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मुझे कुछ बोलते नहीं बन रहा था. अभी हम एकदूसरे को ठीक से जानतेपहचानते भी नहीं और यह अपनी मां समान सास के बारे में कैसीकैसी बातें बोल रही है. इस के लिए आंटी ने मेरे सहित न जाने कितनी ही लड़कियों को ठुकरा दिया था.

नंदा फिर कहने लगी, ‘‘सच कहती हूं मीराजी, आप बड़ी किस्मत वाली हैं, जो आप की सास नहीं है, वरना मेरी सास तो मेरे लिए पनौती बन कर रह गई हैं. और ये मेरे पति, लगता है जैसे मैं इन के पल्ले जबरदस्ती बांध दी गई हूं.’’

‘‘क्यों?’’ मेरे मुंह से निकल गया.

कहने लगी, अरे, देख रही हैं आप. कभी भी मुझे प्यार भरी नजरों से नहीं देखते. पता नहीं किस के खयालों में खोए रहते हैं?

‘‘तो क्या आज भी प्रतीक के दिल में मैं ही हूं? सोच कर मेरी आंखें नम हो गईं. किसी तरह नंदा से छिपा कर अपने आंसू पोंछ कर बोली, ‘‘ऐसी बात नहीं हैं नंदाजी, मांबाप हों या सासससुर, सब हमारे अपने हैं और जैसे उन्होंने हमें पालापोसा, पढ़ायालिखाया, हमारे सुख को सब से ऊपर रखा, तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम अपने मांबाप को मानसम्मान दें, उन का सहारा बनें.’’ भले ही आंटी ने मेरे साथ जो भी किया पर मैं उन का अपमान कैसे सह सकती थी. लेकिन मेरी एक भी बात उसे अच्छी नहीं लगी. कहने लगी, ‘‘ठीक है जरा मैं आप का घर देख लेती हूं.’’

मैं उसे देख कर सोच में पड़ गई कि इतनी कड़वाहट भरी है इस के दिल में आंटी के लिए.

जातेजाते प्रतीक कहने लगा, ‘‘मीरा, खुश तो हो न अपनी जिंदगी में?’’

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