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4-5 दिन बाद शिखा अपने पति अरुण को फिर हवाईअड्डे पर छोड़ने गई. इस बार वह कंपनी के कुछ अधिकारियों के साथ अकेली थी. रूपा को उस ने कालेज जाने से रोका था और कहा था कि उस के पिताजी अब की बार लंबे दौरे पर जा रहे हैं, उन को विदा करने के लिए चलना है.

पर रूपा ने स्वयं पिता से जा कर कह दिया, ‘‘पिताजी, आप तो जानते ही हैं, कालेज कितना जरूरी होता है. एक छुट्टी का मतलब है 2 दिन तक लड़कियों से नोट्स मांगते फिरो. फिर आप तो कार से उतरते ही हवाईअड्डे के सुरक्षित भाग में चले जाएंगे. इस से अच्छा है आप हमें यहीं मोटी सी पप्पी दे दो.’’

अरुणा रूपा के सामने कुछ नहीं बोल पाया. रूपा के गाल पर प्यार किया और कंधा थपथपाते हुए बस इतना ही कहा, ‘‘तुम्हारी मां अकेले थोड़ा परेशान हो जाती है, उन का खयाल. रखना मैं अब की बार डेढ़ महीने बाद आऊंगा.’’

रूपा के इस तरह के व्यवहार से अरुण भी थोड़ा हिल गया था. एक क्षण को सोचा भी कि आजकल के बच्चे कितने हृदनहीन होते जा रहे हैं. फिर पुरुष होने के नाते दृढ़ता आ गई और फिर कंपनी के अधिकारियों से बात करने लगा.

इस बार अरुण को भी दुख हो रहा था कि वह शिखा को डेढ़ महीने के लिए अकेली छोड़े जा रहा है पर कर भी क्या सकता था. काम की जिम्मेदारियों का भी जीवन में अलग हिस्सा होता है. आदमी उन में उलझता है तो घर की जिम्मेदारी छोटी लगने लगती है.

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