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प्रतीक बोल रहा था और उस की आवाज से लग रहा था कि वह काफी गुस्से में है, ‘‘आप तो मान गई थीं कि अब कोई कुंडली का मिलान नहीं करेंगी तो आज अचानक से क्या हो गया आप को? उस ढोंगी बाबा ने भड़काया है न आप को? ठीक है तो मेरी भी बात सुन लीजिए, अगर मीरा से मेरी शादी नहीं हुई तो मैं जिंदगी भर कुंवारा रह जाऊंगा पर किसी और से शादी नहीं करूंगा.’’

सुन कर मेरा हृदय व्याकुल हो उठा. कुछ देर तो मैं काठ की मूर्ति की तरह जड़वत चुपचाप वहीं खड़ी रह गई. फिर अंकल के चिल्लाने की आवाज से मेरा ध्यान टूटा.

‘‘अरे मूर्ख औरत, मैं ने तुम्हें कितनी बार समझाया, यह मंगलीफंगली कुछ नहीं होता है तो फिर कौन तुम्हें भड़का गया? वो ढोंगी बाबा? मत सुनो किसी की, यह शादी हो जाने दो. क्यों दो प्यार करने वालों को अलग करने का पाप अपने सिर पर ले रही हो?’’ अंकल आंटी को समझाने की कोशिश कर रहे थे.

आंटी कहने लगी, ‘‘देखोजी, सिर्फ प्यार से जिंदगी नहीं चलती है और दुनिया कितनी भी मौडर्न क्यों न हो जाए जो सही है सो है. मीरा मंगली तो है ही ऊपर से कालसर्प दोष भी है उस में. पंडितजी ने तो यहां तक कहा कि अगर हम अपने बेटे की शादी मीरा से कर देते हैं तो प्रतीक की जान को भयंकर खतरा है. उस की जान भी जा सकती है. अब बोलो, क्या जानबूझ कर मैं अपने बेटे को मौत के मुंह में डाल दूं? जो भी हो पर अब मैं यह शादी नहीं होने दे सकती.’’

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