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शीतल की तरह मीनाक्षी भी अकेली रहती है. एक बेटा है, जो अमेरिका में जा बसा. पति रहे नहीं अब. पढ़ाई पूरी होने के बाद वहीं अमेरिका में बेटे की एक कंपनी में जौब लग गई. फिर शादी भी उस ने एक अमेरिकन लड़की से कर ली और हमेशा के लिए वहीं का हो कर रह गया.

5 साल पहले अपने पिता के मरने पर वह आया था, फिर आया ही नहीं. लेकिन फोन पर बेटे से बात होती रहती है मीनाक्षी की. मीनाक्षी अपने पति से कितना प्यार करती है, यह उस की बातों से ही झलक जाता है. बताती है कि उस के पति बहुत ही अच्छे इनसान थे. शादी के इतने सालों में कभी उन्होंने मीनाक्षी को एक कड़वी बात तक नहीं बोली. बहुत प्यार करते थे मीनाक्षी से वह.

मीनाक्षी अपने पति की तुलना अर्णब से करती है. इसलिए शीतल को समझाती रहती है कि वह जो करने जा रही है, सही नहीं है. पतिपत्नी में तो लड़ाईझगड़े होते ही हैं. इस का यह मतलब तो नहीं कि दोनों अलग हो जाएं. लेकिन कहते हैं कि ‘जाके पैर न फटी बिवाई, वो क्या जाने पीर पराई,’ मीनाक्षी को क्या पता कि शीतल ने अपनी जिंदगी में क्याक्या नहीं झेला. कितना सहा उस इनसान को. लेकिन सहने की भी एक हद होती है? तभी तो शादी के इतने सालों बाद शीतल अपने पति अर्णब से तलाक लेने की ठान चुकी है.जानती है, ऐसा कर के वह सब की नजरों में बुरी बन रही है. यहां तक कि उस की अपनी बेटी भी उसे सही नहीं ठहरा रही है. लेकिन, कोई बात नहीं, उस ने जो ठान लिया है अब उस से पीछे नहीं हटेगी.

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खैर, अर्णब जब तक अस्पताल में रहा, शीतल एक बार रोज उसे देख आती थी, ताकि बेटी को बुरा न लगे, वरना वह तो उस इनसान का चेहरा भी देखना पसंद नहीं करती थी.

कुछ दिन अस्पताल में रहने के बाद अर्णब को वहां से छुट्टी दे दी गई. शीतल का जरा भी मन नहीं था, पर कृति की जिद के कारण उसे भी अर्णब को घर तक छोड़ने जाना पड़ा. लेकिन उस घर में पांव रखते ही शीतल को वह सारी पुरानी बातें याद आने लगीं. वह मारपीट, गालीगलौज सबकुछ उस की आंखों के सामने नाचने लगा, इसलिए वह जल्दी से जल्दी इस घर से निकल जाना चाहती थी, मगर कृति ने यह कह कर उसे रोक लिया कि पापा को खिलापिला कर दवाएं दे कर चली जाए.

दवा खाते ही अर्णब को नींद ने आ घेरा. उस के खर्राटे देख कर तो लग ही नहीं रहा था कि वह एक बीमार इनसान है, काफी स्वस्थ दिख रहा था.

अर्णब को ठीक से सोया देख कर शीतल जब वहां से जाने को हुई, तो कृति जिद करने लगी कि आज रात वह यहीं रुक जाए. कृति चाह रही थी कि अर्णब और शीतल के बीच किसी तरह बातचीत हो जाए, तो सब ठीक हो जाएगा.

लेकिन शीतल हरगिज अर्णब से किसी भी विषय पर बात करने को तैयार नहीं थी. वह तो बेटी की जिद पर यहां आई थी, वरना तो वह इस घर में पांव भी नहीं रखती कभी.

“प्लीज मां, रुक जाओ न, आज रात यहीं पर. वैसे भी पापा की तबीयत अभी उतनी अच्छी नहीं है,” कृति ने फिर वही बात दोहराई.

“नहीं बेटी, ऐसा तो नहीं हो पाएगा. म… मेरा मतलब है, वहां घर ऐसे ही नहीं छोड़ सकती. चोरियां बहुत होने लगी है अब. और तुम तो हो न यहां पर…?” शीतल ने कहा. लेकिन कृति सब समझ रही थी कि ये सब बहाने हैं शीतल के, ताकि यहां न रुकना पड़े.

“ठीक है मां, नहीं रुकना तो मत रुकिए, पर कुछ देर और बैठ तो सकती हैं न मेरे साथ?“ शीतल का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कृति कहने लगी, “मां, आप मेरी बात समझने की कोशिश करो. अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा है. अगर आप चाहो तो सब पहले की तरह हो सकता है. एक अंतिम बार, पापा को माफ कर दो मां, प्लीज.

“मैं… मैं समझाऊंगी पापा को, वह वही करेंगे, जो आप चाहती हो. पापा समझौता करने को तैयार हैं, बस, अपनी जिद छोड़ दो मां.“

“देखो कृति, इन सब बातों का अब कोई मतलब नहीं रह गया है, इसलिए रहने दो तुम,” बोलते हुए शीतल उठ खड़ी हुई.

“नहीं मां, ऐसे मत बोलो. पापा को आप की जरूरत है. मैं मानती हूं कि पापा ने आप के साथ बहुत ज्यादती की है. लेकिन, अब वे काफी बदल चुके हैं. सच कहती हूं मैं. देख नहीं रही हो कैसे गुमसुम, चुपचाप बैठे रहते हैं?”

कृति की बात पर शीतल हंसी और बोली, “नहीं बेटी, ये सब सिर्फ दिखावा है तुम्हारे पापा का मुझे हराने के लिए. और एक बात, इनसान का नेचर और सिग्नेचर कभी नहीं बदलता. और मैं कब से उस की जरूरत बन गई? जब पैसा और पावर खत्म हो गया, वह औरत उन्हें छोड़ कर चली गई. अपने मतलब से कोई किसी को अपनी जरूरत बनाए तो उसे प्यार नहीं कहते, उसे मतलबी इनसान कहते हैं. और ऐसा भी नहीं है कि तुम्हारे पापा बदल गए हैं, बल्कि अच्छाई का दिखावा कर रहे हैं. खैर, छोड़ो.”

मन तो किया शीतल का कि कह दे, ये हार्ट अटैक भी एक नाटक ही है. क्योंकि वह डाक्टर, जो अर्णब का इलाज कर रहा था, वह उस का जिगरी दोस्त है, तो फिर क्या दिक्कत है नाटक करने में? लगातार 2 बार अटैक आना और फिर जल्द ही नौर्मल होना, यह नाटक नहीं तो और क्या है? किसी तरह चाह रहे हैं कि केस की डेट आगे बढ़ती रहे और वह अपने मकसद में कामयाब हो जाए.

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“अब अर्णब ठीक हैं. तुम चिंता मत करो. अगर कोई जरूरत हुई, तो मैं ज्यादा दूर थोड़ी हूं? आ जाऊंगी.“

“ठीक है मां, दिखावा ही सही, पर जब आप ने अपनी जिंदगी के 30 साल पापा के साथ गुजार दिए तो अब क्यों उन से तलाक लेना चाहती हो? सोचा है, लोग क्या कहेंगे? हंसेंगे सब. लोगों की छोड़ो, कम से कम मेरे और भैया के बारे में तो सोचो. हमारी फैमिली के बारे में तो सोचो. क्या बताएंगे हम सब को कि 52 साल की मेरी मां और 61 साल के मेरे पापा अब साथ नहीं रहना चाहते हैं, इसलिए दोनों तलाक ले रहे हैं?

“बोलो न मां? और कल को जब पापा ही नहीं रहेंगे, फिर किस से ये लड़ाई और किस से झगड़ा करोगी आप? मां इतनी निर्दयी मत बनो प्लीज… छोड़ दो अपनी जिद और लौट आओ अपने घर.”

मन तो किया शीतल का कि एकएक जुल्म जो अर्णब ने बंद कमरे में उस के साथ किए थे, वह भी आज कृति के सामने खोल कर रख दे, क्योंकि वह अब बच्ची नहीं एक औरत बन चुकी है, समझेगी उस का दर्द. लेकिन, उस ने चुप्पी साध ली. क्योंकि पुराने घाव कुरेद कर उसे हरा नहीं करना चाहती थी वह. हां, ठीक है बुरी और स्वार्थी ही सही, लेकिन अब वह अर्णब के साथ नहीं रह सकती. जिंदगीभर वह उस के इशारों पर नाचती रही. अपने लिए तो जीया ही नहीं कभी.

आगे पढ़ें- ऐसा सब नाटक अर्णब तब से करने लगा है, जब…

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