मीनाक्षी विजयी मुद्रा में देररात अपने घर पहुंची. 2 ही दिनों के बाद विशाल का फोन आ गया कि उस ने डीआईजी से बात कर ली है. अरुण नाईक की जल्दी ही रिहाई हो जाएगी. डीआईजी के प्रमोशन के लिए विशाल ने ही मुख्यमंत्री से सिफारिश की थी, इसलिए उसे यकीन था कि डीआईजी उस का यह काम जरूर कर देंगे. डीआईजी को भी विशाल के उपकारों का कर्ज उतारना था, उन्होंने विशाल का काम कर दिया और कुछ ही दिनों में अरुण नाईक जेल से रिहा हो गया.

अपने पति की रिहाई के एक दिन बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन किया, ‘मीनाक्षी तुम्हारा काम हो गया है न, मुझे धन्यवाद देने नहीं आओगी?’

‘आऊंगी न सर, जरूर आऊंगी. आप ने जो काम किया है उस का दाम भी तो चुकाना पड़ेगा न,’ मीनाक्षी ने हंसते हुए कहा.

‘ठीक है, कल शाम को आ जाना. हम तो तुम्हारा बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. मीनाक्षी, तुम ने तो हम पर जादू कर दिया है,’ खुशी से उछलते हुए विशाल ने कहा.

विशाल और मीनाक्षी की दोस्ती गहरी होती जा रही थी जिस का पूरापूरा फायदा अरुण नाईक उठा रहा था. वह अपनी रिहाई के बाद शहर में सांड की तरह घूमने लगा और छोटेमोटे अपराध करने शुरू कर दिए. अरुण नाईक को भी यह यकीन हो गया था कि अब मीनाक्षी अपनी पहुंच से उस को बचा लेगी. उधर मीनाक्षी ने विशाल के साथ अपनी खास दोस्ती का फायदा उठाना शुरू कर दिया. अब उस का उठनाबैठना हाई सोसाइटी में होने लग गया था. वह अफसर या किसी भी मंत्री की केबिन में सहज शिरकत कर सकती थी. मगर विशाल इस बात से अनजान था.

एक दिन विशाल ने बातोंबातों में मीनाक्षी से कहा, ‘मीनाक्षी, चीफ सैक्रेटरी का मेरा प्रमोशन अटका हुआ है. मेरी फाइल उन के पास पड़ी हुई है. फिर आजकल मुख्यमंत्री महोदय मुझ से नाराज चल रहे हैं. एक बार मैं तुम्हें उन से इंट्रोड्यूस करवाना चाहता हूं. क्या तुम उन से मिलना चाहोगी? एक बार उन से तुम्हारी दोस्ती हो जाएगी तो तुम्हें आगे बहुत फायदा होता रहेगा और मेरी फाइल भी…’

विशाल अपनी बात समाप्त करे इस से पहले मीनाक्षी मुसकराते हुए बोली, ‘समझ गई विशाल, मैं और किसी के लिए नहीं पर तुम्हारे लिए उन से जरूर मिलूंगी.’ यह कहते हुए वह विशाल की बांहों में झम गई.

मीनाक्षी को यह पता था कि 2-3 साल पहले मुख्यमंत्री की पत्नी का निधन हो गया था, उन का एक ही बेटा है जो यूएस में पढ़ाई कर रहा है. मुख्यमंत्री अकेले ही रहते हैं. एक दिन विशाल ने अपने जन्मदिन की छोटी सी पार्टी में मुख्यमंत्री से मीनाक्षी की मुलाकात करवा दी. विशाल ने देखा कि मुख्यमंत्री मीनाक्षी को ऐसे देख रहे थे मानो वे नजरों से ही उसे निगल जाएंगे. विशाल के चेहरे पर मुसकान की एक महीन लकीर फैल गई. कुछ ही दिनों बाद मीनाक्षी और मुख्यमंत्री में मुलाकातें बढ़ने लगीं. मीनाक्षी ने मुख्यमंत्री पर अपने हुस्न का ऐसा जादू किया कि 4 दिनों में ही विशाल राज्य का चीफ सैक्रेटरी बन गया.

अपने प्रमोशन से अपार खुश विशाल तो अब मीनाक्षी की उंगलियों पर नाचने लगा था. वहीं, मीनाक्षी के पास वीडियोरूपी दोचार ब्रह्मास्त्र थे जिन का उपयोग वह आपातकालीन हालात में कर सकती थी.

एक दिन मीनाक्षी ने विशाल को फोन किया. ‘हैलो विशाल, कौंग्रेचुलेशन. पार्टी कब दे रहे हो?’

‘थैंक्यू मीनाक्षी, तुम ने तो कमाल कर दिया. जो फाइल 6 महीने तक नहीं हिल रही थी, उसे तुम ने 6 दिनों में निबटा दिया. ग्रेट जौब, तुम बताओ पार्टी कब चाहिए?’

‘शुभस्य शीघ्रम. कल ही हो जाए.’

‘व्हाई नौट, मीनाक्षी.’

अब तो मीनाक्षी की आएदिन पार्टियां हो रही थीं. कभी किसी अफसर के साथ तो कभी किसी मंत्री के साथ, कई बार मुख्यमंत्री भी उसे अपने बंगले पर बुला लेते. अब मीनाक्षी का रहनसहन बदल गया था. अरुण नाईक ने भी महसूस किया कि मीनाक्षी के बरताव में अब बदलाव आ रहा है, मगर उस ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. वह तो अपनी अपराध की दुनिया में निश्ंिचत हो कर मौजमस्ती लूटने में मशगूल था. उसे पता था कि अब मीनाक्षी की पहुंच मुख्यमंत्री तक है, तो उस का कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

मगर इधर मीनाक्षी के दिमाग में अलग खिचड़ी पक रही थी. वह अब अरुण की करतूतों से तंग आ चुकी थी. उस के छोटेमोटे अपराधों के कारण जबजब उसे जेल हो जाती थी या उस पर मुकदमा चलता था तबतब उसे छुड़ाने के लिए उसे कभी किसी पुलिस के आला अफसर या मंत्री के साथ हमबिस्तर होना पड़ता था. एक दिन उस ने अपने मन की बात विशाल को बताई कि वह अरुण से अब दूर होना चाहती है. उस के आपराधिक जीवन से अब उसे घृणा हो गई है. विशाल कुमार की मदद से उस ने एक योजना बनाई कि किसी मुठभेड़ में फर्जी एनकाउंटर से अरुण का सफाया कर दिया जाए.

पहले तो विशाल ने इस के लिए स्पष्ट रूप से मना कर दिया, पर मीनाक्षी ने जब उसे एक वीडियो क्लिप की झलक दिखाई तो उस के पसीने छूट गए. वह घबरा कर बोला, ‘मीनाक्षी, यह वीडियो तुम ने कब  शूट किया?’

मीनाक्षी ने मुसकराते हुए कहा, ‘जनाब, यह तो अपनी पहली मुलाकात का वीडियो है. ऐसे और भी वीडियो मेरे पास हैं. इसलिए, तुम मेरे रास्ते से अरुण को हटाने का इंतजाम कर दो, वरना ये वीडियो वायरल करने में मुझे ज्यादा समय नहीं लगेगा.’

विशाल के पैरोंतले की जमीन खिसकने लगी. उस ने गिडगिड़ाते हुए कहा, ‘मीनाक्षी, प्लीज इसे डिलीट कर दो. मैं तुम्हारा काम कर दूंगा.’

‘डोंट वरी विशाल, पहले मेरा यह काम कर दो, फिर मैं इसे तुम्हारे सामने ही डिलीट कर दूंगी,’ मीनाक्षी ने शरारती मुसकान बिखेरते हुए कहा.

विशाल का गला सूख गया, बदन पसीने से तरबतर हो गया. उस के सामने अंधकार छा गया. उसे नहीं पता था कि मीनाक्षी ने कोई वीडियो बनाया है. विशाल ने तुरंत हाथपैर मारना शुरू कर दिया. अपने डीआईजी दोस्त से बात की. फिर मुख्यमंत्री को जैसेतैसे पटाया. अरुण इन दिनों पुलिस कस्टडी में ही था. उसे तारीख के मुताबिक कोर्ट ले जाना पड़ता था. पुलिस मौके की तलाश में थी.

एक दिन पुलिस अरुण को उस की बीमार मां से मिलवाने के लिए गांव ले जा रही थी. रात को लौटते समय अरुण लघुशंका के बहाने पुलिस वैन से उतरा. उस ने उतरते समय एक पुलिस अधिकारी की पिस्तौल छीन ली और जंगल में भाग गया. वह पुलिस पर गोली चलाने लगा. जवाबी कार्रवाई में पुलिस द्वारा की गई फायरिंग में अरुण ढेर हो गया. इस बार विशाल के नसीब से मुठभेड़ असली हुई जिस में अरुण नाईक मारा गया. मगर प्रैस ने इस मामले को नकली एनकाउंटर बता कर बहुत उछाला. कुछ दिनों तक मामला मीडिया में छाया रहा, बाद में धीरेधीरे ठंडा हो गया.

मीनाक्षी को पता नहीं चल सका कि अरुण नाईक की मौत फर्जी एनकाउंटर में हुई है या वह पुलिस पर गोलियां चलाते समय जवाबी कार्रवाई में मारा गया मगर इस का सारा श्रेय विशाल ने ले लिया. मीनाक्षी ने भी यह मान लिया कि विशाल के इशारे पर ही अरुण नाईक का सफाया किया गया है.

अरुण नाईक की मौत के बाद मीनाक्षी ने उस की सारी जायदाद बेच कर दूसरे शहर में बसने का मन बना लिया. वह चाहती थी कि अब वह एक साफसुथरी जिंदगी जिए. जब अरुण नाईक के गैंग के बाकी गुंडों को इस बारे में पता चला तो वे मीनाक्षी से उस जायदाद में अपना हिस्सा मांगने लगे. उन का कहना था कि वे अरुण नाईक के लिए ही काम करते थे, हफ्तावसूली और फिरौती से प्राप्त सारी रकम अरुण के पास जमा होती थी. वे उसी के लिए तो किसी का अपहरण, हत्या, मारपीट आदि करते थे. बंटवारे को ले कर गैंग के लोगों में मारपीट हो गई और गोलियां भी चलीं. मीनाक्षी ने सभी को समझने की कोशिश की. मगर सभी एकदूसरे की जान लेने पर उतारू हो रहे थे.

मीनाक्षी ने इस मामले में विशाल की मदद लेना उचित समझ. इसीलिए वह बारबार विशाल को फोन लगा रही थी.

‘‘मिस्टर विशाल, तुम्हारा ध्यान कहां है?’’ मुख्यमंत्री ने क्रोधित हो कर तेज आवाज में कहा तो विशाल अतीत से वर्तमान में लौटे, बोले, ‘‘सर कहीं नहीं, बस यों ही थोड़ा ध्यान भटक गया था फैमिली मैटर में.’’

मीटिंग खत्म होने के बाद विशाल ने मीनाक्षी को फोन लगाया, ‘‘क्या बात है मीनाक्षी, मैं मुख्यमंत्री के साथ एक मीटिंग में बिजी था.’’

‘‘विशाल, मैं इन गुंडों के बीच बुरी तरह फंस गई हूं. मुझे इन से छुटकारा दिलाओ यार, नहीं तो मैं एक दिन सब को गोली मार दूंगी,’’ गुस्से से तमतमाते हुए मीनाक्षी ने कहा.

‘‘ओह, मीनाक्षी, थोड़ा धीरज रखो. मैं ने डीआईजी से बात कर ली है. वे एक दिन सब को अंदर डाल देंगे. तब तुम आराम से रहना. अपनी सारी जायदाद भी बेच देना,’’ विशाल ने समझते हुए कहा.

मगर मीनाक्षी राजी नहीं हुई. वह जानती थी कि विशाल का एक फ्लैट खाली पड़ा है जिस में वह इन गुंडों का खात्मा होने तक कुछ दिनों के लिए रह सकती है. मगर विशाल नहीं चाहता था कि मीनाक्षी इस फ्लैट में रहे. यह फ्लैट उस के औफिस के ठीक सामने वाली बिल्ंिडग में था.

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