हमारे शास्त्रों और सामाजिक व्यवस्था ने वर्जिनिटी को विशेषरूप से महिलाओं के चरित्र के साथ जोड़ कर उन के लिए अच्छे चरित्र का मानदंड निर्धारित कर दिया है. जबकि, समाज में वर्जिनिटी की परिभाषा इस के बिलकुल उलट ही है.

दरअसल, समाज और शास्त्रों के अनुसार इस का अर्थ है कि आप प्योर यानी शुद्ध हैं. यहां किसी चीज की प्योरिटी की बात नहीं की जा रही है बल्कि लड़की की प्योरिटी की बात की जा रही है. लड़की की वर्जिनिटी को ही उस की शुद्धता की पहचान बना दी गई है. लड़कों की वर्जिनिटी की कहीं भी कोई बात नहीं करता.

आज भी कई जगह वर्जिनिटी टेस्ट के लिए सुहागरात को सफेद चादर बिछाई जाती है. वर्ष 2016 में महाराष्ट्र के अहमदनगर में खाप पंचायत के ज़रिए लड़के द्वारा लड़की को वर्जिनिटी टेस्ट के लिए विवश किया गया. और जब लड़की इस में फेल हुई, तो दोनों को अलग करने के लिए साम, दाम, दंड, भेद सबकुछ आजमाया गया. परंतु लड़के ने हार नहीं मानी और कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जहां से उसे न्याय मिला.

समाज में न जाने इस तरह के कितने मामले पड़े हुए हैं, जिन में लड़कियों का जीवन इसलिए नरक बन जाता है क्योंकि वह लड़की वर्जिन नहीं होती. यानी, इस से पहले उस ने किसी के साथ संबंध इच्छा या अनिच्छा से बनाया होगा. इसी वजह से उसे कैरेक्टरलैस और बदचलन मान लिया जाता है.

डा. ईशा कश्यप कहती हैं कि वर्जिनिटी को ले कर हमारा समाज बहुत छोटी सोच रखता है. इस के कारण आज भी लड़कियों की स्थिति दयनीय है. यहां तक कि कई बार तलाक तक हो जाते हैं और लड़की की आवाज को अनसुना कर दिया जाता है.

कल्याणपुर की नलिनी सिंह का कहना है कि आज भी अगर लड़की वर्जिन नहीं है तो शादी के बाद उसे उस के पति और समाज की घटिया सोच का शिकार होना पड़ता है.

इंजीनियरिंग कालेज की छात्रा अखिला पुरवार ने कहा कि जब लड़कों की वर्जिनिटी कोई माने नहीं रखती तो फिर लड़कियों की वर्जिनिटी को ले कर इतना बवाल क्यों?

हम सब अपने को चाहे कितना मौडर्न कह लें, लेकिन अपनी सोच में बदलाव नहीं ला पा रहे हैं. यदि वर्जिनिटी पर सवाल उठाना ही है तो पहले लड़के की वर्जिनिटी पर सवाल उठाना होगा क्योंकि वह किसी भी समय किसी भी लड़की को शिकार बना कर उस की वर्जिनिटी को जबरदस्ती भंग कर देता है. लेकिन जब शादी का सवाल आता है तो वह ऐसी किसी लड़की को अपना जीवनसाथी बनाने के पहले उस के चरित्र पर बदचलन का दाग लगाने में एक पल भी नहीं लगाता.

हिंदू धर्म में परस्पर विरोधी बातें कही गई हैं. एक ओर तो कुंआरी कन्या को देवी मानते हुए कंजिका पूजन की प्रथा का आज भी प्रचलन है, सामान्यतया सभी परिवारों में नवरात्र में छोटी कन्या को भोजन और भेंट देने का रिवाज है, दूसरी ओर सभी शास्त्र, पुराण, रामायण, महाभारत एक स्वर में कहते हैं कि स्त्री आजादी के योग्य नहीं है यानी वह स्वतंत्रता के लिए अपात्र है.

मनुस्मृति में तो स्पष्ट कहा है –

‘पिता रक्षति कौमारे , भर्ता रक्षित यौवने

रक्षंति स्थविरे पुत्रा न स्त्री स्वातंत्र महेति.’ (मनुस्मृति 9-3 )

स्त्री जब कुंआरी होती है तो पिता उस की रक्षा करते हैं, युवावस्था में पति, वृद्धावस्था में पति नहीं रहा तो पुत्र उस की रक्षा करता है. मतलब यह है कि जीवन के किसी भी पड़ाव पर स्त्री को स्वतंत्रता का अधिकार नहीं है. बात केवल मनुस्मृति तक सीमित नहीं है. महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में इस की पुष्टि करते हुए कहा कि स्वतंत्र होते ही स्त्री बिगड़ जाती है.

‘महावृष्टि चलि फूटि कियारी जिमि सुतंत्र भये बिगरहिं नारी.‘

महाभारत में कहा गया है कि पति चाहे बूढ़ा, बदसूरत, अमीर या गरीब हो; परंतु स्त्री के लिए वह उत्तम आभूषण होता है. गरीब, कुरूप, निहायत बेवकूफ, या कोढ़ी हो, पति की सेवा करने वाली स्त्री को अक्षय लोक की प्राप्ति होती है.

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मनुस्मृति कहती है कि पति चरित्रहीन, लंपट, अवगुणी क्यों न हो, साध्वी स्त्री देवता की तरह उस की सेवा करे. वाल्मीकि रामायण में भी इसी तरह का उल्लेख है.

हिंदुओं का सब से लोकप्रिय महाकाव्य ऐसी स्त्री को सच्ची पतिव्रता मानता है जो स्वप्न में भी किसी परपुरुष के बारे में न सोचे. तुलसीदास यहां भी नहीं रुके, उन्होंने उसी युग को कलियुग कह दिया जब स्त्री अपने सुख की कामना करने लगती है.

इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के प्रभाव से आज भी हमारे समाज में विवाह से पूर्व कौमार्य का भंग होना बेहद शर्मनाक माना जाता है अर्थात यह आज भी समाज में पहले की ही तरह लगभग अस्वीकार्य है.

सच कहा जाए, तो इसी यौनशुचिता की रक्षा में हमारा ऩ सिर्फ पूरा बचपन और कौशोर्य कैद कर दिया जाता है बल्कि हमारी बुनियादी आजादी भी हम सब से छीन ली जाती है.

वर्जिनिटी को बचाने का सारा टंटा सिर्फ इसलिए है कि महिलाएं अपने पति को यह मानसिक सुख दे सकें कि वही उन के जीवन का पहला पुरुष है. यह वही है जिस के लिए आप ने स्वयं को सालों तक दूसरे लड़कों और पुरुषों से बचा कर रखा है. शादी से पहले लड़कियों को हजारों तरह के निर्देश दिए जाते हैं… यहां नहीं जाओ, उस से मत मिलो, लड़कों से दूरी बना कर रखो, उस से दोस्ती मत करो, रिश्तेदारों के यहां अकेले मत जाओ, शाम से पहले घर लौट आना आदिआदि.

ये सारे प्रतिबंध सिर्फ कौमार्य की रक्षा को दिमाग में रख कर ही लगाए जाते हैं. सूरत की असिस्टेंट प्रोफैसर कहती हैं कि हम यह भी कह सकते हैं कि ‘वर्जिनिटी हमारी है, लेकिन हमारी हो कर भी हमारे लिए नहीं है.’ इसलिए आजकल लड़कियों का कहना है कि जब यह हमारे लिए है ही नहीं, तो इसे बचाने का क्या फायदा.

हालांकि आज 21वीं सदी में वर्जिनिटी को बचाए रखने का चलन अब फुजूल की बात होती जा रही है परंतु आज भी ऐसी लड़कियों की कमी नहीं है जो इसे कुछ भी न मानते अपनी वर्जिनिटी तोड़ने की हिम्मत नहीं कर पाती हैं. इन में से कुछ के आड़े अपने संस्कार की हैवी डोज या फिर अगर किसी ने जान लिया तो क्या होगा? या कई बार सही मौका नहीं मिल पाना भी इस की वजह बन जाता है.

वैसे अच्छी बात यह हो गई है कि अब लड़कियां उन्हें बुरा नहीं मानतीं जिन्होंने अपनी मरजी से वर्जिनिटी खोने को चुना है.

मार्केटिंग प्रोफैशनल इला शर्मा बीते कई सालों से मुंबई में रहती हैं. वे कहती हैं कि यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं है जिस पर इतना बवाल मचाया जाए. यदि लड़के वर्जिन लड़की च़ाहते हैं तो उन्हें भी पहले अपनी वर्जिनिटी को संभाल कर रखना चाहिए.

लड़कियों की वर्जिनिटी के लिए पूरा समाज सजग है और सब यही चाहते हैं कि लड़कियां वर्जिन ही रहें, लेकिन लड़कों के बारे में ऐसा नहीं सोचा जाता. मुझे समाज के इस दोहरे पैमाने से बहुत तकलीफ होती है.

परंतु वर्जिनिटी को ले कर मुखर निशा सिंह एक चौंकाने वाली बात कहती हैं. उन का कहना है कि आप यह कैसे मान सकते हैं कि एकदो सैंटीमीटर की कोई नाजुक सी झिल्ली, 5 फुट की लड़कियों के पूरे अस्तित्व पर भारी पड़ सकती है. यह सुनने में अजीब सा लगता है परंतु अफसोस, कि सच यही माना जाता है. एक पतली सी झिल्ली, जिसे विज्ञान की भाषा में ‘हाइमन’ कहा जाता है, लड़कियों के पूरे अस्तित्व को किसी भी पल कटघरे में खड़ा कर सकती है.

वे कहती हैं कि उन की उम्र 40 साल होने जा रही है, लेकिन वे आज भी वर्जिन हैं. कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि इतने सालों घर से बाहर रहने के बावजूद दिमाग की कंडीशनिंग काफी हद तक वैसी ही है. सच तो यह है कि कई बार अपने को आजाद छोड़ने के बाद भी अपने को सहज या नौर्मल नहीं पाती हूं. मुझे लगता है कि मेरे संस्कार और मां पापा का भरोसा तोड़ने से जुड़े अपराधबोध के डर से ही मैं आज तक चाहेअनचाहे वर्जिन हूं.

नोयडा की एक विज्ञापन कंपनी में काम करने वाली नीलिमा घोष वर्जिनिटी पर महिलाओं की सोच की थोड़ी स्पष्ट तसवीर दिखाती हैं, “मुझे लगता है कि लड़के चाहते तो हमेशा यही हैं कि उन की पत्नी वर्जिन हो, अगर नहीं, तो भी चल जाता है. यह चला लेना बताता है कि अंदर ही अंदर लड़कों को इस बात से फर्क पड़ता है, इसलिए उन्हें सच बताना आफत मोल लेना है. इसलिए पति हो या बौयफ्रेंड, उस से झूठ बोलना ही ठीक वरना इस बात को ले कर वह किसी भी समय कोई भी सीन क्रिएट कर सकता है. इसलिए अपने सुखी भविष्य के लिए झूठ बोलना ही अक्लमंदी है.”

वैसे तो आज के समय में समझदार लोगों के लिए वर्जिनिटी का कोई मतलब नहीं रह गया है परंतु यह भी स्वीकार करना होगा कि आज भी यदि किसी वजह से कोई लड़की अपनी वर्जिनिटी खो चुकी है तो लोगों के लिए ‘खेलीखाई’ है और वह सर्वसुलभ है. उस के लिए लोगों का सोचना होता है कि जब एक बार किसी के साथ मजे ले चुकी है तो फिर दूसरों के साथ भला क्या दिक्कत है. तलाकशुदा महिलाएं अकसर इस की शिकार होती हैं. मेरठ के एक प्राइवेट स्कूल की अध्यापिका बुलबुल आर्य कहती हैं, “मुझे लगता है कि कई लोग यह सोचते हैं कि मैं उन के लिए आसानी से उपलब्ध हूं. मेरी तरफ से कोई भी इशारा पाए बिना ही सब यह मान कर चलते हैं कि शादी के बाद मैं सेक्स की हैबिचुअल हो चुकी हूं और अब पति मेरे साथ नहीं हैं, इसलिए वे इस कमी को पूरी करने के लिए आतुर रहते हैं. ऐसी सोच मेरी लिए बहुत डिस्गस्टिंग है कि सिर्फ मेरी वर्जिनिटी खत्म होने से मैं उन सब के लिए अवेलेबल लगती हूं. बुलबुल जैसी लड़कियों के लिए व्यक्तिगत रूप से वर्जिनिटी कोई बड़ा मुद्दा न होते हुए भी बड़ा हो जाता है.”

यौनशुचिता को ले कर चली आ रही सोच का पोषण करते हुए विज्ञान ने हाइमन की सर्जरी जैसे उपायों को भी प्रचलन में ला दिया है. यद्यपि अपने देश में यह अभी शुरुआती दौर में है और काफी मंहगी भी है परंतु यह इशारा करता है कि हम विवाहपूर्व भी अपनी सैक्सुअल लाइफ को जीना और एंजौय करना चाहती हैं लेकिन अपनी ‘अच्छीलड़की‘ वाली इमेज कभी टूटने नहीं देना चाहती हैं. ताकि, पति की तरफ से वर्जिन पत्नी को मिलने वाली इज्जत व प्यार मिल सके.

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वास्तविकता यह है कि वर्जिनिटी के सवाल पर हम कुछ कन्फ्यूज्ड हैं. वर्जिनिटी पर हम एक ही समय पर दो तरह से सोचते हैं. एक ओर तो ऐसे सभी कैरेक्टर सर्टिफिकेट्स को चिंदीचिंदी कर के फाड़ कर फेंक देना चाहते हैं जो वर्जिनिटी बताते हैं, दूसरी तरफ हम खुद ही चाहेअनचाहे उसे बचा कर रखना चाहते हैं.

हमारा समाज और हमसभी अभी भी इस सोच से ग्रसित हैं कि वर्जिनिटी खो चुकी लड़कियां गंदी होती हैं.

मांबाप अपनी बेटियों को विवाहपूर्व यौन संबंधों से बचाने के लिए अकसर ही ‘हम तुम पर बहुत भरोसा करते हैं‘ से भावनात्मक हथियार का प्रयोग करते हैं. ऐसे में यदि कोई लड़की अपनी वर्जिनिटी खत्म करती भी है तो वह अपने मांबाप का त्ररोसा तोड़ने के अपराधबोध से ग्रसित हो जाती है.

वैसे अब देखा जाता है कि लड़कियों में यह चाह तो जागने लगी है कि जैसे लड़कों के लिए वर्जिनिटी खोना कोई मसला नहीं है, वैसे ही लड़कियों के लिए भी क्यों न हो. परंतु अभी तो बहुत कोशिशों के बाद भी हमारा समाज इस मसले पर सहज नहीं है. बस, अब इस पर होने वाले बवाल से बचने के लिए लड़कियां झूठ बोलने में ज़रूर सहज हो गई हैं.

इस संदर्भ में ‘पिंक’ मूवी का उल्लेख करना चाहूंगी जो स्त्री की यौन स्वतंत्रता के प्रति समाज की मानसिकता को जगाने का प्रयास करती है. देह उपयोग को ले कर स्त्री की अपनी इच्छाअनिच्छा को भी उसी अंदाज में स्वीकार करना होगा जैसे कि पुरुष की इच्छाअनिच्छा को समाज सदियों से स्वीकार करता आया है. इस विचार से ‘पिंक’ एक पिक्चर नहीं, बल्कि एक मूवमैंट है. यदि स्त्री को अपने अधिकार के लिए लड़ना है तो आवश्यक है कि समाज का माइंडसैट बदलना होगा.

समाज की धारणा को बदलने के लिए पहले स्त्री को स्वयं अपनी सोच को बदलने की आवश्यकता है.

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