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रचना चेहरे से जितनी शांत लग रही थीं, अंदर उतना ही तूफान था. भावनाओं की बड़ीबड़ी सूनामी लहरें बारंबार उन के मन पर आघात किए जा रही थीं. काया स्वस्थ थी, किंतु मन लहूलुहान था. फिर भी अपने अधरों पर मुसकान का आवरण ओढ़े घरगृहस्थी के कार्य निबटाती जा रही थीं. ठीक ही है मुसकराहट एक कमाल की पहेली है- जितना बताती है, उस से कहीं अधिक छिपाती है. शोकाकुल मन इसलिए कि इकलौती संतान लतिका की नईनई शादीशुदा जिंदगी में दहला देने वाला भूचाल आया और मुसकान की दुशाला इसलिए कि कहीं लतिका डगमगा न जाए.

कुछ ही दिन पहले ही रचना ने अखबार में पढ़ा था कि आजकल के नवविवाहित जोड़े हनीमून से लौटते ही तलाक की मांग करने लगे हैं और यह प्रतिशत दिनोंदिन बढ़ रहा है.

दरअसल, हनीमून पर पहली बार संगसाथ रह कर पता चलता है कि दोनों में कितना तालमेल है. धैर्य की कमी लड़कों में हमेशा से रही है और समाज में स्वीकार्य भी रही है, लेकिन बदलते परिवेश में धीरज की वही कमी, उतनी ही मात्रा में लड़कियों में भी पैठ कर गई है. अब जब लड़कियां हर क्षेत्र में लड़कों से बराबरी कर रही हैं, तो उन के व्यवहार में भी वही बराबरी की झलक दिखने लगी है.

अखबार की सुर्खियों में खबर पढ़ कर मन थोड़ाबहुत विचलित हो सकता है, पर उस का प्रतिबिंब अपने ही आंगन में दिखेगा, ऐसा कोई नहीं सोचता. रचना ने भी नहीं सोचा था. धूमधाम से पूरी बिरादरी के समक्ष आनबान शान से रचना और वीर ने अपनी एकमात्र बेटी लतिका का विवाह संपन्न किया था. सारे रीतिरिवाज निभाए गए, सारे संबंधियों व मित्रगणों को न्योता गया. रिश्ता भी अपने जैसे धनाढ्य परिवार में किया था. ऊपर से लतिका और मोहित को कोर्टशिप के लिए पूरे

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