अमला रुइया का जन्म हालांकि 1946 में यूपी के एक संपन्न परिवार में हुआ और परवरिश एक साहित्यिक और आध्यात्मिक माहौल में हुई, मगर अमला रुइया ने कम उम्र से ही समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों को पहचानना आरंभ कर दिया था. इसी कारण उन्होंने पहला अवसर मिलते ही स्वयं को सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित कर दिया.
राजस्थान, एक ऐसा क्षेत्र है जो अकसर पानी की कमी से जूझता रहता है. जहां घरों में पीने तक का पानी नहीं होता, नहाने की तो बात ही छोड़ दीजिए. घर की औरतों को परिवार की पानी की जरूरत पूरी करने के लिए मीलों चल कर पानी के घड़े सिर पर ढो कर लाने पड़ते हैं.
राजस्थान के ग्रामीण समुदाय की औरतों के सामने दिनरात खड़ी ऐसी चुनौतियों ने जवान होती अमला रुइया की सोच और समझ को आकार देना शुरू किया. 1999-2000 और 2003 में राजस्थान में पड़े गंभीर सूखे की स्थिति ने अमला रुइया को बहुत परेशान किया. इसी घटना के बाद वे गांवों में जल संचयन के प्रति प्रेरित हुईं और जल सुरक्षा प्रदान करने वाले चैक डैम बनाने के लिए गांवों के साथ सा झेदारी करने के लिए आकार चैरिटेबल ट्रस्ट (एसीटी) की स्थापना की.
गांवों की सूरत बदल दी
चैक डैम बनाने की उन की प्रमुख पहल ने पूरे भारत में 450 से अधिक गांवों में 2 मिलियन से अधिक लोगों के जीवन को बदल दिया. मौसमी धाराओं पर बनाए गए छोटे ढांचे, चैक डैम, पानी को जमीन में रिसने देते हैं, जलभृतों को भरते हैं और सालभर पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करते हैं. अमला ने समुदायों को श्रम और संसाधनों का योगदान करने के लिए प्रेरित किया, जिस से परियोजनाओं के लिए स्वामित्व और स्थिरता की भावना सुनिश्चित हुई.
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