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वादियों की मीठी ठंडक बटोरते बटोरते, धूप और धुंध की आंखमिचौली देखतेदेखते, चीड़ और देवदार के पत्तों के बीच से छन कर आती विशुद्ध हवा को सांसों में भरते हुए कब शिमला पहुंच गए और कब गाड़ी ‘हिमलैंड’ की पार्किंग में जा लगी, अर्चना को पता ही नहीं चला.

रजत महाशय ने तो होटल की सीढि़यां चढ़ते ही घोषणा कर दी, ‘‘गाड़ी चलातेचलाते अपना तो बैंड बज गया भई, अपुन को अब कल सुबह से पहले कोई कहीं चलने के लिए न कहे. आज पूरा रैस्ट.’’

बच्चे राहुल और रिया तो कमरे में पहुंचते ही जूते उतार कर कंबल में दुबक गए और अर्चना बाथरूम में घुस गई.

बढि़या कुनकुने पानी से नहा कर लौटी तो राहुल और रिया गरमागरम कौफी पीते हुए टीवी देख रहे थे और रजत अर्चना और खुद के लिए कौफी तैयार कर रहे थे. अर्चना  को सुनहरे सितारों वाले सुर्ख सलवारसूट में सजे देख कर उन्होंने चुटकी ली, ‘‘ये बिजली कहीं गिरने जा रही है क्या?’’

‘‘हां, जरा, माल रोड का एक चक्कर लगा कर आती हूं.’’

‘‘तुम थकती नहीं यार?’’

‘‘लो, थकना कैसा? बैंड तो आप का बजा. मैं तो आराम फरमाती आई हूं. यों भी रजत, साल भर पत्थरों के पिंजरे में कैद रहने के बाद ये 6-7 दिन मिले हैं मुझे आजादी के, इन में से आधा दिन भी होटल के बंद कमरे में बैठ कर गुजारना मंजूर नहीं मुझे,’’ माथे पर बिंदिया का रतनारी सितारा टांकते हुए अर्चना ने कहा.

‘‘ठीक है, जाओ बेगम, लेकिन अंधेरा होने से पहले लौट आना,’’ रजत ने हिदायत दी और अर्चना खिल उठी. कभीकभी अकेले बिंदास घूमने का भी अपना एक अलग ही मजा होता है.

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