Hindi Drama Story: ओस ने दुपट्टा अपने कंधे पर डाला और पैरों में हवाईचप्पल पहन कर अम्मी से कहा, ‘‘हम जा रहे हैं.’’ ओस के कदमों की रफ्तार तेज हो चली थी. पैदल ही कालेज का सफर जो तय करना था. चंपई रंग, उम्र की लुनाई ही उस की शख्सियत का सब से अहम हिस्सा था. अनचाही, नापसंद नजरों का खौफ खा कर वह बारबार दुपट्टा सीधे किए जा रही थी.

जैसे ही ओस कालेज पहुंची सुर्र्खी ने उसे चौंका दिया, ‘‘अरे गुलफाम आज इतनी देर कैसे हो गई?’’ ‘‘बस सुर्र्खी तुम हमें और तंग न करो. बड़ी मुश्किल से तो अम्मी के सवालों से पीछा छूटा और तुम भी...’’ ‘‘ओए मेरे मिट्टी के माधो. अब इन बड़ीबड़ी कश्तियों को आंखों को समंदर में न उतारना.’’ सुर्र्खी कहां आजाद परिदों की मानिंद हवा से बातें करती हुई, बेपरवाह, पुरजोर कहकहा लगाने की उस की आदत. तितलियों सी पल में यहां तो पल में वहां. जब वह तितलियों को हथेलियों में बंद कर वापस खोलती तो तितलियों के पंखों के सारे रंगों उस की हथेलियों में छपे मिलते. अब वह इन रंगों से भरी हथेलियों को हौलेहौले ‘ओस’ के रुखसार पर छाप कर खिलखिला पड़ती. ओस व सुर्र्खी हमउम्र तो थीं पर हमखयाल बिलकुल नहीं.

पर कहते हैं न अलगअलग तासीर के लोगों के बीच दोस्ती ज्यादा पुखता होती है... यह दोस्ती भी कितनी अजीब चीज होती है. इस की राहों में जुदा खयालों के पत्थर तो होते हैं पर उन में से जो जैसा है उसे उसी तर्ज पर कबूल करने वाले कुछ चमकीले जुगनू भी होते हैं. साथ चल कर खुशी, गम बांटने वाली नन्ही कलियां राह में बिखरी होती हैं. इस से ही बावस्ता दोस्ती की पगडंडी पर चला जा सकता है. इन में रूठनेमनाने वाले बागड़ भी बेशाख्ता उगे होते हैं पर एकसाथ खिलखिलाने की सोंधी सी खुशबू से सराबोर हो कर यह रास्ता तय हो ही जाता है. दिन बीत रहे थे. कालेज से लौटते वक्त सुर्र्खी का पानीपूरी खाने के लिए मचल उठा. बोली, ‘‘भाई हमारे गुपचुप, पानीपूरी में प्याज नहीं पड़ेगा.’’

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