगुरु, पंडित, पुजारी, मौलवी नहीं होता है. दरअसल यह देखा देखी अंधविश्वास आज भी ज्यों का त्यों बना हुआ है. ऐसी बातें बहुत पहले से ही पाखंडी ब्राम्हणों, पंडे, पुजारियों ने आम लोगों ने फैला रखी है. इसीलिए ऐसा अंधविश्वास आज भी जारी है. विज्ञान के युग में भी ऐसी फालतू बातों को कोई रोकने टोकने वाला नहीं है.

औरंगाबाद के रहने वाली मंजू कुमारी एक शिक्षिका है. उनका कहना है,” वे एक बार पैदल परीक्षा देने जा रही थी. उन्होंने परीक्षा स्थल तक जाने के लिए शॉर्टकट रास्ता चुना था. अभी परीक्षा केंद्र काफी दूर था कि एक बिल्ली उनका रास्ता काट गई. काफी देर तक इंतजार की लेकिन उस रास्ते से कोई गुजरा नहीं.उन्हें ऐसा लगा कि उनकी परीक्षा छूट जाएगी. इसलिए जल्दी-जल्दी उस रास्ते से होकर परीक्षा केंद्र तक पहुंची. उनके मन में आशंका हो रही थी कि आज परीक्षा में कुछ न कुछ गड़बड़ होगी. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. बल्कि उनका परीक्षा उस दिन बहुत अच्छा हुआ. बाद में उस विषय में अच्छे नंबर भी मिले थे.उस दिन से वे इस तरह के अंधविश्वासों से बहुत दूर रहती हैं. वे स्वीकार करती हैं कि अगर मैं अंधविश्वास में रहती तो मेरा परीक्षा छूटना निश्चित था.‌”

दरअसल बचपन से ही घर के लोगों के द्वारा यह सीख दी जाती है कि ब्रह्मणों, पोंगा पंडितों, साधुओं, पाखंडियों, धर्मगुरुओं के द्वारा दी गई सीख जो सदियों से चली आ रही है तुम्हें भी इसी रूप में मानना है. बचपन से लड़के लड़कियों को यह सब धर्म से जोड़कर बताया जाता है. उन्हें विज्ञान से ज्यादा अंधविश्वास के प्रति विश्वास को मजबूत कर दिया जाता है. यही कारण है कि पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी अंधविश्वासों को लोग ढोते आ रहे हैं. विज्ञान यहां विकसित नहीं है. लेकिन अंधविश्वास खूब फल फूल रहा है. इसकी जड़े इतनी मजबूत है कि कोई काट ही नहीं सकता है. यहां के लोग पर्यावरण, पेड़ पौधे की रक्षा करने के बजाए अंधविश्वास की रक्षा करते हैं. लोग उसी को विकसित होने देते हैं तो स्वाभाविक है फल, फूल भी इसी के मिलेंगे.

जब देश में रफाल आता है और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नारियल फोड़कर पूजा करते हुए मीडिया के माध्यम से दिखाया जाता है तो देश में एक संदेश जाता है कि आम लोग ही नहीं अंधविश्वास में पड़े हुए हैं बल्कि यहां के खास लोग भी अंधविश्वास को बढ़ावा देना चाहते हैं. जबकि वही करोना काल में देशभर के मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे सभी बंद थे. लोगों को भगवान के अस्तित्व के बारे में समझ आने लगा था. लोगों को विश्वास हो गया है ,देवी देवताओं के दया से यह बीमारी ठीक होने वाला नहीं है, बल्कि वैज्ञानिकों के द्वारा जब दवा बनाया जाएगा तभी यह बीमारी जाएगी.

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लोगों में ईश्वर,भगवान ,अल्लाह के प्रति आस्था कम हुई है तो दूसरी ओर भारत के प्रधानमंत्री राम मंदिर में सीधे लोट जाते हैं और यह संदेश देने की कोशिश करते हैं सब कुछ भगवान ही हैं. मीडिया का एक वर्ग उस समय यही सब कुछ दिखाने की कोशिश कर रहा था. प्रधानमंत्री कितने देर तक लोटपोट होते रहे. कितनी बार सांसे लिए, उस समय उनकी दाढ़ी की लंबाई कितनी थी. एक टीवी चैनल वाला तो प्रमुखता से दिखाया कि उस समय उन्होंने ‘राम’ का नाम कितनी बार लिया. इसीलिए देश के कुछ हिस्सों में कोरोना जैसे महामारी को बीमारी कम समझा गया. इसे दैविक प्रकोप समझने की भूल ही गई. और इतना ही नहीं देश के कुछ हिस्सों में पूजा पाठ से दूर करने का प्रयास किया गया.

देश में कोरोना कहर बरपा रहा था तो बिहार के कुछ भागों में कोरोना माता की पूजा की जा रही थी. रोहतास जिला के डेहरी ऑन सोन में सोन नदी किनारे कई दिन तक महिलाओं ने आकर पूजा-पाठ किया. नदियों किनारे महिलाएं झुंड में पहुंचकर 11 लड्डू 11 फूल चढ़ाकर पूजा कर रही थी. घर के पुरुषों द्वारा महिलाओं को मना करने के बजाय उन्हें प्रोत्साहन दिया जा रहा था. तभी तो वे अपनी गाड़ी में बैठा कर उन्हें नदियों किनारे पहुंचा रहे थे. ऐसी परिस्थिति में भी यहां के मंदिरों में पूजा करने वाले स्थानीय पाखंडिओं, धर्मगुरुओं, पुजारियों के द्वारा लोगों को मना नहीं किया गया.बल्कि उनके द्वारा मौन समर्थन किया गया ताकि उनका धंधा लॉकडाउन में फलफूल सके. इस तरह के अंधविश्वास मोबाइल के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से फैलता है.

अतः जरूरी है कि अभिभावकों के द्वारा अपने बच्चों को विज्ञान के प्रति जागरूक करने की आवश्यकता है. उन्हें शुरू से ही यह बताने की आवश्यकता है कि विज्ञान से बदलाव किया जा सकता है. विज्ञान हमारी जरूरतें पूरा कर रहा है. इस प्रकार के अंधविश्वास से हम सभी पिछड़ जाएंगे. देश को आगे बढ़ाना है तो विज्ञान के महत्व को स्वीकारना होगा. तभी अंधविश्वास भी दूर होंगे.

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