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यह असली जिंदगी की शादी है जहां एक लड़की का पूरा जीवन बदल जाता है. तुम्हारे अपने पराए और पराए अपने बन जाते हैं.’’

‘‘प्लीज मौम, आप के मुंह से ऐसी बातें अच्छी नहीं लगतीं. आप की सोच इतनी संकुचित कब से हो गई? मैं कोई गुडि़या नहीं हूं, जिस की भावनाएं नहीं, मैं एक जीतीजागती लड़की हूं,’’ लतिका अभी कुछ भी समझने के मूड में नहीं थी, ‘‘मैं आप को हमेशा अपनी मौम से ज्यादा अपनी सहेली मानती आई हूं. मैं आप को ऐसे ही तो नहीं कूल मौम कहती हूं.’’

लतिका की बातें सुन रचना चुप हो गईं. कूल मौम के टैग तक ठीक था, किंतु इस स्थिति का हल तो खोजना ही होगा. रचना ने पहले मोहित से मिलना तय किया. उन के बुलाने पर बिना किसी नखरे के मोहित एक रेस्तरां में मिलने आ गया. कुछ तकल्लुफ के बाद रचना ने बात शुरू की. पहले उन्होंने लतिका की बात मोहित के समक्ष रखी, ‘‘क्योंकि मैं ने अभी तक सिर्फ लतिका की बात ही सुनी है. अब मैं तुम्हारा पक्ष सुनना चाहती हूं.’’

‘‘मम्मा, आप ही बताओ, जो बातें मैं ने पहले ही साफ कर दी थीं, उन्हें दोहराना क्या उचित है? लतिका को पहले से पता है कि मेरे परिवार में बहुत अधिक पार्टी कल्चर नहीं है. अभी हमारी शादी को दिन ही कितने हुए हैं. मुश्किल से 1 हफ्ता रही है वह हमारे घर हनीमून जाने से पहले. उस पर भी वह हर समय यही पूछती रही कि क्या इस पार्टी में भी नहीं जाएंगे हम, क्या उस पार्टी में भी नहीं जाएंगे हम? मैं ने पहले ही उस से कह दिया था कि शादी के

बाद उसे हमारे घर के रीतिरिवाज के अनुसार दादी और मम्मी की रजामंदी से चलना होगा… वैसे वे लोग कुछ अधिक चाहते भी नहीं हैं.

बस सुबह उठ कर उन्हें प्रणाम कर ले, खाने में क्या बनाना है, यह उन से पूछ ले. घर से बाहर जाए तो उन्हें बता कर जाए. ये तो साधारण से संस्कार हैं, जिन का हर परिवार अपनी बहू से अपेक्षा रखता है. फिर हमारे घर में 2 भाभियां हैं, जो यह सब करती हैं. इस के अलावा कोई रोकटोक नहीं, कोई परदा नहीं. पर वह है कि इस बात की जिद ले कर बैठ गई है कि वह अपनी मरजी से जीती आई है और अपनी इच्छानुसार ही चलेगी. मुझे तो लगने लगा है कि हम दोनों कंपैटिबल नहीं हैं.’’

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लतिका और मोहित, दोनों के मुंह से कंपैटिबल न होने की शिकायत रचना को सोच में डाल गई. आखिर यह कंपैटिबिलिटी क्या है? हर शादी समझौते मांगती है, कुछ बलिदान चाहती है. एक ही घर में पैदा होने वाले एक ही मांबाप के 4 बच्चे भी आपस में कंपैटिबल नहीं होते हैं, उन में भी विचारभेद होते हैं, झगड़े होते हैं. पर भाईबहनों का तलाक नहीं हो सकता और पतिपत्नी फटाफट इस निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं कि हम कंपैटिबल नहीं हैं तो खत्म करो यह रिश्ता. हो सकता है कि मन की परतों में मोहित, लतिका को खोना नहीं चाहता हो पर अहं का क्या करे?

घर लौटने पर रचना ने पाया कि लतिका सोफे पर पसरी चिप्स के पैकेट पर पैकेट चट कर रही थी. वह जब कभी परेशान होती तो उस का तनाव खानेचबाने से ही हल होता. तनावग्रस्त दोनों ही थे- मोहित और लतिका. पर अहम की बेवजह खड़ी दीवार में रंध्र करने की जिम्मेदारी रचना ने खामोशी से संभाल ली थी. जरूरी नहीं कि हर लड़ाई जीती जाए. जरूरी यह है कि हर हार से सीख ली जाए. रिश्तों की टूटन से उपजा तिमिर केवल घरपरिवार को ही नहीं, अपितु पूर्ण जीवन को अंधकारमय कर देता है. अपनी बेटी के जीवन में निराशा द्वारा रचा तम वे कभी नहीं बसने देंगी.

‘‘हाय भावना, क्या हाल हैं?’’ लतिका अपनी सहेली से फोन पर बातें कर रही थी,

‘‘हां यार, मेरी मोहित से बात हुई है फोन पर लेकिन वह अपने घर की सभ्यता को ले कर

कुछ ज्यादा ही सीरियस है. ऐसे में मैं कितने दिन निभा पाऊंगी भला? सच कहूं तो मुझे लगता है मैं ने गलती कर दी यह शादी कर के. पता है, हनीमून पर एक रात हम दोनों में झगड़ा हुआ और गुस्से में मैं बिस्तर पर न सो कर सारी रात कुरसी पर बैठी रही. लेकिन मोहित आराम से बिस्तर पर सो गया. इस का यही निष्कर्ष निकला न कि उसे मेरी भावनाओं से कोई सरोकार नहीं है…’’

शादी की शुरुआत में लड़कियां बहुत अधिक संवेदनशील हो जाती हैं. जन्म से जिस माहौल में लड़कियां आंखें खोलती हैं, उस माहौल को, अपने मांबाप, अपने घरआंगन को त्याग कर पराए संसार को उस की नई मान्यताओं, उस के तौरतरीकों सहित अपनाने की उलझन वही समझ सकता है, जो उस कठिन राह पर चलता है. लड़कों के लिए यह समझना मुश्किल है. वे बस इतना कर सकते हैं कि शुरूशुरू में अपनी पत्नी को जितना हो सके उतना कंफर्टेबल करें ताकि वह अपने नए वातावरण में जल्द से जल्द सैटल हो पाए. बस इसी प्रयास में पतिपत्नी का रिश्ता सुदृढ़ होता जाएगा, उन में अटूट बंधन कसता जाएगा. पति के प्रयत्न को पत्नी सदैव याद रखेगी, उस के प्रति नतमस्तक रहेगी. ये शुरू की संवेदनशीलताएं ही रिश्ते को बनाने या बिगाड़ने की अहम भूमिका निभाने में सक्षम हैं.

‘‘नहीं यार, मेरी मौम बहूत कूल हैं.’’

लतिका का अपनी सहेली से चल रहे वार्त्तालाप से रचना की विचारशृंखला भंग हो गई.

‘‘आई एम श्योर वे मेरे इस निर्णय में मेरा साथ देंगी,’’ लतिका को अपनी मां पर पूर्ण विश्वास था.

रचना दोनों पक्षों की बात सुन चुकी थी. सुन कर उन्हें और भी विश्वास हो गया था कि दोनों का रिश्ता सुदृढ़ बनाना उतना कठिन भी नहीं. बस कोई युक्ति लगानी होगी. युक्ति भी ऐसी कि न तो रचना का ‘कूल मौम’ का टैग बिगड़े और न ही लतिकामोहित का रिश्ता. फिर क्या खूब कहा गया है कि रिश्ते मोतियों की तरह होते हैं, कोई गिर जाए तो झुक कर उठा लेना चाहिए.

‘‘मेरे बच्चे, जो भी तुम्हारा निर्णय होगा, मैं तुम्हारे साथ हूं. आज तक हम ने वही किया, वैसे ही किया, जैसे तुम ने चाहा. आगे भी वही होगा जो तुम खुशी से चाहोगी. हम ने तुम्हारी शादी आज के आधुनिक तौरतरीकों से की, वैसे ही आगे की कार्यवाही भी हम आज के युग के हिसाब से ही करेंगे. तुम मोहित से शादी कर के पछता रही हो न? ठीक है, छोड़ दो मोहित को,’’ रचना की इस बात का असर ठीक वैसा ही हुआ जैसी रचना ने अपेक्षा की थी.

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लतिका की आंखों के साथसाथ उस का

मुंह भी खुला का खुला रह गया, ‘‘छोड़ दूं मोहित को?’’

‘‘हां बेबी, ठीक सुना तुम ने. छोड़ दो मोहित को. मेरी नजर में एक और लड़का है फैशनेबल, अमीर खानदान, हर रोज पार्टियों में आनाजाना. जैसा तुम्हें चाहिए, वैसा ही. आए दिन तुम्हें तोहफे देगा.’’

आगे पढ़ें- रचना की बातें सुन लतिका के मुख पर…

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