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‘‘हैलो अपराजिता, अभीअभी मेल आया है. मुझे यूनीयन बैंक की नेहरू पैलेस वाली ब्रांच में एक तारीख को जौइन करना है.  हम सब शाम को बबल्स जा रहे हैं पार्टी करने. तू 7 बजे तक वहां जरूर पहुंच जाना,’’ काव्या ने नौकरी मिलने की खुशी में चहकते हुए अपनी जिगरी सहेली अपराजिता से कहा.

‘‘क्या तुझे भी नेहरू पैलेस ब्रांच जौइन करना है? मुझे भी वहीं का अपौइंटमैंट लैटर आया है.’’

‘‘ओ…’’ वह खुशी से चीखी, ‘‘यार हम ने एक स्कूल में पढ़ाई की, एक ही कालेज, यूनिवर्सिटी में साथ रहे और अब एक ही जगह नौकरी. मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा. मैं अभी जा कर मम्मापापा को बताती हूं. वे भी बहुत

खुश होंगे. चल शाम को देर मत करना. टाइम पर पहुंच जाना. आज तो डबल धमाका करेंगे,’’ अपूर्व खुशी से उछलते हुए काव्या ने अपराजिता से कहा.

फोन रख कर अपराजिता तनिक उदास हो उठी. घर में ऐसा कोई भी तो नहीं है, जिस से वह खुल कर अपने मन की खुशी बांट पाए. कहने को 2 बड़े भाई हैं, लेकिन उन का होना न होने के ही बराबर है. उन दोनों की जिंदगी में उस की कोई अहमियत ही नहीं. बस अपनाअपना राग अलापते रहते हैं दोनों.

मां को भी उस की जिंदगी से कोई सरोकार नहीं. उन की नजरों में उस की खुशियोंगमों का कोई मोल नहीं. उन्हें तो दोनों भाइयों के आगे कुछ दिखता ही नहीं.

अनायास आंखों के सामने काव्या का खिलाखिला चेहरा कौंध उठा

कि कितनी खुश है काव्या… जान छिड़कने वाले पेरैंट्स और एक छोटा भाई. उन के घर पर तो काव्या की बैंक जौइनिंग को ले कर जश्न मन

रहा होगा.

तभी उस की मां वहां आईं, ‘‘अरे छुटकी,  जरा कुछ रुपए तो देना. बड़ा भाई रुपए मांग

रहा है. उस के जूते टूट गए हैं. उसे नए जूते खरीदने हैं.’’

अपराजिता के मन की कड़वाहट जबान पर उतर आई, ‘‘मां, भैया से कहो अपने खर्चे खुद झेला करें. कल सहेलियों की पार्टी करी थी नई नौकरी की.  इस महीने के सारे ट्यूशन के रुपए खर्च हो गए.’’

‘‘अरे करम जली, पार्टी में सारे रुपए खर्च कर दिए? इतने में तो बड़ा भाई के जूते आ जाते. बिचारा टूटे जूतों से काम चला रहा है. क्या जरूरत थी भला पार्टी करने की? नौकरी ही तो लगी है. कोई राजपाट नहीं मिल गया जो पैसे उड़ाती फिर रही है. भाई चाहे जीए या मरे, इन महारानी को पार्टी करनी है.’’

मां के कड़वे बोलों से अपराजिता की आंखों में आंसू डबडबा आए. उन्हें रोकने का प्रयास करते हुए वह  बोली, ‘‘अभी पिछले

महीने ही भैया ने मुझ से पैसे ले कर अपने

बर्थडे की पार्टी की थी. उस से पिछले महीने

छोटे भैया ने  पिकनिक पार्टी में मेरे पूरे 5 हजार रुपए उड़ा डाले थे. उन से तो आप कुछ नहीं बोलतीं. मैं ने अपने ही पैसों से जरा पार्टी क्या कर दी, आप टोकाटाकी कर रही हैं. हद है मेरे

ही पैसों पर मेरा कोई हक नहीं. मां यह बात

सही नहीं.’’

‘‘चल, चल, चुप रह. ज्यादा जबान न चला. जरा दो पैसे क्या कमाने लग गई, जमीन पर तेरे पैर ही नहीं रहे. आसमान में उड़ने लगी है. अपनी हद में रह लड़की.’’

‘‘हमेशा भाइयों का ही पक्ष लेती हो आप. आप की इसी तरफदारी और अंधे प्यार की वजह से दोनों आज तक सही ढंग से सैट नहीं हो पाए हैं. मैं दोनों से इतनी छोटी हूं और मेरी बैंक में नौकरी लग गई. ये दोनों अभी तक नौकरी की तलाश में जूते घिस रहे हैं.’’

‘‘बस, बस कर छुटकी. तेरी जबान बहुत लंबी हो आई है आजकल. कोशिश कर तो रहा हूं. कहीं न कहीं नौकरी लग ही जाएगी,’’ बड़े भाई ने  तनिक तैश में आते अपराजिता से कहा.

‘‘भैया, आप बैठ कर ढंग से पढ़ाई तो

करते नहीं. दिन भर दोस्तों के साथ बाहर रहते

हो. बिना पढ़ाई करे कोई बढि़या नौकरी नहीं मिलती. नौकरी के लिए बहुत मेहनत करनी

पड़ती है. देखा नहीं? पूरा साल कितनी कड़ी मेहनत की मैं ने तब जा कर यह ऐग्जाम क्लियर कर पाई.’’

तभी बड़े भैया का पक्ष लेते हुए मां फिर

से बोलीं, ‘‘अरे, दोनों भाई भारी मांगलिक हैं

और मांगलिक बच्चों के हर काम देर से होते हैं. दोनों को नौकरी मिलने में देर जरूर हो रही है, लेकिन मेरी बात गांठ बांध ले लड़की जल्द ही तुझ से भी बढि़या नौकरी लगेगी मेरे दोनों कुंवरों  की.’’

‘‘हां मां, दिन भर यारदोस्तों के साथ रह कर नौकरी लग जाती तो आज कोई बेरोजगार ही नहीं होता. लेकिन आप सब को यह बात समझ में आए तब तो. नौकरी नहीं लगी तो मांगलिक होने की वजह से. वाह वाह क्या लौजिक है,’’ अपराजिता ने मां को पलट कर जवाब दिया और फिर खिन्न मन से अपने कमरे में चली गई.

उस ने एक बार फिर से अपना लैपटौप औन कर मेल खोल कर अपना अपौइंटमैंट लैटर देखा. उसे करीब 70 हजार रुपए सैलरी मिलेगी. इतना बढि़या वेतन देख कर मन की भीतरी तह तक  मानो गहरा सुकून पहुंचा. वह आंखें बंद कर पलंग पर लेट गई.  मन पखेरू कब वर्तमान से अतीत में जा कर फुदकने लगा पता ही नहीं चला.

उस ने एक निम्न मध्यवर्गीय परिवार में अपने मातापिता की सब से छोटी संतान के रूप में जन्म लिया था. उस से बड़े 2 भाई थे. पुरातनपंथी सोच वाले मातापिता ने हमेशा उसे भाइयों की तुलना में कमतर आंका. मांपिता ने बचपन से उस के लड़की होने की वजह से उस से भेदभाव किया.

हर कदम पर उसे एहसास दिलाया जाता कि लड़की होने की वजह से वह दोयम दर्जे पर है. मातापिता का लाड़प्यार क्या होता है, उस ने कभी महसूस ही नहीं किया. उन का सारा दुलार दोनों भाइयों के हिस्से में आता. उन की हर जरूरत का ध्यान रखा जाता. उन की हर छोटीबड़ी, जायजनाजायज मांग पूरी की जाती. खानेपीने, पहननेओढ़ने सब में उन दोनों और उस के बीच साफसाफ फर्क दिखता. उन की हर बात को तवज्जो दी जाती. दोनों भाई हमेशा मातापिता की गोद में चढ़ेचढ़े इठलाते, जबकि वह तृषित  निगाहों से उन्हें देखती.

अपराजिता के मासूम कोमल मन पर मातापिता के इस भेदभाव भरे रवैए ने बहुत गलत प्रभाव डाला. दिनरात मातापिता और भाइयों की उपेक्षा की शिकार वह उन सब के इस रवैए से अपनी ही खोल में सिमटती गई. अंतर्मुखी बन गई. बहुत कम बोलती.

उसे सुकून मिलता तो मात्र किताबों में. किताबों के काले अक्षरों में रम वह दीनदुनिया भूल जाती. अपना दर्द भूल जाती. दुनिया में कोई रोशन कोना था तो वह था उस का स्कूल.

जहां घर में उसे उपेक्षा मिलती, वहीं  स्कूल में उस की पढ़ाकू प्रवृत्ति ने उसे सभी शिक्षकशिक्षिकाओं की आंखों का तारा बना दिया.

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