दुनिया में बच्चे को सब से ज्यादा प्यार करने वाली महिला मां होती है. मां एक बच्चे की न सिर्फ परवरिश करती है बल्कि उस के हर नखरे भी सहती है. अपनी जरूरतें भूल कर बच्चे के लिए जीने लगती है. बच्चे को सही तालीम देने और लायक बनाने का दायित्व निभाती है. बच्चे के दर्द को अपना दर्द सम?ाती है और उस की हर ख्वाहिश पूरी करने के लिए हमेशा तत्पर रहती है. किसी भी मुसीबत से लड़ जाती है. मगर कई दफा हम इस मां के दर्द को नहीं सम?ा पाते. उसे इग्नोर करने लगते हैं.

आसान नहीं मां होना

बच्चे के पैदा होने से ले कर उस की देखभाल करना, पालनपोषण करना, उस का खयाल रखना, बच्चे की हर जरूरत को पूरा करते हुए घर भी संभालना और परिवार के बाकी सदस्यों के शैड्यूल के हिसाब से तालमेल बैठा कर चलना इन सब के पीछे एक मां का काफी वक्त और मेहनत लगती है. दरअसल, बच्चों की देखभाल करना किसी फुलटाइम जौब से कम नहीं है और वह भी एक नहीं बल्कि ढाई फुलटाइम जौब के बराबर.

सच तो यह है कि बच्चे के जन्म के साथ ही मां अपनेआप को भूल जाती है. कामकाजी महिलाओं के लिए खासतौर पर अपने काम और बच्चे की देखभाल को मैनेज करना कठिन होने लगता है. ऐसे में वह अपने कैरियर के बदले बच्चे को प्राथमिकता देती है. मगर क्या यह उचित है?

हफ्ते में 98 घंटे का वक्त मां देती है

बच्चे को

एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि मांएं बच्चों की देखभाल के पीछे 1 हफ्ते में अपना 98 घंटे का वक्त देती हैं. यूएस में हुए एक सर्वे में वैसी 2 हजार मांओं को शामिल किया गया था जिन के बच्चों की उम्र 5 साल से 12 साल के बीच थी. इस सर्वे में यह बात सामने आई कि एक सामान्य दिन में औसतन एक मां का दिन सुबह 6 बज कर 23 मिनट पर शुरू होता है जो रात में 8 बज कर 31 मिनट तक जारी रहता है.

इतने वक्त को अगर वर्किंग शिफ्ट में देखा जाए तो यह हफ्ते के सातों दिन 14 घंटे की शिफ्ट के बराबर है जो किसी भी नौर्मल फुलटाइम जौब से कहीं अधिक है. वैसे देखा जाए तो भारतीय मांएं सुबह 5 बजे से ही बच्चों के कामों में लग जाती हैं और रात 11 बजे तक काम ही निबटाती रहती हैं.

इस सर्वे में यह बात भी सामने आई कि औसतन हर दिन एक मां अपने लिए सिर्फ 1 घंटा 7 मिनट का समय ही बचा पाती है, साथ ही करीब 40त्न मांओं को ऐसा लगता है कि उन के जीवन में कभी न खत्म होने वाले काम हावी रहते हैं.

इस से पहले 2013 में हुई एक स्टडी में यह बात सामने आई थी कि औसतन एक मां के हर दिन के टूडू लिस्ट में 26 काम शामिल होते हैं जिन में ब्रेकफास्ट बनाने से ले कर टिफिन तैयार करना और जरूरी अपौइंटमैंट डेट्स को याद रखना शामिल है.

रोमांटिक रिश्ते भी हो सकते हैं बरबाद

जब लोग शादी करते हैं तो वे आमतौर पर प्यार में होते हैं और शादी के बंधन में बंधने से खुश होते हैं. लेकिन उस के बाद चीजें बदल जाती हैं. शादी के पहले वर्षों के दौरान जोड़ों की अपनी शादी से संतुष्टि में गिरावट आती है और यदि गिरावट विशेषरूप से तीव्र है तो तलाक हो सकता है. लगभग 30 वर्षों तक शोधकर्ताओं ने अध्ययन किया है कि बच्चे होने का विवाह पर क्या प्रभाव पड़ता है. दरअसल, बच्चे आने के बाद पतिपत्नी के बीच संबंध खराब हो जाते हैं.

बच्चों वाले और बिना बच्चों वाले जोड़ों की तुलना करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि निस्संतान जोड़ों की तुलना में उन जोड़ों में रिश्ते की संतुष्टि में गिरावट की दर लगभग दोगुनी है जिन के बच्चे हैं.

ऐसी स्थिति में जब गर्भावस्था अनियोजित होती है तो मातापिता अपने रिश्ते पर और भी अधिक नकारात्मक प्रभाव का अनुभव करते हैं.

वैवाहिक संतुष्टि में यह कमी सामान्य जीवन की खुशियों में भी कमी लाती है. बहुत से युवा जोड़े सोचते हैं कि बच्चे होने से वे एकदूसरे के करीब आएंगे मगर होता उलटा है.

प्रेमी जोड़ा मातापिता में बदल जाता है

घर में एक बच्चे के आने से जोड़ों के बातचीत करने के तरीके में बदलाव आता है. वे अकसर एकदूसरे से अधिक दूर और व्यावहारिक हो जाते हैं क्योंकि उन की जिंदगी की प्राथमिकताएं बदल जाती हैं. वे बच्चे के पालनपोषण की बारीकियों पर ध्यान देते हैं.

बच्चों को खाना खिलाना, नहलाना और कपड़े पहनाना जैसी बुनियादी बातों में ऊर्जा और समय लगाने लगते हैं. रोमांटिक प्यार भरी बातों के बदले वे बच्चे के डायपर और कपड़ों की दुकानों पर चर्चा करते हैं. दोस्तों या पति के साथ टाइम आउट, डेट नाइट्स, लौंग शौवर्स जैसी चीजें माताओं को न चाहते हुए भी त्यागनी पड़ती है.

क्या कहते हैं आंकड़े

अगर आंकड़ों पर ध्यान दें तो 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों वाली 70.6त्न माताएं कामकाजी हैं. 44त्न कामकाजी माताएं अंशकालिक काम करती हैं जबकि अन्य

56त्न पूर्णकालिक काम करती हैं. 2021 में 39त्न कामकाजी माताएं अपने परिवार की प्राथमिक कमाने वाली थीं.

40त्न कामकाजी माताओं को लगता है कि मातापिता बनने की जिम्मेदारियों के कारण उन्होंने कैरियर के अवसर गवां दिए हैं. 2017 में बच्चों वाले सभी विवाहित दंपती परिवारों में से 63त्न दोहरे कमाने वाले जोड़े थे. 78त्न कामकाजी माताओं का कहना है कि उन की नौकरी उन्हें मातापिता होने के अलावा पहचान की भावना भी देती है.

जो माताएं घर से काम करती हैं वे बच्चों की देखभाल पर प्रतिदिन अतिरिक्त 49 मिनट खर्च करती हैं, उन की तुलना में जो विशेष रूप से कार्यालय में काम करती हैं. 54त्न कामकाजी माताएं कार्य जीवन संतुलन को एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बताती हैं. 36त्न कामकाजी माताओं की रिपोर्ट है कि बच्चे पैदा करने के परिणामस्वरूप उन के कैरियर की प्रगति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.

यह आंकड़ा उन चुनौतियों की याद दिलाता है जिन का कामकाजी मांएं अपने कैरियर में सामना करती हैं. हाल के वर्षों में हुई प्रगति के बावजूद कामकाजी माताओं को समान अवसर प्रदान करने के मामले में अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना बाकी है.

मां कामकाजी हो या घरेलू उसे परेशानियां तो आएंगी ही मगर इन का सामना खुश हो कर करना जरूरी है. वैसे भी मातृत्व का तोहफा हर किसी को नहीं मिलता.  आप को इस तोहफे से नवाजा गया है तो बस इस की वैल्यू और सबकुछ मैनेज करने के तरीके सम?ाने होंगे:

मां बनना आप की प्रमोशन है

मां बनना अपनेआप में आप की जिंदगी की एक प्रमोशन है. आप की जिंदगी एक स्टैप आगे बढ़ती है. आप के पास आप का एक अंश होता है जिसे आप अपने हिसाब से बड़ा करेंगे और कामयाब बनाएंगे. यह एहसास कि वह आप के जैसा है और जिसे आप को काबिल इंसान बनाना है. मां बनने के बाद स्त्री अपने बच्चों के लिए कुछ भी त्याग करने को तैयार होती है. उस के अंदर जिम्मेदारी की भावना आती है. वह अधिक अनुशासन और व्यस्त जिंदगी जीती है.

वह अपनी जिंदगी में सबकुछ अच्छा करना चाहती है ताकि उस का बच्चा कुछ अच्छा सीखे. यही वजह है कि बच्चे पैदा होने के बाद महिला हो या पुरुष वह ज्यादा बेहतर इंसान बनता है.

बेहतर बनती हैं आप

एक महिला जब मां बनती है तो वह अपने अंदर एक बेहतर महिला को पाती है. यह आप का बहुत बड़ा अचीवमैंट है. मातृत्व आप की जिंदगी का एक बहुत बड़ा तोहफा है. इसे बहुत ही सकारात्मक रूप में लेना चाहिए. जिन के बच्चों नहीं होता उन के अंदर एक कमी का एहसास रहता है. आप उस एहसास से आजाद हो चुकी हैं. आप मां बन चुकी हैं.

मां बनने के लिए आप को अगर थोड़ाबहुत त्याग करना पड़े, अपना कैरियर कुछ समय के लिए होल्ड पर रखना पड़े तो घबराए नहीं बल्कि कुछ और रास्ते चुनें ताकि आप मां बनने और इस की जिम्मेदारी निभाने के साथसाथ अपने कैरियर को अलग अंदाज में आगे बढ़ाएं. मां बन जाने का मतलब यह नहीं होता कि अब आप का कैरियर नहीं है या आप को पूरी तरह बच्चों में इन्वौल्व रहना है. ऐसा नहीं है.

बेवजह ऐनर्जी बरबाद न करें

आप मां बनती हैं और बच्चे को बड़ा करती हैं लेकिन इस दौरान अपनेआप को बेहतर बनाना न छोड़ें. आप अपनी पूरी ऐनर्जी बच्चे पर ही खत्म न करें. अपना एक निश्चित समय बच्चे को जरूर दें लेकिन कुछ समय अपने लिए भी रखें.

बहुत सी महिलाएं होती हैं जो बच्चों के लिए जरूरत नहीं हैं तो भी कपड़े खरीद कर ला रही हैं, खिलौने ला रही हैं. किसी चीज की कोई सीमा ही नहीं रखतीं. वे पूरा समय बच्चे के साथ ही उस के कमरे को सजाती रहती हैं. उस की जो जरूरत की चीज नहीं है वह भी तैयार करती हैं या खरीद कर लाती हैं. खिलौनों से कमरे भर देती हैं. स्वैटर बुनती हैं जबकि मार्केट में रैडीमेड अच्छे से अच्छे स्वैटर उपलब्ध हैं.

खुद पर भी काम कीजिए

इन सब चीजों में अपनी ऐनर्जी जाया करने के बजाय आप एक निश्चित समय अपने बच्चों को दीजिए. जितनी जरूरत है उतना समय जरूर दीजिए. लेकिन थोड़ा सा समय और ऐनर्जी अपने लिए भी खर्च कीजिए. आप अभी औफिस नहीं जा रही हैं या जौब छोड़ दी है या छुट्टी पर हैं, जो भी हो पर अपने समय का उपयोग कीजिए. अपनी स्किल को बेहतर बनाने के लिए कुछ नया सीखिए.

अपने काम से रिलेटेड कुछ नई स्किल्स सीखिए या घर से ही ऐसा कुछ काम करिए ताकि अर्निंग हो और आप का मनोबल बढ़े. आप को लगे कि आप कुछ कर रही हैं. छोटीछोटी चीज जो आप सीखती हैं वह आगे काम आएगी. इसलिए आप को जितना मौका मिले अपनेआप को स्किलफुल बनाएं, कुछ नया करें, कुछ नया सीखें. मां बनने का मतलब अपनेआप से अलग होना नहीं है.

बच्चे के लिए सेफ प्रोडक्ट्स की तलाश में

मामार्थ कंपनी की फाउंडर गजल अलग को ‘बिजनैस टुडे’ और ‘फौर्च्यून इंडिया मोस्ट पावरफुल वूमन 2023,’ ‘ईटी 40 अंडर 40,’ ‘सीएनबीसी वूमन फास्ट फौरवर्ड वूमन अचीवर अवार्ड,’ ‘बिजनैस टुडे मोस्ट पावरफुल वूमन 2024,’ ‘बिजनैस वर्ल्ड 40 अंडर 40’ जैसे कई अवार्ड्स से सम्मानित किया जा चुका है. वे देश की शीर्ष 10 महिला कलाकारों की सूची में शामिल हैं. एक कौरपोरेट ट्रेनर, एक कलाकार और नामचीन बिजनैस वूमन होने के साथ गजल एक मां भी हैं.

मां होने के नाते गजल को भी अपने बच्चे की परवरिश के दौरान कुछ समस्याओं का सामना करना पड़ा मगर उन्होंने महसूस की गईं अपनी प्रौब्लम्स का न सिर्फ खुद के लिए बल्कि दूसरों के लिए भी ऐसा सौल्यूशन निकाला कि एक बड़ा बिजनैस ही खड़ा कर दिया. उन्होंने नैचुरल बेबी और ब्यूटी प्रोडक्ट्स बनाने वाली कंपनी मामार्थ की शुरुआत की ताकि नन्हे बच्चों को टौक्सिक कैमिकल्स का सामना न करना पड़े.

गजल बताती हैं कि जब बड़ा बेटा पैदा हुआ तब बेटे के लिए वे नैचुरल और टौक्सिन फ्री प्रोडक्ट्स ढूंढ़ रही थीं. उन्हें इस की जानकारी थी क्योंकि वे यू एस रह कर आई थीं. उस दौरान वहां दुकानों की सैल्फ से एक खास ब्रैंड के प्रोडक्ट्स हटाए जा रहे थे क्योंकि माना जा रहा था कि उन में कार्सिनोजेंस इनग्रीडिऐंट्स होते हैं. उन के बेटे अगस्त्य के लिए जो गिफ्ट्स आए थे उन में उस ब्रैंड के प्रोडक्ट्स भी थे. गजल ने उन का उपयोग करना रोका. इधर अगस्त्य को स्किन इशू था. उस की स्किन काफी सैंसिटिव थी. उस समय गजल ने महसूस किया कि भारत के ज्यादातर प्रोडक्ट्स उसे सूट नहीं कर रहे थे.

एक दिन पति से इस बारे में बात की कि इंडिया में कोई ब्रैंड इस बारे में कुछ कर क्यों नहीं रहा? इंडियन बच्चों को भी अच्छे प्रोडक्ट्स चाहिए. तब वरुण ने कहा कि कोई नहीं कर रहा है तो फिर आप क्यों नहीं करतीं? तब उन्होंने रिसर्च करनी शुरू की और मामार्थ की शुरुआत का फैसला लिया. दिसंबर, 2016 में 6 बेबी केयर प्रोडक्ट्स के साथ उन्होंने इस की शुरुआत की.

मामार्थ के बेबी प्रोडक्ट्स सेफ, टौक्सिन फ्री और नैचुरल इनग्रीडिऐंट्स से तैयार होते हैं. उन्होंने मेड सेफ और्गेनाइजेशन से अपने प्रोडक्ट्स सर्टिफाइड कराए. मामार्थ एशिया का पहला ब्रैंड था जो मेड सेफ सर्टिफाइड था. इस तरह अपने बच्चे को सेफ प्रोडक्ट्स दिलाने की जंग में उन्होंने सेफ टौक्सिन फ्री बेबी प्रोडक्ट्स बनाने शुरू किए और बड़ा ऐंपायर खड़ा कर लिया.

परिवार की सपोर्ट से आगे बढ़ीं रिद्धि भगत

रिद्धि भगत एक कौरपोरेट लीगल कंसल्टैंट हैं और ‘बिंज औन बेक्ड’ की फाउंडर भी हैं. बेकिंग उन के लिए किसी जनून से कम नहीं है. हर किसी की जिंदगी में किसी एक काम को ले कर पैशन होता है उसी तरह बेकिंग हमेशा से उन का पैशन रहा. बतौर कौरपोरेट लीगल कंसल्टैंट काम करते हुए उन्होंने ‘बिंज औन बेक्ड’ की शुरुआत की. ‘बिंज औन बेक्ड’ को लौंच करने का मकसद लोगों को एक सेहतमंद अनुभव से रूबरू करवाना था और इस में वे बहुत हद तक सफल भी रही हैं. उन के सब से अहम प्रोडक्ट्स में कुकीज, केक, पफ्स, पिज्जा, क्रस्ट, ब्रैड, बंस, रस्क और अन्य स्वादिष्ठ स्नैक्स शामिल हैं.

आगरा की रहने वाली 33 साल की रिद्धि  कहती हैं कि जब हम अपने जनून को पाने और उसे पूरा करने की राह चुनते हैं तो हमारे सामने कई तरह की चुनौतियां आती हैं. मु?ो भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. मेरे 2 बच्चे हैं और उन के साथ अपने बिजनैस को संभालना एक बहुत बड़ी चुनौती थी खासकर जब मेरे बच्चे बीमार पड़ते.

ऐसे में मेरा अपने काम पर जाना भी बहुत जरूरी होता तो उस वक्त फैसला लेना आसान नहीं होता था. मगर मेरे सासससुर और परिवार ने मुश्किल वक्त में मेरा पूरा साथ दिया. उन की बदौलत ही मैं अपने काम और परिवार के बीच संतुलन बना सकी.

बच्चे के साथ काम संभाला अपेक्षा निरंजन ने करीब 40 साल की अपेक्षा निरंजन भरतनाट्यम डांसर, कोरियोग्राफर और टीचर हैं. वे अन्य भाषाओं के ज्ञान में भी रुचि रखती हैं जैसेकि अंगरेजी, हिंदी, मराठी, पोलिश, संस्कृत, और तमिल. उन का नृत्य सफर कोल्हापुर से शुरू हुआ जहां उन्होंने कथक का अध्ययन किया. बाद में उन्हें भरतनाट्यम से प्रेम हुआ. मुंबई के अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय मंडल से मास्टर्स डिगरी हासिल की और नालंदा नृत्य अनुसंधान केंद्र से भरतनाट्यम में एक एडवांस्ड डिप्लोमा किया. उन्होंने कई मराठी फिल्मों में अभिनय किया है. इस में ‘जुं?ार,’ ‘मिंगो,’ ‘संग प्रिये तू कुनाची,’ ‘अता लग्नाला चाला,’ ‘आमची दीदी’ और ‘ओवलानी’ जैसी प्रमुख फिल्में शामिल हैं.

अपेक्षा निरंजन पिछले 19 वर्षों से नवी मुंबई में स्थित अपने संस्थान, नृत्यांजलि परफौर्मिंग आर्ट्स के माध्यम से भरतनाट्यम की कला दूसरों तक पहुंचा रही हैं. उन्हें प्राप्त पुरस्कारों में राष्ट्रीय सर्वोत्तम कलाकार पुरस्कार, नृत्य शिरोमणि पुरस्कार, युवा कला रत्न पुरस्कार, वेंगी कला रत्न पुरस्कार, नूपुर कला रत्न पुरस्कार, नटराज सम्मान, नृत्य ज्योति उपाधि, नाट्यकला चूड़ामणि उपाधि, नृत्यरंजिनी उपाधि आदि शामिल हैं.

अपेक्षा निरंजन बताती हैं कि जब मेरा बेटा रूद्र हुआ. उस समय मैं डांस क्लासेज कर रही थी और छोटेछोटे प्रदर्शन कर रही थी. भरतनाट्यम की पढ़ाई भी कर रही थी. बच्चों का ध्यान

रखना, उन की देखभाल करना मेरे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था.

जब मैं क्लास कर रही थी मैं हमेशा रूद्र को साथ लेती और उसे सुलाती. उस के बाद मैं अपने काम शुरू करती. ऐसा ही रूटीन हम ने उस के स्कूल जाने के बाद भी जारी रखा. जब वह घर पर नहीं होता था तब मैं अपनी क्लासेज और प्रैक्टिस समाप्त कर लेती थी. मु?ो हमेशा अपने परिवार का समर्थन मिलता रहा है. मेरे पति ने मु?ो हमेशा सहारा दिया, चाहे वे घर के काम हों या मेरी क्लासेज.

जौब के साथ बच्चे की परवरिश

डा. रेनी जौय ने अपने कैरियर की शुरुआत बैंकिंग सैक्टर से की और ‘सिटी बैंक,’ ‘जीई मनी’ और ‘आरबीएस’ जैसे बड़े बैंकों में उच्च पदों पर काम किया. उस के बाद खुद का काम शुरू करने के मकसद से बैंकिंग सैक्टर की नौकरी छोड़ने का फैसला किया. नौकरी छोड़ने के बाद ला फर्म शुरू की और बतौर कौरपोरेट लायर काम शुरू कर दिया. फिर आलेख फाउंडेशन की शुरुआत की जो एक एनजीओ है. यह महिलाओं और युवाओं के अधिकारों के लिए काम करता है और साथ ही जलवायु परिवर्तन और जल संरक्षण जैसे मुद्दों पर भी लोगों को जागरूक करता है.

डा. रेनी जौय बताती हैं कि जब मेरी बेटी का जन्म हुआ तो मेरे सामने कई तरह की चुनौतियां खड़ी हो गईं. बैकिंग सैक्टर में एक फुलटाइम जौब और उस के साथ मां के रूप में अपनी जिम्मेदारियों को निभाना उस वक्त काफी मुश्किल साबित हो रहा था. एक चुनौती यह भी थी कि इन सब मुश्किलों के बीच घर के माहौल को सकारात्मक बनाए रखा जाए. उस मुश्किल वक्त में मेरी मां और नानानानी ने बच्चों की देखभाल में मेरी मदद की.

अपने काम के लिए मु?ो अकसर एक जगह से दूसरी जगह की लंबी यात्रा करनी होती थी और उस टाइम को भी मैं ने बहुत सही तरीके से मैनेज किया. फिर एक वक्त ऐसा भी आया जब मेरी बेटी बीमार पड़ गई. तब मेरे लिए घर और काम के बीच संतुलन बनाना बहुत ही ज्यादा मुश्किल हो गया था. लेकिन परिवार के समर्थन से वह मुश्किल दौर भी गुजर गया.

 

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