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बीजी के जाने से पहले हम 6 सदस्य थे इस घर के- मैं, मेरी पत्नी, बाबूजी, बीजी और 2 बच्चे किट्टी और चीनू. यह घर बाबूजी ने 35 साल तक क्लर्की करने के बाद बड़ी मुश्किल से बनवाया था. डेढ़ साल पहले मैं ने बीजी के पहले खुल कर, फिर चुप विरोध के बाद भी घर की छत पर 4 कमरों का सैट बना ही दिया. राजी के कहने पर मैं अपने बच्चों के साथ अब इसी से में रह रहा हूं.

मुझे तब बाबूजी, बीजी को नीचे वाले घर में अकेले छोड़ते हुए बुरा भी लगा था, पर राजी के सामने हथियार डालने पड़े थे. शायद इस के पीछे यह भी हो सकता है कि हर मर्द को चाहे अपने घर की तलाश हो या न हो, पर हर औरत को जरूरत होती है. हर मर्द कहीं अपने लिए स्पेस ढूंढ़े या न ढूंढ़े पर हर औरत को अपने लिए एक स्पेस चाहिए, जो केवल और केवल उसी की हो.

बाबूजी तब माहौल ताड़ गए थे जब मैं ने उन से छत पर सैट बनाने के बारे में बताया था, पर बीजी साफ मुकर गई थी यह कहते हुए, ‘‘क्या जरूरत है छत पर एक और घर बनाने की? इसी में जब सब ठीक चल रहा है तो और बेकार का खर्चा क्यों? जिस को तंगी हो रही हो वह बता दे. मैं बाहर के कमरे में सो जाया करूंगी. संकेत, क्या तुझे अच्छा नहीं लगता कि सारा परिवार एक छत के नीचे रहे? एक चूल्हे पर बना सब एकसाथ खाएं?’’ कह बीजी को जैसे आभास हो गया था कि छत के ऊपर सैट बन जाने का सीधा सा मतलब है कि...

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